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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

NISHANT AHINSA

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  1. डोंगरगढ़ – संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ससंघ चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान है | आज के प्रवचन में आचार्य श्री ने बताया कि द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भाव का प्रभाव पड़ता है | क्षेत्र और काल के प्रभाव से हिंसक अहिंसक और अहिंसक भी हिंसक हो जाते हैं | ऐसे कई उदाहरण शास्त्रों में पढने को मिलते हैं | घने जंगल के बीच से एक रास्ता है जो कि डाम्बर रोड है जिसमे 12 – 15 व्याग्र (सिंह) क्रम से बैठ जाते हैं कुछ वही लोट – पोट होते रहते हैं और कुछ उस मुलायम रोड में लेट जाते हैं | वहाँ एक ओर से कार आती है रोड में इतने सारे सिंह को देखकर और रास्ता न मिलने पर कार के कांच को बंद कर लेते हैं | आगे पीछे दोनों तरफ सिंह आ जाते हैं | सिंह भी कार में सवार यात्रिओं को कुछ नहीं करता है | एक सिंह को हमने सुखी घांस और सूखे पत्ते खाते देखा है हो सकता है उसने सल्लेखना ली हो | सभी सिंह गुफा में शांति से बैठे हैं और उस सिंह से कहते हैं कि बताओ क्या खाना है हम लाकर देते हैं | तो वह कहता है मुझे कुछ नहीं खाना है | एक व्यक्ति जब छोटा था तब एक वृक्ष उसने लगाया था और जब वह बुढा हो गया तो उस वृक्ष में फल आने लगे तो वह उस वृक्ष के फल को स्वयं न खाकर वहाँ आने वाले राहगीर को खिलाता था | वहाँ से निकलने वाले राहगीर उस पेड़ कि छाँव में बैठकर उसके मीठे फल को खाते थे | वृक्ष स्वयं अपने फल नहीं खाता है | फल पकने पर उसे निचे गिरा देता है जिसे दूसरे खाकर अपनी भूक शांत करते हैं | ऐसे ही हमें भी दान देना चाहिये जिससे दूसरे को लाभ मिल सके | आप बनिया लोग हो व्यापार में लेना और देना दोनों होता है तभी व्यापर चलता है | इसमें पहले उधारी देते हैं फिर उसे लेते है समय पर पैसा न मिलने पर बंजी करते हैं | चंद्रगिरी में जो दान कि राशि बोली है और अभी तक नहीं दिया है उसे गुणित क्रम से ब्याज लगेगा वैसे हम ब्याज तो लेते नहीं है लेकिन समय पर बीज बोगे तो फसल भी अच्छी होगी उसी प्रकार बोला हुआ दान समय पर देने से कई गुना फल देता है | PRAVACHAN_30-07-2023.docx
  2. दूसरे कि उन्नति को देखकर जलना नहीं चाहिये उसकी उन्नति के कारण से सीखना चाहिये | - आचार्य श्री विद्यासागर महाराज 28/07/2023 शुक्रवार डोंगरगढ़ – संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ससंघ चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान है | आज के प्रवचन में आचार्य श्री ने बताया कि दूसरे कि उन्नति को देखकर जलना नहीं चाहिये जबकि उसकी उन्नति का क्या कारण है इसे देखकर उससे सीखना चाहिये और अपनी अउन्नति के कारण को भी देखना चाहिये | कई बार कारण ज्ञात नहीं होता है तो पक्ष और विपक्ष रखकर भी देखा जाता है | आज आपके सामने एक ऐसा पक्ष लाकर रख रहे हैं कि आपके पंख उड़ने लायक हो जाये | एक आँख से हम देख सकते हैं, एक पैर से हम चल सकते है जबकि एक पंख से पक्षी उड़ नहीं सकता है | दो व्यक्ति है एक के पास बहुत पैसा है और दूसरे के पास भी बहुत पैसा है दोनों में कोई अंतर नहीं है तो कोई बात नहीं | लेकिन एक के पास 21 है और दूसरे के पास यदि 19 या 20 है तो 21 वाला अन्दर ही अन्दर खुश हो जाता है कि वह दूसरे से आगे है | ऐसा क्यों होता है इसका क्या कारण है इसके बारे में कभी आपने विचार किया है ? विद्यार्थी भी कक्षा में परीक्षा के बाद जब रिजल्ट आता है तो वह दूसरे कि ओर देखता है और सोचता है कि मेरा नंबर सबसे ज्यादा आये और दूसरे का नंबर उससे कम ही आये | जबकि उन्हें यह सोचना चाहिये कि उसकी उन्नति का क्या कारण है और उसे देखकर सीखकर अपनी उन्नति करना चाहिये | सर्वार्थसिद्धि में जिन महिमा का मंडन किया गया है जिसमे जिनेन्द्र भगवान के गुणों को बताया गया है | सौधर्म इंद्र अपने परिवार के सदस्यों को कहता है कि सभी को भगवान के समवशरण में चलना है तो परिवार के सभी सदस्य चलने को तैयार हो जाते हैं लेकिन परिवार में कुछ सदस्य ऐसे होते हैं जो आना कानी करते है | लेकिन सौधर्म इंद्र के कहने पर साथ में चले जाते है फिर समवशरण में पहुचते ही सौधर्म इंद्र अपना सारा वैभव भगवान के सामने बिखेर देता है और भक्तिमय होकर ताण्डव नृत्य करने लग जाता है जिसे देखकर सभी देव ताली बजाने लग जाते हैं (वैसे तो देव कभी ताली बजाते नहीं है लेकिन सौधर्म इंद्र कि भक्ति में सभी उत्साहित होकर ताली बजाने लगते हैं ) | भगवान का सिहासन कमल के जैसा होता है और भगवान उससे 4 उंगल ऊपर उठकर विराजमान रहते हैं | सौधर्म इंद्र अपना किरीट (मुकुट) उतारकर भगवान के चरणों में रख देता है और चरणरज (वहाँ चरणरज तो होता नहीं है लेकिन यह सम्मान का प्रतिक है कि चरण छूकर ललाट पर लगा लेते हैं) को अपने माथे में लगा लेता है | यह देखकर जो सदस्य यहाँ आने के लिये आना कानी कर रहा था वह अपने आप को धन्य मानता है कि सौधर्म के साथ आकर ऐसा समवशरण का दर्शन प्राप्त हुआ | वह सौधर्म इंद्र को देव समझता था उसे प्रतिदिन प्रणाम करता था आज वह सौधर्म इंद्र भी इस देवो के देव के सामने अपना सर झुका (नतमस्तक हो जाता है ) रहा है | वह भी भगवान को प्रणाम करता है और वह सोचता है कि यदि आज यहाँ नहीं आता तो जीवन बेकार था इसके सामने कुछ है ही नहीं आज जीवन सार्थक हो गया | आपकी दृष्टि इधर उधर जा सकती है लेकिन भगवान कि दृष्टि नाशा दृष्टि होती है जिसको कोई आशा नहीं होती वही नाशा दृष्टि होती है | एक तरफ जड़ है और एक तरफ चेतन है | समवशरण में भगवान के साक्षात दर्शन होता है यहाँ (धरती पर) हम उनका बिम्ब स्वरुप में दर्शन कर रहे हैं | वह भगवान के साक्षात दर्शन कर जीवन को सुसंस्कारित कर लिया और आह्लाहिद हो गया अब क्या करना है ? अब कषायों का उन्मूलन करना है और मोक्षमार्ग में चलकर मुक्ति को प्राप्त करना है | भगवान से यही प्रार्थना है कि जैसे आपके गुण प्रगट हुए ऐसे ही हमारे गुण भी प्रगट हो जाये | भगवान के दर्शन मात्र से कई लोगो को सम्यग्दर्शन प्राप्त हो जाता है | PRAVACHAN_28-07-2023.docx
  3. डोंगरगढ़ – संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ससंघ चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान है | आज के प्रवचन में आचार्य श्री ने कहा की यहाँ छोटे – छोटे गाँव के लोग बहुत ही भाग्यशाली है बड़े – बड़े महानगरों की तुलना में जिन्हें अपनी मेहनत और परिश्रम में विश्वास होता है | यदि आप बबुल का बिज बोगे तो कांटे मिलेंगे और आम का बिज बोगे तो आम के मीठे – मीठे फल मिलेंगे | कर्म करो फल की चिंता मत करो | कर्म अच्छा करोगे तो फल भी अच्छा ही मिलेगा लेकिन उसके लिये उचित समय तक इंतजार करना पड़ेगा | गाँव के लोग परिश्रम करते है तो उन्हें आराम करने में भी आनंद आता है और शहर के लोगो को सोने के लिये भी गोलियां खानी पड़ती है | गाँव के लोगों में व्याकुलता नहीं होती है उनके परिणाम स्वच्छ और शांत होते है वे संतोषी होते है | यदि आपको शान्ति की अनुभूति चाहिये तो आपको कहीं देश – विदेश, महानगरों आदि में जाने की आवश्यकता नही है आपके पास जो है उसी में संतुष्ट हो जाओ तो शान्ति अपने आप मिल जायेगी | गाय जब गर्भ धारण करती है तो उसकी समुचित व्यवस्था प्रकृति अपने आप कर लेती है | प्रसव काल के दौरान सारी प्रक्रिया प्राकृतिक तरिके से अपने आप होती है और बछड़े के जन्म के बाद गाय के थन में ममत्व के कारण दूध अपने आप भर जाता है | परन्तु आज मनुष्य इस प्राकृतिक प्रक्रिया को शल्य क्रिया के द्वारा करवाता है जिससे माँ और बच्चे पर इसका असर पड़ता है | 80 प्रतिशत प्रसव शल्य चिकित्सा के द्वारा किया जा रहा है जो की पूर्ण रूप से व्यवसायिक हो गया है | इसका आप लोगो को मिलकर विरोध करना चाहिये | यह एक प्राकृतिक क्रिया है जो स्वमेव होती है और होती रहेगी| गाय के गोबर का प्रयोग घरों में आँगन आदि लीपने में किया जाता था जिससे ठण्ड में गर्मी तथा गर्मी में घर का वातावरण ठंडा रहता था और गाय को घर में रखने से प्रदूषण भी नहीं होता | पहले घरों में गाय के गोबर से चूल्हा लिपा जाता था और चूल्हे के धुएं से आँखों में आंसू आने के कारण आँखें भी साफ हो जाती थी | हम जो कर्म आज कर रहें है उसका फल भविष्य में मिलना निश्चित है इसलिए हमें अपने कर्म, भाव और परिणाम को स्वच्छ और संयमित रखना चाहिये | आज आचार्य श्री को नवधा भक्ति पूर्वक आहार कराने का सौभाग्य श्री चंद्रकांत जैन परिवार राजनंदगांव छत्तीसगढ़ को प्राप्त हुआ जिसके लिए चंद्रगिरी ट्रस्ट उनको बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें देती है | PRAVACHAN_01-02-2023.docx
