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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

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आचार्य श्री विद्यासागर दिगंबर जैन पाठशाला

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  1. महामस्तकाभिषेक चलो चले सुदर्शनोदय तीर्थ क्षेत्र आंवा जी आचार्य भगवन श्री 108 विद्यासागर जी महाराज जी के आशीर्वाद ✋ से एवं उनके परम प्रभावी शिष्य मुनि पुंगव श्री 108 सुधासागर जी महाराज,मुनि श्री 108 महा सागर जी महाराज, मुनि श्री 108 निष्कंप सागर जी महाराज एवं क्षुल्लक द्वय 105 श्री गंभीर सागर जी महाराज और धैर्य सागर जी महाराज जी के ससंघ सानिध्य में नव वर्ष पर देवाधिदेव श्री 1008 शांतिनाथ भगवान का प्रथम बार 1008 कलशों से होने जा रहा है महामस्तकाभिषेक दिनांक 1 जनवरी 2019 को यदि आप भी चाहते है महामस्तकाभिषेक करना तो अभी संपर्क करे जो भी व्यक्ति अपनी इच्छानुसार 🎍11 कलश 🎍21 कलश 🎍51 कलश के माध्यम से भी अभिषेक करना चाहते है वह भी संपर्क करे ‌ आंवा पधाराने हेतु मार्ग 🚘आंवा जयपुर से सरौली मोड़ 135कि. मी. , कोटा से सरौली मोड 115किमी,🌴 अजमेर से सरोली मोड़ 155किमी, सरौली मोड़ से आंवा 12 किमी है 🚘सरौली मोड़ पर कमेटी का वाहन 24 घण्टे उपलब्ध है।
  2. स्थान एवं पता - दयोदय महातीर्थ श्री आदिनाथ दिगंबर मंदिर बोरगांव (खंडवा) साइज़ (माप) - 21 फीट पत्थर - सफ़ेद मार्बल लागत - 600000 पुण्यार्जक का नाम - समस्त दिगंबर जैन समाज बोरगांव खंडवा शिलान्यास तारीख - 9/6/2017 शिलान्यास सान्निध्य राजनेता - विधायक श्री देवेन्द्र जी वर्मा सचिव सुनील जी गदिया, प्रदीप जी कासलीवाल, सतीश कुमार काला, सुभाष जी गदिया, दिलीप पहाड़िया एवं समस्त गणमान्य अध्यक्ष बोरगांव तीर्थ कमेठी लोकार्पण तारीख - 26/06/2018 लोकार्पण सान्निध्य - आचार्य श्री अनेकांतसागर जी महाराज ससंघ
  3. *इस युग के महान संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के दर्शन करने आर्यिका शिरोमणिगणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी अपने संघ सहित कल 29 दिसम्बर को मध्याह्न 2 बजे जाऐंगी।* विस्तृत जानकारी के अनुसार आज पूज्य माताजी संघ का मंगल विहार *बरोदिया ग्राम* के शान्तिनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर से मध्याह्न 3 बजे *कठेली ग्राम* के लिए होगा। रात्रि विश्राम कठेली में करके पुनः कल 29 दिसम्बर को प्रातः 8.30 बजे विहार करके पूज्य माताजी संघ 6 किमी आगे एवं खुरई से लगभग 1 किमी पहले अजित चौधरी जी की फ़ैक्टरी में पूज्य माताजी एवं आर्यिकासंघ संघ की आहारचर्या होगी। मध्याह्न 1 बजे समस्त दिगम्बर जैन समाज, खुरई द्वारा बाजे-गाजे के साथ पूज्य माताजी संघ की खुरई शहर में भव्य अगवानी होगी। पूज्य माताजी संघ सहित मंगल धाम स्थल पहुँचेंगी। जहाँ इस सदी के महान संत आचार्य गुरुदेव संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज विराजमान हैं! यह अत्यन्त महान और ऐतिहासिक अवसर होगा, जब *शरदपूर्णिमा को जन्में दोनों सन्तों के माध्यम से सामाजिक समरसता का दिव्य सन्देश सम्पूर्ण भारत की जैन समाज को प्राप्त होगा।*
  4. प्रश्न 1 - कातंत्र रूपमाला जो दो तीन वर्ष में पढ़ी जाती है, उसे आचार्य श्री ने कितने दिन में पढ़ी? प्रश्न 2 - आचार्य श्री विद्यासागर जी दीक्षार्थी से क्या कहते है? प्रश्न 3 - "साधुओं पर जिसकी श्रद्धा हट गई वह आचार्य श्री विद्यासागर जी के दर्शन अवश्य करें" ये किसने कहा है? प्रश्न 4 - संयमोत्सव वर्ष के समापन पर दूरदर्शन पर आचार्य श्री विद्यासागर जी मौन साधना की परछाइयाँ किसने प्रसारित की? उत्तर आप नीचे कमेंट पर लिखें |
