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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

रतन लाल

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  1. अण्डे कभी शाकाहारी नहीं हो सकते, अण्डे तो मांसाहारी ही हैं, अण्डों में जीव है, वह भ्रूण है, उसमें जीवन है। अण्डे किसी वृक्ष पर नहीं लगते। अण्डों का उत्पादन किसी वृक्ष पर नहीं होता, अण्डे कोई फल नहीं हैं, वह तो मुर्गी का बच्चा है। ऐसे जीवित अण्डों को शाकाहारी कहना सरासर अन्याय है। दुनिया का कोई भी अण्डा शाकाहारी नहीं हो सकता।
  2. आजादी की स्वर्ण जयन्ती का मनाना तभी यथार्थ होगा कि हम अपने देश से हिंसा, अन्याय, अत्याचार को समाप्त कर दें और अहिंसा, न्याय, सदाचार को अपने जीवन में उतार लें।
  3. पशुओं की रक्षा के लिए उनके संरक्षण के लिए हमको अपने गांव में गौशाला का अवश्य निर्माण करना चाहिए। गौशाला भी मंदिर से कम नहीं है, उस गौशाला में भी आपको परमात्मा के दर्शन हो सकते हैं, वहाँ आपकी पूजा हो सकती है, वहाँ भी आपका भजन हो सकता है। अहिंसा के दर्शन आपको गौशाला में भी हो सकते हैं इसलिए आप गौशाला का अवश्य निर्माण करें।
  4. मांस निर्यात मनुष्यता के लिए अभिशाप है इसको रोकना चाहिए, कत्लखाने मानव जाति पर कलंक हैं, कत्लखाने भारतीय अहिंसक संस्कृति पर कुठाराघात है। मांस निर्यात को रोकना चाहिए, पशु बचाओ और उसके लिए हम सबको एक जुट हो जाना चाहिए।
  5. पशुवध जैसे हिंसक, क्रूर कार्य करके हम अपने राष्ट्र को उन्नत नहीं बना सकते। हिंसा से उन्नति संभव नहीं है, हिंसा को छोड़े बिना राष्ट्र उन्नत हो ही नहीं सकता।
  6. भारत वह राष्ट्र है जिसने हमेशा सारे विश्व को दिशा बोध दिया है और अहिंसा का सन्देश दिया है लेकिन वही भारत आज अपनी दिशा से भटक गया है। अहिंसक देश को आज अहिंसा का उपदेश देना पड़ रहा है क्योंकि उसने हिंसा को विकास का साधन समझ लिया है। जो गलत कदम है।
  7. भारत की आजादी के उपरान्त भारत में गाय-बैलों के कत्ल की रफतार तेजी से बढ़ गयी है। भारत में पशुओं का कत्ल करके उनके मांस को बेचकर विदेशी मुद्रा कमाने की अवैध नीति अपनाकर कृषि प्रधान देश के धवल माथे पर कलंक की काली बिन्दी लगा दी, जो भारत के लिए अभिशाप है।
  8. जीवों पर दया करना हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है, राष्ट्रीय कर्तव्य को भूलकर हम अपने राष्ट्र को उन्नत नहीं कर सकते। जिस राष्ट्र में दया नहीं है, मैं समझता हूँ उस राष्ट्र में कोई शास्त्र नहीं है क्योंकि दया से बड़ा और कौन-सा शास्त्र हो सकता है। आखिर हमारे शास्त्र-पुराण हमको दया करना ही तो सिखलाते हैं। फिर भी हमने यदि दया का पालन नहीं किया तो शास्त्रों को पढ़कर या अपने पास रखकर उनकी पूजा-आरती मात्र करने से कुछ नहीं होगा। दो
  9. किसी के जीवन को छीनने का हमको कोई अधिकार नहीं, सबको जीने का अधिकार है। अत: किसी को मत मारो, सबको जीने दो, जीवन सबको प्यारा है, चाहे वह जानवर हो या आदमी। अत: किसी भी जीव को मत मारो।
