आप अंदर ही अंदर रहते हो,
और मैं आपको अपने अंदर रखना चाहता हूँ।
आप बाहर आना नहीं चाहते,
और मैं आपके बिना,
अंदर जा ही नहीं सकता हूँ।
“ गुरूवर की पद रज को छूकर, बिगड़े काम सभी बनते।
श्री गुरुवर जीवंत तीर्थ के, दर्शन से विधिमल नशते।।
निज शुध्दातम दर्शक साधक, विधागुरु को वंदन है।
भूतल पर जयवंत रहे नित, भावों से अभिनंदन है॥”