  5. शिलान्यास सान्निध्य - पूज्य आर्यिका पूर्णमति माता जी निमार्ण पुण्यार्जक - ,श्री महेंद्र जैन,इन्द्रसेन, कवि बंधु डॉ नरेन्द्र चंद्रसेन ,सतेंद्र जैन, बामौर कलां जिला शिवपुरी
  6. *भव्य मंगल प्रवेश कल* _आचार्य भगवन 108 श्री विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य *पूज्य मुनि श्री 108 अभयसागर जी महाराज, मुनि श्री प्रभातसागर जी महाराज एवं पूज्य मुनि श्री निरीहसागर जी महाराज का मंगल प्रवेश सुबह कुंडलपुर में होगा।*_ *नववर्ष की बेला में पूज्य मुनिश्री के सान्निध्य में होगा बड़ेबाबा का भव्य अभिषेक- शांतिधारा.....* _अधिक से अधिक संख्या में कुंडलपुर पहुंचकर, इन स्वर्णिम पलो के साक्षी बन पुण्य लाभ अर्जित करें।_ 🚩 *पुण्योदय विद्यासंघ* 🚩
  7. 🙏🏻बड़ी खबर🙏🏻 श्रमण संस्कृति की सर्वोच्च साध्वी गणिनी प्रमुख आर्यिकाश्री ज्ञानमति माताजी का मंगल विहार श्रमण संस्कृति के सर्वोच्च आचार्य पूज्यपाद श्रमण चक्रवर्ती आचार्य श्री विद्यासागरजी महामुनिराज के प्रथम बार दर्शन हेतु राहतगढ से खुरई की ओर हुआ। कल शाम को संभावित पूज्या माताजी खुरई में गुरुदेव के दर्शन करेंगी
  8. "जैनाचार्य 108 विद्या सागर स्वर्ण संयम कीर्ति स्तंभ" स्थान - अतिशय क्षेत्र करगुवा जी झांसी लोकार्पण दिनांक - 2 अक्टूबर 2017 प्रेषक - सुमत कुमार जैन,(अछरोनी वाले ) झांसी पुन्यार्जक - सुमत कुमार जैन, शीला जैन लागत राशि - २४००००
  9. प. पू. आचार्य १०८ श्री विद्यासागर जी महाराह की कृपा एवं आशीष से नि:शुल्क चिकित्सा शिविर 29 व 30 दिसम्बर 2018 शनिवार रविवार प्रात: 8 बजे मंगलधाम खुरई
  10. आचार्यश्री विद्यासागर जी के ५० वे दीक्षा वर्ष में संयम कीर्ति स्तम्भ बना हो तो आप जानकारी प्रेषित करें , ताकि आने वाली स्मारिका में प्रकाशित किया जा सके | निम्न बिन्दूओ पर जानकारी की आवश्यकता होगी सामान्य जानकारी 1. स्थान एवं पता ((निकटतम प्रसिद्ध स्थान का नाम) 2. साइज़ (माप) / पत्थर / लागत 3. कीर्ति स्तम्भ का फोटो (Full view) 4. पुण्यार्जक का नाम (व्यक्तिगत है तो व्यक्ति का नाम अथवा सामूहिक है तो समूह का नाम) 5. जी पी एस लोकेशन 6. शिलान्यास विवरण 6.1 शिलान्यास तारीख 6.2 शिलान्यास सानिध्य (पिच्छीधारी 6.3 शिलान्यास सानिध्य प्रतिष्टाचार्य 6.4 शिलान्यास सानिध्य राजनेता 6.5 शिलान्यास के चित्र / फोटोग्राफ्स 7. लोकार्पण विवरण 7.1 लोकार्पण तारीख 7.2 लोकार्पण सानिध्य पिच्छीधारी एवं अन्य (त्यागी व्रती) 7.3 लोकार्पण सानिध्य राजनेता 7.4 लोकार्पण के चित्र / फोटोग्राफ्स निम्न में से किसी एक स्थान पर भेजे 1 स्वयं www.Vidyasagar.Guru वेबसाइट पर डाले https://vidyasagar.guru/keerti-stambh/ 2 google form पर डाले https://goo.gl/forms/oN06gvCbJUvumAIn1 3 ईमेल पर भेजे info@vidyasagar.guru 4 whatsapp करें 9694078989 5 डाक अथवा कोरियर से इस पते पे भेजे सौरभ जैन 14/55 शिप्रा पथ मानसरोवर जयपुर राजस्थान ३०२०२० सम्पूर्ण विवरण समाज के लेटर पैड पर लिख कर प्रेषित करें । साथ मे अखबार की कतरन भी भेजें संपर्क सूत्र सौरभ जैन जयपुर - 9694078989 आप सुनिश्चित करे की आपके यहाँ बना कीर्ति स्तम्भ नीचे लिंक पर जरूर दिखे |https://vidyasagar.guru/blogs/blog/28-1
  11. आचार्य भगवन श्री 108 विद्यासागर जी महाराज जी के ससंघ खुरई में विराजमान है आज उनके सानिध्य में समस्त जैन समाज ने आचार्य भगवन का आशीर्वाद प्राप्त किया और आचार्य श्री के आशीर्वाद से बनेगा 126 फुट ऊँचा सहस्त्रकूट जिनालय बनने की हुई घोषणा और यह सौभाग्य विजय कुमार जी,संजय कुमार जी,विजय फाउंड्री वाले समस्त खुरई परिवार वाले को नींव से लेकर शिखर तक जिनालय बनाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ
