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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

संयम स्वर्ण महोत्सव

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  1. जब आप लोग परीक्षा देते हैं तो प्रश्न-पत्र में ७-८ प्रश्न रखे जाते हैं उसमें से आपको ५-६ हल करना होता है और नीचे लिखा होता है कि आठवाँ प्रश्न अनिवार्य है। जो अनिवार्य है वह तो करना ही होता है। वरना शेष का कोई महत्व नहीं होता है। इसी प्रकार हमने कहा था मतदान करना अनिवार्य कर देना चाहिए तो सुनने में मिला कि यह व्यावहारिक नहीं है। तो मैं आप लोगों से पूछना चाहता हूँ कि मतदान नहीं देना क्या व्यवहार है? पूरे सदन से कोई नहीं बोल रहा है। इसका मतलब आप समझ रहे हैं। लोकतंत्र के सिद्धान्तों के बारे में आपको सोचना होगा अन्यथा आप उत्तीर्ण हो ही नहीं सकेंगे। जब लोकतंत्र में चुनाव अनिवार्य है तो मतदान भी अनिवार्य होना चाहिए। मतदान करना पॉजिटिव है, लेकिन मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि आप हाँ में ही मतदान करें। आप निषेधात्मक भी मतदान कर सकते हैं। ये लोकतंत्र की नींव है। जब लोकतंत्र अनिवार्य है तो यह मतदान करना भी आवश्यक है। मतदान को गौण करके आप अपराध को स्वीकार कर रहे हैं या इसके पीछे क्या सत्य है; आप जानें, आपका दिल जाने। आप लोगों को मैं कहना चाहता हूँ कि आप सावधानी से नीति का पाठ पढ़िए। तब आपको सही ज्ञान होगा कि लोकतंत्र किसे कहते हैं? मतदान के बिना लोकतंत्र एकमात्र भार है जिसे आपने उठा रखा है। उसका भीतर से आपको परिचय नहीं है। जो जो मतदान कर रहे हैं वो तो फिर भी कथचित् मतदान देकर के कम से कम लोकतंत्र को जीवित रख रहे हैं, किन्तु जिन्होंने मतदान करना बंद कर दिया है वे लोकतंत्र की दृष्टिसे ठीक नहीं माने जा सकते हैं। -३१ जुलाई २०१६, भोपाल
  2. जिस प्रकार से पक्षी के दो पंख होते हैं, वह एक पंख से आसमान में उड़ नहीं सकता उसी प्रकार लोकतंत्र के बहुत विशाल आकाश में उड़ने के लिए पक्ष और विपक्ष दोनों अपेक्षित होते हैं। जब तक चुनाव नहीं होता, तब तक अपने-अपने विचार से लोकतंत्र को आगे बढ़ाने के लिए बोला जाता है। चुनाव के पश्चात् चाहे विधानसभा हो या लोकसभा सभी सदस्य मिल-बैठकर लोकतंत्र को आगे बढ़ाते हैं और प्रजा उनका प्रशासन स्वीकार करती है। वे यह नहीं देखते कि शासन कौन चला रहा है? वे तो शासन के नियंत्रण में अपने जीवन को चलाते हैं। सबके मन में एक मात्र राष्ट्रीय पक्ष दृष्टि में रहता है। यह हमारी भारतीय संस्कृति का पक्ष है कि राजा भी राष्ट्रीय पक्ष को लेकर चलता था। उसी से जनता का उत्थान-कल्याण होता था और वह सुखी रहती थी। आज के लोकतंत्र का भी यही लक्ष्य होना चाहिए। नेताओं को अपना आदर्श लेकर चलना चाहिए और उन्हें एक योग्य आदर्श महापुरुष को अपना आदर्श बनाकर चलना चाहिए। स्वतंत्रता के ७0 साल में जो उन्नति होनी चाहिए थी वह नहीं हो पायी। इसका कारण है २५0 वर्ष तक पराधीनता के कारण हम अपनी सांस्कृतिक गतिविधियों को भूल गए, इतिहास को भुला दिया और विदेशी नीतियों के कारण अपने कर्तव्यों से विमुख हो गए। ध्यान रखें! पक्ष और विपक्ष को छोड़ करके कंधे से कंधे मिलाकर आप किसी बहुत बड़े भार को उठाने का संकल्प करते हैं तो वह भार जो मशीन या यंत्र के द्वारा उठने की क्षमता रखता है वह भार भी आप लोग उठा सकते हैं। इस संस्कार से आप लोग बँध जाएँगे तो अवश्य ही अपने इस लोकतंत्र को विश्व के कोने-कोने तक पहुँचा सकते हैं। भारत का यह लोकतंत्र विश्व में सबसे बड़ा लोकतंत्र है; जो २३ न्याय-नीति के अनुसार चलता है। हमारा यह राष्ट्र एक पवित्र राष्ट्र है यहाँ पर अहिंसा संस्कृति है। प्रत्येक जीव, प्रत्येक द्रव्य स्वतंत्र रहता है; किन्तु किसी के अधीन रखने का जो पुरुषार्थ किया जाता है वह हमारा अज्ञान है। अज्ञान के अंधकार के कारण लोग गुमराह हो जाते हैं। फलस्वरूप मोहित हो करके कर्तव्य-अकर्तव्य को भूल जाते हैं। कोई भी राष्ट्र, धन की अपेक्षा से या भौतिक विकास की अपेक्षा से उन्नत नहीं माना जाता। बल्कि जीवन को उत्कृष्टता की ओर ले जाने वाली संस्कृति जहाँ पर होती है वही राष्ट्र सबसे श्रेष्ठ, धनाढ्य माना जाता है और भारत की संस्कृति इस कार्य में अग्रणी रही है। हमें हमेशा अपने अतीत को भूलना नहीं चाहिए। उसकी शिक्षाओं से ही हमारा भविष्य सुनहरा बन सकता है। अतीत में जो वैभव या संस्कृति थी उस स्वर्णिम इतिहास के पन्ने उठाओ तो ज्ञात होता है कि भारतीय जीवन की शिक्षा क्या थी? वर्तमान में उस संस्कृति की क्षति हो रही है। आज ऐसी शिक्षा प्रणाली चल रही है, जिसमें विज्ञान को मुख्यता देते हुए इतिहास को गायब कर दिया गया है। विदेशी लेखकों ने भी भारत के स्वर्णिम उज्ज्वल इतिहास के बारे में लिखा है किन्तु आज के विद्यार्थी इंजीनियर, चिकित्सक, वकील, न्यायाधीश कोई भी हो उसको जानने की कोशिश नहीं करते क्योंकि आज की शिक्षा ही ऐसी दी जा रही है। विधानसभा हो या संसद सबको अपने कर्तव्य समझने होंगे। वहाँ बैठने मात्र से संस्कृति की रक्षा नहीं होगी। विधानसभा या लोकसभा ये लोक मंदिर हैं। यहाँ अहिंसा के सिद्धान्त पर कार्य किए जाते हैं और प्राणी मात्र के जीवन की रक्षा की गतिविधियाँ होती हैं। ऐसे पवित्र सदन में मात्र देशहित में सोचा जाना चाहिए, व्यक्ति या पार्टी हित में नहीं। अर्थ का सदुपयोग करेंगे तो अवश्य ही परमार्थ आपको मिलेगा। यह सदन अर्थ का अपव्यय करने के लिए नहीं मिला है, किन्तु परमार्थ की खोज के लिए मिला है। अनादिकालीन संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए आप लोगों के सारे के सारे कार्यक्रम संचालित होने चाहिए।अब तो जो कोई भी शिक्षा दीक्षा यहाँ पर दी जाए उसमें यह सब आना चाहिए। स्वर्णिम इतिहास की पूजा नहीं करनी है। उस इतिहास को दिखाने की आवश्यकता है। आपकी विधानसभा (मध्यप्रदेश) में आते समय एक उत्तम स्तंभ देखने को मिला। आप लोगों ने परिचय दिया महाराज यह शहीद स्मारक है। विचार करो, अहिंसा और अहिंसक की रक्षा के लिए सैनिक अपनी आहूति देकर जीवन को सार्थक बनाता है। संस्कृति की रक्षा के लिए किन-किन ने बलिदान नहीं दिया? उनके बलिदान की पूजा मात्र करने से उनका बलिदान सार्थक नहीं हो पायेगा। प्रत्येक नागरिक और प्रत्येक नेता का संकल्प होना चाहिए। देश का निर्माण, संस्कृति की रक्षा करने का और इसके लिए भारतीय शिक्षा पद्धति को लागू करने का, क्योंकि शिक्षा ही एक साधन है जिसके द्वारा संस्कारों का बीजारोपण किया जा सकता है एवं पवित्र आत्माओं की साधना सार्थक की जा सकती है। यदि आप इतिहास को ताजा बनाना चाहते हैं और समृद्धि की ओर आगे बढ़ना चाहते हो तो किसी देश की ओर देखने की आवश्यकता नहीं,केवल 'इण्डिया नहीं भारत' की ओर दृष्टिपात करने की आवश्यकता है। -२८ जुलाई २०१६, म.प्र. विधानसभा, भोपाल में प्रदत्त प्रवचनांश
  3. जिसने गाय से नाता जोडा, रोग ने उससे नाता तोडा। जिसके घर दूध और गाय, उसके घर कभी रोग न आय। गौ उत्पादों का करे प्रयोग, धन बचे मिट जाएँ रोग। जैसा पिये दूध, वैसा होय पूत। गों सेवा को समझकर, जो घर में रखे गाय। गोबर, गौ-मूत्र, घी से वो खूब करेगा आय। खूब करेगा आय, लक्ष्मी खूब आयेगी। सुख समृद्धि मान, प्रतिष्ठा संग लायेगी। गौ सेवा को समझकर, जो फेरे गौ पे हाथ। बिन डॉक्टर की दवा के, रोग छोड दे साथ। रोग छोड दे साथ, जीने का मजा आयेगा। मानव जीवन सफल, भक्ति मुक्ति पायेगा।
  4. सन १९६० तक देश से मांस नियति नही होता था। १९६१ से मांस निर्यात १ करोड रुपयों का हुआ है। एवम् देश में नशाबंदी भी १९६१ से समाप्त की गई है। कर्नाटक राज्य मद्यपान संयम बोर्ड के अध्यक्ष सचानंद हेगडे ने कहा है, की राज्य में शराब से सरकार को वर्ष में १०,००० करोड की आय होती है, वह परोक्षरुप से २२,००० करोड रुपये का नुकसान होता है। २५ लाख लोग मौत के मुँह में जाते है। सडक हादसे और बलात्कार जैसी वारदाते शराब पिए व्यक्तियों द्वारा की जाती है। उन्होंने कहा है की, इसके दुष्परिणाम के बारे में जनजागृती करने के लिए बोर्ड की ओर से राज्य भर में कार्यक्रम चलाए जा रहे है। (राज्यस्थान पत्रिका २४-५-२०१२) देश आजाद हुआ तभी सिर्फ ३०० कत्लखाने थे, वर्तमान में यह संख्या ३६,००० से ज्यादा है। उसमें भी आधुनिक और यांत्रिक कत्लखाने है। इस उद्योग को कृषि उद्योग का दर्जा दिया गया है। इस कारण से केंद्र सरकार और राज्य सरकार अनुदान देती है, और इनकम टेक्स में भी छूट देती है। ज्यादा तर यांत्रिक कत्लखाने, पोल्ट्रीफार्म राजनेता और उनके प्रतिनिधी ही चला रहे है। अरबो रुपये अनुदान के रुप में सरकार ने दिया वह किसी खेत में भी उत्पन्न नहीं होता है। पशु का कत्ल करने के उद्योग को कृषी उत्पादन का दर्जा खत्म करने के लिए सरकार से मांग करनी चाहिए और सरकारद्वारा अनुदान बंद कराना चाहिए और आयकर में छूट देना भी बंद करना चाहिए। भारतीय पशुकल्याण बोर्ड चेन्नई के माध्यम से प्रस्तुत एक हजार जनसंख्या के पीछे सन १९५१ में दूध देनेवाले ४३० पशु थे। सन २००१ में सिर्फ ११० पशु थे। उसके बाद पशुगणना आंकड उपलब्ध नही है। शायद कुछ महिने पहिले वर्तमान पत्र में पढ़ा था की, पशुगणना अभी होनेवाली है। मगर जानकारोंसे मालूम हुआ है की वर्तमान में सिर्फ ४० पशु ही दूध देनेवाले है। इसका मतलब अवैध रुप से भारी संख्या में दूध देनेवाले पशुओं की कत्ल हो रहीं है। इसके अलावा केंद्रीय सांख्यिकी विभाग पशुधन से प्राप्त होनेवाली दुध उत्पादन सन २००७-०८ का प्रतिव्यति प्रतिदिन का रु. ३.