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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
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आज्ञा का देना - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू १‍०


संयम स्वर्ण महोत्सव

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haiku (10).jpg

 

आज्ञा का देना,

आज्ञा पालन से है,

कठिनतम।

 

भावार्थ -आज्ञापालन की अपेक्षा आज्ञा देना ज्यादा कठिनतम, गुरुत्तम और विशिष्ट कार्य हैं क्योंकि आज्ञा देने वाला क्रिया तो कुछ नहीं करता लेकिन इस क्रिया के परिणाम का उत्तरदायी होता है । उस क्रिया के फलस्वरूप प्राप्त होने वाले हानि-लाभ और जय-पराजय से उसका सीधा सम्बन्ध होता है। कभी-कभी आज्ञा देने वाले के सम्पूर्ण जीवन में उसका परिणाम परिलक्षित होता है । अत: आज्ञा देने की योग्यता कुछ विरले ही व्यक्तियों में होती है । 

आज्ञापालन करने वाला आज्ञा देने वाले के आदेश के अनुसार कार्य मात्र करता है । वह उसके परिणाम का उत्तरदायी नहीं होता । अतः वह हानि-लाभ आदि में निश्चिन्त रहता है | व्याकरण का एक सिद्धान्त है कि उपदेश मित्रवत्, आदेश शत्रुवत् । आदेश या आज्ञा देने के उपरान्त सामने वाला कष्ट का अनुभव करता है क्योंकि उसके मान पर प्रहार होता सा लगता है किन्तु स्वयं दूसरों की आज्ञा का पालन करना सरल कार्य है क्योंकि उसमें प्रसन्नता का अनुभव होता है । अतः आज्ञापालन करने की अपेक्षा आज्ञा देना कठिनतम कार्य है ।

आर्यिका अकंपमति जी 

 

हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।

 

आओ करे हायकू स्वाध्याय

  • आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं।
  • आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं।
  • आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं।

लिखिए हमे आपके विचार

  • क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं।
  • इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?

2 Comments


Recommended Comments

आचार्यश्री कहते है आज्ञा देना आज्ञापालन से कठिण काम है.किसी को आज्ञा देने के लिये ,मजबूर होना पडता है.आज्ञा देने से शायद वो नाराज भी हो सकता है.मानो किसी को ये काम करो ऐसे कहा मगर उसकी इच्व्यछा से वो करता है तो ठीक मगर नाराजगी से करता है या आज्ञा पालन ही नही करता तो दोष तो आज्ञा देने वाले को ही लगेगा. कभी कभी मां जैसे बच्चोंपर गुस्सा करके मजबुरन अनुशासन के लिये काम करवाती है लेकिन उसे मनसे ये सब आच्छा नही लगता बस!! यही बातआचार्यश्री कहते है.

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कितना सरल है स्वयं एक स्थान पर बेठ कर किसी अनय से दूर रखी वस्तु उठा कर लाने की आज्ञा देना।आज्ञा पालन करने वाले की आज्ञा देने वाले के प्रति श्रध्दा और लगन ही उस जीव को कार्य करने के लिये प्रेरित करती है। आज्ञा पालन से कठिनतम है आथार्थ आज्ञा का पालन करना मुश्किल काम है। आज्ञा देना सरल होता है पर उसका पालन कठिनतम कार्य है। धार्मिक व्यक्ति गृहस्थ के समान आज्ञा नही देता अपितु आज्ञा पालन को सरल मानता है। जबकि आज्ञा देना कठिन दिखाई देता है। आज्ञा देने के जो परिणाम फल स्वरुप प्राप्त होंगे उसकी जानकारी धार्मिक जीव को सतत स्वाध्याय से होती है। ऐसी स्थिति में आज्ञा का देना कठिन मानना चाहिए।

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