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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

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  1. शब्द में प्रयोजन नहीं लेकिन अर्थ में प्रयोजन हुआ करता है: अाचार्यश्री नवीन जैन मंदिर के मंगलधाम परिसर में चल रहे हैं प्रवचन | खुरई आप बताओ मैं तो सुनाता ही रहता हूं। एकाध बार सुन भी तो लूं। हमारे भगवान 24 हुए हैं अंतिम महावीर स्वामी का तीर्थंकाल चल रहा है, सुन रहे हो। हओ। ऋषभनाथ भगवान का समोशरण 12 योजन का था जो पुण्य कम होने से धीरे-धीरे आधा-आधा योजन घटता गया और भगवान महावीर स्वामी का एक योजन रह गया। यूं कहना चाहिए वृषभनाथ भगवान बड़े बाबा तो महावीर भगवान हमारे छोटे बाबा हैं। यह बात साेमवार काे नवीन जैन मंदिर के मंगलधाम परिसर में प्रवचन देते हुए अाचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कही। उन्हाेंने कहा कि शब्द में प्रयोजन नहीं लेकिन अर्थ में प्रयोजन हुआ करता है। शब्द जड़ होता है। संकेत के लिए काम आता है शब्द। संकेत गौण कैसा। जो इष्ट होता है उसे प्राप्त करना होता है। प्राप्ति हेतु साधन जुटाए जाते हैं। साधन अपने आप ही नहीं मिल जाते किंतु इतना अवश्य है कि जब प्रयोजन को सामने देखते हैं तो बाकी सभी गायब हो जाते हैं। वृषभनाथ एवं महावीर का रास्ता भी शब्द की अपेक्षा पृथक-पृथक हो गए। रह गया केवल इष्ट को जाने वाला मैं ही-मैं ही करने वाला, मैं ही करने वाला न ही भगवान में लीन होता है, न ही लोक में लीन होता है। भगवान सामने है वह व्यवहार है उसमें हम अपने को खोज नहीं सकते। उसमें देखने से यहां का वैभव दिखने लग जाता है। इतना ही नहीं उसमें देखने से अड़ोस-पड़ोस, ऊपर-नीचे सब गायब हो जाता है। आचार्यश्री ने कहा कि संघर्ष जहां भी होता है वह मेरा-तेरा से होता है इसलिए कभी-कभी यह भी प्रयोग हमने किया। एक व्यक्ति के लिए कह दिया तो गड़बड़ भी हो सकता है। महाराज ने उसी ओर क्यों देखा। हमने सोचा इसका प्रयोग न करके दूसरी तरफ से चलें तो दोनों बच जाएंगे और हम का प्रयोग किया। हमने इसमें दोनों आ जाते हैं हमने बोलने से मैं छूटता भी नहीं। उन्होंने कहा कि हममें मैं सुरक्षित है, सरकार भी चिंता कर रही है गरीब, सवर्णाें की। ये संख्या कितनी पता ही नहीं। ऐसी चिंता करो जिससे सबका उद्धार हो जाए इसलिए मैत्री में सव्वभूतेसु कहा। इस जगत में जितने भी जीव हैं सभी में मैत्रीभाव रहे। यदि सबके प्रति पक्ष-विपक्ष का भाव गौण कर दिया जाए तो राष्ट्रीय पक्ष हो जाए। हम अधिक पढ़े लिखे हैं कम समझदार। इसमें भी हम आ गया, किसी को छोड़ा नहीं। आचार्यश्री ने व्यंग्य करते हुए कहा कि वर्तमान समय में कई लोग तो महावीर स्वामी की आयु को भी लांघ गए हैं। आप ही बताओ लंबी-लंबी आयु अच्छी नहीं। छोटा होता है तो ठीक है बड़े हो तो अकेले रह जाओगे। बहुत कठिन होता है जहां हम होता है वहां अहं आ जाता है। जो हम को समाप्त कर रहा है वह अहं को भी समाप्त कर देगा। उन्हाेंने कहा कि भगवान ऋषभनाथ की काया 500 धनुष की थी, वर्तमान में घटते-घटते वह काफी कम रह गई परंतु केवल ज्ञान सबका समान है। तुलनात्मक शब्द हमें भेद की ओर ले जाते हैं इसलिए हम किसी से भी किसी की तुलना न करें। हम भी ठीक