Jump to content
सोशल मीडिया / गुरु प्रभावना धर्म प्रभावना कार्यकर्ताओं से विशेष निवेदन ×
नंदीश्वर भक्ति प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • पत्र क्रमांक - 211 - २५०० निर्वाण महोत्सव का हुआ ध्वजारोहण

       (0 reviews)

    Vidyasagar.Guru

    पत्र क्रमांक-२११

    २९-०५-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर

     

    लघु वय में जैन संस्कृति को समर्पित परम पूज्य दादागुरु के परमभावों को नमन करता हुआ पुरुषार्थशील चरणों में अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित करता हूँ...। | हे पितामह गुरुवर! आपकी ही तरह मेरे गुरुवर ने छोटी-सी वय में अपने आपको पहचाना और आत्मकल्याण की राह पर चल पड़े किन्तु उन्होंने सोचा भी नहीं था कि स्वकल्याण के साथ-साथ पर कल्याणार्थ दायित्व/जिम्मेदारी को भी निर्वहन करना होगा। आपकी आज्ञा/भावना को पूरी करने के लिए उन्होंने पद को स्वीकारा और आपकी भावना ‘संघ को गुरुकुल बनाना है' को हृदय में धारण कर स्वयं साधना के सधे हुए कदमों से बढ़ चले मोक्षमार्ग पर। बचपन से ही ध्यान-साधना में विशेष रुचि रही। वे ध्यान में घण्टों-घण्टों तीर्थंकरों से, उनकी वाणी से बातें करते, तत्त्वज्ञान पाते और अब तो ध्यान में आपसे भी बातें करते होंगे। इस सम्बन्ध में ब्यावर के सुशील जी बड़जात्या (अध्यक्ष दिगम्बर जैन समाज, ब्यावर) ने २०१६ में बताया -

     

    सोते हुए नहीं देखा : परीक्षा में हुए पास

    ‘‘ब्यावर चातुर्मास में हमने आचार्यश्री जी को सोते हुए नहीं देखा। दिन में तो देखा ही नहीं और रात्रि में भी १०-११ बजे तक भी नहीं देखा। लोगों से सुना कि वे सोते नहीं हैं तो विश्वास नहीं हुआ। एक दिन इसी की खोजबीन में लग गया। चातुर्मास के बाद की बात है नवम्बर माह का अन्त समय था हम २३ युवा लोग सेठ जी की नसियाँ में रात के डेढ बजे तक रुके रहे। तो आचार्यश्री ऊपर खुले चौक में बीच में खड़े होकर ध्यान में लीन थे। वे कभी मन्द-मन्द मुस्काने लगते, कभी गम्भीर हो जाते, ऐसा लगता था जैसे अपने गुरु से बात कर रहे हों। रात्रि २ बजे हम लोग घर वापस आ गए। इस तरह हमने उन्हें कभी लेटे हुए नहीं देखा । वैयावृत्य तो वे कभी कराते नहीं थे।'

    627.jpg

    628.jpg

    629.jpg

    630.jpg

    631.jpg

    632.jpg

     

    इस तरह आपके प्रिय आचार्य ज्ञान-ध्यान-साधना के कई-कई सोपानों पर नित्य चढ़ते जा रहे थे और इसकी चर्चा किसी से भी नहीं करते । गुप्त साधना का गुप्त आनंद एकांत में ही तो आता है। ब्यावर चातुर्मास में ज्ञानसागर के अमृत को खूब वर्षाया। समाज ने भी पूरा-पूरा लाभ लिया और ज्ञानामृत को अपनी स्मृति में संजोये रखने के लिए एक स्मारिका का प्रकाशन कराया। जो छपकर के मेरे गुरुदेव के सामने ही विमोचित हुई । जिसके बारे में जैन गजट' २० दिसम्बर १९७३ गुरुवार को समाचार प्रकाशित हुआ -

     

    स्मारिका विमोचन

    ‘‘ब्यावर-श्री १०८ आचार्य विद्यासागर जी महाराज के चातुर्मास समापन के उपलक्ष्य में दि. जैन समाज ब्यावर की ओर से एक भव्य स्मारिका का प्रकाशन किया गया, जिसका दि. १५-१२-७३ शुक्रवार को मध्याह्न में समाज शिरोमणि धर्मवीर सेठ सर भागचन्द जी सा. सोनी द्वारा भारी जन समुदाय के मध्य विमोचन किया गया। श्री सर सेठ सा. ने विमोचन के उपरान्त स्मारिका की एक प्रति आचार्य श्री को समर्पित की। इस अवसर पर श्री सर सेठ सा. के अतिरिक्त सर्व श्री चिमनसिंह जी लोढा, धर्मचन्द जी मोदी आदि के सामयिक भाषण हुए।

