स्व सम्बोधन विद्या : आचार्य श्री विद्यासागर जी द्वारा रचित भजन भक्ति गीत माला का पिच्छिका परिवर्तन कार्यक्रम में हुआ विमोचन
स्वर : व्रती डॉ. मोनिका सुहास शहा,
संगीत प. अरविन्द जैन मुखेडकर
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परम उपकारी, महाकवि. संतशिरोमणी आचार्य गुरुवर। श्री विद्यासागरजी महामुनिराज द्वारा लिखित अनेक उत्तमोत्तम भजनों में से ७ रचनाएँ हम आपके सामने ला रहे है । सप्तरंग एकसाथ आनेपर जैसे एक शुक्लवर्ण ही प्रतीत होता है. वैसे ही इन वैविध्यपूर्ण, अतीव सुंदर रचनाओं से विशेष रूप से वैराग्य ही उपड़ता हुआ दिखता है।
नसीराबाद १९७२-७३ में निर्यापकाचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज अपने गुरु-क्षपक श्री ज्ञानसागरजी महाराजजी के सल्लेखना काल में, कविवर ध्यानतरायजी, बनारसीदासजी, भूधरदासजी के अध्यात्मिक भजन उन्हें सुनाते थे और तब इन सैद्धान्तिक, वैराग्यवर्धक भजनों की रचना हुई ।इस विषम पंचमकाल में, अपने दीक्षाकालसे ही, चतुर्थकाल जैसी निर्दोष चर्या का पालन वे करते आये है। 'स्व'को संबोधित करते करते...सर्वोच्च ऐसा आचार्यपद धारण करनेवाले अपने महान गुरुवर अब महाव्रती शिष्यों को आदर्श बताते-सिखाते हुए. अपना मानस उनके सामने खोल रहे हो, ऐसा इन भजनों का भाव है।
जिस तरह सप्ततत्वों के यथार्थ प्रधान से सम्यग्दर्शन प्राप्ति होती है। उसी तरह इन गहरे आशयवाले सात भजनोंदारा “स्व-संबोधन विद्या" की अनुभूति आप सभी को हो ऐसी शुभकामना!
जय जिनेंद्र!
व्रती डॉ. मोनिका सुहास शहा, मुंबई.
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