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वतन की उड़ान: इतिहास से सीखेंगे, भविष्य संवारेंगे - ओपन बुक प्रतियोगिता ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

संयम स्वर्ण महोत्सव

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  1. ☀☀ संस्मरण क्रमांक 11☀☀ ? सतर्क मुनि चर्या ? आचार्य श्री विद्यासागर जी संघ सहित विहार करके एक गांव में पहुंचे। लंबा विहार होने से उन्हें थकावट अधिक हो गई।कुछ मुनि महाराज वैयावृत्ति कर रहे थे।सामायिक का समय होने वाला था,अचानक आचार्य श्री बोले - मन कहता है शरीर को थोड़ा विश्राम दिया जाए .......सभी शिष्यों ने एक स्वर में आचार्य श्री जी की बात का समर्थन करते हुए कहा-हां हां आचार्य श्री जी आप थोड़ा विश्राम कर लीजिए आचार्य श्री जी हंसने लगे और तत्काल बोले मन भले ही विश्राम की बात करें पर आत्मा तो चाहती है कि- सामायिक की जाए।और देखते ही देखते आचार्य श्री दृढ़ आसन लगाकर सामायिक में लीन हो गए। चाहे हरपिस रोग हुआ हो या 105- 108 डिग्री बुखार आया कोई भी प्रतिकूल परिस्थिति बनी हो, परंतु आचार्य श्री जी ने अपने आवश्यकों पर उसका कोई प्रभाव नहीं पढ़ने दिया,हमेशा आवश्यकों का निर्दोष पालन किया वह कहते हैं-आचार्य महाराज(ज्ञानसागर जी) आवश्यकों को साधक की परीक्षा कहते थे,यदि हम सफल हो गए तो आचार्य महाराज (ज्ञानसागर जी) हमें वहां से क्या फेल हुआ देखेंगे। धन्य है ऐसे गुरुदेव,जो अपनी मुनि चर्या का हर स्थिति में कठोरता से पालन कर रहे है, अपने अंदर बिल्कुल भी शिथिलाचार को नही आने दे रहे शिक्षा- जैसे आचार्य श्री अपनी चर्या अपने आवश्यकों के प्रति हमेशा सावधान रहते हैं,वैसे ही हमें धर्म के मार्ग पर आगे बढ़ते हुए, कितनी भी परेशानियां आये, उन्हें समता से स्वीकार कर धर्म के मार्ग पर आगे बढ़ते रहना चाहिए। ? आचार्य श्री विद्यासागर पत्राचार पाठ्यक्रम प्रणाम अंजिली भाग 1 प्रस्तुतिकर्ता - नरेन्द्र जबेरा (सांगानेर) ??????????
  2. ?????????? ? सुनो भाई खुशियां मनाओ रे आयी संयम स्वर्ण जयंती? ?????????? ☀☀ संस्मरण क्रमांक 10☀☀ ? अंतिम लक्ष्य सिद्धि ? अपने गुरु के समान ही आचार्य श्री विद्यासागर जी भी जीवन का अंतिम लक्ष्य समाधि मरणकी सिद्धि हेतु कृतसंकल्प है। इसका स्पष्ट चित्रण संघस्थ ज्येष्ठ साधु मुनि श्री योग सागर जी की आचार्य श्री जी से हुई चर्चा से स्पष्ट हो जाता है आचार्य श्री विद्यासागर जी का भोपाल मध्यप्रदेश चातुर्मास सन 2016 के बाद डोंगरगढ़ राजनांदगांव छत्तीसगढ़ तक का लंबा बिहार हुआ इस दौरान आचार्य श्री जी अधिक कमजोर दिखने लगे थे ,डोंगरगढ़ पहुंचने से 1 दिन पूर्व 5 अप्रैल 2017को ईर्यापथ भक्ति के पश्चात मुनि श्री योगसागर जी ने आचार्य श्री जी से कहा- *आपने अपने शरीर को पहले से ज्यादा बुड्ढा (वृद्ध) बना लिया है, पीछे से देखें तो ऐसा लगता है जैसे 80 साल के बुड्ढे जा रहे हैं