कौन सा शब्द कहां उपयुक्त है इसके लिए सोचना पड़ता है, तत्व ज्ञान से जैसा चाहे शब्दों का प्रयोग कर सकते हैं: आचार्यश्री
बहुत बार गोता लगाया, कौनसा शब्द उपयुक्त है, क्योंकि उपयुक्त होना महत्वपूर्ण है। हमें क्या करना और क्या नहीं करना...
बहुत बार गोता लगाया, कौनसा शब्द उपयुक्त है, क्योंकि उपयुक्त होना महत्वपूर्ण है। हमें क्या करना और क्या नहीं करना चाहिए इसका ज्ञान होना जरूरी है। दोनों एक-दूसरे के पूरक शब्द हैं। तत्व तो दिखता है, त्व नहीं। ज्तस्य भावं इति तत्वम्ज् दिखने से दिखता है नहीं तो गौण हो जाता है।
इसलिए वह हमेशा-हमेशा घूम रहा है, भाव घूम रहा है। जिसके प्रति लगाव है वह छूट नहीं रहा है अतः जो जानना, देखना चाहते हैं वह नहीं आ पाता। किसको छोड़ें, जिसे भूलना चाहते हैं उसे भूल नहीं पाते। ये भाव हैं इस भाव को समझने का प्रयास करो। भूयोमरण-भूयोमरण, बार-बार मरण हो रहा है। दूसरा भी शब्द रखा पर समझने में कठिनाई हो सकती है। वैसे ही हमारी बात समझ नहीं पाते, समझने में कठिनाई होती है। यह बात नवीन जैन मंदिर के मंगलधाम परिसर में प्रवचन देते हुए अाचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कही।
उन्होंने कहा कि तरण शब्द तैरने या पार होने के अर्थ में आता है, तो तरण नहीं याने तैरना, पार होना संभव नहीं, वितरण के बिना, भूयोमरण-भूयोमरण-भूयोमरण मतलब बार-बार मरण करना पड़ता है। बार-बार मरण का मतलब बार-बार जन्म लेना होता है। इस रहस्य को तत्व ज्ञान के माध्यम से ही जाना जा सकता है। वह तत्व भी बार-बार अभ्यास करने से ही पकड़ में आता है। तत्व पकड़ में तभी आता है जब उसे भाव धर्म के साथ जोड़ लेते हैं। आचार्यश्री ने कहा कि तत्व (पदार्थ) दिखता है, भाव नहीं दिखते। भाव जल्दी-जल्दी परिवर्तित हो जाते हैं। तत्व को हमने बार-बार जिस रूप में देखने का अभ्यास किया वही दिखता है।
कई लोग आकर कहते हैं महाराज जिसको छोड़ना चाहते हैं वह एक सेकंड भी भूलने में नहीं आता है, वही-वही स्मरण में आता है। भूयोमरण-भूयोमरण-भूयोमरण, मरण के बाद मरण। इसलिए तरण नहीं वितरण के बिना। बड़ा अद्भुत है यह आनंदधाम का है ये हायकू। वितरण-तरण में तुकबंदी भी हो गई। उन्होंने कहा कि ज्तरण नहीं-वितरण के बिना-चिरमरण चिरमरण। इस प्रकार चिंतन करने वालों को यह भी उपयोगी सिद्ध हो सकता है। उस गोलाई से बाहर आएं तब शब्द पकड़ में आते हैं। शब्द यात्रा कर रहा है क्या। नहीं, पर कौन सा शब्द कहां पर उपयुक्त है इसके लिए सोचना पड़ता है। तत्व ज्ञान से जब चाहे जैसा चाहे शब्दों का प्रयोग कर सकते हैं। ये स्वतंत्रता तत्व ज्ञान से ही आती है। महाराज, समझ में आ जाए ये भी काफी है। जिस किसी को भी होता होगा ऐसा ही होता होगा। सबको समझ में आ रहा होगा ऐसा भी नहीं है। तीर्थंकर भी ऐसे ही होते होंगे। आज इतना ही तीर्थंकर के बारे में बाद में देखेंगे। अहिंसा परमो धर्म की जय ।
आचार्यश्री विद्यासागर महाराज की आहारचर्या हीरालाल, पंकज, दीपक खिरिया वाला परिवार के यहां संपन्न हुई। आचार्यश्री के पैरप्राच्छालन करने का परम सौभाग्य राहुल सिंघई, रोमी रोकड़या, अमिताभ जैन, सेंकी मोदी एवं विट्टू सिंघई को प्राप्त हुआ।
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