Jump to content
नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
अंतरराष्ट्रीय मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता 1 से 5 जून 2024 ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

संयम स्वर्ण महोत्सव

Administrators
  • Posts

    22,360
  • Joined

  • Last visited

  • Days Won

    824

 Content Type 

Forums

Gallery

Downloads

आलेख - Articles

आचार्य श्री विद्यासागर दिगंबर जैन पाठशाला

विचार सूत्र

प्रवचन -आचार्य विद्यासागर जी

भावांजलि - आचार्य विद्यासागर जी

गुरु प्रसंग

मूकमाटी -The Silent Earth

हिन्दी काव्य

आचार्यश्री विद्यासागर पत्राचार पाठ्यक्रम

विशेष पुस्तकें

संयम कीर्ति स्तम्भ

संयम स्वर्ण महोत्सव प्रतियोगिता

ग्रन्थ पद्यानुवाद

विद्या वाणी संकलन - आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के प्रवचन

आचार्य श्री जी की पसंदीदा पुस्तकें

Blogs

Events

Profiles

ऑडियो

Store

Videos Directory

Blog Entries posted by संयम स्वर्ण महोत्सव

  1. संयम स्वर्ण महोत्सव
    आज्ञा का देना,
    आज्ञा पालन से है,
    कठिनतम।
     
    भावार्थ -आज्ञापालन की अपेक्षा आज्ञा देना ज्यादा कठिनतम, गुरुत्तम और विशिष्ट कार्य हैं क्योंकि आज्ञा देने वाला क्रिया तो कुछ नहीं करता लेकिन इस क्रिया के परिणाम का उत्तरदायी होता है । उस क्रिया के फलस्वरूप प्राप्त होने वाले हानि-लाभ और जय-पराजय से उसका सीधा सम्बन्ध होता है। कभी-कभी आज्ञा देने वाले के सम्पूर्ण जीवन में उसका परिणाम परिलक्षित होता है । अत: आज्ञा देने की योग्यता कुछ विरले ही व्यक्तियों में होती है । 
    आज्ञापालन करने वाला आज्ञा देने वाले के आदेश के अनुसार कार्य मात्र करता है । वह उसके परिणाम का उत्तरदायी नहीं होता । अतः वह हानि-लाभ आदि में निश्चिन्त रहता है | व्याकरण का एक सिद्धान्त है कि उपदेश मित्रवत्, आदेश शत्रुवत् । आदेश या आज्ञा देने के उपरान्त सामने वाला कष्ट का अनुभव करता है क्योंकि उसके मान पर प्रहार होता सा लगता है किन्तु स्वयं दूसरों की आज्ञा का पालन करना सरल कार्य है क्योंकि उसमें प्रसन्नता का अनुभव होता है । अतः आज्ञापालन करने की अपेक्षा आज्ञा देना कठिनतम कार्य है ।
    - आर्यिका अकंपमति जी 
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  2. संयम स्वर्ण महोत्सव
    ऐतिहासिक  मंगल कलश स्थापना से चातुर्मास शुरू
    सम्यकज्ञान, सम्यक चारित्र और दान आपके साथ रहेगा - आचार्य विद्यासागर
    छतरपुर । आध्यात्म एवं पर्यटन नगरी खजुराहो में आचार्य विद्यासागर जी महाराज का आज से चातुर्मास प्रारंभ हुआ। कलशस्थापना समारोह में  देश-विदेश से भारी संख्या में उनके अनुयायी यों  ने पर्यटन नगरी खजुराहो पहुंचकर उनका आर्शीवाद लिया। जिला कलेक्टर रमेश भंडारी और उनकी पत्नी ने भी इस मौके पर पहुंचकर आचार्य विद्यासागर जी के चरण पखारे और आर्शीवाद प्राप्त किया। इस मौके पर कलशस्थापना भी की गयी। आज के इस कार्यक्रम में भारी संख्या में जैन समाज सहित अन्य धर्मो के लोग भी शामिल हुए। कलश स्थापना के इस कार्यक्रम का संचालन और निर्देशन बा.ब्र. सुनील भैया अनन्तपुरा वालों द्वारा किया गया। 
