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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

प्रवचन संकलन

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भक्ति करते समय अपनी भवन व्यक्त

पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ने अपने प्रवचनों में कहा क़ि जो भगवान का भक्त होता है बो भक्ति करते समय अपनी भवन व्यक्त करता है । सम्यक दर्शन की विशेषता क्या होती है ये आप सभी को ज्ञात होना चाहिए ताकि आप भक्ति के मार्ग को और सुदृढ़ बना सको ।सम्यक दर्शन होने के उपरांत जो बंध के कारन बिभिन्न परिस्तिथियां जीवन में उत्पन्न होती हैं उसके बारे में ज्ञात होना चाहिये । थोडा सा स्वाध्याय करने से ये ज्ञान भी जागृत किया जा सकता है । जिस दुकान को या व्यापर को आप जिस बारी की के साथ और समूचे बाजार पर नजर

संत प्रभावित नहीं होते

जैन संत आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा है कि पानी गरम हो सकता है, बरफ नहीं, इसी प्रकार मनुष्य प्रभावित होता है, संत या मुनि नहीं।   उन्होंने कहा कि जल का स्वभाव शीतलता है, लेकिन वह कुछ समय के लिए गरम हो सकता है। उसमें गरम होने की क्षमता है। लेकिन यदि वह बरफ बन जाए तो उसे गरम नहीं किया जा सकता। इसी प्रकार मनुष्य कुछ समय के लिए प्रभावित हो सकता है, उसमें प्रभावित होने की पात्रता है, लेकिन मनुष्य एक बार सच्चा संत बन जाए तो उसे प्रभावित नहीं किया जा सकता। क्योंकि वह आत्मा में रमण

जीवन में मौलिक क्षण

पूज्य आचार्य श्री ने कहा की महोत्सव प्रारम्भ हुआ जीवन में मौलिक क्षण आये चिरप्रतीक्षित समय आ गया है उमंगें तरंगें हैं सभी के मन में महोत्सव की प्रतीक्षा के लिए जिज्ञासा है , सौभाग्य के क्षण, तोरण द्वार सजे हैं , गीत , संगीत बज रहे हैं सबको प्रतीक्षा है उन क्षणों की । रोंगटे खड़े हो जाते हैं किन्तु महोत्सव किसके लिए है ये किन्तु कहते ही सब में जिज्ञासा जागृत है । होता बही है जो ललाट पर लिखा होता है उसे कोई बदल नहीं सकता ये लेखा मिटाया नहीं जा सकता है । लकीर मिटने से समय का लिखा मिटाया नहीं जा सकता

जब हम यात्रा पर जाते हैं

पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा क़ि जब हम यात्रा पर जाते हैं तो वाहन में पेट्रोल की आवश्यकता होती है और हमारा वाहन चालक आवश्यकता अनुसार उसमें पेट्रोल डालता है । अब मानलो क़ि किसी कारन से पेट्रोल पंप में पेट्रोल नहीं होने के कारण वाहन में पेट्रोल नहीं भर पाया तब वाहन उतना ही चलेगा जितना पेट्रोल पहले से भरा हो । ऐंसे ही प्रत्येक जीव एक गति से दूसरी गति में जाता है तो उसे कर्मों की ऊर्जा के हिशाब से चलना पड़ता है चाहे बो संसारी हो , चाहे नारकीय हो ,जहां का निमित्त हो बहिन जाना पड़ता है इस

चन्दन का स्वाभाव शीतल

पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा की चन्दन का स्वाभाव शीतल होता है आप तिलक के रूप में माथे पर लगते हो जिस जगह लगाते हो बो केन्द्र बिंदु होता है जहाँ से आपको शीतलता का एहसास सब जगह तक होता है।   परमात्मा का सबको सुख पहुँचाने का दृष्टिकोण होता है इसे ही वीतरागी विज्ञानं कहते हैं।राग से रहित ज्ञान होता है तो तीन लोक में पूज्य ज्ञान होता है , ज्ञान को पूज्यता तभी प्राप्त होती है जब राग का आभाव होता चला जाता है , ज्ञान की पूज्यता इतनी विश्वव्यापी है की आज भी बो वीतरागिता की महक,

