रोम-रोम से निकले गुरुवर, नाम तुम्हारा-2
ऐसा दो वरदान की फिर ना पाऊं जनम दुबारा,रोम...
प्रेम किया जब जग से, जग ने ही ठुकराया,
तेरा प्रेम न जाना, दुःख को गले लगाया
हम को लगता है, इस युग में, तू ही एक सहारा, रोम...
माता-पिता तुम मेरे, सच्चे मित्र सहारे,
सारी दुनिया छोड़ी, आये तेरे द्वारे,
भटक रहे है, भव सागर में, पाया नहीं किनारा, रोम.....
दिल से निश दिन गुरुजी, ज्योति जलाऊँ तेरी,
कब तक पूरी होगी, मन की आशा मेरी,
इन नैनों से तेरी ज्योति का, देखें अजब नजारा, रोम.....
छोड़ न पाऊँ प्रभु जी, पांच ठगो का डेरा
किस विध पाऊँ आखिर, प्रभु जी दर्शन तेरा,
भटक न जाये ये बालक,प्रभु जी देना आप सहारा,रोम-रोम.....