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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

Sambhav Jain

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  1. ❄?❄? *भावभीनी भावांजलि* ?❄?❄ *?आर्यिका माँ पूर्णमति माताजी के मोक्षगामी श्री चरणों मे......?* *संतत्व से सिद्धत्व की यात्रा के अविरल पथिक,जो 50 वर्षों से निरन्तर सिद्धत्व की ओर गमन कर रहे है।जो आगम की पर्याय बन चुके है।जिनकी चर्या में मूलाचार और समयसार की झलक दिखती है।* जिन्होंने असंख्य जनमानस को मिथ्यात्व के घने अंधकार से निकालकर उज्जवल प्रकाश से भर दिया,ऐसे सौम्य स्वभावी करुणामूर्ति, निरीह, निस्पृह,निरावलम्बी,अनियत विहारी,वर्तमान के वर्धमान, *जिनके अंदर आचार्य कुंदकुंद स्वामी,आचार्य समंतभद्र स्वामी,अकलंक देव आदि अनेक महान आचार्यों की छवि दिखती है,ऐसे परमोपकारी जीवन दाता, श्वासों के स्वामी,हृदय देवता, अद्वितीय संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महामुनिराज इस धरती पर युगों-युगों तक सदा जयवंत रहे।।* आपके तप,त्याग,संयम,साधना के कारण जैन धर्म की विजय पताका दिग्-दिगंत सारे विश्व में श्रमण संस्कृति की यशगाथा गा रही है। *ऐसे महान गुरु के कर-कमलों से भव्य जैनेश्वरी दीक्षा धारण करना बहुत ही दुर्लभ है।* अनंत जन्मों के पुण्य का संचय करना होता है तब कहीं जाकर ऐसे सद्गुरु के कर कमलों से जिन दीक्षा प्राप्त होती है। आचार्य श्री जी ने अनेक रत्नों की खोज कर उनमें अपने समान ही ज्ञान-चारित्र की स्थापना की। *उन्हीं रत्नों में दैदीप्यमान रत्न आर्यिका माँ 105 पूर्णमति माताजी है,जिन्होंने अपने गुरु के गुणों को,उनके संस्कारों को अपने अंतरंग में पूर्ण रूप से समाहित किया।* आपका गुरु के प्रति समर्पण समंदर ही से भी अगाध,अटूट है। आत्मा के प्रत्येक आत्मप्रदेश पर गुरु विराजमान हैं। आप उच्च कोटि की लेखिका,कवयित्री,गायिका आदि अनेक अनोखे व्यक्तित्व के धनी हैं। जो भी आपके पास दर्शन के लिए आता वह आपका ही हो जाता है। *29 वर्षों से स्वयं मोक्ष मार्ग पर चलकर आपने अनेकों भव्य जीवों को मुक्ति के मार्ग पर लगा दिया।आपकी अनुकम्पा,करुणा की बरसात प्रत्येक जीव पर होती है,चाहे वह कोई भी क्यों न हो।* उन्ही अनुकम्पा और करुणा से भींगा हुआ यह मेरा जीवन है।हमें आज भी याद है जब व्याबर में श्री समयसार जी शिविर के समाप्त होने के बाद पहली बार आपके दर्शनों के लिये *25 अक्टूबर 2016, गुना नगरी* में जाना हुआ।फिर क्या था...एक बार जाने के बाद यह जीवन आपका ही हो गया।मन बार-बार आपके चरणों के समीप जाने की भावना करता रहता। *आपके द्वारा दिये हुए संस्कार, नियम के द्वारा यह जीवन दिन-प्रतिदिन विकासोन्मुखी बनता गया।अपने इस छोटे से भक्त पर करुणा की असीम वर्षा कर इस जीवन को मोक्षमार्ग पर लगाया।आपके उपकारों के बारे में लिखना इस लेखनी के लिये संभव नहीं है।उन उपकारों का मात्र स्मरण किया जा सकता है,व्यक्त नहीं किया जा सकता।* आप इतने इतनी प्रतिकूलता में भी अपनी चर्या का निर्दोष पालन करके हमारे लिये प्रेरणा देती रहती हो।आपके समर्पण के कारण हमारे जीवन मे भी समर्पण की गहराई आती गई। कभी लगता नहीं कि-आपसे जुड़े कुछ वर्ष ही हुए हो,ऐसा लगता है जैसे *जन्मों-जन्मों का साथ हो।* भले आप क्षेत्र की अपेक्षा दूर रहे,पर भावों से आप हमेशा निकट ही रहती हो।ऐसा लगता ही नहीं कि-आप हमसे दूर हो।जब आपकी याद आती तो आपकी एक बात हमें संभाल लेती है,आपने कहा था- *"मैं दुनिया मे कही भी चली जाऊं, हमेशा तेरे पास रहूँगी।"* आप हमेशा हमारे पास रहती हो,एक मां बनकर,एक मार्गदर्शक बनकर।। आपका नाम सुनते ही चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।आपके द्वारा दिया हुआ आशीर्वाद- *?"अध्यात्म वृद्धिरस्तु"?