७५ (१/४ लीटर) है। दूध, दही, घी, छाछ वगैरे के लिए यह उत्पादन बहुतही कम है। इस कारण से भारी मात्रा में दूध में स्वास्थ्यघातक पदार्थ डिटर्जेंट पावडर और पशुओं की चरबी का मिलावट हो रहा है, यह भी भारत सरकार की रिपोर्ट है। याने अप्रत्यक्ष रुपसे जनता को मांसाहार खिलाया जा रहा है वह अन्य खाद्यपदार्थ में भी मांसाहार का उपयोग भारी मात्रा में होता है। कानूनी ग्रीन मार्क लगा रहता है, मगर वे सिर्फ नंबर लिखते है, वो कोड नंबर मांसाहार का होता है। देश की शाकाहारी जनता को अप्रत्यक्ष रुप में मांसाहार का सेवन करना पडता है। देश में ५० वर्ष में शुद्ध शाकाहारी जनता में मांसाहार और शराब का सेवन करनेवालोंकी संख्या भारी मात्रा में बढ़ गई है। जैसे आहार होता है वैसी बुद्धी होती है। इसके लिए हमारे देश के भ्रष्ट नेता ही जिम्मेदारी है। उनके मांस, मदिरा आहार से भारी मात्रा में महिलाओं का शोषण होता है, परिवार में कलह-क्लेश और तलाक जैसी घटना मांसाहार और शराब से ही हो रहीं है। अंडा शाकाहार है ऐसा झूटा प्रचार करके अंडा खाने की आदत लगाई गई है।
  5. मै ७ रोगों का भोग बना हुआ था १) साइनस २) अस्थमा ३) हाई ब्लड प्रेसर ४) अनिद्रा ५) डायबिटीस (मधुमेह), ६) कभी कभी हृदय कि धडकन थोडी देर के लिए अनियमित हो जाना ७) उदरी (बालों का झड जाना) इन सातों रोगों की हमेशा २१ गोलिया खानी पडती थी। कायम दवाई लेने पर भी एक भी रोग मिटता नहीं था। बीमारी, दवाईयाँ और खर्चसे मैं परेशान हो गया था और थकान महसूस होती थी। मैं ऐलोपेथिक दवाई से तंग आ गया था। अंत: एक वैद्यकी सलाह से नये प्रयोग के रूप में हमेशा सुबह के चाय में देशी गाय का घी दो चम्मच डालकर पीना शुरू कर दिया। मानो चमत्कार हो गया। केवल दो महीनों में इस प्रयोग से मेरें सातों रोग मिट गये। गत चार साल से जिंदगीभर लेने का मेरा दृढ़ संकल्प है। गाय का दही : गाय के दही में पाचन शक्ति में वृद्धि करनेवाला और पेटमें अंतडियों के जन्तुओंको मार डालने वाले असंख्य उपयोगी बेक्टेरिया रहते हैं। अन्तः हमेशा सुबह मे दही निरोगी रखनेवाला एवं अमृत समान पोषक है। मक्खन : हमेशा सुबह मे २५ ते ५० ग्राम गाय के गरम घी या मक्खन में १० ग्राम गुड एवं २ ग्राम सौंठ डालकर पीनेसे पुराना अजीर्ण, वायु आदि मिट । जाते हैं और शरीर में धातुबल की वृद्धि होती है। कडक पेट सर्वथा नरम पड जाता है। मक्खन से बालक की ऊंचाई, आंखोका तेज, शक्ति एवं बुद्धि का विकास होता है। छाछ : पेट खाली होने पर गाय की ताजा छाछ पीने से संग्रहनी आफरा- । हैजा-बवासीर-मरोड आदि मिट जाते हैं और कमजोर बने हुए जठर (होजरी) अंतडी आदिकों पुनः सशक्त बनाता है।
  6. आयुर्वेद के ग्रंथ, विज्ञान और मानव समाज द्वारा किये गये अभ्यासों के आधार पर गायका दूध वात-पित्त आदिको दूर करनेवाला है। और गाय के दूध-घी पाचन प्रक्रिया में सरल, माता के गर्भ से लेकर जीवनभर सबके लिए अमृत समान पोषक है, शक्ति, आरोग्य एवं जीवनदाता है। शरीर में कोलेस्ट्रोल के समतोलन का निर्माता है। इस दूध से मेद में वृद्धि नही होता। यह हृदय को बल देनेवाला है। गाय को खूब पसीना आता है जिससे गाय के दूध मे अशुद्धि हानिकारक तत्व नही रहते। गाय के दूध-घी में रोग प्रतिकारक शक्ति, बुद्धि शक्ति, ओजस एवं तेजस्विता में वृद्धि करनेवाला सुवर्णक्षार रहता है। अत: गाय के दूध-घी से तन्दुरस्त मनुष्य को कफ नहीं होता है। गाय के दूध-घी में आँखों के तेज की वृद्धि करनेवाला या अंधापन को दूर करनेवाला केरोटिन एवं विटामिन-ए अधिक मात्रा में होता है। गोमूत्र पृथ्वी पर की श्रेष्ठ संजीवनी (औषध) है। अनेक रोगों में एक दवाई अर्थात्-गोमूत्र है। गाय के दूध, घी, छाछ, गोमूत्र एवं गोबर में १०० से भी ज्यादा गुण रहते है। और १५० से भी बढ़कर रोगों को मिटाते है। गाय की छाछ अंतडी की शक्ति को बढ़ाकर संग्रहणी के रोग को मिटाकर अमृत समान सिद्ध होती है तथा अत्यंत स्वादिष्ट होती है। गाय का दूध-घी शरीर के भीतर होनेवाले रोग जैसे की हृदय-रोग, डायबिटीस, अशक्ति, वृद्धत्व, श्वास, वात, ऑखों की निर्बलता, जातीय निर्बलता, मानसिक रोगों को मिटानेवाले है। पानी, घास आदिकी कमी, अकाल आदि का सामना करने की कुदरती शक्ति गाय में ज्यादा है। बहुत कम या सूखा खोराक खाने पर भी दूध देती है। गीर, शाहिवाल, थरपाकर, राठी, कांकरेज, ऑगोल गाय बीयात का २००० से ६००० लीटर दूध देती है। भारतीय देशी गाय आखिर तक दोनों समय दूध देती है। प्रेमपूर्ण स्वभाव की वजह से अपने बच्चे को देखने पर या अपने पालक के हाथका स्पर्श होते ही उसके थन दूध से भर जाते है। इसी कारण गायको दोहने के लिए पूरे देश में कोई दवाई, इन्जेक्शन आदि का उपयोग नहीं करना पडता। १० मिनट में गोदोहन की क्रिया हो जाती है। औसत दूध नहीं देने के दिवस ६० से लेकर ९० है। दो दिन के भूखें पेट होने पर भी सब देशी गाय प्रेम से खडी रह कर दूध देती है। कृषि के लिए बैल देती है। देशी गाय अपने पालक को अनन्य प्रेम, मैत्री, करूणा एवं प्रसन्नता देती है। अपने पालक की सब आज्ञाओंका पालन करती है। गायों की दूध देने की नैसर्गिक प्रवृति या प्रक्रिया बारहों महीना जारी रहती है। देशी गाय के दूध में औसन् ४.५ % से लेकर ५ % प्रतिशत घी होता है। गाय का घी सुपाच्य एवं जीवनदाता है। सोचो समझो भारत मां के मुंह में आज मुस्कान नहीं, पशु मांस निर्यात करें यह अपना हिन्दुस्तान नहीं। आचार्य विद्यासागरजी
  7. मुझे ढाई साल से हृदय के स्नायुओंकी पीडा सतत रहा करती थी। मैं ठीक से सो भी नहीं सकता था। अत: अहमदाबादकी अस्पताल में इको टेस्ट द्वारा जाँच करने से पता चला की हृदय की मुख्य तीन नालियाँ ७० प्रतिशत बंध थी तथा कोलेस्टोरल की मात्रा भी अधिक थी। उसके बाद मनसुखभाई सुवागीया की सलाह से मैंने हमेशा सुबह में देशी गाय के दूध की एक कप चाय में एक चम्मच देशी गाय का घी डालकर पीना शुरू कर दिया। नौ महिनें मे बिना किसी दवाई हृदय का दर्द बंद हो गया। उसके उपरांत उसी अस्पताल में जाँच करवाई तो डॉ. वी. पी. पटेलने बताया कि अभी हृदय की तीन नांप्लिया खुल गई है। और सामान्य बन गई है और कोलेस्टोरल का प्रमाण भी सामान्य है। मूल हृदयरोग से मुक्ति मिल गयी है इस बातका प्रमाण तब मिला जब १-११-२००८ के दिन जलक्रांति ट्रस्ट द्वारा आयोजित पाँचवी जल एवं गोरक्षा के लिये गिरनार परिक्रमा में किसी भी तकलीफ बिना १० घंटे में तीन ऊँचे पर्वतो को पार कर मैंने २७ किलोमीटर की परिक्रमा संपन्न की। देशी गाय के घी से ब्लडप्रेशर (बी.पी.) वाले अन्य तीन रोगीयों ने भी हमारे साथ आसानी से इस परिक्रमा को साकार किया। इस से सिद्ध होता है कि देशी गाय के दूध-घी से किसी भी प्रकार के हृदयरोग को मिटाकर नई जीवन-शक्ति प्रदान की जा सकती है। देश के लिए, गाय के दूध-घी के गुणों का एवं परिणामोका अभ्यास करनेकी एवं इनको सामान्य जन तक पहुँचाने की कडी आवश्यकता है। - अतुलभाई डी. पटेल - BAPS साळंगपुर, मो -०९४२९०६५१३४
  8. मेरी ऑख में रत आ जानेकी तकलीफ हो गयी। मैने ऑखो के नामांकित डॉ. गद्रे (राजकोट) एवं नागपाल (अहमदाबाद) की दवाई लगातार तीन साल तक ली। तथापि चिकित्सा एवं दवाईयों लेने पर भी वह तकलीफ बढ़ती ही गई। और मुझे दोनों आँखो में अंधापन संपूर्णतया आ गया | एक वैद्य की सलाह से नाक में हमेशा तीन-तीन बूंद देशी गाय का घी डालना शुरू कर दिया। दो महीनों में आँख कि रोशनी वापस आ गई। आज मैं अखबार पढ़ सकता हूँ। गाय के घी ने मुझे नवजीवन प्रदान कर चमत्कार का सर्जन किया है। - जीवन ठुमर राजकोट, मो -०९९२५१८४६५४
  9. गाय पर प्रेम से हाथ फेरने से दो महिने में उच्च रक्त चाप बिल्कुल ठीक हो जाता है। गाय भी अधिक दूध देने लगती है २५,७४० मनुष्य एक गाय के जीवन भर के दूध से एक बार तृप्त हो सकते है। रासायनिक खाद, किटनाशकों का जहर भोजन के माध्यम से हमारे शरीर में पहुँच जाता है, वह घी से नष्ट होकर शरीर से निकल जाता है गोबर से लीपा हुआ घर गर्मी में ठंडा और ठंड में गर्म रहता है। रेडियो सक्रिय किरणों का दुष्प्रभाव भी नही पडता है। एक रूपये की चीज १० रूपये में बेचने वाले टी.व्ही. पर अपना विज्ञापन दे सकते है। गोपालक नहीं। फिर तो ३० रूपये लागत का दूध ३०० रूपये, १००० रूपये का घी १०,००० रूपये किलो बिकेगा। संस्कृत में गाय को गों कहा जाता है। हिन्दी में प्रेम से गौ, गऊ, गैया, गौमाता भी कहा जाता है। बछडे के साथ गाय को धेनु कहते है और सभी कामनाएँ पूरी होने से कामधेनु कहते है। बछडे को संस्कृत में वत्स कहा जाता है। वत्स से ही बना है वात्सल्य अथति मौं का प्रेम। गाय का दूध बुद्धिवर्धक और सात्विक बात समझने के लिए बल देने वाला होता है।
