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वतन की उड़ान: इतिहास से सीखेंगे, भविष्य संवारेंगे - ओपन बुक प्रतियोगिता ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

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  1. स्वर्नोदय तीर्थ क्षेत्र खजुराहो में 04 नवम्बर 2018 रविवार दोपहर 01:30 बजे आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के ससंघ सानिध्य में सहस्त्रकूट जिनालय का शिलान्यास होने जा रहा है आप सभी सपरिवार सादर आमंत्रित है |
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    आचार्य श्री कैलेंडर
  3. डॉ गंगवाल की खजुराहो में लगाई बहुभाषी प्रदर्शनी दे रही शाकाहार का संदेश, एक लाख को शाकाहारी बनाने पर गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में नाम दर्ज आचार्यश्री ने मुक्तकंठ से सराहा छतरपुर अतिशय क्षेत्र खजुराहो में आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज की प्रेरणा और आशीवार्द से डॉ कल्याण गंगवाल ने शाकाहार एवं अहिंसा पर केंद्रित एक बहुभाषी साहित्य एवं सामग्री की प्रेरक,ज्ञानवर्धक, धार्मिक ग्रंथों के संदर्भ सहित एक भव्य तथा आकर्षक प्रदर्शनी लगाई है। विगत दिनों इस प्रेरक प्रदर्शनी का अवलोकन पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज एवं संघस्थ साधुओं ने सूक्ष्मता से किया और प्रदर्शनी के उद्देश्य एवं प्रयासों की मुक्तकंठ से सराहना न केवल प्रदर्शनी स्थल पर की,वरन अपने विशेष प्रवचन के दौरान भी डॉ गंगवाल के इस शाकाहार मिशन को सराहते हुए उन्हें मंच से मंगल आशीर्वाद भी दिया। इस अवसर पर डॉ गंगवाल ने अपने उद्बोधन में शाकाहार अभियान की विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि वे अपने चिकित्सकीय प्रोफेशन से अर्जित आय से इस कार्य को विगत पंद्रह वर्षों से करते आरहे हैं।सामाजिक कार्यों को करने हेतु उन्होंने 1987 में सर्वजीव सेवा प्रतिष्ठान की स्थापना की और उनके क्लिनिक में आने वाले तीस प्रतिशत गरीब मरीजों का वे निःशुल्क उपचार कर दवाएं देते हैं। शाकाहार, जीवदया, अहिंसा एवं व्यसनमुक्ति के मिशन के लिए समर्पित डॉ कल्याण गंगवाल अपनी इस प्रेरक,प्रभावी और वैज्ञानिक तथ्यों से परिपूर्ण प्रदर्शनी के जरिए अब तक कोई एक लाख से ज्यादा लोगों को शाकाहारी बना चुके हैं। ये जानकारी देते हुए डॉ सुमति प्रकाश जैन ने बताया कि प्रदर्शनी में देशी-विदेशी पर्यटकों के लिए हिंदी,इंग्लिश, फ़्रेंच, जर्मन, स्पैनिश,चायनीज,जापानी आदि ऐसी अनेक भाषाओं मे डॉ गंगवाल ने शाकाहार सम्बन्धी प्रचुर साहित्य तैयार कराया है जिसे वे देशी-विदेशी पर्यटकों को निःशुल्क भेंट कर शाकाहार और अहिंसा का शंखनाथ पूरे देश एवं दुनिया मे कर रहे हैं।अपनी शाकाहार पर केंद्रित पुस्तकों एवं अन्य साहित्य में डॉ गंगवाल ने जैन दर्शन के गूढ़ ग्रंथों मूलाचार,कार्तिकेयअनुपेक्ष, ज्ञानार्णव,तत्वार्थसूत्र,प्रवचनसार एवं समीक्षाशतक का अध्ययन कर इसमें वर्णित अहिंसा, जीवदया एवं शाकाहार संबंधी प्रसंगों का संदर्भ बखूबी दिया है,जिससे इनकी उपयोगिता तथा प्रमाणिकता और भी ज्यादा हो गई है।