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  1. Vidyasagar.Guru
    मंजिल का कोई कद नहीं होता है, लघु पथ से वह गुरु पथ की ओर जाता है: आचार्यश्री
     
     
    रविवार, आज वीरवार भी है। दूर- दूर से मेहमान आए हैं। इस बड़ी पंचायत में उन्हें पहले जगह मिलना चाहिए। आज यहां मुझे लघु रास्ते से लाया गया तो मैने पूछा यह नया- नया सा लग रहा है। जब मन में जानने की जिज्ञासा होती है तो वह उसका पूरी स्पष्टता से समाधान भी चाहती है। मैं अल्प समय में उसका अंतरंग में ध्यान रख कर बताता हूं कि आपकी जिज्ञासा जानने में नहीं जीने की इच्छा को लेकर होती है। भगवान राम रघुकुल के भी थे और गुरुकुल के भी। इसलिए उनका जीवन हर किसी व्यक्ति के लिए आकर्षण का केंद्र बना रहता है। गुरुकुल के भाव राम के जीवन में हमेशा बने रहे। भगवान श्रीराम लघुपथ को चुन कर पगडंडियों पर चलते थे। उन्होंने अपने आपको हमेशा लघु माना। मंजिल का कोई कद नहीं हुआ करता है। लघु पथ से वह गुरु पथ की ओर जाता है। 

    हम लोग खूब आकुल- व्याकुल रहते हैं और जो भगवान से संबंध रखते हैं। उनमें आकुलता नहीं रहती है। आप अपने आपको भूलोगे तो अपने बन जाओगे। क्योंकि इसमें भीतरी छवि और आत्म तत्व की बात होती है। हमें ऊपर की शक्ल देख कर संतुष्ट नहीं होना चाहिए बाहर की छवि को अच्छा देखना चाहिए लेकिन उन्हें भीतरी सोच के साथ रखना चाहिए। जैसे कि डाक्टर ऊपर की शक्ल देख कर नहीं भीतरी आकृति देख कर संतुष्ट होता है। वही चिकित्सा अंदर की करता है उसका असर ऊपर से नजर आता है। 
     

     
    जैसे सोने को कभी चमकाया नहीं जाता है वह भट्टी में जाते ही और चमकदार हो जाता है भट्टी में वह जलता नहीं है। अपने को लघु बनाना बड़ी वस्तु है हम खुद को तो आरोग्यधाम बनना चाहते हैं। जबकि इसकी रोक धाम आयुर्वेदिक इलाज में है। यह बहुत प्राचीन पद्धति है। चीन इसमें बहुत आगे बढ़ गया है परंतु उसे यह नहीं पता कि नाड़ी से क्या होता है। हमारा इतिहास बताता है कि हमारे यहां नाड़ी देखकर रोग का पता लगा लिया जाता था। जो लोगों की व्याधि को जान सकता है वह आयुर्वेदिक है। आयु क्या है, आत्मा क्या है। यह जाने बिना चिरायु को जाना नहीं जा सकता है। चिरंजीव कोई नहीं हो सकता है चिरंजीव तो सिर्फ भगवान ही होते हैं, जो अनंत काल तक जीते हैं। हम तो पूर्ण आयु की कामना कर सकते हैं। बीच में अकाल मरण ना हो आयु को पूर्ण करके मृत्यु हो। पूर्ण आयु के लिए सम्यक दर्शन सम्यक ज्ञान और सम्यक चरित्र की आवश्यकता है शिष्य की दृष्टि हमेशा गुरु के ऊपर रहनी चाहिए, जबकि गुरु की दृष्टि सभी शिष्यों के ऊपर रहती है। 

    मौसम बदलने पर सुकमाल व्यक्ति को कुछ ना कुछ रोग हो जाता है तापमान के माध्यम से आयुर्वेदिक दवाएं दी जाती हैं। यदि अच्छी नींद आ जाए और भूख मिट जाएं तो आप के रोग अपने आप दूर हो जाते हैं। 12 वर्षों के अध्ययन के बाद नाड़ी के वैद्य बनते हैं तब वह रोग पकड़ने में माहिर हो जाते हैं। भाग्योदय तीर्थ में विराजमान आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने रविवारीय धर्मसभा को दोपहर में संबोधित किया। उन्होंंने जो वचन कहे, उन्हें हम यहां जस का तस दे रहे हैं। 

    रविवार, आज वीरवार भी है। दूर- दूर से मेहमान आए हैं। इस बड़ी पंचायत में उन्हें पहले जगह मिलना चाहिए। आज यहां मुझे लघु रास्ते से लाया गया तो मैने पूछा यह नया- नया सा लग रहा है। जब मन में जानने की जिज्ञासा होती है तो वह उसका पूरी स्पष्टता से समाधान भी चाहती है। मैं अल्प समय में उसका अंतरंग में ध्यान रख कर बताता हूं कि आपकी जिज्ञासा जानने में नहीं जीने की इच्छा को लेकर होती है। भगवान राम रघुकुल के भी थे और गुरुकुल के भी। इसलिए उनका जीवन हर किसी व्यक्ति के लिए आकर्षण का केंद्र बना रहता है। गुरुकुल के भाव राम के जीवन में हमेशा बने रहे। भगवान श्रीराम लघुपथ को चुन कर पगडंडियों पर चलते थे। उन्होंने अपने आपको हमेशा लघु माना। मंजिल का कोई कद नहीं हुआ करता है। लघु पथ से वह गुरु पथ की ओर जाता है। 

    हम लोग खूब आकुल- व्याकुल रहते हैं और जो भगवान से संबंध रखते हैं। उनमें आकुलता नहीं रहती है। आप अपने आपको भूलोगे तो अपने बन जाओगे। क्योंकि इसमें भीतरी छवि और आत्म तत्व की बात होती है। हमें ऊपर की शक्ल देख कर संतुष्ट नहीं होना चाहिए बाहर की छवि को अच्छा देखना चाहिए लेकिन उन्हें भीतरी सोच के साथ रखना चाहिए। जैसे कि डाक्टर ऊपर की शक्ल देख कर नहीं भीतरी आकृति देख कर संतुष्ट होता है। वही चिकित्सा अंदर की करता है उसका असर ऊपर से नजर आता है। 

    जैसे सोने को कभी चमकाया नहीं जाता है वह भट्टी में जाते ही और चमकदार हो जाता है भट्टी में वह जलता नहीं है। अपने को लघु बनाना बड़ी वस्तु है हम खुद को तो आरोग्यधाम बनना चाहते हैं। जबकि इसकी रोक धाम आयुर्वेदिक इलाज में है। यह बहुत प्राचीन पद्धति है। चीन इसमें बहुत आगे बढ़ गया है परंतु उसे यह नहीं पता कि नाड़ी से क्या होता है। हमारा इतिहास बताता है कि हमारे यहां नाड़ी देखकर रोग का पता लगा लिया जाता था। जो लोगों की व्याधि को जान सकता है वह आयुर्वेदिक है। आयु क्या है, आत्मा क्या है। यह जाने बिना चिरायु को जाना नहीं जा सकता है। चिरंजीव कोई नहीं हो सकता है चिरंजीव तो सिर्फ भगवान ही होते हैं, जो अनंत काल तक जीते हैं। हम तो पूर्ण आयु की कामना कर सकते हैं। बीच में अकाल मरण ना हो आयु को पूर्ण करके मृत्यु हो। पूर्ण आयु के लिए सम्यक दर्शन सम्यक ज्ञान और सम्यक चरित्र की आवश्यकता है शिष्य की दृष्टि हमेशा गुरु के ऊपर रहनी चाहिए, जबकि गुरु की दृष्टि सभी शिष्यों के ऊपर रहती है। 

    मौसम बदलने पर सुकमाल व्यक्ति को कुछ ना कुछ रोग हो जाता है तापमान के माध्यम से आयुर्वेदिक दवाएं दी जाती हैं। यदि अच्छी नींद आ जाए और भूख मिट जाएं तो आप के रोग अपने आप दूर हो जाते हैं। 12 वर्षों के अध्ययन के बाद नाड़ी के वैद्य बनते हैं तब वह रोग पकड़ने में माहिर हो जाते हैं।
  2. Vidyasagar.Guru
    आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने भाग्योदय तीर्थ में सोमवार को धर्म सभा में कहा कि मनुष्य पांच इंद्रीय होते हैं और सीमा में रहते हैं। स्थान छोड़कर भी नहीं जा सकते हैं। मन भी एक इंद्री है लेकिन वह घोषित नहीं है और इस मन का कोई ठिकाना नहीं है। मन को पकड़ना किसी के वश की बात नहीं है। आचार्य श्री ने कहा कि मन के विषय का कोई ठिकाना नहीं है। कहीं रूप में, कहीं गंध में तो कभी खाने और विषयों में मन कब कहां चला जाए, इसे कोई रोक नहीं सकता है। जिसने मन को मना लिया वह संयम के मार्ग पर जा सकता है। 

    आचार्य श्री ने कहा कि अणुव्रत के माध्यम से आगे बढ़ना चाहिए, दान देने पर आप हल्कापन महसूस करोगे और अगले जीवन में इसका लाभ मिलेगा मोक्ष मार्ग भी प्राप्त हो सकता है |

    आचार्य श्री जी ने कहा हर क्षेत्र में हमें संयम की आवश्यकता है हर काम चाहिए लेकिन धार्मिक क्षेत्र में ज्यादा संयम की आवश्यकता है। 

    सोमवार को सुबह आचार्य श्री के पूजन पूर्व पादप्रक्षालन का अवसर डॉ चक्रेश जैन, दीपक जैन,शैलेंद्र जैन, कपिल बरोदा, रितेश जैन, संजय जैन को मिला। आचार्य श्री की आहारचर्या अरुण जैन ताले वाले रविकांता जैन, सर्वतोभद्र जिनालय के ट्रस्टी अनूप जैन रूपाली जैन अंसुज जैन के चौके में हुई इस अवसर पर ताले वाले परिवार ने बड़ी प्रतिमा भाग्योदय में विराजमान कराने की घोषणा की । इनके छोटे भाई जयकुमार जैन ने एक छोटी प्रतिमा जिनालय में विराजमान कराने की घोषणा की रविकांता जैन ने सोने की चेन,शालिनी जैन की दादी ने 2 तोला सोना, राहुल जैन मोकलपुर एक अंगूठी और रेखा जैन ने एक सोने का कडा मंदिर के निर्माण में दान देने समर्पित किया। सर्वतोभद्र जिनालय निर्माण में अशोक जैन ठेकेदार और उनके परिवार ने एक बड़ी प्रतिमा विराजमान कराने की घोषणा की। सहस्त्रकूट जिनालय में प्रतिमा विराजमान करने की घोषणा 25 श्रद्धालुओं ने की। एक हजार आठ प्रतिमाओं में से लगभग 900 से अधिक दानदाताओं द्वारा मूर्ति विराजमान कराने की घोषणा की गई है। संचालन मुकेश जैन ढाना ने किया। 

