क्या महानता को शब्दो मे पिरोया जा सकता है? जी नहीं।
तो शायद आंखो से देखने का विषय है ? ऐसा भी नही है।
न यह आँखें देख सकती है न कान सुन कर महसूस कर सकते है ये तो अन्तरमन की अनुभुति का विषय है।
अनुभुति किसी को भी हो सकती है? नही ऐसा नही है।
महान जीव को पहचानने की शक्ती या तो वेरगी मे होती है , साधक में होती है या जो महान जीव के पूर्ण विरोधी होते हैं ।
विरोधी जीव अहंकार वश महानता को स्वीकार नही कर पाते हैं।
ऐसे ही वेरागी और महान साधक आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज ने पावन और पवित्र जीव विध्याधर के भीतर की महानता को महसूस किया और उन्हे अपना शिष्य बना लिया।गुरु महान थे जो अपनी साधना के बल पर सही निर्णय कर पाये और शिष्य ने भी अपनी कठोर साधना से गुरु को सही साबित कर दिखाया नमन है ऐसे पारखी गुरु को ???और नमन है ऐसे अनुशासित शिष्य पर???इस युग के महावीर के चरणो मे शत शत नमन???