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Blog Comments posted by anil jain "rajdhani"
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पूज्य मुनि श्री समतासागर जी की मंगल अगवानी मुनि श्री प्रमाणसागर ससंघ ने की
In (Acharya Shree) In the News समाचार
A group blog by Team in General
मम गुरुवर
आचार्यश्री विद्यासागर
जो रखते है सबकी खबर
बिना उठाये
मन में कोई विकल्प
अरे !मात्र जीव के
कल्याण की ही नहीं
वो सोचते
वो तो करते बात
मानव मात्र के उत्थान की
उनके हित की
उनके जीवन यापन की
उनके ज्ञान-ध्यान की
उनकी शिक्षा - दीक्षा की
इस कलिकाल के है
वो साक्षात् ऋषभ
जिन्होंने सिखा दिया
कर्तव्य निष्ठापन
एक गृहस्थ को
कैसे करे वो
स्वाभिमानी रहकर
स्वाधीन बनने का उद्यम
इसीलिए बता दिए उन्हें
हथकरघा जैसे उद्यम
अथवा कृषि के या उनसे बने
उत्पादकों के कार्यक्रम
निसंकोच होकर
करो अडॉप्ट
नौकरी नहीं
तुम खुद दोगे रोजगार
नहीं बनोगे पराधीन
कर सकोगे धर्मध्यान
अपनी सुविधानुसार
बना रहेगा जिससे
तुम्हारा धर्म मार्ग प्रशस्त ...
नमोस्तु गुरुवर !
अनिल जैन "राजधानी"
श्रुत संवर्धक
२.१२.२०१९ -
पूज्य मुनि श्री समतासागर जी की मंगल अगवानी मुनि श्री प्रमाणसागर ससंघ ने की
In (Acharya Shree) In the News समाचार
A group blog by Team in General
व्यवस्था ही है ऐसी
युगों युगों से
इस संसार की
जो बड़ो की कृपा से ही
चलती है जीवन रूपी गाड़ी
सबकी ....
कौन मानता है उस कृपा को
ये होती हर एक की
अपनी अपनी समझदारी
कृतज्ञता के भाव
होते जिसके मन में
उसके जीवन में
बनी रहती प्रगति
और
जो करता उनकी अनदेखी
नहीं मिलती उसे
सफलता जल्दी ....
समयबद्ध होकर
जो चलता अपनी जीवन प्रणाली
उसे ही मिलती अधिक राशि
जैसे फिक्स्ड डिपाजिट पर
मिलता ब्याज अधिक ही
जितने लंबे समय के लिए
करते फिक्स्ड डिपाजिट
उतनी अधिक मिलती धनराशि
इसी प्रकार
जो समयबद्ध होकर
रखता / बनाता
अपना हिसाब
उसको निरंतर मिलता रहता
उसका लाभ
चाहे नहीं भी होती वो धनराशि
उसके हाथ में / संग में
लाभ तो गुणित होकर
मिल ही रहा होता
उसे अबाधित ...
जब आता
आता इतना
नहीं मिलती जगह
उसे रखने की
इसी प्रकार जानो
संबंध को गुरु-शिष्य के
चाहे होते दूर शिष्य
अपने गुरु से
व्यवस्था गुरु की
बनी हुए होती ऐसी
जो पहुँच रहा होता लाभ
निरंतर उसके पास में
अबाधित
बस,
समयबद्ध होकर
करता रहे
शिष्य क्रियाएं अपनी ....
प्रणाम !
अनिल जैन "राजधनी"
श्रुत संवर्धक
२.१२.२०१९ -
मम गुरुवर !
निसपरिग्रही, अकिंचन्य स्वभावी
अपेक्षा से उपेक्षा से दूर
रहते आत्मस्थ ..
जहाँ होते विराजमान
पहुँच जाते सब
पाने को आशीर्वाद
साक्षात तीर्थंकरसम भगवान का ..
बनी रहे गुरुकृपा
नाश होवे मिथ्यात्व का
प्रकट होवे ज्ञान का प्रकाश
जिसको साक्षात् हो जावे
मम गुरुवर का !
नमोस्तु गुरुवर !!!
त्रिकाल वंदन !!!
अनिल जैन "राजधानी"
श्रुत संवर्धक
३१.८.२०१९
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विश्व वंदनीय आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज (ससंघ) नेमावर में विराजमान हैं।
In सूचना पट्ट - आचार्य श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज ससंघ
A group blog by टीम विद्यासागर डॉट गुरु in General
हो गया जबलपुर वालों के
पुण्य का कोष कम
अथवा मार रहा पुण्य उनका जोर
जो किसी और क्षेत्र के
लोगों को
मिल जाएगी गुरुवर के
चरणों की रज ...