    तीर्थ परिसर में देखा सर्वतो भद्र जिनालय का निर्माण कार्य 

    सागर | भाग्योदय तीर्थ परिसर में बन रहे सर्वतोभद्र जिनालय का काम देखने सोमवार को दोपहर 2 बजे आचार्यश्री विद्यासागर महाराज निर्माण स्थल पर पहुंचे। मंदिर की नींव का काम अंतिम चरण में है। आचार्य श्री ने मंदिर के ट्रस्टियों देवेंद्र जैन , मुकेश जैन ढाना, आनंद जैन, सट्टू जैन कर्रापुर, राजेश जैन , पप्पू प्रदीप जैन , प्रकाश जैन ,अनूप जैन आदि से निर्माण कार्य की जानकारी ली। इस मौके पर निर्माण करा रहे इंजीनियर राहुल यादव,कपिल ठाकुर,अनिल नामदेव, राजेश मथुरिया, प्रभु विश्वकर्मा, दीपाली पटेल और मिस्त्री-मजदूरों व वाहन चालकों को आचार्य श्री ने आशीर्वाद दिया। भाग्योदय तीर्थ में चतुर्मुखी जिनालय का निर्माण कार्य चल रहा है। 216 फीट ऊंचे इस मंदिर में तीन गर्भ ग्रह होंगे। 12 चौबीसी में 288 प्रतिमाएं विराजमान होगी। 
  3. Vidyasagar.Guru
    संत शिरोमणि आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने भाग्योदय तीर्थ परिसर में शनिवार को धर्मसभा में कहा कि बच्चों में शुरू से ही संस्कार डालना चाहिए। फास्ट फूड के रूप में एक अजान फल जो पैकेट में बंद रहता है, उसके अंदर क्या है। यह मालूम नहीं तो भी उसका सेवन लगातार बढ़ता जा रहा है। ये ठीक नहीं है। इसकी जगह आप सभी को घर का भोजन करना चाहिए। 

    आचार्य श्री ने कहा पैकेट में अंदर क्या है। पैकेट में ना तो हवा जाती है और कैसे वह बना है यह भी नहीं मालूम, बस थोड़ा चटपटा और जीभ को अच्छा लगता है इसके चलते लोग इसे आंख बंद करके खा रहे हैं। जबकि इससे पेट नहीं भरता फिर भी बच्चे इसके दीवाने हैं और खा रहे हैं। घर का खाना खाने से आप स्वस्थ रहेंगे । क्योंकि फास्ट फूड कैंसर का सबसे बड़ा कारण है और आने वाले समय में हर घर में इस रोग से व्यक्ति पीड़ित रहेंगे। इस रोग से बचना है तो फास्ट फूड का त्याग करना होगा । 

    कई लोगों ने की सहस्त्र कूट जिनालय में प्रतिमा विराजमान कराने की घोषणा : वीरेंद्र जैन फैंसी ज्वेलर्स 11 मूर्ति,आनंद जैन बंटी राहतगढ़ ने एक बड़ी मूर्ति और कपिश जैन दिल्ली चार्टर्ड अकाउंटेंट ने आचार्य श्री के चरणों का पाद प्रक्षालन किया। आचार्य श्री की आहार चर्या राकेश जैन ,नमिता जैन, रितुल जैन और ईशु जैन के चौके में हुई।सहस्त्र कूट जिनालय में प्रतिमा विराजमान कराने की घोषणा डा. विनोद मीना जैन, अजय जैन शिखर चंद जैन, क्रांति जैन सुलोचना जैन,सरोज जैन, निशांत समैया ,प्रदीप जैन, संदीप जैन , कंछेदी लाल दाऊ, भागचंद जैन, अरविंद जैन, अखिलेश जैन, प्रियंका, आनंद जैन, राहुल जैन , हुकमचंद जय कुमार सुनील, जिनेंद्र जैन, सुनील जैन, सुशील जैन, वर्षा जैन ने एक- एक मूर्ति विराजमान कराने की घोषणा की। 

    जस्टिस, कुलपति, डीआईजी, एसपी ने लिया आर्शीवाद : शनिवार को मप्र मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस एन के जैन, हरी सिंह गौर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो राघवेंद्र प्रसाद तिवारी, डीआईजी पुलिस राकेश जैन, पुलिस अधीक्षक अमित सांघी आदि मुनिश्री के दर्शन कर आशीर्वाद लिया। भाग्योदय के डॉक्टरों ने आचार्य श्री को श्रीफल भेंट किया। 

    आचार्य श्री के रविवारीय प्रवचन आज : भाग्योदय तीर्थ परिसर में विराजमान आचार्य विद्यासागर महाराज के रविवार को दोपहर 2 बजे से होंगे। मुनि सेवा समिति के सदस्य मुकेश जैन ढाना ने बताया कि आचार्य श्री का पूजन सुबह 9 बजे से छोटे पंडाल में होगी। इसके बाद मंगल देशना सुबह 9:30 बजे, आहारचर्या सुबह 10 बजे और दोपहर 2 बजे से बड़े पंडाल में आचार्य श्री की मंगल देशना होगी। 

    ये है त्याग 

    आचार्य श्री ने कहा त्याग क्या है एक बार जंगल में दो लोग जा रहे थे उन्हें बहुत तेज भूख लग रही थी अचानक एक पेड़ ऐसा दिखा जहां पर बहुत अच्छे और रस भरे फल लगे हुए दिखाई दे रहे थे लेकिन उस फल का नाम किसी को नहीं मालूम था एक व्यक्ति ने कहा कि मैंने मुनि महाराज से नियम लिया है कि जिस फल का नाम नहीं मालूम हो ऐसे अजान फल को मैं नहीं खाऊंगा लेकिन दूसरे व्यक्ति को इतनी तेज भूख लगी थी तो उसने एक फल खाया और कुछ ही मिनटों में उसके प्राण निकल गए त्याग के कारण एक व्यक्ति की जान बच गई और दूसरे के प्राण चले गए।आचार्य श्री ने कहा देने वाले को अपना मोह कम करना चाहिए त्याग के भाव बनाना अच्छी बात है 

     
  4. Vidyasagar.Guru
    आचार्य श्री ने कहा सरकारें आपकी होती हैं, हमारी तो भगवान के सिवाय कोई नहीं, वह कभी गलती भी नहीं करती
     
    भाग्योदय में शुक्रवार को भी 50 से ज्यादा मूर्तियां सहस्त्र कूट जिनालय में देने की घोषणा की गई 
    भाग्योदय तीर्थ परिसर में शुक्रवार को आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने धर्मसभा में कहा की कन्याओं को ना सोर होती है और ना ही सूतक लगती है। आपने उसे पाला और पोसा है और फिर कन्यादान कर दिया, जो देने योग्य था वह दे दिया। आचार्य श्री ने बताया कि पिता कन्या के घर जाता है तो कुछ खाता पीता नहीं है बल्कि कन्या के घर जब वो आ जाएगा तो खाली हाथ नहीं बल्कि कुछ लेकर जाएगा और हमेशा उसकी समृद्धि के लिए भगवान से कामना करेगा। ससुर बनने के बाद कन्या दामाद की समृद्धि ससुर के लिए महत्वपूर्ण होती है क्योंकि कहने को होता है कि यह उस लड़की के पिता है या उस लड़के के ससुर हैं और उस हस्ताक्षर के माध्यम से ही पहचान बढ़ती रहती है। ससुर सिर्फ त्याग करता है और हमेशा देने का काम करता है। आचार्य श्री ने कहा हमारी सरकार तो भगवान है और कोई नहीं, आप लोगों की सरकारें होती हैं। हमारी सरकार कभी गलती नहीं करती। 
  5. Vidyasagar.Guru
    संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज ससंघ भाग्योदय तीर्थ सागर में विराजमान हैं |
    सागर का स्टेशन कोड SGO (Saugor) हैं 
    आवास व्यवस्था - श्री देवेंद्र जैन 
    संपर्क सूत्र - 9406557744, 9589076916, ‎7582244369
     
    25 जनवरी 2019
     
     
    संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज  का ससंघ मंगल प्रवेश सागर शहर मे आज शाम 4 बजे (संभावित) होगा |
     
    24 जनवरी 2019
    समय दोपहर 1.45 बजे
    संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज  का ससंघ मंगल विहार सागर की ओर हुआ। 
    रात्रि विश्राम सागर के निकटवर्ती ग्राम में होने की संभावना है। आज रात्रि विश्राम स्थल से भाग्योदय तीर्थ परिसर सागर की दूरी सिर्फ 10 किमी है |
    25 जनवरी की शाम को गुरुदेव के भाग्योदय तीर्थ में प्रवेश की संभावना है
     
    23 जनवरी 2019
    समय दोपहर 1.45 बजे
    संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज ससंघ का मंगल विहार ईशुरबारा से सागर की ओर हुआ।
    रात्रि विश्राम - नरयावली में होने की संभावना है। भाग्योदय तीर्थ परिसर सागर से नरयावली की दूरी सिर्फ 18 किमी है |
     
    22 जनवरी 2019
    ईसरबारा मे हुआ मंगल प्रवेश
    आचार्य संघ का ईशुरबारा मे आगमन हुआ
    ईशुरबारा मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज की जन्मस्थली है|

     
    22 जनवरी 2019
    परम् पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ।
    जरुआखेड़ा से हुआ मंगल विहार। संभावित दिशा- पूज्य मुनिश्री सुधासागर जी महाराज की जन्मभूमि इसुरवाडा की ओर।  
    21 जनवरी 2019
    समय दोपहर 3.30 बजे
     संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज  जरुआखेड़ा (सागर-बीना रोड पर सागर से 36 किमी और खुरई से 18 किमी दूर ) में विराजमान है। आज विहार नही हुआ।
     
