Jump to content
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

संयम स्वर्ण महोत्सव

Administrators
  • Posts

    22,360
  • Joined

  • Last visited

  • Days Won

    895

 Content Type 

Forums

Gallery

Downloads

आलेख - Articles

आचार्य श्री विद्यासागर दिगंबर जैन पाठशाला

विचार सूत्र

प्रवचन -आचार्य विद्यासागर जी

भावांजलि - आचार्य विद्यासागर जी

गुरु प्रसंग

मूकमाटी -The Silent Earth

हिन्दी काव्य

आचार्यश्री विद्यासागर पत्राचार पाठ्यक्रम

विशेष पुस्तकें

संयम कीर्ति स्तम्भ

संयम स्वर्ण महोत्सव प्रतियोगिता

ग्रन्थ पद्यानुवाद

विद्या वाणी संकलन - आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के प्रवचन

आचार्य श्री जी की पसंदीदा पुस्तकें

Blogs

Events

Profiles

ऑडियो

Store

Videos Directory

Everything posted by संयम स्वर्ण महोत्सव

  1. चंद्रगिरि में आचार्य विद्यासागर महाराज ने कहा कि शुक्ल पक्ष में चंद्रमा का आकार प्रतिदिन परिवर्तित होता है बढ़ता जाता है और पूर्णिमा के दिन उसकी ऊष्मा से समुद्र की लहरों में उछाल आ जाता है। ऐसे ही डोंगरगढ़वासियों के भावों में भगवान के समोशरण में आने से उत्साह, उल्लास नजर आ रहा है। आचार्य ने कहा कि आगे कब भगवान के समवशरण देखने को मिलेगा पता नहीं परंतु पिछले 3 दिनों के विहार में भगवान के समवशरण की झलकियां देखने को मिली जो की अद्भुत थी। भगवान की यह प्रतिमा बहुत प्राचीन है और जैसे कुण्डलपुर के भगवान् को आप लोग बड़े बाबा बोलते हो वैसे ही ये चंद्रगिरी के बड़े बाबा हैं। दोपहर के प्रवचन में आचार्य ने खरगोश और कछुवा के एक दृष्टांत के माध्यम से बताया कि खरगोश बहुत तेज, फुर्तीला और विवेकशील था परंतु उसने समय का सदुपयोग नहीं किया और संवेदनशीलता की कमी और आलस्य के कारण उसकी हार हुई, जबकि कछुवे की चाल धीमी थी परंतु उसने समय का सदुपयोग किया। आचार्य को आहार कराने का सौभाग्य पप्पू जैन प्रतिमास्थल के अध्यक्ष राजनांदगांव निवासी का हुआ। इस दौरान चंद्रगिरी ट्रस्ट के अध्यक्ष विनोद जैन, कार्यकारी अध्यक्ष किशोर जैन, डोंगरगढ़ जैन समाज के अध्यक्ष एवं चंद्रगिरी ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष सुभाष चंद्र जैन, सप्रेम जैन, अमित जैन आदि मौजूद थे। डोंगरगढ़ आचार्य विद्यासागर का दर्शन करने के लिए जुटी लोगों की भीड़। 19 नवंबर को मुरमुंदा से हुआ आचार्य का विहार 19 नवंबर को आचार्य का विहार मुरमुंदा से डोंगरगढ़ के लिए सुबह 6 बजे हुआ इसमें देव, शास्त्र और गुरु तीनों के साथ रथों के सामान रथों में प्रतिमास्थल की बच्चियां, इंद्र, इन्द्राणियां, देव सुंदर दिखाई दे रहे थे। इस विहार में गांव के लोगों ने भी उत्साह से दर्शन कर धर्म लाभ लिया। source : https://www.bhaskar.com/chhatisgarh/rajnandgaon/news/CHH-RAJG-MAT-latest-rajnandgaon-news-061503-521657-NOR.html
  2. प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज; (डोंगरगढ़) {22 नवंबर 2017} चंद्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कहा कि वृक्ष होता है जिसकी शाखाएं होती है उसमें से पहले कली खिलती है फिर फूल खिलता है फिर उसमें फल आता है। यह एक स्वतः होने वाली प्राकृतिक प्रक्रिया है। इसी प्रकार यह प्रतिभास्थली है जिसमें ये छोटी-छोटी बच्चियां पढ़ाई के साथ-साथ संस्कार भी ग्रहण कर रही हैं। आप लोगों की संख्या अभी कम है, आप संख्या की चिंता मत करो, आप अपना काम ईमानदारी से मन लगाकर करो तो आपको सफलता अवश्य ही मिलेगी और आप के नये सखा मतलब आपके नये मित्र भी यहां आएंगे और आपकी संख्या भी बढ़ जायेगी। यहां इन बच्चों की पढ़ाई और संस्कार के लिए समाज का सहयोग मिलना आवश्यक है और इनकी शिक्षिकाएं भी अपने कर्तव्यों का पालन बहुत अच्छे से कर रही है। यहां पैसों का उतना महत्व नहीं है। आप लोग कहते है न कि पैसा तो हाथ का मैल है, इसे निर्मल करने का इससे अच्छा और कोई उपाय नहीं है। समाज को इसके लिए हमेशा उत्सुक रहना चाहिए और प्रत्येक व्यक्ति को अपने सामर्थ्य के अनुसार यहां अपने पैसों का सदुपयोग करना चाहिये। यहां बच्चों का निर्वाह नहीं निर्माण हो रहा है जो भविष्य में इसे और आगे पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ाते रहेंगे। आप लोगो का प्रयास सराहनीय है और आगे भी आप लोग ऐसा ही सहयोग इन बच्चों को देंगे जिससे यह कार्य आगे चलता रहेगा व बढ़ता रहेगा। यह जानकारी चंद्रगिरि डोंगरगढ़ से निशांत जैन (निशु) ने दी है।
  3. 18 downloads

    आचार्य श्री १०८ विद्यासागर महाराज जी के प्रवचनो को मुनि श्री १०८ संधान सागर जी महाराज ने हस्त लिखत किया है | यहाँ पर उसका सातवां भाग उपलब्ध है | सातवें भाग में दिनांक 11.07.2017 से 24.09.2017 तक के प्रवचन है |
  4. 7 downloads

    आचार्य श्री १०८ विद्यासागर महाराज जी के प्रवचनो को मुनि श्री १०८ संधान सागर जी महाराज ने हस्त लिखत किया है | यहाँ पर उसका छठा भाग उपलब्ध है | छठे भाग में दिनांक 23.04.2017 से 21.07.2017 तक के प्रवचन है |
  5. 6 downloads

    आचार्य श्री १०८ विद्यासागर महाराज जी के प्रवचनो को मुनि श्री १०८ संधान सागर जी महाराज ने हस्त लिखत किया है | यहाँ पर उसका पांचवे भाग उपलब्ध है | पांचवे भाग में दिनांक 15.02.2017 से 22.04.2017 तक के प्रवचन है |
  6. 6 downloads

    आचार्य श्री १०८ विद्यासागर महाराज जी के प्रवचनो को मुनि श्री १०८ संधान सागर जी महाराज ने हस्त लिखत किया है | यहाँ पर उसका चतुर्थ भाग उपलब्ध है | चतुर्थ भाग में दिनांक 11.11.2015 से 12.01.2017 तक के प्रवचन है |
  7. 7 downloads