संघस्थ साधुओं ने भी उनका समर्थन किया। तब आचार्य जी बोले तुम लोग मेरी भी तो सुनो मैं कहां कह रहा हूं कि मैं 80 का नहीं हूं I am running seventy । इसमें 70 से लेकर 80 तक का काल आ जाता है आचार्य श्री जी ने आगे कहा - सल्लेखना के लिए 12 वर्ष क्यों बताएं मूलाचार प्रदीप,भगवती आराधना में क्या पढ़ा है,तैयारी तो करनी ही होगी मेरे पास जितना अनुभव है उसी आधार पर तथा गुरुजी से जो मिला उसी अनुभव के आधार पर तैयारी करनी होगी। अपने पास *आगम चक्खू साहूहै मैं उसी के अनुसार अपने शरीर को सल्लेखना के लिए तैयार कर रहा हूं, वैसे ही साधना चल रही है बहुत दुर्लभ है यह सल्लेखना। आप लोग इसको अच्छे तरीके से समझें , मिलेक्ट्री की तरह बस प्रत्येक समय तैयार रहो। i am ready to face it बस धीरे-धीरे उस ओर बढ़ते जाना है सतत अभ्यास से ही इस दुर्लभ लक्ष्य को साधा जा सकता है। प्रभु से यही प्रार्थना करता हूं कि एकत्वभावना का चिंतन करते हुए आयु की पूर्णता हो। इससे अधिक गुरु एवं शिष्य की क्षमता का उदाहरण और क्या हो सकता है यथा गुरु तथा शिष्य, कैसा दुर्लभ संयोग शिक्षा - हमारे जीवन का अंत न जाने कब आ जाए,इसलिए जैसे आचार्य श्री जी सल्लेखना के प्रति हर समय जाग्रत हैं , वैसे ही हम अपने जीवन के प्रत्येक क्षण में जाग्रत रहें, सतर्क रहें और एक ना एक दिन उस परम समाधि अवस्था को प्राप्त करें। ? आचार्य श्री विद्यासागर पत्राचार पाठ्यक्रम प्रणामाञ्जली भाग 1 से साभार प्रस्तुतिकर्ता - नरेन्द्र जबेरा (सांगानेर) ??????????
  3. ?????????? ? सुनो भाई खुशियां मनाओ रे आयी संयम स्वर्ण जयंती? ?????????? ☀☀ संस्मरण क्रमांक 9☀☀ ? सच्चा रास्ता ? 1978 नैनागिरी चातुर्मासमें जयपुर से कुछ लोग आचार्य महाराज के दर्शन करने नैनागिरी आ रहे थे, वह रास्ता भूल गए और नैनागिरी के समीप दूसरे रास्ते पर मुड़ गए। थोड़ी देर जाकर उन्हें एहसास हुआ कि वह भटक गए हैं , इस बीच 4 बंदूकधारी लोगों ने उन्हें घेर लिया, गाड़ी में बैठे सभी यात्री घबरा गए एक यात्री ने थोड़ा साहस करके कहा कि - भैया हम जयपुर से आए हैं आचार्य विद्यासागर महाराज के दर्शन करने जा रहे हैं, रास्ता भटक गए हैं आप हमारी मदद करें। उन चारों ने एक दूसरे की ओर देखा और उनमें से एक रास्ता बताने के लिए गाड़ी में बैठ गया, नैनागिरी के जल मंदिर के समीप पहुंचते ही वह व्यक्ति गाड़ी से उतरा और इससे पहले कि कोई पूछे वह वहां से जा चुका था, जब यात्रियों ने सारी घटना सुनाई तो लोग दंग रह गए। सभी को वह घटना याद आ गई जब चार डाकुओं ने आचार्य महाराज से उपदेश पाया था, उस दिन स्वयं सही राह पाकर आज इन भटके हुए यात्रियों के लिए सही रास्ता दिखा कर मानो उन डाकुओं ने उस अमृत वाणी का प्रभाव रेखांकित कर दिया। ☀नैनागिरी ( 1978 )☀ आत्मान्वेषी पुस्तक से साभार ? मुनि क्षमासागर जी महाराज प्रस्तुतिकर्ता - नरेन्द्र जबेरा (सांगानेर) 8005626148 ??????????
