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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

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आचार्य श्री विद्यासागर दिगंबर जैन पाठशाला

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  1. जरूरत से ज्यादा धन संचय, यश-कीर्ति की चाह हमें गर्त में ले जाती है : आचार्यश्री व्यक्ति का संपूर्ण जीवन धन संपदा के संचय में ही निकल जाता है। वह कितना भी धन संचय कर ले उसको तृप्ति नहीं होती।... व्यक्ति का संपूर्ण जीवन धन संपदा के संचय में ही निकल जाता है। वह कितना भी धन संचय कर ले उसको तृप्ति नहीं होती। परिगृह के बिना संसारी प्राणी बिन जल के मछली की तरह तड़पता है। मछली तो प्राणवायु नहीं मिलने से तड़पती है परंतु यह जीव हवा, जल, वायु सबकुछ मिलने के बाद भी बैचेन रहता है। हमें जितनी जरूरत हो उतना ही संचय करना चाहिए। जरूरत से ज्यादा धन संचय, यश कीर्ति की चाह भी हमें गर्त में ले जाती है। जरूरत से ज्यादा धन संचय चिंता का कारण तो बनता ही है इसके साथ अासक्ति का भाव रखना भी बहुत दुखदायी हो जाया करता है। यह बात नवीन जैन मंदिर में प्रवचन देते हुए अाचार्यश्री विद्यसागर महाराज ने कही। उन्होंने कहा कि व्यक्ति यदि धन संचय करता भी है तो उसका एक भाग परोपकार के कार्यों, सुपात्र को दान आदि देकर सदुपयोग करते रहना चाहिए। उन्हाेंने कहा कि धन संचय से रौद्र ध्यान अधिक होता है, धर्म ध्यान नहीं हो पाता। इसलिए हमें रौद्र ध्यान से बचने का सतत प्रयास करते रहना चाहिए। व्यक्ति को मांगने से कुछ नहीं मिलता। जब तक हमारे कर्मों का उदय न हो तब तक कुछ हासिल भी नहीं होता। हम जैसा सोचें या जो चाहें वह सबकुछ मिल जाए यह भी संभव नहीं। व्यक्ति को हमेशा परहित की बात ही सोचना चाहिए। ऐसा विचार करने से किसी का हित हो या न हो स्वयं का हित संवर्धन स्वमेव ही हो जाया करता है। उन्हाेंने कहा कि मन के विचारों को गहराने दो, अनुभूति के सरोवर में उतरने दो, कहने की उतावली मत करो, कहना सरल है सहना कठिन है कहने के बाद कुछ बचता नहीं और सहने के बाद कहने को कुछ रहता नहीं। सहने से आत्मा की निकटता बढ़ती है, कहने से वचनों का आलम्बन लेने से स्वयं से दूरियां बढ़ती है पर की निकटता रहती है फलतः जीवंतता समाप्त होती जाती है, औपचारिकताएं आ जाती हैं यह कोई जीवन नहीं और न ही जीवन का आनंद। उन्हाेंने कहा कि यदि भीतरी जीवन का आनंद पाना है तो कहो नहीं, आते हुए कर्मों की परिणति को शांत भाव से, साक्षी भाव से सहो अर्थात प्रतिकार मत करो। प्रतिकार करने से द्वेष भाव उत्पन्न होगा फिर दोषों से द्वेष रखना भी तो दोषों का वर्द्धन करना ही है, प्रकारान्तर से राग का पोषण करना ही तो है। जिन-जिन ने कर्मोंदय शांत भाव से सहे वे संसार में नहीं रहे। कर्मों की तीव्र धार के क्षणों में भी वे ज्ञानधार