* हमारे जीवन में फलीभूत हो रहा है। आपने हमें हमेशा विनम्र बनना और मान-सम्मान से दूर रहना सिखाया। जब भी आपके चरणों में आते हैं तो हमारे पूछने से पहले ही आप पूछ लेती हो- *स्वास्थ्य कैसा है तेरा* इससे बड़ी अनुकम्पा,स्नेह और कुछ नहीं हो सकता। *आपके उपकारों को चुका पाए इतनी हमारी सामर्थ्य नहीं है।* आपको मोक्ष मार्ग पर चलते हुए 29 वर्ष हो गए हैं।आप इसी प्रकार गुरु आज्ञा का,निर्दोष चारित्र का पालन करते हुए मोक्ष मार्ग पर निरंतर गतिमान रहे। *आपके द्वारा धारण की हुई यह आर्यिका दीक्षा आगे चलकर आगामी भवों में दीक्षा कल्याणक में परिवर्तित हो जाए।* आपके नाम *पूर्णमति* के समान ही आप की यह मति पूर्णज्ञान को धारण कर पूर्णता(केवलज्ञान)को प्राप्त करें। आप आगामी भवों में मुनि पद अंगीकार कर *केवलज्ञान प्राप्त कर तीर्थंकर की सत्ता धारण* करें,आपका विहार भव्यों जीवों की कल्याणार्थ हो और मोक्ष मार्ग को प्रशस्त करें। *आप शीघ्रताशीघ्र मुक्ति वधू का वरण कर मोक्षमहल को प्राप्त करें।* और अनन्तानन्त काल अपनी आत्मा में लीन रहकर निज चैतन्य सुख का रसपान करें,यही शुभ भावना आपके चरणों मे करता हूँ। *तुमने दिया माँ मुझको सबकुछ,* कैसे भूलूँ,कैसे भूलूँ,कैसे भूलूँ *उपकारों को।* कभी न भूलूँ उपकारों को।?????? *✍? नरेन्द्र जैन जबेरा* (आपके चरणों का छोटा सा भक्त,आपके स्नेह से परिपूरित) ❄?❄?❄?❄?❄?❄
  2. ❄?❄? *भावभीनी भावांजलि* ?❄?❄ *?आर्यिका माँ पूर्णमति माताजी के मोक्षगामी श्री चरणों मे......?* *संतत्व से सिद्धत्व की यात्रा के अविरल पथिक,जो 50 वर्षों से निरन्तर सिद्धत्व की ओर गमन कर रहे है।जो आगम की पर्याय बन चुके है।जिनकी चर्या में मूलाचार और समयसार की झलक दिखती है।* जिन्होंने असंख्य जनमानस को मिथ्यात्व के घने अंधकार से निकालकर उज्जवल प्रकाश से भर दिया,ऐसे सौम्य स्वभावी करुणामूर्ति, निरीह, निस्पृह,निरावलम्बी,अनियत विहारी,वर्तमान के वर्धमान, *जिनके अंदर आचार्य कुंदकुंद स्वामी,आचार्य समंतभद्र स्वामी,अकलंक देव आदि अनेक महान आचार्यों की छवि दिखती है,ऐसे परमोपकारी जीवन दाता, श्वासों के स्वामी,हृदय देवता, अद्वितीय संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महामुनिराज इस धरती पर युगों-युगों तक सदा जयवंत रहे।।* आपके तप,त्याग,संयम,साधना के कारण जैन धर्म की विजय पताका दिग्-दिगंत सारे विश्व में श्रमण संस्कृति की यशगाथा गा रही है। *ऐसे महान गुरु के कर-कमलों से भव्य जैनेश्वरी दीक्षा धारण करना बहुत ही दुर्लभ है।* अनंत जन्मों के पुण्य का संचय करना होता है तब कहीं जाकर ऐसे सद्गुरु के कर कमलों से जिन दीक्षा प्राप्त होती है। आचार्य श्री जी ने अनेक रत्नों की खोज कर उनमें अपने समान ही ज्ञान-चारित्र की स्थापना की। *उन्हीं रत्नों में दैदीप्यमान रत्न आर्यिका माँ 105 पूर्णमति माताजी है,जिन्होंने अपने गुरु के गुणों को,उनके संस्कारों को अपने अंतरंग में पूर्ण रूप से समाहित किया।* आपका गुरु के प्रति समर्पण समंदर ही से भी अगाध,अटूट है। आत्मा के प्रत्येक आत्मप्रदेश पर गुरु विराजमान हैं। आप उच्च कोटि की लेखिका,कवयित्री,गायिका आदि अनेक अनोखे व्यक्तित्व के धनी हैं। जो भी आपके पास दर्शन के लिए आता वह आपका ही हो जाता है। *29 वर्षों से स्वयं मोक्ष मार्ग पर चलकर आपने अनेकों भव्य जीवों को मुक्ति के मार्ग पर लगा दिया।आपकी अनुकम्पा,करुणा की बरसात प्रत्येक जीव पर होती है,चाहे वह कोई भी क्यों न हो।* उन्ही अनुकम्पा और करुणा से भींगा हुआ यह मेरा जीवन है।हमें आज भी याद है जब व्याबर में श्री समयसार जी शिविर के समाप्त होने के बाद पहली बार आपके दर्शनों के लिये *25 अक्टूबर 2016, गुना नगरी* में जाना हुआ।फिर क्या था...एक बार जाने के बाद यह जीवन आपका ही हो गया।मन बार-बार आपके चरणों के समीप जाने की भावना करता रहता। *आपके द्वारा दिये हुए संस्कार, नियम के द्वारा यह जीवन दिन-प्रतिदिन विकासोन्मुखी बनता गया।