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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
अंतरराष्ट्रीय मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता 1 से 5 जून 2024 ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

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  1. Vidyasagar.Guru
    मंगल विहार 1 
    1️⃣
    पूज्य मुनिश्री विनम्र सागर जी महाराज
    पूज्य मुनिश्री निस्वार्थ सागर जी महाराज
    पूज्य मुनिश्री निर्मद सागर जी महाराज
    पूज्य मुनिश्री निसर्ग सागर जी महाराज
    पूज्य मुनिश्री श्रमण सागर जी महाराज
    का मंगल विहार कुण्डलपुर से हुआ।
     
    मंगल विहार....2 
    2️⃣
    पूज्य मुनिश्री विमल सागर जी महाराज
    पूज्य मुनिश्री अनंत सागर जी महाराज
    पूज्य मुनिश्री धर्म सागर जी महाराज
    पूज्य मुनिश्री भाव सागर जी महाराज
    का मंगल विहार कुण्डलपुर से हुआ।
    विहार दिशा- पटेरा (सम्भावित)
     
     मुनिसंघ के मंगल विहार.. 3

    पूज्य  मुनिश्री निस्पृहसागर जी
    पूज्य मुनिश्री निश्चल सागर जी महाराज
    पूज्य मुनिश्री निर्भीक सागर जी महाराज
    पूज्य मुनिश्री निराग सागर जी महाराज
    पूज्य मुनिश्री ओमकार सागर जी महाराज
    का मंगल विहार कुण्डलपुर से हुआ।
    विहार दिशा- पटेरा/सतना (सम्भावित)
     
  2. Vidyasagar.Guru
    आज जो होगा, अद्भुत होगा

    पूज्य गुरुदेव आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज, समस्त मुनिराज एवम आर्यिकाओं के मंगल सानिध्य में आज, बड़ी संख्या में बहनों को आत्मकल्याण के पथ पर चलने हेतु दीक्षित/संस्कारित करेंगे।  बीती रात इन बहनों ने केशलोंच भी कर लिए हैं।
    यद्यपि इस सम्बन्ध में कोई सार्वजनिक घोषणा नही की गई है । सम्भावना है कि इन बहनों को 10 प्रतिमा के संस्कार (गृह त्याग) प्रदान किये जावेंगे। संघ में सम्भवतः यह प्रथम सुअवसर देखने को मिलेगा।

     
    जो भी होगा - आपको वेबसाईट पर इसी लिंक पर अपडेट किया जाएगा 

  3. Vidyasagar.Guru
    🛕 बड़े बाबा के धाम से🛕
    श्री विद्यागुरु का आशीष लिए 
    कुंडलपुर की धरातल से विहार प्रारंभ
               👣👣👣
           25/02/2022
    जी हाँ मान्यवर❗❗
    आचार्य देव श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य
    निर्यापक श्रमण  श्री १०८ समयसागर जी महाराज ससंघ
    का मंगल विहार गुरु चरणों से अभी अभी हुआ।
    संभावित विहार दिशा👉🏻कटनी अमरकंटक
     
     
     

    🏳️‍🌈 निर्यापक मुनिश्री समयसागर जी
    🔅मुनिश्री प्रशस्तसागर जी
    🔅मुनिश्री मल्लिसागर जी 
    🔅मुनिश्री आनंदसागर जी
    🔅मुनिश्री निर्ग्रन्थसागर जी
    🔅मुनिश्री निर्भ्रान्तसागर जी
    🔅मुनिश्री निरालससागर जी
    🔅मुनिश्री निराश्रवसागर जी
    🔅मुनिश्री निराकारसागर जी
    🔅मुनिश्री निश्चिन्तसागर जी
    🔅मुनिश्री निर्माणसागर जी
    🔅मुनिश्री निशंकसागर जी
    🔅मुनिश्री निर्लेपसागर जी
    ⚡क्षुल्लक औचित्यसागर जी 
    ⚡क्षुल्लक गहनसागर जी
    ⚡क्षुल्लक कैवल्यसागर जी
    ⚡क्षुल्लक सुदृढ़सागर जी
    ⚡क्षुल्लक समकितसागर जी
    ⚡क्षुल्लक उचितसागर जी
    ⚡क्षुल्लक अथाहसागर जी
    ⚡क्षुल्लक उत्साहसागर जी
    ⚡क्षुल्लक अमापसागर जी
    (13 मुनिराज ,9 क्षुल्लक)
     
  4. Vidyasagar.Guru
    अट्ठारह क्षुल्‍लक दीक्षा कुंडलपुर की पावन धरती पर आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के कर कमलों से कुंडलपुर में प्रदान की गईं
     
    *🛕कुण्डलपुर क्षुल्लक व्रत संस्कार🛕*
         *📿11 प्रतिमा आरोपण📿*
    *संयम प्रदाता*
    आचार्यश्री विद्यासागर महामुनिराज
     *💥नव निर्यापक घोषणा💥*
    निर्यापक मुनि समतासागर जी
    निर्यापक मुनि प्रशांतसागर जी
    निर्यापक मुनि प्रसादसागर जी
    निर्यापक मुनि अभयसागर जी
    निर्यापक मुनि सम्भवसागर जी
    निर्यापक मुनि वीरसागर जी
    *संस्कारकर्ता*
    निर्यापक मुनि समयसागर जी
    निर्यापक मुनि योगसागर जी
    निर्यापक मुनि सुधासागर जी 
    *सानिध्य*
    लगभग 275 त्यागीवृन्द
    *दीक्षार्थी*
    1.ब्र. राहुल भैया सागर,मप्र
    (मुनि श्रमणसागर जी के पूर्वाश्रमी भ्राता)
    इंजीनियरिंग,IT(BE)
    *क्षुल्लक औचित्यसागर जी*
    2. ब्र. राजेश भैया सागर,मप्र
    इंजीनियरिंग,MA,BSNL JOB
    *क्षुल्लक गहनसागर जी*
    3.ब्र. भूपेंद्र भैया ललितपुर,उप्र
    *क्षुल्लक सुधारसागर जी*
    4.ब्र. सुमित भैया गुना,मप्र
    CA
    *क्षुल्लक मंथनसागर जी*
    5.ब्र. मयूर भैया,विदिशा,मप्र
    *क्षुल्लक कैवल्यसागर जी*
    6. ब्र. ईश्वरदास भैया, महाराजपुर,मप्र
    *क्षुल्लक  जी*
    7. ब्र. सचिन भैया,मुंगावली,मप्र
    *क्षुल्लक मननसागर जी*
    8. ब्र. मानस भैया, इंदौर,मप्र
    *क्षुल्लक सुदृढ़सागर जी*
    9. ब्र. सचिन भैया,पुसद, महाराष्ट्र
    *क्षुल्लक अपारसागर जी*
    10. ब्र. प्रांशुल भैया,सतना, मप्र
    *क्षुल्लक समकितसागर जी*
    11. ब्र. अविचल भैया(चंचल भैया),गुना,मप्र
    *क्षुल्लक विचारसागर जी*
    12. ब्र. राजा भैया खिमलाशा,मप्र‌
    (मुनि आदिसागर जी के पूर्वाश्रमी के भ्राता)
    *क्षुल्लक मगनसागर जी*
    13. ब्र. अमित भैया ललितपुर,उप्र
    (मुनि अनंतसागर जी,मुनि भावसागर जी के पूर्वाश्रमी के भतीजे)
    *क्षुल्लक तन्मयसागर जी*
    14. ब्र. मयूर भैया, सुरखी,मप्र
    *क्षुल्लक उचितसागर जी*
    15.. ब्र. अर्पित भैया, फिरोजाबाद,उप्र
    *क्षुल्लक अथाहसागर जी*
    16. ब्र. चन्दन भैया, फिरोजपुर,पंजाब
    *क्षुल्लक उत्साहसागर जी*
    17. ब्र. कार्तिक भैया,दमोह,मप्र
    *क्षुल्लक अमापसागर जी*
    18.ब्र. सौरभ भैया,सागर,मप्र
    *क्षुल्लक विरलसागर जी*