    आचार्य श्री १०८ विद्यासागर महाराज जी के प्रवचनो को मुनि श्री १०८ संधान सागर जी महाराज ने हस्त लिखत किया है | यहाँ पर उसका तृतीय भाग उपलब्ध है | तृतीय भाग में दिनांक 21.07.2016 से 10.11.2016 तक के प्रवचन है |
  8. 10 downloads

    आचार्य श्री १०८ विद्यासागर महाराज जी के प्रवचनो को मुनि श्री १०८ संधान सागर जी महाराज ने हस्त लिखत किया है | यहाँ पर उसका द्वितीय भाग उपलब्ध है | द्वितीय भाग में दिनांक 29.04.2016 से 18.07.2016 तक के प्रवचन है |
  9. 19 downloads

    आचार्य श्री १०८ विद्यासागर महाराज जी के प्रवचनो को मुनि श्री १०८ संधान सागर जी महाराज ने हस्त लिखत किया है | यहाँ पर उसका प्रथम भाग उपलब्ध है | प्रथम भाग में दिनांक 24.11.2015 से 28.04.2016 तक के प्रवचन है |
  10. पंचकल्याणक महोत्सव की तैयारियां लगभग पूर्ण 23 से 29 नवम्बर होंगे कई भव्य आयोजन 25 को उपनयन संस्कार होगा अनूठा कार्यक्रम शिवपुरी में जन्मकल्याणक का जुलूस तो कोलारस में आदिकुमार की बारात निकलेगी लालकिला की तर्ज़ पर बनाया गया है विशाल पांडाल का गेट शिवपुरी सेसई के इतिहास में पहली बार श्री शांतिनाथ (नौगजा) दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र सेसई में श्री 1008 मज्जिनेंद्र जिनबिम्ब पंचकल्याणक प्रतिष्ठा एवम गजरथ महोत्सव का आयोजन आगामी 23 नबम्बर से होने जा रहा है। जिसमें सेसई अतिशय क्षेत्र पर नवीन चौबीसी एवं, मानस्तंभ निर्माण पूर्ण होने के बाद जिन प्रतिमाओं पर सूर्य मंत्र दिया जायेगा जिससे यह प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित होकर पूज्यनिय हो जायेंगी। आयोजन को लेकर तैयारियों जोरों पर है। जिसके लिए सेसई में ए.बी. रोड पर एक विशाल मैदान को भव्य रूप दिया जा रहा है। 30 नवम्बर तक चलने वाले इस आयोजन में आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के प्रिय शिष्य प्रशममूर्ति 108 श्री अजितसागर जी महाराज संसघ का मंगल सानिध्य मिलेगा। पंचकल्याण महोत्सव के अध्यक्ष जीतेन्द्र जैन ने जानकारी देते हुये बताया कि महोत्सव में दस हजार समाज बंधुओं के आगमन के मद्देनजर 85 बाई 225 फुट का विशाल डोम बनाया जा रहा है, जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु एकसाथ कार्यक्रम में शामिल हो सकते हैं। एवं जैन परंपरानुसार शौध की भोजन शाला तथा सामूहिक भोजन शाला का अस्थायी निर्माण कराया जा रहा है। इसके अलावा व्रती श्रावकों के लिए भी अलग से भोजन की व्यवस्था की गई है। इसके लिए 95 गुणा 155 वर्गफीट में भोजनशाला बनाई जा रही है। वहीं महामहोत्सव में शामिल प्रमुख पात्रों व इंद्र-इंद्राणियों के लिए अलग से 35 गुणा 135 वर्गफीट में भोजनशाला बनाई जा रही है। यहां आने वाले समाज बंधुओं के ठहरने हेतु 50 आधुनिक कमरों का भी निर्माण किया जा रहा है। महोत्सव के कार्यकारी अध्यक्ष राजकुमार जैन जड़ीबूटी एवं चौधरी अजीत जैन ने बताया कि प्रतिष्ठाचार्य बाल ब्र. अभय भैया 'आदित्य' इन्दौर के निर्देशन में विधिविधान से कार्यक्रम होंगे। जिसमें 23 नवंबर को विशाल घटयात्रा जुलूस गजरथ (ऐरावत हाथी) बग्घी घोड़े बाजे-गाजे के साथ निकाली जाएगी। 24 नवम्बर को गर्भ कल्याण की पूर्व क्रियाऐं व 25 नवम्बर को गर्भ कल्याणक मनाया जायेगा। 26 नवम्बर रविवार को जन्म कल्याणक के दिन शोभायात्रा निकाली जाएगी। इसके बाद नवनिर्मित पांडुक शिला पर 1008 कलशों से भगवान का अभिषेक होगा। इसके लिये गौशाला में पांडुकषिला का निर्माण किया गया है। 27 नवम्बर को भगवान के तप कल्याणक के दिन आदिकुमार की बारात कोलारस नगर में निकाली जायेगी। 28 नवम्बर को ज्ञानकल्याणक के दिन भगवान का समोषरण लगेगा तथा 29 नवम्बर को मोक्ष कल्याणक मनाया जायेगा। सप्ताह भर के इन कार्यक्रम में अनेक राज्यों से जैन समाज के श्रद्धालु पहुंचेंगे। जिनवाणी चैनल पर होगा सीधा प्रसारण आयोजन समिति के पदाधिकारियों ने बताया कि आगामी 23 नवम्बर से जहां 30 नवम्बर तक पंचकल्याणक महोत्सव होगा। जिसमें 23 नवम्बर को उज्जैन की पार्टी द्वारा जम्मू स्वामी का वैराग्य नाटक का मंचन किया जायेगा। वहीं 27 नवम्बर को सूरत एवं 28 नवम्बर को जबलपुर की पार्टी द्वारा रात्रि में भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों का मंचन किया जायेगा। 30 नवम्बर को नवीन प्रतिमाऐं वेदियों में विराजमान की जायेंगी तथा शांतिनाथ भगवान की प्रतिमा का बज्रलेप के बाद प्रथम महामष्तकाभिषेक होगा। पंचकल्याणक के कार्यक्रमों का सीधा प्रसारण टीवी जिनवाणी चैनल पर किया जाएगा।
  11. विद्यासागरजी महाराज; (डोंगरगढ़) {21 नवंबर 2017} चंद्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्यश्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की बिम्ब और प्रतिबिम्ब में अंतर होता है। बिम्ब किसी वस्तु का स्वाभाव व उसके गुण आदि होते हैं परन्तु उसका प्रतिबिम्ब अलग – अलग हो सकता है यह देखने वाले की दृष्टि पर निर्भर करता है की वह उस बिम्ब में क्या देखना चाह रहा है। यदि सामने कोई बिम्ब है और उसे दस लोग देख रहे होंगे तो सबके विचार उस प्रतिबिम्ब के प्रति अलग – अलग हो सकते हैं। किसी को कोई चीज अच्छी लगती है तो वही चीज किसी और को बुरी लग सकती है परन्तु इससे उस बिम्ब के स्वाभाव में कोई फर्क नहीं पड़ता है। जैसी आपकी मानसिकता और विचार उस बिम्ब के प्रति होंगे वैसा ही प्रतिबिम्ब आपको परिलक्षित होगा। यदि आप शान्ति चाहते हो तो दिमाग को कुछ समय के लिए खाली छोड़ दो उसका बिलकुल भी उपयोग मत करो कुछ भी मत सोचो आपको कुछ ही समय में शान्ति की अनुभूति होने लगेगी परन्तु शान्ति को कोई बाज़ार से नहीं खरीद सकता और न ही उसे कोई छू सकता है उसे केवल महसुस किया जा सकता है। मन + चला = मनचला अर्थात मन चलायमान होता है उसे वश में करना, एकाग्र करना बहुत कठिन काम है। इसके लिये काफी प्रयास की आवश्यकता होती है। यदि आपने अपनी इन्द्रियों को वश में कर लिया तो आप अपने मन को भी अपने वश में (Control में) कर सकते हो जिससे आपको कभी लोभ नहीं होगा और आप हमेशा संतुष्ट और प्रसन्न रह सकते हैं और अपनी मंजिल और लक्ष्य को आसानी से प्राप्त कर सकते हैं। यह जानकारी चंद्रगिरि डोंगरगढ़ से निशांत जैन (निशु) ने दी है।