में पूर्ण सजगता से बहते रहे-बहते रहे, आखिर वे किनारा पा गए। चाहे पाण्डव हो या गजकुमार मुनि हों, सुकौशल स्वामी हों या देश भूषण-कुलभूषण स्वामी हों कर्मों के तीव्र प्रहार के समय वे अपने आपे में रहे निजगृह से बाहर निकले ही नहीं, स्वरूप गुप्त हो गए, त्रिगुप्ति के सुरक्षित दुर्ग में गुप्त हो गए, फलतः विजयी हो गए। प्रवचन के पूर्व ब्रह्मचारी द्वय एवं दान-दाताओं ने आचार्यश्री विद्यासागर महाराज की पूजन संपन्न की।
  2. स्थान एवं पता - श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर, बही चौपाटी, महू नीमच फोर लेन रोड, तहसील मल्हारगढ़, जिला मंदसोर, मध्य प्रदेश साइज़ - पत्थर - लागत - पुण्यार्जक का नाम - इंजीनियर मुकेश वैभव पिता स्व. डॉ. विजय कुमार संगाई ( गुण आयतन ट्रस्टी), श्री जय कुमार पिता शांतिलाल जी बड़जात्या, श्री यश कुमार पिता सूरजमल जी बाकलीवाल सभी निवासी मंदसोर मध्य प्रदेश जी पी एस लोकेशन - 24.178404 75.007215 शिलान्यास तारीख - 03 मार्च 2018 शिलान्यास सानिध्य (पिच्छीधारी) - मुनि. श्री विनीत सागर जी महाराज साहब, मुनि. श्री चंद्रप्रभ सागर जी महाराज साहब शिलान्यास सानिध्य प्रतिष्टाचार्य - बाल ब्रहमचारी संजय भैया जी मुरैना शिलान्यास सानिध्य - राजनेता जिला कांग्रेस उपाध्यक्ष श्री मंगेश जी संगई एवं भाजपा महामंत्री श्री बंसी लाल जी गुर्जर लोकार्पण तारीख - 01 जनवरी 2019 लोकार्पण सानिध्य पिच्छीधारी एवं अन्य (त्यागी व्रती) - रीता दीदी, अपर्णा दीदी एवं बाल ब्रहमचारी संजय भैया जी मुरैना लोकार्पण सानिध्य राजनेता - जिला कांग्रेस महामंत्री श्री मंगेश जी संगई
  3. दमोह में पंचकल्याणक महोत्सव 11 से 17 जनवरी 2019 आशीर्वाद - परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनिराज सानिध्य - पूज्य मुनिश्री योगसागर जी महाराज ससंघ, पूज्य मुनिश्री अभयसागर जी महाराज ससंघ, पूज्य मुनिश्री पूज्यसागर जी महाराज ससंघ प्रतिष्ठाचार्य - बाल ब्र.श्री विनय भैया जी बंडा पात्र चयन माता पिता- श्रेष्ठि श्री/श्रीमति तरुण सराफ सौधर्म इंद्र - श्रेष्ठिश्री मोदी चंदकुमार सराफ कुबेर- श्रेष्ठिश्रीअजय जी निरमा महायज्ञ नायक - श्रेष्ठिश्री अभय जी बनगांव राजा श्रेयांश - श्रेष्ठिश्री महेश दिगंबर राजा सोम - श्रेष्ठिश्री मनोज मीनू जी (विजय श्री) ईशान इंद्र - श्रेष्ठिश्री राजेन्द्र कमर्शियल बाहुबली - श्रेष्ठिश्री मुन्नालाल डबल्या
  4. स्थान एवं पता - ऐ. वी. रोड जगतपुरा चौराहा कोलारस जिला शिवपुरी मध्यप्रदेश साईज - 21 फीट लागत - 3 लाख पुन्यार्जक - सकल दिगंबर जैन समाज कोलारस शिलान्यास तारीख़ - 5 अक्टूबर 2017 शिलान्यास सानिध्य पिच्छीधारी - मुनि श्री 108 सुवृतसागर जी महाराज शिलान्यास सानिध्य त्यागी व्रती - बाल ब्र. अंसू भैया जी शिलान्यास सानिध्य राजनेता - रविन्द्र शिवहरे नगर पंचायत कोलारस लोकार्पण तारीख - 6 जनवरी 2018 लोकार्पण सानिध्य पिच्छीधारी - मुनि श्री 108 सुवृतसागर जी महाराज लोकार्पण सानिध्य त्यागी व्रती - बाल ब्र. अंसू भैया जी लोकार्पण सानिध्य राजनेता - रविन्द्र शिवहरे नगर पंचायत कोलारस, अध्यक्ष रविन्द्र कुमार जैन, मंत्री अशोक जैन, कोषाध्यक्ष शान्ति सेठ