    *सभी नवदीक्षित क्षुल्लक जी के चरणों में त्रिवार इच्छामि सभी साधक शीघ्र रत्नत्रय को प्राप्त करे।
     
     
    कुछ त्रुटि होगी तो सुधार किया जाएगा
     
  5. Vidyasagar.Guru
    निर्यापक श्रमण  मुनिश्री समतासागर जी
     निर्यापक श्रमण  मुनिश्री प्रशांतसागर जी
     निर्यापक श्रमण  मुनिश्री प्रसादसागर जी
    निर्यापक श्रमण मुनिश्री अभयसागर जी
    निर्यापक श्रमण मुनिश्री संभवसागर जी
    निर्यापक श्रमण मुनिश्री वीरसागर जी
     
    🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
    *आचार्य श्री व्दारा उपाधित निर्यापक श्रमण मुनीराज 😘
    1 निर्यापक श्रमण समय सागर जी महाराज
    2 निर्यापक श्रमण योग सागर जी महाराज 
    3 निर्यापक श्रमण नियम सागर जी महाराज 
    4 निर्यापक श्रमण सुधा सागर जी महाराज 
    5 निर्यापक श्रमण समता सागर जी महाराज 
    6 निर्यापक श्रमण प्रशांत सागर जी महाराज 
    7 निर्यापक श्रमण प्रसाद सागर जी महाराज 
    8 निर्यापक श्रमण अभय सागर जी महाराज 
    9 निर्यापक श्रमण संभव सागर जी महाराज 
    10 निर्यापक श्रमण वीर सागर जी महाराज 
     
  6. Vidyasagar.Guru
    *कल रविवार को सम्भावित दीक्षाएँ*
    *18 ब्रह्मचारी भैया को मिल सकती है दीक्षाएँ।*
    _कुण्डलपुर की पावन धरा पर कल 20 फरवरी रविवार तपकल्याणक के पावन दिवस पर होंगी चैतन्य कृतियों की दीक्षा। फिलहाल सूत्रों के अनुसार 18 ब्रह्मचारी भाइयों की  दीक्षा* होने की चर्चाएं हैं रात अभी बांकी है। गुरुदेव के मन मे क्या है कोई नहीं जानता।_
    1 ब्र. सुमित भैया, गुना
    2 ब्र. सचिन भैया मुंगावली
    3 ब्र अविचल भैया गुना (चंचल भैया)
    4 ब्र. राजा भैया, खिमलासा
    5 ब्र. सौरभ भैया, सागर
    6.ब्र. राहुल भैया, सागर
    7 ब्र. मयूर भैया, विदिशा
    8 ब्र. मानस भैया, इन्दौर
    9 ब्र. राजेश भैया, सागर
    10 ब्र. प्रांजल भैया सतना
    11 ब्र. मयूर जैन सुरखी
    12 ब्र. अर्पित भैया, फिरोजाबाद
    13 ब्र. चन्दन भैया, पंजाब
    14 ब्र. कार्तिक भैया दमोह
    15 ब्र भूपेन्द्र भैया, ललितपुर
    16 ब्र ईश्वरदास जी महाराजपुर
    17 ब्र सचिन भैया पुषद
    18 ब्र अमित भैया, ललितपुर
    _क्रम में परिवर्तन संभावित है। संख्या में बृद्धि सम्भावित है। और भी क्या होगा, आगे आगे देखिए होता है क्या ? शाम 7 बजे तक दीक्षा पूर्व होने बाले गोद भराई सगुन/संस्कार/ आयोजन प्रारम्भ नही हुए। उम्मीद है शीघ्र सूचना मिलेगी। जानकारी मिलने पर प्रेषित की जावेगी
     
  7. Vidyasagar.Guru
    💐🌟🌟 *कार्यक्रम सूचना* 🌟🌟🌟💐
    🛕 *श्री बड़े बाबा पंचकल्याणक एवं महामस्तकाभिषेक 2022*🛕🛕🛕
    🙏पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में सम्मिलित होने वाले एवं दूर से ही अपने भावों को बनाये रखे हुए सभी धर्म प्रेमी बंधुओं को सूचित किया जाता है कि कल 15 फरवरी को कार्यक्रम की सूची इस प्रकार रहेगी-:🙏
    👉★प्रातः 06:00 बजे - अभिषेक शांतिधारा , नित्यमह पूजन , भक्तामर विधान जी ।
    👉★09:00बजे आचार्य श्री जी की पूजन एवम मंगल प्रवचन
    👉★9:30बजे ससंघ आहार चर्या।
    👉★12:30बजे से पात्र शुद्धि , सकलीकरण , नांदी विधान , इंद्र प्रतिष्ठा , मंडप प्रतिष्ठा, नवदेव पूजन।
    👉★07:00 बजे से संगीतमय आरती,प्रवचन। 
    👉★  8:00 बजे से सांस्कृतिक कार्यक्रम।
                    🙏 जय जिनेंद्र 🙏🏻

    अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें।
    👇👇👇
    *कुंडलपुर हेल्पलाइन नंबर 8523999111*
  8. Vidyasagar.Guru
    💐🌟🌟 *कार्यक्रम सूचना* 🌟🌟🌟💐
    🛕 *श्री बड़े बाबा पंचकल्याणक एवं महामस्तकाभिषेक 2022*🛕🛕🛕
    🙏पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में सम्मिलित होने वाले एवं दूर से ही अपने भावों को बनाये रखे हुए सभी धर्म प्रेमी बंधुओं को सूचित किया जाता है कि कल 14 फरवरी को कार्यक्रम की सूची इस प्रकार रहेगी-:🙏
    👉★प्रातः 06:00बजे से गुरुआज्ञा एवं आचार्य निमंत्रण। 👉★6:45बजे से जाप स्थापना(मुख्य  पांडाल) 👉★9:00बजे से आचार्य श्री जी की पूजन एवं आशीर्वाद। 👉★9:30बजे से संघ की आहारचर्या। 👉★11:30बजे से घट यात्रा पूजन प्रारंभ। 👉★12:30बजे से घटयात्रा एवं श्रीजी की शोभा यात्रा प्रारंभ। 👉★2:30बजे से ध्वज पूजन। 👉★3:10बजे से ध्वजारोहण मंडप शुद्धि, वेदी शुद्धि, अभिषेक ,शांति धारा, आचार्य श्री के प्रवचन। 👉★शाम 7:30 बजे से संगीतमय आरती शास्त्र प्रवचन। 👉★  8:00 बजे से सांस्कृतिक कार्यक्रम।                 🙏 जय जिनेंद्र 🙏
    अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें।
    👇👇👇
    *कुंडलपुर हेल्पलाइन नंबर 8523999111*
  9. Vidyasagar.Guru
    *कुंडलपुर में उमड़ने लगा भक्तों का सैलाब* - रविवार को सात मूनिसंघ पहुंचे - केन्द्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल ने भी लिया आचार्यश्री का आशीर्वाद   कुंडलपुर (दमोह)। जैन तीर्थ कुंडलपुर में आयोजित एतिहासिक महोत्सव में शामिल होने देश भर से भक्तों का सैलाब उमड़ने लगा है। रविवार को लगभग 15 से 20 हजार भक्तों ने कुंडलपुर पहुंचकर आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज सहित सभी संतों के दर्शन कर आशीर्वाद लिया। सात मुनि संघ भी आज कुंडलपुर पहुंचे। केन्द्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल ने दमोह जिला प्रशासन के अधिकारियों के साथ कुंडलपुर पहुंच कर आचार्यश्री का आशीर्वाद लिया एवं 16 फरवरी से शुरू होने वाले भव्य आयोजन की तैयारियों की समीक्षा की। जैन भक्तों का चारों से कुंडलपुर पहुंचना जारी है। रविवार को सुबह से भक्तों के रेलें कुंडलपुर पहुंचने लगे थे। सुबह आचार्यश्री की पूजन के बाद उनके संक्षिप्त प्रवचन सुनने हजारों लोग अनुशासित होकर बैठे थे। दोपहर में मुनिश्री पदमसागर जी महाराज, मुनिश्री कुंथसागर जी महाराज, मुनिश्री श्रेयांस सागर जी महाराज, मुनिश्री सुब्रतसागर जी महाराज, मुनिश्री दुर्लभ सागर जी महाराज, मुनिश्री संधान सागर जी महाराज, मुनिश्री निरंजन सागर जी महाराज ने कुंडलपुर पहुंचकर आचार्यश्री की वंदना की। कुंडलपुर कमेटी ने मुनि संघों की भक्ति और श्रद्धा के साथ आगवानी की। *केन्द्रीय मंत्री पहुंचे* दमोह के सांसद व केन्द्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल रविवार शाम को कुंडलपुर पहुंचे। उन्होंने आचार्यश्री के दर्शन कर भरोसा दिलाया कि कुंडलपुर महोत्सव में राज्य सरकार और जिला प्रशासन की ओर से हरसंभव सहयोग किया जा रहा है। पटेल ने महोत्सव समिति के कार्यालय में बैठकर महोत्सव समिति के पदाधिकारियों एवं जिला प्रशासन के अधिकारियों की संयुक्त बैठक ली। पटेल ने निर्देश दिये कि देश विदेश से आने वाले यात्रियों को कोई परेशानी नहीं होना चाहिए। बाहर से आने वाले यात्री बड़े बाबा के दरबार से बड़ा और सकारात्मक संदेश लेकर जाएं। उन्होंने कहा कि इस महोत्सव में आने वाले वाहनों की पार्किग पर खास ध्यान दिया जाए। इसके अलावा पानी, बिजली, सफाई व सुरक्षा को लेकर चौबीस घंटे सजग रहने की जरूरत है। महोत्सव में आने सभी यात्री हमारे मेहमान हैं, यह समझकर ही प्रशासन जिम्मेदारियों का निर्वहन करे।पटेल के साथ हटा विधायक पीएल तथतुवाय दमोह कलेक्टर एस कृष्ण चैतन्य, एसपी डीएस तेनीवार सहित जिला प्रशासन के सभी अधिकारी मौजूद थे। ----------- *यह सब जो दृश्य दिख रहा है स्वप्न समान लगता है-आचार्यश्री* आज संक्षिप्त प्रवचन में आचार्यश्री ने कहा कि - यह सब जो दृश्य दिख रहा है लगता नहीं हैं ये दृश्य है स्वप्न समान लग रहा है। कहां कहां से भव्य जीव आये हैं और अपने कल्याण में लगे हैं। उन्होंने अपने गुरू आचार्यश्री ज्ञानसागर जी महाराज का स्मरण करते हुए कहा कि - आज गुरु जी उपस्थित नहीं है कई लोग कहते हैं शरीर की अपेक्षा से नहीं है। जिनका जीवन अध्ययन और अध्यापन में ही बीत गया है अंत अंत में जब बाजार उजड़ रहा हो तो दुकानदार भी अपने माल को आने वाले ग्राहक को दे देता है उसमें हम जैसे ग्राहक आचार्यश्री ज्ञानसागर जी महाराज के पास दुकान बंद होने के समय पहुँच जाते हैं। गुरुदेव ने सब कुछ दिया।   *11 आर्यिकाओं का दीक्षा दिवस मना* कुंडलपुर में आज आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज के करकमलो से प्रथम दीक्षित आर्यिका रत्न श्री गुरुमति माताजी, आर्यिकाश्री दृढ़मति माताजी, आर्यिका श्री मृदुमति माताजी सहित 11 आर्यिकाओं माताओं का पैंतीसवां दीक्षा दिवस श्रद्धा व भक्ति पूर्वक मनाया गया। इस अवसर पर आचार्यश्री को आर्यिका संघ ने नवीन पिच्छिका भेंट की। इस अवसर पर मनीष जैन डायमंड परिवार व राकेश लालाजी अशोकनगर को पाद प्रक्षालन का सौभाग्य मिला। आर्यिका संघ ने भक्ति पूर्वक आचार्यश्री की पूजा की।      




  10. Vidyasagar.Guru
    गुरु प्रभावना के लिए दें समय दान बड़े बाबा के प्रांगण में, छोटे बाबा का सानिध्य में 
    कुण्डलपुर महामहोत्सव का पावन प्रकल्प 
     
