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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

रतन लाल

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  1. जो महान् आत्मायें अपने भावों की उज्ज्वलता और तपस्या के प्रभाव से अनंतकाल के लिये मोह की कक्षा से ऊपर उठ गयी हैं, उनका स्मरण अवश्य करना चाहिए और उन्हें अपना आदर्श मानकर अपने जीवन का कल्याण करना चाहिए।
  2. सत्य रूपी वरदान को आप छोड़िए मत और इस असत्य के ऊपर अपने जीवन का बलिदान करिये मत। सत्य के सामने अपना जीवन अर्पण हो जाये, तो वह मात्र अर्पण ही नहीं, एक दिन दर्पण बन जायेगा।
  3. सच्चे देव–गुरु–शास्त्र को आदर्श बनाकर चलना चाहिए, क्योंकि कुन्दकुन्द भगवान भी जब उनको आदर्श मानकर चले हैं तो हम किस खेत की मूली हैं। क्या ज्ञान है हमारे पास ? क्या चारित्र है हमारे पास ? निश्चय से तो कुछ भी नहीं है। हम तो उनकी पग-रज होने के लिए जीवित है।
  4. जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी
  5. अनीति के व्यसन से बचिये, वित्त की होड़ को छोड़ दीजिए और वीतरागता प्राप्त करने का एक बार प्रयत्न कीजिए, जीवन में एक घड़ी भी वीतरागता के साथ जीना बहुत मायना रखता है और हजारों वर्ष तक राग-असंयम के साथ जीना कोई मायना नहीं रखता, सिंह बनकर एक दिन जीना भी श्रेष्ठ है किन्तु १०० साल तक चूहे बनकर जीने की कोई कीमत नहीं, सब कुछ छोड़ दीजिए-ख्याति, पूजा, लाभ, वित्त, वैभव, अपने आत्मवैभव की बात करिये अब।
  6. सभी प्राणी लक्ष्य को पाना चाहते हैं, अत: उन्हें यह ध्यान रखना होगा, यह प्रयास करना होगा कि वे मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान एवं मिथ्याचारित्र का पालन एवं समर्थन न कर सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान एवं सम्यक्र चारित्र की ओर बढ़ें, जो कि आत्मा का धर्म है एवं शाश्वत सुख (मोक्षसुख) को देने वाला है।
  7. आत्मा के ध्यान की प्रसिद्धि के लिए मन की एकाग्रता अनिवार्य है, मन को एकाग्र करना चाहते हो तो इष्ट तथा अनिष्ट पदार्थों में राग-द्वेष मत करो। इतना ही पर्याप्त है।
  8. मुनि महाराजों की वृत्ति ही सिंहवृत्ति कहलाती है, वह सिंह जैसे क्रूर तो नहीं होते किन्तु सिंह जैसे निभौंक जरूर होते हैं, निरीह होते हैं, पीठ-पीछे से धावा नहीं बोलते, छुपकर जीवन-यापन नहीं करते, उनका जीवन खुल्लमखुल्ला रहता है, वनराजों के पास जाकर महाराज रहते हैं, भवनों में रहने वाले वनराजों के पास नहीं ठहर सकते।
  9. धन्य है यह मोक्षमार्ग, धन्य है यह मोक्ष और धन्य हैं वे, जिन्होंने मोक्ष और मोक्षमार्ग का कथन किया।
  10. भगवान् वीतरागी हैं, वे न किसी से कुछ चाहते और न किसी को कुछ देते। अभी तक वीतरागता का रहस्य आपकी समझ में नहीं आ रहा। जिसने वीतरागता के रहस्य को समझ लिया वही वास्तविक जैन है
  11. मोक्ष-मार्ग में यदि किसी का हाथ है तो मन का सबसे ज्यादा, वचन का उससे कम, हाथ और तन का तो केवल मन और वचन के साथ लग जाना इतना ही काम है। धन मोक्ष-मार्ग में रोड़ा अटकाने वाला है, उससे मोक्ष-मार्ग की प्राप्ति सम्भव नहीं।
  12. भोगोपभोग की लालसा को घर में भी घटाया जा सकता है। पर, घटाया तब जा सकता है जब उसका लक्ष्य बनाया जाये, क्योंकि लक्ष्य के बिना किसी भी कार्य में सफल होना सम्भव नहीं।
  13. बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलिया कोय जो दिल खोजा आपना मुझसा बुरा न कोय
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