Jump to content
नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

प्रवचन संकलन

  • entries
    215
  • comments
    10
  • views
    20,233

Contributors to this blog

About this blog

Entries in this blog

उपदेश के बिना भी विद्या प्राप्त हो सकती है : आचार्यश्री

कुंडलपुर। उपदेश के बिना भी विद्या प्राप्त हो सकती है। जिस राह नहीं चलते वहां रास्ता नहीं, यह धारणा नहीं बनाना चाहिए। कुछ लोग होते हैं, जो रास्ता बनाते जाते हैं। महापुरुष आगे चलते जाते हैं और रास्ता बनता जाता है। उपरोक्त उदगार आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने विद्या भवन में अपने साप्ताहिक मंगल प्रवचनों में अभिव्यक्त किए। आचार्यश्री ने अपने मंगल प्रवचनों में आगे कहा कि समवशरण में सब कुछ प्राप्त हो जाता है किंतु सम्यक दर्शन मिले, जरूरी नहीं। बाहरी कारण मिलने के साथ भीतरी कारण मिले, यह नियम नह

इंडिया नहीं है भारत की गौरव गाथा : आचार्यश्री विद्यासागरजी

14 दिसंबर 2015। रहली (जिला सागर मध्यप्रदेश) में पंचकल्याणक महामहोत्सव के अंतिम दिवस पर गजरथ यात्रा के बाद चारों दिशाओं से भक्तिवश पधारे लगभग 1 लाख जैन-अजैन श्रद्धालुओं को उद्बोधन देते हुए योगीश्व कन्नड़ भाषी संत विद्यासागरजी ने धर्म-देशना की अपेक्षा राष्ट्र और समाज में आए भटकाव का स्मरण कराते हुए कहा कि आज जवान पीढ़ी का खून सोया हुआ है। कविता ऐसी लिखो कि रक्त में संचार आ जाए। उसका इरादा ‘इंडिया’ नहीं ‘भारत’ के लिए बदल जाए। वह पहले भारत को याद रखे। भारत याद रहेगा, तो धर्म-परंपरा याद रहेगी। पूर्वज

आचार्य श्री – बूंद-बूंद से घट भरता है।

देवरी के समीप स्थित ग्राम बीना बारहा में संत शिरोमणि आचार्य 108 श्री विद्यासागर जी का ससंघ प्रवास चल रहा है। 22 मार्च (रविवार) को आचार्य श्री की आहारचर्या पंकज विशाला एवं पारस चैनल परिवार के यहां हुई। आहारचर्या के तुरंत बाद आचार्य श्री शांतिधारा दुग्ध योजना स्थल तक पहुंचें और एक आम के वृक्ष नीचे बैठे जहां आकर सभी संघस्थ साधू आते गये और बैठते गये। योजना स्थल पर पहुंचने पर उनके पैरों का प्रक्षालन करने का अवसर सभी सहयोगी कर्मचारियों को प्राप्त हुआ जो कि योजना स्थल पर कार्य कररहे हैं या कार्य देख रह

आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी से विशेष बातचीत

अतुल मोदी नागपुर देश की समग्र उन्नति की अपेक्षा है, तो फिर शिक्षा पद्धति में आमूल-चूल परिवर्तन की जरूरत है। वर्तमान में लागू पाठ्यक्रम स्वयं भ्रमित है। देश को स्वतंत्र हुए 67 वर्ष हो गए किंतु आज तक हम यह निश्चित ही नहीं कर पाए कि शिक्षा की आखिर किस पद्धति को अपनाएं कि देश समग्र विकास की गति को पकड़े। यह कहना है राष्ट्रसंत 108 आचार्य विद्यासागरजी महाराज का। रविवार को दैनिक भास्कर से विशेष बातचीत में उन्होंने देश की शिक्षा, विकास और इतिहास पर प्रकाश डालते हुए इन्हें भविष्य से जोड़ा। उन्ह

आपका पुरुषार्थ जहां खत्म होता है वहां से आपका भाग्य शुरू होता है

परमपूज्य जैनाचार्य 108 श्री विद्यासागरजी महाराज ने रामटेक स्थित भगवान श्री शांतिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र में उद्‍बोधन दिया है कि जब भी आप पूजा अर्चना करते हैं आपके साथ ही कई देवी-देवता भी पूजा अर्जना करते हैं। कोई भी क्रिया करते समय निःसही और अःसही बोलना चाहिए, जिनके लिए बोलते हैं उनका जो रूप है वैसा स्वीकार करें। उससे कहें कि आप और हम मिलकर अभिषेक पूजन करें। जो मानसिक पीड़ा ग्रसित रहते हैं उनका वर्णन तत्वार्थ सूत्र में है। मानसिक पीड़ा को दुर करने के लिए घूमते हैं। स्वर्ग में शांति नह