  4. डोंगरगढ़ – संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ससंघ चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान है | आज के प्रवचन में आचार्य श्री ने बताया कि सब निश्चित होता है किन्तु कब होता है वह बात हम नहीं बता सकते? क्यों होता है ? उसके लिए निमंत्रण देने की आवश्यकता नहीं है वह है मृत्यु | हर एक व्यक्ति मृत्यु से घबराता है | आगम के अनुसार इसे आयु का अभाव कहते हैं | दीपक में तेल समाप्त हुआ दीपक बुझ जाता है | यह तो आपको ज्ञात है लिकिन कभी – कभी वह तेल एकदम समाप्त हो जाता है किसी प्रकार से उस समय वह एकदम भभक जाता है | आप लोग तो लाइट है भभकना भी संभव नहीं है लेकिन कभी – कभी वह भी भभक जाता है तो लाइट गोल हो जाती है | जीवन का किसी भी निमित्त से मीट जाना यह मृत्यु है | गाड़ी स्टेशन पर आने वाली है कभी – कभी समय से पहले भी आ जाती है और कभी – कभी विलम्भ से भी आती है | कभी – कभी दिन में 12 बजे आने वाली रात के 12 बजे आती है | भारत में ऐसा घटित होता है | मृत्यु भी इसी प्रकार होती है कभी – कभी आयु पूर्ति होकर भी मृत्यु नहीं होती है | यह आप लोगो को हमेशा ध्यान में रखना है | जब घटनायें होती है तब मृत्यु हो सकती है जैसे बादलों की बहुत गर्जना हुई उससे घबराकर मृत्यु हो गयी | इससे मर नहीं सकते थे लेकिन घबराकर मृत्यु हो गयी | यह हमें आश्चर्य है की शरीर में रोम – रोम है छिद्र है जिससे प्राण कभी भी निकल सकते हैं | किन्तु आश्चर्य यह है की इतने बिलों के होते हुए भी जीव (आत्मा) बाहर नहीं निकल पा रहा है | किसी भी निमित्त से आयु पूर्ण होने पर जीव बाहर निकल जाता है और शरीर बाहर पड़े रहता है | इसलिए आचार्यों ने हम लोगो को कहा है की जिन्दगी के बारे में ज्यादा मत सोचो मृत्यु के बारे में ज्यादा सोचो | कुछ लोग जीवन के १०० वर्ष निकाल लेते हैं लेकिन वे मृत्यु के बारे में १०० सेकंड भी नहीं सोचते उसका भविष्य क्या होना है ? प्रभु तो जानते हैं, जाना जाता है लेकिन आपकी आयु तो जानने के लिए प्रभु नहीं हुए है | वह स्वस्थ्य है | स्वस्थ्य शरीर रहे इसलिए स्वस्थ्य शरीर में रहना ही स्वस्थ्य नहीं है | स्वस्थ्य का अर्थ अपनी आत्मा के चिंतन में जब रहता है वह स्वस्थ्य माना जाता है बाकि जो अपने शरीर की चिंता में लगे है, वह पर की रक्षा में लगे है वे अस्वस्थ्य है | आप लोग आस्वस्थ हो जाईये की आप अभी अस्वस्थ्य है | इस विश्वास के साथ रहिये की मृत्यु कभी भी आ सकती है, कभी भी स्वास रुक सकती है | स्वास का रुकना ही जीवन का अभाव होना है यह आत्मवाचक है | कई बार कुछ लोगो को ऐसा निमित्त मिल जाता है समाधि के साधन के लिए डॉक्टर लोग कह देते हैं की अब आपको ज्यादा दिन रुकना नहीं है दोनों हाथ ऊपर कर लेते हैं | इसके लिए जितनी भी स्वास की घड़ियाँ शेष हैं कैंसर जैसे रोग हो जाते हैं तो मृत्यु निश्चित है वह होना ही है लेकिन उसमे धर्म ध्यान कर मृत्यु को सुधार सकते हैं | प्रवचन के समय पांडाल में दिन में लाइट चालू देख आचार्य श्री ने उसे बंद करने को कहा जिसे तुरंत बंद किया गया और कहा की आज कल तो यह स्टैण्डर्ड जिसको बोलते हैं अंडरस्टैंडिंग क्या है इसमें हमको मालूम नहीं है की दिन में भी सूर्य के प्रकाश में भी लाइट चालू रखते हैं | इसमें आप लोगो को सोचना चाहिये की सूर्य का प्रकाश पर्यांप्त होता है | आपको इस प्रकार से क्या मिलने वाला है कुछ मिलने वाला नहीं है | इसलिये व्यवस्था करने को कह देते हैं लेकिन आप लोग भूल जाते हैं इस प्रकार भूलने की बीमारी आप लोगो को हो गयी है | कुछ बाते एक बार कहना पर्याप्त होता है लेकिन आप लोगो के लिए बार – बार अनुमोदन की आवश्यकता है | ये सोच लो कोई भी अच्छा काम होता है तो ठीक है लेकिन इसको बार – बार कहना भी अच्छा नहीं | एक बार कहने से समझ लेते हैं | समय मै तो देख रहा हूँ पर्याप्त है आप लोग ज्यादा क्यों ले रहे हैं हम तो समय दे रहे हैं| हमें जो बीठा करके छेक लेते हैं हमें वो अच्छा नहीं लगता दूसरों को दर्शन में बाधा होती है यह अच्छी बात नहीं है | लोग दूर – दूर से आते हैं वर्षा भी इनका आकस्मिक स्वागत करती है | आय हैं सुनने के लिए ज्यादा कहने से वह अच्छा नहीं होता | मृत्यु इस प्रकार से नहीं मानती, नहीं सुनती, नहीं भूलती अब क्या कहना क्या करना उसके स्वागत के लिये हमेशा तैयार रहना चाहिये | आज आचार्य श्री विद्यासागर महाराज को नवधा भक्ति पूर्वक आहार कराने का सौभाग्य श्री निर्मल चन्द जैन जी चरगुवा निवासी परिवार को प्राप्त हुआ | जिसके लिये चंद्रगिरी ट्रस्ट के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन, कार्यकारी अध्यक्ष श्री विनोद बडजात्या, कोषाध्यक्ष श्री सुभाष चन्द जैन,निर्मल जैन (महामंत्री), चंद्रकांत जैन (मंत्री ) ,मनोज जैन (ट्रस्टी), सिंघई निखिल जैन (ट्रस्टी),सिंघई निशांत जैन (ट्रस्टी), प्रतिभास्थली के अध्यक्ष श्री प्रकाश जैन (पप्पू भैया), श्री सप्रेम जैन (संयुक्त मंत्री) ने बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें दी| श्री दिगम्बर जैन चंद्रगिरी अतिशय तीर्थ क्षेत्र के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन ने बताया की क्षेत्र में आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी की विशेष कृपा एवं आशीर्वाद से अतिशय तीर्थ क्षेत्र चंद्रगिरी मंदिर निर्माण का कार्य तीव्र गति से चल रहा है और यहाँ प्रतिभास्थली ज्ञानोदय विद्यापीठ में कक्षा चौथी से बारहवीं तक CBSE पाठ्यक्रम में विद्यालय संचालित है और इस वर्ष से कक्षा एक से पांचवी तक डे स्कूल भी संचालित हो चुका है | यहाँ गौशाला का भी संचालन किया जा रहा है जिसका शुद्ध और सात्विक दूध और घी भरपूर मात्रा में उपलब्ध रहता है |यहाँ हथकरघा का संचालन भी वृहद रूप से किया जा रहा है जिससे जरुरत मंद लोगो को रोजगार मिल रहा है और यहाँ बनने वाले वस्त्रों की डिमांड दिन ब दिन बढती जा रही है |यहाँ वस्त्रों को पूर्ण रूप से अहिंसक पद्धति से बनाया जाता है जिसका वैज्ञानिक दृष्टि से उपयोग कर्त्ता को बहुत लाभ होता है|आचर्य श्री के दर्शन के लिए दूर – दूर से उनके भक्त आ रहे है उनके रुकने, भोजन आदि की व्यवस्था की जा रही है | कृपया आने के पूर्व इसकी जानकारी कार्यालय में देवे जिससे सभी भक्तो के लिए सभी प्रकार की व्यवस्था कराइ जा सके |उक्त जानकारी चंद्रगिरी डोंगरगढ़ के ट्रस्टी सिंघई निशांत जैन (निशु) ने दी है |