  4. ?????????? ☀☀ संस्मरण क्रमांक 8☀☀ ? अभयदान? चातुर्मास स्थापना का समय समीप आ गया था, सभी की भावना थी कि इस बार आचार्य महाराज नैनागिरी में ही वर्षाकाल व्यतीत करें,वैसे नैनागिरी के आसपास डाकुओं का भय बना रहता है, पर लोगों को विश्वास था कि आचार्य महाराज के रहने से सब काम निर्भयता से सानंद संपन्न होंगे सभी की भावना साकार हुई चातुर्मास की स्थापना हो गई। एक दिन हमेशा की तरह है जब आसान महाराज आहारचर्या से लौटकर पर्वत की ओर जा रहे थे तब रास्ते में समीप की जंगल से निकलकर चार डाकू उनके पीछे-पीछे पर्वत की ओर बढ़ने लगे सभी के मुख वस्त्रों से ढके थे हाथ में बंदूकें थी। लोगों को थोड़ा भय लगा, पर आचार्य महाराज सहज भाव से आगे बढ़ते गए ,मंदिर में पहुंचकर दर्शन के उपरांत सभी लोग बैठ गए,आचार्य महाराज के मुख पर बिखरी मुस्कान और सब और फैली निर्भयता व आत्मीयता देखकर वह डाकुओं का दल चकित हुआ। सभी ने बंदूके उतार कर एक तरफ रख दीं, और आचार्य महाराज की शांत मुद्रा के समक्ष नतमस्तक हो गए *आचार्य महाराज में आशीष देते हुए कहा कि- निर्भय होओ,और सभी लोगों को निर्भर करो,हम यहां 4 माह रहेंगे।चाहो तो सच्चाई के मार्ग पर चल सकते हो। वह सब सुनते रहे और फिर झुक कर विनय भाव से प्रणाम करके धीरे-धीरे लौट गए। उन डाकुओं ने आचार्य महाराज को वचन दिया कि महाराज आप निश्चिंत रहिए हमारे रहते आपके भक्तों की एक सुई भी नहीं गुम सकतीयह हमारा आपसे वादा हैफिर वहां किसी के साथ कोई दुर्घटना नहीं हुई और चातुर्मास में प्रवचन के समय वे डाकू भी अपना वेश बदलकर आचार्य श्री जी के प्रवचन सुनने के लिए आते थे फिर लोगों को नैनागिरी आने में जरा भी भय नहीं लगा, वहां किसी के साथ कोई दुर्घटना भी नहीं हुई, इस प्रकार आचार्य महाराज की छाया में सभी को अभय दान मिला। हमारा सौभाग्य है की ऐसे आचार्य महाराज की चरणों की छत्रच्छाया के नीचे हमें अपना जीवन निर्माण करने का अद्वितीय सौभाग्य मिला। ☀नैनागिरी 1978 ☀ आत्मान्वेषी पुस्तक से साभार ? मुनि क्षमासागर जी महाराज प्रस्तुतिकर्ता - नरेन्द्र जबेरा (सांगानेर) 8005626148 ??????????