अपने इस छोटे से भक्त पर करुणा की असीम वर्षा कर इस जीवन को मोक्षमार्ग पर लगाया।आपके उपकारों के बारे में लिखना इस लेखनी के लिये संभव नहीं है।उन उपकारों का मात्र स्मरण किया जा सकता है,व्यक्त नहीं किया जा सकता।* आप इतने इतनी प्रतिकूलता में भी अपनी चर्या का निर्दोष पालन करके हमारे लिये प्रेरणा देती रहती हो।आपके समर्पण के कारण हमारे जीवन मे भी समर्पण की गहराई आती गई। कभी लगता नहीं कि-आपसे जुड़े कुछ वर्ष ही हुए हो,ऐसा लगता है जैसे *जन्मों-जन्मों का साथ हो।* भले आप क्षेत्र की अपेक्षा दूर रहे,पर भावों से आप हमेशा निकट ही रहती हो।ऐसा लगता ही नहीं कि-आप हमसे दूर हो।जब आपकी याद आती तो आपकी एक बात हमें संभाल लेती है,आपने कहा था- *"मैं दुनिया मे कही भी चली जाऊं, हमेशा तेरे पास रहूँगी।"* आप हमेशा हमारे पास रहती हो,एक मां बनकर,एक मार्गदर्शक बनकर।। आपका नाम सुनते ही चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।आपके द्वारा दिया हुआ आशीर्वाद- *?"अध्यात्म वृद्धिरस्तु"?* हमारे जीवन में फलीभूत हो रहा है। आपने हमें हमेशा विनम्र बनना और मान-सम्मान से दूर रहना सिखाया। जब भी आपके चरणों में आते हैं तो हमारे पूछने से पहले ही आप पूछ लेती हो- *स्वास्थ्य कैसा है तेरा* इससे बड़ी अनुकम्पा,स्नेह और कुछ नहीं हो सकता। *आपके उपकारों को चुका पाए इतनी हमारी सामर्थ्य नहीं है।* आपको मोक्ष मार्ग पर चलते हुए 29 वर्ष हो गए हैं।आप इसी प्रकार गुरु आज्ञा का,निर्दोष चारित्र का पालन करते हुए मोक्ष मार्ग पर निरंतर गतिमान रहे। *आपके द्वारा धारण की हुई यह आर्यिका दीक्षा आगे चलकर आगामी भवों में दीक्षा कल्याणक में परिवर्तित हो जाए।* आपके नाम *पूर्णमति* के समान ही आप की यह मति पूर्णज्ञान को धारण कर पूर्णता(केवलज्ञान)को प्राप्त करें। आप आगामी भवों में मुनि पद अंगीकार कर *केवलज्ञान प्राप्त कर तीर्थंकर की सत्ता धारण* करें,आपका विहार भव्यों जीवों की कल्याणार्थ हो और मोक्ष मार्ग को प्रशस्त करें। *आप शीघ्रताशीघ्र मुक्ति वधू का वरण कर मोक्षमहल को प्राप्त करें।* और अनन्तानन्त काल अपनी आत्मा में लीन रहकर निज चैतन्य सुख का रसपान करें,यही शुभ भावना आपके चरणों मे करता हूँ। *तुमने दिया माँ मुझको सबकुछ,* कैसे भूलूँ,कैसे भूलूँ,कैसे भूलूँ *उपकारों को।* कभी न भूलूँ उपकारों को।?????? *✍? नरेन्द्र जैन जबेरा* (आपके चरणों का छोटा सा भक्त,आपके स्नेह से परिपूरित) ❄?❄?❄?❄?❄?❄
  3. ??? *संस्मरण* ??? ?आर्यिका माँ पूर्णमति माताजी? *गुरु की महिमा वर्णी न जाये,* *गुरु नाम जपों मन-वचन-काय।* गुरु- शिष्य का रिश्ता अमर होता है।गुरु ही शिष्य के अन्तस् में उतरकर शिष्य के संसार भ्रमण का अंत कराकर निज शाश्वत चेतना का वरण कराते है।शिष्य की अनंतकाल की गलतियां दूर कराते है। *गुरु जो देते है वह सारी दुनिया मिलकर भी नहीं दे सकती।* गुरु के नाम जपने से ही शिष्य का कल्याण हो जाता है।शिष्य सच्चे गुरु की शरण मे अपनी जीवन नैया सौंपकर निश्चिन्त हो जाता है। *☀प्रसंग-☀* बात दक्षिण भारत विहार के समय की है।आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी का संघ मूलबद्री की तरफ जा रहा था। लंबा और अनजान रास्ता था। साथ में कोई श्रावक भी नहीं था।संघ विहार में आगे बढ़ता जा रहा था,तभी एक युवक साइकिल से आता हुआ दिखा। *उसके सिर से रक्त की धार बह रही थी।* उस युवक ने आर्यिका संघ से कहा - *उस रास्ते से आगे मत जाइये,वहां एक पत्थर का ढेर लगाकर एक पागल इंसान बैठा है, वह आते-जाते लोगों पर पत्थर फेंक रहा है।* सभी माताजी असमंजस की स्थिति में आ गई थी।विचार कर रही थी कि- *अब क्या करें?* शाम होने वाली थी और जंगल में रुकने की कोई जगह नहीं थी।तब माताजी ने मन में विचार किया कि- *✨हमारे साथ गुरुदेव की छत्रच्छाया हमेशा रहती है,फिर डरने की क्या बात?