  12. पत्र क्रमांक-२११ २९-०५-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर लघु वय में जैन संस्कृति को समर्पित परम पूज्य दादागुरु के परमभावों को नमन करता हुआ पुरुषार्थशील चरणों में अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित करता हूँ...। | हे पितामह गुरुवर! आपकी ही तरह मेरे गुरुवर ने छोटी-सी वय में अपने आपको पहचाना और आत्मकल्याण की राह पर चल पड़े किन्तु उन्होंने सोचा भी नहीं था कि स्वकल्याण के साथ-साथ पर कल्याणार्थ दायित्व/जिम्मेदारी को भी निर्वहन करना होगा। आपकी आज्ञा/भावना को पूरी करने के लिए उन्होंने पद को स्वीकारा और आपकी भावना ‘संघ को गुरुकुल बनाना है' को हृदय में धारण कर स्वयं साधना के सधे हुए कदमों से बढ़ चले मोक्षमार्ग पर। बचपन से ही ध्यान-साधना में विशेष रुचि रही। वे ध्यान में घण्टों-घण्टों तीर्थंकरों से, उनकी वाणी से बातें करते, तत्त्वज्ञान पाते और अब तो ध्यान में आपसे भी बातें करते होंगे। इस सम्बन्ध में ब्यावर के सुशील जी बड़जात्या (अध्यक्ष दिगम्बर जैन समाज, ब्यावर) ने २०१६ में बताया - सोते हुए नहीं देखा : परीक्षा में हुए पास ‘‘ब्यावर चातुर्मास में हमने आचार्यश्री जी को सोते हुए नहीं देखा। दिन में तो देखा ही नहीं और रात्रि में भी १०-११ बजे तक भी नहीं देखा। लोगों से सुना कि वे सोते नहीं हैं तो विश्वास नहीं हुआ। एक दिन इसी की खोजबीन में लग गया। चातुर्मास के बाद की बात है नवम्बर माह का अन्त समय था हम २३ युवा लोग सेठ जी की नसियाँ में रात के डेढ बजे तक रुके रहे। तो आचार्यश्री ऊपर खुले चौक में बीच में खड़े होकर ध्यान में लीन थे। वे कभी मन्द-मन्द मुस्काने लगते, कभी गम्भीर हो जाते, ऐसा लगता था जैसे अपने गुरु से बात कर रहे हों। रात्रि २ बजे हम लोग घर वापस आ गए। इस तरह हमने उन्हें कभी लेटे हुए नहीं देखा । वैयावृत्य तो वे कभी कराते नहीं थे।' इस तरह आपके प्रिय आचार्य ज्ञान-ध्यान-साधना के कई-कई सोपानों पर नित्य चढ़ते जा रहे थे और इसकी चर्चा किसी से भी नहीं करते । गुप्त साधना का गुप्त आनंद एकांत में ही तो आता है। ब्यावर चातुर्मास में ज्ञानसागर के अमृत को खूब वर्षाया। समाज ने भी पूरा-पूरा लाभ लिया और ज्ञानामृत को अपनी स्मृति में संजोये रखने के लिए एक स्मारिका का प्रकाशन कराया। जो छपकर के मेरे गुरुदेव के सामने ही विमोचित हुई । जिसके बारे में जैन गजट' २० दिसम्बर १९७३ गुरुवार को समाचार प्रकाशित हुआ - स्मारिका विमोचन ‘‘ब्यावर-श्री १०८ आचार्य विद्यासागर जी महाराज के चातुर्मास समापन के उपलक्ष्य में दि. जैन समाज ब्यावर की ओर से एक भव्य स्मारिका का प्रकाशन किया गया, जिसका दि. १५-१२-७३ शुक्रवार को मध्याह्न में समाज शिरोमणि धर्मवीर सेठ सर भागचन्द जी सा. सोनी द्वारा भारी जन समुदाय के मध्य विमोचन किया गया। श्री सर सेठ सा. ने विमोचन के उपरान्त स्मारिका की एक प्रति आचार्य श्री को समर्पित की। इस अवसर पर श्री सर सेठ सा. के अतिरिक्त सर्व श्री चिमनसिंह जी लोढा, धर्मचन्द जी मोदी आदि के सामयिक भाषण हुए। आचार्य श्री का कार्यक्रम के तुरन्त बाद लगभग २ बजे पीसांगन की ओर विहार हो गया।' पीसांगन पहुँचने पर भव्य स्वागत हुआ। इस सम्बन्ध में वहाँ के पुखराज जी पहाड़िया (पूर्व जिला प्रमुख) ने बताया - २५०० निर्वाण महोत्सव का हुआ ध्वजारोहण परमपूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ब्यावर से १५ दिसम्बर को पीसांगन की ओर विहार किया। समाज ने भव्य स्वागत किया। उनके आने से समाज में बहुत अधिक उत्साह का संचार हुआ क्योंकि उनकी ख्याति फैली हुई थी कि २२ वर्ष की भरी जवानी में कन्नड़ भाषी युवा ने दिगम्बर दीक्षा ली और गुरु ने अपना गुरु बनाकर आचार्य पद दिया तथा