कर गए विहार आज गुरुवर
जबलपुर की
प्रतिभास्थली से ...
हम दिल्ली वालों का तो
पुण्य इतना है क्षीण
मात्र ज्ञाता दृष्टा बनकर
ही कर लेते संतोष
प्रभुवर का
किस ओर का बनेगा
अब संयोग
बनी रहे गुरुकृपा
हम दिल्ली वालों पर
कभी तो हमारा भी पुण्य
मारेगा जोर
अतिथि की भांति
जो गुरुवर के चरण बढ़ेंगे
दिल्ली की ओर ...
अभी तो
गुरुवर के आज्ञानुवर्ती शिष्य
मुनिश्री प्रणम्यसागर जी
महाराज का आगमन
होगा दरियागंज में
अपने २३ तारीख के अर्हमयोग के
कार्यक्रम के लिए
जो विशाल रूप में हो रहा
आयोजित लालकिला मैदान में ...
नमोस्तु गुरुवर !
मिलती रहे छाया इस प्रकार
बना रहे आशीर्वाद
पूर्ववत !!!
हम सभी दिल्ली वालों पर !
अनिल जैन "राजधानी"
श्रुत संवर्धक
१८.६.२०१९ -
हार्दिक शुभकामनाये, भाई जी
जय जिनेन्द्र !
गुरुकृपा है ये प्रसाद
मुनिवर प्रसादसागर जी महाराज के निर्देशन से
निश्चय ही मिला होगा लाभ ...
नित्यप्रति गुरुचरणों में उनके आशीष से
जो भी लिखा जाता अनायास
करता हूँ रोज पोस्ट
फेसबुक एवं व्हाट्सप्प पर
दस हज़ार से ऊपर
नित्यप्रति मिलते है जिनपर कमेंट्स
कोई सुविधा स्पीकिंग ट्री टाइप की
आप भी कराओ उपलब्ध यहाँ
जिस से समदृष्टि
जुड़ सके
इकट्ठे हो सके
एक जगह
एक और एक ग्यारह होने में
नहीं फिर कोई देर लगे !
प्रणाम !
पुन: बधाई के पात्र !
जय जिनेन्द्र !
गुरुचरणों में वंदन बारंबार !!!
अनिल जैन "राजधानी"
श्रुत संवर्धक
नई दिल्ली -११०००२
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आहारचर्या शुभ संदेश 30/03/19
In आहार चर्या शुभ संदेश - आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
A group blog by संयम स्वर्ण महोत्सव in General
bahut bahut anumodna
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वज्र पाषाण हृदयी, निर्मोही, निर्दयी, निष्ठुर, निर्मम, आचार्यश्री......
A group blog by Editors in General
राजेश जी,
सुन्दर शब्द संयोजन
गुरुदेव के चरणों में सुन्दर भावांजलि
बधाई !
जय जिनेन्द्र
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वज्र पाषाण हृदयी, निर्मोही, निर्दयी, निष्ठुर, निर्मम, आचार्यश्री......
A group blog by Editors in General
मम गुरुवर ! आचार्यश्री
मिले स्वास्थ्य लाभ उन्हें जल्दी !
इतनी ही प्रभु चरणों में करते विनती !!!
माना कि शरीर भिन्न - आत्मा भिन्न
भिन्न उसे करने के लिए शरीर से
जरुरत होती शरीर की ही
उसी के सहयोग से
होती आत्मा की सिद्धि ...
इसलिए !
देखभाल उसकी भी करना है जरुरी
शरीर बना रहे स्वस्थ
देता रहे साथ
जब तक न हो जावे हमें
कार्य की उपलब्धि
उसके लिए जरुरी है देना उसको
भोजन पानी
यदि आ जाती उसमे कोई व्याधि
जरुरी है उपचार उसका भी
आहार भी सुपाच्य होता जभी
जब निहार होता रहे नित्यप्रति
उसके लिए विरेचक लेना
ऋतू अनुसार है जरुरी
दो चम्मच सौंफ और
एक चम्मच अजवायन
दो बड़ी इलायची
इसका कूटकर बना हुआ योग
आहार के अंत में गर्म दूध से लेने पर
होता लाभकारी
यदि लिया जाए नित्यप्रति
नहीं आएगी कभी
निहार की व्याधि
स्व परीक्षित योग है ये
सुपाच्य बना रहता आहार ...