     

    आचार्य श्री का कार्यक्रम के तुरन्त बाद लगभग २ बजे पीसांगन की ओर विहार हो गया।' पीसांगन पहुँचने पर भव्य स्वागत हुआ। इस सम्बन्ध में वहाँ के पुखराज जी पहाड़िया (पूर्व जिला प्रमुख) ने बताया -

     

    २५०० निर्वाण महोत्सव का हुआ ध्वजारोहण

    परमपूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ब्यावर से १५ दिसम्बर को पीसांगन की ओर विहार किया। समाज ने भव्य स्वागत किया। उनके आने से समाज में बहुत अधिक उत्साह का संचार हुआ क्योंकि उनकी ख्याति फैली हुई थी कि २२ वर्ष की भरी जवानी में कन्नड़ भाषी युवा ने दिगम्बर दीक्षा ली और गुरु ने अपना गुरु बनाकर आचार्य पद दिया तथा अपने गुरु की ऐसी सेवा की कि करोड़ों रुपया लेकर भी कोई नहीं कर सकता। ऐसे ज्ञानी मुनि महाराज हैं। तो उनका समागम पाकर हर कोई खुश था।

     

    पूरे राजस्थान स्तर पर भगवान महावीर स्वामी का २५00 वां निर्वाण महोत्सव मनाने हेतु महोत्सव समिति ने पीसांगन में आकर परम श्रद्धेय आचार्य गुरुवर श्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ के सान्निध्य में महोत्सव का ध्वजारोहण करके मंगलाचरण किया। ध्वजारोहण सर सेठ श्रीमान् भागचंद सोनी जी ने किया था। इस सम्बन्ध में जैन गजट' २० दिसम्बर १९७३ को मूलचंद सोगानी जी का समाचार प्रकाशित हुआ -

     

    जैन ध्वज का आरोहण

    “पीसांगन २३-१२-७३-आज यहाँ एक भव्य समारोह में आचार्य श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज के सान्निध्य में ऑल इण्डिया दिगम्बर भगवान महावीर निर्वाण महोत्सव सोसायटी के कार्याध्यक्ष श्री सर सेठ भागचन्दजी सा. सोनी द्वारा इस अवसर पर एकत्रित विशाल जनसमूह के समक्ष सर्व मान्य पंचवर्णयुक्त जैन ध्वज का राजस्थान में सर्वप्रथम आरोहण सम्पन्न हुआ। साथ ही पीसांगन क्षेत्रीय समिति का गठन एवं पदाधिकारियों का चयन भी सम्पन्न हुआ। ध्वजारोहण सम्पन्न करते समय सर सेठ साहब ने निर्वाण महोत्सव की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए बहुत ही मार्मिक शब्दों में हमारे जीवन में आये इस अपूर्व अवसर पर सभी कार्य छोड़कर तन, मन, धन से जुटकर जैन शासन एवं भगवान महावीर के तत्त्वदर्शन की प्रभावना के लिए आह्वान किया।

     

    समापन आशीर्वाद के समय आचार्य श्री ने कहा कि आज इस ध्वजारोहण से मेरा हृदय पुलकित हो रहा है, मेरी कामना है कि यह जैन ध्वज जो स्याद्वाद, पंच परमेष्ठी, पंचाणुव्रत, पंच महाव्रत एवं पांचों सम्प्रदायों की एकता का प्रतीक है, अनन्तकाल तक जैन शासन को दिग-दिगान्तर में फैलाता रहे।'' यहाँ से २८ दिसम्बर को जेठाना गए। वहाँ ७-८ दिन का प्रवास रहा। इस सम्बन्ध में पदमचंद जी गंगवाल ब्यावर ने बताया -

     

    नाटक पर प्रवचन

    ‘‘हम लोग ब्यावर चातुर्मास में आचार्यश्री के आकर्षण से इतने बंध गए थे कि हर एक-दो दिन में उनके दर्शनार्थ पहुँच जाते थे। जेठाना में भगवान महावीर निर्वाण महोत्सव पर भव्य कार्यक्रम हुआ। तब आचार्य श्री जी के आशीर्वाद से हम लोगों ने ‘सोने का किला' नामक नाटक किया था। सुबह आचार्यश्री ने नाटक के विषय पर ही प्रवचन किया। इस सम्बन्ध में ‘जैन गजट' ३ जनवरी १९७४ को मूलचंद सोगानी संयुक्तमंत्री का समाचार प्रकाशित हुआ -