    20 जनवरी 2019 
    समय दोपहर 2.15 बजे
     संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर महाराज का मंगल बिहार बनहट (खुरई) से जरुआखेड़ा (सागर) की ओर हुआ । दूरी 7 किमी
     
     
    आज आहार चर्या  बंट में ही होगी 
     
    दोपहर में विहार होने की सम्भावना 
     
    19 जनवरी 2019 
    रात्री विश्राम -  बंट
    कल आहार चर्या जरुआखेड़ा में ही संभावित
     
    4 PM  पूज्य गुरुदेव ने बढ़ाये अपने कदम सिमरिया से भी आगे बंट की ओर।
    1 45 PM परम पूज्य आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज का खुरई से सागर की ओर हुआ विहार।

  6. Vidyasagar.Guru
    भारती विद्यापीठ (अभिमत विश्वविद्यालय), पुणे भारत
    द्वारा परम मनीषी, महाकवि, आचार्य गुरुवर श्री विद्यासागर जी महाराज
    को डॉक्टर ऑफ  लेटर्स (डी लिट) की मानद उपाधि प्रदान की जानी है
    🔅शनिवार 2 फरवरी 2019, समय 11:00🔅
     
    अत्यंत गौरव एवं हर्ष का विषय है की शनिवार 2 फरवरी 2019 को भारती विद्यापीठ (अभिमत विश्वविद्यालय), पुणे का 20 वा पदवीप्रदान समारंभ आयोजित होने जा रहा है | इस आयोजन में संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज (जैनाचार्य, महान विद्वान) को डॉक्टर ऑफ लेटर्स (डी. लिट.) की मानद पदवी प्रदान की जाएगी |
     
    आचार्यश्री द्वारा रचित साहित्य
    https://vidyasagar.guru/articles.html/jeewan-parichay/acharya-shri-dvara-rachit-sahitya/
     
    निमंत्रण पत्रिका संलग्न 
     

     
     

  7. Vidyasagar.Guru
    जब पैर में कांटा चुभता है तो वह अंदर की ओर चला जाता है और दर्द बढ़ता जाता है जब उसको निकालने का प्रयास करते हैं तो दर्द और बढ़ जाता है यह दर्द मन के कारण ज्यादा होता है क्योंकि मन हमारा उस कांटे की ओर ही लगा हुआ है यह बात आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने भाग्योदय तीर्थ परिसर में धर्म सभा के दौरान कही। 

    आचार्य श्री ने कहा दानदाताओं को बताना चाहिए मोह के कारण धन आपके यहां है थोड़ा सा निकाल दो और यह सोचकर यह मेरा नहीं है तो वह निकल आएगा मोक्ष जाने के लिए तन और धन कि नहीं बल्कि मन की आवश्यकता होती है यदि मन में स्थिरता आती है तो सारे काम बगैर दर्द के हो जाते हैं 

    आचार्य श्री ने कहा मतवाले नहीं मन वाले बनो, मन को मना लोगे तो तुम मनमानी नहीं कर पाओगे। उन्होंने कहा दर्द का मूल कारण तनाव है और मन के कारण कभी कभी आंखों में आंसू आने लगते हैं। दर्द भूलने का प्रयास करोगे तो निश्चित रूप से आपका मन कभी नहीं भटकेगा। जिसको कांटा लगता है दर्द उसी को पता होता है दूसरे को नहीं, दूसरा तो सिर्फ महसूस करता है आचार्य श्री के पाद प्रक्षालन मुंबई निवासी सचिन जैन और महेंद्र जैन शनिचरी ने किया मिला। भाग्योदय में तीसरे दिन सोमवार को सहस्त्र कूट जिनालय के लिए 20 से अधिक श्रद्धालुओं ने अपने परिवार की ओर से 1.51 लाख की राशि देकर प्रतिमा विराजमान कराने की घोषणा की। 

    उपकार परिवार पूरा सहस्त्रकूट जिनालय का निर्माण कराएगा 
    आहारचर्या के बाद उपकार परिवार ने भाग्योदय परिसर में बनने जा रहे सर्वतोभद्र जिनालय के सामने बनने बाले सहस्त्रकूट जिनालय के निर्माण की घोषणा अपनी ओर से कराने की घोषणा की। 
     
  8. Vidyasagar.Guru
    दिन में खाना सबसे अच्छा होता है। डबल रोटी को रसायन द्वारा फुलाया जाता है, उसमें जो छोटे छिद्र होते हैं उसमें जहरीले छोटे कीटाणु रहते हैं वह नुकसानदेह हैं रात्रि 12 बजे के बाद जो भी खाना पीना करते हो वह विषाक्त बन जाता है यह बात आचार्य विद्यासागर महाराज ने भाग्योदय तीर्थ परिसर में रविवारीय प्रवचन में कहीं । 

    आचार्य श्री ने कहा शरीर की प्रकृति के अनुसार खाना चाहिए रात में सूर्य की ऊष्मा का अभाव होने पर छोटे-छोटे जीवों की उत्पत्ति शुरू हो जाती है अष्टमी और चतुर्दशी को उपवास रखने से शरीर को आराम मिलता है। उपवास की परंपरा भारत में है काया को शुद्ध रखने के लिए उपवास किया जाता है जैन परंपरा में इसे थोपा नहीं गया है। इसे हम कर्तव्य के रूप में करते हैं। आचार्य श्री ने कहा कि सूर्य के उदय के साथ ही कमल खिलता है और सूर्य अस्त होने पर कमल बंद हो जाता है कमल अकाल में कभी नहीं खिलता है कमल का नियम है जब तक सूर्य है तब तक ही खाऊंगा पी लूंगा बाद में निशाचर नहीं बनूंगा। आचार्य श्री के प्रवचन के पूर्व मुनि सौम्य सागर महाराज ने कहा कि भावों की यात्रा का माध्यम भाषा है उन्होंने कहा आचार्य श्री के आशीर्वाद से 5 प्रतिभास्थली स्कूल देश में चल रहे है पहले वहां अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई होती थी लेकिन अब हिंदी माध्यम से पढ़ाई हो रही है वहां पर पहले लोगों को लगा कि हिंदी में पढ़ाने से कुछ नुकसान होगा लेकिन आज स्थिति यह है स्कूलों में छात्राओं को एडमिशन नहीं मिल पा रहे हैं क्योंकि आजकल लोग संस्कारित शिक्षा बच्चियों को मिले इसके लिए प्रतिभास्थली जैसे स्कूलों का चयन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जहां हम सब लोगों का चिंतन खत्म होता है उससे कई गुना बाद आचार्य श्री का चिंतन शुरू होता है। 

    राजस्व और परिवहन मंत्री गोविंद राजपूत ने भाग्योदय तीर्थ पहुंचकर आचार्य श्री को श्रीफल समर्पित कर दर्शन कर आशीर्वाद लिया। इस अवसर पर आचार्य श्री ने कहा कि मौका मिला है तो अच्छे काम करना राजपूत ने कहा कि गुरुदेव अच्छे काम ही करने का मन है। इस अवसर पर पूर्व विधायक सुनील जैन, सुधा जैन ,न्यायाधीश एमके जैन, प्रेरणा जैन , अक्षय जैन और ऋचा जैन, नीरज जैन, प्रीति जैन, महेश बिलहरा,मुकेश जैन ढाना,सुरेंद्र जैन , राकेश जैन ,आनंद जैन , देवेंद्र जैन , ऋतुराज जैन, राजेश जैन , सौरभ जैन, सट्टू जैन, प्रेमचंद जैनर,अनिल जैन आदि उपस्थित थे। 

    सहस्त्रकूट जिनालय में मूर्ति विराजमान करने की स्वीकृति : छोटेलाल जैन सलैया,अशोक कोठारी, डॉ श्वेता जैन विमल जैन सिहोरा, गुड्डू जैन, जिनेंद्र जैन, सपना जैन, अभिषेक प्रतिभा जैन, प्रकाश जैन सानोधा, कमल जैन निलेश कुमार बंडा, अनमोल जैन बड़ोदा, सुरभि जैन, कैलाश सिंघई, बबिता जैन पटिया,झुन्नी लाल जैन, अनुभा जैन सिहोरा ने दी। 
     
  9. Vidyasagar.Guru
    पूर्व राष्ट्रपति डॉ. प्रणव मुखर्जी, पांडिचेरी की उप राज्यपाल किरण बेदी, मुख्यमंत्री कमलनाथ सहित तीन राज्यों के जेल मंत्री और 10 डीजीपी भी आने की संभावनाएं 

    आचार्यश्री विद्यासागर महाराज का विहार इस समय सागर की ओर चल रहा है। आचार्य संघ नरयावली तक आ गया है। गुरुवार को सुबह 8 बजे सकल दिगंबर जैन समाज सागर के लोग नरयावली पहुंचकर आचार्य संघ काे श्रीफल अर्पित करेंगे। 25 जनवरी शुक्रवार को आचार्यश्री की भाग्योदय तीर्थ पहुंचने की उम्मीद है। इसकी तैयारियां अब अंतिम चरण में हैं। आचार्यश्री का सागर में एक पखवाड़े से अधिक समय तक रुकना भी लगभग तय माना जा रहा है। इसकी वजह है 16 और 17 फरवरी को केंद्रीय जेल सागर में होने वाले हथकरघा प्रशिक्षण केंद्र का उद्घाटन कार्यक्रम। यह आयोजन आचार्यश्री के सानिध्य में होगा। 

    आचार्यश्री ने ही 16 फरवरी की तारीख तय कर दी है। कार्यक्रम दो दिनों तक चलेगा। बताया गया है कि इस आयोजन में देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. प्रणव मुखर्जी, पांडिचेरी की उप राज्यपाल किरण बेदी, प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ सहित मध्यप्रदेश और दो अन्य राज्यों के जेल मंत्री एवं करीब 10 डीजीपी भी शामिल हो सकते हैं। मुनिश्री सेवा समिति के सदस्य मुकेश जैन ढाना ने बताया कि कैदियों को रोजगार से जोड़कर अपराध की दुनिया से समाज में पुनर्वास की भावना को लेकर आचार्यश्री की यह पहल है। इस तरह के केंद्र वे देश में कई जगह बनवाने के लिए प्रेरणा देने का काम कर रहे हैं। 