एक त्यागी की प्रकृति को जानकर
खोजा था ये योग मैंने
जो हुआ था प्राप्त
गुरुवर आपकी ही कृपा से
उपयोगी है यह
सभी त्यागी व्रतियों के लिए ...
जानते हम सभी
राम का नाम लिखने पर
नहीं डूबी थी शिला जल में
राम ने जो छोड़ी शिला
डूब जाती थी वो जल में
गुरुवर !
तारना है अभी तो बहुत
भव्यों को तो तुम्हे
स्व के लिए न सही
पर के उपकार की खातिर
तो जरुरी है आपको
स्वास्थ्य लाभ मिले जल्दी
जिसके लिए
नित्यप्रति विरेचक भी है जरुरी ...
गुरुचरणों में त्रिकाल वंदन !
अनिल जैन "राजधानी"
श्रुत संवर्धक
२४.१.२०१९ -
वज्र पाषाण हृदयी, निर्मोही, निर्दयी, निष्ठुर, निर्मम, आचार्यश्री......
A group blog by Editors in General
On 1/11/2019 at 10:38 PM, anuyog jain said:शीर्षक - कर्म निर्जरा करने की विधि
नमोस्तु आचार्य श्री 😊
व्यक्ति बढ़ता जितना
अध्यात्म मार्ग में
लगता बहुत दूर है
मंज़िल अभी
उसकी
जितना चला
लगता
शुरूवात है ये
उसकी ..
होता गुरु जिनके पास
नहीं होने देता उसे
ऐसा अहसास
संबोधता
बताकर उसे
आगे का मार्ग
कठिन डगर भी
उसे सरल लगने लगती ...नमोस्तु गुरुवर
त्रियोग वंदन
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please see the attached file, A threefold pamphlet is being prepared for the foreign tourist.., appreciated by Acharyashree and the Muni sangh and others. please send your feedback..thanks
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आहारचर्या शुभ संदेश 28/08/18
In आहार चर्या शुभ संदेश - आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
A group blog by संयम स्वर्ण महोत्सव in General
गलती हमारी यहीनहीं चलना चाहते सड़क के अनुसारचलते अपनी मर्जी सेचलाना चाहते सड़क पर खुद कोअपने अनुसारफिर एक्सीडेंट तो होगा ही ...घट जाती जब जीवन में अपनेकोई घटना अनचाहीदोष देते कर्मो कोअथवा मंढ देते दोष औरों पेस्वयं को पाक-साफ़ दिखा केनहीं होता उससेसमस्या का समाधानउलटी बढ़ती जाती तकलीफेजिससे जीवन में ....सोचो ! विचारो !कभी एकांत मेंपरंपरा को निभाना ही होताकर्त्तव्य व्यक्ति काजो निभाता जाता कुल परंपरानहीं उसके जीवन मेंआता / लगता ऐसा धोखा ....परंपरा तोड़ केजो चाहता दौड़नासमय की रेस के साथ मेंगिर जाता वो बीच मेंसौ में से एक / हज़ारो-लाखों में एकहोता सफल इस तरह सेसब उसी का अनुकरण करना चाहतेभूलकर अपनी क्षमता / दक्षताक्या हर कोई बंबई जाने वालाबन पाया है हीरो अपने दम पे ?विचारो स्वयं की परंपरास्वयं का दायरास्वयं की क्षमताउसी के अनुसार जगाओ उम्मीदेंअपने मन मेंमिलेगी सफलता तुम्हेनहीं लगेगा कभीरह गए तुम पीछेनहीं आओगे कभी डिप्रेशन मेंअसफल होने पेक्योंकि !जुड़े हो तुम कुल परंपरा से ....आज इतना हीजय जिनेन्द्र !अनिल जैन "राजधानी"श्रुत संवर्धक२८.८.२०१८संसार दुखों से है भराक्षणिक सुखाभास को पाने मेंचलता रहता प्रपंच हमाराकैसे मिले दुखो से छुटकारा ?अथवा कैसे होवेएहसास कम उसका ?बता दो कोई सरल सी विधि जीने की ...सरलतम विधि बस,जैसे संयोग मिलते जाए / बन जाएकर लो स्वीकार उन्हेंकर लो उनके अनुसारप्रवृत्ति अपनीदुखो का कम हो जायेगा पिटारायही है सबसे सरल सहारा ...अथवाजुड़ जाओ धर्म सेघटाकर व्यव्हार अपना जगत सेबढ़ जाओ अध्यात्म मार्ग मेंमिल सकता इस प्रकारदुखो से भी छुटकारा ....1 minute ago, anil jain "rajdhani" said:bahut bahut anumodna, badhaai
प्रणाम !अनिल जैन "राजधानी"श्रुत संवर्धकहो जायेगा कमएहसास दुखों काअध्यात्म में बढ़ने परमिल सकता शास्वत सुख का भीआभास तुम्हे ...जैसी लगे सुविधाकर लो स्वीकार उस मार्ग को २८.८.२०१८ -
आहारचर्या शुभ संदेश 28/08/18
In आहार चर्या शुभ संदेश - आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
A group blog by संयम स्वर्ण महोत्सव in General
bahut bahut anumodna, badhaai
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आहारचर्या शुभ संदेश 27/08/18
In आहार चर्या शुभ संदेश - आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
A group blog by संयम स्वर्ण महोत्सव in General
काम करेंगे तो
गलती भी होगी
बिना करे काहे की गलती ?