  5. शुभ भाव, संयम और समभाव को हमेशा ऊपर उठाना चाहिये | डोंगरगढ़ – संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ससंघ चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान है | आज के प्रवचन में आचार्य श्री ने बताया कि आप सुबह उठते हैं तो आमोद, प्रमोद के साथ उठते हैं आपका आलस्य दूर हो जाता है | शारीरिक परिस्तिथियाँ जिसकी ठीक नहीं उसको भी आराम सा लगता है | स्वास्छोस्वास (सास लेना एवं छोड़ना) कि प्रक्रिया बहुत ही सुव्यवस्थित चलने लगती है | पूर्व कि ओर गुलाबी आभा उठती है सूर्य नारायण ऊपर आने के पूर्व आसमान में गुलाबी छटा छा जाती है | प्रत्येक व्यक्ति 12 घंटे के लिये सुख, शान्ति, स्वास्थ्य आदि कि अपेक्षा वह अपना योग्य कार्य करना प्रारंभ कर देता है | यह गुलाबी आभा पूर्व कि अपेक्षा से कहा और एक पश्चिम में सूर्य के अस्थाचल के समय लालिमा फूटती है दोनों लालिमा ऊपर से समान दिखती है दोनों में कोई अंतर नज़र नहीं आता है | लाली एक है परिणाम भिन्न है | एक थकावट कि प्रतिक है इसमें सोने कि इच्छा रखता है वह थक गया है | एक लाली सोने के लिये प्रेरित करती है और एक जागने कि प्रेरणा देती है | एक अज्ञान कि गोद में जा रहा है और एक ज्ञान कि गोद से ऊपर उठ रहा है | सूर्य एक है, गुलाबी आभायें एक है लेकिन परिणाम में बहुत अंतर नज़र आता है | यह उदाहरण इसलिए दे रहा हूँ क्योंकि आप लोग जो चेष्टायें करते हैं उसमे शुभता, संयम भाव, समभाव आदि जुड़े हुए रहते हैं और एक में अशुभ भाव, असंयम भाव, हिंसा कि वृत्ति आदि होती रहती है | चेष्टाये दोनों में होती रहती है किन्तु एक चेष्टा नरक, निगोद आदि कि ओर ले जाती है और एक चेष्टा सीधा मुक्ति तो नहीं मिलती है पर वह स्वर्ग तक लेजा सकती है | स्वर्ग भी अलग – अलग होते हैं और उसमे आयु भी निर्धारित रहती है | वहाँ पर जाकर भी वह जो नियम, संयम आदि लिया था ज्ञान कि आराधना कि थी, मुक्ति और संसार में क्या अंतर है उसे देखा और संसार से दूर हटने के लिये जो हमारे लिये बताया गया है गुरुओं के द्वारा उसका अभ्यास भी करता रहा किन्तु वह सीधा इसलिए नहीं गया क्योंकि उसके पास अभी संयम है किन्तु अभी और संयम का पालन करना शेष है | जब तक वह पूर्ण नहीं होगा वह एक बार स्वर्ग और एक बार मनुष्य भव प्राप्त कर सकता है | इस शुभ और संयम के साथ जो कार्य करता है उसके द्वारा प्रशस्त प्रकृतियों का बंध होता है | यह निश्चित है किन्तु वह बंध कर्म निर्जरा के साथ होता है | वह जो अशुभ प्रकृतियों का बंध किया था उसको विसर्जन करने का कोई साधन है तो ये शुभ संयम और शुभ चेष्टाये आदि है | अशुभ के द्वारा अशुभ का बंध होता है और शुभ के द्वारा अशुभ कि निर्जरा होती है और शुभ का बंध होता है | बंध हमेशा – हमेशा बंध नहीं होता उसका सम्बन्ध देव, शास्त्र और गुरु के साथ होता है | उसके द्वारा संसार का विकास नहीं होता किन्तु संसार से दूर होने का साधन बनता है | आत्मानुशासन में गुणभद्र महाराज जी ने यह लिखा है कि एक लाली जगाती है और एक लाली सुलाती है | इसलिए सुलाने वाली माँ नहीं होती | माँ तो हमेशा जगाती है और विषय, वासनाओं को जगाती नहीं किन्तु सुला देती है | अनंतकाल से आप सोते हुए आये हो एक बार आप जगाने वाली माँ कि आराधना अवश्य करो | आज आचार्य श्री विद्यासागर महाराज को नवधा भक्ति पूर्वक आहार कराने का सौभाग्य श्री मनीष कुमार जैन दल्लीराजहरा (छत्तीसगढ़) निवासी परिवार को प्राप्त हुआ | जिसके लिये चंद्रगिरी ट्रस्ट के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन, कार्यकारी अध्यक्ष श्री विनोद बडजात्या, कोषाध्यक्ष श्री सुभाष चन्द जैन,निर्मल जैन (महामंत्री), चंद्रकांत जैन (मंत्री ) ,मनोज जैन (ट्रस्टी), सिंघई निखिल जैन (ट्रस्टी),सिंघई निशांत जैन (ट्रस्टी), प्रतिभास्थली के अध्यक्ष श्री प्रकाश जैन (पप्पू भैया), श्री सप्रेम जैन (संयुक्त मंत्री) ने बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें दी| श्री दिगम्बर जैन चंद्रगिरी अतिशय तीर्थ क्षेत्र के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन ने बताया की क्षेत्र में आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी की विशेष कृपा एवं आशीर्वाद से अतिशय तीर्थ क्षेत्र चंद्रगिरी मंदिर निर्माण का कार्य तीव्र गति से चल रहा है और यहाँ प्रतिभास्थली ज्ञानोदय विद्यापीठ में कक्षा चौथी से बारहवीं तक CBSE पाठ्यक्रम में विद्यालय संचालित है और इस वर्ष से कक्षा एक से पांचवी तक डे स्कूल भी संचालित हो चुका है | यहाँ गौशाला का भी संचालन किया जा रहा है जिसका शुद्ध और सात्विक दूध और घी भरपूर मात्रा में उपलब्ध रहता है |यहाँ हथकरघा का संचालन भी वृहद रूप से किया जा रहा है जिससे जरुरत मंद लोगो को रोजगार मिल रहा है और यहाँ बनने वाले वस्त्रों की डिमांड दिन ब दिन बढती जा रही है |यहाँ वस्त्रों को पूर्ण रूप से अहिंसक पद्धति से बनाया जाता है जिसका वैज्ञानिक दृष्टि से उपयोग कर्त्ता को बहुत लाभ होता है|आचर्य श्री के दर्शन के लिए दूर – दूर से उनके भक्त आ रहे है उनके रुकने, भोजन आदि की व्यवस्था की जा रही है | कृपया आने के पूर्व इसकी जानकारी कार्यालय में देवे जिससे सभी भक्तो के लिए सभी प्रकार की व्यवस्था कराइ जा सके |उक्त जानकारी चंद्रगिरी डोंगरगढ़ के ट्रस्टी सिंघई निशांत जैन (निशु) ने दी है |
  6. भोजन पहले शोधन फिर ग्रहण करना चाहिये | संतो ने पहले बुराई का त्याग कराया फिर अच्छे संस्कारों को ग्रहण करने हो कहा है | अज्ञान को मै छोड़ता हूँ और ज्ञान को मै स्वीकार करता हूँ | डोंगरगढ़ – संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ससंघ चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान है | आज के प्रवचन में आचार्य श्री ने बताया कि किसानो को इसका ज्ञान होगा ही और भी व्यक्ति जो घूमते हैं या घूमने निकलते हैं इस वनस्पति कि जानकारी उनको होगी जिसका नाम है बेशरम | मनुष्य के लिये बेशरम कहना ठीक नहीं चाहे वह छोटा बालक ही क्यों न हो क्योंकि यह भीरती भाव मीमांशा है | मैने देखा एक पशु आया वह अपने भोजन (राशन) कि खोज में बेशरम के पौधे कि एक परिक्रमा लगाया उससे संतुष्ट नहीं हुआ जबकि वह हरा – भरा, खिला हुआ था जबकि उसके लिये कोई विशेष प्रबंध नहीं होता है वहाँ रेत थी मिटटी भी नहीं थी प्रायः किसान अपने खेत कि बाड़ी में इसे लगाता है ताकि कोई पशु उसे लांघकर खेत में ना घुसे | उस बेशरम के पौधे के पास से गाय, बैल, आदि सभी उसे देखकर यानि सूंघकर निकल गए | पशुओं ने इसमें ऐसा क्या देखा या सूंघा जो इसको बिना खाए ही आगे बढ़ गए | उसका भोजन (सेवन) नहीं करते यह देखकर ऐसा लगा कि इसमें कुछ अलग विज्ञान है इसपर यदि आई. आई. टी. वाले शोध करते तो बहुत बड़ा काम होगा | इसको यदि धर्म से जोड़ा जाये तो हमें भी खाने कि वस्तु का शोधन पहले ग्रहण बाद में करना चाहिये | संतो ने पहले बुराई का त्याग कराया फिर अच्छे संस्कारों को ग्रहण करने हो कहा है | अज्ञान को मै छोड़ता हूँ और ज्ञान को मै स्वीकार करता हूँ | इस प्रकार पन्द्रह बीस ऐसे स्थान दिये जैसे वरजन, त्याग आदि ग्रहण करने को कहा है | हम लोगो के लिये तो पूरी कि पूरी किताब ही छपी हुई है जिसमे आहार आदि क्रिया के लिये सम्पूर्ण नियमावली दी हुई है | जब पशु पक्षी खाने के लिये निकलते हैं तो हजारों वनस्पति होती है उसमे से वो उपादेय को ग्रहण करते हैं और हेय को छोड़ देते हैं | उस बेशरम आदि वनस्पति में विष होने के कारण उसको ग्रहण नहीं करते है इसको वे सूंघकर परख लेते हैं कि इसमें जहर है और ये खाने से उनको हानि होगी क्योंकि उनके पास कोई डॉक्टर आदि सुविधा उपलप्ध नहीं होती इसे निदान कहा जाता है | यदि आँखे (बरसात के पानी या गर्मी में इन्फेक्शन आदि से आँखे लाल होने कि बीमारी) आ जाती है तो हरी को देखने से औषधोपचार हो जाता है | कल यहाँ बड़ी यात्रा करके कोई आया था उनका नाम नहीं लूँगा मै जिसकी वजह से यह (आँख आना) विषाक्त वस्तु हवा आदि से औरों में भी फैल गयी | वर्षा के माध्यम से अमृत वर्षा भी होती है और तेजाब वर्षा भी होती है जिससे भयानक रोग हो जाते हैं | एक पौधा तम्बाकू का भी होता है जिसे कोई भी पशु पक्षी कोई भी नहीं खाता है यहाँ तक कि गधा भी इसका सेवन नहीं करता है | केवल मनुष्य ही उसका सेवन गुटखा बनाकर, ब्राउन यानि बीडी और वाइट यानि सिगरेट के माध्यम से करता है | उसके पैकेट में लिखा होता है स्ट्रोंग पाइजन (Strong Poison) फिर भी उसका सेवन करते है | छोटे - छोटे बच्चे भी आज यह बीडी, सिगरेट का सेवन कर इसकी चपेट में आ रहे है जिससे उनको कैंसर जैसी गंभीर बीमारी हो जाती है और इसके ईलाज के लिये करोडो रूपए खर्च करने के बाद भी वह दोबारा हो जाती है | स्मोकर्स के लिये भी एक उपाधि है जिसको “चैन स्मोकर “ कहते हैं | वह एक सिगरेट पिने के बाद तुरंत दूसरी सुलगा लेता है जिसे चैन स्मोकर कहा जाता है और ये लोग समाधी कि कल्पना कर रहे है | हमारा भी ज्ञान इसी प्रकार साहित्य, देव-शास्त्र –गुरु के विषय में लगा रहे जब तक पूर्ण उद्धार न हो | फाउंडेशन (नीव) बहुत इम्पोर्टेन्ट (जरुरी, आवश्यक) होता है उसी के ऊपर पाषाण खड़ा है | सम्यग्दर्शन तभी होगा जब तक सम्यग्ज्ञान नहीं होता है | अपने व्यक्तित्व का