रहें आप भी ठीक रहें यह भावना भाते रहें। बुंदेलखंडी शब्दों की विशेषता है कि मैं ही मैं ही को हटा दो। मैं ही की अपेक्षा हम ही कह दो तो सब आ जाएंगे। प्रवचन के पूर्व आचार्यश्री विद्यासागर महाराज की पूजन संपन्न हुई। पं. रतनलाल बैनाड़ा के नेतृत्व में 200 छात्रों ने आशीर्वाद लिया राजस्थान के सांगानेर से आए विद्वान पं. रतनलाल बैनाड़ा के नेतृत्व में मोक्षमार्गी 200 छात्रों ने आचार्यश्री विद्यासागर महाराज के समस्त संघ को श्रीफल भेंट कर आशीर्वाद लिया। सभी छात्र सांगनेर में अध्ययन करते हैं। आचार्यश्री विद्यासागर महाराज को पडगाहन कर आहारदान देने का सौभाग्य भी सांगानेर से पधारे पं. रतनलाल बैनाड़ा, राजेन्द्र कुमार हिरणछिपा वालों को प्राप्त हुआ। समस्त छात्रों ने आचार्यश्री का पद प्रक्षालन कर गंधोदक अपने माथे पर लगाकर पुण्यार्जन किया।
  2. खुरई दीपक जलाना बहुत आसान होता है, परन्तु ज्ञानदीप को जलाना बहुत मुश्किल होता है। याद रखना बंधुओं दीपक के तले ही अंधेरा होता है। व्यक्ति को हमेशा र|दीप जलाने का प्रयास करना चाहिए, र|दीप के नीचे न तो अंधेरा ही रहता है और न ही यह कभी बुझता है। इसकी ज्योति भी निरंतर अखण्ड रूप से प्रज्जवलित होती रहती है। अधकचरा ज्ञान हमें कभी भी अपनी मंजिल या लक्ष्य की प्राप्ति नहीं करा सकता। अंधों में काना राजा बनना भी ठीक नहीं है। ज्ञानावरणी कर्मों का क्षय करने का निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए। यह बात मंगलधाम परिसर में प्रवचन देते हुए अाचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कही। उन्हाेंने कहा कि क्या हो गया तुझे, अपमान पर अपमान सह रहा है, कर्म तुझे मनमाने दुःख दे रहे हैं तू कुछ भी कर नहीं पा रहा है। अपने स्वभाव में रह नहीं पा रहा है इससे बड़ा अपमान और क्या हो सकता है जो आत्मा स्वचतुष्टय के स्तम्भ पर खड़े निजगृह में न रहे तो उसके गृह में कर्मरूपी डकैत बसेरा कर लेते हैं। गृहमालिक कमजोर पड़ जाए, कमजोर बलजोर हो जाए और आत्मा मारा-मारा फिरे, इन्द्रिय और मन के विषयों की गुलामी करता रहे, पर में ही सुख को खोजता फिरे इससे बड़ा आत्मा का अपमान और क्या हो सकता है। उन्हाेंने कहा कि अपनी इस दुर्दशा पर क्या तुम्हें तरस नहीं आता। विषय भोगी और मान कषायी जीवों से पल भर भी कुछ सम्मान के शब्द सुनने के पीछे कितने दुःखों का भार उठाना पड़ रहा है। सम्यक् विचार क्यों नहीं करते। मान से उत्पन्न हुए सुखाभास रूप सुख को कुछ पल के लिए पाने हेतु कितने सारे पल दुःख में बीते जा रहे हैं। अरे! इन भारी कर्णाभूषणों को पहनने का औचित्य क्या जिससे कान ही कट जाए, कभी कुछ पहन ही न पाए। ऐसे मान का क्या प्रयोजन जो भगवान ही न बनने दे, भगवत्ता पर आवरण डाल दे। प्रभु की वाणी में भी सम्यक्त्व की, व्रती की प्रशंसा होती है यदि तुममें ये गुण नहीं हैं तो लज्जा की बात है। यदि सम्मान ही पाना है तो प्रभु वचनों में सम्मान पाअाे। आचार्यश्री ने कहा कि मानी जीवों से सम्मान पाकर क्या होना है यदि वे तुझे एक बार सम्मान देते हैं तो तुझसे सौ बार सम्मान पाने की तमन्ना भी रखते हैं यह निश्चित है। मान के लिए पर से सम्बन्ध जोड़ने पड़ते है, प्रशंसक एकत्रित करने होते हैं, इसके लिए उनकी भी झूठी