अपने गुरु की ऐसी सेवा की कि करोड़ों रुपया लेकर भी कोई नहीं कर सकता। ऐसे ज्ञानी मुनि महाराज हैं। तो उनका समागम पाकर हर कोई खुश था। पूरे राजस्थान स्तर पर भगवान महावीर स्वामी का २५00 वां निर्वाण महोत्सव मनाने हेतु महोत्सव समिति ने पीसांगन में आकर परम श्रद्धेय आचार्य गुरुवर श्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ के सान्निध्य में महोत्सव का ध्वजारोहण करके मंगलाचरण किया। ध्वजारोहण सर सेठ श्रीमान् भागचंद सोनी जी ने किया था। इस सम्बन्ध में जैन गजट' २० दिसम्बर १९७३ को मूलचंद सोगानी जी का समाचार प्रकाशित हुआ - जैन ध्वज का आरोहण “पीसांगन २३-१२-७३-आज यहाँ एक भव्य समारोह में आचार्य श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज के सान्निध्य में ऑल इण्डिया दिगम्बर भगवान महावीर निर्वाण महोत्सव सोसायटी के कार्याध्यक्ष श्री सर सेठ भागचन्दजी सा. सोनी द्वारा इस अवसर पर एकत्रित विशाल जनसमूह के समक्ष सर्व मान्य पंचवर्णयुक्त जैन ध्वज का राजस्थान में सर्वप्रथम आरोहण सम्पन्न हुआ। साथ ही पीसांगन क्षेत्रीय समिति का गठन एवं पदाधिकारियों का चयन भी सम्पन्न हुआ। ध्वजारोहण सम्पन्न करते समय सर सेठ साहब ने निर्वाण महोत्सव की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए बहुत ही मार्मिक शब्दों में हमारे जीवन में आये इस अपूर्व अवसर पर सभी कार्य छोड़कर तन, मन, धन से जुटकर जैन शासन एवं भगवान महावीर के तत्त्वदर्शन की प्रभावना के लिए आह्वान किया। समापन आशीर्वाद के समय आचार्य श्री ने कहा कि आज इस ध्वजारोहण से मेरा हृदय पुलकित हो रहा है, मेरी कामना है कि यह जैन ध्वज जो स्याद्वाद, पंच परमेष्ठी, पंचाणुव्रत, पंच महाव्रत एवं पांचों सम्प्रदायों की एकता का प्रतीक है, अनन्तकाल तक जैन शासन को दिग-दिगान्तर में फैलाता रहे।'' यहाँ से २८ दिसम्बर को जेठाना गए। वहाँ ७-८ दिन का प्रवास रहा। इस सम्बन्ध में पदमचंद जी गंगवाल ब्यावर ने बताया - नाटक पर प्रवचन ‘‘हम लोग ब्यावर चातुर्मास में आचार्यश्री के आकर्षण से इतने बंध गए थे कि हर एक-दो दिन में उनके दर्शनार्थ पहुँच जाते थे। जेठाना में भगवान महावीर निर्वाण महोत्सव पर भव्य कार्यक्रम हुआ। तब आचार्य श्री जी के आशीर्वाद से हम लोगों ने ‘सोने का किला' नामक नाटक किया था। सुबह आचार्यश्री ने नाटक के विषय पर ही प्रवचन किया। इस सम्बन्ध में ‘जैन गजट' ३ जनवरी १९७४ को मूलचंद सोगानी संयुक्तमंत्री का समाचार प्रकाशित हुआ - पाठशाला का उद्घाटन “जेठाना-भगवान महावीर के २५०० वें निर्वाण महोत्सव के परिपेक्ष्य में ३०-१२-७३ को यहाँ एक भव्य समारोह में एक धार्मिक पाठशाला का उद्घाटन आचार्य १०८ श्री विद्यासागर जी महाराज के सान्निध्य में सम्पन्न हुआ। उद्घाटनकर्ता श्री मोतीलाल जी बोहरा कालू निवासी ने इस अवसर पर विद्यालय के स्थाई फण्ड के लिए १५०१/- रु. दिये। साथ ही श्री मांगीलाल जी गंगवाल ने विद्यालय में केशरिया ध्वज फहराकर ५०१/- के दान की घोषणा की। इस अवसर पर अजमेर क्षेत्रीय निर्वाण महोत्सव समिति के तत्त्वावधान में एवं आचार्य महाराज के सान्निध्य में समस्त जैन समाज द्वारा मान्यता प्राप्त पंचवर्णी ध्वज का आरोहण भी श्री मूलचन्दजी पाटनी द्वारा कर क्षेत्रीय समिति के लिए २५१/- की राशि घोषित की गई। समारोह में अजमेर क्षेत्रीय समिति के पदाधिकारियों के अतिरिक्त ब्यावर, पीसांगन, कालू तथा आसपास से विशाल जन समूह ने भाग लिया एवं करीब १०००/- की राशि एकत्र हुई। विद्यालय की देखरेख के लिए एक स्थायी समिति का निर्माण हुआ जिसके अध्यक्ष श्री रतनलाल जी गंगवाल मनोनीत किए गए। इस तरह भगवान महावीर निर्वाण महोत्सव के परिपेक्ष्य में जेठाना में आपके प्रिय आचार्यश्री की प्रेरणा से