इसलिए !
घबराकर गलती होने से
किसी भी कार्य के करने में
मत रहो पीछे ...
चौका न लगाने से बेहतर है
चौका लगाना
अंतराय भी यदि हो जाए
बेहतर होता उससे
जिसने नहीं लगाया होता चौका
इसलिए !
अंतराय के भय से
मत रहो पीछे चौका लगाने में
व्रत-नियम आदि लेने में ...
गलती/चूक यदि हो भी जाती उसमे
बेहतर स्थिति में ही होते उनसे
जिन्होंने व्रत-नियम नहीं लिए होते
आभास होते ही गलती का
प्रायश्चित लेना
उसका शोधन करना होता
स्वयं को उस पाप से
प्रक्षालन हो जाता पाप का
इस तरह से
उस अपराध का
जो हो गया होता अनजाने में ...
उत्कर्ष बना रहेगा
चारित्र आपका
इस तरह से ...
इसलिए !
जितनी शक्ति है आज तुम में
उसके अनुसार
कर लो अंगीकार व्रत-नियम
मत रहो पीछे
घबराकर गलती होने से
जब जिस समय होगा जैसा
वैसा कर लेना संशोधन
किसी गुरु के समक्ष जा के
इतनी ही कहती मेरी मति
इस विषय में ...
नमोस्तु गुरुवर !
निरंतर अवलोकन करते रहें
अपनी स्थिति का
बनी रही इतनी जागृति
सभी में
निभते रहे नियम सभी के
जो भी लिए होते
गुरुजनो की साक्षी में ....
अनिल जैन "राजधानी"
२७.८.२०१८
उत्कर्ष रखनी है यदि
जीवन शैली अपनी
संस्कृति और प्रकृति की
रक्षा को रखो सर्वोपरि ....
जानो अपनी प्रकृति
उसी के अनुरूप रखो
अपनी प्रवृति
यही है सबसे जरुरी ...
मानुष शरीर की संरचना है ऐसी
जो है शाकाहारी भोजन के अनुकूल
शाकाहारी जीवों की होती लंबी आंतें
जो पचाती भोजन धीरे धीरे
नहीं सड़ता वो वहां पड़े पड़े
जबकि मांसाहारी जीवों की होती
छोटी आते
जो जल्दी पचा के
फेंक देती कचरा बाहर में ...
इसलिए !
पहचान कर अपनी प्रकृति
उसके अनुरूप ही
रखो अपने भोजन की पद्यति
बने रहोगे स्वस्थ शरीर से
बने रहोगे स्वस्थ विचारों से
बने रहोगे स्वस्थ अपने आचरण से ...
जिसकी बिगड़ जाती भोजन की पद्यति
हो जाते वो चिड़चिड़े - गुस्सैल
कलुषित भवों से भरे
नहीं रह पाती उनके
करुणा और दया / संवेदना
जीवों के प्रति ....
इसलिए !
समझकर अपनी प्रकृति
उसके अनुरूप बनाओ अपनी प्रवृति
बची रहेगी जिससे संस्कृति
जितनी जरुरत है
उससे अधिक परिग्रह की
मत करो अपनी नियति
प्रकृति को सुरक्षित रखने की
यही है सबसे सरल नीति
ईर्ष्या और स्पर्धा को
मिलता विराम इसी से
बन जाता व्यक्ति संतोषी
यही है हमारी संस्कृति ....
विचारो ! सुधारो !
