Jump to content
नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

मंजिल का कोई कद नहीं होता है, लघु पथ से वह गुरु पथ की ओर जाता है: आचार्यश्री


Vidyasagar.Guru

1,374 views

4 फरवरी 2019.jpeg

मंजिल का कोई कद नहीं होता है, लघु पथ से वह गुरु पथ की ओर जाता है: आचार्यश्री

 

 

रविवार, आज वीरवार भी है। दूर- दूर से मेहमान आए हैं। इस बड़ी पंचायत में उन्हें पहले जगह मिलना चाहिए। आज यहां मुझे लघु रास्ते से लाया गया तो मैने पूछा यह नया- नया सा लग रहा है। जब मन में जानने की जिज्ञासा होती है तो वह उसका पूरी स्पष्टता से समाधान भी चाहती है। मैं अल्प समय में उसका अंतरंग में ध्यान रख कर बताता हूं कि आपकी जिज्ञासा जानने में नहीं जीने की इच्छा को लेकर होती है। भगवान राम रघुकुल के भी थे और गुरुकुल के भी। इसलिए उनका जीवन हर किसी व्यक्ति के लिए आकर्षण का केंद्र बना रहता है। गुरुकुल के भाव राम के जीवन में हमेशा बने रहे। भगवान श्रीराम लघुपथ को चुन कर पगडंडियों पर चलते थे। उन्होंने अपने आपको हमेशा लघु माना। मंजिल का कोई कद नहीं हुआ करता है। लघु पथ से वह गुरु पथ की ओर जाता है। 

हम लोग खूब आकुल- व्याकुल रहते हैं और जो भगवान से संबंध रखते हैं। उनमें आकुलता नहीं रहती है। आप अपने आपको भूलोगे तो अपने बन जाओगे। क्योंकि इसमें भीतरी छवि और आत्म तत्व की बात होती है। हमें ऊपर की शक्ल देख कर संतुष्ट नहीं होना चाहिए बाहर की छवि को अच्छा देखना चाहिए लेकिन उन्हें भीतरी सोच के साथ रखना चाहिए। जैसे कि डाक्टर ऊपर की शक्ल देख कर नहीं भीतरी आकृति देख कर संतुष्ट होता है। वही चिकित्सा अंदर की करता है उसका असर ऊपर से नजर आता है। 

 

4 फरवरी 2019 समाचार.jpeg

 

जैसे सोने को कभी चमकाया नहीं जाता है वह भट्टी में जाते ही और चमकदार हो जाता है भट्टी में वह जलता नहीं है। अपने को लघु बनाना बड़ी वस्तु है हम खुद को तो आरोग्यधाम बनना चाहते हैं। जबकि इसकी रोक धाम आयुर्वेदिक इलाज में है। यह बहुत प्राचीन पद्धति है। चीन इसमें बहुत आगे बढ़ गया है परंतु उसे यह नहीं पता कि नाड़ी से क्या होता है। हमारा इतिहास बताता है कि हमारे यहां नाड़ी देखकर रोग का पता लगा लिया जाता था। जो लोगों की व्याधि को जान सकता है वह आयुर्वेदिक है। आयु क्या है, आत्मा क्या है। यह जाने बिना चिरायु को जाना नहीं जा सकता है। चिरंजीव कोई नहीं हो सकता है चिरंजीव तो सिर्फ भगवान ही होते हैं, जो अनंत काल तक जीते हैं। हम तो पूर्ण आयु की कामना कर सकते हैं। बीच में अकाल मरण ना हो आयु को पूर्ण करके मृत्यु हो। पूर्ण आयु के लिए सम्यक दर्शन सम्यक ज्ञान और सम्यक चरित्र की आवश्यकता है शिष्य की दृष्टि हमेशा गुरु के ऊपर रहनी चाहिए, जबकि गुरु की दृष्टि सभी शिष्यों के ऊपर रहती है। 

मौसम बदलने पर सुकमाल व्यक्ति को कुछ ना कुछ रोग हो जाता है तापमान के माध्यम से आयुर्वेदिक दवाएं दी जाती हैं। यदि अच्छी नींद आ जाए और भूख मिट जाएं तो आप के रोग अपने आप दूर हो जाते हैं। 12 वर्षों के अध्ययन के बाद नाड़ी के वैद्य बनते हैं तब वह रोग पकड़ने में माहिर हो जाते हैं। भाग्योदय तीर्थ में विराजमान आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने रविवारीय धर्मसभा को दोपहर में संबोधित किया। उन्होंंने जो वचन कहे, उन्हें हम यहां जस का तस दे रहे हैं। 