यह जीव जहां जाता है वहीं रम जाता है

परमपूज्य जैनाचार्य 108 श्री विद्यासागरजी महाराज ने रामटेक स्थित भगवान श्री शांतिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र में उद्बोधन दिया है कि, तुमने जो विभिन्न माध्यमों से दुःख पायें है, उनका विचार करों। शारीरिक रोग ना हो और मन में कुछ विकल्प हो तो आप कैसा महसूस करते हो? संबंध जोड़कर तोड़ना बहुत मुश्किल है, विवाहित होकर के फिर संबंध तोड़ना कठिन कार्य है। मन की वैयावृति मानसिक वैयावृति कैसे होती है, यह जानना बहुत आवश्यक है। मोक्षमार्ग में असंख्यात गुनी निर्जरा होती है, ऐसा चिंतन करना चाहिए। तुमसे मेर

बहुत परिश्रम कर के शिक्षा और दीक्षा का प्रवाह बढ़ाया है

रामटेक (नागपुर / महाराष्ट्र) में राष्ट्रीय दिगंबर जैनाचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के द्वारा 24 बाल ब्रह्मचारियों को दिगंबरत्व मुनि दीक्ष दी । इस अवसर पर 30-40 हजार की जनता अनुमानित होगी। उसी समय इंद्रदेव ने भी वर्षा के द्वारा दीक्षार्थियों का स्वागत किया। लोग छतों पर, टीनों के ऊपर बैठे थे। आचार्य श्री को भी नई पिच्छिका नये दीक्षार्थियों ने दी। आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ने कहा कि यह दीक्षा खाने पीने की चीज नही है, अभी भी मेरा कहना है कि आप लोग की भावना देख कर मैं इससे स्थायी मान लूं

तप की महिमा अपरंपार है

परमपूज्य जैनाचार्य 108 श्री विद्यासागरजी महाराज ने रामटेक स्थित भगवान श्री शांतिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र में उद्बोधन दिया है कि, रोग होता है, जन्म-मरण, रूप, उसकी श्रेष्ठ औषधि तप है। अच्छी चीज के लिए विज्ञापन की आवश्यकता नही होती है वह स्वयं में विज्ञापन होती है। कलकत्ता मे एक वृक्ष है, किसी को पता नही है कि उस वृक्ष का मूल भाग कैनसा है? संसार रूपी महादाह से जलते हुए प्राणी के लिए तप जल घर है, जैसे सूर्य की किरणो से जलते हुए मनुष्य के लिए धाराधर होता है। तप सांसरिक दुखों को दूर करता है। सम

एक क्षण का क्रोध हमारे जीवन को संपूर्णतः नष्ट कर देता है

परमपूज्य जैनाचार्य 108 श्री विद्यासागरजी महाराज ने रामटेक स्थित भगवान श्री शांतिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र में उद्बोधन दिया है कि क्रोध रूपी आग मनुष्यों के धर्मवृत को जलाती है। यह क्रोध रूपी आग अज्ञानरूपी काष्ठ से उत्पन्न होती है। अपमान रूपी वायु उसे भडकाती है। कठोर वचन रूपी उसके बडे स्फुलिंग है। हिंसा उसकी शिखा है और अत्यंत उठा बैर उसका धूम है। यदि व्यक्ति कषाय करता तो उसका पाप का प्रमाण वढता है। कषाय करने वालो के उपर हम कषाय नही करेगे, यदि हम यह सोच लेंगे तो मोक्ष की प्राप्ति होगी। अपमान हो

संस्कृति बचाने गौरक्षा की ओर विशेष ध्यान देने की जरूरत है

परमपूज्य जैनाचार्य 108 श्री विद्यासागरजी महाराज ने रामटेक स्थित भगवान श्री शां‍तिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र में उद्बोधन दिया है कि, गाय जीवित धन माना जाता है जो विभिन्न प्रकार की समस्याओ का हल करता है। काली गाय मनुष्य से भी ज्यादा जागृत रहती है। उसकी ज्यादा मांग रहती है। वातावरण शांत रहता है। मथुरा में गोवर्धन नगर है उधर की गायों में विशेषता है। यदि कोई व्यक्ति गौ वध करता था तो पहले के शासक उसके हाथ अलग करवा देते थे। उस समय 4 लाख गायें थी, आज कितनी गायें है हमारे देश में ? अब कोई आवाज ही