    सभी एक WHATSAPP समूह बनाके, अपने शहर के , अपने परिवार के अपने जैन मित्रों को उसमे जोड़ें |
    समूह मे आचार्य श्री विद्यासागर मोबाईल ऐप (विद्यासागर डॉट गुरु वेबसाईट) के  नंबर को जोड़  +91 87695 67080 ऐडमीन    बनाए |
     
    डिजिटल  इतिहास रचाएंगे
    आचार्य श्री के सानिध्य में हो रहे भूतो न भविष्यति...  कुण्डलपुर पंच कल्याणक महोत्सव के बारे मे सबको बताएंगे   | 
     
    विशेष निवेदन 
    www.Vidyasagar.Guru
  11. Vidyasagar.Guru
    हेल्पलाइन नम्बर 8523 999 111 पर संपर्क करें 
     
    बाहर के श्रद्धालु यात्रियों के लिए दमोह, पटेरा , हटा, बहोरीबंद एवम आसपास के स्थानों पर आवास की व्यवस्था की है। साथ ही वहाँ से कुण्डलपुर आवागमन हेतु वाहन व्यवस्था भी की गई है। यात्री इस सेवा का लाभ उठाकर आवास सुविधा हेतु बुकिंग कर सकते हैं।
     
     
    आवास व्यवस्था अपडेट :
    कुण्डलपुर महामहोत्सव हेतु जाने बाले यात्रियों के लिए आवास व्यवस्था समिति द्वारा दमोह में व्यवस्था की गई है। आप यदि दमोह में ठहरना चाहें तो नीचे दिए गए नाम/नंबर पर सम्पर्क कर सकते हैं। दमोह से कुण्डलपुर सड़क मार्ग से लगभग 36 किमी है। दमोह से आवागमन के साधन उपलब्ध हैं।
    ÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷
    👉 दमोह आवास व्यवस्था  तैयारी पूर्ण
    दमोह आवास व्यवस्था हेतु संपर्क करे 
    सलिल लहरी मंटू    9826441241
    राम जैन                9753405169
    पीयूष जैन             7693870556
    सौरभ सिंघई          8349107722
    सचिन लकी गांगरा 9893295697
    सोनू लहरी            7067828695
    सुशील जैन           7389693572
    अभिनव मलैया      9893295697
    आदित्य जैन          8871364551
    स्वप्निल जैन          89892 12118
     नोट यदि आपको महोत्सव में दमोह में रुकना है तो आपको दिए गए नंबर पर  2 घंटे पहले से संपर्क करना होगा जिससे आपकी रुकने की उचित व्यवस्था  की जा सके
    👉 दमोह रेलवे स्टेशन से कुण्डलपुर यात्रियों के लिए, निःशुल्क बस सेवा शुरू।
    रेलवे स्टेशन दमोह पर यात्रियों की सुविधार्थ कार्यालय भी प्रारंभ।
    स्थान- दमोह रेलवे स्टेशन से कुंडलपुर बस स्टाप एवं  बडे बाबा मंदिर तक-प्रातः 05 बजे और प्रातः 06 बजे
     
  12. Vidyasagar.Guru
    🚩सौभाग्य.....अहोभाग्य🚩
    🌹अनियत विहारी, महाश्रमण, संत शिरोमणि आचार्य भगवंत श्री १०८ विद्यासागरजी महामुनिराज के चतुर्विंध संघ के मंगल पावन सानिध्य में विश्व इतिहास का कीर्तिमान बडे़ बाबा कुण्डलपुर महामहोत्सव मे आयोजित भव्यातिभव्य श्री पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महा-महोत्सव मे आचार्य भगवंन की अनुकम्पा व शुभाशीष से धर्मनगरी अजमेर के धर्म शिरोमणि, भामाशाह, विनयवान श्रावक श्रेष्ठी श्री अजय जैन दनगसिया- श्रीमती साधना जैन (सिविल लाईन्स अजमेर) को तीर्थंकर भगवान के माता- पिता बनने का परम सौभाग्य प्राप्त हुआ है꫰🌹
    👏अद्भुत,अद्वितीय व भूतो न: भविष्यति आयोजन मे मुख्य पात्र बनकर अजमेर समाज का प्रतिनिधित्व करने पर सम्पूर्ण दिगम्बर जैन समाज अजमेर गौरवान्वित व हर्षित है꫰👏
    🙏आपके सातिशय पुण्यवर्धक व परम सौभाग्य की अनुमोदना करते है एवं भावना भाते है की निकट भव में साक्षात् तीर्थंकर प्रभु के माता- पिता बनकर परम सुख को प्राप्त कर परम पद पर आसीन हो꫰🙏
  13. Vidyasagar.Guru
    ● 12 फरवरी शनिवार- बड़े बाबा का जाप अनुष्ठान 
    ● 14 फरवरी सोमवार- घट यात्रा एवं ध्वजारोहण कार्यक्रम 
    ● 15 फरवरी मंगलवार- सकली करण, इंद्र प्रतिष्ठा, मंडप प्रतिष्ठा 
    ● 16 फरवरी बुधवार-  गर्भ कल्याणक पूर्व रूप 
    ● 17 फरवरी गुरुवार- गर्भ कल्याणक उत्तर रूप
    ● 18 फरवरी शुक्रवार- जन्म कल्याणक 
    ● 19 फरवरी शनिवार-  तप कल्याणक 
    ● 20 फरवरी- रविवार- ........ कल्याणक पूर्व रूप 
    ● 21 फरवरी मंगलवार- ज्ञान कल्याणक पूर्व रूप
    ● 22 फरवरी बुधवार- ज्ञान कल्याणक उत्तर रूप 
    ● 23 फरवरी गुरुवार-  मोक्ष कल्याणक एवं रथयात्रा महोत्सव 
    24 फरवरी से बड़े बाबा का मस्तकाभिषेक फाल्गुन माह की अष्टान्हिका पर्व तक अनवरत जारी रहेगा
     
     

  14. Vidyasagar.Guru

    प्रतियोगिता सुचना
    प्रतियोगिता निम्न लिंक से खुलेगी 
     
    https://docs.google.com/forms/d/e/1FAIpQLSdrpfCF0Bmf8P8W7t6B9Pn65h1c0j-cbY4FtbtcBv89XnOCXw/viewform?usp=sf_link
     
    स्वाध्याय कहाँ से करे ?
    ऊपर प्रश्न पत्र में यह जानकारी हैं |
     
    प्रतियोगिता मे आप 13 फरवरी  2022  रात्री 10 बजे तक दे सकते हैं उत्तर |
     
  15. Vidyasagar.Guru
    प्रतियोगिता निम्न लिंक से खुलेगी 
    https://docs.google.com/forms/d/e/1FAIpQLSe17gN1enrH6uwenEpJ6HJoj6KKMU1HBFponiYeo-B0FrRDXg/viewform?usp=sf_link
     
