पथरिया नगर में पंचकल्याणक के अंतिम दिन प्रात: भगवान का निर्वाण कल्याणक मनाने के उपरान्त गजरथ परिक्रमा सानंद सम्पन्न हो गयी। आचार्य श्री ने कहा कि- यह पहला रिकार्ड है कि होली (ऊधम) के दिनों में, रंगपंचमी को यह कार्यक्रम सानंद सम्पन्न हुआ। इस भीड़ के कार्यक्रम में मानो रंग ही गायब हो गया, ऐसा लग रहा था। आप लोग ऐसे ही धार्मिक कार्य करते रहेंगे तो क्षेत्रादि का जीर्णोद्धार होता रहेगा। सभी ने तनमन-धन से उदारता पूर्वक सहयोग दिया। बचत राशि का सदुपयोग करें। जिस प्रकार पूर्वजों ने धर्म का दायित्व आप तक भेजा है उसी प्रकार आप भी अगली पीढ़ी तक भेजें, यह आपका दायित्व होता है। प्राण जाय पर वचन नहीं जाना चाहिए यह संकल्प ही उज्ज्वल भविष्य का निर्माता है।
इस शरीर को विषय कषायों में अनंतबार समर्पित किया। एक बार धर्म के लिए समर्पित कर दीजिए, अनंत काल के लिए सुखी हो जाओगे। भगवान बनने का श्रेय प्राप्त हो जावेगा। कुछ कड़वा लगा हो तो वापिस कर देना, क्योंकि करेला भी बत्तीस बार चबाओ तो मीठा लगने लगता है।
दक्षिण भारत में गुड़ी पड़वा पर्व पर चने की दाल, गुड़ और नीम के पत्ते मिश्रण करके एक-दूसरे के घरों में भेजते हैं। इससे यह शिक्षा मिलती है कि-कटु सत्य को भी अच्छे से पी लेना चाहिए। गुड़ी पड़वा के दिन मीठा बोलने वाली कोयल को देखने का प्रयास करते हैं। गाँव में नहीं दिखती तो उसे देखने जंगल में भी जाया करते हैं यह प्रथा है।
भार उठा दायित्व का, लिखा भाल पर सार।
उदार उर हो फिर भला, क्यों न ? हो उद्धार॥
पथरिया 9 मार्च 2007