एक वरिष्ठ चिकित्सक होने के नाते डॉ गंगवाल ने अपने साहित्य में शाकाहार के वैज्ञानिक एवं मानवीय पक्ष को सुदृढ़ता के साथ प्रस्तुत करते हुए मनुष्यों के लिए शाकाहार को ही हर दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ आहार बताया है। ज्ञातव्य है कि एमबीबीएस, एमडी मेडिसिन जैसी उच्चशिक्षा गोल्ड मैडल के साथ प्राप्त करने वाले डॉ गंगवाल पुणे के केईएम हॉस्पिटल में कंसल्टेंट एवं प्रोफेसर रहते हुए अपने अतिव्यस्त समय लेकिन व्यवस्थित दिनचर्या से इस शाकाहार अभियान के लिए समय औऱ धन का सदुपयोग करते रहते हैं। डॉक्टरों द्वारा किए जाने वाले अनएथिकल ट्रीटमेंट के विरोधी एवं नब्बे के दशक में देश मे पहला गुटखा विरोधी मूवमेंट शरू कर महाराष्ट्र में गुटखा बेन कराने वाले डॉ गंगवाल के इन भागीरथी और अथक प्रयासों का सार्थक नतीजा भी निकला। शिर्डी के समीप कोपरगाँव में गुरुपूर्णिमा के अवसर पर कोकमठाण स्थित जंगलीमहाराज आश्रम में आयोजित एक बड़े कार्यक्रम में डॉ गंगवाल की प्रेरणा और समझाइश से करीब एक लाख लोगों ने एक साथ मांसाहार एवं व्यसन त्याग कर शाकाहार अपनाने का सामूहिक संकल्प लिया था।हाल ही मैं डॉ गंगवाल की इस उपलब्धि पर मौके पर मौजूद चालीस सदस्यीय टीम ने उनका नाम गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स में दर्ज करते हुए उन्हें सम्मान दिया गया है। सोशल वर्क एवं मेडिकल प्रेक्टिस के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए 132 राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजे जा चुके 73 वर्षीय डॉ गंगवाल द्वारा अतिशय क्षेत्र खजुराहो के मंदिर परिसर में लगाई गई इस उपयोगी प्रदर्शनी को आचार्यश्री के दर्शन करने देश के कोने कोने से आने वाले श्रद्धालु एवं क्षेत्रीय जैनेतर समाज के लोग भी प्रतिदिन बड़े चाव से बड़ी संख्या में देख और सराह रहे हैं।
  4. 30 अक्टूबर 2018 - आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ के सान्निध्य व निर्देशन में दस प्रतिमाधारी श्री अनिल भाई खंधार मुंबई निवासी की सल्लेखना सानंद सम्पन्न हुई | गुरु चरणों में चल रही समता पूर्वक, प्रसन्नता पूर्वक सल्लेखना के अनमोल पल अत्यंत हर्ष का विषय है कि आदरणीय अनिल बाबा जी मुंबई जो १० प्रतिमा धारी है उनकी सल्लेखना गुरु चरणों में समता पूर्वक, प्रसन्नता पूर्वक चल रहीं है | जय हों जय हों जय हों sallekhana.mp4
  5. पत्र क्रमांक-१७७ ०९-०४-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर सरलता की प्रतिमूर्ति ज्ञानमूर्ति गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज के पावन चरणों में त्रिकाल कोटिकोटि नमोऽस्तु करता हूँ... हे गुरुवर! जब आपने आचार्यपद का गम्भीर जिम्मेदारानायुक्त दायित्व सौंपा तब आपके प्रिय आचार्य मेरे गुरुवर अपने आपको उस योग्य बनाने के लिए उसी क्षण से निरत हो गए। इस सम्बन्ध में दीपचंद जी छाबड़ा नांदसी ने ०८-११-२०१५ भीलवाड़ा में बताया आचार्यत्व की विशेष साधना की प्रारम्भ आचार्यपद का दायित्व आ जाने के कारण नव-नवोन्मेषी आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने अपने अंदर के आचार्यत्व को जागृत करने के लिए विशेष साधना शुरु कर दी । २२ नवम्बर को उपवास रखा और २३ नवम्बर को पारणा करके जब वापिस आये तो आहारदान देने वाले श्रावकों ने गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज को समाचार दिया कि आचार्य महाराज ने आहार में मात्र तीन चीज ली-पानी, दूध और थुली (गेहूँ का दलिया)। यह सुनकर हम सभी आश्चर्यचकित हो गए। फिर २-४ दिन बाद पता चला कि वे तो थुली लेते हैं या रोटी लेते हैं। ४ माह तक मैंने देखा कि आचार्य परमेष्ठी ने फाल्गुन शुक्ला पूर्णिमा १९-०३-१९७३ सोमवार तक यह इन्द्रियविजय रूप रसपरित्याग तप करके अपने आचार्यत्व के दायित्व को अहसास किया।" इसी प्रकार नसीराबाद के रतनलाल जी पाटनी ने सन् २०१५ भीलवाड़ा में बताया- आचार्यत्व की दृढ़ता चातुर्मास समाप्त होने के बाद आचार्य विद्यासागर जी महाराज संघ सहित विहारी रोड स्थित जैन धर्मशाला