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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

संयम स्वर्ण महोत्सव

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  1. अब तक का सफर (1) प्रस्तावना एक शिष्य दिन-रात, प्रतिपल यही मन में भावना भाता है कि- जिन सद्गुरु ने एक नया जीवन दिया, जो हर 1 श्वास में बसे हुए है, जो हृदय की धड़कन की तरह सदा इस दिल में धड़कते रहते है। जिन सद्गुरु ने रास्ते मे पड़े हुए इस कंकड़, पत्थर को उठाकर अपनी छत्रछ्या में रखकर इसे अच्छे संस्कारो से पल्लवित कर इसमें छुपी हुई अनन्त संभावनाओं को उजागर कर उसे एक हीरे का रूप दिया। इस कंकड़ पर अनन्त उपकार किये, जो वह अपने जीवन की अंतिम श्वासों तक स्मरण करेगा। कभी नहीं भूल पाएंगे, उन उपकारों को। इस कंकड़ ने तो मात्र आपके चरणों मे जगह मांगी थी, लेकिन आपके समान करुणावान इस धरा पर कोई नहीं है, जिनने इस कंकड़ को अपना बना लिया। युगों-युगों के बीत जाने पर जो इतिहास आपने रचा है, जो श्रमण संस्कृति पर आपने उपकार किया है, उसे यह सारा विश्व, सदियों-सदियों तक कभी नहीं भुला सकता। आपके समान असाधारण व्यक्तित्व इस धरा पर कोई नहीं है, और न ही भूतों, न भविष्यति, और न कभी होगा। आपने अपने जीवन की हर एक विषम परिस्थितियों को समता भाव के साथ स्वीकार किया, और अपनी चर्या का निर्दोष पालन कर उसमे 1 भी दाग नहीं लगने दिया। सैकड़ों सदियां, अनेकों युग बीत जाने पर ऐसे महान महापुरुष का जन्म होता है। आपने असंख्य जनमानस को मिथ्यात्व के घने अंधकार से निकालकर सम्यकज्ञान रूपी उज्ज्वल प्रकाश की ओर प्रकाशित किया। अनेकों भव्य जीवों को मुक्ति का पंथ दिखा दिया। अनेकों श्रावकों की सल्लेखना कराकर उन्हें हमेशा-हमेशा के लिए भव-भ्रमण से मुक्ति का सोपान प्रदान कर दिया। ऐसे अद्वितीय,असाधारण व्यक्तित्व का नाम है- "आचार्य विद्यासागर जी महामुनिराज" (2) स्वर्णिमसंस्मरण का निर्माण सारे देश मे इस वर्ष पूज्य आचार्य भगवन के साधनामय जीवन के 50 वर्ष पूर्ण होने वाले है, सारी पृथ्वी अपने आप को गौरान्वित महसूस कर रही है कि-ऐसे महान संत के कदम इस वसुधा पर अंकित हुए। सारे देश मे संयम स्वर्ण जयंती पर हर गांव, नगरों में आचार्य भगवन पर विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे है। तो हमारे अन्तस् चेतना में भाव आया कि-हम भी अपने आराध्य के प्रति कुछ करे, जिससे उनके प्रति कुछ कृतज्ञता ज्ञापित कर सके। तभी 7 अगस्त 2017 को रणथम्भोर के किले में श्री सर्वार्थसिद्धि जी अतिशय क्षेत्र में श्री 1008 संभवनाथ भगवान के चरणों की छत्रछ्या में मन में भाव आया, कि एक ग्रुप बनाया जाए whats app पर, जिसमें आचार्य भगवन की महिमा का गुणानुवाद किया जाए, भावना को और गहराई मिली और सम्भवनाथ भगवान के दरबार से मन मे भावना लेकर शिष्य श्री चमत्कार जी अतिशय क्षेत्र में श्री 