  10. आज विभिन्न विदेशी कम्पनियों को बिजली बनाने के लिये देश में बुलाया जा रहा है। रासायनिक खाद के आयात और सब्सिडी में अरबों खरबों रूपये खर्च हो रहे है। परन्तु इन सब के स्वदेशी स्त्रोंत पशु और पशु उत्पाद की पूर्ण उपेक्षा की जा रही है, जो सतत् विकास के लिए नुकसानदायक है। कैलिफोर्निया में ९० हजार बुढीं अपंग और बाँझ गायों के गोबर से चलने वाली पावर जनरेटिंग इकाई से १५ मेगावाट विद्युत के अतिरित १६० टन राख खाद एवं ६०० गैलन गौमुत्र कीटनाशक के रूप में प्राप्त हो रहा है। ४५ मिलियन डालर से स्थापित इस परियोजना से प्रति वर्ष २ मिलियन के खर्च पर १० मिलियन डॉलर की प्राप्ति हो रही है। भारत में ‘नाडेप' पद्धति के अनुसार एक गोवंश के वार्षिक गोबर से बनाई गई खाद का मुल्य ३० हजार रूपये से भी अधिक होता है एवं गुणवत्ता भी कहीं अधिक होती है। बायोगैस संयंत्रो द्वारा गावों की विद्युत आपूर्ति गायों से ही हो सकती है।
  11. १. गाय का गर्मागर्म दूध-घी-हल्दी मासपेशियों के दर्द एवं हड़ी की चोट में फायदेमंद होता है। २. चाँदी के प्याले में गाय का दूध जमाकर उसका ताजा दही माँ को खिलाने से संतान विकलाँग और मंदबुद्धी नहीं होगी। ३. आयुर्वेद में घी को आयु कहा गया है। मस्तिष्क १८-२० प्रतिशत चिकनाई से बना है इसकी मात्रा कम हो जाने पर वह कमजोर हो जाता है। इसकी पूर्ति के लिये गाय के घी से सस्ती दूसरी कोई चीज नही है। ४. विश्व प्रसिद्ध गी विज्ञान विशेषज्ञ डॉ. गौरीशंकर जी महेश्वरी कहते थे. ‘गर्म दूध में दो चम्मच गाय का घी डालकर फेंटकर पीने से पाचन शक्ति अच्छी रहती है, पेट साफ रहता है, एसिडिटी, गैस, जोडों के दर्द आदि से छुटकारा मिलता है लेकिन आजकल तो दूध में जो चिकनाई होती है उसे भी निकाल लिया जाता है। ऐसा दूध वात रोगों को बढ़ाता है।” ५, ४०-५० ग्राम गाय का घी खाने से दवाईयाँ नही लेनी पडती, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। ६, ४ बुंद गाय के घी से ९० से अधिक रोगों का उपचार विशेषज्ञ बताते है। ७. हमेशा गाय की घी खाना चाहिये क्योंकि दो-दो बूंद गाय का गुनगुना घी नाक में डालने से सब रोगों में अदभूत लाभ होता है। ध्यान रहे यह घी दही मथकर बनाया हुआ होना चाहिये। ८. गाय का घी नाक में डालने से आज्ञा चक्र को शक्ति मिलती है। इससे योग में जल्दी प्रगति होती है। (घी का तापमान शरीर के तापमान से कुछ अधिक होता है, इसे साँस के साथ खींचे नही) ९. गाय के घी से सिरदर्द, कान दर्द, ऑखो के रोग, सायनस,एलजीं, थकान, बाल झड़ना, तनाव, स्मरण शक्ति आदि रोगों में भी लाभ होता है। १०. प्राणायम करने वाले यदि दूध नही पीयेंगे तो प्राणायाम की गर्मी से उनका शरीर जलने लगेगा। "जीना है तो रोजाना पी, देशी गाय का दूध घी। खाओं दही, तो सब काम सही। लस्सी के गुण अस्सी।" ११. गाय के दूध को नाडी की दुर्बलता नष्ट करने के लिए सर्वश्रेष्ठ कहा गया है। वह वायु, पित्त एवं खून की खराबी में भी गुणकारी है। १२. दुग्ध कल्प से क्षय (टीबी) और कैंसर भी जड से ठीक हो सकते है | १३. गाय के दूध को पीने से थायराईड नहीं होता है। क्योंकि गाय के दूध में थायरॉईड ग्लाण्ड का अंश भी मिलता है, जिससे शरीर में स्फूर्ति तेजी से उत्पन्न होती है। १४. अरब के चिकित्सकों ने दूध के जलियांस को पीने के लिए कहा है। १५. रूस और जर्मनी के चिकित्सकों ने सन १८६७ में औषध के रूप में दूध पीने के लिए लिखा है। १६. अमेरिका के डॉ सी कटेल ने सैंकडो लोगों को दूध से निरोगी बनाया| १७. गाय जब दिनभर धूप में घास चरती है, घूमती फिरती है, तब उसकी मुलायम चमडी के द्वारा बलवान प्राण तत्वों और सूर्य की पराकासनी किरणों को आकृष्ट करके रोगों को नष्ट करने की शती प्राप्त करती है। १८. रॉक फेलर जब मेदे की व्याधि से पीडित हुये तो उन्होने यह घोषणा कि, मैं उस व्यक्ति को १० लाख डॉलर इनाम दूँगा जो मुझे रोग मुक्त कर देगा। अंत मे वह गौ-दुग्ध से ठीक हो गये। १९. गौ दुग्ध निर्बल को सबल तथा रोगी को निरोगी बनाने में सबसे उत्तम है। (मिरकल ऑफ मिल्क, लेखक वर्नर फैक्फैड) २०. गौ दूध सोन्दर का मूल है | COW MILK IS ROOT OF BEAUTY.
  12. जिस प्लॉट पर भवन निर्माण करना हो, वहां पर यदि बछडे वाली गाय को लाकर बांधा जाए तो वहा संभावित वास्तुदोषों का निवारण स्वत: हो जाता है। कार्य निर्विघ्न पूरा होता है और समापन तक आर्थिक बाधाएं नहीं आती। 'समरांगण सूत्रधार' जैसा प्रसिद्ध बृहद् वास्तु ग्रंथ गौरूप में पृथ्वी-ब्रह्मादि के समागम-संवाद से ही आरंभ होता है। वास्तुग्रंथ 'मयमतम् में कहा कि भवन निर्माण का शुभारंभ करने से पूर्व उस भूमि पर ऐसी गाय को लाकर बांधना चाहिए जो सवत्सा या बछडे वाली हो। नवजात बछडे को जब गाय दुलारकर चाटती है तो उसके फेनसे वहां होने वाले समस्त दोषों का निवारण हो जाता है। वही मान्यता वास्तुप्रदीप, अपराजितपृच्छा आदि में भी आई है। महाभारत के अनुशासन पर्व में कहा गया है कि गाय जहाँ बैठकर निर्भयता पूर्वक सांस लेती हैं, उस स्थान के सारे पाप नष्ट हो जाते है।
  13. गाय के घी को आयुवेद में महाऔषधि (दिव्य औषधि) भी कहा जाता है। बाजार में मिलने वाले गाय के घी की विश्वसनीयता नहीं है। देशी गाय जो कूडा-कचरा नहीं खाती है और खेती या जंगल को घास चरने जाती है। उसके दूध को गर्म कर मिट्टी के पात्र में दही जमाया जाता है। उस दही को पुराने तरीके से मिट्टी के बिलौने में लकडी की अशु से बिलौया जाता हो। उससे प्राप्त कच्चे मक्खन को गर्म करने के बाद प्राप्त घी को ही गाय का घी कहा जा सकता है। रात्रि को सोते समय गाय के घी की दो बूंद नाक में डाल कर उसे श्वांस के साथ अपने आप मष्तिक में जाने दें। ऐसा करने पर किसी भी प्रकार का सिरदर्द नही होगा और बुद्धि तेज होती है। शरीर में किसी भी प्रकार की बीमारी नहीं आती है। इस प्रकार के प्रयोग से लकवे और कोमे वाले मरीज तक ठीक हुए है। श्यामा गाय के घी से अनेक दुखी व्यक्तियों को रोगमुक्त होते हुए देखा है। इसे गठिया कुष्ठरोग, जले तथा कटे घाव के दाग, चेहरे की झाँई, नेत्रविकार, जलन, मुँह का फटना आदि पर आश्चर्यजनक लाभ होता है। इसी प्रकार जोडों में दर्द, चोट, सूजन फोडे-फुसी आदि अनेक बिमारियों से पीडित अनेक लोगों का घी से उपचार किया गया, जिसमें आश्चर्यजनक सफलता प्राप्त हुई। एक व्यक्ति की ऑपरेशन के दौरान नाक में नली पडने के कारण आवाज चली गई थी। प्रयास करने के बावजुद १५-२० दिन बाद भी वे कुछ बोल नहीं पा रहे थे। मजबूर होकर वे अपनी बातें कागज पर लिख देते थे,किसी व्यति ने देशी गाय के घी से गले पर मालिस करने की सलाह दी। तीन-चार दिन गले में उत्त घी की मालिश करते ही उनकी आवाज खुलने लगी और ९-१० दिन में वे पहले जैसे बोलने लगे। इस प्रकार गाय के घी से उपचार के हजारों उदाहरणश है।
  14. भारतीय संस्कृति में गाय का स्थान माता के समान ऊँचा है। इसका वैज्ञानिक आधार भी है। कुछ वर्षोंपूर्व कुछ शोधकर्ताओं ने बताया था कि गोवध अनेकों बार भूकम्प का कारण बनता है। अब कुछ परिक्षणों से पता लगा है कि गाय पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र को अनुभव कर सकती है। इसलिए भोजन या विश्राम के समय गाय का शरीर हमेशा उत्तर-दक्षिण दिशा में रहता है। २६ अगस्त के दैनिक 'जनसत्ता' में प्रकाशित एक समाचार के अनुसार नार्थ केरालिना विश्व विद्यालय (अमरीका) के जीव विज्ञानी कैनेथ, लोहमेन ने लगभग आठ हजार गायों पर अनुसंधान के बाद उत्त निष्कर्ष निकाला। प्रयोगों में पाया गया कि कम्पास की सुई की तरह गाय का शरीर भी भोजन-विश्राम के समय ठीक उत्तर-दक्षिण में रहता है। यह भी जानकारी मिली कि गायें पठारों की दिशा में मुँह करके बैठती हैं तथा उष्मा लेने के लिए अपना शरीर सूर्य की ओर रखती है। गौमाता एवं उसकी संतान के रंभाने की आवाज से मनुष्य के अनेक मानसिक रोग स्वयं दूर हो जाते हैं। "देखो शंकर तेरा नन्दी, कत्लखानों में काटा जाता है, राजनीति के अन्धों द्वारा, देश मिटाया जाता है, मंगल पाण्डेय के इतिहास को दुहराया जाता है, और गो माता का खून बहाया जाता है।”
