भगवान् के पास, निरभिमानी के पास निरभिमानी बन कर जाना चाहिए और विचार कर कहना चाहिए कि मैं बालक हूँ, मंद बुद्धि हूँ, छोटा हूँ, राग को अपना रहा हूँ। हे भगवान्! मुझे मुझमें मिला कर सुखद शांति दिला दे। ये चैतन्य शक्ति जो आत्मा के पास है, वह ज्ञान दर्शनात्मक है, वह शक्ति सच्चेतन बन जाये, अपने आप में मिल जाये। चेतन आपके पास भी है, पर वह तो कर्म चेतना है, अपने स्वभाव को भूल कर रस ढूँढ़ रही है। बाहर की ओर चेतना नहीं जाने देना यही आकिंचन्य धर्म है, बाकी तो मात्र अभिनय है।