प्रशम, सम्वेग, अनुकम्पा, आस्तिक्य होना चाहिये | अपने आस्तिक्य को शरीर से हटाकर सम्वेग के माध्यम से श्रद्धान किया जाता है | इसलिए आपकी यात्रा अभी अनेक पदार्थ कि परख करने जा रही है | अपने शरीर को ही आप सब कुछ मानते हो यह अज्ञान शिरोमणि का काम है | सभी शास्त्र पढने के बाद भी भव्य – अभव्य हो सकता है | ज्ञान होने के बाद भी सम्यग्दृष्टि नहीं होगा क्योंकि अभी भी उसको ऋद्धि – सिद्धी दिख रही है | जबकि वह मुनि जब दसवे पूर्व में प्रवेश करता है वहाँ १२०० विद्यायें उनके पास आकर परिक्रमा लगाती है जिसे वह मुनिराज आँख खोलकर देखते भी नहीं है क्योंकि इसको प्राप्त करने के लिये यह दिगम्बर वेश धारण नहीं किया है | साधु का अर्थ जो आत्मा कि साधना करता है शरीर कि साधना नहीं | एक विशेष संलेखना के माध्यम से वह मनुष्य, नारकी, तिर्यंच नहीं होगा, मुक्त भी नहीं होगा, कल्पवासी देवों में उनका जन्म होता है वह उसे मुक्ति तक लेजा सकता है ज्यादा से ज्यादा 7 – 8 भव ले सकता है | सम्यग्दृष्टि को स्वर्ग से मनुष्य जन्म जाना अनिवार्य होता है किन्तु यहाँ से मनुष्य होना अनिवार्य नहीं क्योंकि वहाँ सम्यग्दर्शन ही छुट जाता है | मान लो आप बैठे हो और आपके घुटने में एक बिच्छू आकर बैठ गया बड़े डंक वाला वहाँ तो आप बिलकुल हिलना डुलना बंद कर देते हो तो वह कुछ देर में वहाँ से चला जाता है आप तुरंत कहते हो णमो अरिहंताणम अच्छा हुआ चला गया और मै बच गया | ऐसा करना यह बताता है कि यही गलत है यह शरीर मै नहीं हूँ यह कई बार आकर चला गया है और कई बार नया मिला है | जब गधा भी शोध करके भोजन करता है तो आप लोग उससे कई ज्यादा ज्ञानी है तो आपको भी पहले भोजन को शोधन फिर बाद में ग्रहण करना चाहिये |आज आचार्य श्री विद्यासागर महाराज को नवधा भक्ति पूर्वक आहार कराने का सौभाग्य चंद्रगिरी ट्रस्ट के कार्यकारी अध्यक्ष श्री विनोद बडजात्या जशपुर, रायपुर (छत्तीसगढ़) निवासी परिवार को प्राप्त हुआ | जिसके लिये चंद्रगिरी ट्रस्ट के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन,कोषाध्यक्ष श्री सुभाष चन्द जैन,निर्मल जैन (महामंत्री), चंद्रकांत जैन (मंत्री ) ,मनोज जैन (ट्रस्टी), सिंघई निखिल जैन (ट्रस्टी),सिंघई निशांत जैन (ट्रस्टी), प्रतिभास्थली के अध्यक्ष श्री प्रकाश जैन (पप्पू भैया), श्री सप्रेम जैन (संयुक्त मंत्री) ने बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें दी| श्री दिगम्बर जैन चंद्रगिरी अतिशय तीर्थ क्षेत्र के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन ने बताया की क्षेत्र में आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी की विशेष कृपा एवं आशीर्वाद से अतिशय तीर्थ क्षेत्र चंद्रगिरी मंदिर निर्माण का कार्य तीव्र गति से चल रहा है और यहाँ प्रतिभास्थली ज्ञानोदय विद्यापीठ में कक्षा चौथी से बारहवीं तक CBSE पाठ्यक्रम में विद्यालय संचालित है और इस वर्ष से कक्षा एक से पांचवी तक डे स्कूल भी संचालित हो चुका है | यहाँ गौशाला का भी संचालन किया जा रहा है जिसका शुद्ध और सात्विक दूध और घी भरपूर मात्रा में उपलब्ध रहता है |यहाँ हथकरघा का संचालन भी वृहद रूप से किया जा रहा है जिससे जरुरत मंद लोगो को रोजगार मिल रहा है और यहाँ बनने वाले वस्त्रों की डिमांड दिन ब दिन बढती जा रही है |यहाँ वस्त्रों को पूर्ण रूप से अहिंसक पद्धति से बनाया जाता है जिसका वैज्ञानिक दृष्टि से उपयोग कर्त्ता को बहुत लाभ होता है|आचर्य श्री के दर्शन के लिए दूर – दूर से उनके भक्त आ रहे है उनके रुकने, भोजन आदि की व्यवस्था की जा रही है | कृपया आने के पूर्व इसकी जानकारी कार्यालय में देवे जिससे सभी भक्तो के लिए सभी प्रकार की व्यवस्था कराइ जा सके |उक्त जानकारी चंद्रगिरी डोंगरगढ़ के ट्रस्टी सिंघई निशांत जैन (निशु) ने दी है |
  7. डोंगरगढ़ – संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ससंघ चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान है | आज के प्रवचन में आचार्य श्री ने बताया कि प्रथमानुयोग में चक्रवर्ती और अर्धचक्रि का वैभव और जीवन चरित्र के बारे में आप लोगो को पढने को मिलता है | उनको तो प्रायः मुक्त होना ही है इसी भव से | प्रायः इसलिए लगाया है कुछ - कुछ अन्यत्र भी चले जाते हैं और कुछ स्वर्ग आदि में भी जाते हैं | फिर भी उनकी उसी प्रकार से मुक्ति हो ही जाती है | वे कभी भी नरक से नहीं आते हैं पाप करने से नरक जा सकते हैं या जाते हैं | इनकी सेवा के लिए देव भी नियुक्त किये जाते हैं क्योंकि ये महान होते हैं | युग के आदि में वृषभनाथ भगवान हुए हैं उनके जयेष्ट पुत्र के रूप में उनका जन्म हुआ | सुनते हैं वे सर्वार्थ सिद्धि से आये थे | उनके पास बहुत वैभव और शक्ति संपन्न होने के बावजूद भी उन्हें मर्यादा रखना होता है | जब वे दिग्विजय के लिए निकले तो बिच में विजयार्थ पर्वत आया उसे वे लाँघ सकते थे लेकिन सेना को भी साथ में लेजाना था इसलिए वहां रुक गए और वहां पर्वत में नियम था उसके अनुरूप ही वहां सैनिको की रक्षा एवं शांति आदि के लिए शान्ति विधान, मन्त्र, जाप आदि किया और ३ दिन का उपवास भी किया | इसके बाद वहां पर्वत पर ६ माह तक गर्म लपटे निकलती रही जिस वजह से पूरी सेना सहित उन्हें वही रुकना पड़ा | शील का अर्थ स्वभाव होता है | पांच अणुव्रत तीन शील व्रत और चार शिक्षा व्रत होते हैं वे इसका पालन करते हैं | जब वे म्लेक्ष खंड पर विजय प्राप्त करते हैं तो वहां का राजा उन्हें ३२००० कन्याएं दान में देता हैं | पुरे छः खंड मिलाकर उनके पास ९६००० पत्नियाँ होती है | वे इसके अतिरिक्त किसी और की कामना नहीं करते और उसी में मर्यादित रहते है | इसी प्रकार श्रावक को भी अपने षट आवशयक का पालन करते हुए प्रति दिन पूजन और शांतिधारा करना चाहिये | आज आचार्य श्री विद्यासागर महाराज को नवधा भक्ति पूर्वक आहार कराने का सौभाग्य श्री ज्ञानचंद जी अश्विन कुमार पाटनी दुर्ग (छत्तीसगढ़) निवासी परिवार को प्राप्त हुआ | जिसके लिये चंद्रगिरी ट्रस्ट के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन,कार्यकारी अध्यक्ष श्री विनोद बडजात्या, सुभाष चन्द जैन,निर्मल जैन, चंद्रकांत जैन,मनोज जैन, सिंघई निखिल जैन (ट्रस्टी),निशांत जैन (सोनू), प्रतिभास्थली के अध्यक्ष श्री प्रकाश जैन (पप्पू भैया), श्री सप्रेम जैन (संयुक्त मंत्री) ने बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें दी| श्री दिगम्बर जैन चंद्रगिरी अतिशय तीर्थ क्षेत्र के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन ने बताया की क्षेत्र में आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी की विशेष कृपा एवं आशीर्वाद से अतिशय तीर्थ क्षेत्र चंद्रगिरी मंदिर निर्माण का कार्य तीव्र गति से चल रहा है और यहाँ प्रतिभास्थली ज्ञानोदय विद्यापीठ में कक्षा चौथी से बारहवीं तक CBSE पाठ्यक्रम में विद्यालय संचालित है और इस वर्ष से कक्षा एक से पांचवी तक डे स्कूल भी संचालित हो चुका है | यहाँ गौशाला का भी संचालन किया जा रहा है जिसका शुद्ध और सात्विक दूध और घी भरपूर मात्रा में उपलब्ध रहता है |यहाँ हथकरघा का संचालन भी वृहद रूप से किया जा रहा है जिससे जरुरत मंद लोगो को रोजगार मिल रहा है और यहाँ बनने वाले वस्त्रों की डिमांड दिन ब दिन बढती जा रही है |यहाँ वस्त्रों को पूर्ण रूप से अहिंसक पद्धति से बनाया जाता है जिसका वैज्ञानिक दृष्टि से उपयोग कर्त्ता को बहुत लाभ होता है|आचर्य श्री के दर्शन के लिए दूर – दूर से उनके भक्त आ रहे है उनके रुकने, भोजन आदि की व्यवस्था की जा रही है | कृपया आने के पूर्व इसकी जानकारी कार्यालय में देवे जिससे सभी भक्तो के लिए सभी प्रकार की व्यवस्था कराइ जा सके |उक्त जानकारी चंद्रगिरी डोंगरगढ़ के ट्रस्टी सिंघई निशांत जैन (निशु) ने दी है |
