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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
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डूबना ध्यान - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू ३०


संयम स्वर्ण महोत्सव

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Haiku (30).jpg

 

डूबना ध्यान,

तैरना स्वाध्याय है,

अब तो डूबो।

भावार्थ-ध्यान में डूबना होता है और स्वाध्याय तैरने के समान है। स्वाध्याय में प्रवृत्ति है और ध्यान में निर्वृत्ति । रत्नाकर में स्थित रत्नों को गोताखोर ही प्राप्त कर सकते हैं इसलिए अपने आत्मा में डूबो और अनंत चतुष्टय रूप रत्नों की उपलब्धि करो । आचार्य महाराज ने लिखा है- डूबो मत, लगाओ डुबकी। 

आर्यिका अकंपमति जी 

 

हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।

 

आओ करे हायकू स्वाध्याय

  • आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं
  • आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं
  • आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं

लिखिए हमे आपके विचार

  • क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं
  • इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?

4 Comments


Recommended Comments

आचार्यश्री कहते है,डूबना ध्यान है तैरना स्वाध्याय है मतलब जिनका स्वाध्याय चालू है,जो जिनवाणी की ज्ञानगंगा मे डूब गये है उन्हे तो तैरना आता ही है. मगर अब सिर्फ स्वाध्याय मे ही ना उलझकर आगे कि सीढीयाँ चढनी होगी.अपने आत्म कल्याण के लिये आत्मध्यान मे डूबना जरुरी हैध्यान करोगे तो स्वानुभूती मिलेगी.निजानन्द मे लीन रहोगे तभी तो चैतन्यस्वरुप आत्मा को देख सकोगे तभी तो निष्कर्म होकर स्वयं से जिन बनोगे.जयजिनेन्द्र .

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इस haiku में आचार्य  श्री जी ने स्वाध्याय को तेरने  की उपमा दी है और ध्यान को डूबने की उपमा दी है।इस haiku के माध्यम से आचार्य श्री जी हमको यह समझाना चाहते है कि है जीव ! स्वाध्याय के माध्यम से तूने तेरना तो सीख ही लिया है ।  अब तू अपने आत्म स्वभाव में डूबने का प्रयास कर क्योंकि आत्मध्यान में डूबे बिना तू इस संसार के परिभ्रमण से छूट नहीं सकता है।

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ज्ञान का सागर अथार्थ केवल ज्ञान प्राप्त करने के बाद और अरिहंत पद को प्राप्त करने से पहले केवली प्रभु की समोशरण में दी गई देशना आज काल के प्रभाव से लिपिबद्ध की गई है जो जिनवाणी के रूप में हमें उपलब्ध है।यही जिनवाणी ज्ञान सागर है। जिनवाणी के शब्दों में एकरूप होना ही ज्ञान सागर में डूब जाने के समान है ।पृष्ठ बदलते हुए एक  तैराक की भांति एक विषय से दूसरे विषय की और जाना तैरने के समान प्रतीत होता है। समय बीत रहा है। धीरे धीरे आयु कर्म  शीर्ण हो रहा है। स्वाध्याय को जीवन की आवश्यकता बनाइये। ज्ञान सागर में डुबकी लगाइये यकीन मानिये इस सागर से बाहर निकलना नही चाहेंगे आप सो अब तो डुबो अर्थात स्वाध्याय की रुचि पूर्वक शुरुआत कीजिये।

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