बच्चों के संस्कारों के लिए पाठशाला का उद्घाटन किया गया और जेठाना के बाबूलाल जी जैन पाटनी ने १८-०२-२०१८ को मुझे बताया कि पाठशाला का नामकरण आचार्यश्री जी ने अपने गुरु के नाम से किया था-आचार्य ज्ञानसागर पाठशाला । जो काफी वर्षों तक चलती रही। इस तरह हे तात! आपके लाड़ले शिष्य प्रिय आचार्य मेरे गुरुवर की ज्ञान-वैराग्य-चारित्र का प्रताप यशोरथ पर आरूढ होकर आगे से आगे बढ़ता गया और समाज उनका समागम पाकर अपने आप को कृतकृत्य मानती। वर्ष १९७३ ने अस्त हुए ज्ञानसूर्य के वियोग का पूर्ण अनुभव कर ही नहीं पाया और विद्या-दिवाकर की ज्ञान रश्मियों के प्रकाश से नयी ताजगी, उत्साह, स्फूर्ति, आनंद की अनुभूति की और तब उसने अपनी इस अनुभूति को इतिहास के पन्नों पर स्वर्णिम अक्षरों से टाँका । शिष्य वही सच्चा है जो गुरु की पर्याय बन जाये, जिसमें गुरु जी' जाये, जिससे गुरु की इच्छा पूरी हो जाये, जो गुरुनाम अमर कर जाये, जो गुरुसम महान् शरण बन जाये, जो संस्कृति का सही स्वरूप दिखा जाये । वही तो सच्चे शिष्य की परिभाषा बन जगत को जीना सिखाता है। जिसका जीता-जागता उदाहरण मेरे गुरु-सबके गुरु-विश्व गुरु आचार्य श्री विद्यासागर जी को आपने प्रस्तुत किया है। धन्य हैं आप।। ऐसे गुरु-शिष्य के पावन चरणों में असीम नमस्कार नमस्कार नमस्कार... आपका शिष्यानुशिष्य
  13. पत्र क्रमांक-२१० २४-०५-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर वीतराग निर्विकल्प समाधि से उत्पन्न परमानन्दरूप सुखरस का आस्वादन कराने वाली परम समता रूप समाधि साधना में लीन दादागुरु परमपूज्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज के पावन चरणों में त्रैकालिक भक्तिपूर्वक नमोऽस्तु नमोऽस्तु नमोऽस्तु... हे दादागुरु! कार्तिक वदी अमावस्या २६ अक्टूबर १९७३ को भगवान महावीर निर्वाण महोत्सव पर मेरे गुरु के सान्निध्य में ब्यावर समाज ने महोत्सव मनाया। गुरुदेव ने मार्मिक प्रवचन किया। समाज ने कार्तिक आष्टाह्निका पर सिद्धचक्र मण्डल विधान का आशीर्वाद मांगा तो गुरुदेव ने मौन आशीर्वाद प्रदान कर दिया । कार्तिक सुदी अष्टमी से पूर्णिमा तक सिद्धचक्र विधान बड़े ही ठाट-बाट से सम्पन्न हुआ। हे गुरुवर! जिस प्रकार से आप प्रतिवर्ष चातुर्मास समापन पर श्रावक से नयी मयूरपिच्छी ग्रहण करते थे और पुरानी पिच्छी उसी श्रावक को दे देते थे। इसी तरह आपकी परिपाटी को आगे बढ़ाते हुए आपके लाड़ले शिष्य प्रिय आचार्य मेरे गुरुवर भी श्रावक से नवीन पिच्छिका ग्रहण करते और पुरानी पिच्छिका श्रावक को दे देते थे, लेकिन गुरुदेव के तप एवं आकर्षक व्यक्तित्व के प्रभाव के कारण पिच्छी लेने-देने वालों की संख्या बहुत होने लगी। तब उन्होंने नियम बना दिया कि जो भी पिच्छी लेगा और देगा उसे सदाचार का नियम लेना होगा। इस सम्बन्ध में ब्यावर निवासी जयपुर प्रवासी सुरेन्द्र कुमार मोदी ने २०१६ ब्यावर में बताया - संयमोपकरण लेने-देने का बनाया नियम : संयम ‘ब्यावर चातुर्मास समापन से एक दिन पूर्व मेरे पिताजी श्री धर्मचंद जी मोदी ने आचार्यश्री से निवेदन किया मैं आपकी पुरानी पिच्छिका लँगा, तब आचार्यश्री जी ने कहा-‘आप सामाजिक और लौकिक राजनीति में भाग लेते हैं एवं धर्म का पालन करने का अभ्यास भी आपको नहीं है अतः जो धर्मनिष्ठ होंगे उन्हीं को पुरानी पिच्छिका मिलेगी।' तब पिताश्री बोले-पिच्छिका तो मैं ही लँगा । पुनः आचार्यश्री ने कहा-‘जो ब्रह्मचर्य व्रत लेगा और भांग आदि नशे एवं आलू-प्याज का त्याग करेगा उसे ही पिच्छिका मिलेगी।' यह सुनकर पिताजी घर आ गए। दूसरे दिन कार्तिक सुदी १४ दिनांक ०९ नवम्बर १९७३ को आचार्य महाराज ने प्रवचन में पिच्छिका लेने का नियम बता दिया। तब पिताश्री प्रवचन सभा में खड़े हो गए और बोले