  8. डोंगरगढ़ – संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ससंघ चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान है | आज के प्रवचन में आचार्य श्री ने बताया कि इस धरती पर अनंत जीव है और यह सब अपने – अपने कर्म के उदय से हुए हैं फिर भी जब हम दूसरी दृष्टि से देखते हैं तो जो कुछ ऐसे भी पलाक्षी है वस्तुवें हैं जिनसे जीव, जीव रहित भी हो जिनके द्वारा बड़े – बड़े कार्य होते हैं | जिसको देखने से सबको भूल कर उसकी ओर आकृष्ट हो जाते हैं | जैसे सूर्य नारायण कोई व्यक्ति नहीं है अपितु एक विमान है जिसमे देव आदि रहते हैं | जिसका प्रभाव गर्मी के दिनों में देखने को मिलता है | समुद्र में बड़ी – बड़ी नदियाँ जाकर डूब जाती हैं वह समुद्र कभी सूखने वाला नहीं है | सूर्य के प्रताप से समुद्र का जल उबलकर गर्म होकर वाष्प या भाप बनकर ऊपर चला जाता है | जब समुद्र कि यह दशा है तो धरती पर रहने वाले जीव, किट, पतंगों कि दया दशा होगी ? लेकिन फिर भी एक महाराज जंगल में बैठे इस भयानक गर्मी को देखते हैं कि यह वन पेड़ पौधों से भरा है और देखते – देखते उसमे आग लग जाती है और कुछ ही समय में आग जंगल के चारों तरफ फैल जाती है | क्या करूँ सम्यग्दृष्टि के मन में इन जीवों के प्रति दया आती है और उन्हें बचाने का क्या उपाय हो सकता है वह दिगम्बर मुनि जिसके पास कुछ भी नहीं है वह इस आग को कैसे बुझाये ? इनके मन में विषम सम्वेग भाव, अनुकम्पा का भाव आता है | अब देखते – देखते ही सुबह 8 – ९ बजे बड़े – बड़े बादलों के दल जंगल कि ओर खिसकने लगते हैं और शीतल हवा चलने लगती है जो प्रचंड गर्मी थी शांत हो जाती है | यह पूरा वन जल रहा था वर्षा होते ही ५ मिनट नहीं लगा जंगल कि आग बुझ गई | अब हम पूछना चाहते हैं यह किसका परिणाम है ? आचार्य कहते हैं कि तप के साथ अनेक रिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं | उन रिद्धियों के द्वारा यह सब हो जाता है | और भी मुनि रहते होंगे उनके पास भी दया है वे भी ऐसे भाव करते होंगे क्योंकि विपाक विचय धर्म ध्यान, उपाय विचय धर्म ध्यान और अपाय विचय धर्म ध्यान होता है जिसके कारण वे ऐसा भाव करते हैं कि मै कौन सा ऐसा कार्य करूँ जिससे इनके ऊपर जो संकट आया है समाप्त हो | यहाँ सब जीव बच जाए वे अपने बारे में कुछ नहीं सोचते है लेकिन स्वयं के बारे में ही सोचा जा रहा है | मेरी दया किस काम कि मेरी करुणा किस काम कि | ऐसी बातों को लेकर के यह सम्यग्दृष्टि के मन में उत्पन्न नहीं होगा तो क्या मिथ्यादृष्टि के मन में उत्पन्न होगा | वस्तु के स्वरुप का चिंतन करना अलग है और मोक्षमार्ग में अहिंसा धर्म का चिंतन करना अलग होता है | यह ध्रुव सत्य है कि पर कि पीढ़ा अपनी करुणा कि परीक्षा लेती है | सम्यग्दृष्टि होने के साथ करुणा का होना स्वाभाविक है जैसे वर्षा के साथ बादलों का गरजना और बिजली का चमकना स्वाभाविक होता है | यही सम्यग्दर्शन का अस्तित्व है जो जीवों को बचाना चाहता है | यदि वर्षा समय पर नहीं हो तो किसान बादलों कि ओर देखता है बीज कि ओर नहीं | वह बादल को देखकर ही बीज बोना प्रारंभ करता है | वैज्ञानिकों का कहना है कि इस वर्ष कि गर्मी ने पुराने सारे रिकार्ड तोड़ दिये हैं | दिल्ली के एक सांसद ने कहा था कि हमारे यहाँ पानी कि कटौती हो रही है | सुनते हैं दिल्ली में इस वर्ष इतनी वर्षा हुई कि 40 साल के बाद यमुना का जल 4 किलोमीटर तक घरों में घुस गया | जैसे यमुना अपने जल से न्यायालय के सदन का प्रक्षालन कर रही हो क्योंकि न्यायालय ही एक मात्र स्थान है जहाँ दुखी और पिढीत व्यक्ति को न्याय मिलता है | पहले एक राजा होता था आज प्रजा ही राजा है | जो अपने बीच के व्यक्ति को बीठा देते हैं और वह ऊपर बैठकर देखता है कि निचे कौन दुखी है, गरीब है, किसको क्या आवश्यकता है और कौन उसकी सहायता कर सकता है, कौन भारी भरकम (पैसा वाला) है उसे भी देखा जाता है | जितने भी नेता होते हैं वे हमेशा चुनाव में खड़े होते हैं कभी चुनाव में बैठते नहीं है जब तक ५ वर्ष नहीं होते है | वे पांच वर्ष तक कायोत्सर्ग कैसे करते हैं खड़े – खड़े यहाँ तो पांच घंटे नहीं होता | पांच वर्ष तक ऐसे संकल्प लेकर चलते हैं कि भारत कि ओर आज विश्व देख रहा है | विश्व में जो खलबली हो रही है उसे भारत ही शांत क्या प्रशांत कर सकता है | एक व्यक्ति ने शोध किया है कि १५००० वर्ष से भारत कभी किसी राष्ट्र पर चढ़कर उसको अपने अधीन करने का प्रयास नहीं किया है | यही भारत का इतिहास और संस्कृति है जिसे हमें सुरक्षित रखना है | अहिंसा और दयाधर्म है जो हमेशा दूसरे दुखी व्यक्ति के कष्ट को मिटाने के लिये सोचते हैं | आज आचार्य श्री विद्यासागर महाराज को नवधा भक्ति पूर्वक आहार कराने का सौभाग्य ब्रह्मचारिणी परी दीदी दुर्ग (छत्तीसगढ़) निवासी परिवार को प्राप्त हुआ | जिसके लिये चंद्रगिरी ट्रस्ट के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन,कार्यकारी अध्यक्ष श्री विनोद बडजात्या, सुभाष चन्द जैन,निर्मल जैन, चंद्रकांत जैन,मनोज जैन, सिंघई निखिल जैन (ट्रस्टी),निशांत जैन (सोनू), प्रतिभास्थली के अध्यक्ष श्री प्रकाश जैन (पप्पू भैया), श्री सप्रेम जैन (संयुक्त मंत्री) ने बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें दी| श्री दिगम्बर जैन चंद्रगिरी अतिशय तीर्थ क्षेत्र के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन ने बताया की क्षेत्र में आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी की विशेष कृपा एवं आशीर्वाद से अतिशय तीर्थ क्षेत्र चंद्रगिरी मंदिर निर्माण का कार्य तीव्र गति से चल रहा है और यहाँ प्रतिभास्थली ज्ञानोदय विद्यापीठ में कक्षा चौथी से बारहवीं तक CBSE पाठ्यक्रम में विद्यालय संचालित है और इस वर्ष से कक्षा एक से पांचवी तक डे स्कूल भी संचालित हो चुका है | यहाँ गौशाला का भी संचालन किया जा रहा है जिसका शुद्ध और सात्विक दूध और घी भरपूर मात्रा में उपलब्ध रहता है |यहाँ हथकरघा का संचालन भी वृहद रूप से किया जा रहा है जिससे जरुरत मंद लोगो को रोजगार मिल रहा है और यहाँ बनने वाले वस्त्रों की डिमांड दिन ब दिन बढती जा रही है |यहाँ वस्त्रों को पूर्ण रूप से अहिंसक पद्धति से बनाया जाता है जिसका वैज्ञानिक दृष्टि से उपयोग कर्त्ता को बहुत लाभ होता है|आचर्य श्री के दर्शन के लिए दूर – दूर से उनके भक्त आ रहे है उनके रुकने, भोजन आदि की व्यवस्था की जा रही है | कृपया आने के पूर्व इसकी जानकारी कार्यालय में देवे जिससे सभी भक्तो के लिए सभी प्रकार की व्यवस्था कराइ जा सके |उक्त जानकारी चंद्रगिरी डोंगरगढ़ के ट्रस्टी सिंघई निशांत जैन (निशु) ने दी है |
  9. डोंगरगढ़ – संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ससंघ चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान है | आज के प्रवचन में आचार्य श्री ने बताया कि लोगो ने सुना होगा या पढ़ा होगा अथवा किसी को डायरेक्ट देखने को मिला हो तो साक्षातकार भी किया होगा | वह वस्तु है अमृत धारा अब इसमें क्या – क्या मिलता है अजवाइन का फूल जो सुख गया है, भीम सेन कपूर और पिपरमेंट इन तीनो के समान अनुपात के मिश्रण से अमृत धारा बनती है | यदि इसके अनुपात में अंतर कर दिया बहुत सारा अजवाइन का फूल, एक छोटी कपूर कि डल्ली और एक चिमटी से उठाकर थोडा सा रख दिया फिर इन सबका मिश्रण कर गट पट करने से भी अमृत धारा नहीं बनेगी | अमृत धारा बनाने के लिये अजवाइन का फूल जो सुख गया है, भीम सेन कपूर और पिपरमेंट इन तीनो के समान अनुपात से साथ में रख बस दो तो वह अपने आप पानी – पानी हो जाता है और अमृत धारा बन जाती है जिसका भिन्न – भिन्न उपयोग करते है | इसी प्रकार समाज में बहुत शास्त्रों के ज्ञानी व्यक्ति भी आज भ्रमित से लगते हैं | किसी का नाम नहीं ले रहे हैं किन्तु जो ऐसा कर रहा है उसके लिये अवश्य है क्योंकि हमारे पास आगम का आधार है | इसके लिये सर्वप्रथम आचार्य कुंदकुंद ने सर्वप्रथम मोक्षमार्ग को रखने का पुरुषार्थ किया | पुरुषार्थ इसलिए कहना पड़ता है क्योंकि पंचम काल है लोग सुनते कम और शंका ज्यादा करते है, तर्क ज्यादा करते हैं | जब तक आप इसको सम्पूर्ण रूप से सुनते या पढ़ते नहीं तब तक यह विषय आपके लिये आत्मसात नहीं होगा | अमृत धारा के उदाहरण के अनुसार मोक्षमार्ग में भी समान अनुपात से सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र का होना अनिवार्य है | गृहस्थ का जो चारित्र होता है वह देश संयम होता है वह पूर्ण संयम नहीं होता है | गृहस्थ चारित्र को लेकर के आत्मानुभूति