    10 हजार वर्गफीट में है केंद्र, बंदी साड़ी, कालीन और खादी के कपड़े बुनना सीखेंगे करीब 10 हजार वर्गफीट में फैले इस प्रशिक्षण केंद्र का नामकरण आचार्यश्री विद्यासागर महाराज के नाम पर ही किया गया है। इसमें 108 हथकरघा लगाए जाना है। जिनमें से 54 लग चुके हैं। प्रत्येक हथकरघा में एक साथ 5 बंदी साड़ी, कालीन, खादी आदि के कपड़े बुनने का प्रशिक्षण ले सकेंगे। वर्तमान में यह रह रहे करीब 300 बंदी इसमें प्रशिक्षण ले सकेंगे। इन बंदियों काे प्रशिक्षण के लिए चिन्हित किया जाएगा। इतना ही नहीं सागर के अलावा अन्य जेल के बंदियों को भी प्रशिक्षण लेने के लिए यहां बुलाया जा सकेगा। 
  10. Vidyasagar.Guru
    बुंदेलखंड में कहते हैं कि ड्योढ़ लगी रहती है, तब गृहस्थी चलती है, ठीक ऐसे ही हमारा संसार चलता है: अाचार्यश्री
     
    हमारे अपने कर्म और हमारा अपना शरीर हमारे संसार के भ्रमण का और इस विविधता का कारण है। यहां तक, हमने इस बात को समझ लिया। कर्म कैसे हैं, वे हमारे साथ बंधते भी है, वे हमारे भोगने में भी आते हैं, वे हमारे करने में भी आते हैं। 

    तीन तरह के हैं, कुछ कर्म हैं जो हम करते हैं, कुछ कर्म हैं जिनका हम फल भोगते हैं। कुछ कर्म हैं जो हमारे साथ फिर से आगे की यात्रा में शामिल हो जाते हैं और इस तरह से यह यात्रा विषयाें का चक्र है इसलिए संसार को चक्र माना है जिसमें निरंतरता बनी रहती है। यह बात नवीन जैन मंदिर के मंगलधाम परिसर में प्रवचन देते हुए अाचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कही। 
    उन्होंने कहा कि ठीक एक गृहस्थी की तरह जैसे किसी गृहस्थी चलाने वाली मां को हमेशा इस बात का ध्यान रखना पड़ता है कि शक्कर कितने दिन की बची और गेहूं कितने दिन का बचा और आटा कितने दिन का बचा। इसके पहले कि वो डिब्बे में हाथ डालकर पूरा साफ करे। ऐसा मौका आता ही नहीं है, दूसरी तैयारी हो जाती है। 

    बुंदेलखंड में कहते हैं कि ड्योढ़ लगी रहती है, तब गृहस्थी चलती है। ड्योढ़ लगी रहती है, मतलब कोई भी चीज एकदम खत्म नहीं होती, खत्म होने के कुछ घंटे पहले ही सही वो शामिल हो जाती है तब चलती है गृहस्थी। ठीक ऐसे ही हमारा संसार चलता है। आचार्यश्री ने कहा कि हम जो भोगते हैं, उसके भोगते समय सावधानी और असावधानी हमारी होती है। दो ही चीजें हैं हमारी अपनी असावधानी जिसको हम अपनी अज्ञानता कह लें, हमारी अपनी आसक्ति। इनसे ही मैं अपने जीवन को विकारी बनाता हूं और इसके लिए मुझे करना क्या चाहिए। मेरे आचरण की निर्मलता और दूसरी मेरी अपनी साधना....समता की साधना। ये दो चीजें हैं। इस संसार की विविधता से बचने के लिए। कुल दो इतना ही मामला है और इतने में ही कुछ लोगों को समझ में आ सकता है, कुछ लोगों को इतने में समझ में नहीं आ सकता। तो आचार्य भगवन्त, तो श्री गुरू तो सभी जीवों का उपकार चाहते हैं। 

    तो फिर इसका विस्तार करते हैं और वह विस्तार अपन करेंगे। जो विस्तार रुचि वाले शिष्य हैं, उनको विस्तार से समझ में आता है जो संक्षेप रुचि वाले हैं उनको बात इतनी ही है समझने की और मध्यम बुद्धि वाले हैं उनको तो विस्तार करके बताना होगी।
  11. Vidyasagar.Guru
    जहां बाहर की भीड़ नहीं ज्ञान का नीड़ मिल जाए, वही सही प्रभावना है: विद्यासागर महाराज
     
    अशुभ कर्मों के आगे सभी घुटने टेक देते हैं। अशुभ कर्मों का उदय किसी को नहीं छोड़ता, परन्तु जो कर्मों पर विजय प्राप्त कर लेते हैं वह तीर्थंकर बन जाया करते हैं। उनकी प्रेरणा से ही हमारा मोक्ष मार्ग प्रशस्त हो सकता है। छल्लेदर तूफानी बातों से अपना ज्ञानीपना दिखाकर भीड़ इकट्ठी हो जाए, जन-सैलाब उमड़ आए क्या इसी का नाम प्रभावना है। 

    चारों तरफ जन ही जन का दिखना निज का खो जाना यही प्रभावना है। स्वयं से अनजान पर की पहचान का नाम प्रभावना नहीं है। जहां भाषा थम जाए, भाव प्रकट हो जाए शब्द मौन हो और ‘मैं कौन हूँ’ इस प्रश्न का समाधान मिल जाए, जहां बाहर की भीड़ नहीं ज्ञान का नीड़ मिल जाए वही सही प्रभावना है। यह बात नवीन जैन मंदिर के मंगलधाम परिसर में प्रवचन देते हुए अाचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कही। 

    उन्हाेंने कहा कि क्षयोपशम से प्राप्त शब्दों से जनता को प्रभावित करना बहुत आसान कार्य है, लेकिन निज स्वभाव से प्रभावित होकर नितान्त एकाकी अनुभव करना बहुत कठिन है वही शाश्वत प्रभावना है, जो स्वभाव से अलग न हो। भीड़ का क्या भरोसा? उनकी आज कषाय मंद है धर्म-श्रवण की भावना है अतः वह सब अपने अपने पुण्य से अाए हैं और वक्ता का भी पुण्य है इसलिए श्रोता श्रवण करने आए हैं किंतु पुण्य कब पलटा खा जाए कोई भरोसा नहीं। जो पलट जाए वह कैसी प्रभावना। 



    उन्होंने कहा कि जहां प्रकृष्ट रूप से स्वभाव की भावना हो, किसी को भी आकृष्ट करने का भाव न हो, किसी को समझाने का कार्य न हो, किसी अन्य को सिखाने की उत्सुकता न हो, प्रकट ज्ञान से स्वयं को समझा सके, स्वयं ही निज स्वभाव से आकर्षित हो जाए, अपने में तृप्त हो जाए वही सही प्रभावना है। अज्ञानता से बाह्य प्रभावना में मान की मुख्यता रह जाती है और यथार्थ तत्वज्ञान की हीनता रहती है। स्वयं को ठगना आध्यात्मिक दृष्टि से अनैतिक कार्य है इसमें बहुत शक्ति व्यय करके भी किंचित भी आनंद प्रतीत नहीं होता। जबकि अंतर्दृष्टि से अल्प पुरुषार्थ में ही आह्लाद होता है अतः अंतरंग में उद्यमी होकर अंतर प्रभावना ही श्रेष्ठ है। अपना आत्महित साधने में यदि किन्हीं सुपात्र जीवों का कल्याण हो जाए तो ठीक है किंतु मात्र दुनिया की चिंता करके आत्म कल्याण की उपेक्षा करना बहुत बड़े घाटे का सौदा है। आचार्यश्री ने कहा कि ध्यान रखना किसी का कल्याण किसी के बिना रूकने वाला नहीं है जिसका उपादान जागृत होगा उसे निमित्त मिल ही जाएगा। व्यर्थ में पर कर्तृत्व के विकल्प में आत्मा की अप्रभावना करना घोर अज्ञानता है। आपे में आओ, बहुत हो गयी स्वयं की बर्बादी, अब तो चेतो। 

    इस दुनिया की भीड़ से तुम्हें कुछ नहीं हासिल होगा, यह तो रेत जैसी है जितनी जल्दी तपती है उतनी ही जल्दी ठंडी पड़ जाती है जो सदा एक-सी रहे, ऐसी निजात्मा की भावना करो, यही शाश्वत प्रभावना है।
  12. Vidyasagar.Guru
    बहुत बार गोता लगाया, कौनसा शब्द उपयुक्त है, क्योंकि उपयुक्त होना महत्वपूर्ण है। हमें क्या करना और क्या नहीं करना...
     