गृहस्थ जीवन

पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने आज अपने प्रवचनों में कहा क़ी गृहस्थ जीवन में धन की आवश्यकता होती है और गृहस्थ आश्रम चलाने के लिए धन को गौंड़ नही करते हुए भी उसे सिरमौर नही बनाना चाहिए इसी तरह धर्म को सुरक्षित रखने के लिए अर्थ का सहारा ले सकते है इसमें कोई बाधा नही है किंतु आज कल की व्यवसथा इसके विपरीत हो गई है व्यवस्था बड़ी हो गई है बड़े बड़े धन वालो की लाइन लग गई है।उन्होंने कहा कि अर्थ के लिए बड़ा कार्य आवश्यक है दुकान यदि मौके पर नही होगी तो पुराना ग्राहक तो आ जायेगा नया नही आएगा और दूकान

चिकनाहट और रूखापन वस्तुओं की प्रकृतियां

पूज्य आचार्य  श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा क़ि चिकनाहट और रूखापन वस्तुओं की प्रकृतियां हैं। बंधन आसान है परंतु बंधन से मुक्ति आसान नहीं है । मिश्री और घी को मिलाते हैं तो इसकी गुणवत्ता अलग होती है और शहद मिलाते हैं बराबर अनुपात में तो उसकी गुणवत्ता अलग हो जाती है बो बिष बन जाता है । बंध की व्यवस्था अपने आप में महत्वपूर्ण है किसके संयोग से लाभ होता है किसके संयोग से हानि होती है ये समझने की बात है । ज्ञान नहीं होने के कारण संसारी प्राणी फंस जाता है , सब सुख की कामना में भटक रहे हैं, दुःख से मु

महाप्रलय का महाप्रयोग बंद करो

जैन संत आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा है कि महाप्रलय को लेकर कई राष्ट्रों के वैज्ञानिकों द्वारा जो महाप्रयोग किया जाना है वह अभी भी जारी है। लगभग 27 किलोमीटर की सुरंग में महाविस्फोट करके यह प्रयोग किया जाना है। उन्होंने कहा कि ऐसे प्रयोग नहीं होना चाहिए। प्रकृति की कई चीजें प्रयोग की नहीं, श्रद्धान का विषय है और उन्हें श्रद्धान तक ही सीमित रखना चाहिए। आचार्य श्री ने कहा कि मनुष्य जन्म सद्कर्मों से मिला है। इसे केवल खाने-पीने में दुरुपयोग मत करो। जन्म को सार्थक करना है तो आत्मा की लब्धि

जितना नापा तुला होता है

गुरुवर ने कहा क़ि जितना नापा तुला होता है उसका उतना महत्व होता है । जीवन मेला है सब अपने बारे मैं सोच रहे हैं अपनी पर्याय के बारे मैं कोई नहीं सोच रहा। सबका ध्यान सूर्य की और जाता है परन्तु सूर्य के पीछे की असली शक्ति की तरफ नहीं जाता उस शक्ति की तरफ हमारा ध्यान नहीं जा रहा जो भीतर विद्यमान है । आज संपर्क सूत्र एक नंबर मैं सिमट कर रह गया है जो आप पसंद करते हो बो नंबर हासिल कर लेता है। मैंने भी ऐंसे महामरणं का नंबर लगा रखा है  जो महामृत्युंजय की और जाता है जो समाधिमरण की और जाता है। उन्होंने कहा क

इन्द्रियों को काम में नहीं लेते

पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने अपने प्रवचनों में  कहा की जब हम सुनते हैं तब कान का प्रयोग करते हैं और बाकि 4 इन्द्रियों को काम में नहीं लेते हैं । हाथ में दीपक होता है तो हम दीपक को देखते हैं अन्यत्र नहीं देखते हैं इससे स्पष्ट होता है हमारा उपयोग जब स्थिर होता है तो दिखता है जिसको हम देखना चाहते हैं यदि स्थिर नहीं होता तो बही दिखता है जो मन सोचता है जैंसे दुकानदार ग्राहक को देखता है अपने सामान को बारबार नहीं देखता क्योंकि दुकान उसकी होती है सामान उसका होता है ग्राहक उसका नहीं होता। आप