     

    पाठशाला का उद्घाटन

    “जेठाना-भगवान महावीर के २५०० वें निर्वाण महोत्सव के परिपेक्ष्य में ३०-१२-७३ को यहाँ एक भव्य समारोह में एक धार्मिक पाठशाला का उद्घाटन आचार्य १०८ श्री विद्यासागर जी महाराज के सान्निध्य में सम्पन्न हुआ। उद्घाटनकर्ता श्री मोतीलाल जी बोहरा कालू निवासी ने इस अवसर पर विद्यालय के स्थाई फण्ड के लिए १५०१/- रु. दिये। साथ ही श्री मांगीलाल जी गंगवाल ने विद्यालय में केशरिया ध्वज फहराकर ५०१/- के दान की घोषणा की। इस अवसर पर अजमेर क्षेत्रीय निर्वाण महोत्सव समिति के तत्त्वावधान में एवं आचार्य महाराज के सान्निध्य में समस्त जैन समाज द्वारा मान्यता प्राप्त पंचवर्णी ध्वज का आरोहण भी श्री मूलचन्दजी पाटनी द्वारा कर क्षेत्रीय समिति के लिए २५१/- की राशि घोषित की गई।

    समारोह में अजमेर क्षेत्रीय समिति के पदाधिकारियों के अतिरिक्त ब्यावर, पीसांगन, कालू तथा आसपास से विशाल जन समूह ने भाग लिया एवं करीब १०००/- की राशि एकत्र हुई। विद्यालय की देखरेख के लिए एक स्थायी समिति का निर्माण हुआ जिसके अध्यक्ष श्री रतनलाल जी गंगवाल मनोनीत किए गए।

     

    इस तरह भगवान महावीर निर्वाण महोत्सव के परिपेक्ष्य में जेठाना में आपके प्रिय आचार्यश्री की प्रेरणा से बच्चों के संस्कारों के लिए पाठशाला का उद्घाटन किया गया और जेठाना के बाबूलाल जी जैन पाटनी ने १८-०२-२०१८ को मुझे बताया कि पाठशाला का नामकरण आचार्यश्री जी ने अपने गुरु के नाम से किया था-आचार्य ज्ञानसागर पाठशाला । जो काफी वर्षों तक चलती रही।

     

    इस तरह हे तात! आपके लाड़ले शिष्य प्रिय आचार्य मेरे गुरुवर की ज्ञान-वैराग्य-चारित्र का प्रताप यशोरथ पर आरूढ होकर आगे से आगे बढ़ता गया और समाज उनका समागम पाकर अपने आप को कृतकृत्य मानती। वर्ष १९७३ ने अस्त हुए ज्ञानसूर्य के वियोग का पूर्ण अनुभव कर ही नहीं पाया और विद्या-दिवाकर की ज्ञान रश्मियों के प्रकाश से नयी ताजगी, उत्साह, स्फूर्ति, आनंद की अनुभूति की और तब उसने अपनी इस अनुभूति को इतिहास के पन्नों पर स्वर्णिम अक्षरों से टाँका । शिष्य वही सच्चा है जो गुरु की पर्याय बन जाये, जिसमें गुरु जी' जाये, जिससे गुरु की इच्छा पूरी हो जाये, जो गुरुनाम अमर कर जाये, जो गुरुसम महान् शरण बन जाये, जो संस्कृति का सही स्वरूप दिखा जाये । वही तो सच्चे शिष्य की परिभाषा बन जगत को जीना सिखाता है। जिसका जीता-जागता उदाहरण मेरे गुरु-सबके गुरु-विश्व गुरु आचार्य श्री विद्यासागर जी को आपने प्रस्तुत किया है। धन्य हैं आप।।

     

    ऐसे गुरु-शिष्य के पावन चरणों में असीम नमस्कार नमस्कार नमस्कार...

    आपका  शिष्यानुशिष्य

     


    User Feedback

    Create an account or sign in to leave a review

    You need to be a member in order to leave a review

    Create an account

    Sign up for a new account in our community. It's easy!

    Register a new account

    Sign in

    Already have an account? Sign in here.

    Sign In Now

    There are no reviews to display.


×
×
  • Create New...