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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
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विश्ववंदनीय - 50वां स्वर्णिम संस्मरण


संयम स्वर्ण महोत्सव

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 ☀☀ 50वां स्वर्णिम संस्मरण ☀☀
           ? विश्ववंदनीय ?
बात महाराजपुर की है, पंचकल्याणक का अंतिम दिन था, सुबह आहार के समय निकलते हुए सब महाराजों ने आचार्य भगवन को नमोस्तु किया, आचार्य श्री जी ने आशीर्वाद दिया, और अंजुली बांधने से पहले रुक गए और कहा कि- सभी महाराज ध्यान रखे, मौसम बदल गया है,ठंड नही गर्मी है, कुछ अलग प्रकार का बहुत गरम मौसम हो गया है, आहार पानी अच्छे से लेकर आना, पंचकल्यानक की परिक्रमा बड़ी और लंबी है , बहुत तेज धूप है आहार अच्छे से करके आना।
 हमे आश्चर्य लगा, क्योंकि कभी आचार्य श्री जी ने आहार में निकलने से पहले ऐसा कहा नही था। 
 जब आहार के बाद संतभवन पहुँचे तो पता चला कि- आचार्य श्री जी का प्रथम ग्रास में ही अंतराय हो गया था,सुनकर बहुत दुःख हुआ, और उससे भी ज्यादा जिनके यहाँ आहार हुए थे, (पूज्य संस्कार सागर जी के ग्रहस्थावस्था के घर मे)उनकी आंखों में आंसु देखकर हो रहा था। 4 दिन से पंचकल्यानक में बड़ीें मेहनत हो रही है और आज 7 परिक्रमा लगानी है , और आचार्य श्री जी का अंतराय और इतनी तेज गर्मी । लेकिन आचार्य श्री जी मुस्कुरा रहे थे, उन्हें देखकर कह नही सकते थे कि आज उनका अंतराय है,सभी से अच्छे से बात की और अच्छे से आशीर्वाद दिया, फिर ईर्यापथ भक्ति हुई, भक्ति के बाद महाराजों ने कहा- आचार्य श्री जी हमें आपकी सेवा करना है,आचार्य श्री जी ने कहा- हाँ, हाँ देखते है, और सामायिक के लिए बैठ गए। हम लोगो ने सोचा कि- अभी सामायिक के बाद आचार्य श्री जी को रोक लेंगे और पंचकल्यानक स्थल पहुँचने से पहले उनकी सेवा कर लेंगे।
सामायिक के बाद आचार्य श्री जी ने सब महाराजों से पहले स्वयम्भू स्त्रोत पढ़ लिया और भक्ति कर ली। और जैसी ही संतभवन के बाहर अपना पहला कदम रखा, न जाने कौन सा चमत्कार हुआ कि अचानक आसमान में बादल छा गए, और जैसे ही गुरुजी ने पंचकल्यानक स्थल की ओर कदम बढ़ाया,अपने आप ठंडी हवाएं चलने लगी। पहली परिक्रमा में ठंडी हवा चलती गयी, दूसरी में और ज्यादा ठंडी, तीसरी में और ऐसे करते करते 7 वीं परिक्रमा में बहुत तेज़ ठंडी हवाएं चलने लगी।
महाराज लोग सोच रहे थे, हम लोग क्या वैयावृत्ति करे गुरुजी की, उनकी तो देव लोग वैयावृत्ति कर रहे है।
चारो तरफ माहौल बिल्कुल ठंडा हो गया था, परिक्रमा होने के बाद , सभी कार्यक्रम अच्छे से  सम्पन्न हुए, जैसे ही आचार्य श्री जी संतभवन पहुँचे, कड़कती तेज़ धूप  हो गयी।जब महाराज लोगों ने पता लगाया कि- ये मौसम कहाँ, कहाँ था? 
और पता चला कि- महाराजपुर के आधे km के अंदर ही ऐसा मौसम था, अन्य जगह चारो तरफ तेज़ धूप थी,मतलब देवलोग आके सेवा करके चले गए। ऐसे 1 नहीं कई संस्मरण है जब देवताओं ने आचार्य श्री जी की वैयावृत्ति की है।

सच बात है, हमारे आचार्य भगवन जिनकी चर्या,इतनी उत्कृष्ट है, और जिनकी हृदय में करुणा बसती है ,आज भी देव भी उनकी सेवा करने आते है।
देवता भी उनके चरणों की वंदना करते है। और साथ ही आचार्य भगवन  सारे विश्व मे वंदनीय, और पूज्यनीय भी है।

? पूज्य मुनि श्री दुर्लभसागर जी महाराज के प्रथम 28 जुलाई 2017 रामटेक में हुए प्रवचन में सुना हुआ संस्मरण

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