Jump to content
नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • पत्र क्रमांक - 210 - संयमोपकरण लेने-देने का बनाया नियम : संयम

       (0 reviews)

    Vidyasagar.Guru

    पत्र क्रमांक-२१०

    २४-०५-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर

     

    वीतराग निर्विकल्प समाधि से उत्पन्न परमानन्दरूप सुखरस का आस्वादन कराने वाली परम समता रूप समाधि साधना में लीन दादागुरु परमपूज्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज के पावन चरणों में त्रैकालिक भक्तिपूर्वक नमोऽस्तु नमोऽस्तु नमोऽस्तु... हे दादागुरु! कार्तिक वदी अमावस्या २६ अक्टूबर १९७३ को भगवान महावीर निर्वाण महोत्सव पर मेरे गुरु के सान्निध्य में ब्यावर समाज ने महोत्सव मनाया। गुरुदेव ने मार्मिक प्रवचन किया। समाज ने कार्तिक आष्टाह्निका पर सिद्धचक्र मण्डल विधान का आशीर्वाद मांगा तो गुरुदेव ने मौन आशीर्वाद प्रदान कर दिया । कार्तिक सुदी अष्टमी से पूर्णिमा तक सिद्धचक्र विधान बड़े ही ठाट-बाट से सम्पन्न हुआ।

     

    हे गुरुवर! जिस प्रकार से आप प्रतिवर्ष चातुर्मास समापन पर श्रावक से नयी मयूरपिच्छी ग्रहण करते थे और पुरानी पिच्छी उसी श्रावक को दे देते थे। इसी तरह आपकी परिपाटी को आगे बढ़ाते हुए आपके लाड़ले शिष्य प्रिय आचार्य मेरे गुरुवर भी श्रावक से नवीन पिच्छिका ग्रहण करते और पुरानी पिच्छिका श्रावक को दे देते थे, लेकिन गुरुदेव के तप एवं आकर्षक व्यक्तित्व के प्रभाव के कारण पिच्छी लेने-देने वालों की संख्या बहुत होने लगी। तब उन्होंने नियम बना दिया कि जो भी पिच्छी लेगा और देगा उसे सदाचार का नियम लेना होगा। इस सम्बन्ध में ब्यावर निवासी जयपुर प्रवासी सुरेन्द्र कुमार मोदी ने २०१६ ब्यावर में बताया -

     

    संयमोपकरण लेने-देने का बनाया नियम : संयम

    ‘ब्यावर चातुर्मास समापन से एक दिन पूर्व मेरे पिताजी श्री धर्मचंद जी मोदी ने आचार्यश्री से निवेदन किया मैं आपकी पुरानी पिच्छिका लँगा, तब आचार्यश्री जी ने कहा-‘आप सामाजिक और लौकिक राजनीति में भाग लेते हैं एवं धर्म का पालन करने का अभ्यास भी आपको नहीं है अतः जो धर्मनिष्ठ होंगे उन्हीं को पुरानी पिच्छिका मिलेगी।' तब पिताश्री बोले-पिच्छिका तो मैं ही लँगा । पुनः आचार्यश्री ने कहा-‘जो ब्रह्मचर्य व्रत लेगा और भांग आदि नशे एवं आलू-प्याज का त्याग करेगा उसे ही पिच्छिका मिलेगी।' यह सुनकर पिताजी घर आ गए। दूसरे दिन कार्तिक सुदी १४ दिनांक ०९ नवम्बर १९७३ को आचार्य महाराज ने प्रवचन में पिच्छिका लेने का नियम बता दिया। तब पिताश्री प्रवचन सभा में खड़े हो गए और बोले पिच्छिका मैं लूंगा। तब आचार्यश्री बोले-'अकेले नहीं साथ में धर्मपत्नी को भी लाओ। दोनों की रजामंदी से ही पिच्छिका मिलेगी।' तब धर्मसभा में मेरी माँ भी बैठी हुईं थीं, वे भी खड़ी हो गयीं। भरी सभा में आचार्यश्री ने पूछा-'आप लोग यह नियम जीवनभर पाल लेगें।' तो माँ बोलीं-हम तो जीवनभर यह नियम पाल लेंगे, किन्तु इनका ये जाने । आचार्यश्री जी आप इनको पूरा संकल्प कराके ही देना, क्योंकि ये बाहर घूमते हैं और नेतागिरी करते हैं। तब पिताजी बोले-महाराज! मैं ब्रह्मचर्य व्रत लेता हूँ और भांग का भी त्याग लेता हूँ, साथ ही सप्त व्यसन का त्याग करता हूँ, किन्तु आलू-प्याज त्याग करने का नियम नहीं ले सकता । तब आचार्यश्री ने पूछा- क्यों नहीं ले सकते?' तो पिताजी बोले-मैं कांग्रेस का नेता हैं, कभी पार्टी ने मुझे विदेश भेजा तो, वहाँ पर आलू-प्याज के अलावा दूसरी चीज मिलती नहीं है? तब आचार्यश्री जी ने उन्हें समझाया ‘उम्र इतनी हो गयी है पार्टी का क्या पता भेजें या न भेजें और यदि संयम लेने का भाव है तो फिर विदेश का मोह छोड़ना होगा।' तब आचार्यश्री की प्यार भरी समझाईस से सारे नियम ले लिए और बोले मैं विदेश भी नहीं जाऊँगा। तब आचार्यश्री जी ने उन्हें संकल्प करा कर उनसे नयी पिच्छिका ग्रहण की और पुरानी पिच्छिका माता-पिता को दे दी।

    619.jpg

    620.jpg

    621.jpg

    622.jpg

    623.jpg

    624.jpg

     

    इस तरह आपके लाड़ले शिष्य प्रिय आचार्य मेरे गुरुवर ने आचार्यपद प्रतिष्ठित होने के बाद प्रथम चातुर्मास भव्य प्रभावना के साथ सानन्द सम्पन्न किया। ऐसे आज्ञानुवर्ती आगम निष्ठ गुरु-शिष्य के चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम करता हुआ...

    आपका शिष्यानुशिष्य


    User Feedback

    Create an account or sign in to leave a review

    You need to be a member in order to leave a review

    Create an account

    Sign up for a new account in our community. It's easy!

    Register a new account

    Sign in

    Already have an account? Sign in here.

    Sign In Now

    There are no reviews to display.


×
×
  • Create New...