  15. कोई व्यक्ति यदि प्रतिदिन गाय और तुलसी को परिक्रमा करें तो उसके शरीर में ऊर्जा बढ़ जाती है। कुछ लोगों को यह पोंगा पंथ लग सकती है किन्तु वैज्ञानिक यंत्रों द्वारा यह सिद्ध हो चुका है। ‘आभा मण्डल' नापने के यंत्र ‘युनिवर्सल स्केनर' के उत्त परीक्षणों से सिद्ध हुआ है कि गाय, तुलसी, पीपल, सफेद आक के पूजन की परम्परा का एक ठोस वैज्ञानिक आधार है। इनसे ऊर्जा प्रवाहित होती है। देवी देवताओं के चित्रों में हम उनके सिर के पीछे एक चमकीला गोल घेरा देखते है। यह घेरा ही आभामण्डल कहलाता है। इसी प्रकार प्रत्येक मनुष्य का भी आभामंडल होता है। प्रसिद्ध परमाणु वैज्ञानिक डॉ. मानीममूर्ति द्वारा आभामण्डल को नापने के यंत्र 'युनिवर्सल स्केनर' से यह पता चलता है कि किसी व्यक्ति के आभामण्डल का दायरा कितना है। आभा मण्डल का दायरा जितना अधिक होगा, व्यक्ति उतना ही अधिक कार्यक्षम, मानसिक रूप से क्षमतावान व स्वस्थ होगा। इस मापक यंत्र के परीक्षणों से यह भी स्पष्ट हुआ हैं कि कोई व्यति तुलसी के पौधे या गाय की नौ बार परिक्रमा कर लें तो उसके आभा-मण्डल का दायरा बढ़ जाता है। देशी गाय की नौ परिक्रमा करने के बाद जब एक व्यक्ति के आभामंडल को मापा गया तो आश्चर्यजनक रूप से आभा मण्डल के प्रभाव क्षेत्र में बढ़ोतरी पायी गई। जो व्यक्ति अपने लिए रोता है वह स्वाथीं कहलाता है लेकिन जो दूसरों के लिए रोता है वह धर्मात्मा कहलाता है। आचार्य विद्यासागरजी
  16. वेदों, उपनिषदों, महाभारत, भागवत, चरक-सहिंता, आर्यभिषक्र अष्टांगहृदय, भावप्रकाश निघंटू, दीन-ए-इलाही, आईना-ए-अकबरी, कुरान शरीफ जैसे अनगिनत ग्रन्थों तथा विज्ञान और साहित्य में गाय के दूध की महिमा गायी गई है। 'यक्ष ने धर्मराज से प्रश्न किया था कि पृथ्वी पर अमृत कौन-सा है?' धर्मराज ने प्रत्युतर दिया था कि 'दूध'। तथापि यही दूध हमें कितना दुर्लभ हो गया है, यह तो देखो। धृत न भ्रूयते कणें, दधि स्वप्ने न दृश्यते। दुग्धस्य तहिंका वार्ता, तक्रे शक्रस्य दुर्लभम्। अर्थात् घी सुनने भी नहीं आता, दही सपने में भी दिखाई नहीं देता, तो फिर दूध की तो बात ही कैसी? और छाछ तो इन्द्र को भी दुर्लभ हो गई है। दूध जैसा पौष्टिक और अत्यन्त गुण वाला ऐसा अन्य कोई पदार्थ नहीं है। दूध जो मृत्युलोक का अमृत है। सभी दूधों में अपनी माँ का दूध श्रेष्ठ है और माँ का दूध कम पडा। वहाँ से गाय का दूध श्रेष्ठ सिद्ध हुआ है। गाय के दूध के गुण - गाय का दूध धरती पर सर्वोत्तम आहार है। गोदुग्ध मृत्युलोक का अमृत है। मनुष्यों के लिए शक्तिवर्धक, गोदुग्ध जैसा अमृत पदार्थ त्रिभुवन में भी अजन्मा है। गोदूध अत्यन्त स्वादिष्ट, स्निग्ध, कोमल, मधुर, शीतल,वाला, ओज प्रदान करने वाला, देहकांति बढाने वाला, सर्वरोग नाशक अमृत के समान है। आधुनिक मतानुसार गोदुग्ध में विटामिन 'ए' पाया जाता है जो कि अन्य दूध में नहीं। विटामिन 'ए' रोग-प्रतिरोधक है, आँख का तेज बढ़ाता है और बुद्धि को सतर्क रखता है। गोदुग्ध शीतल होने से ऋतुओं के कारण शरीर में बढ़ने वाली गर्मी नियंत्रण में रहती है, वरन् गंभीर रोगों के होने की प्रबल संभावना रहती है। गोदुग्ध जीर्णज्वर, मानसिक रोग, शोथ, मूछ, भ्रम, संग्रहणी, गर्भस्त्राव में हमेशा उपयोगी है। वात-पित्तनाशक है, दमा, कफ, श्वास, खाँसी, प्यास, भूख मिटाने वाला है। गोलारोग, उन्माद, उदर रोगनाशक है। गोदुग्ध मूत्ररोग तथा मदिरा के सेवन से होने वाले मदात्य रोग के लिए लाभकारी है। गोदुग्ध जीवनोपयोगी पदार्थ अत्यन्त श्रेष्ठ रसायन है तथा रसों का आश्रय स्थान है जो कि बहुत पौष्टिक है। ऐलोपैथी चिकित्सानुसार गोदुग्ध में केरोटीन नामक पीला पदार्थ होता है जो आँखों की दृष्टि के तेज को बढ़ाता है। गोदुग्ध के प्रतिदिन सेवन से सभी प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है। गोदुग्ध अग्रिउद्दीपक है, भोजन को पचाने वाला है, स्कन्ध मजबूत करता है। बच्चों की माँसपेशियों और हड़ियों के जोड मजबुत बनाता है। गोदुग्ध क्षय रोगनाशक है। शारीरिक, बौद्धिक श्रम की थकावट से ताजा गोदुग्ध का सेवन राहत दिलाता है। गोदुग्ध के प्रतिदिन सेवन करने वाले व्यक्ति को बुढापा नहीं सताता है। वृद्धावस्था में होने वाली तकलीफों से मुक्ति मिल जाती है। भोजन के वक्त या पूर्व छाती में दर्द या दाह होती है तो भोजन पश्चात गोदुग्ध के सेवन से दाह/दर्द शांत हो जाता है। वे व्यक्ति जो अत्यंत तीखा, खट्टा, कडवा, खारा, दाहजनक, रुखा, गर्मी करने वाले और विपरीत गुणों वाले पदार्थ खाते हों, उनको सायंकाल भोजनोंपरांत गोदुग्ध का सेवन अवश्य करना चाहिए, जिससे हानिकारक भोजन से होने वाली विकृतियों का दुष्प्रभाव समाप्त हो जाए। गोदुग्ध से तुरन्त वीर्य उत्पन्न होता है जबकि अनाज से वीर्य पैदा होने में अनुमानता एक माह का समय लगता है। माँस, अण्डे एवं अन्य तामसी पदार्थों के सेवन से वीर्य का नाश होता है जबकि गोदुग्ध से वृद्धि होती है। लंबी बीमारी से त्रस्त व्यक्ति को नवजीवन मिलता है। गोदुग्ध शरीर में उत्पन्न होने वाले जहर का नाश करता है। एलोपैथी दवाईयों, रासायनिक खाद, कीटनाशक दवाईयों आदि से वायु, जल एवं अन्न के द्वारा शरीर में उत्पन्न होनें वाले जहर को समाप्त करने की क्षमता केवल गोदुग्ध में ही है। आयुर्वेद में गाय के ताजे निकाले दूध को अति उत्तम कहा गया है। गाय के ताजे दूध को ब्रह्ममुहूर्त में प्रात: ४ से ६ बजे के बीच प्रतिदिन नाक के द्वारा पीने से रात्रि अंधकार में भी देख सकते है। गाय के दूध से बनने वाले व्यंजन जैसे-पेढ़े, बफी, मिठाईयाँ इत्यादि पौष्टिक, स्वादिष्ट, बलवर्धक, वीर्यवर्धक एवं शरीर का तेज बढ़ाने वाले होते हैं। गोदुग्ध से बने व्यंजन लंबे समय तक खराब नहीं होते हैं जबकि भैंस एवं अन्य पशुओं के दूध से बनने वाले व्यंजन जल्दी खराब हो जाते है। गोदुग्ध से बने हुए घी को उसी गाय के दूध में मिलाकर पिया जाए तो उससे अधिक पौष्टिकता किसी और से नहीं मिल सकती। नमकीन एवं खड़े पदाथों के साथ दूध का सेवन करने से रतविकार पैदा होता है जो कि विभिन्न प्रकार के चर्मरोग का जन्मदाता है। मीठे पदार्थ, आचार, सब्जियाँ, मदिरा, मूंग, गुड, कन्दमूल, और कैरी एवं अंगूर के अलावा किसी भी फल कें साथ दूध का सेवन नहीं करना चाहिए। गाय को शतावरी खिलाकर, उस गोदुग्ध को क्षय रोग से पीडित व्यक्ति को पिलाने से रोग समाप्त हो जाता है। गोदुग्ध के सेवन से उदर साफ रहता है जबकि भैंस के दूध से कब्ज होती है। गोदुग्ध की तुलना में भैस का दूध पचने में भारी होता है। और चर्बी को बढ़ाने वाला और बुद्धि को मंद करने वाला होता है। बिना गरम किया हुआ दूध ४८ मिनट तक एवं गरम किया हुआ दूध आठ घण्टे तक पीने लायक होता है। बिना गरम किया दूध लंबे समय तक रखने से, क्यों न वह फ्रीज में रखा हुआ हो, उसके गुण समाप्त हो जाते हैं। दूध के रंग में अंतर, स्वाद में बदलाव या दुर्गध आने पर इस प्रकार के दूध का सेवन नुकसानदायक होता है। दूध की पाचकता पाचक तत्वों को बरकरार रखने के लिये एक उबाल तक ही गरम करना चाहिए। गोदुग्ध का पावडर बनाने पर उसके तत्वों का नाश होता है। शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में चंद्रकला में होने वाले परिवर्तन से दूध के गुणों में भी परिवर्तन होता है। गाय का घी शरीर में सभी प्रकार के जहर को नाश करने वाला, घाव को भरने वाला, ताकतवर, हृदय के लिए लाभकारी होता है। ताजा घी अधिक सुगंधित एवं स्वादिष्ट होता है। गोदुग्ध कैन्सर के विषाणुओं को नष्ट करने वाला है। गाय के दूध, घी से चर्बी बढ़ने की बात कहकर, अंग्रेजों द्वारा गोहत्या का यह षडयंत्र रचा हैं। गोदुग्ध सेवन हृदय रोग, कैन्सर, क्षय रोग इत्यादि बीमारियों से निजात दिलाने में सर्वोत्तम सहायक है। आयुर्वेद चिकित्सा में जहाँ कही भी दूध एवं घी के प्रयोग का उल्लेख किया गया है, वह सिर्फ देशी गाय के दूध के संदर्भ में है। गाय के दूध की तुलना में भैंस का दूध अधिक गाढ़ा होता है जिसके पाचन में कठिनाई होती है। भैंस के दूध से आलस्य, प्रमाद, चर्बी आदि की वृद्धि होती है। जर्सी, हॉलिस्टीन, फ़िजियन एवं संकर (विदेशी गाय) गायों के दूध का सेवन हानिकारक है क्योंकि ये नस्लें रोग प्रतिरोधक नहीं होती है। बाजार एवं डेरी से मिलने वाला दूध हानिकारक है। गाय का दूध पीले रंग का है जो कि सोने जैसे गुण परिलक्षित करता है जबकि भैंस का दूध सफेद है जो कि चाँदी के गुणों को दर्शता है। कुरान शरीफ में स्पष्ट उल्लेखित है कि 'गाय का दूध सेवन करो, गाय तुम्हारे लिए खुदा की नियामत है।” हजरत इमाम आजम अम्बुहनीस के द्वारा संग्रहित वचनामृत संग्रह क्रमांक ४८४८ में उल्लेख किया है कि वृद्धावस्था और मौत के अलावा अलाह ने ऐसी कोई बीमारी, औषधि के साथ धरती पर नहीं उतारी है। तुम गाय के दूध का सेवन करने की आदत डालो, गाय अपने दूध में सभी प्रकार की वनस्पतियों का समावेश/संग्रह रखती है। इसी पुस्तक में पैगम्बर साहब का एक और फरमान है कि गोदुग्ध का सेवन प्रतिदिन करो क्योंकि वह औषधि/दवा है। उसका घी रोगों का नाशक है। गाय के माँस से बचो क्योंकि वह मॉस बीमारी का कारण है। शताब्दियों से कथाओं और उपन्यास में वर्णित यौवन के उदगम की खोज मनुष्य कर रहा है पर उस आदर्श यौवन का निकटतम सान्निध्य रखने वाला पदार्थ अब तक मिल रहा है वह है गोदुग्ध। प्राचीन भारत में दूध बेचना और पूत बेचना, दोनों समान माने गये हैं। पूर्व में गाय एवं गाय का दूध बेचना पाप माना जाता था, आज भी भारतवर्ष में कई स्थानों पर गाय एवं गाय का दूध बेचा नहीं बल्कि वह (गाय एवं गाय का दूध) दान स्वरूप दिया जाता है। मेडिकल साइन्स एवं मेडिकल कॉउन्सिल ऑफ इंडिया के सूत्रों का मानना है कि अहीर, भरवाड, रेबारी और यादव