अथवा समाधी, परम समाधी अथवा एक प्रकार से मोक्षमार्ग को गठित करने का अभ्यास कर रहे हो या बहुमत बना करके करना चाहते हो तो आचार्य कुन्दकुन्द इसे स्वीकार नहीं करते | मूल आपको दिखता नहीं क्योंकि औदायिक भाव रहता है गृहस्थों में जो प्रत्याख्यान के साथ चल रहा है | प्रत्याख्यान कषाय उसे मुनि या श्रमण बनने से उसे रोक रही है और जब तक यह नहीं हटती तब तक वह महाव्रती या मोक्ष्मार्गी नहीं कहा जा सकता है | उन्होंने कहा मोक्षमार्ग कहो या श्रामण्य कहो दोनों एकार्थ वाचक है | सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान सम्यग्चरित्राणि मोक्षमार्गः | यह एक वचन में है किन्तु एक नइ वस्तु वह मोक्षमार्ग है | गृहस्थ आश्रम में यह तीनो मिल नहीं सकते आंशिक नहीं चाहिये यहाँ समान मात्रा में सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान सम्यग्चरित्र होना अनिवार्य है | गृहस्थ का जब तक अनन्तानुबन्धी भाव, अप्रत्याखान, प्रत्याखान का भी उदय न हो तब तक मोक्षमार्ग कहो अथवा श्रामण्य नहीं हो सकता | जो व्यक्ति चतुर्थ गुण स्थान में भी मोक्षमार्ग मान रहा है वह मोक्षमार्ग का अवर्णवाद कर रहा है | वह कितने अंधकार में होगा सोचिये जो तारे और चंद्रमा कि रौशनी में पढने का प्रयास कर रहा है जबकि उसे पढने के लिये सूर्य नारायण के दर्शन और आलोक कि आवश्यकता है | एषणा समिति, इर्यापथ समिति और आदाननिक्षेपण समिति के लिये भी दिन चाहिये | किसी को बुरा लगा हो तो भूरा समझकर स्वीकार कर लेना | आज आचार्य श्री विद्यासागर महाराज को नवधा भक्ति पूर्वक आहार कराने का सौभाग्य ब्रह्मचारिणी कविता दीदी परिवार को प्राप्त हुआ | जिसके लिये चंद्रगिरी ट्रस्ट के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन,कार्यकारी अध्यक्ष श्री विनोद बडजात्या, सुभाष चन्द जैन,निर्मल जैन, चंद्रकांत जैन,मनोज जैन, सिंघई निखिल जैन (ट्रस्टी),निशांत जैन (सोनू), प्रतिभास्थली के अध्यक्ष श्री प्रकाश जैन (पप्पू भैया), श्री सप्रेम जैन (संयुक्त मंत्री) ने बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें दी| श्री दिगम्बर जैन चंद्रगिरी अतिशय तीर्थ क्षेत्र के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन ने बताया की क्षेत्र में आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी की विशेष कृपा एवं आशीर्वाद से अतिशय तीर्थ क्षेत्र चंद्रगिरी मंदिर निर्माण का कार्य तीव्र गति से चल रहा है और यहाँ प्रतिभास्थली ज्ञानोदय विद्यापीठ में कक्षा चौथी से बारहवीं तक CBSE पाठ्यक्रम में विद्यालय संचालित है और इस वर्ष से कक्षा एक से पांचवी तक डे स्कूल भी संचालित हो चुका है | यहाँ गौशाला का भी संचालन किया जा रहा है जिसका शुद्ध और सात्विक दूध और घी भरपूर मात्रा में उपलब्ध रहता है |यहाँ हथकरघा का संचालन भी वृहद रूप से किया जा रहा है जिससे जरुरत मंद लोगो को रोजगार मिल रहा है और यहाँ बनने वाले वस्त्रों की डिमांड दिन ब दिन बढती जा रही है |यहाँ वस्त्रों को पूर्ण रूप से अहिंसक पद्धति से बनाया जाता है जिसका वैज्ञानिक दृष्टि से उपयोग कर्त्ता को बहुत लाभ होता है|आचर्य श्री के दर्शन के लिए दूर – दूर से उनके भक्त आ रहे है उनके रुकने, भोजन आदि की व्यवस्था की जा रही है | कृपया आने के पूर्व इसकी जानकारी कार्यालय में देवे जिससे सभी भक्तो के लिए सभी प्रकार की व्यवस्था कराइ जा सके |उक्त जानकारी चंद्रगिरी डोंगरगढ़ के ट्रस्टी सिंघई निशांत जैन (निशु) ने दी है | (विशेष नोट - श्री दिगम्बर जैन चंद्रगिरी अतिशय तीर्थ क्षेत्र के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन ने बताया की क्षेत्र में आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी की विशेष कृपा एवं आशीर्वाद से चातुर्मास कमेटी एवं ट्रस्ट के तत्वाधान में निःशुल्क आयुर्वेद स्वर्ण प्राशन संस्कार शिविर पुष्य नक्षत्र में दिनांक 18 जुलाई २०२३ दिन मंगलवार प्रातः 8 बजे से शाम 4 बजे तक 1 वर्ष से 14 वर्ष तक के बालक, बालिकाओं को पिलाया गया जिससे उनकी बुद्धि, याददाश्त, रोग प्रतिरोधक क्षमता एवं शारीरिक शक्ति बढ़ने वाला आयुर्वेदिक वैक्शीनेशन व ब्रेन पॉवर टॉनिक है |)
  10. डोंगरगढ़ – संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ससंघ चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान है | आज के प्रवचन में आचार्य श्री ने बताया कि आप लोगो ने ये दृश्य देखा होगा कि जब दही को मथनी से मंथन करते हैं | यदि इसका अभ्यास जिसको होता है तो वह बीच – बीच में उसको देखते रहते हैं कि कुछ – कुछ रवादार कण ऊपर देखने को मिलता है | जब बहुत सारे कण (मक्खन) ऊपर दिखने लग जाता है तो वह समझ जाता है कि अब इसको ज्यादा मथना ठीक नहीं है | अनुपात से ही सब कुछ होना चाहिये | इसको कच्छा रखना भी ठीक नहीं और ज्यादा पकाना (मथना) भी ठीक नहीं है | उसको बाहर निकलना चाहता है तो एक प्रकार से हाथ में चिपकने लगा फिर उसने गर्म पानी से हाथ धोया फिर इसके उपरांत वह नवनीत को बाहर निकाला तो नवनीत हाथ में आ गया और दो तीन बार हाथ में लेकर हिलाने पर वह गोल – गोल हो गया | अब जो भीतर था वह बाहर आ गया और बचा हुआ मठा रहता है | मठा के ऊपर नवनीत तैरने लगा उसका ¼ हिस्सा ऊपर दूज या चतुर्थी के चंद्रमा के समान दिखने लगा और शेष हिस्सा मठा में डूबा रहता है | ऊपर वाले को अच्छा और निचे वाले को बुरा माना जाये तो ठीक नहीं होगा दोनों समान ही है किन्तु तैरने कि अपेक्षा से ऊपर वाला हल्का है और निचे जो डूबा हुआ है उसमे कुछ सम्मिश्रण अभी शेष है जिसके कारण वह डूबा हुआ है | यह अभी न तो दही है और न ही घी है यह बिचला है | यह तो हुआ अरहंत परमेष्ठी का स्वरुप | अरहंत कौन है जो तैर तो रहा हैं लेकिन लोक के शिखर तक जाकर के बैठ नहीं रहे अभी किन्तु बीच में ही तैरते हैं, बैठते है ठीक है, चलते हैं तो जमीन से चार अंगुल ऊपर रहते हैं | उनके पीछे – पीछे हम सब भी चल सकते हैं | यह दशा है उनकी इसलिए वो भी संसारी कहलाते हैं | दूध से दही और दही से नवनीत बन गया है लेकिन अभी उसका पूर्ण स्वभाव उद्घाटित नहीं हुआ है | घी कि गंध और नवनीत कि गंध में अभी अंतर है | वर्ण को देखते हैं तो भी अंतर है | घी तो देखते हैं तो ऊपर से भी देख लो तो वह ऊपर भी दिखाता है और अन्दर का भी दिखाता है जबकि नवनीत में देखते हैं तो केवल ऊपर का ही दीखाता है और अन्दर का नहीं दिखाता है उसमे अभी दो – तीन बाते है ही नहीं | घी के अन्तंग को देखते हुए यदि आप थोडा सा निचे झुकेंगे तो आप भी उसमे दिख जायेंगे किन्तु नवनीत में नहीं दिख सकते हो | इतनी सब बातों का मंथन करने से पता चलता है कि जैसे नवनीत और घी में अंतर है उसी प्रकार अरहंत परमेष्ठी और सिद्ध परमेष्ठी में अंतर है अन्तरंग से भी और बहिरंग से भी | कहाँ वह नवनीत कि दशा और कहाँ वह घी कि दशा आपके भीतर छिपी हुई है यह आपको देखना है | अरहंत परमेष्ठी जहाँ चार अंगुल ऊपर उठे हैं तो सिद्ध परमेष्ठी पूरे – पूरे लोक के अग्र भाग में विराजमान है | जैसे दूध में यदि आप घी को डाल दो तो वह पूरा का पूरा ऊपर दिखने लगता है उसका एक कण भी निचे नहीं रहता है यह सिद्ध अवस्था है | आप जितने निचे बैठे हैं क्योंकि इनमे कमी का भंडार है | आपको पूछता हूँ घी तो वहाँ तक पहुँच गया आप बैठे – बैठे हाथ पर हाथ रखकर अपने आप को थोडा सा ऊपर उठाओ | आप अपने आप को एक इन्च भी ऊपर नहीं उठा पाते हो कितने भारी हो आप इतने मोटे – ताजे हो कि चार व्यक्ति के द्वारा भी उठने वाले नहीं हो | सिद्ध परमेष्ठी के साथ कुछ लोग अपने स्वभाव कि तूलना करते हैं | उसको देखकर ऐसा लगता है कि यह एक प्रकार से उनके समान स्वयं को मानते है | शक्ति कि अपेक्षा से मान ले तो कोई पाबंध नहीं किन्तु गुणों कि अपेक्षा से मानते हैं तो यह सिद्ध परमेष्ठी का वर्णवाद माना जायेगा | दूध तो दूध है, दही तो दही है, नवनीत तो नवनीत है, घी तो घी है किन्तु आप दूध को सुरक्षित रखते हो तो घी तक आपकी यात्रा हो सकती है | पूरी शक्ति विद्यमान है आपके पास दूध कि मर्यादा जब तक है तब तक आप उसका उपयोग कर लो मर्यादा के बाद आप उसको जमा नहीं सकते वह फट जाता है | इसलिए आप अभी