* *मन में गुरु का स्मरण किया और कहा-गुरुदेव मेरी यह संयम संपदा सुरक्षित रहे। यह जीवन आपने ही दिया है, अब आप ही हमारा ध्यान रखना।✨* इस प्रकार अपना जीवन गुरुदेव के हाथ में सौंपकर गुरु नाम का एक साथ जाप करके जैसे ही आर्यिका संघ आगे बढ़ा, वैसे ही वहां श्रीफल (नारियल) से भरा हुआ एक वाहन आया और उसने 3-4 श्रीफल फेंक दिए।वहां बैठा पागल व्यक्ति उसे खाने में लग गया और दूसरी तरफ सारा संघ उस रास्ते से सुरक्षित निकल गया और गुरु नाम से चमत्कार घटित हो गया।। वास्तव में गुरु की महिमा देवता भी नही गा सकते। ?सच गुरु की महिमा अकथ है।? *शिष्य के लिये वही मंजिल पथ है।।* ?द्रुत गति से गंतव्य तक ले जाने वाला,? *गुरु कृपा ही अनुपम रथ है।।* *?ज्ञानधारा से साभार?* *✍?आर्यिका माँ 105 पूर्णमति माताजी✍?* ?प्रस्तुति- नरेन्द्र जैन जबेरा? ?✨?✨?✨?✨?✨
  4. ?◽?◽?◽?◽?◽ *?संस्मरण?* ?आर्यिका माँ 105 पूर्णमति माताजी? *गुरुणांगुरु आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज ने अपनी निज प्रज्ञा से आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के रूप में संसार को एक अनमोल चिंतामणि रत्न प्रदान किया है,जो रत्न युगों-युगों तक चमकेगा।* उसी प्रकार आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने अनेकों रत्नों को खोजकर उनमें स्वयं के समान *ज्ञान और चारित्र* की स्थापना की है। वह दूर रहकर भी अपने शिष्यों का सदा ध्यान रखते है। बात उस समय की है,जब *आर्यिका पूर्णमति माताजी ससंघ का दक्षिण भारत में विहार चल रहा था।* विहार करते-करते रात होने वाली थी।पर कही भी रुकने को स्थान नहीं मिला।निर्जन वन था और चारो तरह से साँय-साँय की आवाजें आ रही थी।और कोई भी श्रावक-श्राविका साथ में नहीं थे।तब माताजी ने अपने हृदय देवता पूज्य गुरुदेव को नमोस्तु किया और कहा- *हे गुरुदेव!आप ही हमारे प्राणों के प्राण हो।हमारी रक्षा करिये।आपके सिवा और कोई सहारा नहीं है हमारा।* तभी अचानक से एक श्वेत वस्त्रधारी,9-10 फीट लम्बा,गौरे रंग का,चौड़ा ललाट,घुंघराले बाल वाले व्यक्ति को देखकर सभी आर्यिकाएँ को आश्चर्य हुआ। उस व्यक्ति ने कहा- *बहन जी! लगता है आप किसी परेशानी में हो नि:संकोच होकर बताइए मुझे,जिससे मैं आप आपकी सेवा कर सकूं।* कर्नाटक राज्य में इतनी शुद्ध हिंदी बोलने वाला देखने मे सज्जन लग रहा था,जैसे राजस्थान का निवासी हो।माताजी ने उससे कहा- *हम सभी आर्यिकाएँ है, साध्वी हैं।हम रात में चलते नहीं।क्या यहां पर कहीं ठहरने का स्थान है?* उस व्यक्ति ने थोड़ा विचार करके कहा- हाँ, हाँ यही पास में भगवान का मंदिर है।आप मुझ पर विश्वास करके मेरे साथ चलिए। 50 कदम चलकर मंदिर आ गया।मंदिर सुंदर था,चौड़ी ढलान थी।वहां पर ना कोई व्यक्ति था,न ही भगवान थे।जाते-जाते वह व्यक्ति कहने लगा-आपके रुकने के लिए यह स्थान सुरक्षित है यदि कुछ आवश्यकता हो तो मुझे बता दीजिएगा।इतना कहकर वह अदृश्य हो गया।सभी उस व्यक्ति को ढूंढते रह गए क्योंकि यदि जरूरत हुई तो उसे कैसे बुलाएंगे? गुरु नाम का जाप करते-करते रात्रि व्यतीत हो गई और अगले दिन सुबह देखा तो दूर-दूर तक कोई घर नहीं दिखा। *निश्चित ही वह कोई देवता था,कोई सामान्य मनुष्य नहीं था।* जो संकट में सहायता करने आया था।सम्यक चारित्र का पालन करने वाले मोक्षमार्गी पथिक की देव भी सेवा करने आते है। इस प्रकार जो दूर रहकर भी अपने शिष्यों का सदा ध्यान रखते हैं ऐसे जीवनदाता गुरु चरणों में अनंत बार नमोस्तु..... वह एक ऐसे संत हैं जो जुबाँ से नहीं जीवन से उपदेश देते हैं शब्दों से नहीं, साधना से समझाते हैं इसलिए शिष्य को शीघ्र समझ में आ जाता है।। *? ज्ञानधारा से साभार?* *✍? आर्यिका माँ पूर्णमति माताजी✍?* *?प्रस्तुति-* नरेन्द्र जैन जबेरा? ?◽?◽?◽?◽?◽
