कुछ बन सको या न बन सको, कम से कम नेक इंसान तो बन ही जाओ: आचार्यश्री
खुरई के नवीन जैन मंदिर में अाचार्यश्री के प्रवचन हुए
खुरई
बुंदेलखण्ड वासियों की मधुर एवं कर्णप्रिय वाणी श्रवण कर जो आत्मीयता, धार्मिकता, समर्पण, त्याग, तपस्चर्या एवं एकता का परिदृश्य होता है, वैसी वाणी अन्यत्र कम ही देखने मिलती है। यहां के वाशिंदों की बोली मन में उत्साह एवं उमंग को संचारित कर देती है।
मन में संगीत की तरंगे प्रवाहित होने लगती है, पंकज की तरह आसमां को छू जाती हैं। अंधकारमय जीवन में प्रकाश भर देती है। वैसे भारत की संस्कृति का गुणगान संपूर्ण विश्व करता है, जितने भी शोध कार्य हो रहे हैं वह हमारे प्राचीन ग्रंथों में वर्णित सूत्रों के आधार पर हो रहे हैं। जैन धर्म अति प्राचीन धर्म है, इसके मूल ग्रंथों में आज से हजारों लाखों वर्ष पूर्व लिखा गया वह सभी प्रमाणिक एवं विज्ञान की कसौटी पर आज भी खरा उतरता है। यह बात नवीन जैन मंदिरजी में आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ने प्रवचन देते हुए कही।
उन्हाेंने कहा कि शिक्षा हमें किसकी, किसको एवं क्यों दी जा रही है इस पर भी मंथन जरूरी है। उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा कि हम नागरिक नहीं हैं क्याेंकि हमारे नगरों में रहने की तो योग्यता नहीं है, हम 'स्मार्ट सिटी' बना रहे हैं, तहसील को जिला एवं जिला को राजधानी बनाने ललायित हैं। श्रम के क्षेत्र में हम शून्य होते जा रहे हैं। तीसरे विश्व युद्ध की कगार पर खड़े हैं हम अपनी पहचान खोते जा रहे हैं, यह धारणा ठीक नहीं है। मैं दुनिया के ममत्व एवं भ्रांतियां देख आश्चर्यचकित हूं। अरे! कुछ बन सको या न बन सको, कम से कम नेक इंसान तो बन जाओ। उन्हाेंने कहा कि वर्तमान समय में हम विदेशी वस्तुएं अपनाने लगे हैं, स्वदेशी वस्तुएं अपनाने में हम बैकवर्ड कहलाने लगते हैं, यह धारणा ठीक नहीं।
हमें हस्त करघा उद्योग को विकसित करना होगा
, पूर्ण स्वदेशी एवं अहिंसक वस्तुओं का प्रयोग कर एक बार पुनः भारत के गौरव को बनाकर 'सोने की चिड़िया' के राष्ट्र का सम्मान दिलाना होगा, तभी हम एवं हमारा राष्ट्र खुशहाल हो सकेगा, तब ही हम अपने धर्म की रक्षा कर पाएंगे।
इस अवसर पर अनेक दान दाताओं ने दान की घोषणा की। पाठशाला के नौनिहाल बच्चों ने भी अपनी अपनी गुल्लकों से लगभग 21 हजार की दान राशि प्रदान कर आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज से आशीर्वाद लिया।
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