जातियों में कभी भी ऑखों की बीमारी या मोतियाबिन्द इत्यादि की शिकायत नहीं मिलती है, क्योंकि ये चारों जातियाँ ग्वाला जाति हैं। इन चारों जातियों के किसी भी व्यक्ति को चश्मा लगना नहीं के बराबर है। वे कई प्रकार के पशुओं का पालन करते है। परन्तु स्वयं दुग्धाहार ही लेते है। जंगलो में गाय चराते एवं भटकते हुए भी पूर्ण रूपेण स्वस्थ रहते हैं, यह गोदुग्ध एवं घी की विशेषता बताने वाला सबसे बडा उदाहरण है। बादशाह अकबर द्वारा स्थापित दीन-ए-इलाही में भी गोदुग्ध को अमृत एवं गाय को अमृता कहा गया है। विश्व प्रसिद्ध व्यायाम विशेषज्ञ मेक फर्डने ने ताकत, समृद्धि एवं स्वस्थता के लिये गोदुग्ध को ही सर्वश्रेष्ठ आहार माना है। मेजिक ऑफ मिल्क नामक अपनी पुस्तक में उन्होंने उल्लेखित किया है कि ताकतवर एवं निरोगी रहने के लिए स्वयं के शरीर के भार से आधे वजन के बराबर दूध पीना चाहिए। दूध के सेवन से उनका शरीर नब्बे वर्ष की उम्र में भी एक युवा के बराबर ताकतवर एवं निरोगी रहा। दूध मानव जाति को मिली एक अमूल्य अनुपम भेंट है। सर्वोत्तम आहार होने के बावजूद गरीबी, अज्ञानता, मिलावट, भ्रष्टाचार आदि कारणों से दूध का जितना प्रयोग करना चाहिए, उतना नहीं कर पाते हैं। एक समय था जब भारत मे दूध की नदियाँ बहती थीं और आज करोडों व्यति ऐसे हैं, जिन्हें गोदुग्ध के दर्शन भी नहीं हो पाते। गोदुग्ध, घी, दही के सेवन से पूर्व में व्यक्ति बुद्धिमान, निरोगी एवं शक्तिमान होते थे, इन सब के अभाव में आज समग्र भारत देश की जनता कुपोषण एवं नाना प्रकार के रोगों से ग्रसित है। आँखों के दर्द होने पर गोदुग्ध की पट्टी रखने से दर्द समाप्त हो जाता है। गोदुग्ध एक कटोरे में लेकर पूरे शरीर पर मॉलिश कर नहाने से अनेक रोगों से मुक्ति मिलती है एवं चमडी गोरी, चमकीली व तेजस्वी बनती है। चाका, गुलाम और कलू हलवान की त्रिपुटी, किनकरसिंह और लीम्बू सिंह, गामा और गम्मू, अहमद बक्श और इमाम बक्श आदि यह सब कुश्ती के पारेगतों ने सन १९४० से भारत की कीर्ति को विश्व में फैलाया। ये पहलवान विश्व में अपराजित थे। ये लोग प्रतिदिन गोदुग्ध व घी का सेवन कर शक्ति प्राप्त करते थे। वैद्य बलदेव प्रसाद पनारा के अनुसार प्रथम विश्व युद्ध के बाद पेरिस में खुराक संबंधी संशोधन के लिए बहुत बडा सम्मेलन हुआ जिसमें ऐसा निर्णय घोषित किया गया कि यदि पर्यात मात्रा में गोदुग्ध मिल जाए तो मानवीय समाज के लिए अन्य किसी भी पौष्टिक द्रव्य (पदार्थ) की आवश्यकता नही रह जाती है क्योंकि वह सम्पूर्ण आहार है। वर्तमान वैज्ञानिक मतानुसार गोदुग्ध में आठ प्रकार के प्रोटीन, इक्कीस प्रकार के एमीनो एसिड, ग्यारह प्रकार के चर्बीयुक्त एसिड, छः प्रकार के विटामिन, पच्चीस प्रकार के खनिज तत्व, आठ प्रकार के किण्वन, दो प्रकार की शर्करा, चार प्रकार के फॉस्फोरस यौगिक और उन्नीस प्रकार के नाईट्रोजन होते है। विटामिन-ए-१, करोटिन डी-ई, टोकोकेराल विटामिन बी-१, बी-२ल राईबोफ्लेविन बी-३, बी-४ तथा विटामिन सी है। खनिजों में कैल्शियम, फॉस्फोरस, लोह, ताँबा, आयोडीन, मैग्रीज, क्लोरीन, सिलिकॉन मिले हुए हैं। एमिनो एसिड में लाइसिन, ट्रिप्टोफेन और हिकीटाईन प्रमुख हैं। दूध जो कार्बोहाईड्रेट हैं उनमे लैक्टोस प्रमुख है जो पाचन तन्त्र को व्यवस्थित रखता है। लेक्टेज इत्यादि एन्जाइम, विटामिन 'ए', 'बी', 'सी’, ‘डी’, ‘ई’ और लेक्ट्रोकोम, क्रियेटीन, यूरिया, क्लोरीन फॉस्फेट, केसिनो मिश्रण इत्यादि मिलकर १०० से भी ज्यादा विशेष पदार्थ हैं। गाय के दूध की थुली (दलिया) खाने से प्रसूता स्त्री को कोई भी रोग नहीं होता है। महाभारत में राजा युधिष्ठिर ने गोदुग्ध को अमृत तुल्य माना है। यक्ष ने जब युधिष्ठिर से पूछा कि पृथ्वी पर अमृत क्या है? धर्मराज ने उत्तर दिया -गोदुग्ध ही पृथ्वीपर एकमात्र अमृत है। ‘अभक्ष्य अनन्तकाल काय विचार' नामक ग्रंथ में तन्दुरूस्ती की दृष्टि से आहार के चार भेद बताये हैं, सर्वोत्तम आहार - गोदुग्ध, मध्यम आहार - अन्न, भैस का कठोर दुग्ध, फल, तेल, घी इत्यादि, अधम आहार – कन्दमूल और अधमाधम आहार-माँस मदिरा इत्यादि है। अलग-अलग प्रकार के नस्लों की गायों के दूध मे अलगअलग प्रकार गुण होते हैं। 'गायो विश्वस्यमातर:/- गाय को विश्व की माता का दर्जा दिया गया है। गोदुग्ध को उतना ही लाभदायी और पाचक माना गया है जितना कि माँ का दूध। बालक के जन्म के पूर्व गर्भावस्था में माता यदि गोदुग्ध का सेवन करे तो हृष्ट-पुष्ट एवं मन मस्तिष्क से परिपूर्ण शक्तिशाली बालक को जन्म देती है। दूध तो है गाय का और दूध, दूध नहीं।पूत तो है गाय का और पूत, पूत नहीं। फल तो है कपास का और फल, फल नहीं।राजा तो है मेघराजा और राजा, राजा नहीं। यज्ञ में गाय के घी का उपयोग करने से वायुमण्डल के कीटाणुओं का नाश होता है और शुद्ध वायुमण्डलीय वातावरण का निर्माण होता है। साथ ही हानिकारक आण्विक किरणों का प्रभाव नष्ट होता है। घी को रोगप्रतिरोधक माना गया है। बीमार पर इसका प्रयोग बीमारी का नाशक है। गोदुग्ध, दही, घी एवं गोबर, मूत्र को पंचगव्य कहा गया है। पंचगव्य के प्रयोग से मानसिक रोग इत्यादि रोगों से मुक्ति मिलती है। इसका नियमित प्रयोग करने से कोई भी बीमारी नहीं होती है। वर्तमान वैज्ञानिकों ने गोदुग्ध को मानव शरीर का संपूर्ण भोजन माना है। विज्ञान के अनुसार गोदुग्ध में मनुष्य के शरीर की समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति करने की क्षमता है। उसमे ४.९% शर्करा, ३.७% घी व ११% नाना प्रकार के एसिड है। ३.६% प्रोटीन है जिसमें ल्युसन, ग्लूकेटिक एसिड, टिरोसीन, अमोनिया, फॉस्फोरस आदि २१ पदार्थ सम्मिलित है। ७.५% पौटेशियम, सोडियम इत्यादि ऐसे १७ रसायन हैं। गोदुग्ध से मानव शरीर में कायाकल्प कर उसके सभी अंगों को पुष्ट बनाकर अन्य अनेक रोगों को नष्ट किया जाता है, कायाकल्प से नया जीवन मिलता है। यूरोप के कई हिस्सों में सैनिकों को पौष्टिक आहार के लिए गोदुग्ध, घी और अन्य सामग्री रोजाना दी जाती है। घर में गाय के घी का दीपक जलाने से वातावरण की अशुद्धि दूर होकर वायुमण्डल शुद्ध एवं पवित्र बनता है। गोदुग्ध में दैवी तत्वों का वास है। गाय के दूध में अधिक से अधिक तेज तत्व है। प्रकृति सात्विक बनती है। व्यक्ति के प्राकृतिक विकार एवं विकृति दूर होती है। असामान्य और विलक्षण बुद्धि आती है। गाय की पाचन शक्ति श्रेष्ठ है। अगर कोई जहरीला पदार्थ खा लेती है तो उसे आसानी से पचा लेती है, फिर भी उसके दूध में जहर का कोई असर नहीं होता है। डॉ. पिपल्स ने गोदुग्ध पर किए गए परिक्षणों में यह भी पाया कि यदि गायें कोई विषैला पदार्थ खा जाती है तो भी उसका प्रभाव उसके दूध में नहीं आता। इसके शरीर में सामान्य विषों को पचा जाने की अदभुत क्षमता है। अन्य दुग्ध के जानवरों के साथ ऐसा नही है। न्यूयार्क की विज्ञान एकेडमी की एक बैठक में अन्य वैज्ञानिकों ने भी डॉ. पिपल्स के इस कथन की पुष्टि की। आधुनिक युग की माताएँ अपने बालकों को बिस्किट, चाकलेट, बबलगम, आईस्क्रीम, शीत पेय आदि खिला-पिलाकर उनके अमूल्य जीवन के साथ खिलवाड कर रही हैं। इसके बजाय वह गोदुग्ध से बने व्यंजन खिलायें तो बालक का शारीरिक, मानसिक विकास उत्तम होगा। गौदुग्ध स्फूर्तिं, तृप्ति, दीप्ति और प्रीति, सात्विकता, सौम्यता, मधुरता, प्रज्ञा और आयुष्य बढ़ाने वाला है। वह पूर्ण रूपेण सर्वमान्य, सर्वप्रिय, अमृततुल्य दुग्धाहार है। गाय का ताजा दूध तृषा, दाह, थकान, मिटाने वाला और निर्बलता में विशेष उपयोग है। गोदुग्ध बुखार, सर्दी, मरोड, चर्मरोग, कफ, कृमि, प्रमाद, निद्रा आदि में तो हितकारी है ही, साथ ही वात रोग, पित्त रोग में भी सहायक है। भारतीय संस्कृति ग्राम संस्कृति है, गो संस्कृति है। गोपालन, गोसंवर्धन, गोरक्षण, गोपूजन और गोदान भारतीयता की पहचान है। कृषि की खोज ने जैसे मानवता को ज्यादा उन्नत किया है वैसे ही गोदुग्ध ने अहिंसा के विकास में अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान दिया है। काली गाय का दूध त्रिदोष शामक और सर्वोत्तम है। शाम को जंगल से चरकर आई गाय का दूध सुबह के दूध से हल्का होता है। सद्बुद्धि प्रदान करने वाला गोदुग्ध तुरन्त शक्ति देने वाले द्रव्यों में भी सर्वश्रष्ठ माना गया है। गोदुग्ध में पी.एच. अम्ल (घनता) और चिकनाहट कम है जो स्वास्थ के लिए लाभदायक है। गोदुग्ध में २१ एमिनो एसिड है जिसमें से ८ स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत ही उपयोगी है। गोदुग्ध में २१ सात्विक तत्वों व पाचक तत्वों की प्रचुरता है। गोदुग्ध में विद्यमान सेरिब्रोसाईडस दिमाग एवं बुद्धि के विकास में सहायक है। केवल गो दुग्ध में ही स्ट्रोनटाईन तत्व है, जो आण्विक विकारों का प्रतिरोधक है। केवल गोदुग्ध मे ही रासायनिक अवशेष नहीं के बराबर है जिससे इसके सेवन से कोई विपरीत, हानिकारक असर नहीं होता है। फॉरमेल विश्वविद्यालय के पशुविज्ञान विशेषज्ञ प्रो. रोनाल्ड गोरायटे ने बताया कि गाय के दुध से रक्त कोशिकाँए रोग निरोधक, प्रोटीन (एम.