पिच्छिका मैं लूंगा। तब आचार्यश्री बोले-'अकेले नहीं साथ में धर्मपत्नी को भी लाओ। दोनों की रजामंदी से ही पिच्छिका मिलेगी।' तब धर्मसभा में मेरी माँ भी बैठी हुईं थीं, वे भी खड़ी हो गयीं। भरी सभा में आचार्यश्री ने पूछा-'आप लोग यह नियम जीवनभर पाल लेगें।' तो माँ बोलीं-हम तो जीवनभर यह नियम पाल लेंगे, किन्तु इनका ये जाने । आचार्यश्री जी आप इनको पूरा संकल्प कराके ही देना, क्योंकि ये बाहर घूमते हैं और नेतागिरी करते हैं। तब पिताजी बोले-महाराज! मैं ब्रह्मचर्य व्रत लेता हूँ और भांग का भी त्याग लेता हूँ, साथ ही सप्त व्यसन का त्याग करता हूँ, किन्तु आलू-प्याज त्याग करने का नियम नहीं ले सकता । तब आचार्यश्री ने पूछा- क्यों नहीं ले सकते?' तो पिताजी बोले-मैं कांग्रेस का नेता हैं, कभी पार्टी ने मुझे विदेश भेजा तो, वहाँ पर आलू-प्याज के अलावा दूसरी चीज मिलती नहीं है? तब आचार्यश्री जी ने उन्हें समझाया ‘उम्र इतनी हो गयी है पार्टी का क्या पता भेजें या न भेजें और यदि संयम लेने का भाव है तो फिर विदेश का मोह छोड़ना होगा।' तब आचार्यश्री की प्यार भरी समझाईस से सारे नियम ले लिए और बोले मैं विदेश भी नहीं जाऊँगा। तब आचार्यश्री जी ने उन्हें संकल्प करा कर उनसे नयी पिच्छिका ग्रहण की और पुरानी पिच्छिका माता-पिता को दे दी। इस तरह आपके लाड़ले शिष्य प्रिय आचार्य मेरे गुरुवर ने आचार्यपद प्रतिष्ठित होने के बाद प्रथम चातुर्मास भव्य प्रभावना के साथ सानन्द सम्पन्न किया। ऐसे आज्ञानुवर्ती आगम निष्ठ गुरु-शिष्य के चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम करता हुआ... आपका शिष्यानुशिष्य
  14. खुरई के नवीन जैन मंदिर में अाचार्यश्री के प्रवचन हुए खुरई बुंदेलखण्ड वासियों की मधुर एवं कर्णप्रिय वाणी श्रवण कर जो आत्मीयता, धार्मिकता, समर्पण, त्याग, तपस्चर्या एवं एकता का परिदृश्य होता है, वैसी वाणी अन्यत्र कम ही देखने मिलती है। यहां के वाशिंदों की बोली मन में उत्साह एवं उमंग को संचारित कर देती है। मन में संगीत की तरंगे प्रवाहित होने लगती है, पंकज की तरह आसमां को छू जाती हैं। अंधकारमय जीवन में प्रकाश भर देती है। वैसे भारत की संस्कृति का गुणगान संपूर्ण विश्व करता है, जितने भी शोध कार्य हो रहे हैं वह हमारे प्राचीन ग्रंथों में वर्णित सूत्रों के आधार पर हो रहे हैं। जैन धर्म अति प्राचीन धर्म है, इसके मूल ग्रंथों में आज से हजारों लाखों वर्ष पूर्व लिखा गया वह सभी प्रमाणिक एवं विज्ञान की कसौटी पर आज भी खरा उतरता है। यह बात नवीन जैन मंदिरजी में आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ने प्रवचन देते हुए कही। उन्हाेंने कहा कि शिक्षा हमें किसकी, किसको एवं क्यों दी जा रही है इस पर भी मंथन जरूरी है। उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा कि हम नागरिक नहीं हैं क्याेंकि हमारे नगरों में रहने की तो योग्यता नहीं है, हम 'स्मार्ट सिटी' बना रहे हैं, तहसील को जिला एवं जिला को राजधानी बनाने ललायित हैं। श्रम के क्षेत्र में हम शून्य होते जा रहे हैं। तीसरे विश्व युद्ध की कगार पर खड़े हैं हम अपनी पहचान खोते जा रहे हैं, यह धारणा ठीक नहीं है। मैं दुनिया के ममत्व एवं भ्रांतियां देख आश्चर्यचकित हूं। अरे! कुछ बन सको या न बन सको, कम से कम नेक इंसान तो बन जाओ। उन्हाेंने कहा कि वर्तमान समय में हम विदेशी वस्तुएं अपनाने लगे हैं, स्वदेशी वस्तुएं अपनाने में हम बैकवर्ड कहलाने लगते हैं, यह धारणा ठीक नहीं। हमें हस्त करघा उद्योग को विकसित करना होगा , पूर्ण स्वदेशी एवं अहिंसक वस्तुओं का प्रयोग कर एक बार पुनः भारत के गौरव को बनाकर 'सोने की चिड़िया' के राष्ट्र का सम्मान दिलाना होगा, तभी हम एवं हमारा राष्ट्र खुशहाल हो सकेगा, तब ही हम अपने धर्म की रक्षा कर पाएंगे। इस अवसर पर अनेक दान दाताओं ने दान की घोषणा की। पाठशाला के नौनिहाल बच्चों ने भी अपनी अपनी गुल्लकों से लगभग 21 हजार की दान राशि प्रदान कर आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज से आशीर्वाद लिया।