  10. अर्थ पुरुषार्थ करो लेकिन अनर्थ पुरुषार्थ मत करो। मांस निर्यात अर्थ नहीं, अनर्थ पुरुषार्थ है। उद्योग करने में हिंसा होती है लेकिन हिंसा का उद्योग नहीं होता। उद्योगी हिंसा अलग है और हिंसा का उद्योग अलग है। इसलिए तो उद्योग करो लेकिन हिंसा का उद्योग मत करो, मांस का उद्योग मत करो।
  11. यह बात आज के लिए नहीं, हमेशा के लिए याद रखें कि आप अपना वोट उसी को दें जो मांस निर्यात बंद करे। देश की हरियाली और खुशियाली की रक्षा करे। जंगल, जमीन, जानवर, जल, जनता की रक्षा करे। देश में अधर्म और हिंसा को न होने दे।
  12. पर्यावरण बचाने का काम मात्र वृक्ष लगाने से नहीं हो सकता, हम वृक्षों को लगाने की बात करते हैं और लगाते भी हैं लेकिन पशुओं को काट रहे हैं, यह प्रक्रिया हमारे लिए घातक है, इसको हमें रोकना चाहिए।
  13. जीवन किसी का हो चाहे वह जानवर का हो या आदमी का, वह कभी यूजलैस नहीं होता। यूजलैस तो हमारा स्वार्थ होता है, हमारा अज्ञान होता, अन्याय होता है।
  14. आज जो मूक हैं, निर्दोष हैं, अनाथ हैं, ऐसे निरीह जानवरों की आँखों में आँसू हैं, वो पशु अपनी करुण पुकार किससे कहें क्योंकि उनके पास वचन नहीं, वे बोल नहीं सकते। यदि वे मूक प्राणी बोलना जानते होते तो अवश्य किसी कोर्ट में अपनी याचिका दायर कर देते, अपने अत्याचारों की कहानी सुना देते लेकिन हम इन्सान हैं, जो बोलने-सुनने वाले होकर भी कुछ न समझ रहे हैं और न सुन रहे हैं। यही सबसे बड़ी विडम्बना है।
  15. पर्यावरण और स्वास्थ्य का ठीक रहना ही मानव जाति का विकास है, पर्यावरण को बिगाड़ करके हम अपने स्वास्थ्य को जिन्दा नहीं रख सकते, अत: पर्यावरण की रक्षा के लिए हिंसा, कत्ल के काम छोड़ने होंगे, पशुओं को बचाना होगा।
  16. भारत कृषि प्रधान देश है यहाँ की जनता सदियों से पशुपालन और उनके माध्यम से अपना निर्वाह करती चली आ रही है कृषि उत्पादन के क्षेत्र में गौ-वंश का उपकार भुलाया नहीं जा सकता।
  17. भारतीय इतिहास, संस्कृति और सभ्यता पशुवध की इजाजत नहीं दे सकती 'वध' तो 'वध' है चाहे जानवर का हो या मनुष्य का इसमें अन्तर नहीं है। आओ हम सब मिलकर अपने देश से इस पशुवध को रुकवायें। पशुवध रुकवाना ही आज की अनिवार्यता है।
  18. मांस का निर्यात करना देश में ऊधम करना है क्योंकि यह उद्यम नहीं कहलाता।
  19. आवश्यकता इस बात की है कि मनुष्य को अतीत के समस्त पापों का प्रायश्चित कर लेना चाहिए और अपनी आत्मा को पाप से दूर कर लेना चाहिए और हमेशा-हमेशा पाप से घृणा करना चाहिए, पापी से नहीं।
  20. जानवर भी राष्ट्रीय संपदा हैं फिर उनका कत्ल क्यों किया जाये? राष्ट्र की उन्नति का यह अर्थ कतई नहीं हो सकता कि हम अपने अर्थ के लिए उनको समाप्त करें और विदेश से मुद्रा कमायें। मनुष्य को चाहिए कि वह जानवरों के लिए आदर्श बने।
  21. क्रूरता से राष्ट्र का भला नहीं, भारत को मांस निर्यात बंद करना चाहिए और दूध का निर्यात करना चाहिए, खून-मांस का नहीं।
  22. यह धरती की हरियाली जानवरों की किस्मत से है, मनुष्य की किस्मत से नहीं। यदि ये जानवर समाप्त हो जायेंगे तो धरती की हरियाली भी समाप्त हो जायेगी और हरियाली के अभाव में यह मनुष्य जाति भी जिंदा नहीं रह सकती।
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