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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
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आहारचर्या शुभ संदेश 27/08/18


Ankush jain sagar

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*??भारत बोलो आंदोलन??
   *‼आहारचर्या‼*
    *खजुराहो*
  _दिनाँक :२७/०८/१८  *आगम की पर्याय महाश्रमण युगशिरोमणि १०८ आचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनिराज* को आहार दान का सौभाग्य *श्रीमान  नीरज जी जैन ललितपुर एवं ब्र. बहिने प्रतिभास्थली उनके परिवार वालो* को प्राप्त हुआ है।_
इनके पूण्य की अनुमोदना करते है।
            ????
*भक्त के घर भगवान आ गये*

*_सूचना प्रदाता-:श्री शांत जी जैन एवं श्री अंकित जी जैन खजुराहो_*
       ???
*अंकुश जैन बहेरिया
*प्रशांत जैन सानोधा

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Recommended Comments

काम करेंगे तो 
गलती भी होगी  
बिना करे काहे की गलती ?
इसलिए !
घबराकर गलती होने से 
किसी भी कार्य के करने में 
मत रहो पीछे ...
चौका न लगाने से बेहतर है 
चौका लगाना 
अंतराय भी यदि हो जाए 
बेहतर होता उससे 
जिसने नहीं लगाया होता चौका 
इसलिए !
अंतराय के भय से 
मत रहो पीछे चौका लगाने में 
व्रत-नियम आदि लेने में ...
गलती/चूक यदि हो भी जाती उसमे 
बेहतर स्थिति में ही होते उनसे 
जिन्होंने व्रत-नियम नहीं लिए होते 
आभास होते ही गलती का 
प्रायश्चित लेना 
उसका शोधन करना होता 
स्वयं को उस पाप से 
प्रक्षालन हो जाता पाप का 
इस तरह से 
उस अपराध का 
जो हो गया होता अनजाने में ...
उत्कर्ष बना रहेगा 
चारित्र आपका 
इस तरह से ...
इसलिए !
जितनी शक्ति है आज तुम में 
उसके अनुसार 
कर लो अंगीकार व्रत-नियम 
मत रहो पीछे 
घबराकर गलती होने से 
जब जिस समय होगा जैसा 
वैसा कर लेना संशोधन 
किसी गुरु के समक्ष जा के 
इतनी ही कहती मेरी मति 
इस विषय में ...
नमोस्तु गुरुवर !
निरंतर अवलोकन करते रहें  
अपनी स्थिति का 
बनी रही इतनी जागृति
सभी में 
निभते रहे नियम सभी के 
जो भी लिए होते 
गुरुजनो की साक्षी में ....
अनिल जैन "राजधानी"
२७.८.२०१८ 
उत्कर्ष रखनी है यदि 
जीवन शैली अपनी 
संस्कृति और प्रकृति की 
रक्षा को रखो सर्वोपरि ....
जानो अपनी प्रकृति 
उसी के अनुरूप रखो 
अपनी प्रवृति 
यही है सबसे जरुरी ...
मानुष शरीर की संरचना है ऐसी 
जो है शाकाहारी भोजन के अनुकूल  
शाकाहारी जीवों की होती लंबी आंतें 
जो पचाती भोजन धीरे धीरे 
नहीं सड़ता वो वहां पड़े पड़े 
जबकि मांसाहारी जीवों की होती 
छोटी आते 
जो जल्दी पचा के 
फेंक देती कचरा बाहर में ...
इसलिए !
पहचान कर अपनी प्रकृति 
उसके अनुरूप ही 
रखो अपने भोजन की पद्यति
बने रहोगे स्वस्थ शरीर से 
बने रहोगे स्वस्थ विचारों से 
बने रहोगे स्वस्थ अपने आचरण से ...
जिसकी बिगड़ जाती भोजन की पद्यति 
हो जाते वो चिड़चिड़े - गुस्सैल 
कलुषित भवों से भरे 
नहीं रह पाती उनके 
करुणा और दया / संवेदना 
जीवों के प्रति ....
इसलिए !
समझकर अपनी प्रकृति 
उसके अनुरूप बनाओ अपनी प्रवृति 
बची रहेगी जिससे संस्कृति 
जितनी जरुरत है 
उससे अधिक परिग्रह की 
मत करो अपनी नियति 