  15. पत्र क्रमांक-२०९ २३-०५-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर शुद्ध निश्चय नय से सिद्धरूप शुद्ध पर्याय से अभिन्न शुद्ध जीवास्तिकाय के ज्ञाता ज्ञानमूर्ति दादागुरु परमपूज्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज के पावन चरणों में त्रिकाल नमोऽस्तु करता हूँ... हे गुरुवर! ५-६ वर्ष के अल्पकाल में प्रतिभा सम्पन्न आपके लाड़ले शिष्य ने आपसे आगम, अध्यात्म, दर्शन का ज्ञान तो प्राप्त किया ही साथ ही प्राकृत, संस्कृत, हिन्दी भाषा का और साहित्य का भी ज्ञान प्राप्त किया तथा आपकी ही तरह उनके हृदय में काव्य ने जन्म ले लिया और अपने सम्बोधनार्थ उन्होंने रचनाबद्ध किया। जिसे पढ़कर लगता है कि आत्मा की गहन गहराईयों में जाकर स्वानुभूतिरूप मणियों को शब्दों में पिरो दिया है| - निजानुभव-शतक ब्यावर चातुर्मास में उन्होंने जो आत्मा का अनुभव किया वह राष्ट्रभाषा हिन्दी में प्रथम शतक के रूप में सर्जित कर दिया, जिसका नामकरण किया निजानुभव शतक। यह शतक वसंततिलका के १०४ छन्दों में है जिसके अन्तिम दो छन्दों में आचार्यश्री लिखते हैं - अजयमेर के पास है ब्यावर नगर महान। धारा वर्षायोग को ध्येय स्व-पर कल्याण ॥१०३॥ नव नव चउ द्वय वर्ष की सुगन्ध दशमी आज । लिखा गया यह ग्रन्थ है, निजानन्द के काज ।।१०४॥ (अंकानां वामतो गतिः अनुसार, सुगन्ध दशमी वी.नि.सं. २४९९, ७-९-७३ ब्यावर अजमेर) यह शतक आध्यात्मिक सुषमा से ओतप्रोत है और आत्म स्वभाव की मुख्यता को लेकर के लिखा गया है। जिसके कुछ छन्द द्रष्टव्य हैं- गुरु समर्पण थे ज्ञानसागर गुरु मम प्राण प्यारे, थे पूज्य साधुगण से बुध मुख्य न्यारे । शास्त्रानुसार चलते मुझको चलाते, वन्दें उन्हें विनय से सिर को झुकाते ॥२॥ स्वहिताय सम्बोधनार्थ निज को कुछ मैं लिखेंगा, शुद्धोपयोग जिससे, द्रुत पा सर्केगा। संताप पाप सपने अपने तनँगा, तो वीतरागमय भाव सदा भनँगा ॥४॥ मेरी खरी सुखकरी रमणी क्षमा है, शोभावती भगवती जननी प्रभा है। मैं बार-बार निज को करता प्रणाम, आनन्द नित्य फिर तो दुःख का न नाम ॥५९॥ ब्रह्मा महेश शिव मैं मम नाम राम, मेरा विराम मुझमें, मुझमें न काम। ऐसा विवेक मुझको अधुना हुआ है, सौभाग्य से सहज द्वार अहो! खुला है ॥६॥ स्वामी! ‘निजानुभव' नामक काव्य प्यारा, कल्याण खान भव नाशक श्राव्य न्यारा। जो भी इसे विनय से पढ़ आत्म ध्यावे, विद्यादिसागर बने शिव सौख्य पावे ॥१०२॥ इस तरह सन् १९७३ चातुर्मास के बाद एक और राष्ट्रभाषा में काव्य की रचना की। इस सम्बन्ध में डिण्डौरी में २१ मार्च २०१८ को दोपहर में दीपचंद जी छाबड़ा (नांदसी) के द्वारा जिज्ञासा रखवायी तो जवाब में आचार्यश्री ने बताया - जम्बूस्वामी चरित्र इस चरित्र में अन्तिम श्रुत केवली बाल ब्रह्मचारी जम्बूस्वामी के अप्रतिम वैराग्य की चरमोत्कर्ष दशा को दर्शाया है। जिसका वसन्ततिलका, मन्दाक्रान्ता, मालिनी, द्रुतविलम्बित आदि अनेक छन्दों में ग्रथित हुआ है, किन्तु यह विशिष्ट कृति पूर्ण होने से पूर्व गुम हो गयी। इस तरह ब्यावर चातुर्मास अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग के साथ सम्पन्न हुआ। ऐसे ज्ञानोपयोगी गुरु-शिष्य के चरणों में त्रिकाल वंदन करता हूँ... आपका शिष्यानुशिष्य