  5. ❄⛈?? *संस्मरण* ??⛈? *?आर्यिका माँ पूर्णमति माताजी?* *विद्यासागर मम गुरु,आदि अंत विश्वास।* *गुण गाऊँ मैं तब तलक,जब लौं घट में श्वांस।।* क्षेत्र की अपेक्षा चाहे कितनी भी दूर हो लेकिन श्रद्धा दर्पण से उनका दर्शन होता रहता है उनका स्नान करते ही मन के कोने कोने में स्पंदन होने लगता है जिन का आशीर्वाद मिलते ही आनंद की अनुभूति होती है जिनके मौन रहने पर प्रकृति भी मौन हो जाती है और जिनकी मुखरित होने पर प्रकृति कक्कड़ कर प्रफुल्लित हो जाता है।ऐसे गुरु को पाकर शिष्य का जीवन उन्नत बनता है।गुरु भी अपने शिष्य के साथ हर पल उसका साहस,शक्ति और आत्मविश्वास बनकर रहते है। *?प्रसंग?-* बात उस समय की है,जब आर्यिका माँ 105 पूर्णमति माताजी ससंघ का विहार दक्षिण भारत मे हो रहा था।एक दिन विहार करते-करते शाम हो गयी,सूर्य ढलने वाला था,तब माताजी एक कक्ष में रुक गई।वह कक्ष खण्डर के जैसा था।दूर-दूर तक वीरान,कही कोई नज़र नहीं आ रहा था। तभी माताजी ने अपनी श्रद्धा नयनों के द्वारा अपने हृदय देवता गुरुदेव को नमस्कार किया और कहा- *हे गुरु भगवन्!मेरे संयम की रक्षा करना।* और फिर सभी माताजी विश्राम करने लगी। रात्रि 11 बजे शारीरिक बाधा के कारण पूज्या पूर्णमति माताजी को बाहर आना पड़ा।वहाँ पर अचानक एक दृश्य देखकर माताजी चौंक गई, उनके साथ पूज्या शुभ्रमती माताजी भी आश्चर्य में पड़ गयी। सामने जो दृश्य दिख रहा था,वह सपना था या सत्य? समझ नहीं आ रहा था। *वहाँ धरती से 5 फीट ऊपर एक श्वेत वस्त्रधारी चक्कर लगा रहा था।* माताजी 5 मिनिट तक देखती रही।उसने अब तक पूरे कक्ष के 10 चक्कर लगा लिए थे।दोनों माताजी ने कक्ष में आकर शेष सभी माताजी को जगाया।एक-एक करके सभी माताजी ने उस दृश्य को देखा। अब माताजी को विश्वास हो गया कि- *कोई रक्षक है हमारे आस पास,जो इस वीरान खण्डर में उनकी रक्षा कर रहा है।* सवेरे 4 बजे उठकर देखा तो उसका वह अंतिम चक्कर लग रहा था और देखते ही देखते वह अदृश्य हो गया।सभी माताजी के मन मे एक प्रश्न छोड़ गया....... *आखिर वह कौन था,जो बिल्कुल मौन था।* बड़ी माताजी ने कहा- *कोई और नहीं,गुरु भक्ति का चमत्कार था।गुरु के आशीर्वाद से निकला किरणों का आकार था।।* समीचीन चारित्र का पालन करने साधक/साधिका की हर संकट में *उनका संयम उनकी रक्षा करता है।* देवता भी उनकी संयम की रक्षा करने आते है।और *उनके चरणों मे नतमस्तक हो जाते है।* *?ज्ञानधारा से साभार?* *✍?आर्यिका माँ पूर्णमति माताजी✍?* ❄प्रस्तुति- नरेन्द्र जैन जबेरा❄ ??????????
  6. ?❄☀? *संस्मरण* ?☀❄? *?आर्यिका माँ पूर्णमति माताजी?* *दुर्लभ गुरुमुख से वचन,दुर्लभ गुरु मुस्कान।* दुर्लभ उठना गुरु नज़र,दुर्लभ सिर पर हाथ।। *दुर्लभ गुरु संकेत है,दुर्लभ व्रत पालन।* दुर्लभतम गुरु चरण में,है समाधि धारण।। *?भूमिका?-* गुरु चरणों को पावन समझता है शिष्य।गुरु की हर आज्ञा का पालन करने में वह अपना सौभाग्य समझता है।वह गुरु-चरणों मे इसलिये समर्पण नहीं करता जिससे गुरु मेरे हो जाये,अपितु मेरा समग्र जीवन गुरु के नाम हो जाये।शिष्य गुरु के आचरण से प्रभावित होता है। *गुरु की कठोर से कठोर आज्ञा को पालने में डरता नहीं है।चाहे मरण भी क्यों न आ जाये।प्राण जाए पर गुरु आज्ञा का पालन जीवन की अंतिम श्वांस तक करता है।* *?प्रसंग?-* बात आर्यिका माँ 105 पूर्णमति माताजी के दक्षिण भारत विहार के समय की है।माताजी मध्यप्रदेश से बहुत दूर केरल की सीमा पर थी।माताजी का स्वास्थ्य बहुत ज्यादा खराब था। *1 km भी नहीं चल पा रही थी,शरीर की स्थिति बिल्कुल अस्वस्थ थी।* आचार्य श्री जी के पास बात पहुँची,गुरुदेव ने कहा- *आ जाओ वापिश मध्यप्रदेश।* उस समय माताजी मध्यप्रदेश से 2000 km दूर थी।सबको आश्चर्य हो रहा था,कैसे 2000 km का विहार करेगी।और माताजी को 1 km चलने पर भी परेशानी हो रही है। तभी माताजी ने कहा- *"जिन्होंने संकेत दिया है,उन्होंने साथ मे शक्ति भी भेजी है गमन करने की।"