  5. स्थान एवं पता - मॉडल स्कूल के पास घटी के नीचे सागर रोड शाहगढ़ साईज - 15 फीट पत्थर - संगमरमर लागत - 2,40,000 पुन्यार्जक - श्री मान सेठ रणजीत जी, श्री मति अंगूरी जैन, ब्र. बहिन संगीता दीदी, अमित सेठ, श्री मति रत्ना सेठ, आकाश सेठ श्री मति रचना सेठ, आयुष सेठ शिलान्यास तारीख - 25 जून 2017 शिलान्यास सान्निध्य प्रतिष्ठाचार्या - प. विनोद कुमार जी सेठलोकार्पण तारीख - 17 नवम्बर 2018 लोकार्पण सान्निध्य - श्री 108 मुनि योग्सागर जी मुनिराज ससंघ त्यागी व्रती - मुनि श्री रणजीत जी सेठ 10 प्रतिमाधारी शाहगढ़
  6. ‘फास्ट फूड’ के चलन ने संसार को जकड़ लिया है जबकि इसमें शुद्धता की कोई गारंटी नहीं होती : आचार्यश्री वर्तमान समय में ‘फास्ट फूड’ के चलन ने संपूर्ण संसार को जकड़ लिया है। फास्ट फूड वह जहर है जिसमें शुद्धता की कोई गारंटी नहीं होती एवं साथ ही वह शाकाहारी है कि नहीं इसकी भी कोई प्रमाणिकता नहीं रहती।‘फास्ट फूड’ का असर सबसे ज्यादा बच्चों में देखा जाता है। उसकी मुख्य वजह हम बच्चों को समय से घर में ही बनी शुद्ध वस्तुओं को समय के अभाव में उपलब्ध नहीं करा पाते या आलस्य के कारण बच्चों को बिना देखे समझे कुछ भी खिलाते रहते हैं। इससे बच्चों के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, उसकी मानसिक स्थिति एवं याददाश्त पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। यह बात नवीन जैन मंदिर में अाचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने प्रवचन देते हुए कही। उन्हाेंने कहा कि ‘जैसा खाओ अन्न वैसा होवे मन’ इसको हम सभी ने चरितार्थ होते देखा है। राष्ट्र में व्याप्त जितने भी जघन्य कृत्य हिंसा, उपद्रव आदि होते हैं उनमें से अधिकांश मामलों में व्यक्ति की तामसिक प्रवृत्ति ही काम करती है। उन्हाेंने कहा कि स्वर्ण को शुद्धता के लिए एक बार नहीं अनेक बार तपाना पड़ता है। फिर उसे आप कहीं भी कैसे भी रखो या उपयोग करो उसकी शुद्धता में वर्षों बाद भी कोई फर्क नहीं पड़ता। इसके विपरीत लोहा में अवधि पर्यंत जंग भी लग सकती है और वह खराब भी हो सकता है। व्यक्ति का व्यक्तित्व एवं कृतित्व स्वर्ण की तरह ही खोट रहित होना चाहिए। उन्होंने कहा कि बुरी आदतों को त्याग करने के लिए हमें संकल्पित होने की महती आवश्यकता है। संकल्प शक्ति से ही इस जीव का कल्याण हो सकता है। व्यक्ति किसी भी नशे को त्याग करने के लिए एवं छोटे से नियम लेने के लिए भी समय सीमा में बांधना चाहता है। एेसा प्रतीत होता है, जैसे किसी वस्तु की नीलामी चल रही