डी.जी.आई) के कारण नाडी तन्त्र कैन्सर से ग्रस्त होने से बचता है। केन्द्रीय आयुर्वेद अनुसन्धान परिषद के सहायक निदेशक प्रेमकिशोर ने बतलाया कि गोदुग्ध, छाछ आदि से अल्सर, कैन्सर आदि रोगों का इलाज किया जा सकता है। गोदुग्ध से कोलेस्ट्रोल की वृद्धि नहीं होती है, बल्कि हृदय एवं रत के प्रवाह में आने वाली बाधाओं को दूर करता हैं। गाय का गरमा गरम दूध पीने से कफ एवं गरम करने के पश्चात ठण्डा करके पिने से पित्त का नाश होता है। गाय के दूध में उससे आधी मात्रा में पानी मिलाकर वह पानी उड जाए तब तक तपाकर पीने से कच्चे दूध से पचने में ज्यादा हल्का होता है। जो गाय रात को घर पर बँधती है, उसका दूध सुबह अधिक ठण्डा और पचने में भारी होता है, परन्तु जो गाय रात को भी जंगलो में चरने जाती है उसका दूध पचने में हलका व सहायक होता है। धर्मग्रंथो के अनुसार गोदुग्ध, घी, दही, शकर और वर्षा के शुद्ध जल से पंचामृत बनाया जाता है। भगवान की प्रतिमा का प्रक्षालन भी इसी पंचामृत के द्वारा किया जाता है। गाय का दूध अपना सर्वोत्तम दुग्धाहार है। गोदुग्ध से वजन बढ़ता है। गाय का तुरन्त निकाला हुआ ताजा दूध, जितना पचे उतना ही प्रतिदिन पीना चाहिए। दुध के साथ दही, प्याज, लहसुन, उडद, गुड, मूली इत्यादि नहीं खाना चाहिए। साथ ही कोई फल, मॉस, एवं खटाई भी नहीं खाना चाहिए। भारतीय चिकित्सा परिषद ने न्युनतम २७५ ग्राम दूध की सिफारिश की है। इसमे कम दूध मिलने पर कुपोषण होता है और अनेक रोग होते है। मानरीगुटिका और मुसलीपाक खाने के बाद गोदुग्ध के सेवन से धातु कमजोरी, नपुंसकता आदि विकार दूर होते है। इसके नियमित सेवन से अपूर्व ताकत एवं वीर्य की वृद्धि होती है। अन्य धातु विकार नष्ट करने में उपयोगी है। अमेरिका के कृषि विभाग द्वारा प्रकाशित पुस्तक (गोमाता एक आश्चर्यजनक रसायनशाला है) समस्त दुग्धधारी जीवों में गोमाता ही एक ऐसी जीव है, जिसकी आंत १८० फुट लंबी होती है। इसकी विशेषता यह है कि जो चारा ग्रहण करती है उससे जो दुध मे कैरोटीन नामक पदार्थ बनता है, वह भैंस के दूध से दस गुना अधिक होता है। भारतीय औषधि विज्ञान परिषद के अनुसार गाय के दूध में विटामिन ‘ए’ १०० आई.यू (इन्टरनेशनल युनिट) भैंस के दूध में विटामिन 'ए' १४० आई.यू, दूध गरम करने या तपाने के बाद (मावा बनाने तक) मावे में विटामिन ‘ए’ ४०० आई.यू भैस के दूध के मावे में विटामिन कुछ भी नहीं, इसलिये पेडा, गाय के दूध से ही बनाया जाना चाहिए। गाय के घी में विटामिन "ए" 99oo आई.यू भैस के घी में विटामिन "ए” 900 आई.यू होती है। (नैडेप काका) जलोदर के रोगी को पानी पीना सख्त मना है वह सिर्फ गाय का दूध पीकर रहे तो रोग में सुधार होता है। गाय की रीढ़ में 'सूर्यकेतु' नामक नाडी होती है जो सूर्य के प्रकाश में जाग्रत होती है, इसलिए गाय सूर्य के प्रकाश में रहना पसंद करती हैं, भैंस छाया में रहती है। सूर्यकेतु नाडी के जागृत होने से स्वर्ण के रंग का वह एक पदार्थ छोडती है। इसी कारण गाय के दूध का रंग पीला होता है और घी ‘स्वर्ण' के रंग का होता है जो सर्वरोगनाशक और विष विनाशक होता है। अमेरिकन पत्र 'फिजीकल कल्चर' के संपादक और प्रसिद्ध दुग्धाहार चिकित्सक बनार मेफेडर का कथन है कि इस जगत में गाय के दूध से बने मक्खन के समान सर्वगुणसम्पन्न पौष्टिक खाद्य पदार्थ कोई दुसरा नहीं है। किशमिश और मनुका के पाँच-पाँच दाने गोदुग्ध में ओटकर रोगी को सुबह-सुबह पिला दें। मलेरिया पुराना हो तो १० ग्राम सौंठ चुर्ण भी डाल दें, मलेरिया भाग जाएगा एवं यदि ४०० ग्राम दूध को उबाला जावे और ऑकडे (आंक) पौधे की अंगूठे जितनी मोठी हिलाने योग्य हरी लकडी से दूध को हिलाया जाता रहे तो कुछ समय में दूध फट जाएगा। उस फटे दुध को इतने समय तक हिलावे कि पानी का संपूर्ण अंश समाप्त हो जावे और खोवा (मावा) तैयार हो जावे, तब उसमें शकर उचित मात्रा में मिलाकर खाने योग्य ठंडा कर रोगी को बुखार उतर जाने पर खिलाएँ। मलेरिया से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जावेगा। गाय का संदर्भ भारतीय नस्ल से है जिसको कंधा और गलकंबल है) भारतीय नस्ल की गाय के एक सेंटीमिटर स्केअर में रोमकूप (रोमग्रंथि) १६०० होती है, जबकि विदेशी गाय में ६०० है। धुप में देशी गाय रह सकती है, विदेशी गाय नहीं। देशी गाय में दूध के रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। अर्थात् उपार्जित धन का एक उचित भाग दान किए बिना केवल अपने लिए उपभोग पाप का भोग है। इस पाप से मुक्ति के लिए गाय की सेवा (गोपालन, गोसरंक्षण, गोसवंर्धन) सर्वोत्कृष्ट सहज सर्वसुलभ साधन है। गाय का दूध स्वादिष्ट, रुचिकर, स्निग्ध, शक्तिप्रद, अति पथ्य, कांतिकारक, बुद्धी प्रज्ञा, मेधा, कफ, तुष्टि, पुष्टि, वीर्य और शुक्र की वृद्धि करने वाला, वयस्थापक, रसायन, गुरू, पुसत्वप्रद, मीठा और वात, मूत्रकच्छ, गुल्म, अर्श, प्रवाहिका, पांडू, शूल, उदर अम्लपित्त, क्षयरोग, अतिश्रम, विषमाग्नि, गर्भपात, योनिरोग, नेत्ररोग और वातरोग का नाश करता है। काली गाय का दूध तो खास करके वात का नाश करता है; लाल और चितकबरी की गाय का दूध खासतौर से वातनाशक है। पीली गाय का दूध वातपित्त का नाश करता है। श्वेत गाय का दूध विशेष करके कफप्रद है। शिशु बछडे की माता का दूध तीनों दोष (वात, पित, कफ) का नाशकर्ता है; खली और सनी खानेवाली गाय का दूध कफप्रद है ओर कडबा घास आदि खाने वाली गाय का दूध सभी रोगों पर लाभप्रद है। जवान गाय का दूध मधुर, रसायन और त्रिदोषनाशक है। दिव्य शक्ति वाला बचा पाना आसान है - गोमाता की कृपा से। गर्भ धारण करने वाली महिला को चाँदी की कटोरी में देशी गाय के दूध का दही जमाकर खिलाएँ। १ माह तक दिव्य शक्ति वाला बालक जन्म लेगा। साँच कहूँजग मारन धावे, झूटा जगपतियाय। गली-गली गोरस बिके, मदिरा बैठ बिकायां। जननी जनकर दूध पिलाती, केवल सालछमाही भर गोमाता पय सुधा पिलाती, रक्षा करती जीवन भर माता रुद्राणां दुहिता वसूनांस्वसादित्यानां अमृतस्य नाभिः । - ऋग्वेद १०१/१५ अर्थात् - गाय रूद्रों की माता, वसुओं की पुत्री और आदित्यों की भगिनी है और इसकी नाभि में अमृत है। सर्वेदेवाः स्थिता देहे सर्वदेवमयी हिगौः। -विष्ण धर्मोत्तर गाय के शरीर में सभी देवताओं का निवास है, अत: गाय सर्वदेवमयी है। यज्ञ शिष्टासिन सन्तोमुच्चन्ते सर्वं किल्विशैः। भुञ्जन्ते ते त्वद्यं पापा ये पञ्चयन्ति आत्मकारणात। गोदुग्ध - आयुर्वेद में वर्णित श्रीराष्टक (आठ प्रकार के दुध) में गोदुग्ध सर्वप्रथम और सर्वश्रेष्ठ है। अष्ट दुग्ध इस प्रकार है - गव्यं महिषमानंच कारभं स्त्रैणमाविकम्। ऐभ मैकशफं चेति क्षीरमष्टीवर्धमतम्। — योग रत्नाकर दुग्धगुणा: /४ केवलदुग्ध शब्द का जहाँ भी उल्लेख आया हो वहाँ गोदुग्ध ही मानना चाहिए ऐसा भिशम्बर मानते हैं। "गोक्षीरं मधुरं शीतं गुरू स्निग्धं रसायनम्। बृहणं स्तन्य कृद्वह्यं जीवनं वातपित्तनुत।" - योग रत्नाकर–दुग्धगुणा:/३ ‘ठहर गया विद्यासागर नर्मदा के तीर स्वयं नर्मदा बोल उठी ये इस युग के महावीर दूध की नदियां लोप हो गई धरा खून से लाल-लाल, कृष्ण कन्हैया की गैया भी, हो गई आज यहां हलाल, पशु मांस खाने वाला क्या, इंसानों को खायेगा?' आचार्य विद्यासागरजी
  17. आंगनमें कुलीन शुद्ध देशी गाय। उत्तम नंदी से गोसंवर्धन। गाय के दूध-घी-छाछ आधारित आहार। गाय के गोबर, गोमूत्र, बैल आधारित कृषि। जल सम्पन्न गाँव। गो माता का वर्णसंकरण न करें। आवारा एवं मिश्र वर्णसंकरण जाति के सांढो से मुक्त गाँव। गाय के दूध-घी की शुद्धता, सही गोधर्म हर एक गाँव में गोरक्षा केन्द्र। गोचर रक्षा। गाय आधारित उद्योग। नई पीढ़ी को गोवंश, गोपालन, गोसंवर्धन शिक्षा। अकाल मे उत्तम देशी गोवंश की रक्षा करे। गोपालन का स्वावलम्बन। इन १४ सिद्धांतों से ही हम भारत के देशी गोवंश की आबादी और पुन:स्थापन कर सकेंगे। एक शोध में यह पाया कि जहरीला पदार्थ खाने पर गाय के दूध में कोई फर्क नहीं पडता हैं क्योंकि गाय का मांस उस जहरीले पदार्थ को सोख लेता हैं जबकि भैंस कोई जहरीली वस्तु खा जाए तो उसे भैंस का मांस सोख नहीं पाता है इसलिए दूध में उसका असर रह जाता हैं।
  18. मद्रास में कॉग्रेस का २६ वाँ अधिवेशन चल रहा था। गांधीजी श्रीवास आयंगर के मकान में ठहरे थे। वे उन दिनों किसी कारणवश राजनीति से अलग रह रहे थे। शाम के समय गांधीजी आगंतुकों से सामान्य बातचीत कर रहे थे। तभी श्री आयंगर एक मसौदा उनके सामने लेकर आए, जिसमें हिंदू-मुस्लिम समझौते की बात थी। गांधीजी ने उसे सरसरी तौर पर देखते हुए कहा - भाई, इसमें क्या देखना है? किसी भी शर्त पर हिंदू-मुस्लिम समझौता हो सके तो वह मुझे मंजूर ही होगा। श्री आयंगर मसौदा लेकर आगे की प्रक्रिया पूर्ण करने चले गए और गांधीजी शाम की प्रार्थना के बाद सो गए। प्रात: उठते ही गांधीजी ने तत्काल महादेव देसाई और काका कालेलकर को जगाया और बोले, ‘मुझसे रात में बडी गलती हो गई। मैंने मसौदे पर बिना विचारे ही कह दिया कि ठीक है। उसमें मुस्लिमों को गोवध करने की आम इजाजत दी गई है। भला यह मुझसे कैसे बदश्त होगा। मैं तो स्वराज्य के लिए भी गो रक्षा का आदर्श नहीं छोड सकता। अत: उन लोगों को जाकर तुरंत कह आओ कि यह प्रस्ताव मुझे मान्य नहीं है। परिणाम चाहे जो हो, पर मैं बेचारी गायों का जीवन संकट में नहीं डाल सकता। वह प्रस्ताव तत्काल अस्वीकृत कर दिया गया।' गांधीजी की यह जीवदया उन लोगों के लिए अनुकरणीय है, जो अपने स्वार्थ के लिए निरीह जीवों के प्राण लेने में तनिक भी नहीं हिचकते। वस्तुत: मूक प्राणियों के प्रति संवेदना रख हम स्वयं को सच्चा मानव ही सिद्ध करते हैं।