  5. ?????????? ☀☀ संस्मरण क्रमांक 7☀☀ ? चेतन धन ? प्रवचन के पूर्व किसी सज्जन ने दान के बारे में अपनी बात रखी।हंसी के तौर पर उनने कहा - बुंदेलखंड के लोग बड़े कंजूस है ये दान नही देते। यह सुनकर आचार्य गुरुदेव मन ही मन मुस्कुराने लगे और मंद मंद मुस्कान उनके चेहरे पर आ गयी , तो सभी सभा मे बैठे श्रद्धालु गण हँसने लगे। आचार्य महाराज ने प्रवचन के समय कहा - अभी एक सज्जन कह रहे थे कि ये बुन्देलखण्ड के लोग धन का त्याग नही करते। देखो ( मंचासीन सभी मुनिराजों की और अंगुली का इशारा करते हुए कहा) बुंदेलखंड वालो ने हमे चेतन धन दिया है । ये इतनी बड़ी दुकान है । आप कह रहे थे की ये दान नही करते । उन्मुक्त हंसी के साथ बोले - ये बुंदेलखंड के श्रावक जड़ का नही चेतन धन का दान करते है । हमारी यहाँ अच्छी दुकान चलती है , इसलिए तो बुंदेलखंड छोड़ा नही जाता है। खूब भगवान की प्रभावना होती है । फिर थोड़ा रुककर बोले कि - भगवान की क्या प्रभावना ? होनहार भगवान को तैयार करना ही भगवान की प्रभावना है इसलिये तो गुरुजी बुंदेलखंड को अपना केंद्र मानते है। शिक्षा - आचार्य गुरुदेव जड़ को महत्व नही देते है। चेतन को धन की संज्ञा देते है । आत्म वैभव ही सच्चा वैभव है और जिन्हें वह प्राप्त है , उन्हें अन्य किसी वैभव की जरूरत नही । आत्म वैभव के प्राप्त होते ही दुनियां के वैभव फीके लगने लगते हैं। ( अतिशय क्षेत्र बीना बारहा जी , उत्तम त्याग धर्म 15-09-2005 ) अनुभूत रास्ता से साभार ? मुनि श्री कुंथुसागर जी प्रस्तुतिकर्ता - नरेन्द्र जबेरा (सांगानेर) 8005626148 ??????????
  6. ??? संस्मरण क्रमांक 6 ??? ?? पेट्रोल ?? किसी सज्जन ने आचार्यश्री जी से शंका व्यक्त करते हुए कहा कि-कुछ लोग व्रत लेकर छोड़ देते है या उनके व्रतों में शिथिलता आ जाती है। ऐसा किस कारण से होता है ? तब आचार्य श्री जी ने कहा कि- मुख्य कारण तो इसमें चारित्र मोहनीय का उदय रहता है दूसरा स्वयं की पुरुषार्थ हीनता भी काम करती है। उन्होंने एक उदाहरण देते हुए समझाया कि जैसे कोई व्यक्ति मोटरसाइकिल शोरूम पर जाकर उत्साह के साथ बढ़िया कम्पनी की एक मोटरसाइकिल बड़े उत्साह के साथ खरीदकर लाता है। उसमें थोड़ा-सा पेट्रोल डला रहता है। जब गाड़ी चलाते-चलाते रिजर्व लग जाता है तो उसमें पुनः पेट्रोल भरना पड़ता है लेकिन इस बात का ज्ञान उस व्यक्ति को नहीं था वह मोटरसाइकिल को शोरूम पर वापिस करने पहुँच जाता है।वह दुकानदार देखता है और कहता है इस गाड़ी में कोई खराबी नहीं है।बस पेट्रोल भरवा लो।ठीक इसी प्रकार जो व्यक्ति साधू संगति,स्वाध्याय, बारह भावना आदि का चिंतन नहीं करता उसके व्रत छूट जाते है या उनमें शिथिलता आ जाती है। एक बात हमेशा याद रखो-व्रत,नियम गाड़ी की तरह होते है और साधू संगति, भावना आदि पेट्रोल का काम करते हैं। इस संस्मरण से हमें शिक्षा मिलती है कि व्रत,नियम लेने के बाद गुरु के पास आते-जाते रहना चाहिए और प्रत्येक व्रत की पाँच-पाँच भावनाओं को हमेशा याद करते रहना चाहिए एवं निरन्तर स्वाध्याय करते रहना चाहिए। दिशा बोध से साभार ??????????? समस्त स्वर्णिम संस्मरण परिवार ???????????⁠⁠⁠⁠