    रविवार को दोपहर २ बजे से से तीन प्रकार के कलशों के माध्यम से समाज के श्रावकगण   चातुर्मास की कलश स्थापना हर्सोल्लास के साथ की गयी। प्रथम कलश यानि सबसे बड़े 9 कलश स्थापित किये गये ,मध्यम 27 कलश और सबसे छोटे 54 कलश स्थापित किये किये। ये सभी कलश आचार्य श्री के मुखारविंद से विधिविधान पूर्वक मंत्रो के उच्चा रण से स्थापित हुए,जिसे श्रावकगण बोली लेकर स्थापित किया गया। ये सभी कलश विश्व शांति और विश्व कल्याण के उद्देश्य और  वर्षायोग के निर्विघ्न सम्पन्न होने   की कामना से स्थापित किये जाते है। प्रथम कलश का सौभाग्य तरूण जी काला मुम्बई 2 करोड़ 7 लाख, द्वितीय कलश डॉ. सुभाषशाह जैन मुम्बई 1 करोड़ 51 लाख, तृतीय कलश का सौभाग्य हुकुमचंद्रजी काका कोटा 1करोड़ 17 लाख, चतुर्थ कलश का सौभाग्य उत्तमचंद्र जैन कटनी कोयला वाले 1 करोड़ 8 लाख, पंचम कलश का सौभाग्य प्रेमीजैन सतना वाले 1 करोड़ 31 लाख, छठवां कलश का सौभागय श्री प्रभातजी जैन मुम्बई पारस चैनल करोड़  8 लाख, सातवां कलश ऋषभ शाह सूरत 1 करोड़ 8 लाख, आठवां कलश  पं. सुभाष जैन भोपाल 54 लाख एवं पुष्पा जैन बैनाडा आगरा वाले एवं नौवां कलश का सौभाग्य अशोक पाटनी 2 करोड़ 52 लाख को प्राप्त हुआ। 
    स्थानीय विधायक विक्रम सिंह नाती राजा और नगर परिषद् अध्यक्षा कविता राजे बुंदेला, इंदौर विधायक रमेश मेंदोला  ने भी कलश स्थापना समारोह में आचार्य श्री को श्रीफल भेंटकर आशीर्वाद प्राप्त किया। 
    आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने अपने सारगर्भित उद्बोधन में कहा कि आप सब यहां सम्यकज्ञान, सम्यक चारित्र और दान देकर अगले भव के लिए अपने साथ ले जाने वाले है। आचार्यश्री ने कहा कि लगभग 38 वर्ष पूर्व मै खजुराहो पंचकल्याणक के लिए आया था। यहां कि कमेटी बार-बार खजुराहो के लिए आग्रह करती रही। मैं भी इस बार चलते-चलते यहां पहुंच गया। आचार्यश्री ने कहा कि यहां के राजा छत्रसाल का कुण्डलपुर के बड़े बाबा से गहन संबंध रहा है। राजा छत्रसाल ने बड़े बाबा को जब छत्र चढ़ाया उसके साथ ही उन्हें विजय प्राप्त हुयी। महाराजश्री ने कहा कि व्यक्ति को धन अपने पास श्वास जैसा रखना चाहिए ताजी ग्रहण करें और पुरानी निकालते जाए, सम्पत्ति हाथ का मैल है इसे साफ करते रहें। आचार्यश्री ने कहा कि आप सबका उत्साह सराहनीय है। खजुराहो क्षेत्र के विकास के लिए  अपना योगदान देते रहें। पूर्व में खजुराहो क्षेत्र कमेटी सहित जैन समाज छतरपुर, पन्ना,सतना, टीकमगढ़ सहित एवं बाहर से पधारे अतिथियों ने आचार्यश्री को श्रीफल भेंट किया।
  3. संयम स्वर्ण महोत्सव
    आचार्य श्री के संघस्थ ब्रह्मचारी सुनील भैया ने बताया खजुराहो में आचार्य श्री के चरण पढ़ने के पश्चात से ही प्रतिदिन विदेशी सैलानियों आचार्य श्री के दर्शनों का लाभ ले रहे हैं। आज स्पेन और इटली से आए सैलानियों ने आचार्य श्री से आशीर्वाद ग्रहण किया और सप्ताह में एक दिन मांसाहार न खाने का संकल्प लिया। आचार्य श्री ने उन्हें आशीर्वाद प्रदान किया। साथ ही नार्वे से आये पर्यटक ने 5 साल तक शाकाहारी रहने का आचार्य श्री के समक्ष संकल्प लिया। इसके अलावा चीन, कोरिया, अर्जेंटीना, स्पेन, इटली मैक्सिको से आए 75 सैलानी सप्ताह में एक दिन मांस ना खाने का संकल्प ले चुके हैं । खजुराहो अंतरराष्ट्रीय पर्यटक स्थल है प्रतिदिन विदेशी लोग आचार्य श्री की चर्या के बारे में सुनकर आश्चर्यचकित रह जाते हैं। दिन में एक बार आहार और पानी लेना, नंगे पैर पद बिहार करना ,शक्कर नमक हरी सब्जियां आदि आहार में नहीं लेना आदि चर्या को सुनकर विदेशी सैलानी दांतो तले उंगली दबा लेते हैं और भारतीय संस्कृति और जैन धर्म के इतिहास के प्रति जागरुक हो रहे हैं|
     
  4. संयम स्वर्ण महोत्सव
    मानव जीवन इस भूतल पर उत्तम सब सुखदाता है।
    जिसको अपनाने से नर से नारायण हो पाता है।
    गिरि में रत्न तक्र में मक्खन ताराओं में चन्द्र रहे।
    वैसे ही यह नर जीवन भी जन्म जात में दुर्लभ है ॥१॥
     