‘‘जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि और जहाँ न पहुँचे कवि वहाँ पहुँचे आत्मानुभवि’’।

रामटेक में विराजमान संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने प्रतिभा स्थली के बच्चों के सांस्कृतिक कार्यक्रम के पश्चात कहा कि – एक बालिका ने कहा कि भूगोल ही क्या हम इतिहास बदल देंगे तो हमें भूगोल में जो विक्रतियाँ आ गयी है उनको हटाना है। हमें सीखना है किसी कि शिकायत नहीं करना है। शिक्षा सिखने के लिये होती है और जो दिक्षित होते हैं उन्हे अंतरंग में उतारने में कारण होती है। ‘‘जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि और जहाँ न पहुँचे कवि वहाँ पहुँचे आत्मानुभवि’’। देश में परिवर्तन हो जाये, वे

वेल्कम नहीं वेल गो के बारे में सोचो

साधु को यह प्रषिक्षण दिया जाता है कि आप व्यापार कर रहे हो यदि अचानक कुछ हो जाये तो सावधानी से अंतिम समय अच्छे से निकल जाये। रत्नात्रय ऐसा माल है जो कोई लूट नहीं सकता यदि लूट ले तो माला – माल हो जायेगा। दुनिया छूट जाये तो कोई बाधा नहीं लेकिन रत्नात्रय नहीं छूटना चाहिये। संसार रूपी महान वन से पार कर देते हैं। आना इतना महत्वपूर्ण नहीं जितना जाना है। अपनी – अपनी इन्द्रियों को चोर के समान समझो वेल्कम नहीं वेल गो के बारे मे ंसोचो। पाॅंच इंद्रिय और मन के द्वारा आप लूट रहे हैं। जो इंद्रियों का दमन करते

प्रतिभा स्थली के बच्चों को उद्‍बोधन

एक विशाल भवन में बहुत सारे बच्चों की व्यवस्था की गयी थी। बच्चों को जैसे संकेत मिलता था हजारों की आवाज आ रही थी। ताली बजाने का संकेत मिलते ही एक साथ ताली बजाने लगे। 700 बालिकायें हैं प्रतिभा स्थली में और संकेत मिलते ही 1400 हांथों से तालियाँ बजने लगी। छोटे बच्चे समझने के बाद भूलते नहीं। यह सुरभि दिगंतर तक फैल सकती है और प्रभाव डाल सकती है। कल्याण की जो भावना रखता है वह व्यवस्थित कार्य करे। आप लोग प्रतिभा स्थली से आये हैं, पहले प्रतिभा है बाद में स्थल है। प्रतिभा एक स्थान पर रूकती नहीं प्रवाहित हो

साधक के दर्शन बडे़ पुण्य से होते हैं।

लोभ के कारण अपने कुटुम्बियों की और अपनी भी चिन्ता नहीं करता उन्हें भी कष्ट देता है और अपने शरीर को भी कष्ट देता है। साधक के दर्षन बडे़ पुण्य से मिलते हैं, महत्व समझ में आ जाये तो महत्व हीन पदार्थ छूट जायेगा। परिणामों की विचित्रता होती है। निरीहता दुर्लभता से होती है। परिग्रह कम करते जाओ निरीहता बढ़ाते जाओ। जिसको हीरे की किमत मालूम है वह तुरंत नहीं बेचता है। जो लोभ कषाय से रहित है उसके शरीर पर मुकुट आदि परिग्रह होने पर भी पाप नहीं होता अर्थात् सारवान् द्रव्य का सम्बन्ध भी लोभ के अभाव में बन्ध का

श्वेत पत्र पर, श्वेत स्याही से लिखा सो पढ़ो

थोड़ा सा असंयम संयम की शोभा को कम कर देता है। जैसे बकरी का बच्चा सुगन्धित तेल भी पिये फिर भी अपनी पूर्व दुर्गन्ध को नहीं छोड़ता। उसी प्रकार दीक्षा लेकर भी अर्थात् असंयम को त्यागने पर भी कोई – कोई इन्द्रिय और कषाय रूप दुर्गन्ध को नहीं छोड़ पाते। मन से कभी समझौता नहीं करना क्योंकि वह गिरा देगा। मन को छोड़ भी नहीं सकते हैं उससे काम भी लेना है। पँचेन्द्रियों से वषीभूत हुआ प्राणी क्या – क्या नहीं करता है। कषाय का उद्वेग संज्ञी पंचेन्द्रिय में ही है। हम आदी हो गये है, काला अक्षर भैंस बराबर। श्वेत पत्र