भगवान बनने का पुरुषार्थ करो

जैन संत आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा है कि हर मनुष्य को भगवान बनने का पुरुषार्थ करना चाहिए। उन्होंने कहा है कि जो उस पार गए वो भगवान बन गए। भगवान आपको उस पार ले जाने की क्षमता रखता है लेकिन पुरुषार्थ तो आपको करना पड़ेगा।   आचार्यश्री ने कहा कि जो मनुष्य अपनी आत्मा का कल्याण कर इस संसार से पार चले गए वे भगवान बन गए जो इस पार रह गए उन्हें उस पार जाने  के लिए निरंतर पुरुषार्थ करना चाहिए। उन्होंने कहा कि भगवान आपको उधर बुला रहा है, भगवान में क्षमता है कि वह आपको उस पार ले जा भी

मोह को हटाने का पुरुषार्थ करो

जैन संत आचार्य विद्यासागर जी महाराज ने कहा है कि आपको अपने निज स्वरूप को पहचानना है तो मोह को हटाना होगा। उन्होंने कहा कि मोह को हटाने का पुरुषार्थ मोक्ष मार्ग की ओर ले जाएगा।    आचार्यश्री ने कहा कि मोक्ष मार्ग के लिए क्रमबद्ध पुरुषार्थ  आवश्यक है, लेकिन यह मोह के साथ संभव नहीं है। उन्होंने उदाहरण दिया कि चांदी के बर्तन में पानी भरा है और उसमें रंग भी है। इस पानी के अंदर हम झांकने का प्रयास करें तो नजरें आगे नहीं जा सकती। हमें पानी कुछ दिखाई नहीं देता। दरअसल पानी के अंदर घुला हुआ रंग

स्वतंत्रता दिवस

जो राष्ट्र अपनी मातृभाषा से किनारा करके अन्यत्र भाषा के इस्तेमाल में लगते हैं बो अपनी पहचान खोने लग जाते हैं । ईस्ट इंडिया कंपनी देश छोड़ गई परंतु विरासत में इंडिया थोप गई जिसे हम अभी तक ढोते चले आ रहे हैं  । अंग्रेजी को सहायक भाषा के रूप में उपयोग करना अलग बात है परंतु उसे जबरदस्ती थोपना गलत है।   भारत में शिक्षा हिंदी माध्यम से अनिवार्य होना चाहिए तभी तस्वीर बदल सकते हैं । हमारी गुरुकुल परंपरा को भी क्षति पहुंचाई जा रही है जो तक्षशिला में बड़ा केंद्र था शिक्षा का आज वो कहाँ है। सारी दुनिय

काया है तो आत्मतत्व है

पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ने अपनी मंगल देशना में कहा क़ि काया है तो आत्मतत्व है आत्मतत्व है तो सब कुछ है । देह में होनहार देव बैठे है । मायाजाल और जड़ की बहुत पूजा हो चुकी अब तो दुर्लभता की पूजा होनी चाहिए । जीवन त्रैकालिक नहीं होता परंतु शरीर स्वस्थ्य रहेगा तो आत्मा निरोगी रहेगी । घी को घी की तरह लेना चाहिए पानी की तरह नहीं पीना चाहिए भोजन उतना ही लें जितना शरीर के लिए आवश्यक है । अधिक भोजन दुगना भोजन नुकसानदायक होता है उसी तरह संग्रह की प्रवत्ति भी जीवन को परिग्रह के पाप से ग्रस्त कर

दूसरों को देखकर कोई राष्ट्र विकसित नहीं हो सकता

जैन संत ने दिया देश के नेताओं को संदेश   जैन संत आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ने बुधवार को देश के नेताओं को एक बड़ा संदेश दिया। उन्होंने कहा कि किसी दूसरे राष्ट्र को देखकर कोई भी राष्ट्र विकसित नहीं हो सकता। इसलिए भारत को विकासशील राष्ट्र कहना बंद करो। भारत पहले से ही विकसित राष्ट्र है। उन्होंने कहा कि हम अपने मन के नौकर बन गए हैं और यही हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है।    आचार्यश्री ने कहा कि भारत अब 70 साल का हो चुका है। एक तरह से परिपक्व राष्ट्र हो चुका है। हमारे नेता आज भी भ