प्रकृति को सुरक्षित रखने की 
यही है सबसे सरल नीति
ईर्ष्या और स्पर्धा को 
मिलता विराम इसी से 
बन जाता व्यक्ति संतोषी 
यही है हमारी संस्कृति ....
विचारो ! सुधारो ! 
अपने खान-पान की पद्यति 
बची रहेगी 
संस्कृति और प्रकृति ...
जय जिनेन्द्र !
अनिल जैन "राजधानी"
श्रुत संवर्धक 
२७.८.२०१८ 
"रक्षा बंधन" 
यानि रक्षा करो अपनी 
उन कर्मबन्धनों से 
जो बंध जाते 
तुम्हारी गलती / कमी से ...
रखो सावधानी 
हर क्रिया करते हुए 
नहीं बंधेंगे नवीन कर्म 
तुम्हारी आत्मा में 
जो है निर्मल पवित्र ज्ञानघन ..
रक्षाबंधन 
संदेशा यही देती 
रक्षा करो स्वयं की 
स्वयं की उददंडता से 
बचे रहोगे नवीन कर्मबंध से ..
जरा सी सावधानी 
मिटा देगी 
भवों भवों की नादानी 
संसार हो जायेगा ख़त्म जल्दी 
वर्ना तो सावधानी हटी - दुर्घटना घटी
बिताते रहोगे अनंत काल 
संसार के बीच में 
नहीं मिलेगा सच्चा सुख 
जो है तुम्हारा प्रभुत्व 
इसलिए !
रक्षा करो - स्वयं की 
हे प्रभो !
रक्षा करो - रक्षा करो मेरी 
कर्मबन्धन से 
इसीलिए रक्षासूत्र बांधते हम 
मंदिर जी में - साधर्मियों में ....
अनिल जैन "राजधानी"
श्रुत संवर्धक 
२७.८.२०१८ 
उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य युक्तं द्रव्यं 
गुण-पर्याय युक्तं द्रव्यं 
सामान्य-विशेष गुण समुदाय द्रव्यं ...
सामान्य गुण जो सभी द्रव्यों में 
पाए जाते एक से 
विशेष गुण 
जो प्रत्येक द्रव्य में 
भिन्न भिन्न होते 
इतना जानते हम सभी ...
द्रव्य की पहचान होती विशेष से 
विशेष को जानकार ही 
सामान्य तक हम पहुँचते 
यानि 
सत तक पहुँचने के लिए 
बैक गियर लगाना ही होता 
विशेष में ही फंस कर 
नहीं पहुँचते हम सामान्य तक 
जिस प्रकार 
फंसी गाडी को 
जाम में से निकालने के लिए 
बैक मार के इधर उधर 
पहुँच जाते अपनी मंज़िल पर 
समय पर 
यदि रहते वहीँ खड़े 
तो क्या मंज़िल पा लेते समय से ?
अर्थात नहीं 
हमें भी पुरुषार्थ अपना बढ़ाना चाहिए 
ज्ञान से दर्शनमय होने में 
साकार से आकर मात्र रहने में 
जभी प्रमाणता आएगी 
आपके ज्ञान में 
वर्ना तो 
उलझकर रह जाओगे 
संकल्प-विकल्पों में 
इतना ही आज !
अनिल जैन "राजधानी"
श्रुत संवर्धक 
२७.८.२०१८ 
मौन रहना ही बेहतर होता 
जब लगे तुम्हे 
सामने वाला झूठ बोल रहा 
बस स्वयं को बड़ा दिखाने के लिए 
स्वयं को सही ठहराने के लिए 
वर्ना तो 
बढ़ा लोगे झगड़ा लंबा 
बिना बात के 
एक चुप सौ को हराये 
फार्मूला यही रखो सदा ध्यान में ...
बोल रहा होता जो झूठ 
स्वयं को सही स्थापित करने में 
क्या होता हश्र उसका 
ये जानते हम सभी  
जिस प्रकार बच्चा जो बोलता था 
रोज झूठ गांव में 
शेर आया - शेर आया 
जब लोग इकठ्ठा हो जाते थे 
कह देता था मैं तो झूठ बहका रहा था 
एक दिन सच में ही शेर आ गया उसके सामने 
चिल्लाता रहा - नहीं निकल कर आया कोई बाहर 
घायल पड़ा रहा सारी रात सड़क पे 
उसी प्रकार झूठ जब पकड़ा जाता 
अधमरा हो जाता व्यक्ति 
झूठ के पकडे जाने पे 
प्रमाणिकता ख़त्म हो जाती 
उसकी वाणी की 
घर में / समाज में / व्यापार में 
पड़ा रह जाता अकेला वो अपने में ....
इतना ही आज 
जय जिनेन्द्र 
अनिल जैन "राजधानी"
श्रुत संवर्धक 
२७.८.२०१८ 

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