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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
अंतरराष्ट्रीय मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता 1 से 5 जून 2024 ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • समता माँ बैरागी बेटे के पास

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    महान बनने के लिए कुछ क्षमता/योग्यता प्रकट करना अनिवार्य होता है। इसके साथ ही साथ सहनशील होना भी जरूरी है। जो व्यक्ति जितना महान होता है वह उतना ही सहनशील होता है। समता परिणामी जीव सदा ही सुखी रहता है। क्योंकि, समता के अभाव में पदार्थ भी कुछ नहीं दे सकते और विषमता में जीने वाला व्यक्ति कभी सुख प्राप्त नहीं कर सकता। विषमता जीवन के रस को विष बना देती है और समता जीवन में अमृत घोल देता है।

     

    आचार्य श्री जी से किसी श्रावक ने अपनी शंका व्यक्त करते हुए कहा कि - आचार्य श्री जी ! आपके श्री मुख से हम लोग बार-बार सुनते हैं कि-समता रखो, समता रखो। लेकिन, हम लोग आप जैसी समता क्यों नहीं रख पाते ? छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा आने लगता है। आचार्य महाराज यह सब समता भाव से सुनते रहे फिर मुस्कुराकर बोले कि -समता माँ, वैरागी बेटे के पास ही रहती है। सुनो-समता रखना चाहते हो तो संसार से वैराग्य प्राप्त करो। वैराग्य के अंकुश से जब मन रूपी हाथी वश में हो जावेगा तब मन में विषमता समाप्त हो जावेगी। सुख-दुख में, संयोग-वियोग में, वन में, भवन में, निंदा में, प्रशंसा में समता भाव आ जायेगा। क्योंकि, संसार से तटस्थ होना ही वैराग्य है।

     

    एक साथ उन्नीस परीषह मुनि जीवन में हो सकते,

    समता से यदि सहो साधु हो विधिमल पल में धो सकते।

    सन्त साधुओं तीर्थकरों ने सहे परीषह सिद्ध हुए,

    सहूँ निरन्तर उन्नत तप हो समझूँ निज गुण शुद्ध हुए।।

     

    (अतिशय क्षेत्र बीना बारहा जी 09.10.2005)


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