  12. आज इस विज्ञान के युग में भी धरती के साथ अन्याय हो रहा है, पर्यावरण का सत्यानाश हो रहा है, जल, जंगल, जमीन, जानवर और जनता प्रदूषित हो चुकी है। पर्यावरण की खराबी के लिए सबसे बड़ा प्रदूषण रासायनिक खादों का है, इन जहरीली रासायनिक खादों के कारण फसल प्रदूषित हो चुकी है, फल सब्जियाँ, अनाज प्रदूषित हो चुका है, जल और वायु प्रदूषित हो चुकी है। आज हमारे पास न शुद्ध अनाज है और न जल। जो अनाज हम खा रहे हैं वह जहरीला है क्योंकि उसमें भी जहरीले रासायनिक खादों का अंश मिला है। कीट-नाशक दवाएँ भी पर्यावरण को प्रदूषित कर रही हैं। आज अनेक राष्ट्रों में अनेक जहरीली दवाएँ भी पर्यावरण को प्रदूषित कर रही हैं। आज अनेक राष्ट्रों में अनेक जहरीली दवाओं एवं कीट-नाशकों पर प्रतिबन्ध लग चुका है, लेकिन यह तो भारत है जहाँ सब कुछ खुल्लम-खुल्ला है। हमारी बीमारियाँ इन्हीं जहरीली उर्वरकों का परिणाम है। आज भी आवश्यकता इस बात की है कि पर्यावरण को प्रदूषण से बचाया जाये, और इसके लिए तमाम रासायनिक खादों एवं कीट नाशक दवाओं के प्रयोग पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाये। ये रासायनिक खादें धरती को जला रही हैं, धरती की उपजाऊ शाक्त को नष्ट कर रही हैं, धरती के पास जो अपनी निजी शक्ति है उसको तबाह कर रही हैं। यदि इसी प्रकार इन रासायनिक खादों का प्रयोग होता रहा तो एक दिन सारी धरती बंजर हो जायेगी। जहाँ आज फसल उगती हैं वहाँ पर घास तक पैदा नहीं होगी। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है कोल्हापुर, सांगली (महाराष्ट्र) के पास की हजारों एकड़ जमीन जो आज बाँझ हो चुकी है वहाँ न तो फसल होती है और न ही मकान बना सकते क्योंकि दल-दल हो चुकी है, उसमें क्षार की मात्रा अधिक बढ़ चुकी है। भले आज इन खादों से फसल की मात्रा बड़ी है लेकिन आगामी समय में उन खेतों की स्थिति बड़ी खराब हो जायेगी। हम अपने खेत में इन जहरीली रासायनिक खादों को डालकर धरती के साथ अन्याय न करें, धरती को बीमार न करके उसके साथ खिलवाड़ न करें। धरती ही जीवन है यदि धरती बीमार हो जायेगी तो समझ लेना उसी क्षण यहाँ की हरियाली नष्ट हो जायेगी। याद रखो, हरियाली के नष्ट होने पर आदमी का जीना मुश्किल हो जायेगा, हरियाली के अभाव में आप खा नहीं सकेंगे, जी नहीं सकेंगे, सो नहीं सकेंगे। यदि जीवन की रक्षा चाहते हो तो हरियाली की रक्षा करो, पर्यावरण की रक्षा करो, धरती की रक्षा करो, बचाओ पर्यावरण नहीं तो अकाल मरण। जिस दिन देश की कृषि समाप्त हो जायेगी, वहाँ दाने-दाने की भुखमरी मच जायेगी। देश की जिन्दगी कृषि पर आधारित है मशीनों पर नहीं। सोना-चाँदी, हीरा-मोती से हम अपना पेट नहीं भर सकते, पेट भरने के लिए कृषि चाहिए, अनाज चाहिए, फसल चाहिए। जब खेत में फसल खड़ी नहीं होगी तब भारत का क्या होगा? फिर हमारा क्या होगा? हमारे खेतों में फसल खड़ी है इसलिए हम भी खड़े हैं यानि जीवित हैं फसल के अभाव में चारों ओर भुखमरी मच जायेगी। देश की रक्षा के लिए कृषि की रक्षा अनिवार्य है और वह कृषि की रक्षा इन कीटनाशक दवाओं, रासायनिक जहरीली खादों से नहीं होगी। कृषि की रक्षा के लिए हमको अपनी प्राचीन कृषि प्रणाली अपनाना होगी। पहले समय में हमारे यहाँ खेत में गोबर खाद का प्रयोग किया जाता था, वह गोबर खाद थी। गोबर की खाद डाली जाती है वहाँ फसल भी अच्छी होती है, और धरती की उत्पादन क्षमता भी कम नहीं होता। प्रयोगों से यह भी पता चला है कि गोबर की खाद देन से गरमी के दिनों में खेत में उतनी नमी रहती है, जितनी लगभग डेढ़ इंच पानी बरसने से रहती है। हम गोबर की खाद का प्रयोग करें, गोबर की खाद से जमीन कभी नष्ट नहीं हो सकती, गोबर की खाद का प्रभाव पर्यावरण पर अच्छा पड़ता है। जो कभी भी नुकसानदायक नहीं है। यदि हमने अपनी भारतीय कृषि व्यवस्था पर ध्यान नहीं दिया तो इसके परिणाम बहुत बुरे होंगे। गाय और गोबर दोनों पर्यावरण के संरक्षण हैं ये पृथ्वी के भार नहीं है, गाय जितना खाती है उससे अधिक खाद देती है, यह प्रयोग द्वारा सिद्ध हो गया है कि जहाँ गाय बैल आदि रहते हैं उस स्थान पर यदि टी.