(श्री दिगम्बर जैन चन्द्रगिरि तीर्थक्षेत्र डोंगरगढ़, (छ.ग.)
जून २०१७ में राष्ट्रीय चिंतक, संत शिरोमणि जैनाचार्य,
परम पूज्य गुरुवर श्री विद्यासागरजी महाराज का
प्रिंट मीडिया एवं दूश्य मीडिया को सम्बोधन)
पत्रकार - आचार्य श्री! गौशाला देशभर में कई जगह पर हैं, कई समाजें गौशाला खोलती हैं, गौसेवा के नाम पर खुल रहीं हैं, लेकिन खुलने के बाद उनकी सही ढंग से देखभाल नहीं होती; इसको लेकर आप क्या संदेश देना चाहते हैं?
आचार्य श्री - ऐसा है, गौ का महत्व ही उन लोगों के लिए संकेत है। कहाँ तक कह सकते हैं? भारतीय संस्कृति के अनुसार पशुओं का आर्थिक दृष्टि से, आरोग्य की दृष्टि से, सामाजिक दृष्टि से अथवा अवस्था की दृष्टि से या यूँ कहूँ कि कृषि की दृष्टि से विशेष योगदान है। जब इतिहास पढ़ते हैं या वर्तमान में उनकी उपयोगिता के बारे में विचार करते हैं तो लगता है कि हम लोग भूल कर रहे हैं। जिसके माध्यम से जीवन का काम होता है, उसके बिना मानव जीवन चल नहीं सकता, फिर भी उसकी नजर अंदाज किया जा रहा है। अभी-अभी सब की दृष्टि में एक घटना आई है। किसी एक देश के ऊपर आपत्ति आई, उनकी सब तरफ से प्रतिबंधित कर दिया गया तो आवश्यक वस्तुओं की कमी पड़ गई, जिसमें दूध अति आवश्यक है; वह ही मिलना बंद हो गया। वहाँ के शासक वर्ग ने विचार किया और ४-५ हजार गायों को बाहर से बुलाया और पूरी व्यवस्था बना दी और दूध की पैदावार करके अपनी आवश्यकता की पूर्ति की, वे स्वाबलम्बी बन गए। उन्होंने दूसरे देश की परतंत्रता की स्वीकार नहीं किया और भारत को क्या हो गया? आपने चाय के बारे में सोचा, उन्होंने तो दूध के बारे में सोचा। आप भारतीय हैं और गाय का महत्व जानते हैं। वह देश मुसलमानों का हो करके भी उन्होंने आधारभूत वस्तु गाय को समझकर, जानकर उनकी पालना की। ऐसा क्यों हो रहा है? इसका उत्तर मुझे चाहिए। आप चाहते हैं तो पशुओं की रक्षा की ओर दृष्टि आना चाहिए। इतिहास पढ़िए, भारत में सबसे बड़ी गलती ये हो रही है कि बच्चों को वास्तविक इतिहास से वंचित रखा जा रहा है। ऐसे में वे कभी भी आपकी बात नहीं मानेंगे। बड़े-बड़े इंजीनियर, डॉक्टर, एम.बी.ए., सी.ए. कहते हैं कि हमें तो इतिहास विषय पढ़ाया ही नहीं, तो हम क्या करें? जो पढ़ा है-जिस भाषा में पढ़ा है वही अच्छा लगता है, वैसे ही विचार आते हैं और विदेश की उन्नति अच्छी लगती है और अपनी भाषा, अपनी व्यवस्थाएँ हीन अनुभव में आती हैं। इसलिए यह सब गलत हो रहा है।