    सभी निर्देश पढ़ कर भाग ले 
    कुण्डलपुर महामहोत्सव प्रतियोगिता क्रमांक 1 के माध्यम से जो हम स्वाध्याय करने वाले हैं, इसका अवलोकन  करेंगे 
    प्रतियोगिता मे आप 28 जनवरी 22  रात्री 10 बजे तक दे सकते हैं उत्तर |
     
  16. Vidyasagar.Guru
    जाके जैसे बाप मतारी, उनके वैसे लरका.....
    जैन दर्शन के अनुसार, जिनेन्द्र भगवन अपने शिष्यों, भक्तों को अपना दास नही बल्कि अपने जैसा भगवान बना लेते है इसका उल्लेख श्रीभक्तामरजी स्त्रोत में  पूज्यवर यतिवर मानतुंग आचार्यदेव बड़े गर्व से करते है
     आचार्यश्रेष्ठ के सानिध्य में जब भी  विशाल भव्य आयोजन हो तब उसका सारा  श्रेय आचार्यश्री अपने शिक्षादीक्षा गुरु गुरुणाम आचार्यप्रवर ज्ञानसागरजी महाराज को देते है 
    और कई बार ऐसे अवसर आते है कि अपने आराध्य गुरु के स्मरण, गुणगान करते समय उनके रोम रोम से पुलकित कन्ठ एवम नयनों में श्रद्धाजल छलक उठता है तब लगता है कि साक्षात विद्या के सागर अपने गुरु के स्मरण मात्र से कितने शिशुवत हो जाते है और यही परम्परा वर्तमान में भी विद्यमान है आज भी उनके शिष्य, शिष्याएं जब लम्बी प्रतीक्षा के बाद चरण वंदन करते है तब उन्हें अपने  आराध्य गुरु के प्रति भावों के अतिरेक का विशाल सागर उमड़ पड़ता है
    परमपूज्य आचार्यश्री ने अपने सभी शिष्यों को मात्र अपना शिष्य ही नही बनाया बल्कि अपने ज्ञान, चर्या, तपस्या के अनुरूप अपने जैसा ही बना लिया
    ज्येष्ठ मुनिराजों में निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव सुधासागरजी महाराज ने अनेकों तीर्थो का जीर्णोद्धार एवम नए तीर्थो का निर्माण तो कराया ही है बल्कि बहुविख्यात आचार्यश्रेष्ठ स्वामी समन्त्रभद्र के अनुरूप आगमोक्त सिंह गर्जना करते हुए मिथ्यात्व का खंडन किया करते है 
    उनकी गर्जना से बड़े बड़े मिथ्यावादी, एकांतवादी सूरज के निकलते उलूक की तरह भाग जाते है
    आचार्यश्री ने आज अपने प्रवचन में कहा कि मुनिपुंगव के पैरों में दर्द है जिसे अब बड़े बाबा जल्दी ठीक कर देंगे साथ ही यह घोषणा भी कर दी कि आज मुनिपुंगव का कंठ अवरुद्ध है लेकिन कल से फिर दहाड़ेंगे.....
    अब देखो न..... आज ही जब मुनिपुंगव जब अपने आराध्य की चरण वन्दना हेतु कुंडलपुर की ओर आ रहे थे तब लग रहा था कि साक्षात जिनेन्द्र भगवान का विहार हो रहा हो
    लेकिन जब गुरुचरणों में पहुचने के बाद तो ऐसा लगा कि, माँ की गोद से, काफी समय बिछड़ा बालक, माँ को पाकर कैसे पुलकित हो जाता है
    इस दृश्य को जब  हम सबने चेनलों के माध्यम से देख रहे थे तब लग रहा था कि, इतने बड़े ज्येष्ठ श्रमण अपने गुरु के समक्ष कितने शिशुवत हो गए
    और हां आचार्यश्री ने अपने लघुनन्दन को भी अपने स्नेह वात्सल्य से सराबोर करने में कोई कसर नही छोड़ी...
    सुनते है जब किसी गाय के समक्ष उसका बछड़ा आता है तब उन दोनों का वात्सल्य देखने योग्य होता है ऐसे में बिना अपेक्षा, आशा बिना स्वार्थ के अपने पुत्र पर जो स्नेह लाड़ बरसाती है ऐसे में इन दोनों के शरीर से इतनी सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित होती है जिससे आसपास के रहने वालों के बड़े बड़े रोग दूर हो जाते है
    जब गाय बछड़े के वात्सल्य से इतना सम्भव है तो जरा विचार करें कि सर्वाधिक ऊर्जा प्रदाता बड़े बाबा के आभामंडल में छोटे बाबा और मुनिपुंगव कि पावन सानिध्य में कितनी पावन अतिशयकारी ऊर्जा प्रवाहित हो रही होगी इसका आंकलन करना तो किसी भी अत्याधुनिक मशीन या सुपर कम्प्यूटर के वश में नही है
    आज आचार्यश्री के पावन चरणों का, मुनिपुंगव द्वारा अश्रुजल से  *चरणाभिषेक देख लग रहा था कि बुंदेलखंड की यह कहावत आज जीवंत चरितार्थ हो रही थी कि....
    जाके जैसे नदिया नारे,
    वाके वैसे भरक़ा...
    जाके जैसे बाप मतारी,
    वाके वैसे लरका....
     शब्द भाव
    • राजेश जैन भिलाई •
  17. Vidyasagar.Guru
    घर घर कुंडलपुर महामहोत्सव आह्वान के अंतर्गत प्रतियोगिता श्रंखला 
    आज ही पंजीकरण करें 
    https://forms.gle/ZBjvNcKZCWLS7Bs48
     
    पंजीकरण सूची मे अपना नाम देखें 
    https://docs.google.com/spreadsheets/d/1Cu6kuuhJnr-J9frVjj0s7AfRnjHd2YNXx5FDJFahadg/edit?usp=sharing
     
     
     
     

  18. Vidyasagar.Guru
    बिग ब्रेकिंग.. 5 फरवरी 22. 
    विश्ववंदनीय कुंडलपुर के बड़े बाबा श्री आदिनाथ भगवान के नए जिनालय का पंचकल्याणक गजरथ महामहोत्सव का आयोजन दिगंबर मानसरोवर के राजहंस, मेरे गुरुवर मेरे भगवन आचार्य गुरुदेव श्री 108 विद्यासागर महाराज के ससंघ सानिध्य में 12 फरवरी से 22 फरवरी 2022 तक होंगे।
    सूचनाकर्ता 
    संतोष सिंघई अध्यक्ष नवीन निराला महामंत्री रेशु सिंघई समन्वयक कुंडलपुर पंचकल्याणक
     🙏🙏🙏🙏🙏
     
  19. Vidyasagar.Guru
    बसंत पंचमी के अवसर पर हुई कुंडलपुर में ऐलक दीक्षा सानंद सम्पन
    युग शिरोमणि गुरुदेव आचार्य भगवन श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज के वरद हस्त कमलो से अभी अभी क्षुल्लक श्री देवानंद सागर जी महाराज की  ( संघस्थ मुनि श्री प्रशांत सागर जी महाराज)  ऐलक दीक्षा सम्पन्न हुई
     

