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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

संयम स्वर्ण महोत्सव

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  1. ओ पालन हारे छत्तीस गुण धारे, तुमरे बिन हमरा कौनउ नाही, हमरी उलझन, सुलझा दो भगवन्, तुमरे बिन हमरा कौनउ नांही। तुम्ही हम का हो सहारे, तुम ही हमरे रख वाले ॥ तुमरे बिन हमरा कौनउ नांही। सिवा तेरे ना, दूजा हमारा, तू ही आकर के देता सहारा, विपदा जो आये, पल में मिट जाये। तुमरे बिन................. हम गरीबो का तू है सहारा, तूमको अपना समझ के पुकारा, जग से जो हारा, तूने ही तारा, तुमरे बिन................ तूने भक्तो के दुखड़ो को टाला, हर मुसीबत से उनको निकाला, भक्तो के प्यारे, आँखो के तारे, तुमरे बिन............
  2. विद्यासागर गंगा, मन निर्मल करती है, ज्ञानाद्रि से निकली है, शिवसागर मिलती है। इक मूलाचार का कूल, इक समयसार तट है-2 दोनों होते अनुकूल संयम का पनघट है। स्याद्वाद वाह जिसका, दर्शक मन हरती है। विद्यासागर............... मुनिगण राज हंसा, गुण मणि मोती चुगते-2 जिनवर की संस्तुतियां पक्षी कलरव लगते शिवयात्री क्षालन को, अविरल ही बहती है। विद्यासागर.................... नहीं राग द्वेष शैवाल, नहीं फेन विकारो का-2 मिथ्यात्व का मकर नहीं, नहीं मल अविचारों का ऐसी विद्या गंगा, मृदु पावन करती है। विद्यासागर......................... जिसमें परिषह लहरें, और क्षमा की भंवरे हैं-2 करुणा के फूलों पर भक्तों के भौरें हैं, तप के पुल मे से वह, मुक्ति में ढलती है, विद्यासागर................... (तर्ज - जहाँ नेमी के चरण चुरे...)
  3. गुरुदेव मेरी नैय्या, उस पार लगा देना, अब तक तो निभाया है, आगे भी निभा देना-2 हम दीन दुःखी निर्धन, इक नाम रहे हर पल, । यह सोच दर्श देगे, प्रभू आज नहीं तो कल जो बाग लगाया है, फूलों से सजा देना अब तक तो..... तुम शान्ती सुधाकर हो, तुम ज्ञान दिवाकर हो, मम हँस चुगे मोती, तुम मानसरोवर हो। दो बूंद सुधारस की, हमको भी पिला देना, अब तक तो..... रोकोन्गे भला कब तक, मुझे दर्शन करने से, चरणों में लिपट जाऊँ, वृक्षों की लता जैसे। अब द्वार खड़ा तेरे, मुझे राह दिखा देना अब तक तो..... मझधार पड़ी नैय्या, डगमग डोले भव में, आओ श्री मति नन्दन अब द्वार खड़ा कब से, करता हूँ मैं विनती, मुझे अपना बना लेना, अब तक तो.....
  4. हे गुरुवर धन्य हो तुम कितना परिषह सहते हो, सर्दी, गर्मी या हो बरसात, तुम अपने में रहते हो, समता रस को पीते हो, जग से कुछ नहीं कहते हो, हे गुरुवर.....। महाऋषि आचार्य श्री ने कैसा संघ रचाया निर्देशन लेने को चरित्र, खुद द्वार पर आया, संयम ही जीवन है, प्रवचन में कहते हो, हे गुरुवर..... आदिनाथ की कृपा देखो, महावीर की छाया, पारस रूपी विद्या पाकर, कुंदन होती काया भक्तों को हे गुरुवर, छोटे बाबा लगते हो, हे गुरुवर..... गंगा और नर्मदा जैसी, लगे आर्यिका माता, देख दृष्टिमय जनम-जनम का, मैल सभी धुल जाता ज्ञान नदी बनकर के सारे, विश्व में बहते हो, हे गुरुवर..... यह की ऐसी किरणें फैली जय जयकार हुआ है, आचार्य श्री के दर्शन से मोहित संसार हुआ है, प्रभु जैसा बने हम सब, सब जीवों से कहते हो, हे गुरुवर.....
