हे गुरुवर धन्य हो तुम कितना परिषह सहते हो,
सर्दी, गर्मी या हो बरसात, तुम अपने में रहते हो,
समता रस को पीते हो, जग से कुछ नहीं कहते हो,
हे गुरुवर.....।
महाऋषि आचार्य श्री ने कैसा संघ रचाया
निर्देशन लेने को चरित्र, खुद द्वार पर आया,
संयम ही जीवन है, प्रवचन में कहते हो,
हे गुरुवर.....
आदिनाथ की कृपा देखो, महावीर की छाया,
पारस रूपी विद्या पाकर, कुंदन होती काया
भक्तों को हे गुरुवर, छोटे बाबा लगते हो,
हे गुरुवर.....
गंगा और नर्मदा जैसी, लगे आर्यिका माता,
देख दृष्टिमय जनम-जनम का, मैल सभी धुल जाता
ज्ञान नदी बनकर के सारे, विश्व में बहते हो,
हे गुरुवर.....
यह की ऐसी किरणें फैली जय जयकार हुआ है,
आचार्य श्री के दर्शन से मोहित संसार हुआ है,
प्रभु जैसा बने हम सब, सब जीवों से कहते हो,
हे गुरुवर.....