     
     
     
     
     
    बहुत बार गोता लगाया, कौनसा शब्द उपयुक्त है, क्योंकि उपयुक्त होना महत्वपूर्ण है। हमें क्या करना और क्या नहीं करना चाहिए इसका ज्ञान होना जरूरी है। दोनों एक-दूसरे के पूरक शब्द हैं। तत्व तो दिखता है, त्व नहीं। ज्तस्य भावं इति तत्वम्ज् दिखने से दिखता है नहीं तो गौण हो जाता है। 

    इसलिए वह हमेशा-हमेशा घूम रहा है, भाव घूम रहा है। जिसके प्रति लगाव है वह छूट नहीं रहा है अतः जो जानना, देखना चाहते हैं वह नहीं आ पाता। किसको छोड़ें, जिसे भूलना चाहते हैं उसे भूल नहीं पाते। ये भाव हैं इस भाव को समझने का प्रयास करो। भूयोमरण-भूयोमरण, बार-बार मरण हो रहा है। दूसरा भी शब्द रखा पर समझने में कठिनाई हो सकती है। वैसे ही हमारी बात समझ नहीं पाते, समझने में कठिनाई होती है। यह बात नवीन जैन मंदिर के मंगलधाम परिसर में प्रवचन देते हुए अाचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कही। 

    उन्होंने कहा कि तरण शब्द तैरने या पार होने के अर्थ में आता है, तो तरण नहीं याने तैरना, पार होना संभव नहीं, वितरण के बिना, भूयोमरण-भूयोमरण-भूयोमरण मतलब बार-बार मरण करना पड़ता है। बार-बार मरण का मतलब बार-बार जन्म लेना होता है। इस रहस्य को तत्व ज्ञान के माध्यम से ही जाना जा सकता है। वह तत्व भी बार-बार अभ्यास करने से ही पकड़ में आता है। तत्व पकड़ में तभी आता है जब उसे भाव धर्म के साथ जोड़ लेते हैं। आचार्यश्री ने कहा कि तत्व (पदार्थ) दिखता है, भाव नहीं दिखते। भाव जल्दी-जल्दी परिवर्तित हो जाते हैं। तत्व को हमने बार-बार जिस रूप में देखने का अभ्यास किया वही दिखता है। 

    कई लोग आकर कहते हैं महाराज जिसको छोड़ना चाहते हैं वह एक सेकंड भी भूलने में नहीं आता है, वही-वही स्मरण में आता है। भूयोमरण-भूयोमरण-भूयोमरण, मरण के बाद मरण। इसलिए तरण नहीं वितरण के बिना। बड़ा अद्भुत है यह आनंदधाम का है ये हायकू। वितरण-तरण में तुकबंदी भी हो गई। उन्होंने कहा कि ज्तरण नहीं-वितरण के बिना-चिरमरण चिरमरण। इस प्रकार चिंतन करने वालों को यह भी उपयोगी सिद्ध हो सकता है। उस गोलाई से बाहर आएं तब शब्द पकड़ में आते हैं। शब्द यात्रा कर रहा है क्या। नहीं, पर कौन सा शब्द कहां पर उपयुक्त है इसके लिए सोचना पड़ता है। तत्व ज्ञान से जब चाहे जैसा चाहे शब्दों का प्रयोग कर सकते हैं। ये स्वतंत्रता तत्व ज्ञान से ही आती है। महाराज, समझ में आ जाए ये भी काफी है। जिस किसी को भी होता होगा ऐसा ही होता होगा। सबको समझ में आ रहा होगा ऐसा भी नहीं है। तीर्थंकर भी ऐसे ही होते होंगे। आज इतना ही तीर्थंकर के बारे में बाद में देखेंगे। अहिंसा परमो धर्म की जय । 
    आचार्यश्री विद्यासागर महाराज की आहारचर्या हीरालाल, पंकज, दीपक खिरिया वाला परिवार के यहां संपन्न हुई। आचार्यश्री के पैरप्राच्छालन करने का परम सौभाग्य राहुल सिंघई, रोमी रोकड़या, अमिताभ जैन, सेंकी मोदी एवं विट्टू सिंघई को प्राप्त हुआ। 
     
     
  13. Vidyasagar.Guru
    शब्द में प्रयोजन नहीं लेकिन अर्थ में प्रयोजन हुआ करता है: अाचार्यश्री
    नवीन जैन मंदिर के मंगलधाम परिसर में चल रहे हैं प्रवचन

    | खुरई
    आप बताओ मैं तो सुनाता ही रहता हूं। एकाध बार सुन भी तो लूं। हमारे भगवान 24 हुए हैं अंतिम महावीर स्वामी का तीर्थंकाल चल रहा है, सुन रहे हो। हओ। ऋषभनाथ भगवान का समोशरण 12 योजन का था जो पुण्य कम होने से धीरे-धीरे आधा-आधा योजन घटता गया और भगवान महावीर स्वामी का एक योजन रह गया।

    यूं कहना चाहिए वृषभनाथ भगवान बड़े बाबा तो महावीर भगवान हमारे छोटे बाबा हैं। यह बात साेमवार काे नवीन जैन मंदिर के मंगलधाम परिसर में प्रवचन देते हुए अाचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कही।
    उन्हाेंने कहा कि शब्द में प्रयोजन नहीं लेकिन अर्थ में प्रयोजन हुआ करता है। शब्द जड़ होता है। संकेत के लिए काम आता है शब्द। संकेत गौण कैसा। जो इष्ट होता है उसे प्राप्त करना होता है। प्राप्ति हेतु साधन जुटाए जाते हैं। साधन अपने आप ही नहीं मिल जाते किंतु इतना अवश्य है कि जब प्रयोजन को सामने देखते हैं तो बाकी सभी गायब हो जाते हैं। वृषभनाथ एवं महावीर का रास्ता भी शब्द की अपेक्षा पृथक-पृथक हो गए। रह गया केवल इष्ट को जाने वाला मैं ही-मैं ही करने वाला, मैं ही करने वाला न ही भगवान में लीन होता है, न ही लोक में लीन होता है। भगवान सामने है वह व्यवहार है उसमें हम अपने को खोज नहीं सकते। उसमें देखने से यहां का वैभव दिखने लग जाता है। इतना ही नहीं उसमें देखने से अड़ोस-पड़ोस, ऊपर-नीचे सब गायब हो जाता है। आचार्यश्री ने कहा कि संघर्ष जहां भी होता है वह मेरा-तेरा से होता है इसलिए कभी-कभी यह भी प्रयोग हमने किया। एक व्यक्ति के लिए कह दिया तो गड़बड़ भी हो सकता है।
    महाराज ने उसी ओर क्यों देखा। हमने सोचा इसका प्रयोग न करके दूसरी तरफ से चलें तो दोनों बच जाएंगे और हम का प्रयोग किया। हमने इसमें दोनों आ जाते हैं हमने बोलने से मैं छूटता भी नहीं। उन्होंने कहा कि हममें मैं सुरक्षित है, सरकार भी चिंता कर रही है गरीब, सवर्णाें की। ये संख्या कितनी पता ही नहीं। ऐसी चिंता करो जिससे सबका उद्धार हो जाए इसलिए मैत्री में सव्वभूतेसु कहा। इस जगत में जितने भी जीव हैं सभी में मैत्रीभाव रहे। यदि सबके प्रति पक्ष-विपक्ष का भाव गौण कर दिया जाए तो राष्ट्रीय पक्ष हो जाए। हम अधिक पढ़े लिखे हैं कम समझदार। इसमें भी हम आ गया, किसी को छोड़ा नहीं।

    आचार्यश्री ने व्यंग्य करते हुए कहा कि वर्तमान समय में कई लोग तो महावीर स्वामी की आयु को भी लांघ गए हैं। आप ही बताओ लंबी-लंबी आयु अच्छी नहीं। छोटा होता है तो ठीक है बड़े हो तो अकेले रह जाओगे। बहुत कठिन होता है जहां हम होता है वहां अहं आ जाता है। जो हम को समाप्त कर रहा है वह अहं को भी समाप्त कर देगा।

    उन्हाेंने कहा कि भगवान ऋषभनाथ की काया 500 धनुष की थी, वर्तमान में घटते-घटते वह काफी कम रह गई परंतु केवल ज्ञान सबका समान है। तुलनात्मक शब्द हमें भेद की ओर ले जाते हैं इसलिए हम किसी से भी किसी की तुलना न करें। हम भी ठीक रहें आप भी ठीक रहें यह भावना भाते रहें। बुंदेलखंडी शब्दों की विशेषता है कि मैं ही मैं ही को हटा दो। मैं ही की अपेक्षा हम ही कह दो तो सब आ जाएंगे। प्रवचन के पूर्व आचार्यश्री विद्यासागर महाराज की पूजन संपन्न हुई।
     
    पं. रतनलाल बैनाड़ा के नेतृत्व में 200 छात्रों ने आशीर्वाद लिया
    राजस्थान के सांगानेर से आए विद्वान पं. रतनलाल बैनाड़ा के नेतृत्व में मोक्षमार्गी 200 छात्रों ने आचार्यश्री विद्यासागर महाराज के समस्त संघ को श्रीफल भेंट कर आशीर्वाद लिया। सभी छात्र सांगनेर में अध्ययन करते हैं। आचार्यश्री विद्यासागर महाराज को पडगाहन कर आहारदान देने का सौभाग्य भी सांगानेर से पधारे पं. रतनलाल बैनाड़ा, राजेन्द्र कुमार हिरणछिपा वालों को प्राप्त हुआ। समस्त छात्रों ने आचार्यश्री का पद प्रक्षालन कर गंधोदक अपने माथे पर लगाकर पुण्यार्जन किया।
  14. Vidyasagar.Guru
    खुरई 



    दीपक जलाना बहुत आसान होता है, परन्तु ज्ञानदीप को जलाना बहुत मुश्किल होता है। याद रखना बंधुओं दीपक के तले ही अंधेरा होता है। 

    व्यक्ति को हमेशा र|दीप जलाने का प्रयास करना चाहिए, र|दीप के नीचे न तो अंधेरा ही रहता है और न ही यह कभी बुझता है। इसकी ज्योति भी निरंतर अखण्ड रूप से प्रज्जवलित होती रहती है। अधकचरा ज्ञान हमें कभी भी अपनी मंजिल या लक्ष्य की प्राप्ति नहीं करा सकता। अंधों में काना राजा बनना भी ठीक नहीं है। ज्ञानावरणी कर्मों का क्षय करने का निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए। यह बात मंगलधाम परिसर में प्रवचन देते हुए अाचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कही। उन्हाेंने कहा कि क्या हो गया तुझे, अपमान पर अपमान सह रहा है, कर्म तुझे मनमाने दुःख दे रहे हैं तू कुछ भी कर नहीं पा रहा है। अपने स्वभाव में रह नहीं पा रहा है इससे बड़ा अपमान और क्या हो सकता है जो आत्मा स्वचतुष्टय के स्तम्भ पर खड़े निजगृह में न रहे तो उसके गृह में कर्मरूपी डकैत बसेरा कर लेते हैं। 