  7. ??????????? ??? संस्मरण क्रमांक 5 ??? ?? आदर्श ग्रहस्थ ?? आचार्यश्रीजी गृहस्थ धर्म की व्याख्या कर रहे थे उन्होंने बताया कि - गृहस्थ रागी जरुर होता है,किंतु वीतरागी का उपासक अवश्य होता है।सच्चा श्रावक हमेशा देव,शास्त्र व गुरु पर समर्पित रहता है। देव पूजा आदि छः आवश्यकों का प्रतिदिन पालन करता है। पर्व के दिनों में एकाशन करता हुआ ब्रह्मचर्य का पालन करता है।जिसके माध्यम से संकल्पी हिंसा होती हो ऐसा व्यापार नहीं करता। उसका आजीविका का साधन न्याय-संगत एवं सात्विक होता है। वह विवाह भी करता है तो वासना की पूर्ति के लिए नहीं बल्कि कुल परम्परा चलाने के लिए करता है। वह संसार कीचड़ में रहता तो है लेकिन रचता-पचता नहीं है।तब मैंने कहा कि-आचार्यश्री जी आज ऐसा गृहस्थ मिलना मुश्किल है और यदि मिल भी जाए तो उसके सारे परिवार का कल्याण हो जाए। तब आचार्य श्री जी ने कहा कि-सच बात तो यह है कि एक आदर्श गृहस्थ उस नाविक की तरह है जो स्वयं तैरते हुए अन्य सभी परिवार रुपी नाव के आश्रित जनों को पार ले जाता है। दिशा बोध से साभार ??????????? समस्त स्वर्णिमसंस्मरण परिवार ???????????
  8. ??????????? ??? संस्मरण क्रमांक 4 ??? आचार्य श्री का एक बहुत अच्छा संस्मरण है कुछ तथाकथित विद्वान यह कहते हुए पाये जाते है कि पंचम काल में यहाँ से किसी को मुक्ति नहीं मिलती इसलिए हम अभी मुनि नहीं बनते बल्कि विदेह क्षेत्र में जाकर मुनि बनेंगे इस प्रश्न का उत्तर देते हुए आचार्य श्री जी ने कहा कि-जो व्यक्ति यहाँ मुनि न बनकर विदेह क्षेत्र में जाकर मुनि बनने की बात करते है,वे ऐसे खिलाड़ी की तरह हैं जो अपने गाँव की पिच पर मैच नहीं खेल पाते एवं कहते है मैं तो विदेश में मैच खेलूंगा या सीधा विश्व कप में भाग लूँगा। ??????????? समस्त स्वर्णिमसंस्मरण परिवार ???????????
  9. ??????????? ??? संस्मरण क्रमांक 3 ??? गुरु होकर भी लघु बने रहना एक बार भोपाल में आचार्य श्री जी के दर्शन करके अत्यंत भावविभोर होकर किसी भक्त ने कह दिया कि- पंचम काल की काया पर चतुर्थ काल की आत्मा। जिसे सुनकर आचार्य श्री जी ने कहा कि- आप कह सही रहे हो , पर एक सुधार करना है कि पंचम काल की तो काया है , पर अनंत काल की आत्मा ये आत्मा अनादि काल से संसार मे भटक रही है , फिर आप कैसे कह सकते है कि चतुर्थ काल की आत्मा लोगो को सुनकर आश्चर्य हुआ और सभी गुरुजी के प्रति समर्पण भाव से भर गए । वास्तव में आचार्य श्री जी हमेशा अपने आप को बहुत ही लघु मानते है , जब भी कोई कार्य करते है , तो कहते है , सब गुरुजी (ज्ञानसागर जी) की कृपा से हो गया। धन्य है ऐसे गुरुजी के काल मे हमे जन्म लेने का अद्वितीय सौभाग्य मिला। ??????????? समस्त स्वर्णिमसंस्मरण परिवार ???????????
