मैं भव व्याधि से ग्रसित,
जन्म जरादि से व्यथित,
आपकी शरण आया हूँ,
कुछ अरजी लाया हूँ।
मुझे भव व्याधि हरने वाली,
परम रत्नत्रय की औषध दीजिए।
वर्तमान में आपही नि:स्वार्थ वैद्य हैं हमारे
कृपासिंधु कृपा कीजिए...
निज सम मुझे निरोग बना लीजिए।
"परम वैध गुरू पर श्रद्धा कर, भविजन रोग बताते हैं।
गुरु वचनों की औषध पाकर, भव के रोग मिटाते हैं।।
भव का रोग सहा न जाता, मेरा भी उपचार करो।
रत्नत्रय संजीवन देकर, मुझ पर भी उपकार करो।।"
आर्यिका पूर्णमती माताजी