गृहस्थ के निर्विचिकित्सा अंग में मात्र शरीर सेवा नहीं, धर्म की सुरक्षा हो, तभी वह पात्र बनने की क्षमता रखेगा, वह उस प्रकार बन्ध करेगा, ताकि मोक्ष मार्ग में उपयुक्त सामग्री प्राप्त हो जाये। अमूर्त आत्मा की उपासना, उसमें विश्वास कर सके, इसके लिए आचार्यों ने बहुत परिश्रम कर विशद विवेचन किया। वे तो कृतार्थ हो गये, जब उसको जीवन में उतारेंगे, तब हम भी कृतार्थ होंगे। जो चारित्र अपनाने का विचार रखता है तो चारित्रधारी के पास जायेगा, उनकी सेवा करेगा, उनके आदर्श को जीवन में उतारेगा, तभी सुख का अनुभव करेगा। उसका अपूर्ण जीवन पूर्णता में परिणत हो जायेगा।