बी. के मरीज को बैठा दिया जाये तो उसकी बीमारी ठीक हो जाती है। इन जानवरों का हमारे जीवन में बड़ा योगदान है। ये जानवर पर्यावरण के संरक्षक हैं हमारा कर्तव्य है कि हम पशुओं की सुरक्षा करें। पशुओं को सुरक्षित रखकर ही पर्यावरण की सुरक्षा हो सकती है यह कौन सी अर्थ नीति है? दुधारू जानवरों को कत्ल करके उनका खून मांस निर्यात किया जा रहा है और गोबर विदेशों से बुलवाया जा रहा है। हमको विदेश से गोबर बुलवाने की आवश्यकता नहीं, हम इन दुधारू जानवरों का पालन करें, उनसे दूध भी मिलेगा और गोबर भी। गायों, भैसों, का पालन करें, उनसे लाभ ही लाभ है, उनसे हमको शुद्ध दूध-दही-घी की प्राप्ति होगी जिससे हमारा स्वास्थ्य ठीक रहेगा। अत: आदमी का स्वास्थ्य और धरती का स्वास्थ्य दोनों को ठीक रखने के लिए पर्यावरण की रक्षा अनिवार्य है, गाय की रक्षा ही पर्यावरण की सुरक्षा है। अर्थ पुरुषार्थ करो लेकिन अनर्थ पुरुषार्थ मत करो। मांस निर्यात अर्थ नहीं अनर्थ पुरुषार्थ है। उद्योग करने में हिंसा होती है लेकिन हिंसा का उद्योग नहीं होता, उद्योगी हिंसा अलग है और हिंसा का उद्योग अलग है। इसलिए तो उद्योग करो लेकिन हिंसा का उद्योग मत करो। मांस का उद्योग मत करो। मांस के उद्योग का अर्थ है निरपराधी जीवों की हत्या। यह कौन सा न्याय है कि जो निरपराध है उसको दण्ड दिया जाये? निरपराध को दण्ड देना यह कौन सा लोकतन्त्र है। दण्ड संहिता होना चाहिए लेकिन अपराधी के लिए, निरपराधी के लिए नहीं। देश की पशु सम्पदा का नाश देश की कंगाली का कारण है। भारत में धन गाय, बैल, भैंस, घोड़ा इत्यादि को माना जाता था, और उनकी सुरक्षा की जाती थी। अनुपयोगी कहकर पशुओं को काटना छल है, कोई भी जीव, किसी का जीवन कभी अनुपयोगी नहीं होता। यदि मनुष्य पशुओं को अनुपयोगी कहता है तो क्या आदमी पशुओं के लिए अनुपयोगी नहीं है? जनता का भी कर्तव्य होता है कि वह ऐसे व्यक्ति का चयन करे जो अहिंसक हो। पापों का समर्थन करने वाले व्यक्ति का चयन नहीं करना चाहिए। यह प्रजातन्त्र है। यहाँ प्रजा ही अपने प्रतिनिधि का चुनाव करती है। अत: जनता को बड़े सोच विचार कर, विवेकपूर्वक उस व्यक्ति का चयन करना चाहिए जो प्रजा को सुख समृद्धि, देश की गरिमा को कलंकित न करे, जो पशु हत्या रोके, कत्लखाने बंद कर पशुओं का संरक्षण करे, एवं अहिंसा, दया, न्याय का पालन करे। आपके वोट में बहुत शक्ति है। आप जरा विचार करो कि जिनको आपने चुना है फिर उनसे यह क्यों नहीं कह रहे हो। तुमने शासन को बनाया है, शासक से माँग करो कि इस देश से मांस का निर्यात तुरंत बंद करे। यह बात आज के लिए नहीं हमेशा के लिए याद रखें आपका अपना वोट उसी को दें जो मांस निर्यात बंद करे। देश की हरियाली और खुशियाली की रक्षा करे। जंगल, जमीन, जानवर, जल और जनता की रक्षा करे। देश में अधर्म और हिंसा को न होने दे।
  13. पहले युग में आदमी धर्म करता था लेकिन आज के युग में आदमी धर्म को पढ़ता है वस्तुत: धर्म करने की चीज है पढ़ने की नहीं क्योंकि जबसे धर्म की पढ़ाई शुरू हुई धर्म को पढ़ाया जाने लगा तभी से धर्म में अनेक उलझनें पैदा हो गई, अनेक परिभाषा बन गई, भाषा बन गई, मत मतान्तर बन गए और विभिन्न सम्प्रदायों का बँटवारा हो गया, आदमी का विभाजन हो गया, धर्म और उसका विकास पथ आज हमारे पास तक चार भागों में बटा हुआ आ पहुँचा है लेकिन उसको हम विकास क्रम नहीं कह सकते वह यह है कि पहले धर्म किया जाता था अथवा धर्म करते थे फिर धर्म को दिखाया जाने लगा और अन्त में पढ़ाया जाने लगा इस प्रकार धर्म चार भागों में बँट गया। लेकिन जब हम धर्म की मौलिकता पर विचार करते हैं तब हमको यह भली-भाँति ज्ञात होता है कि धर्म न दिखाने की वस्तु है, न सुनाने की वस्तु है, और न पढ़ाने की वस्तु है, धर्म तो करने की वस्तु है धर्म तो आत्मा की प्रकृति है, स्वभाव है, और वह स्वभाव, प्रकृति किसी के आश्रित नहीं होती किसी पर डिपेण्ड नहीं होती। जबसे हमने धर्म को पढ़ना प्रारम्भ कर दिया, पढ़ाना प्रारम्भ कर दिया तभी से हमने उसको संकीर्ण कर दिया, संकीर्णता की चार दीवारी में हमने उसको बांध दिया इसलिए वह धर्म हमारे लिये हितकारी सिद्ध नहीं हुआ। धर्म अहिंसा का नाम है और वह अहिंसा पढ़ने की चीज नहीं वह दिल में पैदा करने की चीज है। हम किताबों में अहिंसा खोजते हैं लेकिन अहिंसा किताबों में नहीं मिल सकती, किताबों में तो अहिंसा की परिभाषा मिल सकती है अहिंसा नहीं। आज हम अहिंसा को किताबों में पढ़ रहे हैं इसलिए हमारे जीवन में अहिंसा की कमी होती जा रही है। यदि हम अहिंसा को अपने विचारों में प्रतिष्ठित करें जीवन में उतारें, व्यवहार में लायें तो हमको किसी भी पुस्तक पढ़ने की आवश्यकता नहीं। अहिंसा कागजी पुस्तकों की उपज नहीं वह तो हमारी चेतना की परिणति है, वह जड़ में नहीं मिल सकती। जड़ के पास धड़कन नहीं क्योंकि उसके पास दिल नहीं है। अहिंसा करुणा की धड़कन है, दिल की कंपन है, वह पढ़ने से पैदा नहीं होती, सुनने से पैदा नहीं होती, उसके लिए धर्म की मौलिकता को समझने की जरूरत होती है। धर्म दूसरों के लिए नहीं होता वह तो अपने स्वयं के लिए है। महापुरुष धर्म करते नहीं वे तो धर्म को जीवन में उतारते हैं। जब व्यक्ति धर्म को जीवन में उतारता है तब उसको पथ बतलाने की आवश्यकता नहीं पड़ती क्योंकि उसके कदम ही पथ का निर्माण करते हैं। वह जहाँ से गुजरता है। वहीं से रास्ता बन जाता है, जहाँ पग रखता है वहीं पगडण्डी बन जाती है। यह भी सच है कि पग के बिना पगडण्डी नहीं बनती, पहले पग होते हैं बाद में पगडण्डी। महापुरुष ऐसे ही होते हैं। आज हम अपनी पगडण्डी बनाना चाहते हैं लेकिन जो महापुरुषों की पगडण्डी है उस पर चलना नहीं चाहते। यदि हम महापुरुषों के चरण चिहों पर चलना प्रारम्भ कर दें तो हम भी आज महान् बन सकते हैं। महापुरुषों के चरण चिह्न अहिंसा की पगडण्डी हैं, आज हमको अहिंसा की आवश्यकता है, जिसके अभाव में यह दुनियाँ पीड़ित है। मैं धर्म को सुनाने के पक्ष में तो हूँ लेकिन पढ़ाने के पक्ष में नहीं क्योंकि धर्म को पढ़ने