    गृहमालिक कमजोर पड़ जाए, कमजोर बलजोर हो जाए और आत्मा मारा-मारा फिरे, इन्द्रिय और मन के विषयों की गुलामी करता रहे, पर में ही सुख को खोजता फिरे इससे बड़ा आत्मा का अपमान और क्या हो सकता है। उन्हाेंने कहा कि अपनी इस दुर्दशा पर क्या तुम्हें तरस नहीं आता। विषय भोगी और मान कषायी जीवों से पल भर भी कुछ सम्मान के शब्द सुनने के पीछे कितने दुःखों का भार उठाना पड़ रहा है। सम्यक् विचार क्यों नहीं करते। मान से उत्पन्न हुए सुखाभास रूप सुख को कुछ पल के लिए पाने हेतु कितने सारे पल दुःख में बीते जा रहे हैं। अरे! इन भारी कर्णाभूषणों को पहनने का औचित्य क्या जिससे कान ही कट जाए, कभी कुछ पहन ही न पाए। ऐसे मान का क्या प्रयोजन जो भगवान ही न बनने दे, भगवत्ता पर आवरण डाल दे। प्रभु की वाणी में भी सम्यक्त्व की, व्रती की प्रशंसा होती है यदि तुममें ये गुण नहीं हैं तो लज्जा की बात है। यदि सम्मान ही पाना है तो प्रभु वचनों में सम्मान पाअाे। आचार्यश्री ने कहा कि मानी जीवों से सम्मान पाकर क्या होना है यदि वे तुझे एक बार सम्मान देते हैं तो तुझसे सौ बार सम्मान पाने की तमन्ना भी रखते हैं यह निश्चित है। मान के लिए पर से सम्बन्ध जोड़ने पड़ते है, प्रशंसक एकत्रित करने होते हैं, इसके लिए उनकी भी झूठी प्रशंसा करनी होती है ऐसी झूठी जिंदगी जीने का मतलब ही क्या। 

    यदि मोक्ष सुख को पाने लिए परीशह उपसर्ग सहते तो कर्म निर्जरित हो जाते किन्तु मान के लिए अपमान को सहते रहने से तो और-और कर्म ही बांधते रहे। अपनी बर्बादी करते रहे यह बात भी ध्यान रखने योग्य है कि अपमान के घूंट बार बार पीने से दीनता आती है। आचार्यश्री ने कहा कि जहां सम्मान की तमन्ना में अपने आत्मिक वैभव की बाजी लगा देनी पड़े ऐसे मान को धिक्कार हो जिसमें सच्चा सुख तो एक पल का भी है ही नहीं। मान का सही ज्ञान हो तो सुख की शुरूआत हो, मान से छुटकारा हो, ज्ञानयान पर सवार होकर यात्रा की शुरूआत हो, आनंद की बरसात हो ऐसा कुछ करने का सतत् प्रयास करें। प्रवचन सभा के पूर्व आचार्यश्री की पूजन संपन्न हुई, गुरूवर की अाहारचर्या महेन्द्र गुड़ वालों के यहां हुई। ईशुरवारा अतिशय क्षेत्र के समस्त पदाधिकारियों ने आचार्य संघ को श्रीफल भेंटकर ईशुरवारा अतिशय क्षेत्र में आने को आमंत्रित किया। 
  15. Vidyasagar.Guru
    महापुरुषों की जीवनी को याद कर उनसे प्रेरणा लें: आचार्य श्री
     
    श्रावक को अनेक समस्याएं हैं, कोई चिंता नहीं। एक साथ छक्का न सही, एक-एक रन तो वह बना ही सकता है। उसके बाद भी वह आउट हो सकता है। जीवन का भी एवं प्रत्येक नियम का भी ऐसा ही खेल चलता है। इसलिए व्यक्ति को बहुत संभलकर चलना पड़ता है। वाहन कोई भी हो वह बिना पेट्रोल के नहीं चलता। 

    संकल्प पूर्वक अष्टमी, चतुर्दशी आदि पर्वों पर जो भी व्यक्ति उपवास, एकाशन आदि करता है तो उसका उसे लाभ जरूर मिलता है, इसके विपरीत यदि विकल्पों सहित कोई नियम व्यक्ति लेता है तो उसका फल उसको उतना नहीं मिल पाता। इसलिए आचार्यों ने द्रव्य, क्षेत्र, कालभाव के अनुसार ही त्याग, दान आदि करने को कहा है, फिर भी दूसरों को देखकर भाव तो होते ही हैं। यह बात मंगलधाम परिसर में प्रवचन देते हुए आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कही। उन्होंने कहा कि घर का मालिक भले ही कोई भी हो परंतु अधिकांश समय यह देखने में आया है कि चलती गृहमंत्री की ही है। गृहमंत्री के पूछे बिना कोई भी कार्य करने से कलह बढ़ सकती है। विद्या अध्ययन करने वाले प्रत्येक छात्र को परीक्षा तो देनी ही पड़ती है। परीक्षा में पास या फेल होना उसके अथक श्रम के परिणाम स्वरूप ही मिलता है। इसी प्रकार गृहस्थ जीवन में भी कई प्रकार के विकल्प होते हैं। कर्म निर्जरा भी उसी अनुरूप होती है। 

    उन्होंने कहा कि व्यक्ति त्याग, दान आदि तो कर देता है लेकिन उसका फल उसको जैसा उसका कर्मोदय होगा वैसा ही मिलेगा। सच्चे देव, शास्त्र, गुरू पर श्रद्धान रखो। यदि भूख नहीं तो मेवा, मिष्ठान किस काम का। व्यक्ति को हमेशा कर्म की निर्जरा के लिए सतत प्रयास करते रहना चाहिए। जो भी उदय में आए उसे समतापूर्वक निर्वाहन करना चाहिए। महापुरुषों की जीवनी को याद कर उनसे प्रेरणा लें। जब तक बीमारियों को जानेंगे नहीं तब तक उसका निदान संभव नहीं। आचार्यश्री ने कहा कि मेरे पास जो भी आता है उसमें से अधिकांश व्यक्ति रोते हुए ही आते हैं। 

    बहुत ही विरले व्यक्ति होते हैं जो हंसते हुए आते हैं। हर पल वह रोता ही रहता है। बहुत कम व्यक्ति होते हैं जो संतोषी होते हैं। संतोषी बहुत बड़ा गुण है। यहां पर राजा हो या रंक सबकी अपनी-अपनी परेशानियां हैं। उन्होंने कहा कि व्यक्ति पर कितनी भी प्रतिकूल परिस्थितियां क्यों न आ जाएं कर्म निर्जरा के लिए उसको हंसते-हंसते सहन कर लेना चाहिए। प्रतिकूलता में जो अनुकूलता का अनुभव करे उसे ही ’आनंदधाम’ मिलता है। आचार्यश्री की आहारचर्या सुशील, सुनील, श्रीपाल, सुबोध, कालू मोदी परिवार के यहां संपन्न हुई।
     
     
     
  16. Vidyasagar.Guru
    अहंकार पतन और समर्पण उन्नति की ओर ले जाता है: आचार्यश्री
     
    अहंकार ही दुख का बड़ा कारण है, जीवन की मूलभूत समस्या अहंकार है। मैं भी कुछ हूं यह जो सोच है यही अहंकार है। अहंकार का जोर इतना जबरदस्त रहता है कि वह धर्म को भी अधर्म बना देता है। पुण्य को पाप में बदल देता है। अहंकार को सत्य समझाना अत्यंत कठिन कार्य है। यह बात नवीन जैन मंदिर में प्रवचन देते हुए आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कही। 

    उन्होंने कहा कि अहंकार अंधा है। अहंकारियों की स्थिति अंधों जैसी होती है। उनके पास आंखें होती हैं लेकिन फिर भी उन्हें दिखाई नहीं देता। रावण की पूरी लंका तबाह हो रही थी लेकिन रावण को लंका व अपने खानदान का तबाह होना कहां दिख रहा था। कंस की आंखें थीं लेकिन वह श्रीकृष्ण की शक्ति व सामर्थ्य को कहां देख सका। दुर्योधन आंखों वाला होकर भी क्या अहंकारी नहीं था। अहंकार विवेक का नाश कर देता है। अहंकार से ही क्रोध भी आ जाता है। अहंकार बड़ा खतरनाक है। अहंकार मीठा जहर है। अहंकार ठग है जो मानव को हर पल ठग रहा है। मानव में जो ’मैं’ और ’मेरापन’ है यही अहंकार की जड़ है। मैं ही परिवार का संरक्षक हूं। मैं ही समाज का कर्णधार हूं। मैं ही प|ी और बच्चों का भरण-पोषण कर रहा हूं। यही अहंकार मानव को दुखी बनाए हुए हैं। ऐसा झूठा अहंकार ही मानव को दुखी बना रहा है। उन्होंने कहा कि आज हमारे दांपत्य जीवन में, पारिवारिक व सामाजिक जीवन में जो संघर्ष, मनमुटाव, मनोमालिन्य दिख रहा है, उसका मूल कारण अहंकार है। 

    यदि प|ी पति के प्रति और पति-पत्नी के प्रति, बाप-बेटा के प्रति और बेटा-बाप के प्रति, शिष्य-गुरू के प्रति और गुरू-शिष्य के प्रति समर्पण व सहयोग का रुख अपनाएं तो जीवन में व्याप्त सारी विसंगतियां समाप्त हो जाएं। अहंकार का समाधान विनम्रता है, मृदुता है। जो सुख विनम्रता व मृदुता में है वह अकड़ने में नहीं है। जो मृदु होगा उसे मौत कभी नहीं मिटाएगी। वह देर-सबेर मरेगा तो वह मरकर भी अमर हो जाएगा। राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, क्राइस्ट ये ऐसे महापुरुष हुए हैं जो हमेशा विनम्रता में जिए हैं और अहंकार की गंध इनके किसी व्यवहार में कभी नहीं आई। मान करें तो विनय नहीं और विनय बिना विद्या भी नहीं आती है। 

    अहंकार पतन की ओर ले जाता है और समर्पण उन्नति की ओर। अहंकार मृत्यु की ओर एवं समर्पण परम सुख की ओर। कुतर्क नर्क है, समर्पण स्वर्ग है। आचार्यश्री के प्रवचन के पूर्व बांदरी में आयोजित पंचकल्याणक महामहोत्सव के प्रमुख पात्रों ने समस्त आचार्य संघ को श्रीफल भेंट कर आशीर्वाद लिया। आचार्यश्री की आहारचर्या सुभाषचंद्र संदीप रोकड़या के यहां संपन्न हुई । 
  17. Vidyasagar.Guru
    स्थान  एवं पता - वागवर सम्मेदशिखर सुखोदय तीर्थ नशिया जी नौगामा जिला बांसवाड़ा उदयपुर दाहोद मार्ग बसस्टेंड के पास                           
    साइज़ - 21 फीट
    पत्थर - मकराना संगमरमर  
    लोकार्पण तारीख - 11 नवम्बर 2018
    लोकार्पण सानिध्य पिच्छीधारी -  मुनि श्री 108 समतासागर जी, एलकश्री निश्चयसागर जी, आर्यिका 105 श्री लक्ष्मीभूषणमती माता जी                                        
    त्यागी व्रती - बा. ब्र. सुयश प्रदीप भैया अशोक नगर, बा. ब्रह्मचारिणी रिम्पी दीदी  
    लोकार्पण सानिध्य राजनेता - पु. उमड़ अध्यक्ष पी. मोहनलाल छगनलाल 
    लोकार्पण कर्ता - कैलाश मोदी, धनपाल मोतीलाल
    मुख्यकलश स्थापना करता - पिंडारमिया रतनलाला मीठालाल, केशुभाई खोडनिया, कान्तिलाल जी बडोदिया
     