  19. संस्कृत भाषा में गो शब्द के अर्थ माता, गाय और पृथ्वी है। - पहला अर्थ गाय, दूसरा पृथ्वी, तीसरा माता। और मातृ शब्द का पहला अर्थ है माँ, फिर गाय और फिर पृथ्वी अर्थात् मातृ और गो शब्द, दोनों ही, गाय और पृथ्वी के समानार्थी शब्द है। पाणिनि के व्याकरण में 'सुसंपन्नोऽयं देशो भाति"-यह देश सुसंपन्न दिखता है कैसे? 'गोमानथ अयम्' अर्थात् यहां बहुत गायें दीखती हैं, इसलिये यह देश संपन्न दिखता है। व्याकरण में 'मान् प्रत्यय समझाने के लिए यह वाक्य आता है। 'मान् प्रत्यय जहां प्रचुरता होती है वहाँ उपयोग होता है। बाहुल्य प्रकट करने के लिए इस्तेमाल होता है। गोमान् यानी एक-दो गाये नहीं, लाखो गाये जहां है वह। यहा लाखों गाये है इसलिये यह देश सुसंपन्न दिखता है। पाणिनि ने व्याकरण समझाने के लिए यह इस्तेमाल किया और आज हिंदुस्तान में लाखों गाये कटती है। ‘‘गां मा हिंसीरदिति विराजम्" – यजुर्वेद (१३-४२) अर्थात् - तेजस्वी अदिति (अबध्य गाय है - उसे मत मारो. ‘‘घृतं दुहानामदितिं जनाय मा हिंसीः" – यजुर्वेद (१३-४९) अर्थात् - गो अवध्य है और वह लोगों को घृत देती है, इसलिये गाय की हिंसा मत करो। ‘‘गोस्तु मात्रा न विद्यते’’ - यजुर्वेद (३३-४८) अर्थात् - गाय की तलुना किसी से नहीं हो सकती। वह अतुलनीय, अनुपम एवं सर्वोत्तम हैं। 'सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनंदन:' - उपनिषद शब्द संस्कृत में स्त्रीलिंगी है, जैसे परिषद, उपनिषद यें कहा है? गाय है। सारी उपनिषद गाये है। उपनिषद में से, उस गाय में से दोहने कर लिया कृष्णजी। ‘‘न नः स समितिं गच्छेद्यश्च नो निर्वपेत् कृषिम्।" (उद्योग पर्व २६-३१) जो किसान के व्यवसाय को नहीं जानते, वे उसका सचा हितअहित भी नहीं पहचान सकते। अतएव भारतीय संस्कृति में कृषि-महिमा और गो-महिमा दोनो पर्यायवाची है। कृषि से गो-रक्षा और गो-रक्षा से कृषि का संवर्धन स्वयंसिद्ध हैं। गौ सब प्रकार की अर्थ-सिद्धियों का द्वार है, इस तत्व को भारतीय संस्कृति में गों के अनेक प्रतीकों से पलवित किया गया है। उदाहरण के लिये 'गी' शब्द के कई अर्थ हैं। भूमि गो है, विद्या और वाणी गो है, शरीर में इन्द्रियाँ गी है और विराट विश्व में सूर्य और चन्द्र की रश्मियाँ गौ हैं। विश्व-रचना में प्रजापति की जो आद्य-शक्ति है वह गी हैं। इस प्रकार गों के प्रतीक द्वाराजीवन की बहुमुखी-सम्यकता को प्रकट किया गया। जंगल में मेघो के जल से जो तृण उत्पन्न होते है, वे जल का ही रूप है। उस नीररूपी घास को खाकर गों सायंकाल जब घर लौटती है, तो उसके थन दूध से भर जाते है। नीर का क्षीर में परिवर्तन, यही गौ की दिव्य महिमा है। पर ऐसा तभी होता है, जब गर्भधारण करके वह बच्चे को जन्म देती है। उसके हृदय में जो माता का स्नेह उमडता है वही जल में घुलकर उसे दूध बना देता है। सचमुच माता के हृदय की यह रासायनिक शक्ति प्रकृति का अंतरंग रहस्य है। मानव की माता में अथवा संसार की सब माताओं के हृदय में यही स्नेहतत्व भरा होता हैं। दोनों मे ही उत्पादन या नये-नये प्रजनन की अपरिमित-क्षमता पायी जाती है। गों की वंश वृद्धि अत्यंत विपुल होती हैं। प्राणिनां रक्षणं धर्मः अधर्मः प्राणिनां वधः। तस्माद्धर्म सुविज्ञाय, कुर्वन्तु प्राणरक्षणाम्। प्राणियों के प्राण की रक्षा करना (मरते को बचाना) धर्म है, और प्राणियों के प्राणों का विनाश करणा (हिंसा करना) अधर्म है, पाप है। इस प्रकार धर्म और अधर्म को जानकर प्रत्येक प्राणी के प्राणों की रक्षा करें। एकतः कांचनो मेरूः कृत्स्ना चैव वसुन्धरा। जीवस्य जीवितं चैवन तारतुल्य युधिष्ठिर। भीष्म पितामह युधिष्ठिर संबोधित कर रहे है, एक और तो मेरू पर्वत के बरोबर सोना और समस्त पृथ्वी दान के लिए रखी जावे और दूसरी और एक जीव का जीवन, इन दोनों की तुलना नही हो सकती। पर्वत बराबर सोना और समस्त पृथ्वी का दान इतना महत्वशाली नही है, जितना किसी के प्राणों की रक्षा। देवी पुराण – देवी भत लोगों से कहती है कि प्राणियों कि हिंसा करनेसे बकरे वगेरे की बली देने से मेरी पूजा होती है। ऐसा मानकर जो लोग हिंसा करते है, मुझे बली चढ़ाते है, वे लोग मुझे भी बुरी बनाते है। अत: इस दोष की वजह से उन्हें नरक जाना पडेगा। कुरआने हकीम कुरआने हकीम की सुरत अलहज ३२:२२ में स्पष्ट किया गया है की ‘ना तो पशुओं का मांस और ना ही उनका खून ईश्वर तक पहुंचता है। ईश्वर तक पहुंचता है तो सिर्फ मनुष्य का त्याग और रहम माने दया।”
  20. * ६ सितंबर १९२९ को बेलगांव काँग्रेस के समय श्री चौंडे महाराज के आग्रहपर गोरक्षा संमेलन की अध्यक्षता म. गांधीजीने की। तब से वे प्रत्यक्ष गोसेवा के कार्य में आये। श्री. जमनालालजी बजाज द्वारा वध में १ फरवरी १९४२ को गोसेवा सम्मेलन आयोजित किया गया था। उसका उदघाटन म. गांधीजीने किया था व अध्यक्षता विनोबाजी ने की थी। तब से विनोबाजी का सीधा संबंध गोसेवा से है। * विनोबाजी ने संकल्प किया कि पूरे भारत मे गोवध-बंदी करने का निश्चय शासन की ओर से जाहिर न हुआ तो वे ११ सितंबर १९७६ से आमरण उपवास करेंगे। इस 'गोसेवा महाव्रत' का प्रचार घर-घर, गांव-गांव जाकर खुले आम किया जाये। * जब हम स्वराज्य प्राप्त कर लेंगे, पाँच मिनिट में एक कलम से गोवध-निषेध कानून पास कर देंगे। - लोकमान्य तिलक * जब तक गोवध होता है, तब तक मुझे ऐसा लगता है कि मेरा खुद का ही वध हो रहा है। मेरे सारे प्रयत्न गोवध रोकने के लिए ही है। - म. गांधी * गोरक्षा मुझे मनुष्य के सारे विकासक्रम में सब से अलौकिक चीज मालूम हुई है। गाय का अर्थ इन्सान के नीचे की सारी मूरू दुनिया करता हूँ। इस में गाय के बहाने इस तत्वद्वारा मनुष्य को सभी चेतन सृष्टि के साथ आत्मीयता करने का प्रयत्न है | - म. गांधी * गाय की रक्षा करो, सबकी रक्षा हो जायेगी। - म. गांधी भारतीय संस्कृति में गाय (भारतीय धर्म मीमांसा सन १९७९, पृथ्वी प्रकाशन, वाराणसी) - डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल भारतीय संस्कृत में गो-तत्व की बडी महिमा है। जिसे गौ-पशु को हम लोक में प्रत्यक्ष देखते है। वह दूध देनेवाले प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ है। दूध अमृत-भोजन है। वह जीवनभर मनुष्य की देह को सींचता है। भारतीय जलवायु में गोरस-युक्त भोजन ही मानव-शरीर का सर्वोत्तम पोषक है। वह वह स्थूल अन्न के साथ मिलकर भोजन में पोषक-तत्वोंकी संपूर्णता प्रदान करता है। पाँच-सहस्त्र-वर्षों के राष्ट्रीय-अनुभव का निचोड यही है कि घी, दूध, दही, मड़ा भारत की शीतोष्ण-जलवायु में आयुष्य, बल, बुद्धि और खोज की वृद्धि के लिए साक्षात अमृत है। लोकोक्ति यहाँ तक कहती है की 'तक्र भेजोगुण है, वह इंद्र के राजसी भोजन में भी नही है। (तक्र शक्रस्य दुर्लभम्) विदुर का कथन है कि, जिसके पास गो है, उसने भोजन में उत्तम रस का आनंद पा लिया (समाशा गोमाताजिता उद्योग पर्व ३४-३५) स्थूल-दृष्टि से कृषि के लिये भी गों का अनंत उपकार है। एक और गों के जाए बछडे हल खींचकर खेतो को कृषि के लिये तैयार करते है, दूसरी ओर गों का गोबर भूमि की उर्वरा-शक्ति को बढाने के लिए श्रेष्ठ-खाद है, जो सड-फूलकर रश्मियों के प्रकाश और जीवाणुओं से उसे भर देती है। 'कृषि यहाँ का राष्ट्रीय व्यवसाय है। कृषि से ही भारत में जीवन की सत्ता है? जैसा कहा है – राज्ञां सत्वे ह्यसत्वे वा, विरोषो नोपलक्ष्यते। कृषी बलविनाशेतु, जायते जगतो विपत्। अर्थात् - राजाओं के उलट-फेर से कोई विशेष-घटना नहीं घटती। पर यदि किसान का हास होता है, तो सारे जनसमुदाय मे विपत्ति छा जाती है। व्यास जी ने तो यहाँ तक कहा है कि जो किसान नही हैं, या किसानी का व्यापार नही जानता, उसे उस राष्ट्र की समिति का सदस्य नही होना चाहिए - दुग्ध गीतामृतं महत् गीतारूपी सुंदर दूध श्री कृष्णाजीने पिलाया गायें कौनसी थी? उषनिषदः उन गायोंसे कृष्णजीने यह उत्तम गीतामृतम् पिलाया। ऐसी भाषा हम कहीं देखते नहीं। उपलब्ध साहित्य के आधार पर यह निभ्रान्त रूप से कहा जा सकता है कि वर्णित आध्यात्मिक साधना के प्रथम प्रवर्तक जैनियों के प्रथम तीर्थकर श्री ऋषभनाथ है, जिन्हे आदि ब्रह्मा कहा गया है और श्रीमद भागवत में जिनका निम्न शब्दों मे चित्रांकन हुआ है - ‘इति हस्म सकलवेदलोकदेवब्राह्मणगवां परमगुरोर्भगवत: ऋषभाख्यस्य विशुद्धचरितमीरितं पुंसो समस्त दूरचरितानि हरणाम्।' इस तरह (हे परीक्षित) सम्पूर्ण वेद, लोक, देव, ब्राह्मण और गो के परमगुरू भगवान ऋषभदेव का मह विशुद्ध चरित्र मैंने तुम्हें सुनाया। यह मनुष्यों के समस्त पापों को हरनेवाला हैं। महाभारत में कहा गया है गोधन राष्ट्र समृद्ध करता है, 'गोधनं राष्ट्रवर्धनम्' गावः पवित्रा मांगल्य गोषु लोकाः प्रतिष्ठिता। गवां श्वासात पवित्रा भू स्पर्शनात किल्वीष क्षमा:।। - अग्रिपुराण