सम्यग्दर्शन के लिये योग्य है और एक इन्द्रिय भी कम हो जाये तो सम्यग्दर्शन के लिये फटे हुए दूध कि तरह अयोग्य हो जायेंगे | इसलिए योग्यता के साथ आपके पास यह अवसर मिला है इसका सदुपयोग कर मनुष्य जन्म को मुक्ति मार्ग में लगाकर अपना जीवन सार्थक करे | दौलतराम जी छह ढाला में लिखते हैं कि अच्छे कर्म से नर तन पाया है इसका उपयोग सिद्धत्व कि प्राप्ति के लिये करना चाहिये क्योंकि अन्य पर्याय में यह कार्य संभव नहीं है | आज आचार्य श्री विद्यासागर महाराज को नवधा भक्ति पूर्वक आहार कराने का सौभाग्य ब्रह्मचारिणी रूबी दीदी, प्रिया दीदी (प्रतिभास्थली, हथकरघा) परिवार को प्राप्त हुआ | जिसके लिये चंद्रगिरी ट्रस्ट के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन,कार्यकारी अध्यक्ष श्री विनोद बडजात्या, सुभाष चन्द जैन,निर्मल जैन, चंद्रकांत जैन,मनोज जैन, सिंघई निखिल जैन (ट्रस्टी),निशांत जैन (सोनू), प्रतिभास्थली के अध्यक्ष श्री प्रकाश जैन (पप्पू भैया), श्री सप्रेम जैन (संयुक्त मंत्री) ने बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें दी| श्री दिगम्बर जैन चंद्रगिरी अतिशय तीर्थ क्षेत्र के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन ने बताया की क्षेत्र में आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी की विशेष कृपा एवं आशीर्वाद से अतिशय तीर्थ क्षेत्र चंद्रगिरी मंदिर निर्माण का कार्य तीव्र गति से चल रहा है और यहाँ प्रतिभास्थली ज्ञानोदय विद्यापीठ में कक्षा चौथी से बारहवीं तक CBSE पाठ्यक्रम में विद्यालय संचालित है और इस वर्ष से कक्षा एक से पांचवी तक डे स्कूल भी संचालित हो चुका है | यहाँ गौशाला का भी संचालन किया जा रहा है जिसका शुद्ध और सात्विक दूध और घी भरपूर मात्रा में उपलब्ध रहता है |यहाँ हथकरघा का संचालन भी वृहद रूप से किया जा रहा है जिससे जरुरत मंद लोगो को रोजगार मिल रहा है और यहाँ बनने वाले वस्त्रों की डिमांड दिन ब दिन बढती जा रही है |यहाँ वस्त्रों को पूर्ण रूप से अहिंसक पद्धति से बनाया जाता है जिसका वैज्ञानिक दृष्टि से उपयोग कर्त्ता को बहुत लाभ होता है|आचर्य श्री के दर्शन के लिए दूर – दूर से उनके भक्त आ रहे है उनके रुकने, भोजन आदि की व्यवस्था की जा रही है | \ (विशेष नोट - श्री दिगम्बर जैन चंद्रगिरी अतिशय तीर्थ क्षेत्र के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन ने बताया की क्षेत्र में आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी की विशेष कृपा एवं आशीर्वाद से चातुर्मास कमेटी एवं ट्रस्ट के तत्वाधान में निःशुल्क आयुर्वेद स्वर्ण प्राशन संस्कार शिविर पुष्य नक्षत्र में दिनांक 18 जुलाई २०२३ दिन मंगलवार प्रातः 8 बजे से शाम 4 बजे तक 1 वर्ष से 14 वर्ष तक के बालक, बालिकाओं को पिलाया जायेगा जिससे उनकी बुद्धि, याददाश्त, रोग प्रतिरोधक क्षमता एवं शारीरिक शक्ति बढ़ने वाला आयुर्वेदिक वैक्शीनेशन व ब्रेन पॉवर टॉनिक है |)
  11. मोबाइल बच्चों के लिये बन रहा खतरा | मोबाइल कि लत से बच्चों को बचाइये | केवल भारत भूमि में ही धर्म, धर्मात्मा और तीर्थंकरों का जन्म हुआ | इंटेंशन अच्छा हो तो टेंशन नहीं होता | - आचार्य श्री विद्यासागर महाराज डोंगरगढ़ – संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ससंघ चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान है | आज के प्रवचन में आचार्य श्री ने बताया कि आप लोग रात में स्वप्न देखते हैं जैसा उद्देश्य होता है उसी के अनुसार सामने दृश्य आ जाता है और जब जागते हैं तो सामने का दृश्य देखना नहीं चाहते फिर हम अपनी आँखों से ना देखकर के आँखों को बंद कर लेते हैं तब चिंतन कि धारा होती है | उस समय यदि चश्मा लगाया गया हो तो चश्मा को न देखकर के आँखों को बंद कर लेते हैं तो तत्काल आपको महसूस होगा कि किसमें हानि है और किसमें लाभ है | अब निचे देखने या आँखे बंद करने से लाभ होना प्रारंभ हो जाता है | प्रायः महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ में एक तरफ शुभ और एक तरफ लाभ लिखा जाता है | यह प्रतिक है शुभ का | इसमें शुभ का क्या अर्थ होता है और लाभ का क्या अर्थ होता है ? सांसारिक प्राणी अपने लिये हमेशा शुभ कि ओर देखता है यहाँ शुभ से आशय अनुकूलता से है और हानि से बचना है और लाभ का अर्थ संसार कि अपेक्षा से लक्ष्मी होती है | सरस्वती और लक्ष्मी के द्वारा यह युग (जगत) का सञ्चालन होता है या करते हैं | स्वयं इन दोनों के कारण अनेक प्रकार के विचार और अनेक प्रकार कि मांग हमारे दिमाग में पलती रहती है | इसी दुनिया में रहते हुए भी कई लोग इच्छा पूर्ति न होने से एक प्रकार से अभिशाप मानते हैं | इच्छा होना तो चाहिये किन्तु किस प्रकार कि इच्छा होनी चाहिये ? आपको मालूम नहीं महाराज आपको बताना नहीं चाहते | गृहस्त हो या कोई भी सभी को कोई न कोई इच्छा होती है | भीतर लड़का है घर में या कोई और सदस्य है उनकी अपनी कोई इच्छा नहीं रहती यदि रहती भी है तो उसे गौण करते मिट जाती है | आप लोग कि इच्छा बहुत आत्मीयता के कारण होने से उसकी पूर्ति कि जाती है या तो उसकी पूर्ति के लिये और कोई विद्या सीखता है | इच्छायें या आकुल्तायें ये सब हमारी दृष्टि के ऊपर निर्धारित है | जब आप अपनी इच्छा के बिना कुछ सोचना चाहे तो उस समय आपका मन नहीं लगता | आप अपनी इच्छा के अनुरूप ही मन को उसी ओर ले जाते हैं जहाँ आपकी इच्छा पूर्ति होती है | आपको जो टेंशन होता है उसका निमित्त मन होता है यदि हम मन को सरल कर ले तो टेंशन नहीं होगा | आपको यदि टेंशन हो जाता है तो आपकी गोद से लड़का भी खसक जाता है और दूध पीना बंद कर आपकी आँखों में देखने लग जाता है | बच्चा कहता है मै तो दूध पी रहा था पर आपको टेंशन में देखा तो मुझे लगा मेरी वजह से तो टेंशन नहीं है इसलिए दूध पीना बंद कर दिया | इसलिए आचार्यों ने यह कहा है कि जिनको टेंशन होता है उनके इंटेंशन को थोडा सा बदलने का प्रयास किया जा सकता है | मैडिटेशन और कोई वस्तु नहीं है केवल इंटेंशन को सही कि ओर ले जाना है | आचार्यों ने कहा मन यदि नहीं भी लगता है तो कोई बात नहीं लेकिन मन किसी भी वस्तु से चिपके नहीं | जिस किसी का भी चिंतन करो न भी करो चल जायेगा, इधर – उधर देख भी लो चल जायेगा, इंटेंशन यदि अच्छा है तो सब अच्छा है | ये द्रव्य संग्रह (जैन ग्रन्थ) में लिखा है और आप भी रात दिन द्रव्य संग्रह (पैसा कमाने) पढ़ते हो | पढ़ते हो का अर्थ है महाराज जिन्होंने द्रव्य संग्रह लिखा उसको पढ़कर हजारों – हजारों मुनि महाराज तीर गए और आपके द्रव्य संग्रह (पैसा कमाने) के कारण उसी में डूब जाते हो | आनंद में नहीं किन्तु दुःख और आकुलता में डूब जाते हो | यदि इंटेंशन ख़राब है तो टेंशन बढेगा आप कितना भी ध्यान करना चाहो आपका ध्यान आर्त ध्यान और रौद्र ध्यान के अलावा और कुछ नहीं रहेगा | ऐसे आर्त ध्यान और रौद्र ध्यान को बदलना बहुत कठिन है | सुन रहे है कि विदेशो में कुछ सेंटर खोल रहे हैं जनता कि सुविधा के लिये जनता कि समस्या को दूर करने के लिये जो मोबाइल कि लत पड़ी है | लत समझते हो मोबाइल ने ऐसा लात दे दिया जिससे बचना मुश्किल है | हमारे पास आ जाओगे तो उस सेंटर से भी जल्दी – जल्दी बिना दाम लिये आपको ठीक कर सकते हैं | उनका उद्देश्य है कि बच्चे मोबाइल के दुष्प्रभाव से (लत से ) बच जाये | अग्नि को हाथ लगाकर देखता है कि हाथ जलता है कि नहीं ऐसा करना आपकी गलती है | बच्चो को इस ढंग से दे दिया जैसे कि सौभाग्यवती महिलायें कंगन पहनती है ऐसे ही उन बच्चों के पास यह मोबाइल लटकता रहता है | सोते समय भी तकिया के निचे रखकर सोता है | वहाँ से क्या संपर्क होता है क्या पता ? संभव है स्वप्न में भी मोबाइल चलाता हो | स्वप्न में भी यह आदत ख़राब है कब छुट जाए | अब बाहर (विदेश) के लोग घबरा गए हैं इस मोबाइल के दुष्परिणाम को देखकर | बड़ी – बड़ी कंपनी चलाने वाले सेठ साहूकार हैं उन्होंने मोबाइल का उपयोग आज तक नहीं किया ऐसे सेठ भारत में संभव नहीं है वे विदेश में रहते हैं | उनकी कंपनी के प्रोडक्ट में यदि कोई कमी रहती है या उससे किसी को कोई नुकसान होने कि सम्भावना होती है तो वे उसमे स्पष्ट लिखित उल्लेख