क्रिया करो, प्रतिक्रिया की ओर मत देखो

श्रद्धा और भक्ति से मनाया गया पार्श्वनाथ मोक्ष कल्याण    जैन संत आचार्य विद्यासागर जी महाराज ने मंगलवार को जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ को याद करते हुए कहा कि संसारी प्राणी यदि मोक्ष चाहता है तो क्रिया (पुरुषार्थ) करें, प्रतिक्रिया की ओर देखना बंद कर दें। पार्श्वनाथ भगवान ने भी ऐसा ही किया था। कमठ एक सप्ताह तक उन पर उपसर्ग करता रहा लेकिन उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।   आचार्यश्री ने कहा कि पार्श्वनाथ भगवान की केवल ज्ञान में कमठ के जीव की भूमिका रही है। कमठ

कर्मों की निर्जरा के बिना मोक्ष नहीं

जैन संत आचार्य विद्यासागर जी महाराज ने कहा है कि ऐसी कहावत है कि फूल बिछाओ, कांटे मत बिछाओ। यदि कांटे देखकर मन में विषमता और प्रतिकूलता आती है तो समझ लो समझ लो वीतरागता का अभाव है। दिगम्बर जैन मुनि मोक्ष मार्ग पर चलते हुए 22 प्रकार के परिषह सहन करते हैं और समता भाव रखते हैं।   अपने आर्शीवचन में आचार्यश्री ने कहा कि श्रावक (भक्त) श्रमण (संत) के निकट तो रहते हैं, लेकिन सन्निकट नहीं आते। इसलिए कांटों से बचाव के बारे में विचार करते हैं। जैन मुनि 22 प्रकार के परिषहों को समताभाव सहन करते हैं

मोह छूटे बिना मोक्ष संभव नहीं

जैन संत आचार्य विद्यासागर महाराज ने कहा है कि मोहमार्ग को छोड़े बगैर मोक्षमार्ग पर चलना संभव नहीं है। उन्होंने कहा है कि मोक्षमार्ग पर चलने के लिए कई गुनी सावधानी की आवश्यकता है।  अपने आर्शीवचन में आचार्यश्री ने कहा कि मोक्षमार्ग सहज नहीं है। इसका मूल्य वह जोहरी ही समझ सकता है जिसने  मोह का त्याग कर इस मार्ग को अपनाया हो। जिस प्रकार संसार में अलग-अलग दुकानें होती हैं। चाय, पान, किराना, सब्जी की दुकानें बड़ी संख्या में मिलेंगी लेकिन ऐसे जोहरी की दुकान कम होंगी जिस पर अमूल्य हीरे, माणिक होंगे

दिल से दिल मिलाना बहुत बड़े दिल वाले का काम होता है : आचार्यश्री

मंगल प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज (कुंडलपुर) [06/06/2016]   कुंडलपुर। कार्यकर्ता अपने कार्य में व्यस्त हो जाते हैं। कार्य करते समय का ध्यान नहीं रहता है। कर्तव्य करते समय का ध्यान रखें। समय पर कार्य होता जाए। सागर का जल बहुत राशि व्यय के बाद उसको हम उपयोग योग्य बनाते हैं। संग्रह हुआ सागर का जल खारा होता ऊर्जा लगाकर सूर्य नारायण ऊपर उठाते हैं। सूर्य नारायण की ऊर्जा लगते उर्ध्वमान करता वाष्पित हो ऊपर बादलों का रूप धारण कर नीचे बरसना प्रारंभ हो जाता है। धरती-पहाड़ों पर वह

रागी व्यक्ति वीतरागी बनने का संकल्प लेता जो वीतरागी बन चुके उनके आधार पर

मंगल प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज (कुंडलपुर) [22/05/2016]   कुण्डलपुर। रागी व्यक्ति वीतरागी बनने का संकल्प लेता जो वीतरागी बन चुके उनके आधार पर लेता है। वे सफल हुये तो हम भी साधना कर सफल होंगे। मोक्ष मार्ग में जो अनुष्ठान होते हैं। वे अवश्य ही फलीभूत हो सकते हैं। बड़े बाबा के अनुष्ठान में देवें नारकी भाग नहीं ले सकते। मनुष्य ही सहभागी बढ़ सकता है किन्तु जो भोगों में लिप्त है वे सम्मिलित नहीं हो सकते। जो देख रहा है वह दिखता नहीं और जो दिखता है वो देखता नहीं। आँख पूरी दुनिया क