के लिए शब्द चाहिए, भाषा चाहिए और शब्दों में धर्म को ढूँढ़ना पागलपन है। भाषा परिभाषा में धर्म को नहीं समझा जा सकता। धर्म भाषातीत वस्तु है। आज हम धर्म को पढ़ना चाहते हैं लेकिन हम अपनी आत्मा से पूछे कि हमने पढ़कर कितना धर्म सीखा है? जिस दिन हम धर्म सीख जायेंगे उस दिन पढ़ने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। धर्म को समझे आत्मा के भावों से। धर्म भावों से समझा जा सकता भाषा से नहीं। हम वह भावों की भाषा सीखें जो बिना किसी परिभाषा के ही हमको धर्म सिखला सके, धर्म को समझा सके। आज धर्म को पढ़ाने, सुनाने, दिखाने की पद्धति बहुत तेजी से चल रही है और धर्म को करने की भावात्मक प्रणाली समाप्त होती जा रही है। आवश्यकता इस बात की है कि हम धर्म को अपने जीवन का अभिन्न अंग मानकर, एक श्वांस मानकर उसको जीवन में उतारें। धर्म सत्य, अहिंसा की व्याख्या है सत्य की अभिव्यक्ति है अहिंसा का सम्मान है। सत्य अहिंसा को जीवन में उतारें। हिंसा, झूठ से बचें, दूसरों को बचायें इसी में अपना और राष्ट्र का कल्याण है। अहिंसा के अभाव में न किसी का कल्याण है और न निर्माण है। धर्म क्या है? जरा समझें! यदि आप अपने घर में भोजन कर रहे हैं और उसी दौरान एक व्यक्ति आता है और वह कहता है भैया! मुझको बहुत भूख लगी है, मैं तीन दिन का भूखा हूँ, मुझको रोटी दीजिए यदि आप अपनी थाली की रोटी उसको खिला देते हैं, उसकी भूख बुझा देते हैं बस यही है आहार दान, सही धर्म। इसी प्रकार आप किसी मार्ग पर पैदल जा रहे हैं गर्मी के दिन हैं आपके हाथ में छाता है उसी वक्त एक व्यक्ति आवाज लगाता है मुझको बचाओ, वह व्यक्ति रास्ते में गिर गया था उसको चोट लग गई थी, खून बह रहा था यदि आप रुक जाते हैं और अपना गमछा फाड़कर उसकी चोट के ऊपर उसको बांध देते हैं और उसका हाथ पकड़कर अपने साथ ले जाते हैं उसके गन्तव्य तक तो बस यही है औषधि दान। आपने भले उसको कोई दवा नहीं दी औषधि नहीं दी लेकिन उसके संकट में अपना हाथ लगाया इससे बड़ी और कौन सी दवाई हो सकती है। इसी प्रकार एक व्यक्ति रास्ते पर चला जा रहा है अचानक वह रास्ता भटक जाता है और यदि हमने उसको रास्ता बता दिया, उसकी भटकन दूर कर दी तो यही है ज्ञान दान। किसी भटके को सही रास्ता दिखा देना इससे बढ़कर और क्या हो सकता है ज्ञान दान। खोटे मार्ग से व्यक्ति को निकाल कर सन्मार्ग में लगा देना सबसे बड़ा ज्ञान दान है। इसी प्रकार एक व्यक्ति अकेला जा रहा है, रात्रि का समय है, वह भय से घबड़ा जाता है और चिल्ला पड़ता है बस उसी समय एक व्यक्ति वहाँ आ जाता है और कहता है कि आप घबराइए मत मैं आपके साथ हूँ और वह उसका साथ देता है वह व्यक्ति भय से मुक्त हो जाता है बस! यही है अभय दान। इस प्रकार हमने चार प्रयोगों द्वारा धर्म की बात समझी और उसके लिए पढ़ने की जरूरत नहीं क्योंकि किसी भूखे को भोजन खिलाना, रोगी को औषधि देना, भटके को रास्ता बताना और भयभीत को निर्भय करना, यह तो बिना पढ़े ही आ जाता है और आना चाहिए। इस प्रकार समझ लेते हैं धर्म की वास्तविकता को जो कि पूर्ण रूप से आडम्बर से रहित है। धर्म के लिए किसी विशेष सामग्री की आवश्यकता नहीं बस भावनाओं की जरूरत है। अपनी रक्षा करना धर्म नहीं दूसरों की रक्षा करना धर्म कहलाता है। जो अनाथ है, बेसहारा है, भूखा है, रोगी है, संकटग्रस्त है, गरीब है उसकी मदद करना उसके दुखों को दूर करना धर्म कहलाता है। पशु पक्षियों पर क्रूरता नहीं करना धर्म कहलाता है, पशु पक्षियों को नहीं सताना धर्म कहलाता है। आज के युग में पशु पक्षियों पर बहुत संकट छाया है उनका वध हो रहा है उन पर अत्याचार हो रहा है अत: उनका वध रोकना उनकी व्यवस्था करना सबसे बड़ा धर्म है। धर्म हमको यही तो सिखलाता है कि हम किसी पर अत्याचार न करें चाहे वह मनुष्य हो या जानवर। आज आवश्यकता इस बात की है कि हम गाँव-गाँव में पशु-पक्षी संरक्षणालय खोलें और जनता को पशुओं से प्रेम करने की भावनायें पैदा करें यह सबसे बड़ा धर्म है। जनता में ऐसा आन्दोलन छेड़ें कि जनता पशुओं के अधिकारों को समझ जाये और उनकी रक्षा के लिए सरकार से लड़ाई लड़े यही आज के युग में बहुत बड़ा धर्म है। अब हम रक्षा करना सीखें। अपनी-अपनी रक्षा तो सभी करते हैं लेकिन जो दूसरों की रक्षा करता है वह बहुत बड़ा वीर माना जाता है। बहादुरी अपनी रक्षा करने में नहीं अपितु दूसरों की जान बचाने में है।
  14. पर्यावरण की दृष्टि से भी पशु पक्षियों का संरक्षण अनिवार्य है पशु पक्षी रहेंगे तो धरती पर हरियाली रहेगी, यदि पशु पक्षी समाप्त हो जायेंगे तो वनस्पति, हरियाली भी नहीं बचेगी। पेड़-पौधों, वनस्पति, हरियाली के बिना हम जीवित नहीं रह सकते, जीवन के लिए वनस्पति अनिवार्य है। पर्यावरण मनुष्य ने बिगाड़ा है पशुपक्षियों ने नहीं। प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने के लिए पशु-पक्षी, पेड़-पौधों की उपस्थिति अनिवार्य है। लेकिन यह कितनी बेतुकी विकासवादी प्रक्रिया है जो पर्यावरण को ही खतरे में डाल रही है। पशुओं का वध पर्यावरण का विनाश है, प्रकृति के लिए खतरनाक है फिर भी किसी को इसकी चिन्ता नहीं, मात्र विदेशी मुद्रा के लालच में हम अपने पशु धन को मिटाने में तुले हुए हैं। यदि यही स्थिति रही तो हमारा पर्यावरण ही हमारे लिए प्राणघातक सिद्ध होगा। हम प्रकृति को असन्तुलित कर अपने जीवन को खतरे में न डालें अपितु इसके लिए एक आंदोलन छेड़ें ताकि पशु-पक्षियों का संरक्षण हो सके और देश में हो