नर से नारायण हो सकते हैं।

सुप्रसिद्ध साधक श्रमण शिरोमणि दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर जी ने गर्भस्थ शिशु के वध को घृणित, तिरस्कृत अधोकर्म बताते हुए कहा कि होनहार संभावना का जन्म से पूर्व ही अन्त कर दिया जाता है। शोधों से ज्ञात होता है कि यह दुष्कृत्य अपेक्षाकृत शिक्षित समुदाय द्वारा अधिक अनुपात में किया जाता है। श्रीमान हो, विद्वान हो अथवा सामान्य हो सभी इस कर्म से बचें, इस दुष्कर्म को त्यागें। इन वचनों को सुनते ही अमरकण्टक के सर्वोदय तीर्थ सभागार में उपस्थित हजारों श्रोताओं ने भ्रूण हत्या से बचने का संकल्प लिया।

अखबार में फ्रंट पर देखते हैं

तीव्र कषाय वाले के पास जाने से लोग डरते हैं। यह इन्द्रियों की दासता की कहानी की आदत पड़ी है। दूसरों के बारे में तो अचरज करता है लेकिन अपने बारे में अचरज नहीं करता। आपका इतिहास लाल स्याही से लिखा गया है वह पाँच पाप सहित है। करोड़पति होकर भी रोड़पति बन गये है। दरिद्रता रखो लेकिन कषाय की दरिद्रता रखो। ख्याति, पूजा, लाभ मिलने से कई लोगों के खून में वृद्धि हो जाती है। यह रस आत्मा को नहीं मन को मिलता है। डॉ. मान, सम्मान की खुराक नहीं दे पाते हैं। लागों को मान की खुराक होती है तो कहते हैं कि अखबार में

क्या है यह सुख-दुख?

सुप्रसिद्ध सन्त शिरोमणि दिगम्बर जैनाचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने रमणिक स्थल अमरकण्टक में बताया कि सुख की प्रतिक्षा में दुख सहते जीवन बीत जाता है। सुख की अभिलाषा दुख सहने की क्षमता बढ़ा देती है, संसार दुख की खान है जिसमें सुख हीरा की एक कणिका के समान है। संसार में दुख बहुत बाधा देता है यदि सुख की चाह न हो तो दुख सहन नहीं होता, यह समझाते हुए आचार्य श्री विद्यासागर जी ने कहा कि सुख एक अनुभूति है। सुख की अभिलाषा में दुख सह रहे हैं तो यह सुख ही तो दुख दे रहा है, क्या है यह सुख-दुख? राग द्व

भारत का इतिहास स्वर्णिम था, वर्तमान क्यों नहीं?

उत्थान का आधार क्रमिक विकास है, गति, प्रगति तदोपरान्त उन्नति सोपान है। छलांग लगाकर प्रमाण-पत्र प्राप्त किया जा सकता है, योग्यता प्राप्त नहीं होती। भारत की श्रमण साधना के उन्नायक, प्रख्यात विचारक दिगम्बर जैनाचार्य श्री विद्यासागर जी ने अमरकण्टक में यू.एन.आई. की दिल्ली ब्यूरो प्रमुख सहित अन्य चिन्तनशीलजनों की जिज्ञासाओं का समाधान करते हुए सामाजिक, ऐतिहासिक, शैक्षिक सन्दर्भों में उपरोक्त मत व्यक्त कर बताया कि पाश्चात्य दृष्टि से आंकलन करने की अपेक्षा अपने गौरवशाली अतीत के दर्पण में देखना चाहिए।

वचन में बल होता है

सुप्रसिद्ध सन्त शिरोमणि दिगम्बर जैनाचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने अमरकण्टक में वचन – बल का बोध कराते हुए कहा कि अल्प वचन से पर्याप्त प्रभाव उत्पन्न हो जाता है, अधिक शब्द प्रयोग की आवश्यकता नहीं। सत्य वचन में अहिंसा की आराधना समाहित रहती है। वचन ऐसे हों जिससे किसी प्राणी का जीवन न रूके। शब्दों के अनुरूप अंगों – उपांगो की मुद्रा हो जाती है। आचार्य श्री विद्यासागर जी ने शब्द, अर्थ और भाव का महत्व बताते हुए कहा कि जिस वचन से हिंसा की संभावना हो वह सत्य वचन नहीं है, सत्य वचन से प्रत्येक प्र