है। भैया! ऐसा नहीं होता, नियम तो पूर्ण संकल्प, भक्ति, समर्पित भावना के साथ ही लिया जाता है। यदि जबरदस्ती नियम दे भी दिया जाए तो वह अधिक समय तक कारगार सिद्ध नहीं हो सकता। आचार्यश्री ने कहा कि व्यक्ति को घर की बनी शुद्ध एवं पौष्टिक वस्तुएं या व्यंजन अच्छे नहीं लगते उसे तो होटल का खाना ही अच्छा लगता है यह धारणा ठीक नहीं है। शरीर के प्रति मोह का त्याग एवं जिव्हा इंद्रिय को वश में करने की कला से हमें पारंगत होना जरूरी है। बाहर के वस्तुओं के प्रति आकर्षण का भाव हमारे चारित्र पर भी दुष्प्रभाव डाल सकता है। हम जब फास्ट फूड के त्याग की बात करते हैं, तब तुम्हारी इसके प्रति अशक्ति के भाव दृष्टिगोचर होने लगते हैं। तरह-तरह के बहानेबाजी एवं तुम्हारे कंठ अवरूद्ध हो जाते हैं। कोई भी प्रिय वस्तु का त्याग करना या कोई छोटा सा नियम लेने में भी इस शीतकाल में भी व्यक्ति को पसीना आने लगता है। कर्मों की मुक्ति की बात करो तो कंपकपी छूटने लगती है, फिर हम कैसे कर्मों की निर्जरा कर पाएंगे। सच्चे देव, शास्त्र, गुरू के प्रति श्रद्धान जरूरी है। हमें यदि अपने शरीर को निरोग रखना है तो सात्विक भोजन ग्रहण करना होगा। गरिष्ट भोजन एवं प्रचुर मात्रा में तेल, घी की वस्तुओं के सेवन से बचना होगा, तब ही आत्म कल्याण कर पाओगे।
  7. मृत्यु कभी हमारी ओर आती दिखाई नहीं देती, लेकिन हर पल हमारे साथ खड़ी है: आचार्यश्री हमारा मन बंदर की तरह चंचल एवं उछालें भरता है, बंदर तो फिर भी अपने बच्चों के साथ एक डाल से दूसरी डाल पर उछल-कूद करता हुआ अपने लक्ष्य से विमुख नहीं होता परन्तु हमारा मन यदा-कदा कहीं भी चला जाता है। यह बात नवीन जैन मंदिर प्रांगण में प्रवचन देते हुए आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने कही। उन्हाेंने कहा कि अपने मन पर निगरानी रखें। इस बात का पूरा ध्यान रखें, मन को सदा स्वच्छ रखें, क्योंकि परमात्मा भी स्वच्छ मन में ही प्रवेश करता है। मन में किसी के प्रति राग द्वेष के भाव न रखें। मन को पाप, वासना, क्रोध, अहंकार, कामना से दूर रखें। मन स्वार्थ में नहीं, परमार्थ में जिएं, इसका ख्याल रखेें। जिसका मन पवित्र है, वह सबके लिए सुख समृद्धि ही मांगता है। सबकी भलाई में ही अपनी भलाई है। उसका जीवन पत्थरों की तरह नहीं, फूलों की तरह होता है, फूलों में प्राण भी होते है और सौंदर्य भी होता है, उसके जीवन में होश और प्रसन्नता होती है। उन्होंने कहा कि मन तो विचारों का विश्वविद्यालय है, कुंभ का मेला है। मन तो वह चाैराहा है, जहां से हर पल विचारों के यात्री गुजरते रहते हैं। बेहोशी और मूर्छा में जीने वाला मन ही दूसरों के प्रति अशुभ चिन्तन करता है। दुनिया में जितने पाप, अपराध, हत्याएं आदि होते हैं, वे सब बेहोशी में होते हैं, अतः मूर्छा से ऊपर उठें और होश में जीएं। मूर्छा ही मृत्यु है और होश ही जीवन