  20. Vidyasagar.Guru

    प्रतियोगिता सुचना
    प्रतियोगिता निम्न लिंक से खुलेगी 
    https://docs.google.com/forms/d/e/1FAIpQLSe4ky6NaCLYmqIFRaC18U_BsZZIAfOOvpmzeDRDKEge3bUKWQ/viewform?usp=sf_link
     
    प्रतियोगिता मे आप 3 फरवरी  2022  रात्री 10 बजे तक दे सकते हैं उत्तर |
  21. Vidyasagar.Guru

    युगद्रष्टा
    आदिम युग के प्रजापति, आदि मानव, आदि तीर्थाधिपति, आदि स्रष्टा वृषभदेव राजा के राज्यमण्डप में प्रतिदिन की भाँति इन्द्र उपस्थित हुआ और प्रभु को भक्ति भाव से प्रणत हो, उनके चित्त को प्रसन्न करने की आज्ञा चाहता है। समुद्र से महा गम्भीर, तीर्थङ्कर की वाणी का मुखरित होना जब युवराज पद में भी दुर्लभ है, अरिहन्त पद हो तो बात ही क्या? पर इन्द्र आया है अपने अनन्य अन्य देवों के साथ, अनेक अप्सराओं को लिए, उसको नाराज करना प्रभु को मुमकिन न था। अरे! जब महापुरुष निर्बल, असहाय, साधारण प्रजा जन के मन को भी प्रसन्न रखते हैं तो फिर यह तो देवलोक का प्रधान इन्द्र है और हमारी प्रसन्नता में ही अपने को भाग्यवान समझता है, शायद यही सोचकर वृषभ राजा मुस्कुराए और इन्द्र ने इस इशारे को स्वीकृति समझा। पर लोग सोचते हैं कि ये उसी भव से मोक्ष जाने वाले हैं और किसी की बात को इतनी जल्दी मंजूरी नहीं देते जितनी कि इन्द्र की। इन्द्र का ही दिया भोजन, आभूषण, वस्त्र आदि स्वीकार करते हैं, इस विशाल भूमण्डल पर भी अनेक सुन्दर ललनाएँ हैं, उनके नृत्य को देखना पसन्द नहीं करते हैं, मात्र इन्द्र की लायी अप्सराओं का ही। अरे! नाभिराज तो कहने के लिए पिता हैं और मरुदेवी जननी मात्र होने से माता। पर इनका सारा ख्याल तो यह इन्द्र और इन्द्राणी रखते हैं, खैर; हमारे लिए तो सौभाग्य की बात है कि हमारे पालन करने वाले वो महामानव हैं कि जिनके जन्म के पहले से रत्न की बरसात होती थी, इन्द्र जन्माभिषेक के लिए मेरुपर्वत पर प्रभु को लेकर गया और प्रतिदिन यह आकाश इन्द्रों की बारात से ऐसा सुशोभित होता है कि लगता ही नहीं कि धरती यहाँ है और आकाश ऊपर है।
     
    इधर यह विचारों का द्वन्द और उधर इन्द्र का आदेश, एक साथ वातावरण बदल गया, लोगों को और कुछ सोचने के लिए अवकाश नहीं, सबका चित्त उस लय में लवलीन । अहो यह अलौकिक संगीत है एक साथ करोड़ों वाद्यों का एक लय में बजना प्रत्येक वाद्य की आवाज अलग अलग सुनना चाहें तो वो भी सुन सकते हैं। बस! हमें मन लगाने की जरूरत है, इन ध्वनियों का आरोहण-अवरोहण ऐसा कि मर्त्यलोक के मानवों द्वारा असम्भव है, यह राग का आलाप, पदों की थिरकन, कब, कौन-सा हाथ किस अंग पर पहुँच जाता है पता नहीं, कभी वह पैर कान के पास, तो कभी-कभी पैर आकाश में ऐसे फैलते मानो कि आकाश में बिजली चमकती, लहराती चली गयी हो, समझ से परे यह नृत्य जादूगर की तरह कला बाज है, ललाट का ऊपर उठना, भ्रू का कटाक्ष, नयनों की चंचलता, हेमकलशों का उघड़ना, कटि का घुमाव, नाभिस्थल का हिलोरें लेना, भुजाओं और पदों का अन्तर ही नहीं समझ पाना, ग्रीवा का घूमना, संगीत के अनुरूप भाव, रस और लय की एकाग्रता, यह सब कुछ अलौकिक है, जो लौकिक पुरुष के लिए सम्भव नहीं क्योंकि विक्रिया का यही तो वैभव है। जनमानस की नीली आँखों में वह नीलाञ्जना नर्तकी तो अञ्जन की तरह लगी रही, मानो उस सुरी को देखने के लिए अनिमेष पलक लगाये, ये मनुष्य नहीं सुर ही हैं। उस नृत्य ने भगवान् के मन को अनुरञ्जित कर दिया, भगवान् का मन तो बहुत विशुद्ध है पर राग की लालिमा में भी अवगाहित है। स्फटिक मणि के नीचे जपापुष्प रखा हो और मणि लाल न हो यह तो असम्भव है, उन सरागी प्रभु का यह राग ही तो जनमानस को उनसे अनुराग करने को मजबूर कर देता है और अचानक नर्तकी बदल गयी, सब लोग देख रहे थे, कोई भी न सोच पाया कि नर्तकी विलीन हो गयी इस देवलोक से, धन्य है यह सम्यग्दृष्टि, जो राग के प्रसंग में भी इतना सावधान और सूक्ष्मदृष्टि रखता है, लोगों का आनन्द अजस्र चल रहा है पर वह हल्की-सी रेखा की तरह भंग हुआ असुख भी सहन नहीं हुआ, क्या बदला है, कुछ भी तो नहीं, वही पृथ्वी, वही इन्द्र, वही अप्सरा का विलास, वही दरबार, वही नृत्य का क्रम, संगीत की वही लय, वही रस है, पर उस ज्ञानी के अन्तस् में वह छोटी लकीर, भेदविज्ञान की एक विराट लकीर खींच गयी।