रही अन्धाधुन्ध पशु हत्या पर अंकुश लग सके। मांस का निर्यात रुक सके। देश में लोकतंत्र के स्थान पर पल रहे 'लोभतंत्र' को निकाल दें तो यह देश मांस नियति से होने वाली विदेशी कमाई के बिना ही उन्नत हो सकता है। विदेशी मुद्रा के लालच में पशु मांस निर्यात करना और काण्ड पर काण्ड तथा घोटाला करके देश को लूटना, देश को कर्जदार बनाना, यह कहाँ की कमाई है? उनति है? एक पेड़ काटने पर व्यक्ति को सजा और जुर्माना भुगतना पड़ता है लेकिन आज जो प्रतिदिन हजारों लाखों जिन्दा पशु, दुधारू जानवर कत्लखानों में काटे जा रहे हैं। सरकार ने उनको रोकने के लिए कोई कानून बनाया? कत्लखानों को बन्द करने के लिए अब कानून बनाने की आवश्यकता है, कत्लखाने के खोलने की योजना बनाने की जरूरत नहीं। एक ताजी जानकारी के अनुसार इस समय मध्यप्रदेश में २१३ पशु वध गृह कार्यरत हैं जिसमें से १८८ छोटे पशुओं के लिए तथा ३० बड़े पशुओं के लिए हैं। अब इन तमाम कत्लखानों को बंद करने की आवश्यकता है ये कत्लखाने देश के लिए कलंक हैं। इनमें पशुओं को बेमौत मारा जा रहा है पशुओं को मारने की आवश्यकता नहीं उनको पालने की जरूरत है। सरकार का कर्तव्य है कि वह इन कत्लखानों को बंद करे, और गो-शालाओं का निर्माण करे, जहाँ इनका पालन हो। इस कार्य के लिए जनता का सहयोग भी अनिवार्य है। वह पशुओं की रक्षा के लिए उनके आहार, पानी, आवास चिकित्सा की व्यवस्था करे। पशु प्रेम मानवीय कर्तव्य है, कर्तव्य ही नहीं सेवा का कार्य है अभयदान परोपकार है महान् धर्म है। यह कौन सी नीति है? दुधारू जानवरों का कत्ल करके उनका खून मांस विदेश निर्यात किया जाये और वहाँ से गोबर, दूध पाउडर यहाँ बुलवाया जाए। देश चलाने वालों को यह नीति बदल देना चाहिए क्योंकि यह अर्थनीति नहीं यह तो अनर्थ नीति है। दूध बेचो खून नहीं। जिसका हमने दूध पिया, घी खाया, जिसके घी से दीपक जलाकर परमात्मा की आरती उतारी ऐसी गौ माता का कत्ल करके उसका मांस निर्यात करे, ऐसी सरकार को बदल देना चाहिए क्योंकि भारत माता गौशाला चाहती है कत्लखाने नहीं। आज धरती के साथ अन्याय हो रहा है क्योंकि रासायनिक खादों के नाम पर उसकी जहर दिया जा रहा है जिससे फल, सब्जियाँ, अनाज विकृत हो चुके हैं और धरती बांझ होने के कगार पर है। धरती को आज गोबर की जरूरत है और वह गोबर किसी फैक्ट्री से नहीं मिलेगा गोबर के लिए तो गो-वंश की आवश्यकता है और वह गो-वंश कत्लखानों से नहीं गो-शालाओं से जिन्दा रहेगा। घी का दीपक मंगल का प्रतीक है, घी के दीपक से आँख की ज्योति बढ़ती है, घी सात्विक होता है, स्वास्थ्यप्रद होता है, विदेशों में दूध तो है लेकिन घी नहीं। घी भारत की पहचान है लेकिन आज तो घी की जननी ही कटती जा रही है। याद रखो, गाय के अभाव में घी नहीं और घी के अभाव में सात्विकता-आरोग्यता भी नहीं, अत: गाय की रक्षा आरोग्यता की रक्षा है स्वास्थ्य की रक्षा है इसलिए कत्लखानों में कटते गौ-वंश को बचाना आज की पहली जरूरत है। जो राष्ट्र कभी अहिंसा और अध्यात्म के क्षेत्र में विश्व का गुरु था, विश्व में अग्रणी था, वही राष्ट्र आज मांस मंडियों में अग्रणी है। हीरा-मोती बेचने वाला भारत आज पशुओं का मांस बेच रहा है, यह महापाप भारत के लिए कलंक है। इस मांस निर्यात के महा पाप को मिटाने के लिए हम सबको एक जुट हो जाना चाहिए और इसके लिए देरी की आवश्यकता नहीं। शाकाहार समाज को अब खुलकर अहिंसात्मक तरीके से अपना विरोध प्रकट करना चाहिए। मात्र कुछ विदेशी मुद्रा के लिए पशुओं की अप्रत्यक्ष रूप से योजना बनाना किसी भी शासक के लिए अधर्म है। यदि जनता में अहिंसा नहीं जागी तो देश में पशु धन समाप्त हो जायेगा। हमारा देश पशुओं से खाली न हो इसके पहले ही हमको जागृत हो जाना है और पशु वध रोकने के लिए हमको कटिबद्ध हो जाना है। एक संकल्प लेना है कि हम मांस निर्यात रोक कर ही बैठेगे। इसके पहले बैठना अपराध होगा। अहिंसा एवं धर्म के संस्कारों से मुक्त भारत से मांस का निर्यात व मूक पशुओं की बलि देखकर भी हमारी चेतना नहीं जाग रही है। हम संवेदन शून्य हो गए हैं, यह लज्जा की बात है। सामूहिक अपराध में हम सब भागीदार बन रहे हैं तो क्या इसका दंड हमको नहीं मिलेगा? हमारे देश में मान्यता प्राप्त कत्लखानों में लाखों मूक पशुओं की हर दिन बलि दी जा रही है और अहिंसक जनता मूक दर्शक बनकर देख रही है। पशुओं के वध पर अहिंसक देश के नागरिकों की चुप्पी चिन्तनीय है चाहे वह कोई भी हो कांग्रेस हो या भाजपा, निर्दलीय हो या अन्य दल हो उन्हें इस राष्ट्रहित के मुद्दे को ठुकराना नहीं है अपितु भारत से मांस के निर्यात को रोकना है। आप किसी भी पक्ष के रहो लेकिन राष्ट्र के पक्ष को कभी नहीं भूलना है। कत्लखाने, पशु हत्या, मांस निर्यात से राष्ट्र का हित नहीं होगा, राष्ट्र का हित तो इनको बन्द करने में है। यह भारत भूमि है, यह कृषि प्रधान देश है यहाँ वेदों पुराणों की पूजा होती है, यहाँ प्रत्येक प्राणी को अभयदान दिया जाता है। यहाँ बीजों को भी बचाया जाता है क्योंकि उनमें वृक्षों की आत्मा निवास करती है उनके पास भी जीवन होता है। लेकिन यह कितने खेद की बात है कि बीजों की भी रक्षा करने वाला देश आज जिन्दा जानवरों को मारकर उनका मांस बेच रहा है। मांस निर्यात के लिए पशुओं की हत्या मानवता के प्रति अपराध है। अत: पशु वध रोकने के लिए सब एक जुट हो जाओ। मांस निर्यात राष्ट्र का सबसे बड़ा घोटाला है। मांस का व्यवसाय बहुत बुरी चीज है। मांस निर्यात सामूहिक पाप की