है। होश में हम क्रोध नहीं कर सकते, होश में हम किसी को अपशब्द नहीं कह सकते। होश में हम किसी की हत्या अादि कुछ नहीं कर सकते, अतः पाप और अनर्थ से बचना है, तो जीवन में होश की साधना अनिवार्य है। जो हम अपने लिए चाहते हैं, वह दूसरों के लिए भी चाहें। उन्होंने कहा कि जीवन के प्रति थोड़ा गंभीर होना आवश्यक है। किसी बहती नदी को देखकर सोचें कि जिस प्रकार नदी का जल बहता जा रहा है, उसी प्रकार मेरी जिन्दगी भी भागी जा रही है। नदी अन्ततः सागर में विलीन होने की अभिलाषा लेकर गतिमान है और मेरी जिन्दगी भी मृत्यु रूपी खाड़ी में गिरने को आतुर है। घड़ी के सेकंड के कांटे की तरह बचपन भाग रहा है, मिनट के कांटे की तरह जवानी बीत रही है और घंटे का कांटा बुढ़ापे का प्रतीक है। इसी प्रकार मृत्यु हमारी ओर कभी आती दिखाई नहीं देती है, लेकिन हर पल अपने साथ खड़ी है। डूबते सूरज को देखकर सोचें, एक दिन मेरा जीवन रूपी सूरज भी इसी प्रकार डूब जाएगा। जीवन क्षण मात्र का होता है, अतः यह नश्वर शरीर चिता पर पहुंचे, इससे पहले अपनी चेतना जगा लें। जो जीवन को उत्सव मानकर जीते हैं, उनकी मृत्यु ही महोत्सव का रूप ले पाती है।
  8. स्थान एवं पता - श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र पटेरिया जी, गढ़कोटा, जिला- सागर (म.प्र.) निकटतम प्रसिद्ध स्थान का नाम - श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, पटनागंज, रहली,जिला- सागर (म.प्र.), श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, बीनाबारहा,देवरी, जिला- सागर (म.प्र.), श्री दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र कुण्डलपुर, जिला- दमोह (म.प्र.) साइज़ - 21 फुट पत्थर - वंडर मार्बल लागत - 5,54,878रूपये पुण्यार्जक का नाम - इंजी. आशीष - सुम्बुल, किंजल, रोणित, सानिया जैन व डॉ. मनीष - डियाना, बोधि जैन सुपुत्र श्रीमती सुषमा जैन निवासी टेक्सास ह्यूस्टन अमेरिका ने अपने पिताजी स्वर्गीय श्री रमेश चंद जैन सुपुत्र स्वर्गीय लाला मोतीलाल जैन (दूधाहेड़ी वाले ) की स्मृति मे बनवाया | शिलान्यास तारीख - 9 - जून - 2018 शिलान्यास सानिध्य प्रतिष्टाचार्य - ब्र.प. सुभाषचन्द्र जैन दमोह म.प्र लोकार्पण तारीख - 16 - जुलाई - 2018 लोकार्पण सानिध्य पिच्छीधारी - आर्यिका 105 कुशलमति माताजी ससंघ, बा.ब्र. राजकुमारी दीदी दमोह , बा.ब्र. सुनीता दीदी पिंडरई, बा.ब्र. सुनीता दीदी राहतगढ़, बा.ब्र. संगीता दीदी गढ़ाकोटा, ब्र. कमलादेवी जैन दमोह बा.ब्र. डॉ. सत्येन्द्र जैन दमोह लोकार्पण सानिध्य राजनेता - प. श्रेयांश शास्त्री सागर, क्षेत्र के पदाधिकारी, श्री अनिल सांघेलिया अध्यक्ष श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र पटेरिया जी, गढ़ाकोटा, जिला- सागर (म.प्र.) 2-श्री अमित चौधरी महामंत्री, श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र पटेरिया जी, गढ़ाकोटा