चले गए और वहाँ शीतकाल का प्रवास किया। शीतकाल के प्रवास में आचार्य विद्यासागर जी महाराज की आँखों में कुछ खराबी आयी। तब अजमेर से सर सेठ भागचंद जी सोनी जी आँखों वाले डॉक्टर को लेकर आये और आँख की जाँच करवायी। डॉक्टर साहब बोले चश्मा लगाना पड़ेगा, तो आचार्य श्री ने बड़ी दृढ़ता के साथ साफ मना कर दिया और अनुनय विनय करने के बाद भी दवा डालने के लिए भी मना कर दिया एवं डॉक्टर से पूछा-‘कोई प्राकृतिक इलाज हो तो बताएँ।' तब डॉक्टर साहब ने कहा-प्रतिदिन साफ ठण्डे जल से आँखें धोये, तो आचार्य श्री प्रतिदिन सुबह-दोपहर-शाम अपने कमण्डल के पानी से आँखें धोने लगे।" इस प्रकार आपके प्रिय आचार्य-मेरे गुरु, आचार्य परमेष्ठी के ३६ मूलगुणों को अपने जीवन में उतारने लगे। आचार्य परमेष्ठी का स्वरूप धीर-वीर-गम्भीर हुआ करता है। अतः आचार्यपद लेते ही उनमें अनायास ही आपके किये हुए संस्कार से वह धीर-वीर-गम्भीरता प्रकट हो गई। इस सम्बन्ध में श्री दीपचंद जी छाबड़ा (नांदसी) ने २६-११-२०१५ भीलवाड़ा में बताया- धीर-वीर-गम्भीर नूतन आचार्य ‘‘वर्ष १९७२ दिसम्बर माह में परमपूज्य तपस्वी मुनिराज श्री १०८ विवेकसागर जी महाराज कुचामन सिटी में वर्षायोग सम्पन्न करके दीक्षा गुरु क्षपक मुनिराज परमपूज्य श्री १०८ ज्ञानसागर जी महाराज एवं नवीन आचार्य परमेष्ठी परमपूज्य श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज के दर्शनार्थ-वंदनार्थ नसीराबाद पधारे। समाचार मिलने पर पूरी समाज ने भव्य आगवानी की तब शान्तिनाथ दिगम्बर जैन नसियाँ जी में क्षपक मुनिराज श्री ज्ञानसागर जी महाराज, नूतन आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज, तपस्वी मुनिराज श्री विवेकसागर जी मुनिराज एवं संघस्थ ऐलक सन्मतिसागर जी, क्षुल्लक सुखसागर जी, क्षुल्लक सम्भवसागर जी, क्षुल्लक विनयसागर जी, क्षुल्लक आदिसागर जी, क्षुल्लक स्वरूपानंद जी और अनेकों पाक्षिक श्रावक-श्राविकाओं तथा अनेक भव्य आत्माओं का वह सम्मेलन अति आनंददायक बन पड़ा था। तपस्वी मुनिराज विवेकसागर जी महाराज ने दीक्षा गुरु एवं नूतन आचार्य गुरु दोनों गुरुओं की भक्तिपूर्वक त्रय परिक्रमा पूर्वक नमोऽस्तु किया और कायोत्सर्ग पूर्वक सिद्ध-श्रुत-योगी-आचार्य भक्ति दी। फिर पुनः नमोऽस्तु करके द्वय गुरुओं के चरणस्पर्श किए और फिर सामने धरती पर ही बैठ गए। तब नूतन आचार्य परमेष्ठी ने उन्हें इशारा करके अपने बगल वाले पाटे पर बैठने के लिए बोला। तब मुनिराज विवेकसागर जी बोले-‘मुझे यहाँ धरती पर बैठकर आप दोनों गुरुओं को निहारने में जो आनंदानुभव हो रहा है। वह आपके पास बगल में बैठने से नहीं हो पायेगा। अतः आप कृपा करके मुझे यहीं बैठने की आज्ञा प्रदान कीजिए।' तब आचार्यश्री मंद-मंद मुस्कुराकर रह गए। उस वक्त नूतन आचार्य की आयु २६ वर्ष, क्षपक मुनिराज ज्ञानसागर जी की आयु ८२ वर्ष, तपोधन मुनि विवेकसागर जी आयु ६१ वर्ष, ऐलक सन्मतिसागर जी की आयु ८0 वर्ष, क्षुल्लक सुखसागर जी की आयु ७५ वर्ष, क्षुल्लक सम्भवसागर जी की आयु ७७ वर्ष, क्षुल्लक विनयसागर जी की आयु ६० वर्ष, क्षुल्लक आदिसागर जी की आयु ६० वर्ष के ऊपर, क्षुल्लक स्वरूपानंद जी की आयु २१ वर्ष। इन सब वयोवृद्ध साधुओं के बीच नूतन आचार्य बड़ी गम्भीर मुद्रा को धारण किए हुए ऐसे बैठे थे मानो वर्षों से आचार्य परमेष्ठी हों।'' इस तरह उनके अंदर की योग्यताओं को देखते हुए ऐसा मालूम पड़ता है कि मानो पूर्व जन्म के संस्कार जागृत हो गए हों। ऐसे नवोदित आचार्य एवं क्षपक मुनिराज के चरणों में त्रिकाल वंदन करता हूँ। आपका शिष्यानुशिष्य
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