प्रक्रिया है। मांस निर्यात से आने वाला पैसा भी मांसाहारी है। मांस निर्यात की नीति भारत की नहीं है, मांस निर्यात भारतीय संस्कृति के खिलाफ है भारत का इतिहास अहिंसा और करुणा की कविता है, उसमें हिंसा का फल, क्रूरता की कोई जगह नहीं। मांस निर्यात राष्ट्रीय मुद्रा का अपमान है। जिसकी राष्ट्रीय मुद्रा में 'सत्यमेव जयते' का धर्म वाक्य लिखा है और वही राष्ट्र पशुओं का कत्ल करके उनका खून मांस निर्यात कर रहा है कत्लखाने खोल रहा है। राजनेताओं को अपनी राष्ट्रीय मुद्रा का अच्छी तरह से अध्ययन करना चाहिए और अशोक महान की उस मुद्रा को कलंकित नहीं करना चाहिए। वह उस सम्राट की मुद्रा है जिसने युद्ध का त्याग कर दिया था। हमने उसकी मुद्रा को अपना राष्ट्रीय चिह्न घोषित किया और मांस बेच रहे हैं यह राष्ट्रीय मुद्रा का अपमान है। लोकतंत्र का कर्तव्य है कि वह भारतीय संस्कृति के संरक्षण के लिए भारत से हो रहे मांस का निर्यात तत्काल बंद करे, और इसके लिए दलगत राजनीति से हटकर सभी राजनेताओं को एक जुट होना चाहिए। जिस प्रकार बहुमत के माध्यम से मंत्रिमंडल परिवर्तन किया जा सकता है उसी प्रकार देश के नीति निर्धारकों के सामने बहुमत एवं दृढ़ता के साथ अपना पक्ष रखें ताकि देश से मांस निर्यात पर अविलंब विराम लगे और वातावरण में सुखद परिवर्तन हो। भारत से मांस निर्यात पर रोक लगाना ही देश के विकास का मंगलाचरण होगा। स्वतंत्रता देश के विकास के लिए प्राप्त की गई थी, विनाश के लिए नहीं। विकास किसका? आज तो ऋण का विकास देश में द्रुत गति से बढ़ता चला जा रहा है। देश विकासोन्मुखी है तो वह ऋण की अपेक्षा से है। जरा आप सोचें आपको क्या करना है देश को कर्जदार या ऋण मुत? याद रखिए! जितना-जितना पशु धन कटेगा यह भारत उतना ही कर्जदार, गरीब, गुलाम और बेरोजगार होगा। अत: मांस निर्यात रोकना ही राष्ट्र की सबसे बड़ी उन्नति है। देश के पशु धन को संहार करके हिंसाचार के माध्यम से आज तक विश्व के किसी भी देश ने अपना विकास नहीं किया फिर भारत पशु मांस की कमाई से भारत की गरीबी दूर नहीं हो सकती। देश की गरीबी का कारण हमारा विदेशों में रखा धन है। हम भारत में रहते हैं लेकिन अपना धन विदेशों में रखते हैं क्या भारत के ऊपर विश्वास नहीं? देश का धन विदेश में रखना ही देश की गरीबी और कंगाली का कारण है। भारत कंगाल हो रहा है। ऋण के भार से दब रहा है और देशवासियों का धन विदेशी बैंकों में सुरक्षित है। हम कैसे कहें कि हम अपने देश का विकास कर रहे हैं। अपने देश का धन यदि अपने देश में ही रहे तो आज की गरीबी नहीं है लेकिन मांस बेचकर विदेशी मुद्रा कमाने की लालच में देश को प्राकृतिक सम्पदा से खाली न करें। पशु धन को बचाए उसकी रक्षा करें यही आज की मौलिक आवश्यकता है। आपके वोट में बहुत ताकत है आपके वोटों में ही सरकार बनती है क्योंकि यह प्रजातंत्र है। आप यह संकल्प करें कि हम वोट उसी को देंगे जो मांस निर्यात बंद करे, पशु वध रोके, कत्लखाने समाप्त करे। भारत प्रजातंत्रात्मक देश है जो अहिंसा और सत्यनिष्ठा के सिद्धांतों के आधार पर स्वतंत्र हुआ है। गणतंत्र व्यवस्था में प्रजा ही सरकार है, सरकार और अन्य कोई नहीं। आपको एक अहिंसावादी सरकार को चुनना है ताकि देश में हिंसा कत्ल का वातावरण न बने। मांस निर्यात रोकने के मुद्दे को राजनीतिक मत बनाओ। यह तो राष्ट्रीय मुद्रा है, इनके पीछे राष्ट्र हित का सोच है व्यक्तिगत स्वार्थ का नहीं क्योंकि जहाँ स्वार्थ है वहाँ दुनियाँ की भलाई का विचार नहीं, स्वार्थी दुनियाँ का भला नहीं चाहता वह तो अपना मतलब साधता है दुनियाँ उसकी दृष्टि में नहीं। राष्ट्र के सच्चे हितैषी ही राष्ट्र की पीड़ा को समझ सकते हैं लेकिन जिनके पास स्वार्थी लिप्साएं हैं वे सत्ता पाकर के भी राष्ट्र की अस्मिता को कायम नहीं रख सकते। सरकार को सरकार चलाने के लिए हिंसा के तरीके नहीं अपनाना चाहिए क्योंकि सरकार हिंसा से नहीं चल सकती हिंसा से सरकार चलाने का तरीका सरकार को बेकार कर देगा। कत्लखाने खोलना क्या हिंसा नहीं है? मांस का निर्यात करना क्या हत्या नहीं है? अर्थ का इतना लालच मत करो कि देश की चेतन सम्पदा का ही विनाश हो जाए। सरकार को मांस निर्यात के खूनी व्यवसाय को बन्द कर देना चाहिए पशुओं को कत्ल करने का अधिकार हमको नहीं, हमको तो कर्तव्य के साथ उनका लालन-पालन करना चाहिए। मांस निर्यात से प्राप्त विदेशी मुद्रा के द्वारा भारत की गरीबी नहीं, अपितु गरीब अवश्य मिट रहे हैं। भारत के द्वारा ही आज भारतीयता नष्ट हो रही है क्योंकि आज भारत की दृष्टि धन पर है धर्म पर नहीं। मानवता का नाम धर्म है लेकिन धन मात्र नैतिकता है। जहाँ अहिंसा रहेगी वहाँ हरियाली रहेगी लेकिन आज तो हरियाली ही छिनती जा रही है हरियाली को खाने वाले जानवरों ने भी इतनी हरियाली नहीं उजाड़ी जितनी की आदमी ने उजाड़ी। आज आदमी हरियाली भी खा रहा है और हरियाली को खाने वाले जानवरों को भी खा रहा है। कहाँ तक धरती में हरियाली रहेगी। मनुष्य खचीला प्राणी है जानवर नहीं। यदि हम अपने खर्च कम कर लें तो उसी पैसे से इन तमाम पशुओं का संरक्षण हो सकता है। हमारी उन्नति के लिए इन मूकों का कत्ल मानवता के विरुद्ध है। मानवता का हनन करके राष्ट्र की उन्नति का कोई मायना नहीं है। जो व्यक्ति अधिकार की बात करता है उसको अधिकरण (आधार) की बात करना चाहिए। इस कृषि प्रधान भारत देश की एक लम्बी आबादी का अधिकरण (आधार) ही पशु सम्पदा है। बैलों से लगा किसान है और किसान से हिन्दुस्तान है, अत: किसी भी कीमत पर पशुओं का कत्ल उचित नहीं है। मांस का निर्यात भारत जैसे अहिंसा एवं अध्यात्मवादी राष्ट्र के लिए कलंक है। हमको आज अहिंसा और अध्यात्म की जरूरत है जिसके अभाव में हिंसा का दौर बढ़ रहा है।