    फिर भी इस शरीरधारी ने भूरि-भूरि नर तन पाया।
    इसी तरह से महावीर के शासन में है बतलाया॥
    किन्तु नहीं इसके जीवन में कुछ भी मानवता आई।
    प्रत्युत वत्सलता के पहले खुदगर्जी दिल को भाई ॥२॥
     
    हमको लडडू हों पर को फिर चाहे रोटी भी न मिले।
    पड़ौसी का घर जलकर भी मेरा तिनका भी न हिले॥
    हम सोवें पलंग पर वह फिर पराल पर भी क्यों सोवे।
    हमको साल दुसाले हों, उसको चिथड़ा भी क्यों होवे ॥३॥
     
    मेरी मरहम पट्टी में उसकी चमड़ी भी आ जावे।
    रहूँ सुखी मैं फिर चाहे वह कितना क्यों न दुःख पावे॥
    औरों का हो नाश हमारे पास यथेष्ट पसारा से।
    अमन चैन हो जावे ऐसी ऐसी विचार धारा से ॥४॥
     
    बनना तो था फूल किन्तु यह हुआ शूल जनता भर का।
    खून चूसने वाला होकर घृणा पात्र यों दर दर का॥
    होनी तो थी महक सभी के दिल को खुश करने वाली।
    हुई नुकीली चाल किन्तु हो पद पद पर चुभने वाली ॥५॥
     
    होना तो था हार हृदय का कोमलता अपना करके।
    कठोरता से रुला ठोकरों में ठकराया जा करके॥
    ऊपर से नर होकर भी दिल से राक्षसता अपनाई।
    अपनी मूँछ मरोड़ दूसरों पर निष्ठुरता दिखलाई ॥६॥
     
    लोगों ने इसलिए नाम लेने को भी खोटा माना।
    जिसके दर्शन हो जाने से रोटी में टोटा जाना॥
    कौन काम का इस भूतल पर ऐसे जीवन का पाना।
    जीवन हो तो ऐसा जनता, का मन मोहन हो जाना ॥७॥
     
    मानवता है यही किन्तु है कठिन इसे अपना लेना,
    जहाँ पसीना बहे अन्य का अपना खून बहा देना॥
    आप कष्ट में पड़कर भी साथी के कष्टों को खोवे।
    कहीं बुराई में फँसते को सत्पथ का दर्शक होवे ॥८॥
     
    पहले उसे खिला करके अपने खाने की बात करे।
    उचित बात के कहने में फिर नहीं किसी से कभी डरे॥
    कहीं किसी के हकूक पर तो कभी नहीं अधिकार करे।
    अपने हक में से भी थोड़ा औरों का उपकार करे ॥९॥
     
    रावण सा राजा होने को नहीं कभी भी याद करे।
    रामचन्द्र के जीवन का तन मन से पुनरुद्धार करे॥
    जिसके संयोग में सभी के दिल को सुख साता होवे।
    वियोग में दृगजल से जनता भूरि भूरि निज उर धोवे ॥१०॥
     
    पहले खूब विचार सोचकर किसी बात को अपनावे।
    तब सुदृढ़ाध्यवसान सहित फिर अपने पथ पर जम जावे॥
    घोर परीषह आने पर भी फिर उस पर से नहीं चिगे।
    कल्पकाल के वायुवेग से,भी क्या कहो सुमेरु डिगे ॥११॥
     
    विपत्ति को सम्पत्ति मूल कह कर उसमें नहि घबरावे।
    पा सम्पत्ति मग्न हो उसमें अपने को न भूल जावे॥
    नहीं दूसरों के दोषों पर दृष्टि जरा भी फैलावे।
    बन कर हंस समान विवेकी गुण का गाहक कहलावे॥१२॥
     
    कृतज्ञता का भाव हृदय अपने में सदा उकीर धरे।
    तृण के बदले पय देने वाली गैय्या को याद करे॥
    गुरुवों से आशिर्लेकर छोटों को उर से लगा चले।
    भरसक दीनों के दुःखों को हरने से नहि कभी टले॥ १३॥
     
    नहीं पराया इस जीवन में जीने के उजियारे हैं।
    सभी एक से एक चमकते हुये गमन के तारे हैं।
    मृदु प्रेम पीयूष पान बस एक भाव में बहता हो।
    वह समाज का समाज उसका, यों हो करके रहता हो॥ १४॥
  5. संयम स्वर्ण महोत्सव
    सभी को जय जिनेन्द्र,
    हमारे पास बहुत फ़ोन आये - की आपने हमारा उत्तर पढ़ा ही नहीं रहे  |
    हम बिना मेसेज खलो भी उत्तर देख सकते हैं  -  इस चित्र से आपको समझाने का प्रयास करेंगे  हम उत्तर को ऊपर search करते हैं
    सभी के नंबर्स के नाम आ१  A1   A2   ऐसे सेव कर रह हैं - हमे पता नहीं होता की यह किसका नंबर हैं 
     