  18. Vidyasagar.Guru
    स्थान  एवं पता - सर्किट हाउस के नीचे NH 75 जवहार रोड छतरपुर (म.प्र.)
    साइज़ - 21 फीट 
    पत्थर - मकराना 
    लागत - 5,51,000
    पुण्यार्जक का नाम - सकल दि. जैन समाज छतरपुर (म.प्र.)
    आर्थिक सहयोग - प्रेमचंद्र जैन कुपी
    शिलान्यास तारीख - 15 अगस्त 2017
    शिलान्यास सानिध्य प्रतिष्टाचार्य - बा. ब्र. अशोक भैया(लिधौरा), बा. ब्र. दीपक भैया(टेहरका)                                            
    शिलान्यास सानिध्य राजनेता - नगर पालिका अध्यक्ष श्री मति अर्चना सिंह                                                                                                                                            
    लोकार्पण तारीख - 10 अक्टूबर 2017
    लोकार्पण सानिध्य - बा. ब्र. पारस भैया जी भोपाल                                                                                           
    विशेष संयोजक - श्री अशोक जैन (बब्बू), महामंत्री (सिंघई सुदेश जैन)
     




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    स्थान  एवं पता - दयोदय धाम गौशाला धनौरा जिला सिवनी (म. प्र.)
    साईज - 21 फीट 
    पत्थर - सफ़ेद मार्बल 
    लागत - 1,51,000
    पुन्यार्जक का नाम - दयोदया पशु सेवा समिति, श्री दि. जैन स्या. गुरुकुल विद्या. समिति, त्रय मूर्ति जिनालय समिति धनौरा एवं समस्त समाज
    जी. पी. एस. लोकेशन - 22.31 47.582 N  79.50 13.824 E  (दि. जैन त्रय मूर्ति जिनालय धनौरा)
    शिलान्यास तारीख - 28 मार्च 2017
    शिलान्यास सानिध्य पिच्छीधारी -  श्री 108 विमल सागर जी महाराज एवं आ.श्री. 108 कंचन सागर जी महाराज 
    शिलान्यास सानिध्य प्रतिष्टाचार्य - स्थानीय पुजारी श्री जिनेश कुमार जी जैन 
    लोकार्पण तारीख - 2 से 8 अप्रैल 2018 गजरथ महोत्सव 
    लोकार्पण सानिध्य पिच्छीधारी -  आचार्य श्री विमर्श सागर जी महाराज (ससंघ)
     


     
  20. Vidyasagar.Guru
    स्थान एवं पता - श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर, बही चौपाटी, महू नीमच फोर लेन रोड, तहसील मल्हारगढ़, जिला मंदसोर, मध्य प्रदेश
    साइज़ -
    पत्थर - 
    लागत - 
    पुण्यार्जक का नाम - इंजीनियर मुकेश वैभव पिता स्व. डॉ. विजय कुमार संगाई ( गुण आयतन ट्रस्टी), श्री जय कुमार पिता शांतिलाल जी बड़जात्या, श्री यश कुमार पिता सूरजमल जी बाकलीवाल सभी निवासी मंदसोर मध्य प्रदेश
    जी पी एस लोकेशन - 24.178404 75.007215
    शिलान्यास तारीख - 03 मार्च 2018
    शिलान्यास सानिध्य (पिच्छीधारी) - मुनि. श्री विनीत सागर जी महाराज साहब, मुनि. श्री चंद्रप्रभ सागर जी महाराज साहब
    शिलान्यास सानिध्य प्रतिष्टाचार्य - बाल ब्रहमचारी संजय भैया जी मुरैना
    शिलान्यास सानिध्य - राजनेता जिला कांग्रेस उपाध्यक्ष श्री मंगेश जी संगई एवं भाजपा महामंत्री श्री बंसी लाल जी गुर्जर
    लोकार्पण तारीख - 01 जनवरी 2019
    लोकार्पण सानिध्य पिच्छीधारी एवं अन्य (त्यागी व्रती) - रीता दीदी, अपर्णा दीदी एवं बाल ब्रहमचारी संजय भैया जी मुरैना
    लोकार्पण सानिध्य राजनेता - जिला कांग्रेस महामंत्री श्री मंगेश जी संगई
     










     
  21. Vidyasagar.Guru
    स्थान एवं पता - ऐ. वी. रोड जगतपुरा चौराहा कोलारस जिला शिवपुरी मध्यप्रदेश
    साईज - 21 फीट
    लागत - 3 लाख
    पुन्यार्जक - सकल दिगंबर जैन समाज कोलारस 
    शिलान्यास तारीख़ - 5 अक्टूबर 2017 
    शिलान्यास सानिध्य पिच्छीधारी - मुनि श्री 108 सुवृतसागर जी महाराज 
    शिलान्यास सानिध्य त्यागी व्रती - बाल ब्र. अंसू  भैया जी
    शिलान्यास सानिध्य राजनेता - रविन्द्र शिवहरे नगर पंचायत कोलारस
    लोकार्पण तारीख - 6 जनवरी 2018
    लोकार्पण सानिध्य पिच्छीधारी - मुनि श्री 108 सुवृतसागर जी महाराज
    लोकार्पण सानिध्य त्यागी व्रती - बाल ब्र. अंसू  भैया जी
    लोकार्पण सानिध्य राजनेता - रविन्द्र शिवहरे नगर पंचायत कोलारस, अध्यक्ष रविन्द्र कुमार जैन, मंत्री अशोक जैन, कोषाध्यक्ष शान्ति सेठ
     


  22. Vidyasagar.Guru
    आगे की सुचना इस लिंक पर उपलब्ध रहेगी
    https://vidyasagar.guru/blogs/entry/1434-post/
     
    19 जनवरी 2019 
    रात्री विश्राम -  बंट
    कल आहार चर्या जरुआखेड़ा में ही संभावित
     
    4 PM  पूज्य गुरुदेव ने बढ़ाये अपने कदम सिमरिया से भी आगे बंट की ओर।
    1 45 PM परम पूज्य आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज का खुरई से सागर की ओर हुआ विहार।
     
     

    ओह गज़ब अनियतविहारी का विहार गज़ब गज़ब गज़ब
    अविश्वसनीय
    लेकिन..... हमारे गुरुदेव तो अनियतविहारी जो ठहरे..... क्या भरोसा ऐसे निर्मोही, वीतरागी, चौथे काल के इन महासन्त का
    🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
     
    8 जनवरी 2018
    परम पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ खुरई में विराजमान हैं |
    जब भी विहार होगा - यहाँ अपडेट कर दिया जायेगा 
     
    20 दिसंबर 2018
    परम पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ खुरई में विराजमान हैं |
    जब भी विहार होगा - यहाँ अपडेट कर दिया जायेगा 
     
    19 दिसम्बर, 2018
    परम पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ का खिमलासा से हुआ मंगल विहार...
    रात्रि विश्राम त्योरा जहाँ से खुरई मात्र 9 किलोमीटर है सुबह प्रातःकाल में होगा भव्य प्रवेश
     
    सम्भावित दिशा - खुरई
    20 दिसंबर को  आहारचर्या "खुरई" में होने की सम्भावना 
       
    7 दिसम्बर, 2018
    पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ का मंगल विहार अपडेट-
    ● रात्रि विश्राम- निवारी ग्राम
    ● कल आहार चर्या- खिमलासा।
     
    16 दिसंबर 2018
    *●रात्रि विश्राम-ग्राम-भानगढ़*_
    _*●कल की आहारचर्या-भानगढ़*_
    _*●कल रात्रिविश्राम- दाङ 9km /निवारी 11km*_
     
     
    15 दिसम्बर 2018
    आज दोपहर 1:40 बजे पूज्य गुरुदेव ससंघ के मुंगावली से हुआ  विहार 
     
     
    *परम पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ 32 मुनिराज का मुंगावली से हुआ  मंगल विहार।*
    सम्भावित दिशा- कंजिया,  खिमलासा
    रात्रि विश्राम-ग्राम- कंजिया 12km*_ कल की आहारचर्या-भानगढ़ 07km*_  
    पूज्य मुनिश्री समयसागर जी महाराज 14 पिच्छी मुंगावली में ही विराजमान हैं।
     
     
     
     
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    आचार्य श्री की हुई मुंगावली में भव्य आगवानी
     
     
     
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    ४ दिसंबर 2018
    आज  दोपहर उपरान्त मुंगावली में भव्य अगवानी संभावित
     
     
    3 दिसंबर 2018
    आचार्य भगवन श्री विद्यासागर जी महामुनिराज का अभी अभी देवगढ़ (जिला - ललितपुर) से हुआ विहार
    संभावित दिशा - नदियों के रास्ते(कच्चा मार्ग)..मुगरौली होते हुवे मुंगावली
     
     
    2 दिसंबर 2018 
    *आचार्य गुरुवर 108 विद्यासागर जी महाराज का मंगल विहार  जाखलौन (जिला ललितपुर) से हुआ*
    *विहार दिशा - देवो के गढ़ देवगढ़ तीर्थ*
    *४ बजे होगा मंगल प्रवेश*
     आचार्य श्री ससंघ का हुआ मंगल प्रवेश अतिशय क्षेत्र देवगढ़ जी,में 
     
     
     
    दिनांक - 1 दिसम्बर 2018 1:30 P.M.
    पंचकल्याणक महोत्सव के उपरान्त हुआ मंगल विहार 
    संभावित दिशा - देवगढ़ 
     