  15. आत्मानम् साधयति इति साधुः अर्थात् जो अपनी आत्मा की साधना करता है वह साधु कहलाता है। जो सुख और दुख में लाभ और हानि में जीवन और मरण में, वन और भवन में, मिट्टी में और सोने की गिट्टी में समता रखता है इनको समान देखता है इनमें भेद नहीं रखता वह साधु कहलाता है। समता ही साधु का जीवन है, भेद-भिन्नता की दृष्टि साधुता में बाधक है, न सोने के प्रति आकर्षण और मिट्टी के प्रति हीनता। आखिर सोना भी एक प्रकार की मिट्टी है फिर सोना पर इतना लगाव क्यों ? अतः सम भाव ही साधु जीवन का उपसंहार है। साधु जीवन में साधना प्रधान होती है साधन नहीं और वह साधना भी आत्मा की किसी सांसारिक इच्छाओं की नहीं। कल क्या करना है? यह नहीं अभी क्या करना है? यह विकल्प साधु को सदा रखना चाहिए। प्राय: कर हम लोग 'कल' पर जीते हैं लेकिन हमको 'आज' पर नहीं 'अभी' पर जीना चाहिए और यदि मरण उपस्थित हो जाये तो ‘वेलकम' करो और नहीं तो ‘वेल गो" कहो। मृत्यु का स्वागत करने वाले ही मृत्यु को जीतकर मृत्युंजयी बन सकते हैं, मृत्युसे डरने वाले नहीं। साधु जीवन मृत्यु से साक्षात्कार करता है। जीवन महत्वपूर्ण नहीं जितनी की मृत्यु है। दिगम्बर रूप प्रकृति का रूप है, प्रकृति दिगम्बरही है उस पर किसी भी प्रकार का अनावरण नहीं है। दिगम्बर का अर्थ नेचुरल (स्वाभाविक)। बच्चा जब पैदा होता है तब वह दिगम्बर ही रहता है कपड़े तो वह बाद में पहनता है। दिगम्बर दीक्षा महा पुण्यशाली जीव ही लेते हैं जो अपने अन्दर के विकारों को जीत लेते हैं, इन्द्रियों को वश में कर लेते हैं, संसार, शरीर और भोगों से विरत हो जाते हैं वे दिगम्बर दीक्षा लेकर अपनी आत्मा का कल्याण करते हैं और दुनियाँ का भी कल्याण करते हैं क्योंकि जो व्यक्ति स्वार्थ और मोह को छोड़ देता है उसके द्वारा कभी भी अशांति नहीं फैल सकती। अशांति का मूल कारण तो स्वार्थ है, मोह है, विकार है, तृष्णा है, लेकिन जिसने यह सब जीत लिया वह तो संसार के लिए आदर्श बन गया। दिगम्बर जैन मुनि २८ मूलगुणों का पालन करते हैं। दीक्षा के समय ही ये मूलगुण गुरु के द्वारा दिये जाते हैं जैसे पाँच महाव्रत- (१) अहिंसा महाव्रत (२) सत्य महाव्रत (३) अस्तेय महाव्रत (४) ब्रह्मचर्य महाव्रत (५) अपरिग्रह महाव्रत। इसके बाद पाँच समिति-(१) ईयाँ समिति-धरती पर चार हाथ देखते हुए चलना ताकि किसी जीव की हिंसा न होवे। (२) भाषा समिति-अप्रिय, कठोर, कटुक वचनों का त्याग करते हुए सदा हित, मित और मधुर मीठे वचन बोलना (३) एषणा समितिआहार को शोध-शोध कर ग्रहण करना, मौन पूर्वक ग्रहण करना, सूर्य प्रकाश में ग्रहण करना (४) आदान निक्षेपन समिति-शास्त्र, कमण्डल आदि को मयूर पंख की पिच्छिका से प्रतिलेखन कर जीवों को बचाते हुए रखना और उठाना। (५) प्रतिष्ठापना समिति-मल-मूत्र का विसर्जन एकांत स्थान में, जीव जन्तु रहित, जमीन पर करना। छह आवश्यक-(१) सामयिक-तीनों कालों में ध्यान करना (२) वन्दना-एक तीर्थकर प्रभु, अरहंत की स्तुति करना वन्दना कहलाती है। (३) स्तव-२४ भगवान् की बृहद् भक्ति करना विभिन्न रूपों से (४) प्रतिक्रमण- अपने किए हुए दोषों की आलोचना करना (५) प्रत्याख्यान-त्याग करने को प्रत्याख्यान कहते हैं (६) व्युत्सर्ग- शरीर से ममत्व का त्याग करना व्युत्सर्ग कहलाता है। पंचेन्द्रिय निरोध- पाँचों इन्द्रियों के विषय की इच्छाओं को जीतना। जैसे कि-(१) स्पर्शन इन्द्रिय विजय (२) रसना इन्द्रिय विजय (३) घ्राण इन्द्रिय विजय (४) चक्षु इन्द्रिय विजय (५) कर्ण इन्द्रिय विजय। सात विशेष गुण- (१) आचेलक्य – समस्त परिग्रह का त्याग कर दिगम्बर होना (२) अस्नान व्रत- नहाने का त्याग (३) केशलुच- दाढ़ी-मूंछ और सिर के बालों को अपने हाथ से उखाड़ना। (४) भूमि शयन- गद्वा, कम्बल, चादर, तकिया आदि ओढ़ने-बिछाने के सभी वस्त्रों का त्याग, मात्र लकड़ी के पट्ट पर बैठना और शयन करना। (५) अदन्त धावन- दांतों को चमकाने का त्याग (६) स्थिति भोजन- थाली आदि बर्तनों में भोजन करने का त्याग। अपने हाथों की अंजुलि में खड़े होकर आहार लेना (७) एक भुक्ति- चौबीस घण्टे में मात्र एक बार आहार लेना। इस प्रकार से ५ महाव्रत, ५ समिति, ६ आवश्यक, ५ इन्द्रिय विजय, ७ विशेष गुण इन २८ मूलगुण व्रतों का पालन दिगम्बर मुनि करते हैं। बस इसी का नाम है मुनि दीक्षा। इसके अलावा भी बहुत सी साधनाएँ हुआ करती हैं जिनका पालन भी करते हैं और इस सबका लक्ष्य आत्मशांति का है, आत्म विजय का है, किसी सांसारिक इच्छाओं का नहीं। ख्याति, लाभ, पूजा, सम्मान, नाम का नहीं। संसार, शरीर और भोगों से विरत होना ही दीक्षा है और सही साधना है। ज्ञान, ध्यान और तप में लीन रहना ही साधु का लक्षण है। वासना, तृष्णा, राग, द्वेष, मोह, स्वार्थ और भ्रान्ति से आत्मा को बचाना ही साधु जीवन है। आचार्यश्री ने अन्त में कहा कि-मैं तो मात्र आचार्य ज्ञानसागर महाराज (आचार्य श्री के गुरु) जी के कम्पनी में एजेन्ट का काम कर रहा हूँ। मेरा कुछ भी नहीं है। यह सब प्रताप गुरुदेव का ही है उनकी ही कृपा है। उन्होंने जो कुछ दिया मैं उसी को बाँटता रहता हूँ। वस्तुत: गुरु कृपा से क्या नहीं मिलता सब कुछ मिलता है। अत: गुरु सेवा, गुरु आज्ञा कभी नहीं भूलना चाहिए।
×
×
  • Create New...