आचार्य श्री ने कहा मृत्यु कभी हमारी ओर आती दिखाई नहीं देती, लेकिन हर पल हमारे साथ खड़ी है..
मृत्यु कभी हमारी ओर आती दिखाई नहीं देती, लेकिन हर पल हमारे साथ खड़ी है: आचार्यश्री
हमारा मन बंदर की तरह चंचल एवं उछालें भरता है, बंदर तो फिर भी अपने बच्चों के साथ एक डाल से दूसरी डाल पर उछल-कूद करता हुआ अपने लक्ष्य से विमुख नहीं होता परन्तु हमारा मन यदा-कदा कहीं भी चला जाता है। यह बात नवीन जैन मंदिर प्रांगण में प्रवचन देते हुए आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने कही।
उन्हाेंने कहा कि अपने मन पर निगरानी रखें। इस बात का पूरा ध्यान रखें, मन को सदा स्वच्छ रखें, क्योंकि परमात्मा भी स्वच्छ मन में ही प्रवेश करता है। मन में किसी के प्रति राग द्वेष के भाव न रखें। मन को पाप, वासना, क्रोध, अहंकार, कामना से दूर रखें। मन स्वार्थ में नहीं, परमार्थ में जिएं, इसका ख्याल रखेें। जिसका मन पवित्र है, वह सबके लिए सुख समृद्धि ही मांगता है। सबकी भलाई में ही अपनी भलाई है। उसका जीवन पत्थरों की तरह नहीं, फूलों की तरह होता है, फूलों में प्राण भी होते है और सौंदर्य भी होता है, उसके जीवन में होश और प्रसन्नता होती है।
उन्होंने कहा कि मन तो विचारों का विश्वविद्यालय है, कुंभ का मेला है। मन तो वह चाैराहा है, जहां से हर पल विचारों के यात्री गुजरते रहते हैं। बेहोशी और मूर्छा में जीने वाला मन ही दूसरों के प्रति अशुभ चिन्तन करता है। दुनिया में जितने पाप, अपराध, हत्याएं आदि होते हैं, वे सब बेहोशी में होते हैं, अतः मूर्छा से ऊपर उठें और होश में जीएं। मूर्छा ही मृत्यु है और होश ही जीवन है। होश में हम क्रोध नहीं कर सकते, होश में हम किसी को अपशब्द नहीं कह सकते। होश में हम किसी की हत्या अादि कुछ नहीं कर सकते, अतः पाप और अनर्थ से बचना है, तो जीवन में होश की साधना अनिवार्य है। जो हम अपने लिए चाहते हैं, वह दूसरों के लिए भी चाहें।
उन्होंने कहा कि जीवन के प्रति थोड़ा गंभीर होना आवश्यक है। किसी बहती नदी को देखकर सोचें कि जिस प्रकार नदी का जल बहता जा रहा है, उसी प्रकार मेरी जिन्दगी भी भागी जा रही है। नदी अन्ततः सागर में विलीन होने की अभिलाषा लेकर गतिमान है और मेरी जिन्दगी भी मृत्यु रूपी खाड़ी में गिरने को आतुर है। घड़ी के सेकंड के कांटे की तरह बचपन भाग रहा है, मिनट के कांटे की तरह जवानी बीत रही है और घंटे का कांटा बुढ़ापे का प्रतीक है। इसी प्रकार मृत्यु हमारी ओर कभी आती दिखाई नहीं देती है, लेकिन हर पल अपने साथ खड़ी है। डूबते सूरज को देखकर सोचें, एक दिन मेरा जीवन रूपी सूरज भी इसी प्रकार डूब जाएगा। जीवन क्षण मात्र का होता है, अतः यह नश्वर शरीर चिता पर पहुंचे, इससे पहले अपनी चेतना जगा लें। जो जीवन को उत्सव मानकर जीते हैं, उनकी मृत्यु ही महोत्सव का रूप ले पाती है।
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