    फिर हम Random Selection Lucky draw से चयन करते हैं - ऐसे कई तरीके हम इस्तमाल कर रहे हैं 
    सिर्क एक उदाहरण के लिए |
     
     

     
     
    कल येआ परसों से हम सीधे वेबसाइट पे प्रश्न पूछेंगे - आपका उत्तर सही येआ गलत आपको उसी समय पता चल जायेगा 
     
     
     
  6. संयम स्वर्ण महोत्सव
    सत्साहित्य का प्रभाव
     
    सुना जाता है कि महात्मा गांधी अपनी बैरिस्ट्री की दशा में एक रोज रेल से मुसाफिरी कर रहे थे। सफर पूरे बारह घण्टों का था। उनके एक अंग्रेज मित्र ने उन्हें एक पुस्तक देते हुए कहा कि आप अपने इस सफर को इस पुस्तक के पढ़ने से सफल कीजियेगा। उसको गांधीजी ने शुरू से आखिरी तक बड़े ध्यान से पढ़ा। उस पुस्तक को पढ़ने से गांधीजी के चित्त पर ऐसा असर हुआ कि उन्होंने अपनी बैरिस्ट्री छोड़कर उसी समय से सादा जीवन बिताना प्रारम्भ कर दिया।
     
    आजकल पुस्तक पढ़ने का प्रचार आम जनता में भी बड़े वेग से बढ़ रहा है और वह बुरा भी नहीं है, परन्तु प्रत्येक व्यक्ति को पढ़ने के लिये पुस्तक ऐसी चुननी चाहिये जिसमें कि मानवता का झरना बह रहा हो। जिसके प्रत्येक वाक्यों में निरामिष-भोजिता, परोपकार, सेवा भाव आदि सदगुणों का पुट लगा हुआ हो। विलासिला, अविवेक, डरपोकपन आदि दुर्गुणों का निर्मूलन करना ही जिसका ध्येय हो। फिर चाहे वह किसी की भी लिखी हुई हो और किसी भी भाषा में हो उसके पढ़ने में कोई हानि नहीं। कुछ लोग समझते हैं कि अपनी साम्प्रदायिक पुस्तकों के सिवाय दूसरी पुस्तकों का पढ़ना सर्वथा बुरी बात है, परन्तु यह उनका समझना ठीक नहीं। क्योंकि समझदार के लिये तो बुराइयों से बचना एवं भलाई की ओर बढ़ना यह एक ही सम्प्रदाय होना चाहिये।
     
    अत: जिन पुस्तकों के पढ़ने से हमारे मन पर बुरा असर पड़ता हो, जिनमें अश्लील, उद्दण्डतापूर्ण अहंकारदि दुर्गुणों को अंकुरित करने वाली बातें अंकित हों ऐसी पुस्तकों से अवश्य दूर रहना चाहिये। पुस्तकों से ही नहीं बल्कि ऐसे वातावरण से भी हर समय बचते ही रहना चाहिये क्योंकि मनुष्य के हृदय में भले और बुरे दोनों ही तरह के संस्कार हुआ करते हैं जो कि समय और कारण को पाकर उदित हो जाया करते हैं। व्यापार करते समय मनुष्य का मन इतना कठोर हो जाता है कि वह किसी गरीब को भी एक पैसे की रियायत नहीं करता, परन्तु भोजन करने के समय में कोई भूखा, अपाहिज आ खड़ा हो तो उसे झट ही दो रोटी दे देता है। मतलब यही कि उस उस स्थान का वातावरण भी उस-उस प्रकार का होता है,
     
    अतः मनुष्य का मन भी वहां पर परिणमन कर जाया करता है। आप जब सिनेमा हॉल में जावेंगे तो आपका दिल वहां की चहल-पहल देखने में लालायित होगा परन्तु जब आप चलकर श्री भगवान् के मन्दिरजी में जावेंगे तो वहां यथाशक्ति नमस्कार मंत्र का जाप देना और भजन करना जैसे कामों में आपका मन प्रवृत होगा। हाँ, यह बात दूसरी है कि अच्छे वातावरण में रहने का मौका इस दुनियादारी के मनुष्य को बहुत कम मिलता है, इसका अधिकांश समय तो बुरे वातावरण में ही बीतता है। अत: अच्छे विचार प्रयास करने पर भी कठिनता से प्राप्त होते हैं और प्राप्त होकर भी बहुत कम समय तक ही ठहर पाते हैं। किन्तु बुरे विचार तो अनायास ही आ जाया करते हैं तथा देर तक टिकाऊ होते हैं। अतः बुरे विचारों से बचने के लिए और अच्छे विचारों को बनाये रखने के लिए सत्साहित्य का अवलोकन, चिन्तन अवश्य करते रहना चाहिए।
  7. संयम स्वर्ण महोत्सव
    मुनि श्री विद्यासागरजी महाराज (शिष्य समाधिस्थ आचार्य श्री सन्मति सागर जी) के मन में  आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महामुनिराज के दर्शन की इतनी तीव्र उत्कंठा थी कि उन्होंने मंडला से डिंडोरी तक का 105 km का विहार 2 दिन में तय कर लिया।
     