प्रशंसा करनी होती है ऐसी झूठी जिंदगी जीने का मतलब ही क्या। यदि मोक्ष सुख को पाने लिए परीशह उपसर्ग सहते तो कर्म निर्जरित हो जाते किन्तु मान के लिए अपमान को सहते रहने से तो और-और कर्म ही बांधते रहे। अपनी बर्बादी करते रहे यह बात भी ध्यान रखने योग्य है कि अपमान के घूंट बार बार पीने से दीनता आती है। आचार्यश्री ने कहा कि जहां सम्मान की तमन्ना में अपने आत्मिक वैभव की बाजी लगा देनी पड़े ऐसे मान को धिक्कार हो जिसमें सच्चा सुख तो एक पल का भी है ही नहीं। मान का सही ज्ञान हो तो सुख की शुरूआत हो, मान से छुटकारा हो, ज्ञानयान पर सवार होकर यात्रा की शुरूआत हो, आनंद की बरसात हो ऐसा कुछ करने का सतत् प्रयास करें। प्रवचन सभा के पूर्व आचार्यश्री की पूजन संपन्न हुई, गुरूवर की अाहारचर्या महेन्द्र गुड़ वालों के यहां हुई। ईशुरवारा अतिशय क्षेत्र के समस्त पदाधिकारियों ने आचार्य संघ को श्रीफल भेंटकर ईशुरवारा अतिशय क्षेत्र में आने को आमंत्रित किया।
  3. बांदरी 13-1-2019 मंत्र की महिमा अपरम्पार है- मुनिश्री बांदरी जिला सागर( मध्यप्रदेश) में सर्वश्रेष्ठ साधक आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य मुनि श्री विमल सागर जी मुनि श्री अनंत सागर जी मुनि धर्मसागर जी मुनि श्री अचल सागर जी मुनि श्री भाव सागर जी ससंघ एवं आर्यिका श्री अनंत मति माताजी ससंघ एवं आर्यिका श्री भावना मति माता जी आदि 22 आर्यिकाओं के सानिध्य मे आचार्य श्री की पूजन हुई । आर्यिका श्री सदय मति माताजी ने अपने उद्बोधन में अपने गुरु का गुणगान किया और उन्होंने बताया कि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की चर्या हमेशा उत्कृष्ट रही है। मुनि श्री भावसागर जी ने कहा कि भक्ति में जो भी अर्पण किया जाता है बह श्रेष्ठ होता है। मंदिर के कलश भी अच्छे होना चाहिए । भगवान के अभिषेक और शांति धारा के बाद 64 चमर डुलाना चाहिए । खाली हाथ क्रिया नहीं करना चाहिए पंचकल्याणक में केवल ज्ञान कल्याणक के दिन प्राण प्रतिष्ठा मंत्र के द्वारा प्राण प्रतिष्ठा की जाती है । यह गुप्त रूप से की जाती है क्योंकि सूरि शब्द यह दिगंबर आचार्य ,साधु का है। यही सप्तम गुणस्थान से बारहवें गुणस्थान तक की विधि है। सुरि मंत्र गुप्त रूप से दिया जाता है। यह गुरु मंत्र है , जो गुप्त रूप से कहा जाता है बह मंत्र कहलाता है। यहां सुरि मंत्र प्रदान करते समय साधु के भावों की विशुद्धि स्थिरता एवं श्रद्धा भक्ति प्रतिमा को ऊर्जावान और पूज्य बनाती है। प्रतिमा में कितनी भी क्रियाएं की जावे , किंतु सूरि मंत्र के बिना बे सभी क्रियाएं कार्यकारी नहीं हो पाती है। सूरि मंत्र प्रदान करने वाला साधु निर्ग्रंथ होना चाहिए सूरि मंत्र की तरह है ।आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराजकी तप साधना निर्दोष ब्रह्मचर्य की साधना 50 वर्ष से अधिक की है इसी कारण से पूरे देश के लोग चाहते हैं आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के द्वारा सूरि मंत्र प्रतिमाओं में प्रदान किया जाए।
  4. आर्यिका रत्न दुर्लभमति माता जी ससंघ का मंगल विहार इंदौर से भगवान महावीर स्वामी की तपोस्थली उज्जैन की ओर हो गया है |
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