    आचार्य श्री ससंघ, समय सागर जी ससंघ (नव दीक्षित मुनिराज )  का 
     
    ●आज रात्रिविश्राम- *ग्राम- बछलापुर 10km* ●कल की आहारचर्या- *ग्राम- जाखलौन(बछलापुर से 13km)* ■ जाखलौन से देवगढ़ जी 15km■  
     
     

     
     
  23. Vidyasagar.Guru
    मोक्ष कोई दुकान पर तो मिलता नहीं कि जाओ और खरीद लाओ: आचार्यश्री
    नवीन जैन मंदिर परिसर में आचार्यश्री विद्यासागर महाराज के प्रवचन
     

     
    जहां अग्नि प्रज्ज्वलित होगी वहां धुंआ तो उठेगा ही। मोक्ष चाहिए है तो मोह का त्याग करना ही पड़ेगा। मोह के त्याग करने के लिए मात्र ‘ह’ को हटाकर ‘क्ष’ ही तो लगाना है। 

    आत्मा अजर अमर है, इसका अस्तित्व भी कभी नष्ट नहीं होता, जो सोया हुआ है उसी को तो जगाना पड़ता है। जो मूर्त होता है वहीं तो मूर्तियों को विराजमान कर पाता है। मोक्ष कोई दुकान पर तो मिलता नहीं कि जाओ और खरीद लाओ। जिसके अंदर मुहर्त है मोक्ष जाने का उसका नाम ही तो अन्तर्मुहर्त है। व्यक्ति कितने भी मुर्छित अवस्था में क्यों न हो, न तो उसका मोह ही कम होता है और न ही खाने-पीने की वस्तुओं का त्याग कर पाता है। यह बात नवीन जैन मंदिर में प्रवचन देते हुए आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कही। उन्हाेंने कहा कि खाल का ख्याल कितना किया इसकी तरह तरह से हिफाजत की फिर भी खाल ने अपना स्वभाव दिखा ही दिया, हर पल पुरानी होती गई और तू मूढ़ बना इसे देख देखकर यही ‘मैं हूँ’ ऐसा भ्रमित हो गया। खाल को अपना मानना बालपन अर्थात् अज्ञानता है। जो पर से मिलता है वह बिछुड़ता ही है, जो अपना है वही शाश्वत रहता है। सोचो आत्मन! खाल को अपना मानते ही कितना संसार बढ़ जाता है। खाल पर लगे बाल से, खाल को ओढ़ाने वाली शाल से, इसे खिलाने वाले माल से न जाने कितनों से संबंध जुड़ जाता है, सारे बवाल ही खाल के प्रति राग से उत्पन्न होते हैं। इसलिए खाल का ख्याल छोड़, क्योंकि तेरी इस तन की खाल को पहले भी अनेक ने ओढ़ी है। आहारवर्गणा रूप पुद्गल परमाणुओं से बनी यह खाल की चादर अनंत जीवों ने ओढ़-ओढ़ कर छोड़ दी है अब तेरे पास आते ही तू इसे अपनी मान बैठा। 

    उन्हाेंने कहा कि क्या तुम दूसरों के उतरे वस्त्र पहनकर स्वयं को सुंदर दिखना चाहते हो। तुम यही कहोगे ना कि पहनना तो दूर, मैं पहनने के भाव भी नहीं करता, तो फिर एक तो विजातीय पर द्रव्य पुद्गल और उसमें भी अनंतों ने इन परमाणुओं को ग्रहण किया तो अब तुम इस देह को धारणकर क्यों इतना इतराते हो, यह क्या समझते हो कि मेरा जैसा कोई नहीं है। हां यदि कदाचित् तीर्थंकर की देह हो तो बात ही अलग है। उनके जैसा रूप धरती पर किसी का नहीं होता। मगर तुम्हारी खाल तो जूठन स्वरूप है कईयों ने धारण की हैं उतारन है फिर भी इसे पाकर इतना गुमान करते हो। आचार्यश्री ने कहा कि खाल को अपने ख्याल से भिन्न करो। खाल में रंग है उस रंग से भी राग-द्वेष आदि की तरंग उठती है जबकि तुम अरंग, निस्तरंग हो। इस पतली सी खाल से गाढ़ा राग न करो वैसे भी खाल के भीतर जो भरा है वह दर्शनीय नहीं है। खाल के भीतर मल, मूत्र, पीव, रक्त आदि दुर्गंधित पदार्थों को ढक रखा है। यह काया तो अपनी माया छिटकाती है जो इसके चक्कर में आया उसे भटकाती है, साथ रहने का भ्रम पैदा करती है पर अंत में खाल यहीं रह जाती है, तब कुछ लोग मिट्टी की देह वाले आते हैं इसे भी मिट्टी में मिलाने के लिए और चेतन हंसा खाली चला जाता है। जब अंततोगत्वा खाली जाना ही है तो खाल से इतना लगाव क्यों। लौकिक में भी जो साथ में रहते हैं उन्हीं से लगाव रखते हैं, परायों का क्या विश्वास। प्रवचन के पूर्व आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज के पैर प्रक्षालन करने का सौभाग्य मलैया परिवार, सेठी परिवार एवं अन्य दानदाताओं को प्राप्त हुआ।
  24. Vidyasagar.Guru
    जरूरत से ज्यादा धन संचय, यश-कीर्ति की चाह हमें गर्त में ले जाती है : आचार्यश्री 
    व्यक्ति का संपूर्ण जीवन धन संपदा के संचय में ही निकल जाता है। वह कितना भी धन संचय कर ले उसको तृप्ति नहीं होती।...
     
    व्यक्ति का संपूर्ण जीवन धन संपदा के संचय में ही निकल जाता है। वह कितना भी धन संचय कर ले उसको तृप्ति नहीं होती। परिगृह के बिना संसारी प्राणी बिन जल के मछली की तरह तड़पता है। मछली तो प्राणवायु नहीं मिलने से तड़पती है परंतु यह जीव हवा, जल, वायु सबकुछ मिलने के बाद भी बैचेन रहता है। 

    हमें जितनी जरूरत हो उतना ही संचय करना चाहिए। जरूरत से ज्यादा धन संचय, यश कीर्ति की चाह भी हमें गर्त में ले जाती है। जरूरत से ज्यादा धन संचय चिंता का कारण तो बनता ही है इसके साथ अासक्ति का भाव रखना भी बहुत दुखदायी हो जाया करता है। यह बात नवीन जैन मंदिर में प्रवचन देते हुए अाचार्यश्री विद्यसागर महाराज ने कही। उन्होंने कहा कि व्यक्ति यदि धन संचय करता भी है तो उसका एक भाग परोपकार के कार्यों, सुपात्र को दान आदि देकर सदुपयोग करते रहना चाहिए। 

    उन्हाेंने कहा कि धन संचय से रौद्र ध्यान अधिक होता है, धर्म ध्यान नहीं हो पाता। इसलिए हमें रौद्र ध्यान से बचने का सतत प्रयास करते रहना चाहिए। व्यक्ति को मांगने से कुछ नहीं मिलता। जब तक हमारे कर्मों का उदय न हो तब तक कुछ हासिल भी नहीं होता। हम जैसा सोचें या जो चाहें वह सबकुछ मिल जाए यह भी संभव नहीं। व्यक्ति को हमेशा परहित की बात ही सोचना चाहिए। ऐसा विचार करने से किसी का हित हो या न हो स्वयं का हित संवर्धन स्वमेव ही हो जाया करता है। उन्हाेंने कहा कि मन के विचारों को गहराने दो, अनुभूति के सरोवर में उतरने दो, कहने की उतावली मत करो, कहना सरल है सहना कठिन है कहने के बाद कुछ बचता नहीं और सहने के बाद कहने को कुछ रहता नहीं। सहने से आत्मा की निकटता बढ़ती है, कहने से वचनों का आलम्बन लेने से स्वयं से दूरियां बढ़ती है पर की निकटता रहती है फलतः जीवंतता समाप्त होती जाती है, औपचारिकताएं आ जाती हैं यह कोई जीवन नहीं और न ही जीवन का आनंद। 

    उन्हाेंने कहा कि यदि भीतरी जीवन का आनंद पाना है तो कहो नहीं, आते हुए कर्मों की परिणति को शांत भाव से, साक्षी भाव से सहो अर्थात प्रतिकार मत करो। प्रतिकार करने से द्वेष भाव उत्पन्न होगा फिर दोषों से द्वेष रखना भी तो दोषों का वर्द्धन करना ही है, प्रकारान्तर से राग का पोषण करना ही तो है। जिन-जिन ने कर्मोंदय शांत भाव से सहे वे संसार में नहीं रहे। कर्मों की तीव्र धार के क्षणों में भी वे ज्ञानधार में पूर्ण सजगता से बहते रहे-बहते रहे, आखिर वे किनारा पा गए। चाहे पाण्डव हो या गजकुमार मुनि हों, सुकौशल स्वामी हों या देश भूषण-कुलभूषण स्वामी हों कर्मों के तीव्र प्रहार के समय वे अपने आपे में रहे निजगृह से बाहर निकले ही नहीं, स्वरूप गुप्त हो गए, त्रिगुप्ति के सुरक्षित दुर्ग में गुप्त हो गए, फलतः विजयी हो गए। प्रवचन के पूर्व ब्रह्मचारी द्वय एवं दान-दाताओं ने आचार्यश्री विद्यासागर महाराज की पूजन संपन्न की।
  25. Vidyasagar.Guru
    स्थान  एवं पता - मॉडल स्कूल के पास घटी के नीचे सागर रोड शाहगढ़  
    साईज - 15 फीट
    पत्थर - संगमरमर 
    लागत - 2,40,000
    पुन्यार्जक - श्री मान सेठ रणजीत जी, श्री मति अंगूरी जैन, ब्र. बहिन संगीता दीदी, अमित सेठ, श्री मति रत्ना सेठ, आकाश सेठ श्री मति रचना सेठ, आयुष सेठ
    शिलान्यास तारीख -  25 जून 2017
    शिलान्यास सान्निध्य प्रतिष्ठाचार्या - प. विनोद कुमार जी सेठलोकार्पण तारीख - 17 नवम्बर 2018
    लोकार्पण सान्निध्य -  श्री 108 मुनि योग्सागर जी मुनिराज ससंघ
    त्यागी व्रती - मुनि श्री रणजीत जी सेठ 10 प्रतिमाधारी शाहगढ़
     
     
     

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