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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

संयम स्वर्ण महोत्सव

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  1. भेदभाव से रहित भेदविज्ञान से सहित जीवन जीने वाले व्यवहार कुशल शिल्पी आचार्य ज्ञानसागरजी महाराज थे। एक बार जब वे गमन योग में थे तब एक ग्राम में पहुँचे वहीं पर आचार्य प्रवर श्री धर्मसागरजी महाराज जी से मिलना हुआ। तब बैठने की बात आई तो आचार्य श्री ज्ञानसागरजी ने कहा कि आप पहले बैठे क्योंकि आप तपोवृद्ध हैं तब आचार्य प्रवर श्री धर्मसागरजी महाराज बोले आप तो ज्ञान वृद्ध हैं तब व्यवहार कुशल शिल्पी आचार्य ज्ञानसागरजी बोले महाराज अपन दोनों एक साथ बैठ जायें। पहले और बाद में बैठने का प्रसंग इसलिए आया क्योंकि आचार्य प्रवर श्री धर्मसागर महाराज जी मुनि दीक्षा एवं आचार्य पद दोनों में बड़े थे फिर भी उनकी महानता बोल पड़ी कि ज्ञान के बिना धर्म की क्या कीमत? तब आचार्य श्री ज्ञानसागरजी भी बोल पड़े कि धर्म के बिना ज्ञान की क्या कीमत? तब जन समूह ने उनकी व्यवहार कुशलता देखकर आचार्य श्री धर्मसागरजी महाराज की जय आचार्य श्री ज्ञानसागरजी महाराज की जय-जय के नारों से आकाश गुंजायमान कर दिया था।
  2. चिन्तन विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार https://vidyasagar.guru/quotes/anya-sankalan/chintan/
  3. आसन सिद्धि तन के स्पंदन को रोक, मन की एकाग्रता को बढ़ावा प्रदान करती है। एकाग्रता का अचूक साधन आसनों में सिद्धता को प्राप्त करना लगातार आसन लगाते-लगाते तन-मन अभ्यस्त होता चला जाता है। आसन सिद्धि परमार्थ के साधन को सहज दिलाने में समर्थ कारण बन शांति के क्षणों की प्राप्ति शरीर की निरोगता का बहुत बड़ा साधन हुआ करता है। आचार्य ज्ञानसागरजी महाराज वृद्धावस्था के पड़ाव को पूर्ण करते हुए रोग परीषह को सहन करते हुए तीनों संध्याओं में पूर्ण पद्मासन लगाते थे। इसके कारण उन्हें पसीना कम आता था, वे आसनों के माध्यम से रोग को ढीला कर देते थे। आचार्यश्री जी के श्री मुख से २५.०४.२००३, शुक्रवार, कुण्डलपुर सिद्धक्षेत्र (मध्यप्रदेश)
  4. शुद्ध तत्त्व आत्मतत्त्व के करीब का मार्ग है। जहाँ अमीरगरीब का भेद नहीं रहता। चारित्र की उज्ज्वलता से शुद्धता प्राप्त होती है और शुद्धता से ही अपने (अभीष्ट) लक्ष्य की प्राप्ति होती है। शुद्धता की आराधना-पूजा यह पुरानी रीति है। सिद्धपरमेष्ठी शुद्धता के वाचक परमात्मा हैं जिनके पास कर्मों का डेरा नहीं है, इसीलिए उनकी आराधना निज तत्त्व की साधना का तत्त्व है ऐसे तत्त्ववेत्ता शुद्ध तत्त्व के खोजी अन्वेषक आचार्यप्रवर श्री ज्ञानसागरजी महाराज कहा करते थे–“हमें चिन्तन उनका करना चाहिए जो शुद्ध होते हैं।"
  5. गाय और किसान विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार https://vidyasagar.guru/quotes/anya-sankalan/gaay-aur-kisaan/
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