  5. रोम-रोम से निकले गुरुवर, नाम तुम्हारा-2 ऐसा दो वरदान की फिर ना पाऊं जनम दुबारा,रोम... प्रेम किया जब जग से, जग ने ही ठुकराया, तेरा प्रेम न जाना, दुःख को गले लगाया हम को लगता है, इस युग में, तू ही एक सहारा, रोम... माता-पिता तुम मेरे, सच्चे मित्र सहारे, सारी दुनिया छोड़ी, आये तेरे द्वारे, भटक रहे है, भव सागर में, पाया नहीं किनारा, रोम..... दिल से निश दिन गुरुजी, ज्योति जलाऊँ तेरी, कब तक पूरी होगी, मन की आशा मेरी, इन नैनों से तेरी ज्योति का, देखें अजब नजारा, रोम..... छोड़ न पाऊँ प्रभु जी, पांच ठगो का डेरा किस विध पाऊँ आखिर, प्रभु जी दर्शन तेरा, भटक न जाये ये बालक,प्रभु जी देना आप सहारा,रोम-रोम.....
  6. कितना प्यारा तेरा दुआरा, यही बिता दूं जीवन सारा तेरी दरश की लगन से, हमें आना पड़ेगा इस दर पर दोबारा। भव-भव के दुख हरने वाले, सबको सुख में करने वाले, गुण में तेरी धारा हमें..... दिनभर तेरी याद सताती, छवी तेरी दिल में आ जाती, तेरी अनुपम धारा, हमें..... रात-रात भर नींद न आती, सपनों में पूजा हो जाती, कैसा अद्भुत नजारा, हमें.... कमलो को विकसाने वाले, धर्म प्रकाश दिखाने वाले, तू ही जग उजियारा, हमें..... प्रभु तुम से अब कुछ नहीं चाहुँ। जनम-जनम तेरे दर्शन पाऊँ, मन में यही विचारा, हमें..... भव्य जनों के हृदय खिलाते, जो भी तेरे दर पर आते, तू ही अजब सितारा, हमें..... विष को निर्विष करने वाले, राग-द्वेष को तजने वाले, अन्जन पापी तारा, हमें..... नैया मोरी पार लगाओ, हमको अपने पास बुलाओ, तू ही हमको प्यारा, हमें..... वीतरागता हमें दिखा दो, मुझसे मेरा मिलन करा दो, तूने सब को तारा, हमें..... तुम ही हो बस एक सहारे, जग में रहते जग से न्यारे, देना जगत किनारा, हमें..... वीतरागता है झर-झर झरती, तुझे देख खुश होते नगरी, तू ही अजब सितारा, हमें..... महावीर जिन संकट हारी, नैया सबकी पार उतारी, भव का दुःख निवारा, हमें..... नर सुर इन्द्र करे सब पूजा, और नहीं है कुछ भय दूजा, तुझमें ज्ञान आपारा, हमें..... अपनी जैसी दृष्टि बनाओ, जिन गुण संपत्ति हमें दिखाओ, देकर हाथ सहारा, हमें..... पापी भी यदि ध्यान लगावे, भव-भव के बंधन कट जावे, अंजन को भी तारा, हमें..... प्रभु चरणों में ध्यान लगाऊँ, निज आतम हित में लग जाऊँ, नरतन मिले दुबारा, हमें.....
