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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

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  1. सर्वप्रथम अहिंसा व्रत की भावनाएँ कहते हैं- वाङ्मनोगुप्तीर्यादाननिक्षेपणसमित्यालोकितपान भोजनानि पञ्च ॥४॥ अर्थ - वचन गुप्ति, मनो गुप्ति, ईर्यासमिति, आदान-निक्षेपण समिति और आलोकित पान भोजन ये पाँच अहिंसा व्रत की भावनाएँ हैं। English - Control of speech, control of thought, observing the ground in front while walking, care in taking and placing things or objects, and examine the food in the sunlight before eating/drinking are five observances of non-violence. विशेषार्थ - वचन की प्रवृत्ति को अच्छी रीति से रोकना वचन गुप्ति है। मन की प्रवृत्ति को अच्छी रीति से रोकना मनोगुप्ति है। पृथ्वी को देखकर सावधानता पूर्वक चलना ईर्यासमिति है। सावधानता पूर्वक देख कर वस्तु को उठाना और रखना आदान-निक्षेपण समिति है। दिन में अच्छी तरह देखभाल कर खाना-पीना आलोकितपानभोजन है। इन पाँच बातों का ध्यान अहिंसा व्रती को रखना चाहिए।
  2. इन व्रतों की रक्षा के लिये आवश्यक भावनाओं को बतलाते हैं- तत्स्थैर्यार्थं भावनाः पञ्चपञ्च ॥३॥ अर्थ - इन व्रतों को स्थिर करने के लिए प्रत्येक व्रत की पाँच-पाँच भावनाएँ हैं। उन भावनाओं का सदा ध्यान रखने से व्रत दृढ़ हो जाते हैं। English - For the sake of stabilizing the vows, there are five observances for each of these.
  3. अब व्रतों के भेद बतलाते हैं- देशसर्वतोऽणुमहती ॥२॥ अर्थ - इन पाँच पापों को एकदेश से त्याग करने को अणुव्रत कहते हैं और पूरी तरह से त्याग करने को महाव्रत कहते हैं। English - The vow is of two kinds, small and great from its being partial and total.
  4. पूर्व अध्याय में आस्रव का कथन हो चुका। उसमें पुण्यकर्म के आस्रव का मामूली-सा कथन किया था। इस अध्याय में उसका विशेष कथन करने के लिए व्रत का स्वरूप बतलाते हैं- हिंसानृतस्तेयाब्रह्मपरिग्रहेभ्यो विरतिव्रतम् ॥१॥ अर्थ - हिंसा, अनृत, स्तेय, अब्रह्म और परिग्रह से विरत होने को व्रत कहते हैं। English - Desisting from injury, falsehood, stealing, unchastity, and attachment is the fivefold vow. विशेषार्थ - हिंसा आदि पापों का बुद्धिपूर्वक त्याग करने को व्रत कहते हैं। इन पाँच पापों का स्वरूप आगे बतलायेंगे। उनको त्यागने से अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह ये पाँच व्रत होते हैं। इन सब में प्रधान अहिंसा व्रत है, इसी से उसे सब व्रतों के पहले रखा है। शेष चारों व्रत तो उसी की रक्षा के लिए हैं। जैसे खेत में धान बोने पर उसकी रक्षा के लिये चारों ओर बाड़ लगा देते हैं, वैसे ही सत्य आदि चार व्रत अहिंसा व्रत की रक्षा के लिए बाड़रूप हैं। शंका - इन व्रतों को आस्रव का हेतु बतलाना ठीक नहीं है, क्योंकि आगे नौंवे अध्याय में संवर के कारण बतलायेंगे। उनमें जो दश धर्म हैं, उन दश धर्मों में से संयम धर्म में व्रतों का अन्तर्भाव होता है? अतः व्रत संवर के कारण हैं, आस्रव के कारण नहीं हैं ? समाधान - यह ठीक नहीं है, संवर तो निवृत्ति रूप होता है, उसका कथन आगे किया जायेगा। और ये व्रत निवृत्ति रूप नहीं है, किन्तु प्रवृत्ति रूप है। क्योंकि इनमें हिंसा, झूठ, चोरी वगैरह को त्याग कर अहिंसा पालने का, सच बोलने का, दी हुई वस्तु को लेने का विधान है। तथा जो इन व्रतों का अच्छी तरह से अभ्यास कर लेता है, वही संवर को आसानी से कर सकता है। अतः व्रतों को अलग गिनाया है।
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