  21. आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के आशीर्वाद से बनी ‘शांतिधारा दुग्ध योजना का उद्देश्य आर्थिक नहीं, अहिंसा प्रेमियों के लिए शुद्ध सात्विक दूध, घी आदि उपलब्ध करवाना है। बीना (बारहा) जिला सागर (म.प्र.) के पास लगभग १०० एकड जमीन में प्लांट की शुरूआत होगी जिसमें ५०,००० लीटर दूध एकत्रित करने का लक्ष्य है। जो पाश्चुरीकृत दूध होगा इसमें १५० करोड की लागत लगेगी। यह'अहिंसक बैंक' का भी कार्य करेगा। २०००० किसानों को जो मद्य, मधु, मांस त्यागी अहिंसक होंगे उनको गाय देकर उनसे प्रतिदिन दूध का पैसा देकर दूध का कलेक्शन होगा श्रावक २१०००/- रू. में एक गाय विनिमय के हिसाब से दान देकर इसमें शेअर करेंगे। सभी उत्पादन भारत में ‘शांतिधारा' के नाम से विक्रय करेंगे। आज आदि हिंसात्मक कायोंमें हो रहा है। उससे बचने का सर्वोत्तम उपाय ‘शांतिधारा' है। धर्मशास्त्र तो गोधन की महानता और पवित्रता का वर्णन करते ही है किन्तु भारतीय अर्थशास्त्र में भी गोपालन का विशेष महत्व है। कौटिल्य अर्थशास्त्र में गोपालन और गो रक्षण का विस्तृत वर्णन है। भारत में अनादिकाल से ही सभी का मुख्य कर्तव्य गोपालन हो रहा है। प्राचीन काल में जिसके पास ज्यादा गायें होती थीं, वही संपत्ति शाली माना जाता था, गाय से यह देश मंगल का स्थान बन गया था, गाय के बिना आज अमंगल हो रहा है ये देश। भारत के डॉक्टर, वकील, ग्रंथकार, पत्रकार, बुद्धिजीवी, विद्वान, नेता,कार्यकर्ता, कर्मचारी, व्यापारी, गाय के पालन में सहयोग करें यह महत्वपूर्ण जीव रक्षा का कार्य है। आजकल गृहस्थों ने गाय रखना बंद कर दिया है कार, मकान, दुकान, कपडे, सप्त व्यसन, जुआ, शराब आदि में पैसा बर्बाद कर रहे हैं। लेकिन एक गाय नही रख पा रहे है। गाय के दूध से कैंसर, कोलेस्ट्रोल, हृदय रोग, कोढ़, ब्लडप्रेशर आदि बीमारियां ठीक होती है। गाय का दूध बुद्धिवर्धक होता है। २४७५० मनुष्य एक गाय के जीवन भर दूध से तृत हो सकते है। गाय पर प्रेम से हाथ फेरने से ब्लड प्रेशर ठीक हो जाता है। गाय की पीठ पर सूर्य केतू स्नायू होता है, जो हानिकारक विकिरण को रोककर वातावरण को स्वच्छ बनाता हैं। हवन में घी के प्रयोग से वातावरण शुद्ध होता है। ओजोन की पटल मजबूत होती है। गाय के रोम और निवास से भी बीमारी ठीक होती हैं। गाय और बछडे के रंभाने की आवाज से मनुष्य की अनेक मानसिक विकृतियां तथा रोग अपने आप नष्ट हो जाते हैं। गाय अपने सींग के माध्यम से कास्मिक पावर ग्रहण करती है। गाय के गोबर से टी.बी. मलेरिया के कीटाणु नहीं पनपते हैं। "विनोबा भावे जी कहते थे कि ‘हिन्दुस्तानी सभ्यता का नाम ही गोसेवा हैं" पहले आम के बगीचों में दूध की सिंचाई होती थी। गाय के दुग्ध पदार्थों में विष को समाप्त करने की क्षमता होती है। गाय के शरीर में विषैले पदाथोंको पचाने की क्षमता होती है। "अहा जिंदगी का' लेख अप्रैल २००६ 'गाय और भारत' एवं 'दान चिंतामणि' एवं 'रोमांस ऑफ काऊ' पुस्तक जो सर्वश्रेष्ठ पुस्तक है अवश्य पढ़े लगभग ८००० साल पहले सिंधु घाटी में गाय को पालतू बनाये जाने से एक क्रांति आयी थी। इस तरह आप गाय की उपयोगिता के बारे में लोगों को बतायें प्रचार प्रसार करें, समाचार पत्र, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रिंट मीडिया, पत्रिका, इंटरनेट, ई-मेल, फेसबुक, न्यूज चैनल, एस.एम.एस. के माध्यम से जन जन तक यह संदेश पहुंचायें।
  22. गाय के गुण और स्वभाव के अनुरूप उसका दूध भी शरीर को स्फूर्ति तेज एवं सात्विक बल से परिपूर्ण करने वाला, बुद्धि को कुशाग्र एवं सात्विक बनाने वाला तथा हमारे जनजीवन के आरोग्य का आधार है। परमात्मतत्व को प्राप्त करने की साधना सात्विक मनबुद्धि से ही हो सकती है। गाय का दूध, दही, मक्खन, घी तथा छाछ ये सभी मन, बुद्धि को सात्विक बनाने वाले है। गाय के दूध का कोई विकल्प नहीं है।
  23. भारत खेत खलिहानों का देश है, कत्लखानो का नहीं, ग्वालों किसानों का देश है, वधिकों का नहीं। क्रूरतम अपराधी को मृत्यू-दण्ड मिलता है। निरपराध प्राणियों को मृत्यू-दण्ड देने का अधिकारी बूचडखानों को क्यों मिल रहा है? पशु-धन हमारी प्राकृतिक धरोहर है, इसके विनाश से न तो हरियाली बचेगी, न ही खुशहाली। विदेशी-मुद्रा के लिये दुधारू पशुओं का कत्ल कराके माँसनिर्यात करना और विदेशों से भारत में दूध-पाऊडर और गोबर का आयात करना अर्थ-नीति नहीं, अनर्थ-नीति है। स्वतन्त्रता-दिवस मनाना तभी सार्थक है जब भारत के पशुपक्षियों को भी जीने की स्वतन्त्रता मिले। क्या हमारा देश केवल मनुष्यों का देश है? पशुओं का शक्तिदायक व स्वास्थ्यवर्धक दूध पीकर उन्हीं का खून करके उनका खून बेचना 'मातृदेवो भव' वाक्य का घोर अपमान है, मातृहत्या-तुल्य भीषण अपराध है। देश की उन्नति माँस, मछली, अण्डा और मदिरा से असंभव है। क्योंकि हिंसा का धन, मन को त्रस्त और तन को अस्वस्थ करता है, अत: दवाइयों में खर्च होता है- देशोन्नती के लिये नहीं बचता। भारतीय संस्कृति आतंकवादी नहीं, अहिंसावादी रही है इसलिये मॉस-उद्योग लोक तन्त्र का नहीं, लोभ तन्त्र का विभाग है। एक और पर्यावरण की रक्षा के लिए वृक्षारोपण को बढ़ावा देना और दूसरी और कत्लखानों में जानवर कटवा कर प्रदूषण फैलाना नीति नहीं, अनीति है | 'अनुपयोगी' प्राणियों का नाश देश का विनाश है क्योंकि कोई प्राणी कभी भी अनुपयोगी नहीं होता। कत्लखानों को दुग्ध-उत्पादन केन्द्रों में परिवर्तित करना और कसाईयों को ग्वालों में रूपान्तरित करना उनकी आजीविका का उपयोग है। इससे भारत में पुन: दूध-घी की नदियाँ बहेंगी। हमारे राष्ट्र-ध्वज के तीन वर्ण शान्ति, प्रेम और अहिंसा के प्रतीक है, तिरंगे को कलंकित होने से बचाएँ।
  24. (श्री दिगम्बर जैन चन्द्रगिरि तीर्थक्षेत्र डोंगरगढ़, (छ.ग.) जून २०१७ में राष्ट्रीय चिंतक, संत शिरोमणि जैनाचार्य, परम पूज्य गुरुवर श्री विद्यासागरजी महाराज का प्रिंट मीडिया एवं दूश्य मीडिया को सम्बोधन) पत्रकार - आचार्य श्री! गौशाला देशभर में कई जगह पर हैं, कई समाजें गौशाला खोलती हैं, गौसेवा के नाम पर खुल रहीं हैं, लेकिन खुलने के बाद उनकी सही ढंग से देखभाल नहीं होती; इसको लेकर आप क्या संदेश देना चाहते हैं? आचार्य श्री - ऐसा है, गौ का महत्व ही उन लोगों के लिए संकेत है। कहाँ तक कह सकते हैं? भारतीय संस्कृति के अनुसार पशुओं का आर्थिक दृष्टि से, आरोग्य की दृष्टि से, सामाजिक दृष्टि से अथवा अवस्था की दृष्टि से या यूँ कहूँ कि कृषि की दृष्टि से विशेष योगदान है। जब इतिहास पढ़ते हैं या वर्तमान में उनकी उपयोगिता के बारे में विचार करते हैं तो लगता है कि हम लोग भूल कर रहे हैं। जिसके माध्यम से जीवन का काम होता है, उसके बिना मानव जीवन चल नहीं सकता, फिर भी उसकी नजर अंदाज किया जा रहा है। अभी-अभी सब की दृष्टि में एक घटना आई है। किसी एक देश के ऊपर आपत्ति आई, उनकी सब तरफ से प्रतिबंधित कर दिया गया तो आवश्यक वस्तुओं की कमी पड़ गई, जिसमें दूध अति आवश्यक है; वह ही मिलना बंद हो गया। वहाँ के शासक वर्ग ने विचार किया और ४-५ हजार गायों को बाहर से बुलाया और पूरी व्यवस्था बना दी और दूध की पैदावार करके अपनी आवश्यकता की पूर्ति की, वे स्वाबलम्बी बन गए। उन्होंने दूसरे देश की परतंत्रता की स्वीकार नहीं किया और भारत को क्या हो गया? आपने चाय के बारे में सोचा, उन्होंने तो दूध के बारे में सोचा। आप भारतीय हैं और गाय का महत्व जानते हैं। वह देश मुसलमानों का हो करके भी उन्होंने आधारभूत वस्तु गाय को समझकर, जानकर उनकी पालना की। ऐसा क्यों हो रहा है? इसका उत्तर मुझे चाहिए। आप चाहते हैं तो पशुओं की रक्षा की ओर दृष्टि आना चाहिए। इतिहास पढ़िए, भारत में सबसे बड़ी गलती ये हो रही है कि बच्चों को वास्तविक इतिहास से वंचित रखा जा रहा है। ऐसे में वे कभी भी आपकी बात नहीं मानेंगे। बड़े-बड़े इंजीनियर, डॉक्टर, एम.बी.ए., सी.ए. कहते हैं कि हमें तो इतिहास विषय पढ़ाया ही नहीं, तो हम क्या करें? जो पढ़ा है-जिस भाषा में पढ़ा है वही अच्छा लगता है, वैसे ही विचार आते हैं और विदेश की उन्नति अच्छी लगती है और अपनी भाषा, अपनी व्यवस्थाएँ हीन अनुभव में आती हैं। इसलिए यह सब गलत हो रहा है।
  25. अच्छे कार्य के लिए धर्मादा निकालते हैं तो पुण्य का मंगलाचरण हो जाता है। पहले गौ के लिए पहली रोटी निकाली जाती थी। आज भी ये परम्परा सतत होनी चाहिए क्योंकि यही दया का भाव होता है। आज दया की भावना का नितांत अभाव होता जा रहा है इसलिए महापुरुषों का अभाव धरती पर होता जा रहा है। -१४ सितम्बर २०१६, दोपहर ३ बजे, भोपाल
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