  7. प्रतिभागान चरणों में जगह माँगी थी, हमें अपना बना लिया। हैं जनम-जनम के प्यासे, जिनआगम पिला दिया-2॥ शुक्रिया आपका इक भाव उठा था मन में, छू लँ इस विशाल नभ को। इससे भी ऊपर जाना, ये कहा आपने हमको॥ अपने को ना समझा था, अपने से मिला दिया। है जनम-जनम.....॥ भक्ति के पंख लगाके, जी करता है उड़ जाऊँ। गुरु चरण धूल बन कर के, चरणों में ही रह जाऊँ॥ पलकों से उठाकर मोती, आँखों का बना लिया। है जनम-जनम.....॥ करुणा भरी दृष्टि से, हमें बनाया सम्यकदृष्टि। जनमों के पुण्य फले हैं गुरु कृपा है इतनी बरसी॥ सत् कर्मों के सरगम में गुण गाना सिखा दिया। है जनम-जनम.....॥ जब से तुमको पाया है, खुशियाँ आई जीवन में। सब कुछ लगता है सुहाना, न तपन रही अब मन में ॥ थे बूंद कभी पानी की हमें मोती बना दिया। है जनम-जनम.....॥
  8. स्वर्ग से सुन्दर सपनों से प्यारा है, गुरुवर का द्वार। बना रहे आशीष आपका, आये गुरु के द्वार॥ गुरु का द्वार न छूटे, चरण की छाँव न छूटे-2 (गुरु अशीष न छूटे, चरण की छाँव न छूटे) सूने जीवन की बगिया को आकर के महकाया। फूल खिलाये सौरभ दे, काँटो से है बचाया। जन्म-जन्म भटके जीवन में, दिशाबोध अब पायें। गुरु का द्वार न छूटे, चरण की छाँव न छूटे-2 गुरु उपकार न भूले, सभी मिल चरणों पूजें..... ज्ञान-दिवाकर की लाली सब जग में है बिखराई । चंदन सी शीतलता दे, जन-जन की ताप मिटाई ॥ समवशरण की अद्भुत महिमा का दर्शन करवाया। गुरु का द्वार न छूटे, चरण की छाँव न छूटे-2 गुरु उपकार न भूले, सभी मिल चरणों पूजें..... माता-पिता तुम मेरे, सच्चे गुरु हमारे। तुमसे मिला ये जीवन, तुम हो भगवान हमारे॥ कहाँ मिलेगी इतनी ममता, इतना प्यार-दुलार। कभी गुरुद्वार न छूटे, चाहे ये जान भी रुठे गुरु का द्वार न छूटे, चरण की छाँव न छूटे-2 गुरु उपकार न भूले, सभी मिल चरणों पूजें..... भावों की भींगी कलियाँ, गुरु चरणों में है लाये। करके श्रद्धा हे गुरुवर, महिमा तेरी गाये ॥ मुक्ति मंजिल देने वाले, है विश्वास हमारा। गुरु का द्वार न छूटे, चरण की छाँव न छूटे-2 गुरु उपकार न भूले, सभी मिल चरणों पूजें......
  9. जीवन तुमने दिया है सम्भालोगे तुम। आशा हमें है विश्वास है, हर मुश्किल से विधाता निकालोगे तुम ॥ जीवन तुमने दिया है सम्भालोगे तुम। साये में हम आप ही के पले, सत्कर्म की राह पर हम चलें। सारे जहाँ की भलाई करें, हम न किसी की बुराई करें। इस दुनियाँ के दुःखों से बचालोगे तुम-2 आशा हमें है विश्वास है, हर मुश्किल से विधाता निकालोगे तुम॥ जीवन तुमने दिया है सम्भालोगे तुम।। हर-पल तुम्हारा अगर साथ है, फिर भी हमको डरने की क्या बात है। कठिनाइयों से न हारेंगे हम, तुमको हमेशा पुकारेंगे हम॥ अपने गले से हमें भी लगालोगे तुम-2 आशा हमें है विश्वास है, हर मुश्किल से विधाता निकालोगे तुम ॥ जीवन तुमने दिया है सम्भालोगे तुम। छाया कहीं तो कहीं धूप है, है नाम कितने कई रूप हैं। हर साये में तुम समाये हुए, हम सब तुम्हारे बनाये हुए॥ हम जो रुठे कभी तो मनालोगे तुम-2 आशा हमें है विश्वास है, हर मुश्किल से विधाता निकालोगे तुम ॥ जीवन तुमने दिया है सम्भालोगे तुम।
  10. दोष और गुण विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार https://vidyasagar.guru/quotes/anya-sankalan/dosh-aur-gun/
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