शुद्ध तत्त्व आत्मतत्त्व के करीब का मार्ग है। जहाँ अमीरगरीब का भेद नहीं रहता। चारित्र की उज्ज्वलता से शुद्धता प्राप्त होती है और शुद्धता से ही अपने (अभीष्ट) लक्ष्य की प्राप्ति होती है। शुद्धता की आराधना-पूजा यह पुरानी रीति है।
सिद्धपरमेष्ठी शुद्धता के वाचक परमात्मा हैं जिनके पास कर्मों का डेरा नहीं है, इसीलिए उनकी आराधना निज तत्त्व की साधना का तत्त्व है ऐसे तत्त्ववेत्ता शुद्ध तत्त्व के खोजी अन्वेषक आचार्यप्रवर श्री ज्ञानसागरजी महाराज कहा करते थे–“हमें चिन्तन उनका करना चाहिए जो शुद्ध होते हैं।"