  8. संयम स्वर्ण महोत्सव
    डिंडोरी (म.प्र.)- आप लोग भिन्न भिन्न प्रकार के हार गले में पहनते हैं और यदि नकली हो  तो नहीं पहनेगे।लेकिन आज नकली आभूषण भी पहने जा रहे हैं। नकली आभूषणो,फटे वस्त्रो,का प्रभाव व्यक्ति पर पङता है ज्योतिष शास्त्रों में इसका स्पष्ट उल्लेख है,यहाँ तक की जिन फटे वस्त्रो को भिखारी भी नहीं पहनता उन जींस आदि वस्त्रों को फैशन के नाम पर बच्चे पहन लेते है इसका दुष्प्रभाव देखने में आ रहा है। उक्त आशय के उदगार डिडोरी में धर्म सभा को संबोधित करते हुए संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज ने कहे।आचार्य श्री ने कहा कि सोना  खाया भी जाता है,पहले रहीस लोग सोना खाते थे।क्या खाना ?कैसे खाना ? इसका प्रभाव पडता है।

    हमारे पास एक विद्यार्थी आया वह फटा हुआ जींस पहने था वह भी एक एक जगह से नहीं कई जगह से फटा था हमने उससे समझाया तो वह मान गया। वस्तुतः शिक्षा के साथ वस्त्र,आभूषण भी हमारे संस्कारों को दिखाते हैं।आप को क्या खाना है ?, क्या पहनना हैं ? ये आपके संस्कृति और संस्कारों दिखाने वाले हैं इसीलिए माता पिता को इस ओर ध्यान देना चाहिए।आज हथकरघा में शुद्ध वस्त्रो का उत्पादन हो रहा है ये वस्त्र शरीर के गुण धर्म के अनुरूप तो है ही अन्य लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं और इनका उत्पादन पुरी तरह आहिंक रूप से किया जा रहा है।

    पूज्य आचार्य भगवंत ने हथकरघा के लिए आचार्य श्री ने श्रमदान का नाम दिया है और इसके माध्यम से सौकङो लोगो को अत्मनिर्भर होने का अवसर मिला रहा है।हम सब शुद्ध बस्त्रों को अपनाते हुए दुसरे लोगों को भी प्रेरित करे।
  9. संयम स्वर्ण महोत्सव
    ज्ञान प्राण है,
    संयत हो त्राण है,
    अन्यथा श्वान|
     
    भावार्थ - ज्ञान जीव का त्रैकालिक लक्षण है। कर्म योग से सांसारिक दशा में वह ज्ञान सम्यक् और मिथ्या, दोनों प्रकार का हो सकता है सम्यग्ज्ञान भी व्रती और अव्रती के भेद से दो प्रकार का होता है। आचार्य भगवन् ने यहाँ संयमी जीव के ज्ञान के विषय में कहा है कि संयमी का सम्यग्ज्ञान संसार-सागर से पार लगा देता है लेकिन मिथ्यादृष्टि का ज्ञान श्वान अर्थात् कुत्ते के समान पर पदार्थों का रसास्वाद लेते हुए व्यर्थ हो जाता है और जीव को चौरासी लाख योनियों में भटकता रहता है । 
    - आर्यिका अकंपमति जी 
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  10. संयम स्वर्ण महोत्सव
    गुणालय में,
    एकाध दोष कभी,
    तिल सा लगे।
     
    भावार्थ-तिल बेदाग होता है। गोरा मुख है और एक गाल पर काला तिल है तो वह सुन्दर नहीं लगता । उसीप्रकार गुणों का खजाना भरा है परन्तु द्वेष भाव विद्यमान है तो वह सर्वांग सुन्दर शरीर में तिल के समान है। श्रामण्य में थोड़ा-सा दोष क्षम्य है लेकिन भूमिका के अनुरूप उसका भी उन्मूलन होना चाहिए । 
    - आर्यिका अकंपमति जी 
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  11. संयम स्वर्ण महोत्सव
    पूर्ण पथ लो,
    पाप को पीठ दे दो,
    वृत्ति सुखी हो।
     