अपने खान-पान की पद्यति
बची रहेगी
संस्कृति और प्रकृति ...
जय जिनेन्द्र !
अनिल जैन "राजधानी"
श्रुत संवर्धक
२७.८.२०१८
"रक्षा बंधन"
यानि रक्षा करो अपनी
उन कर्मबन्धनों से
जो बंध जाते
तुम्हारी गलती / कमी से ...
रखो सावधानी
हर क्रिया करते हुए
नहीं बंधेंगे नवीन कर्म
तुम्हारी आत्मा में
जो है निर्मल पवित्र ज्ञानघन ..
रक्षाबंधन
संदेशा यही देती
रक्षा करो स्वयं की
स्वयं की उददंडता से
बचे रहोगे नवीन कर्मबंध से ..
जरा सी सावधानी
मिटा देगी
भवों भवों की नादानी
संसार हो जायेगा ख़त्म जल्दी
वर्ना तो सावधानी हटी - दुर्घटना घटी
बिताते रहोगे अनंत काल
संसार के बीच में
नहीं मिलेगा सच्चा सुख
जो है तुम्हारा प्रभुत्व
इसलिए !
रक्षा करो - स्वयं की
हे प्रभो !
रक्षा करो - रक्षा करो मेरी
कर्मबन्धन से
इसीलिए रक्षासूत्र बांधते हम
मंदिर जी में - साधर्मियों में ....
अनिल जैन "राजधानी"
श्रुत संवर्धक
२७.८.२०१८
उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य युक्तं द्रव्यं
गुण-पर्याय युक्तं द्रव्यं
सामान्य-विशेष गुण समुदाय द्रव्यं ...
सामान्य गुण जो सभी द्रव्यों में
पाए जाते एक से
विशेष गुण
जो प्रत्येक द्रव्य में
भिन्न भिन्न होते
इतना जानते हम सभी ...
द्रव्य की पहचान होती विशेष से
विशेष को जानकार ही
सामान्य तक हम पहुँचते
यानि
सत तक पहुँचने के लिए
बैक गियर लगाना ही होता
विशेष में ही फंस कर
नहीं पहुँचते हम सामान्य तक
जिस प्रकार
फंसी गाडी को
जाम में से निकालने के लिए
बैक मार के इधर उधर
पहुँच जाते अपनी मंज़िल पर
समय पर
यदि रहते वहीँ खड़े
तो क्या मंज़िल पा लेते समय से ?
अर्थात नहीं
हमें भी पुरुषार्थ अपना बढ़ाना चाहिए
ज्ञान से दर्शनमय होने में
साकार से आकर मात्र रहने में
जभी प्रमाणता आएगी
आपके ज्ञान में
वर्ना तो
उलझकर रह जाओगे
संकल्प-विकल्पों में
इतना ही आज !
अनिल जैन "राजधानी"
श्रुत संवर्धक
२७.८.२०१८
मौन रहना ही बेहतर होता
जब लगे तुम्हे
सामने वाला झूठ बोल रहा
बस स्वयं को बड़ा दिखाने के लिए
स्वयं को सही ठहराने के लिए
वर्ना तो
बढ़ा लोगे झगड़ा लंबा
बिना बात के
एक चुप सौ को हराये
फार्मूला यही रखो सदा ध्यान में ...
बोल रहा होता जो झूठ
स्वयं को सही स्थापित करने में
क्या होता हश्र उसका
ये जानते हम सभी
जिस प्रकार बच्चा जो बोलता था
रोज झूठ गांव में
शेर आया - शेर आया
जब लोग इकठ्ठा हो जाते थे
कह देता था मैं तो झूठ बहका रहा था
एक दिन सच में ही शेर आ गया उसके सामने
चिल्लाता रहा - नहीं निकल कर आया कोई बाहर
घायल पड़ा रहा सारी रात सड़क पे
उसी प्रकार झूठ जब पकड़ा जाता
अधमरा हो जाता व्यक्ति
झूठ के पकडे जाने पे
प्रमाणिकता ख़त्म हो जाती
उसकी वाणी की
घर में / समाज में / व्यापार में
पड़ा रह जाता अकेला वो अपने में ....
इतना ही आज
जय जिनेन्द्र
अनिल जैन "राजधानी"
श्रुत संवर्धक
२७.८.२०१८
पूज्य मुनि श्री समतासागर जी की मंगल अगवानी मुनि श्री प्रमाणसागर ससंघ ने की
In (Acharya Shree) In the News समाचार
A group blog by Team in General
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