    इन्द्र उस नृत्य को नहीं देख रहा है। वह प्रभु के मनोभाव उनके मुख कमल से जान रहा है, आज पहली बार जन्म के बाद उस मुख कमल को ऐसा देखा जो और लोगों के लिए देख पाना असम्भव। प्रभु का अन्तस् तो सदा एक-सा, पर आज प्रभु ने कुछ अलग ढंग से इन्द्र को देखा और प्रभु इन्द्र के भाव को समझ गए, अरे! इतना प्रयास हमारे लिए करना पड़ा, मैंने आज फिर गलती की, चर्मनेत्र तो खुले के खुले ही रहे पर अन्तस् में अवधिज्ञान का नेत्र स्फुरित हो गया, मैं इन विषय भोगों में ही खो गया, मैं कौन हूँ ? मेरा क्या कार्य है? और मैं क्या कर रहा हूँ ? मुझ जैसे को भी समझाने के लिए यह प्रसंग रचा गया ठीक ही तो है यह इन्द्र का विवेक है, कभी भी महापुरुष को आमने-सामने, तानन-फानन वचनों से नहीं समझाया जाता। महान् आत्मा भी कभी-कभी गलती करते हैं पर उनको समझाने वाले भी महान् होते हैं। असंयम मार्गणा में भी संयमी-सा जीवन जीने वाले उन प्रभु को असंयम के साथ समझाना अविवेक होगा इसीलिए धैर्य धारण कर इन्द्र ने अपने विवेक का परिचय दिया, आज मैं दुनिया की नजरों में भले ही तीन ज्ञान का धारी, क्षायिक सम्यग्दृष्टि, दूरद्रष्टा, आदि नायक हूँ पर मैंने वह गलती अभी भी नहीं सुधारी जो मैंने दश भव पूर्व की थी।
     
    हाँ! हाँ! दशभव पूर्व में! जम्बूद्वीप में मेरुपर्वत से पश्चिम दिशा की ओर विदेहक्षेत्र में एक गन्धिला नाम का देश है उसमें सिंहपुर नाम का नगर है, उस नगर में एक श्रीषेण नाम का राजा था उसकी स्त्री सुन्दरी थी, उसके दो पुत्र थे, उनमें ज्येष्ठ पुत्र जयवर्मा था और छोटा भाई श्रीवर्मा । यह बड़ापन और छोटापन तो जन्म की अपेक्षा से है वस्तुतः गुणों से व्यक्ति बड़ा और छोटा होता है। छोटा पुत्र सुभग था, जो स्वभाव से ही सबको प्यारा लगता था। उसकी क्रीड़ा भी मन को प्रसन्न करती थी, उसका उत्साह, प्रज्ञा, कमनीयता आदि गुण ऐसे थे जो बड़े भाई में भी न थे। जयवर्मा को लगता था कि माता-पिता श्रीवर्मा का ही ज्यादा ख्याल रखते हैं, उसे ही ज्यादा प्रोत्साहित करते हैं। परस्पर में कुछ अलग व्यवहार देखकर किसी को ठेस पहुँचती है, तो कोई खुश होता है। वस्तुतः कोई भी व्यक्ति अपने आप को निर्गुण नहीं समझता है प्रत्युत दूसरे के गुण भी उसे दोष दिखते हैं और ऐसी स्थिति में मात्सर्य भाव अवश्य पैदा होता है। छोटे भाई के प्रति अनुराग तो था ही ऊपर से पिता ने राज्यपाट भी श्रीवर्मा को दे दिया। जयवर्मा से रहा न गया, वह अपने दुर्भाग्य को कोसता हुआ घर से निकल गया। संयोग से उसे स्वयंप्रभ नाम के एक निर्ग्रन्थ गुरु मिले। गुरु को देखकर उसे कुछ सम्बल मिला। व्यक्ति को दुःख के समय जिस किसी की सहानुभूति मिले वही उसका परम मित्र होता है। संसार की स्थिति से उसे कुछ वैराग्य तो हुआ पर वह वैराग्य नहीं वस्तुतः जीवन के प्रति निराशा थी। निराशा और वैराग्य में बहुत अन्तर होता है। दोनों में भेद कर पाना प्रत्येक व्यक्ति के लिए सम्भव नहीं। मन दोनों में उदास हो जाता है, मुख भी कुछ फीका पड़ जाता है पर बाद में दोनों में क्या अन्तर है यह रहस्य खुलता है। निराशा जब बढ़ती जाती है तो व्यक्ति बेचैन हो जाता है, आलसी हो जाता है और परेशानसा रहता है जब तक कि कोई आशा की किरण न फूटे पर वैराग्य ठीक इससे विपरीत है। वैराग्य जैसे-जैसे बढ़ता है व्यक्ति की सांसारिक कामनाएँ छूटती जाती हैं और नित प्रतिदिन आनन्दित होता हुआ अनाकुल चित्त हो जाता है। वैराग्य के साथ यदि ज्ञान का पुट भी हो तो मुक्ति उसके हाथ में है। उसने गुरु महाराज से दीक्षा ले ली और निर्ग्रन्थ श्रमण बन गया। सच कहता हूँ-गुरुकुल में रहे बिना ब्रह्मचर्य व्रत दृढ़ नहीं हो सकता और शास्त्रज्ञान बिना भोगों की रुचि नहीं छूट सकती। अभी जयवर्मा नव दीक्षित था; कि एक दिन आकाश में उसने एक विद्याधर को बड़े ठाट-बाट के साथ गमन करते देखा और उसका सोया हुआ भोग रूपी सर्प जाग गया, फल यह हुआ कि उस सर्प ने तात्कालिक वैराग्य को डस लिया, नशा चढ़ गया और भोगों की चित्त में तीव्राकांक्षा हुई, मुझे भी भगवन् ऐसा ही वैभव मिले, विलासता मिले। मन मूर्च्छित हो गया था, निदान बंध हो चुका था। काल की बलिहारी कि, बाहर से भी एक भयंकर सर्प बिल से बाहर निकला और उसके तन को डस लिया। प्राण पखेरू उड गए पर भोग का वह भाव साथ गया और फलित हुआ। इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं जिस निर्ग्रन्थता को पाकर व्यक्ति तीर्थङ्कर, चक्रवर्ती, इन्द्र जैसे पदों के लिए पुण्य उपार्जन करके मोक्ष को प्राप्त होता है, उससे उसने विद्याधर का पद पाया। अरे! मणि को बेचकर धूल खरीदना कौन आश्चर्य की बात है, प्रत्युत मूढ़ता की बात है। कोई बात नहीं थोड़ी देर के लिए ही सही, कोई भी अच्छा संस्कार, अच्छा भाव ही देता है बशर्ते कि भवितव्यता अच्छी हो। गलती तो हर कोई करता है पर गलती करके सुधर जाने वाला महान् होता है। भगवान् बनने वाली आत्मा भी धीरे-धीरे विकास पथ पर आरूढ़ है।
  22. Vidyasagar.Guru