रविवार, आज वीरवार भी है। दूर- दूर से मेहमान आए हैं। इस बड़ी पंचायत में उन्हें पहले जगह मिलना चाहिए। आज यहां मुझे लघु रास्ते से लाया गया तो मैने पूछा यह नया- नया सा लग रहा है। जब मन में जानने की जिज्ञासा होती है तो वह उसका पूरी स्पष्टता से समाधान भी चाहती है। मैं अल्प समय में उसका अंतरंग में ध्यान रख कर बताता हूं कि आपकी जिज्ञासा जानने में नहीं जीने की इच्छा को लेकर होती है। भगवान राम रघुकुल के भी थे और गुरुकुल के भी। इसलिए उनका जीवन हर किसी व्यक्ति के लिए आकर्षण का केंद्र बना रहता है। गुरुकुल के भाव राम के जीवन में हमेशा बने रहे। भगवान श्रीराम लघुपथ को चुन कर पगडंडियों पर चलते थे। उन्होंने अपने आपको हमेशा लघु माना। मंजिल का कोई कद नहीं हुआ करता है। लघु पथ से वह गुरु पथ की ओर जाता है। 

हम लोग खूब आकुल- व्याकुल रहते हैं और जो भगवान से संबंध रखते हैं। उनमें आकुलता नहीं रहती है। आप अपने आपको भूलोगे तो अपने बन जाओगे। क्योंकि इसमें भीतरी छवि और आत्म तत्व की बात होती है। हमें ऊपर की शक्ल देख कर संतुष्ट नहीं होना चाहिए बाहर की छवि को अच्छा देखना चाहिए लेकिन उन्हें भीतरी सोच के साथ रखना चाहिए। जैसे कि डाक्टर ऊपर की शक्ल देख कर नहीं भीतरी आकृति देख कर संतुष्ट होता है। वही चिकित्सा अंदर की करता है उसका असर ऊपर से नजर आता है। 

जैसे सोने को कभी चमकाया नहीं जाता है वह भट्टी में जाते ही और चमकदार हो जाता है भट्टी में वह जलता नहीं है। अपने को लघु बनाना बड़ी वस्तु है हम खुद को तो आरोग्यधाम बनना चाहते हैं। जबकि इसकी रोक धाम आयुर्वेदिक इलाज में है। यह बहुत प्राचीन पद्धति है। चीन इसमें बहुत आगे बढ़ गया है परंतु उसे यह नहीं पता कि नाड़ी से क्या होता है। हमारा इतिहास बताता है कि हमारे यहां नाड़ी देखकर रोग का पता लगा लिया जाता था। जो लोगों की व्याधि को जान सकता है वह आयुर्वेदिक है। आयु क्या है, आत्मा क्या है। यह जाने बिना चिरायु को जाना नहीं जा सकता है। चिरंजीव कोई नहीं हो सकता है चिरंजीव तो सिर्फ भगवान ही होते हैं, जो अनंत काल तक जीते हैं। हम तो पूर्ण आयु की कामना कर सकते हैं। बीच में अकाल मरण ना हो आयु को पूर्ण करके मृत्यु हो। पूर्ण आयु के लिए सम्यक दर्शन सम्यक ज्ञान और सम्यक चरित्र की आवश्यकता है शिष्य की दृष्टि हमेशा गुरु के ऊपर रहनी चाहिए, जबकि गुरु की दृष्टि सभी शिष्यों के ऊपर रहती है। 

मौसम बदलने पर सुकमाल व्यक्ति को कुछ ना कुछ रोग हो जाता है तापमान के माध्यम से आयुर्वेदिक दवाएं दी जाती हैं। यदि अच्छी नींद आ जाए और भूख मिट जाएं तो आप के रोग अपने आप दूर हो जाते हैं। 12 वर्षों के अध्ययन के बाद नाड़ी के वैद्य बनते हैं तब वह रोग पकड़ने में माहिर हो जाते हैं।

1 Comment


Recommended Comments

🇮🇳इंडिया नहीं भारत बोलो 🇮🇳
मेरे भगवन मेरे गुरुवर 
आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज 
के चरणो में मेरा कोटी कोटी नमन
नमोस्तु भगवन 
नमोस्तु गुरूदेव 
नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु
*जैनम् जयतु शासनम्*
*वंदे विघा सागरम्* 
🇮🇳इंडिया नहीं भारत बोलो🇮🇳
*विद्यासागर सेवक मंडल भेल भोपाल*

Link to comment

Create an account or sign in to comment

You need to be a member in order to leave a comment

Create an account

Sign up for a new account in our community. It's easy!

Register a new account

Sign in

Already have an account? Sign in here.

Sign In Now
  • बने सदस्य वेबसाइट के

    इस वेबसाइट के निशुल्क सदस्य आप गूगल, फेसबुक से लॉग इन कर बन सकते हैं 

    आचार्य श्री विद्यासागर मोबाइल एप्प डाउनलोड करें |

    डाउनलोड करने ले लिए यह लिंक खोले https://vidyasagar.guru/app/ 

     

     

×
×
  • Create New...