* लोग फिर भी चिंतित हो रहे थे। माताजी ने फिर कहा- *"चिंता मत करो,गुरु महिमा का चिंतन करो।"* और माताजी ने विहार कर दिया।आश्चर्य की बात तो यह थी कि- *पहले ही दिन माताजी ने बिना रुके 19 km विहार किया।* जहाँ 1 km नहीं चल पा रही थी,वही 19 km एक दिन में विहार कर लिया।सभी दर्शकगण कहने लगे- *गुरु-शिष्य का ऐसा अनोखा रिश्ता कहीं नहीं देखा।* फिर माताजी अपने मन मे गुरु भक्ति संजोय, *गुरुआज्ञा ही जीवन* इस सूत्र को ध्यान में रखते हुए 2000 km विहार करके मध्यप्रदेश वापिश आ गयी। ये तो *गुरुदेव का आशीष* था,जो माताजी को ऐसी अस्वस्थता में भी इतना लंबा विहार करवाया दिया।और माताजी का अपने जीवनदाता *गुरुदेव के प्रति अटूट समर्पण,गुरुभक्ति का परिणाम।* शिष्य अपने गुरु की आज्ञा को सर्वोपरि मानता है।वह कहता है- *?प्राण चले जाएं लेकिन गुरु आज्ञा का उल्लंघन कदापि नहीं कर सकते।?* क्योंकि वह जानता है- *गुरु के बिना मेरा कोई अस्तित्व नहीं।समंदर के बिना लहर का सत्व नहीं।* गुरु रह सकते है शिष्य के बिना,पर शिष्य कैसे रह सकता है गुरु के बिना।गुरु में ही शिष्य के प्राण बसते है। शिष्य दिन-रात यही भावना भाता रहता है- *धन्य धन्य संत समागम,गुरुचरणों का हो।* *णमोकार को जपते-जपते,मरण महोसत्व हो।।* *?ज्ञानधारा से साभार?* *✍?आर्यिका माँ पूर्णमति माताजी✍?* ?प्रस्तुति- नरेन्द्र जैन जबेरा? ??☀?☀???☀?
  7. ?❄?? *संस्मरण* ??❄? *?आर्यिका माँ पूर्णमति माताजी?* *पंक नहीं पंकज बनूँ,मुक्ता बनूँ न सीप।* *दीप बनूँ जलता रहूं,गुरु-पद समीप।।* *?भूमिका-?* गुरु का हृदय करुणा का स्त्रोत है।जब शिष्य पर छा जाती है, *बाधाओं की बर्फीली हवाएं तब अपनी कृपा की छतरी तान देते है।* जब शिष्य पर गिरते है परेशानियों के पत्थर,तब अपने स्नेहिल छत से सुरक्षित कर लेते है। *?प्रसंग?-* बात उस समय की है जब *आर्यिका माँ पूर्णमति माताजी का विहार कटंगी से हो रहा था,विहार करते-करते माताजी बीमार हो गई* बाकी सभी संघस्थ माताजी अपने गंतव्य स्थान पर पहुंच गई लेकिन आर्यिका पूर्णमति माताजी अकेली रह गई और मंजिल दूर थी,दिन ढल रहा था,अंधेरा घिर रहा था।माताजी के साथ 4 ब्रह्मचारी बहने रुक गई। साथ में चल रहे 2 श्रावक कुछ दूर आगे सड़क पर रुक गए। माताजी ने प्रतिक्रमण किया और देव-शास्त्र-गुरु को नमस्कार कर जैसे ही सामायिक को तत्पर हुई चुपके से मन में किसी ने कहा- *यह स्थान अनुकूल नहीं है* किन्तु अब कहीं जा नहीं सकते,क्योंकि रात घिर चुकी थी,यह सोच कर फिर माता जी ने *सिद्धशिला पर विराजमान अनंत सिद्धों को वंदन कर त्रियोगपूर्वक गुरुदेव को नमन कर समर्पण भाव से सर्वस्व अर्पण करके सबका स्मरण किया और प्रत्येक दिशा में 108 बार णमोकार मंत्र का जाप करके मंत्र द्वारा रक्षा कवच के रूप में मजबूत दीवार बना ली* और गुरुदेव से प्रार्थना की- *?हे नव जीवनदाता दीक्षा प्रदाता! इस सुनसान वन में मेरे शील की रक्षा करना,यहाँ कोई मेरा सहायक नहीं है आप मेरे हृदय में विराजमान रहना।?* माताजी ने मन-वचन-काय को एकाग्र करके भावपूर्वक *छह घड़ी (लगभग 2:30 घंटे)* सामायिक की। वह शनिवार का दिन था और अमावस्या का घना अंधकार छाया हुआ था।जैसे ही माताजी ने सामायिक के पश्चात अपने पैरों को लंबायमान किया,त्यों ही कई लोगों के आने का आभास हुआ। अचानक बिजली चमकी बिजली के प्रकाश में कुछ लोग दिखाई दिए- *लाल वस्त्र मोटा सा तन,सबका एक समान शरीर था।* माताजी ने अपने पैरों पर उनकी परछाई देखकर झट से अपने पैर सिकुड़ लिये।सभी 4 ब्रह्मचारी बहनों ने भी यह दृश्य देखा। सभी के कानों में *मारो... मारो....मारो.....* यह शब्द सुनाई दिए।तुरन्त ही माताजी ने मन में सर्वस्व समर्पण कर हाथ जोड़कर गुरुदेव से निवेदन किया- *हे गुरुदेव! मैं उत्तमार्थ सल्लेखना ग्रहण करती हूं।अब चाहे छिन्न-भिन्न हो जाये शरीर,विकल्प नहीं मुझे किञ्चित्, मैं हूं मात्र चेतना।