भेद – भाव, छुआ – छूत एक बीमारी है

तपोनिधि, ज्ञान वारिधि, साधना षिरोमणि दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने मैकल पर्वत माला के षिखर अमरकण्टक में कहा कि औषधि का आधार वनस्पति है, संसार की प्रत्येक वनस्पति औषधि गुण युक्त है, वनस्पति के विनाष से औषधि भी नष्ट हो जाती है। ताल (वृक्ष) में पल्लव, कोपल, लता, छाल, जड़ आदि सभी निहित है। सरल हृदय से निकली बोली व्याकरण युक्त सुसंस्कृत भाषा से अधिक प्रभावी है यह समझाते हुए बताया कि छुआ – छूत की भावना एक बीमारी है जो कि ‘स्टैन्डर्ड’ वृद्धि प्रतिस्पर्धा की देन है। आचार्य श्री वि

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत

सन्त षिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने रमणीक स्थल अमरकण्टक में संस्कृति और विकृति के मध्य भेद का बोध कराते हुए कहा कि विकृति की उपासना कर मानव मन भटक रहा है। संस्कृति की उपासना कर मानव महामानव बन गया। मानव से महामानव बनने का क्रम विष्वास – आस्था से आरंभ होता है। प्रयोग की बताते हुए कहा कि खोज इसके आधार पर ही होती है। दिगम्बर जैनाचार्य श्री विद्यासागर जी ने बताया कि अठारह दोषों से रहित आत्मा ही भगवान है। आस्था और विष्वास के बल पर प्रयोग किया, साधना कर दोष मुक्त होकर मुक्ति को प्राप

‘‘शब्द भी होते हैं विस्फोटक’’

अमरकण्टक में विराजमान सन्त षिरोमणि दिगम्बर जैनाचार्य श्री विद्यासागर जी ने कहा कि स्व प्रषंसा, पर आलोचना ध्यान में नहीं लाना एक साधना है। वचनों की व्याख्या करते हुए बताया कि वचन से विस्फोट हो जाता है, अप्रिय वचन अर्पित वचन नहीं है। परस्पर आरोप प्रत्यारोप में व्यस्त पक्ष विपक्ष से राष्ट्रीय पक्ष पीछे रह जाता है। आचार्य श्री विद्यासागर जी ने षिष्य, साधकों एवं श्रोताओं को समझाते हुए कहा कि कौन से वचन कथनीय है कौन से नहीं, वचन व्यक्त करने के पूर्व विचार कर लेना चाहिए। अपने कथन पर ध्यान नहीं पर

शब्दों को नहीं भावों को पकडो

सुप्रसिद्ध सन्त षिरोमणि दिगम्बर जैनाचार्य श्री विद्यासागर जी ने मैकल शैल षिखर पर उपस्थित समुदाय को सम्बोधित करते हुए कहा कि सजग श्रोता वक्ता की कठिनाई पकड़ लेता है, शब्दों की यात्रा कान तक तथा भाव की मन तक होती है। भावों का महत्व बताते हुए समझाया कि भावाभिव्यक्ति के लिए शब्दों की अनिवार्यता नहीं है, मौन और संकेत से भी भाव व्यक्त हो जाते हैं। आचार्य श्री विद्यासागर जी ने कहा कि शब्द के अभाव में संकेत अच्छी तरह काम कर देता है। शीतल हवाओं के प्रभाव से शारीरिक क्षमता प्रभावित हो जाती है। अधिक ठण्ड

हाथ न मलो, हाथ न दिखाओ, हाथ मिला लो

अकलतरा: उक्त बातें जैन समाज के संत षिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए बालक प्राथमिक शाला में कही। उन्होंने कहा कि दूसरों का वैभव देखकर हम अपना हाथ मलते हैं तथा ईष्या करते हैं। हम पुरुषार्थ के द्वारा जीवन में तरक्की एवं आगे बढ़ सकते हैं। इससे हमें अपना हाथ नहीं मलना पड़ेगा। हम भाग्य भरोसे रहकर पुरुषार्थ पर विष्वास नहीं करते एवं दूसरों को अपनी हाथ की रेखा दिखाने का कार्य करते हैं एवं दूसरे व्यक्ति पर बातचीत से हल नहीं निकलने पर अपना हाथ उसपर छोड़ देते हैं, जो
×
×
  • Create New...