  10. ??????????? ??? संस्मरण क्रमांक 2 ??? पूज्यमुनिश्री क्षमासागर जी महाराज का अपने गुरु आचार्यश्री विद्यासागर जी के प्रति अनूठा समर्पण था। उनका जीवन मानो अपने गुरुकी ही धारा में बहता था... साये की तरह आचार्य श्री के पदचिन्हों पर चलते समय उनके जीवन से जुड़े अनेक संस्मरणों को मुनिश्री ने अपनी पुस्तक आत्मान्वेषी में संकलित किया...प्रस्तुत है संस्मरण "आत्मीयता"शीतकाल में सारा संघ अतिशय क्षेत्र बीना-बारहा(देवरी) में साधनारतरहा। आचार्य महाराज के निर्देशानुसार सभी ने खुली दालान में रहकर मूलाचार व समयसार का एक साथ चिन्तन-मनन व अभ्यास किया। आत्म साधना खूब हुई। जनवरी के अंतिम सप्ताह में कोनी जी अतिशय क्षेत्र पर आना हुआ।कोनी जी पहॅुंचकर दो-तीन दिन ही हुए कि मुझे व्याधि ने घेर लिया। पीड़ा असह्य थी, पर मेरी हर वेदना के एकमात्र सहारे आचार्य महाराज थे, सो वेदना के क्षणों मे उनकी और देखकर अपने को सॅंभाल लेता था। एकदिन दोपहर का समय था, वे मूलाचार का स्वाध्याय कराने जाने वाले थे । मेरी पीड़ा देखकर थोड़ा ठहर गए और बोले - तुमने समयासार पढ़ा है, उसे याद करो। आत्मा की शक्ति अनन्त है, इस बात को मत भूलो। देखो, व्याधि तो शरीराश्रित है, अपनी आत्मा में जागृत व स्वस्थ रहो। मूलाचार का स्वाध्याय करके हम अभी आते हैं।एक अकिंचन शिष्य के प्रति उनका इतना सहज और आत्मीय-भाव देखकर मैं भीतर तक भीग गया। शिष्यों पर अनुग्रह करने में कुशल ऐसे धर्माचार्य बारम्बार वंदनीय हैं।- मुनि क्षमासागर (कोनी जी1982) ??????????? समस्त स्वर्णिमसंस्मरण परिवार ???????????
