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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
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महान आचार्य   - 51वां स्वर्णिम संस्मरण


संयम स्वर्ण महोत्सव

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    ☀☀ 51वां स्वर्णिम संस्मरण ☀☀
           ? महान आचार्य  ?
नैनागिरी पंचकल्याणक पूरे हुए।गजरथ की प्रदक्षिणा होनी थी।दो- तीन लाख लोग क्षेत्र पर उपस्थित हुए थे।यह सब आचार्य महाराज के पुण्य प्रताप का फल था।देखते ही देखते यथासमय गजरथ की फेरी सम्पन्न हो गई और महाराज संघ-सहित प्रतिष्ठा-मंच पर विराज गए।आशीर्वचन सुनने का सभी का मन था। इसी बीच कई लोगों ने एक साथ आकर अत्यंत हर्ष-विभोर होकर कहा कि "आज जो भी हुआ,वह अद्भुत हुआ है,उसे आपका आशीर्वाद और चमत्कार ही मानना चाहिए।आज के दिन इतने कम साधनों के बावजूद भी लाखों लोगों के लिए पानी की पूर्ति कर पाना संभव नहीं था।हम सभी व्यवस्था करके हताश हो गए थे।।प्रशासन ने चार-पाँच ट्यूबवेल खोदे थे;किन्तु पर्याप्त मात्रा में पानी न मिलने पर वह प्रयास भी निष्फल रहा।टैंकर से पानी की व्यवस्था कहाँ तक पूरी हो पाती,पर जैसे ही गजरथ की फेरी प्रारंभ हुई, गजरथ स्थल के समीप जहाँ आपके आशीर्वाद से एक ट्यूबवेल खोदा गया था उसमें खूब पानी निकला।सभी लोगों ने पूरी फेरी होने तक पानी पिया, इस तरह आपके आशीष व कृपा से यह समस्या हल हो गई।चमत्कार हो गया।"
     आचार्य महाराज ने शान्ति से सारी बात सुनी,फिर अत्यंत निर्लिप्त होकर कहा कि "भैया ! धर्म की प्रभावना तो चतुर्विध संघ के द्वारा इस पंचमकाल में निरन्तर होती रहेगी,इसमें हमारा क्या है ? जहाँ हजारों-लाखों लोगों की सद्भावनाएँ जुड़ती हैं वहाँ कठिन से कठिन काम भी आसान हो जाते हैं।भव्य-जीव इस पावन क्षेत्र पर आकर प्यासे कैसे लौट सकते हैं,सभी की प्यास बुझे-ऐसी परस्पर सद्भावना ही आज के इस कार्य में सफलता का कारण बनी है,हम तो निमित्त मात्र हैं।"
      सुनकर सभी दंग रह गए।स्वयं की ख्याति,पूजा,लाभ से बचाए रखने वाले ऐसे निस्पृही आचार्य का समागम मिलना हमारा/ सभी का सौभाग्य ही है।

वास्तव में इतने बड़े आचार्य होकर भी गुरुजी हमेशा अपने आप को सामान्य मानते है, और जो भी कार्य उनके द्वारा सफल हो जाते है , उन्हें गुरुजी अपने गुरु ज्ञानसागर जी महाराज के आशीर्वाद से सम्पन्न हो गया,यह कह देते है। धन्य है ऐसे शिष्य जो प्रतिपल अपने गुरु का स्मरण करते रहते है।

(बिना कुछ छेड़छाड़ के अन्य ग्रुप में प्रेषित करें??)

                नैनागिरि(1987)
 ?  साभार-आत्मान्वेषी?
✍ पूज्य मुनि श्री 108 क्षमासागर जी

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