मेरे गीतों का विषय, गुरु मेरी आराधना।
गुरु चरणों में जीवन-बीते है मेरी ये भावना॥
हे निर्ग्रन्थ अबंधनीय तुम्हें क्या बांधे कोई काव्यकर।।
फिर भी गुणों का आराधन करती हूँ यह जयमाल पढ़॥
मेरे गुरुवर जब से तेरा दर्शन पाया है।
चौथे काल के मुनियों का स्मरण हो आया है॥
तुम जैसा इस जग में गुरुवर कोई न पाया है।
तुम सम बन जाने का मन में भाव सजाया है॥
मन मेरा ये हर्षित है गुरु करके जय-जयकार अब।
फिर भी गुणों का आराधन करती हूँ यह जयमाल पढ़॥
जिनका जीवन संयम समता का यश कहता है।
तीर्थ-प्रवर्तक सी करुणा का झरना बहता है॥
आत्म-तत्त्व का चिंतन जिनके उर में चलता है।
इनकी भक्ति करने को हर भक्त उछलता है॥
कहीं और जाने से मन मेरा करता है इनकार अब।
फिर भी गुणों का आराधन करती हूँ यह जयमाल पढ़॥