    भावार्थ- आचार्य महाराज सुखी होने का सहज उपाय बताते हुए कहते हैं कि संसारी प्राणियों के हिंसा आदि पाँच पापों का त्याग करके सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र रूप रत्नत्रय अर्थात् मोक्ष के मार्ग का अवलम्बन लो, तभी शाश्वत सुख प्राप्त कर सकोगे । 
    - आर्यिका अकंपमति जी 
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  12. संयम स्वर्ण महोत्सव
    भरा घट भी,
    खाली सा जल में सो,
    हवा से बचों।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  13. संयम स्वर्ण महोत्सव
    दीप अनेक,
    प्रकाश में प्रकाश,
    एक मेक सा।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  14. संयम स्वर्ण महोत्सव
    सिद्ध घृत से,
    महके, बिना गन्ध,
    दुग्ध से हम।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  15. संयम स्वर्ण महोत्सव
    फूल खिला पै,
    गंध न आ रही सो,
    काग़ज़ का है|
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  16. संयम स्वर्ण महोत्सव
    पश्चिम से पूर्व की और ध्वजा का जाना एक शुभ संकेत हैं: आचार्य श्री विद्यासागरजी मांगलिक कार्यों के शुभारंभ में ध्वजारोहण का यह अवसर अपूर्व हैं अपूर्व का अर्थ हैं जो पहले कभी न हुआ हो उपरोक्त उदगार आचार्य भगवन् श्री विद्यासागरजी महाराज ने पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के अवसर पर रायपुर लाभान्डी में प्रातः कालीन प्रवचन सभा में व्यक्त किये! उन्होंने कहा कि समवशरण की रचना के पूर्व ध्वजारोहण होंना और वह पश्चिम दिशा से पूर्व की ओर जाना एक शुभ संकेत हैं का यह अवसर अपूर्व हें! मांगलिक कार्यों के प्रारंभ में ध्वजारोहण करते हें हमारेजीवन में कव यह अपूर्व अवसर कब आएगा जब हम भी सिद्ध अवस्था को प्राप्त हों! आचार्य श्री ने कहा कि पंचकल्याणक प्रतिष्ठा के रूप में जो लोग उपस्थित हैं! जिसका आनंद आप लोगों के लिये भी अपूर्व अवसर हें! मुक्ति अवस्था को हम मति ज्ञान और श्रुति ज्ञान के माध्यम से आनंद का अनुभव करेंगे! आचार्य श्री ने कहा कि इस अवसर पर कषायों को कम करिये! एक दम समाप्त नहीं कर सकते तो धीरे धीरे कम करिये ! दयोदय महासंघ के प्रवक्ता अविनाश जैन विदिशा वालों ने वताया प्रातः काल की शुभ मंगलवेला में श्री जी की शोभायात्रा निकाली गई एवं आचार्य श्री के संघ सानिध्य में मुख्य पांनडाल के द्वार पर मंत्रोचारण के साथ प्रतिष्ठाचार्य श्री जय कुमार शास्त्री भोपाल एवं सहप्रतिप्ठाचार्य राजैश जैन भोपाल वाल व़ श्री सुनील भैया जी अनंतपुरा आदि ने मंगल क्रियाओं के माध्यम से ध्वजारोहण कार्यक्रम संपन्न कराया ! तत्पश्चात श्री जी का अभिषेक एवं शांतीधारा उपरांत पंचकल्याणक समिती के प्रमुख पात्रों ने मुख्य वेदी  पर विराजमान किया! तत्पश्चात आचार्य श्री की मंगल पूजन के उपरांत आहार चर्या संपन्न हुई आज का यह शुभ अवसर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के पात्र धन कुवेर श्री रतनलाल जी संजय कुमार जी वड़जात्या परिवार को मिला समिती की ओर से उनके पुण्य की सराहना कर अनुमोदना की गई! आज के इस शुभ अवसर पर वडी़ संख्या में वाहर से अतिथीगण पधारे!
  17. संयम स्वर्ण महोत्सव
    सत्य, सत्य है,
    असत्य, असत्य तो,
    किसे क्यों ढाँकू…?
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  18. संयम स्वर्ण महोत्सव
    निवली गांव के लोगों ने संतशिरोमणी आ.विद्यासागरजी महाराज के चरणो का लिया दर्शन निवली गांव के लोगों ने आचार्यश्री से मराठी मे बात की हमे नवकार मंत्र भी नही आता था पुजा\अभिषेक के बारे मे कुछ जादा ज्ञान नही था |  प.पू.अक्षयसागरजी महाराज का हमारे गांव मे विहार हुआ तो हमें धर्मज्ञान मिला सब मुनिश्री का 11 दिन का वास्तव्य मिला तो महाराजजी ने पुरे समाज को  संस्कारीत तो किया ही अजैन लोगों को भी प्रेरीत किया है ऐसा मराठी मे बोला और निवली वालों ने आचार्यश्री से बिनती की की हे गुरुवर हमारे निवली मे मुनिश्री अक्षयसागरजी का चौमासा होअशिर्वाद दो आचार्यश्री हस कर बोले नमोकार मंत्राचा जाप करा  मराठी मे कहने लगे तो सभी संघ के महाराजजी और वंहा के श्रावक के चेहरे के भाव देखकर निवली वाले  तो खुद के आनंदअश्रु रोक ही नही सके निवली मे निर्माण होने वाला भ.1008 अदिनाथ जिन मंदिर का प्लैन भी आचार्यश्री को दिखाया आचार्यश्री प्लैन देख के मराठी मे बोले 
    चांगले मंदिर बांधा आशिर्वाद बस निवली वाले तो बहोत ही उल्लासित हुए है साक्षात भगवन के जो दर्शन किए ....