    युगद्रष्टा
    “कालचक्र गतिमान किसी का दास नहीं है।'' इस उक्ति के अनुसार काल का परिणमन प्रति समय चल रहा है। काल के इस परिणमन के साथ जीवों में, वय में, शक्ति में, बुद्धि में, वैभव में, परिवर्तन होता है। जब यह परिणमन वृद्धि के लिए होता है तो उसे उत्सर्पिणीकाल कहते हैं और जब यह परिणमन हानि के लिए होता है तो उसे अवसर्पिणी काल कहते हैं। अभी इसी अवसर्पिणीकाल के चक्र में प्रत्येक प्राणी श्वास ले रहा है। आज जो आयु, ऊँचाई, बुद्धि में ह्रास हमें दिखाई दे रहा है। आगे इससे भी अधिक होगा। यह भी स्वतः स्पष्ट होता है कि आज से वर्षों पहले यह सभी तथ्य और अधिक मात्रा में रहे होंगे। जैनधर्म में इसी कालखण्ड को छह भागों में विभाजित किया है। उनमें प्रथम, द्वितीय, तृतीय काल, उत्तम, मध्यम और जघन्य भूमि कहलाते हैं। जिसमें मनुष्य को कोई कर्म नहीं करना पड़ता है। परिवार के नाम पर मात्र पति, पत्नी ये दो ही प्राणी होते हैं। कल्पवृक्षों से इनकी दैनिक भोग-उपभोग की सामग्री उपलब्ध होती थी। तृतीयकाल के अन्त में जब भोगभूमि की व्यवस्था समाप्त हो रही थी और कर्मभूमि की रचना प्रारम्भ हो रही थी तब उस संधि काल में अन्तिम मनु-कुलकर श्री नाभिराज के घर उनकी पत्नी मरुदेवी से भगवान् ऋषभदेव का जन्म हुआ था।
     
    गर्भ से ही मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान को धारण करने वाला वह बालक विलक्षण प्रतिभा का धनी था। कल्पवृक्षों के नष्ट हो जाने के बाद बिना बोये धान्य से लोगों की आजीविका होती थी परन्तु कालक्रम से जब वह धान्य भी नष्ट हो गया, तब लोग भूख-प्यास से अत्यन्त व्याकुल हो उठे और सभी प्रजाजन नाभिराज के पास पहुँचकर उनसे रक्षा की भीख माँगने लगे। प्रजाजनों की व्याकुल दशा को देखकर नाभिराज ने उन्हें ऋषभकुमार के समीप पहुँचा दिया। उन्होंने उसी समय अवधिज्ञान से विदेहक्षेत्र की व्यवस्था के अनुसार इस भरतक्षेत्र में भी वही व्यवस्था प्रारम्भ करने का निश्चय किया।
     
    उन्होंने असि (सैनिक कार्य), मषि (लेखन कार्य), कृषि (खेती), विद्या (संगीत, नृत्य आदि), शिल्प (विविध वस्तुओं का निर्माण) और वाणिज्य (व्यापार) इन छह कार्यों का उपदेश दिया तथा इन्द्र के सहयोग से देश, नगर, ग्राम आदि की रचना करवायी। इसी कारण आप युगद्रष्टा कहलाए। इस व्यवस्था को आपने इस वसुन्धरा पर अवधिज्ञान से देखकर प्रचलित किया इसलिए आप युगद्रष्टा कहलाए। जब भगवान् माता मरुदेवी के गर्भ में आये थे, उसके छह मास पहले से अयोध्या नगर में हिरण्य-सुवर्ण तथा रत्नों से वर्षा होने लगी थी, इसलिए आपका नाम हिरण्य गर्भ पड़ा। षट्कर्मों का उपदेश देकर आपने प्रजा की रक्षा की इसलिए आप प्रजापति कहलाए। आप समस्त लोक के स्वामी हो इसलिए लोकेश कहलाए। आप चौदहवे कुलकर नाभिराज से उत्पन्न हुए इसलिए आप नाभेय कहलाए। इत्यादि अनेक नामों से आपकी ख्याति हिन्दू पुराणों और वेदों, श्रुति में उपलब्ध होती है। अनेक शिलालेखों और अनेक खोजों से प्राप्त सभ्यताओं में जो अवशेष मिले हैं, उससे आपकी प्राचीनता और सार्वभौमिकता को वर्तमान के सभी इतिहासकारों ने एक स्वर से स्वीकारा है। डॉ. सर. राधाकृष्णन कहते हैं -
     
    जैन परम्परा ऋषभदेव से अपने धर्म की उत्पत्ति होने का कथन करती है जो बहुत-सी शताब्दियों पूर्व हुए हैं। इस बात के प्रमाण पाए जाते हैं कि ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी में प्रथम तीर्थङ्कर ऋषभदेव की पूजा होती थी। इसमें कोई संदेह नहीं है कि जैनधर्म वर्धमान और पार्श्वनाथ से भी पहले प्रचलित था। यजुर्वेद में ऋषभदेव, अजितनाथ और अरिष्टनेमि तीर्थङ्करों के नाम का निर्देश है। भागवत पुराण में भी इस बात का समर्थन है कि ऋषभदेव जैनधर्म के संस्थापक थे।
     
    भगवान् ऋषभदेव के दस भवों का कथन पं. भूधरदासजी ने अपने 'जैन शतक' ग्रन्थ में किया है - आदि जयवर्मा, दूजै महाबल भूप तीजै स्वर्ग ईशान ललिताङ्ग देव थयो है। चौथे बज्रजंघ एवं पांचमे जुगत देह सम्यक ले दूजे देव लोक फिर गए हैं। सातवै सुविधि एक आठवै अच्युत इन्द्र नवमैं नरेन्द्र वज्रनाभि भवि भयो है। इसमै अहिमिन्द्र जानि ग्यारहै रिषभनाथ नाभिवंश भूधर के माथै नम लगे हैं।
     
    भगवान् ऋषभदेव का सम्पूर्ण वृत्तान्त और उनके पूर्व भवों का वर्णन पुराण ग्रन्थ में आचार्य श्री जिनसेनस्वामी ने किया है। चूंकि यह पुराण सविस्तार बहुत विपुल सामग्री को लिए है। इस पुराण में ऋषभदेव के साथ अन्य अनेक महापुरुषों का वर्णन भी है। भगवान् ऋषभदेव कैसे बने? उनके जीवन के पूर्वभवों को इसी पुराण की आधारशिला बनाकर इस लघुकाय कृति का रूप बना है। मात्र ऋषभदेव का जीवन, कम समय में स्वयं को स्मृत रहे और अन्य भव्य प्राणी भी लाभ उठायें, इस भावना से यह प्रयास किया है। इस कार्य को करते हुए अनेक सैद्धान्तिक विषयों का खुलासा भी हुआ और उनका समायोजन भी किया है। दश भवों का वर्णन संक्षेप से इस कृति में उपलब्ध है।
     
    प्रभु का यह संक्षिप्त कथानक सभी भव्यजीवों को उत्तम बोधि प्रदान करे, इन्हीं भावनाओं के साथ परम पूज्य आचार्य गुरुदेव श्री विद्यासागर जी महाराज को समर्पित यह कृति जिनके प्रसाद से इस आत्मा को सम्यक् बोधि की प्राप्ति हुई है।
     
    मुनि प्रणम्यसागर
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