  11. ?????????? ??? संस्मरण क्रमांक 1??? हमने (आ.श्री विद्यासागर जी ने ) एक बार आ.ज्ञानसागर महाराजजी से पूछा था - ' महाराज ! मुझसे धर्म की प्रभावना कैसे बन सकेगी ? तब उनका उत्तर था कि ' आर्षमार्ग में दोष लगा देना अप्रभावना कहलाती है । तुम ऐसी अप्रभावना से बचते रहना, बस प्रभावना हो जाऐगी । ❄❄" मुनि मार्ग सफेद चादर के समान है, उसमें जरा सा दाग लगना अप्रभावनाका कारण है । उनकी यह सीख बड़ी पैनी है । इसलिए मेरा प्रयास यही रहा कि दुनिया कुछ भी कहे या न कहे, मुझे अपने ग्रहण किये हुए व्रतों का परिपालन निर्दोष करना है ।❄❄ धीरे-धीरे सब व्यवस्थित हो जाएगा, आगम सामने रखना । ' आगम चक्खू साहू' कहा है ।अपनी चर्या इस प्रकार बनाकर चलें ताकी दूसरे लोग भी आपके साथ चलने को लालायित हो उठें ।" मूल के ऊपर सोचो और विचार करो " - यह सूत्र उनका मुझे आज भी प्राप्त है । ?‍??‍?तत्वार्थसूत्र जितने बार पढ़ता हूँ उतने बार मुझे बहुत आनंद आता है, और आचार्य महाराज का सूत्र सार्थक होता चला जाता है । भाद्रपद में ही इसका विषय उद्घाटित होता है । बहुत सारी बातें अपने आप होती चली जाती है,यह गुरु महाराज की कृपा है। जितना मूल के ऊपर अध्ययन करेंगे, उतना ही आनन्द आयेगा ।मूलगुण पल जाएँ बहुत यह बड़ी बात है । एक प्रश्न नहीं है, अट्ठाईस प्रश्न है जीवनभर करना है । जैसे प्रतिदिन भोजन करना आवश्यक होता है, वैसे ही भेद - विज्ञान साधक को प्रतिदिन बारह भावनाओं के चिंतन रुपी भोजन को करना भी अति आवश्यक होता है, तभी साधक के कदम साधना पथ पर अबाध गति से बढ़ते जातेहै । और अंतिम मोक्षसुख को पा जाते है ।' मोक्ष जब चाहते हो तो ख्याति क्यों चाहते हो ? प्राकृत में ख्याति को 'खाई' बोलते है ।खाई में तो सर्प, मगरमच्छ सब रहते हैं । जबउसका जीवन पूरा हो जाता है अर्थात उसका नाम भी डूब जाता । इसलिए वे मान को जीवन में नहीं आने देते थे अज्ञानियों से वर्षों प्रशंसा मिलने की अपेक्षा ज्ञानी के द्वारा डाँट मिलना भी श्रेष्ठ है , क्योंकि ज्ञानी की डाँट के द्वारा दिशाबोध प्राप्त हो जाता है और यही डाँट व्यक्ति की दशा परिवर्तन करा देती सै एवं दुर्दशा होने से बचा लेती है ??????????? ? समस्त स्वर्णिमसंस्मरण परिवार ???????????⁠⁠⁠⁠
  12. ?? *भव्य हिन्दी दिवस समारोह 14 सितम्बर *? परम पूज्य दिगंबर जैन आचार्य संत शिरोमणि श्री विद्यासागर जी महाराज के लिए 50वें संयम स्वर्णिम वर्ष 2017-18 के अवसर पर, ? *भव्य हिन्दी दिवस समारोह 14 सितम्बर को मानस भवन शिवपुरी मे पूज्य गुरुदेव अजित सागर जी महाराज के पावन सानिध्य मे मनाया जाएगा ?? ??????????हिन्दी भाषा को पूरे भारत मे बोली जाये ऐसे संकल्प के साथ यह आयोजन होगा ???????????????? ⛳ विषय- "धार्मिक एवं वैज्ञानिक दृष्टि से शाकाहार ही मानवीय आहार" मंगल सान्निध्य- पूज्य मुनि श्री अजितसागर जी महाराज, ऐलक श्री दयासागर जी महाराज एवं ऐलक श्री विवेकानंदसागर जी महाराज ? विशेष-शिवपुरी के हर घर मे शाकाहार की चरचा हो रही है 1350 छात्र छात्राओं ने निबंद प्रतियोगिता मे भाग लिया उन सभी को 14 सितम्बर को पुरुस्कृत किया जायेगा शाकाहार को अपने जीवन मै अपनाये और स्वस्थ्य रहे। विजयी प्रतियोगियों की घोषणा दिनांक 14 सितंबर को हिंदी दिवस पर एक वृहद छात्र सम्मेलन कार्यक्रम में की जाएगी। India नही भारत बोलो। सम्मेलन स्थल- मानस भवन शिवपुरी ? सम्मेलन में सभी निबंध लेखन मे भाग लने वाले छात्र,छात्राओ को सम्मानित किया जायेगा। साथ ही प्रत्येक ग्रुप 9th, 10th, 11th, 12th, से प्रथम, द्वतीय, तृतीय के साथ 10 सांत्वना पुरस्कार भी दिए जाएंगे। ? सभी 1350 छात्र-छात्राये निबंध लेखन मे भाग लेकर शाकाहार मे सहभागी बने। धन्यवाद आयोजक- सकल दिगम्बर जैन समाज शिवपुरी एवं चातुर्मास कमेटी शिवपुरी। ? *नोट- *14 सितम्बर को दोपहर 2 बजे से कार्यक्रम शुरु हो जायेगा सभी छात्र एवम छात्रायें ठीक 2 बजे मानस भवन शिवपुरी अवश्य पधारे ??????? रत्नेश जैन "डिम्पल" 9425429785 माणिक जैन- 9977313309 राजेश जैन-9425137669 ????????