    ईसके साथ मुरुड हथकरघा प्रसिक्षक राहुल जैन ने मुरुड हथकरघा केंद्र के बारे मे पुरी जानकारी आचार्यश्री को दे दी जैन महिलाये ए प्रक्षिशण ले रही है और केंद्र मे महिलाए द्वारा तयार कपडा शॉल्स, टावेल्स दिखाया तो आचार्यश्री को बहोत हर्ष हुआ आचार्यश्री बोले.... समाज के बेरोजगार महिला युवकों ये प्रशिक्षण दो... जो लोग कपडा बना रहे है उनको आनंद आ रहा की नही.... जादा से जादा लोगों को प्रशिक्षण देना है...  सभी यह काम कर रही महीलाओं को दो बार आशिर्वाद भी दिया |
     
    जय हो........निवली वालो की भावना जल्द से जल्द  पुरी  हो हमारी  यही भावना 
     
    जयजिनेंद्र
    भिलई छ.ग.आज ता.18 जनवरी
    आज दुपहर 2 बजे  निवली गांव जि.लातुर (महाराष्ट्र) 
    सुचना प्रदाता - बा.ब्र.जयवर्मा भैय्याजी
    शब्दांकन - संतोष बा.पांगळ मुरुड
  19. संयम स्वर्ण महोत्सव
    चंद्रगिरी, डोंगरगढ़
    राहुल देव जी के साथ परम पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज की हुई ४५ मिनट की गहन चर्चा, भाषा और भारत पर हुआ गंभीर विमर्श
     
    डोंगरगढ़ में विराजमान आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज से वरिष्ठ पत्रकार श्री राहुलदेव की बातचीत के मुख्य अंश
     
     
     
     
     
     
     
     
     