स्व-अर्थ की पूर्ति स्वस्थ होने पर ही संभव है

मंगल प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज : (कुंडलपुर) [17/05/2016]   कुण्डलपुर। सुप्रसिद्ध जैन सिद्ध क्षेत्र कुण्डलपुर में श्रमण शिरोमणी आचार्य श्री विद्यासागर जी ने कहा कि स्व-अर्थ की पूर्ति स्वस्थ होने पर ही संभव है। द्वेष की अग्नि राख में दबे अंगारे की भांति भीतर सुलगती रहती है। अंगारे हो अंदर तो बाहर शांति कैसी? विद्यासागर सभागार में श्रोताओं को सीख देते हुए आचार्य श्री ने कहा कि नत भावों के साथ ही उन्नत बन सकते हैं। आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा कि राम-रावण द्वन

धार्मिक अनुष्ठानों में सर्वाधिक अनुकूल प्रबंधक प्रकृति होती है

मंगल प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज : (कुंडलपुर) [15/05/2016]   कुण्डलपुर। श्रमण शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी ने कहा कि धार्मिक अनुष्ठानों में सर्वाधिक अनुकूल प्रबंधक प्रकृति होती है। बड़े बाबा के मस्तक अभिषेक से पाप कर्म की निर्जरा तथा पुण्य का बंधु सुनिश्चित है। मई की गरमी में मेघों से बड़ी-बड़ी बूंदें होंगी और मंद-मंद सुगन्ध का झोंका चलेगा। सौधर्म इन्द्र भी भगवान का स्पर्श नहीं कर सकता, वह भगवान का रूप देखकर देखने में ही निमग्न हो जाता है। आचार्य श्री विद्यासागर न

शंका ऐ बाधा है, सार्थक श्रम के परिणाम के प्रति शंका क्यों

मंगल प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज (कुंडलपुर) [10/05/2016]   कुंडलपुर। सन्त शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर ने वाक्य के अंत में प्रयुक्त शब्द ‘लेकिन’ को प्रतिपक्ष का दयोतक बताते हुये कहा कि इसके प्रकट होते ही भाव पर विराम लग जाता है। शंका ऐ बाधा है, सार्थक श्रम के परिणाम के प्रति शंका क्यों। आचार्य श्री ने श्रोताओं को समझाते हुये बताया कि एक कृषक उत्तम बीज, भूमि और प्रबंध करता है। किन्तु शत् प्रतिशत सफलता नहीं मिलती। यह क्रम बार-बार होने से कृषक के मन में निराशा के बीज अंकुरित

परोक्ष में भी प्रत्यक्ष का दर्शन किया जा सकता है : आचार्यश्री

कुंडलपुर। व्यक्ति सम्यग्दृष्टि सम्यक ज्ञान के माध्यम से सिद्धांत के बलबूते अपने मोक्ष मार्ग के लिए कार्य करता रहता है। परोक्ष में भी प्रत्यक्ष का दर्शन किया जा सकता है। ज्ञानी लोग अपनी धारणा, अनुभूति एवं आस्था के माध्यम से बड़े-बड़े कार्य कर जाते हैं। परोक्ष में रहते हुए भी चिंतन-मनन से भगवान का ध्यान करते रहते हैं और दूसरों को भी प्रोत्साहित करते रहते हैं। उपदेशों का प्रचार-प्रसार करते जाओ, धर्म की प्रभावना होती जाएगी। गुरुओं ने जो ग्रंथ लिखे, वे आज भी पृष्ठ खोलते ही आत्मा और परमात्मा का स

प्रत्येक आत्मा में उपयोग चेतना विद्यमान है: आचार्यश्री

मंगल प्रवचन- आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज (08.05.2016)   कुंडलपुर। प्रत्येक आत्मा में उपयोग चेतना विद्यमान है। कोई देव, दानव, कोई मनुष्य है। कोई पढ़ा, कोई अपढ़ है, आदि-आदि। सभी के भीतर चेतना पुंज है। चेतना किस निमित्त से सचेत होती है, हम कह नहीं सकते। कभी सामान्य निमित्त मिलता और सचेत हो जाती है। हम अनुमान भी नहीं कर सकते। हमें बोध नहीं हो पाता। बातें सुन-देख लेते हैं। बहुत पुरुषार्थ करने के बाद भी अनुभूति के क्षण अंतर जगत में लुप्त हो जाते हैं। उक्त उद्गार विश्ववंदनीय परम पूज्य
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