* चारों बहनों ने डरकर चारों ओर से माता जी को कसकर पकड़ लिया और *बचाओ...बचाओ....बचाओ.....* यूं जब पुकारा तभी आकाश से मेघ गर्जना के साथ बिजली चमकी। और माता जी को गुरु भक्ति में लीन देखकर सभी अचानक विलीन हो गए।उन लोगों की आते समय आहट नहीं आई,न ही जाते समय उनके पैरों की आवाज सुनाई दी। *गुरु कृपा का ही है यह जीवंत चमत्कार।* वे लोग *बार-बार शस्त्र से प्रहार करने की कोशिश कर रहे थे लेकिन गुरु मंत्र के घेरे में सशक्त दीवार बनी थी।* आश्चर्य यह रहा कि- *कर न सका उसमें शस्त्र प्रवेश।व्रज से भी अधिक मजबूत थी दीवार क्योंकि उसमें गुरु कृपा की विशेष ऊर्जा थी।* यह सब घटना 13 मिनट की थी माता जी को समझ नहीं आया- *आखिर कौन थे वह?* किंतु इस घटना में हुआ जो चमत्कार इसमें गुरु का ही था पूर्ण आशीर्वाद। *संकटों की बरसात में भी* सम्यक् चिंतन की धारा बहती रहती...... *स्वयं के प्रति कठोर* औरों की प्रति मुलायम *ऐसी गुरु की है जीवन शैली।।* *?ज्ञानधारा से साभार?* *✍?आर्यिका माँ पूर्णमति माताजी✍?* ?प्रस्तुति- नरेन्द्र जैन जबेरा? ?????????? *हमारी वेबसाइट* www.vidhyasagarpathshala.com *पर भी सर्च कर सकते हैं।* administrator Avinash jain (Tony) ?❄?❄?❄?❄?❄
  8. ?☀?? *संस्मरण* ??☀? *?आर्यिका माँ पूर्णमति माताजी?* *गुरु ज्ञानी गुरु ध्यानी,गुरु श्री विद्यासागरा।* *गुरु साक्षात परमात्मा,तस्मै श्री गुरवे नमः।।* *?भूमिका-?गुरु-शिष्य का संबंध अमर है।* जब शिष्य अपने गुरु के चरणों में अपना सर्वस्व समर्पण कर देता है,उसकी हर एक श्वांस में गुरु का वास हो जाता है तब *असम्भव कार्य भी सम्भव हो जाते है। वही अद्भुत समर्पण की गहराई पूज्या आर्यिका माँ पूर्णमति माताजी में है। अपने गुरु के प्रति माताजी का समर्पण अटूट,अगाध है।* उनके हर एक आत्मप्रदेशों पर गुरु का वास है।गुरु के स्मरण मात्र से ही उनकी सारी बाधाएं दूर हो जाती है। *?प्रसंग-?* बात दक्षिण भारत विहार के समय इचलकरंजी की है। *इचलकरंजी में आर्यिका माँ पूर्णमति माताजी की अचानक श्वांस रुकने लगी।3 मिनिट तक उनकी स्थिति बिगड़ती रही।* कई वैद्य,चिकित्सक आये,लेकिन किसी की बुद्धि काम नहीं कर पाई।इधर नगर वासियों ने माताजी के स्वास्थ्य लाभ के लिए जाप शुरु कर दी।कोई भी बचने की अवसर न थे। *लग रहा था आज प्राण रूपी हंसा उड़ने वाला है।* सभी ने आश तोड़ दी थी,किसी को कोई उम्मीद नहीं थी। लेकिन माता जी को मन में पूरा विश्वास था,और माताजी ने आचार्य श्री जी के चित्र की तरफ इशारा किया और कहा- *?"अगर मिल जाए आशीष इनका तो जीवन छीन लेंगे मरण से,बस थोड़ी सी जगह देना चरण में....."?* फिर क्या था... माता जी का संदेश अपने आराध्य गुरु तक पहुंचाया गया और *गुरुदेव ने पवित्र स्नेह से भर कर दोनों हाथ उठाकर आशीर्वाद दिया।* जैसे ही गुरुदेव ने आशीर्वाद दिया इधर दूसरी और तुरंत *माताजी की श्वांस सहज गई।* चिकित्सक बोले- *ऐसा कौन सा उपचार किया है?* माताजी ने कहा- *कैसे बताये, चैतन्य चमत्कारी गुरु का है यह उपकार।* जिन्हें शब्दों में बांध नहीं सकते,अमाप है इन्हें माप नहीं सकते। गुरुदेव ने सूत्र दिया- *?"आत्मविश्वास ही श्वास है"?* यह सूत्र माताजी के हृदय को स्पर्श कर गया और माताजी ने कहा- *"गुरु पर विश्वास ही श्वांस है।"* बाहर में दुनिया कुछ नहीं कर पाती तब *गुरु का संबल* काम आता है।जब स्वयं की देह साथ नहीं देती तब *आत्मबल* काम आता है, यह अनुभूत हुआ कि- *"मेरा जीवन गुरुवर,तेरे चरणों की छाया है,* *जीवित ही हूँ तुमसे,वरना निर्जीव-सी काया है।"* *?ज्ञानधारा से साभार?* *✍?आर्यिका माँ पूर्णमति माताजी✍?* ? प्रस्तुति- नरेन्द्र जैन जबेरा? ?????????? *हमारी वेबसाइट* www.vidhyasagarpathshala.com *पर भी सर्च कर सकते हैं।* administrator Avinash jain (Tony) ☀?☀?☀?☀?☀?