  16. पत्र क्रमांक-२०८ २२-०५-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर सिद्धान्त को आचरण बनाने वाले परमपूज्य दादा गुरु श्री ज्ञानसागर जी महाराज के पवित्र चरणों में नतशिर अवनत... हे गुरुवर! आपने ५-७ वर्ष में ही अपने लाड़ले शिष्य को जैन सिद्धान्त में इतना पारंगत बना दिया कि वे हर बात में सिद्धान्त को खोज लेते हैं। इस सम्बन्ध में ब्यावर के सोहनलाल जी जैन का संस्मरण सुशील जैन (अग्रवाल जैन) के द्वारा प्राप्त हुआ और दीपचंद जी छाबड़ा (नांदसी) ने २०१८ ज्ञानोदय में दो संस्मरण सुनाए वे आपको बता रहा हूँ| - जिनवाणी के शब्द मारक नहीं तारक होते हैं। ‘‘ब्यावर चातुर्मास प्रारम्भ होने के कुछ दिन बाद ब्यावर की श्वेताम्बर जैन समाज का शिष्टमंडल आचार्यश्री जी के दर्शनार्थ आया तो उन्होंने आचार्यश्री से प्रश्न किया आप माईक से प्रवचन करते है? जबकि शब्द तो मारक होते हैं जीवों की हिंसा होती है। तब आचार्यश्री जी ने जवाब दिया-समवसरण की रचना देवों द्वारा की जाती है अर्थात् उसमें तीर्थंकर भगवान की किसी प्रकार की अनुमोदना नहीं होती। इसी प्रकार भव्य जीवों के कल्याणार्थ समाज के लोग व्यवस्थाएँ बनाते हैं उसमें -महाव्रतियों की अनुमोदना नहीं होती, और जिनवाणी के शब्द मारक नहीं तारक होते हैं। अधिक से अधिक लोग सुनकर अपना कल्याण करते हैं।' यह सुनकर वे लोग चले गए और प्रतिदिन प्रवचन में आने लगे | कथा में सिद्धान्त की पकड़ ब्यावर चातुर्मास में एक दिन आचार्यश्री एवं क्षुल्लक स्वरूपानंद सागर जी प्रात:काल शौच के लिए जंगल जा रहे थे। रास्ते में स्वरूपानंद जी ने आचार्यश्री जी से कहा-सहदेवी रानी का जीव मरकर शेरनी बन गया और उसने तीव्र रौद्र ध्यान में आकर पूर्वभव के पुत्र सुकौशल मुनिराज पर घोर उपसर्ग किया, उस उपसर्ग को सहन करके सुकौशल मुनिराज केवलज्ञानी हो गए। तब पूर्वभव के पति श्री कीर्तिधर मुनिराज ने उस शेरनी को सम्बोधित किया जिससे वह शान्त परिणामों से मरकर स्वर्ग में देवी बन गयी। इस प्रसंग को सुनकर आचार्यश्री बोले-‘वह शेरनी सम्यक्त्व ग्रहण नहीं कर पायी। इसलिए स्वर्ग में देवी पर्याय को प्राप्त हुई।' इस प्रकार आचार्यश्री जी प्रथमानुयोग की चर्चा में भी सिद्धान्त की बात पकड़ लेते थे। वाह!!! क्या जवाब है। ब्यावर चातुर्मास के दौरान ब्रह्मचारिणी दाखाबाई जी, ब्रह्मचारिणी मणिबाई जी, ब्रह्मचारिणी कंचन माँ जी तीनों ने मिलकर चौका लगाया और प्रतिदिन आहार के लिए पड़गाहन करतीं। एक दिन उनके चौके में पण्डित श्री हीरालाल जी शास्त्री परिवार ने पड़गाहन किया। उस दिन किसी ने कच्चे सेवफल का टुकड़ा अंजुलि में दे दिया आचार्य महाराज ने उस सेवफल के टुकड़े को देखकर अंतराय कर दिया। पण्डितजी काफी दुखी हुए फिर शाम को चर्चा के दौरान पण्डित जी बोले-महाराज! जिस प्रकार से अंजुलि में बीज, कंकड़, तृण आ जाने पर उसे अलग करने का विधान है इसी प्रकार अगर सचित्त वस्तु आ जाये तो उसे अंजुलि से अलग कर देने में क्या बाधा है? तब आचार्यश्री जी ने बहुत अच्छा जवाब दिया-‘श्रावक की असावधानी के कारण अन्तराय किया जाता है और उसको मालूम भी तो होना चाहिए ना! कि मुनि महाराज सचित्त वस्तु नहीं लेते हैं और फिर मैं सचित्त वस्तु को नीचे गिराऊँगा तो अहिंसा व्रत नहीं पलेगा इसलिए अंतराय करना श्रेष्ठ है। आचार्यश्री का जवाब सुनकर शास्त्रीजी वाह! वाह !! कर उठे और हाथ जोड़कर नमोऽस्तु करने लगे।" इस तरह आपके लाड़ले शिष्य प्रिय आचार्य हम सबके गुरुवर को प्रारम्भ से ही जो भी देखता/समझता, तो पाता वे एक अलौकिक ज्ञानरूपी व्यक्तित्व के धनी हैं। जन्म-जन्मान्तरों का महापुरुषत्व उनमें झलकता है। ऐसे दिव्य व्यक्तित्व के धनी गुरु-शिष्य के चरणों में त्रिकाल वंदना करता हुआ... आपका शिष्यानुशिष्य
  17. आज आचार्य श्री एवं मुनि श्री संधान सागर जी के खुरई में हुए केश लोच |
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