  9. मुनि श्री योगसागर जी ससंघ दमोह में विराजमान है |
  10. आचार्य श्री ने कहा व्यक्ति को विपरीत परिस्थितियों में घबराना नहीं चाहिए व्यक्ति को कभी भी विपरीत परिस्थितियों में घबराना नहीं चाहिए। प्रतिकूलता में ही हमारी अग्नि परीक्षा होती है। लक्ष्य निर्धारण करने के बाद जब तक हम अपने लक्ष्य की पूर्ति न कर लें तब तक पथिक को विश्राम नहीं करना चाहिए। जो रुक गया, ठहर गया समझो वह अपने लक्ष्य से विमुख हो गया। चलने का नाम ही जिंदगी है। यह बात नवीन जैन मंदिर में प्रवचन देते हुए आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने कही। उन्हाेंने कहा कि रुकने के बाद पुनः कार्य शुभारंभ करने में वह उत्साह नहीं रहता जो निरंतर कार्य करने में मिलता है। खरगोश एवं कछुआ की कहानी से हम भलीभांति परिचित हैं। नाव को पतवार के सहारे समुद्र पार किया जा सकता है। सच्चे देव, शास्त्र, गुरू का अवलंबन से ही व्यक्ति का मोक्षमार्ग प्रशस्त होता है। उन्हाेंने कहा कि प्रभु जैसी महान हस्ती अनंत शक्तिशाली ने जब तुझे जाना माना किंतु नहीं स्वीकारा, तो तू अनंतकाल से अनंत पर द्रव्यों को जानता नहीं फिर भी इन्हें स्वीकार कर रहा है यह क्या हो गया तुझे। क्या स्वयं को प्रभु से भी अधिक शक्तिशाली मान बैठा है। यदि तूने स्वयं को जाना होता, आत्म सत्ता को माना होता तो पर को स्वीकारने का यह दुष्कृत्य कभी नहीं करता। धन्य हैं वह प्रभो! जिन्होंने तेरी अतीत-अनागत की अनंत पर्यायों को जाना और जैसा जाना वैसा ही माना, क्योंकि उनमें अनंत सहजता सरलता प्रकट हो जाने से जानने जैसा ही मानना हो गया परंतु उन्होंने तुझे स्वीकार नहीं किया, क्योंकि वे पहले ही स्वयं अपने को स्वीकार चुके हैं। किसी एक को ही उपयोग में स्वीकारना होता है, स्व को या पर को। किसे स्वीकारना चाहते हो। आचार्यश्री ने कहा कि कौरवों ने श्रीकृष्ण और समूची सेना इन दोनों में से सेना को चुना, आखिर हार गए किंतु पाण्डवों के पास श्रीकृष्ण जैसे सारथी थे वे जीत गए। हमारा सारथ्य हम अकेले ही कर सकते हैं पर को स्वीकारते ही परेशानी शुरू हो जाती है उसका ध्यान रखना होता है, क्योंकि उसे स्वीकारा है, संबंध जोड़ा है। यद्यपि स्वभाव में पर का संबंध है ही कहां, किंतु संबंध का भ्रम तो पाल ही लिया।
  11. दिगम्बर जैन समाज बागीदौरा जिला - बांसवाडा (राजस्थान) संत शिरोमणि संयम कीर्ति स्तंभ स्थान - आचार्य विद्यासागर सर्कल बागीदौरा, बागीदौरा से बांसवाडा मुख्य सडक मार्ग पर साईज - 27.5 फीट पत्थर - संगमरमर लागत - 11 लाख रू. निर्माण पुण्यार्जक - शाह प्रशीष/कन्हैयालालजी बागीदौरा मेहता अभिषेक/हीरालालजी बागीदौरा दोसी पुनमचन्दजी/दोवाचन्दजी बागीदौरा (पी. डी. परिवार) गॉधी वर्धमान/मगनलालजी (अनमोल पेट्रोल पंप बागीदौरा) दोसी मीठी बेन/रतनपालजी/नाथुलालजी बागीदौरा दोसी धीरज/राजेन्द्र कुमार बागीदौरा (मन मोबाईल) सवोत निखिल/रमेशचन्द्रजी बागीदौरा दोसी बसंती बेन/रतनलालजी बागीदौरा शाह जीतमल/नाथुलालजी A.V.S. परिवार बागीदौरा दिगंबर जैन समाज बागीदौरा जी.