  20. संयम स्वर्ण महोत्सव
    कार्यक्रम की तैयारियों में जुटी जैन समाज गुरुदेव आचार्य श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज के चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित करने हेतु तन मन धन समर्पण के भाव से पिछले चार महीनों से अनवरत जुटी हुई थी, प्रतिभास्थली से पधारने वाली अपनी बेटियों और बालब्रम्हचारी बहनों के लिये पलक पांवड़े बिछाकर बैठी थी। और वह दिन भी आ गया दिनांक ९-१२-२०१७ को ढेर सारी बेटियां हमारी ममता भरी झोली को स्नेह से भरने आ गईं, धार्मिक, अनुशासित, समर्पित, कुशल, अद्भुत छात्राएँ। धन्य हो गयी मुंबई धरा तपस्वी बहनों को मुंबई में पाकर।   दिन आ गया वह जब हमें निहारना था कुशल कारीगर बहनों के मूर्त कला-प्रस्तुति को प्रदर्शित करने का और सुनहरे पलों में सार्थकता भरने का कार्य को गरिमा प्रदान करने हेतु विशिष्ट अतिथि के रूप में माननीय न्यायमूर्ति श्री कमल किशोर जी तातेड़, न्यायाधीश मुंबई उच्च न्यायालय, माननीय श्री कृष्ण प्रकाश जी, महाराष्ट्र पुलिस महानिरीक्षक, श्वेताम्बर जैनाचार्य पूज्य डॉ श्री लोकेश मुनि जी, माननीय संजय घोड़ावत जी, न्यायमूर्त श्री केयू चांदीवाल जी पूर्व न्यायाधीश मुंबई उच्च न्यायालय, माननीय श्री रामनिवास जी, पूर्व पुलिस महानिदेशक छत्तीसगढ़ राज्य, श्री राहुल कोठारी भारतीय जनता युवा मोर्चा, राष्ट्रीय संयम स्वर्ण महोत्सव समिति के मुख्य कार्यकारी श्री प्रबोध जैन कार्यक्रम की शोभा बढ़ा रहे थे।  कार्यक्रम का शुभारंभ विद्यासागर विद्यालय के नन्हे बच्चों द्वारा किये गये मंगलघोष द्वारा हुआ, गुरुदेव आचार्य श्री १०८ शांतिसागर जी महाराज जी, गुरुदेव आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज जी, गुरुदेव आचार्य श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज के श्री चरणों में दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का प्रारंभ हुआ।   कार्यक्रम की श्रंखला में भक्ति नृत्य,सितार तबला वादन, गुरु विद्यासागर जी महाराज के अनछुए पहलुओं को चित्रित करते हुये रेत के रंगों में मंत्रमुग्धित कला मनोहारी थी।    मुंबई से ख़ुशी जैन और प्रशा जैन ने श्री आदिनाथ स्तुति नृत्य और गुरुभक्ति नृत्य के द्वारा सबको मोहित किया। और प्रारंभ हुआ वह समय जिसने मंत्रमुग्ध कर दिया मुंबई को ठहर सी गई जिंदगी उन २ घंटों के लिये, प्रतिभास्थली की बेटियों के द्वारा छाया नृत्य जिसमें गुरुदेव की प्रेरणाओं के दर्शन हुये, तो मूक अभिव्यक्ति ने गायों की दशा चित्रण ने अश्रुपूरित कर दिया, छोटे छोटे सुंदर नृत्य, आज 100 वर्ष बाद के वर्ष २११७ के भारत की परिकल्पना के वर्णन द्वारा सबको हंसा हंसा कर हम गलत दिशा में जा रहे इस बोध का परिचय दिया, तो भारत के स्वर्णिम युग ने पुन: विचार करने पर विवश कर दिया, योग का परिचय भी जब दिया तो तालियों की गड़गड़ाहट से सभागार गुंजायमान था, अंतिम शास्त्रीय नृत्य की गुरुवर भक्ति अतुलनीय रही, खचाखच भरे सभागार में दर्शक अपलक कार्यक्रम का आनंद लेकर आत्मसात करते रहे।   बिटिया मोही सेठी, और प्रज्ञा जैन तो प्रतिभास्थली में पढ़कर सीए की उत्कृष्ट परीक्षा में सफलता हेतु समाज की गौरव इन बेटियों को सम्मानित किया।   मुंबई के दिगंबर जैन समाज ने कृतज्ञता ज्ञापित की ब्रम्हचारिणी बहनों के प्रति| जबलपुर मप्र, डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ और रामटेक महाराष्ट्र से 271 बालिकाएँ आई थीं और उन्होंने  प्रतिभास्थली ज्ञानोदय विद्यापीठ की उत्कृष्ट शिक्षा प्रणाली का परिचय अपनी प्रतिभा के बल पर दे ।   प्रस्तुति: श्रीमती विधि प्रवीण जैन  
  21. संयम स्वर्ण महोत्सव
    मुझे आज भी वो दृश्य याद है जब 1983 में आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज कलकत्ता आये थे और कलकत्ता प्रवेश से पूर्व बाली मंदिर में ठहरे थे । मैं सुबह 4 बजे गुरुदेव का दर्शन करने तथा उनके साथ विहार करने के उद्येश्य से गया था । आचार्य श्री नवम्बर महीने की सर्दी में खुले में बैठकर सामायिक / ध्यान कर रहे थे । सारा शरीर मच्छरों से ढका था । मैं टकटकी लगाकर उन्हें देखता रहा । आँखों पर, कानों में, नाक में, हाथों पर, हाथों की अंगुलियों पर, पूरे पैरों पर मोटे मोटे मच्छर जमा हो रखे थे । आचार्य श्री दो घंटे से भी अधिक उसी अवस्था में बैठे थे । सामायिक / ध्यान से उठे तो सारे शरीर पर मच्छरों के काटे हुए उभरे हुए लाल निशान बन गये थे । मेरी आँखों से झर झर आंसू गिर रहे थे पर मैं कुछ नहीं कर सकता था । आस पास आने वाले व्यक्तियों को इशारे से मौन रहने का निवेदन करता रहता था । 

    मैंने आचार्यश्री को श्रीफल चढ़ाकर नमोस्तु किया और मच्छरों के काटे हुए निशानों की ओर इशारा किया । आचार्यश्री कुछ नहीं बोले, बस मुस्करा दिये और कहा - कुछ नहीं सब ठीक है । और मैं और भी आश्चर्य चकित तब हुआ जब मैंने शाम को बेलगछिया मन्दिर जी में जाकर आचार्य श्री के दर्शन किये तो देखा कि मच्छर काटने का एक भी निशान शरीर पर नहीं था । पूरा शरीर बिल्कुल सामान्य था । यह कहलाती है साधना ! तपस्या और तपस्या का फल ! उपसर्ग सहना ! परिषह सहना ! 
    धन्य हैं ऐसे सच्चे गुरु !!
  22. संयम स्वर्ण महोत्सव
    साधना क्या है ?,
    पीड़ा तो पी के देखो,
    हल्ला न करो।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  23. संयम स्वर्ण महोत्सव
    न पुंसक हो,
    मन ने पुरुष को,
    पछाड़ दिया…
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
×
×
  • Create New...