देते हैं कि इसमें ये – ये सामग्री का प्रयोग किया गया है जिससे ये – ये समस्या हो सकती है एवं इसका उपयोग इस – इस स्थान में प्रतिबंधित है | यदि कोई प्रोडक्ट ख़राब (मेनूफैक्चरिंग डीफैक्ट) हो जाता है तो उनको कोई चिंता कि बात नहीं होती उसे वे भारत में खपा देते हैं | यहाँ के लोग वहाँ के डैमेज, रिजेक्टेड और ख़राब प्रोडक्ट को भी इम्पोर्टेड (विलायती) विदेशी प्रोडक्ट के नाम से खरीद लेते है | यह भारत कि दशा है | जो भी चीज ख़राब हो जाती है यहाँ पर भेजा जाता है | चाहे पढ़े लिखे हो सेठ साहूकार हो लेकर बैठ जाते हैं | यह सब उल्टा है इसे सुलटाये कैसे ? आगरा भी चले जाओ तो कोई ईलाज नहीं है | सुनते हैं भारत में यदि ईलाज न हो तो विदेश में हो जाता है | एक व्यक्ति दौड़ता हुआ आया कहता है बहुत बड़ा संकट है महाराज मोबाइल घूम गया | किसी को लत लग गयी हो तो उसने सोचा मेरा घूम गया तो इसी को उठा लेता हूँ | उससे पूछा क्या था उसमे बताओ तो कहता है सब कुछ उसी में था महाराज, जिन्दगी भी उसी में और अब तो हमारा अंत हो जायेगा | महाराज ऐसा आशीर्वाद दे दो जहाँ भी जाऊंगा ऊपर वहाँ मोबाइल न हो | यदि वहाँ पर भी चला जाये तो ध्यान रखना देव भी अवधि ज्ञान का प्रयोग हमेशा – हमेशा नहीं करता है बहुत आवश्यक होता है तभी उपयोग करता है | यदि आपको पाचन शक्ति बढ़ाना है तो पान खाइये लेकिन होशियारी के साथ उसमे चुना और कत्था ज्यादा न लगाइये नहीं तो वह पाचक नहीं आपको ही पका देगा | मात्रा को देखना चाहिये | क्या आप सभी का हित चाहते हो ? बच्चे का विकास केवल हाइट बढ़ जाने से नहीं होता | कई को तो ये नहीं मालूम कि वेट (भार) और स्फूर्ति (एनर्जी) में क्या अंतर है ? मेरा वेट कम हो रहा है लेकिन एनर्जी कम नहीं हो रही है | एक ही में सभी को तौलते चले जा रहे हो सब गढ़बढ है | ऐसे कई लोग है जो कहते हैं वजन कम हो रहा है | यह बढ़ता और कम होता रहता है | दवाई खाकर इसे बढ़ाना या कम करना हानिकारक है | प्राकृतिक रूप से होना अलग है | मोटापा दो प्रकार का होता है एक शरीर से मोटा होना और एक पैसा से मोटा होना | अब इतने मोटे हो गए आप लोग कि प्रधान मंत्री को चिंता हो रही है आप लोगो कि | ऐसे मोटे हो गए हो कि आठ व्यक्ति भी मिलकर उठा नहीं सकते | क्या करना बताओ ? यह ध्यान रखना आवश्यक है बच्चे जब बाहर पढने जाते हैं तो उन्हें बहुत पैसा देते हो तो वह इसका दुरुपयोग नशीले पदार्थों (ड्रग्स) के सेवन में करते हैं | जिसकी किमत हज़ार नहीं, लाख नहीं बल्कि करोड़ों में होती है | रहिस जो होगा वही इसका सेवन कर सकता है बाकि के तो बस का ही नहीं है | इनकी लत को छुड़ाने के लिये भी सेंटर खोल रहे हैं | सुनते हैं पंजाब स्वतंत्रता के बाद विकास कि ओर था और विकसित होकर के गेंहू कि अपेक्षा से उसकी उन्नति पूरे भारत में एक नंबर में थी | समृद्ध प्रदेश बन गया था और उनके लोग आबादी के अनुसार बहुत कुछ प्रायः देश कि रक्षा हेतु सेना में भी भर्ती होते हैं | आज पंजाब के कुछ स्थान ऐसे है जहाँ लोग भयानक रोग से पीढित है कैंसर जैसे रोग सबसे जयादा है | जिसका कारण है कि विदेशी चीजों का प्रयोग करने और खाने – पीने से हो रहा है | बच्चो को विशेष रूप से नशीले पदार्थों के सेवन करने कि लत लग चुकी है वे अब उस नशीले पदार्थ के बिना रह नहीं सकते है | पैसा भी खर्च नहीं कर सकते क्योंकि उसकी कोई दवाई ही नहीं है कोई औषध ही नहीं है | वो पागल जैसे हो जाता है जैसे मछली पानी के बिना तड़पती है वैसे ही वो उस नशीले पदार्थ के बिना तड़पता है | इसमें कारण माता – पिता अवश्य है वो लड़का नहीं | अब प्रान्त से प्रांतर नहीं देश से देशांतर तक और अच्छे पढ़े लिखे और पैसे वाले भी अब चलो दुबई | दुबई का अर्थ हम डुबना समझते हैं कहाँ डुबोगे ? भारत अच्छा नहीं लग रहा अब वे खूब घूम आये | क्या घूम आये ? मन को घुमाओ | सिंगापुर, दुबई, हांग कांग ये क्यों अब अच्छे लग रहे हैं ? देश के प्रति निष्ठा, समर्पण भाव नहीं रहा | यहाँ पर अनुकूल जो वस्तु है वह किसी देश में नहीं है यहाँ पर धर्म है, धर्मात्मा है, यहाँ पर तीर्थंकर जन्म हुआ अन्यत्र किसी देश में उत्पन्न नहीं हुआ | हमारे तीर्थंकर अयोध्या में उत्पन्न हुए | आज भी इतिहास देख लो लोग सेवा करने के लिये हाथ जोड़कर खड़े होते हैं और अपने आप को धन्य मानते हैं | ऐसा यह पवित्र भूमि जहाँ आप जन्म लिये हो | विशेष विदेश होते है मै मानता हूँ ये उसी में होते हैं लेकिन वहाँ के लोग भी गाडी में बैठकर आते हैं और गाडी में बैठकर चले जाते हैं | कौन थे कहाँ से आये थे किसी को मालूम नहीं झाड़ू लेकर आते हैं झाड़ू लगाकर पुनः झाड़ू को उसी में रखकर चले जाते है| क्या कर रहे है पहले घुमने जाते थे कि शुद्ध प्राण वायु मिल जाये, शुद्ध विचार हो जाये, शुद्ध शौच आदि क्रियांएँ हो जाये, स्नान आदि करके आ जाते थे | प्रतिदिन का यह कार्य गाँधी जी करते थे और आप लोग क्या कर रहे हो ? माथा ठोक रहे है यहाँ महाराज आशीर्वाद मिल जाए हमें विश्वास है हमारा लड़का सुधर जायेगा | क्या हो गया ? आँखों में पानी है और वह लड़का भी कहता है महाराज कई बार प्रयास कर चूका हूँ कि यह नशे कि लत छुट जाये पर लगता ऐसा है कि प्राण छुटने तक यह मुझसे नहीं छुटेगी | अब क्या करें बताओ ? दुनिया कि ये दवाईयाँ और उपचार किस काम के हैं ऐसे रोग पैदा कर रहे है | पंजाब में आज धरती जल रही है विदेशी खाद, विदेशी बीज, विदेशी कीटनाशक दवाईयाँ, मिटटी कि उर्वरता समाप्त होकर जमीन बंजर हो रही है | बंजर समझते हैं न आप जिसको संतान न हो उसको बांझ बोलते हैं और जो धरती अनाज न पैदा करे उस धरती को बंजर धरती बोलते हैं | शासन यह सब जानकार, देखकर कुछ कर नहीं पा रही है अभी तो वह चुनाव को देख रही है | चुनाव आवश्यक है लेकिन ५ साल में यदि हम इन कुरीतियों को समाप्त करें ऐसा संकल्प के धनी कि आज आवश्यकता है | तब तो भारत का विकास संभव है | केवल स्वतंत्रता से गाँधी जी मानते नहीं थे कि भारत स्वतंत्र हुआ | स्वतंत्रता तो वह है कि स्वछंदता को समाप्त करके अपनी नीति नहीं किन्तु नीति हमेशा – हमेशा तारने वाली होती है | आप लोगो ने आज बहुत कडवे शब्द हुने | यदि डायबिटीज है तो कडवी दवाई आवश्यक है | आज रविवार है तो सोचा इनका ट्रीटमेंट कर दें | आज आचार्य श्री विद्यासागर महाराज को नवधा भक्ति पूर्वक आहार कराने का सौभाग्य मीनल दीदी परिवार को प्राप्त हुआ | जिसके लिये चंद्रगिरी ट्रस्ट के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन,कार्यकारी अध्यक्ष श्री विनोद बडजात्या, सुभाष चन्द जैन,निर्मल जैन, चंद्रकांत जैन,मनोज जैन, सिंघई निखिल जैन (ट्रस्टी),निशांत जैन (सोनू), प्रतिभास्थली के अध्यक्ष श्री प्रकाश जैन (पप्पू भैया), श्री सप्रेम जैन (संयुक्त मंत्री) ने बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें दी| श्री दिगम्बर जैन चंद्रगिरी अतिशय तीर्थ क्षेत्र के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन ने बताया की क्षेत्र में आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी की विशेष कृपा एवं आशीर्वाद से अतिशय तीर्थ क्षेत्र चंद्रगिरी मंदिर निर्माण का कार्य तीव्र गति से चल रहा है और यहाँ प्रतिभास्थली ज्ञानोदय विद्यापीठ में कक्षा चौथी से बारहवीं तक CBSE पाठ्यक्रम में विद्यालय संचालित है और इस वर्ष से कक्षा एक से पांचवी तक डे स्कूल भी संचालित हो चुका है | यहाँ गौशाला का भी संचालन किया जा रहा है जिसका शुद्ध और सात्विक दूध और घी भरपूर मात्रा में उपलब्ध रहता है |यहाँ हथकरघा का संचालन भी वृहद रूप से किया जा रहा है जिससे जरुरत मंद लोगो को रोजगार मिल रहा है और यहाँ बनने वाले वस्त्रों की डिमांड दिन ब दिन बढती जा रही है |यहाँ वस्त्रों को पूर्ण रूप से अहिंसक पद्धति से बनाया जाता है जिसका वैज्ञानिक दृष्टि से उपयोग कर्त्ता को बहुत लाभ होता है|आचर्य श्री के दर्शन के लिए दूर – दूर से उनके भक्त आ रहे है उनके रुकने, भोजन आदि की व्यवस्था की जा रही है | कृपया आने के पूर्व इसकी जानकारी कार्यालय में देवे जिससे सभी भक्तो के लिए सभी प्रकार की व्यवस्था कराइ जा सके |
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