पी.एस. लोकेशन - https://goo.gl/maps/fEVpkYmUdZ42 शिलान्यास तारीख - 16 जून 2018 शिलान्यास-मार्गदर्शन प्रेरणा - परम पूज्य मुनि पुंगव श्री सुधासागरजी महाराज ससंघ, मुनि श्री समतासागरजी महाराज ससंघ लोकार्पण तारीख - 18 नवम्बर 2018 लोकार्पण सान्निध्य - प.पू. वात्सल्य मूर्ति मुनिश्री समतासागरजी महाराज, प.पू. ऐलक श्री निश्चयसागरजी महाराज मुख्य अतिथि - श्री महावीरजी अष्टगे, श्रीमति अलका अष्टगे सदलगा, कर्नाटक लोकार्पण कर्ता का विवरण - मास्टर अतिशय श्रीमति लीना - श्री सुलभ दोसी, श्रीमति शैला - श्री अशोक कुमार दोसी हाल मुकाम मुम्बई (निवासी - बागीदौरा) कार्यकारिणी समिति - आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज 50वां संयम स्वर्णिम महोत्सव समिति दिगम्बर जैन समाज बागीदौरा अध्यक्ष - विनोद चन्द्र दौसी (मो. नं. - 7073549357) सदस्य - महेन्द्र दोसी, जयन्तिलाल मेहता, केसरीमल मेहता, दिलीप M. दोसी
  12. स्थान एवं पता - खातेगॉव जिला- देवास म.प्र. (सिध्दोदय सिद्धक्षेत्र , नेमावर जिला- देवास म.प्र.) साइज़ - 27 फीट पत्थर - वंडर मार्बल लागत - 6 लाख रुपये पुण्यार्जक का नाम - सकल दिगम्बर जैन समाज , खातेगाँव जी पी एस लोकेशन - नेशनल हाईवे एन एच 59 ऐ पोस्ट ऑफिस के सामने , खातेगॉव जिला- देवास (म.प्र.) शिलान्यास तारीख - 21 अक्टूबर 2017 शिलान्यास सानिध्य (पिच्छीधारी) - परम पूज्य आर्यिका मां श्री आदर्शमति माताजी की संघस्थ आर्यिका 105 अन्तरमति जी (7 आर्यिका) संसघ के सानिध्य में समापन्न हुआ। शिलान्यास सानिध्य प्रतिष्टाचार्य - ब्रम्हचारी मनोज भैया (ललन भैया), जबलपुर शिलान्यास सानिध्य राजनेता - डाली जोशी नरेन्द्र चौधरी (नंदू ) भाजपा जिला महामंत्री कमल कासलीवाल (भुरू) पार्षद लोकार्पण तारीख - 7 जुलाई 2018 लोकार्पण सानिध्य पिच्छीधारी - परम पूज्य आर्यिका मां श्री आदर्शमति माताजी की संघस्थ, आर्यिका 105 दुर्लभमति माताजी, आर्यिका 105 अन्तरमति जी (19 आर्यिका) संसघ के सानिध्य में समापन्न हुआ। लोकार्पण सानिध्य राजनेता - नगर परिषद अध्यक्ष:- निलेश जोशी , उपाध्यक्ष:- दिनेश रावडिया , पार्षद:- कमल कासलीवाल (भुरू) भाजपा जिला महामंत्री:- नरेन्द्र चौधरी (नंदू )
  13. खुरई । सुल्तानगंज तह. बेगमगंज जिला रायसेन (म.प्र.) में भूगर्भ से प्राप्त लगभग 700 वर्ष पुरानी पूज्य मुनिसुव्रतनाथ भगवान की प्रतिमा जी के दर्शन पूज्य आचार्य भगवन श्री विद्यासागर जी ने किए एवं कहा यह मनोज्ञा एवं चमत्कारी भगवान हैं एवं उनकी प्रतिष्ठा कराई जाए। सुल्तानगंज समाज को प्रतिष्ठा के लिए आशीर्वाद प्रदान किया।
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