  13. यहाँ ऊपर डाउनलोड लिखा हैं - आप इस लिंक से भी डाउनलोड कर सकते हैं https://vidyasagar.guru/files/file/9-अपराजेय-साधक-आचार्य-श्री-विद्यासागर/?do=download
  14. Please visit the following link https://vidyasagar.guru/quizzes/quiz/1-अपराजेय-साधक-आचार्य-श्री-विद्यासागर-प्रश्नावली-प्रतियोगिता/ Click on green button "take the quiz"
  15. #दीक्षा #दिवस #किशनगढ़, #अजमेर पुज्य गुरुदेव मुनि पुंगव श्री सुधासागर जी महाराज के 35 वें मुनिदीक्षा वर्ष संयम दिवस पर मुनिश्री के पावन चरणों मे कोटि कोटि नमन। इशुरवाड़ा में जन्मे, अरु ईशरी में निर्गृन्थ बने । तिथी तीज थी मंगलकारी मुक्ति के शुभ बीज पडे ।। त्रिलोकपूज्य गुरुविद्यासागर दीक्षा के संस्कार किये । धर्म प्रभावना मुनिवर ने की भक्तों ने जयकार किये ।। अश्विन कृष्ण तृतीया २५४३ गुरु चरणानुरागी: आप एवं हम
  16. वर्तमान के महा पुरुष संत शिरोमणि आचार्यश्री विद्यासागर जी के जीवन चरित्र को आत्मसात करने का स्वर्णिम अवसर, संयम स्वर्ण महोत्सव की प्रस्तुति आचार्य श्री विद्यासागर पत्राचार पाठ्यक्रम पंजीकरण यहाँ करें https://vidyasagar.guru/clubs/3-1 पंजीकरण करने की अंतिम तिथि 30 सितम्बर 2017 पंजीकरण शुल्क मात्र - Rs 200/- इस पाठ्यक्रम का हिस्सा बनकर, हम गुरुदेव के एक अंश को भी जीवन में उतार पाएं तो अद्भुत परिवर्तन निश्चित हैं, क्योकि इस पाठ्यक्रम का हिस्सा बनना भी बहुत बड़ा सौभाग्य हैं | कुछ भव्य प्राणी, मोक्ष मार्ग पर प्रवृत हो जायें , किन्ही के कषयों में कमी आ जाये , कोई के पुण्योदय से कर्मो की निर्जरा हो जाएं कोई निस्वार्थ भाव से लोक कल्याणकारी कार्यो में निष्काम समर्पित हो जाये, उनके उपयोग का शुद्ध –उपयोग हो जाये - तो होगी by असाध्य श्रम की प्रतिष्ठा – सार्थक होगा यह पाठ्यक्रम | इसी भावना से आप अपने परिवार के सभी सदस्यो को पाठ्यक्रम की सदसयता लेने के लिए प्रेरित करें |⁠⁠⁠⁠
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