  9. ?◽?◽?◽?◽?◽? *??संस्मरण??* *?आर्यिका माँ पूर्णमति माताजी?* *गुरु की आंखे बोलती फिर मुख की क्या बात।* *धन्य उसी का माथ है,जिस पर गुरु का हाथ।।* जिस शिष्य के मस्तक पर गुरु का हाथ हो,वह बड़े से बड़े कार्य को बड़ी सरलता से कर लेता है।गुरु का आशीर्वाद ही सब कर देता है।इसलिये आचार्य श्री जी के सानिध्य में जब भी कोई कार्यक्रम सम्पन्न होता है तो अंत मे आचार्य श्री जी यही कहते है- *गुरु जी के आशीर्वाद से ही सब हो गया।* यही गुण उनके शिष्यों में भी प्रतिबिम्बित होते है। *?प्रसंग-?* बात उस समय की है जब आर्यिका श्री 105 पूर्णमति माताजी ससंघ का चातुर्मास दादाबाड़ी कोटा में चल रहा था। *चातुर्मास के दौरान 24 समवशरणों की रचना हुई और 24 तीर्थंकर विधान का आयोजन किया गया।* विमान के द्वारा आकाश से पुष्प-वृष्टि हो रही थी। अगले दिन प्रातः जिन्होंने शांतिधारा की थी,उनका विमान से शहर घूमने का मन हुआ। जैसे ही विमान ने उड़ान भरी,वह अचानक से नीचे गिर गया उसके सारे पुर्जे अलग-अलग हो गए। जैसे ही माताजी ने यह बात सुनी,तुरन्त मन में अपने आराध्य गुरुदेव से प्रार्थना करने लगी,कि- *हे गुरुदेव! जिस विधान के लिए आपने आशीर्वाद दिया हो,मुझे पूरा विश्वास है उसमें कोई अनर्थ नहीं हो सकता।हे गुरुवर!मेरी श्रद्धा की लाज रखना।* अचानक से गुरुदेव की छवि माता जी के सामने आई और आशीर्वाद देकर अदृश्य हो गई। कुछ लोग दौड़कर माताजी के पास आए और बोले-माताजी बहुत बड़ा आश्चर्य हो गया।दुर्घटना होते-होते चमत्कार हो गया। *विमान से एक साथ 7 लोग बहुत ऊंचाई से गिरे पर उन्हें एक खरोंच तक नहीं आई।* यदि विमान कुछ समय पहले गिरता तो चंबल नदी में गिरकर डूब जाता और कुछ समय बाद गिरता तो नगर में हादसा हो जाता।विमान के गिरने का स्थान सुनसान था। अगले दिन प्रातः समाचार पत्रों में मुख्य पृष्ठ पर छपा- *कोटा में हुआ देवी चमत्कार।* लेकिन यह कोई देवीय चमत्कार नहीं था, यह सब था *"गुरुदेव का ही आध्यात्मिक प्रभाव"* जो संभाल लेता है गिरते को।बचा लेता है डूबते को।। गुरु भक्ति में अलौकिक शक्ति होती है।गुरु की शरण मे आकर शिष्य का पुण्य बढ़ने लगता है।उसका जीवन निखर जाता है।गुरु तो विराट,सम्राटों के भी सम्राट होते है,जिन्हें शीश झुकाने मनुज ही क्या देवता भी तरसते है। *ऐसे गुरु जो निज आत्मा में डूबे रहते है,उन गुरु विद्यासागर जी महाराज के चरणों मे अनन्त बार नमोस्तु.........*?????? *? ज्ञानधारा से साभार?* *✍? आर्यिका माँ पूर्णमति माताजी✍?* ?प्रस्तुति- नरेन्द्र जैन जबेरा? ?◽?◽?◽?◽?◽?
  10. पुणे में विद्योदय वृतचित्र का प्रदर्शन : 30 जून 2018, संध्या 7:00 से 10:00 स्थान : गोखले इस्टीट्यूट , काळे सभागृह , बी.एम.सी.सी. मार्ग, पुणे द्वितीय प्रदर्शन : 01 जुलाई 2018, रविवार प्रातः 10:00 बजे से स्थान - PMC कम्युनिटी हॉल, वीरोदय सोसाइटी के पास, अर्बन निर्वाणा के सामने, पुणे
  11. विदिशाः- संपूर्ण विश्व में आध्यत्म सरोवर के राजहंस, निर्दोष चर्या के धारी संतशिरोमणि, आचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनिराज का ५०वा संयम स्वर्ण महोत्सव बड़े ही उत्साह पूर्वक मनाया जा रहा है! समापन की इस वेला में आचार्य गुरुदेव के अद्वितीय जीवन पर आधारित फिल्म - "विधोदय" का प्रसारण संपूर्ण विश्व में दिनांक 30 जून को होगा, उसी श्रंखला में यह चलचित्र शीतलधाम विदिशा के विशाल प्रांगड़ में वडी़ एल ई डी पर दिनांक30 जून 2018, शनिवार को सांयकाल 7.30 से होगा! श्री सकल दि. जैन समाज के प्रवक्ता अविनाश जैन ने उपरोक्त जानकारी देते हुये वताया वर्तमान के भगवन् के जीवन चरित्र पर आधारित इस संपूर्ण चल चित्र को देखने अवश्य पधारें! निवेदक:- श्री सकल दि. जैन समाज, एवं श्री शीतल विहार न्यास शीतलधाम विदिशा (म•प्र) आप सभी अपने इष्ट मित्रों सहित अवश्य पधार कर पुण्य लाभ अर्जित करें !
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