नहीं भोजनानन्तर ही व्यायाम तथा यों गई कही।
प्रायः निश्चित वेला पर ही भोजन करना कहा भला।
वरना पाचन शक्ति पर अहो आ धमके गी बुरी बला॥६४॥
बिलकुल कम खाने से शरीर में दुर्बलता है आती।
किन्तु खूब खा लेने से भी अलसतादि आधि सताती॥
ब्रह्मचारियों का तो भोजन, हो मध्याह्न समय काही।
शाम सुबह दो बार गेहि लोगों का होता सुखदाई ॥६५॥
किन्तु सुबह के भोजन से, अन्थउ की मात्रा हो आधी।
ताकि सहज में पच जावे वह, नहीं देह में हो व्याधि ॥
नहीं किसी के साथ एक भोजन में भी भोजन करना।
वरना संक्रामकता के वश में होकर होगा मरना ॥६६॥
सीझा हुआ अन्न वासी होने पर ठीक नहीं होता।
भीजा, सड़ा, गला खाने से भी आरोग्य रहे रोता॥
निरन्न पानी पीने से नर जलोदरी हो जाते हैं।
प्यास मारकर खाने से गुल्मादिक रोग सताते हैं ॥६७॥
हाथ पैर एवं मुंह धोकर एक जगह स्थिरता धरके।
भोजन करो अन्त में मुँह को शुद्ध करो कुल्ला करके॥
तब फिर सहज चाल से कुछ दूरी तक कदम चला लेना।
ऐसे इस अपने साथी शरीर को मदु खुराक देना ॥६८॥
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