पथरिया नगर में आचार्य महाराज के ससंघ सान्निध्य में पंचकल्याणक महोत्सव का कार्यक्रम चल रहा था। एक दिन आहारोपरांत ईर्यापथ भक्ति के समय बहुत भीड़ थी। भक्ति प्रारंभ करने से पहले आचार्य श्री बोले कि-एक मिनिट भी शांति से नहीं बैठ पाते, ये लोग कितना शोरगुल करते हैं। प्रत्याख्यान एक आवश्यक मूलगुण है इन्हें औपचारिक नहीं समझना चाहिए, अच्छे उत्साह के साथ करना चाहिए। इन्हीं आवश्यकों के माध्यम से असंख्यात गुणी कर्म की निर्जरा होती है। आचार्य महाराज हमेशा दत्तचित्त होकर अपने आवश्यकों का पालन करते हैं एवं सभी साधकों को भी यही प्रेरणा देते हैं। वे सिद्धांतों के साथ कभी समझौता नहीं करते।
एक बार पूरा संघ तिलवारा घाट, जबलपुर दयोदय में विराजमान था। उस समय मध्यप्रदेश शासन की मुख्यमंत्री उमाभारती जी आयी थीं। तब श्रावकों ने सुबह आचार्य भगवन् से कहा कि- मुख्यमंत्री महोदया आपके दर्शन करने सुबह 7:30 पर आवेंगी। उस दिन चतुर्दशी का दिन था। आचार्य भगवन ठीक प्रात: 7:00 बजे प्रतिक्रमण करने बैठ गये। उमाभारती जी आकर गुरु चरणों में अन्य नेतागणों के साथ बैठ गयीं, पूरे एक घण्टा बैठी रहीं लेकिन आचार्य श्री अपने प्रतिक्रमण आवश्यक में लीन रहे, न उन्होंने नजर उठाकर देखा और न ही आशीर्वाद स्वरूप हाथ ही उठाया। पूरे 9:00 बजे तक प्रतिक्रमण पूर्ण होने पर ही आचार्य श्री जी उठे इसके बीच उमाभारती जी ने एक घण्टे तक इंतजार किया और प्रस्थान कर गयीं।
यह है गुरु महाराज का आवश्यकों के प्रति उत्साह एवं बहुमान उनकी यह चर्या देखते ही बनती है, वहाँ की कमेटी के लोग कहने लगे धन्य हैं गुरुदेव इन्हें दुनियाँ से क्या लेना देना। उन्हें तो मात्र अपनी चर्या से, साधना से मतलब है।