1008 आदिनाथ भगवान, और मूलनायक पद्मप्रभु भगवान की पावन चरणों की छांव में गुरु - भक्ति की भावना को और अधिक सम्बल मिला और श्री चमत्कार जी में पूज्य गुरुदेव को स्मरण करते हुए स्वर्णिमसंस्मरण ग्रुप का निर्माण हुआ। यही भावना के साथ कि- गुरुदेव की प्रभावना सारे विश्व में हो, हर एक व्यक्ति गुरुदेव की अनोखी साधना से अवगत हो, और विद्यासागर रूपी गंगा में अवगाहन कर अपनी विशुद्धि को बढ़ाते हुए अपना जीवन सफल करें। अभी मात्र ग्रुप का निर्माण हुआ था, प्रारंभ नहीं हुआ था, तो भावना और बढ़ती गई और चमत्कार जी से चलकर भक्त के चरण गुरुभक्ति को लेकर श्री 1008 पार्श्वनाथ भगवान की केवलज्ञान भूमि श्री बिजौलिया जी अतिशय क्षेत्र में जा पहुँचे। और भावना को और गहराई मिली और 8 अगस्त 2017 रक्षाबंधन के पावन पुनीत अवसर पर श्री पार्श्वनाथ भगवान के चरणों की छत्रछ्या में उनके आशीर्वाद से स्वर्णिमसंस्मरण का ये सफर प्रारम्भ हुआ जो आज एक विराट रूप ले चुका है। (3) स्वर्णिमसंस्मरण की उपलब्धियां हमने गुरुजी की प्रभावना की ये यात्रा अकेले ही प्रारंभ की थी, लोग जुड़ते गए और यह एक विशाल रूप लेता गया। आज स्वर्णिमसंस्मरण एक विशेष उपलब्धि हासिल कर चुका है।आज ग्रुप को बने हुए 108 दिन हो गए। वर्तमान में स्वर्णिमसंस्मरण के 3 ग्रुप चलाये जाते है। whats app की दुनिया का 1 मात्र अलबेला और अनोखा ग्रुप है , जिसमे आचार्य भगवन की पल-पल की आहट सुनाई देती है। सिर्फ और सिर्फ आचार्य भगवन का गुणानुवाद किया जाता है। आज ग्रुप के संस्मरण लाखों लोगों के पास पहुँच रहे है।आज facebook के लगभग सभी जैन पेज़ों पर, गूगल, इंस्ट्राग्राम, व्हाट्सएप्प के लगभग 500 से ज्यादा ग्रुप में, वेबसाइट पर, apps पर और न जाने कहाँ-कहाँ ये संस्मरण पहुँच रहे है। जैन-अजैन सब लोग गुरुजी की अनोखी साधना के बारे में जान रहे है। कई लोगों का तो जीवन परिवर्तित हो गया है, उनकी आचार्य श्री जी के प्रति आस्था और ज्यादा दृढ़ हो चुकी है, जो गुरुजी के बारे में नहीं जानते थे, वो भी गुरुजी के जीवन के बारे में जानकर उनके प्रति असीम आस्था और श्रद्धा, समर्पण से भर चुके है। कुछ लोगों ने गुरुजी के जीवन से प्रभावित होकर उनसे बह्मचर्य व्रत ग्रहण किया, तो किसी ने 5 वर्ष का। आज ग्रुप से कोई बाहर नहीं होना चाहता, बल्कि नियम तोड़ने पर किये जाते है। ग्रुप के सभी सदस्य आचार्य श्री जी के प्रति पूर्ण समर्पित है। इस ग्रुप में कई ब्रम्हचारी भाई-बहन है, और प्रतिमाधारी व्रती साधर्मी भैया जी भी। ये सभी हमारे गुरुजी के अनमोल हीरे है, उन सभी का अप्रत्यक्ष रूप से चरण स्पर्श करते है हम। ये इस ग्रुप का परम सौभाग्य रहा कि- ये सभी इस ग्रुप में है। इनके साथ ही ग्रुप में कई एक से एक महान कवि, लेखक, गायक, कई बड़ी समितियों के अध्यक्ष, मंत्रीभी है। और साथ ही इस ग्रुप में सबसे ज्यादा दक्षिण भारत के महाराष्ट्र के, कर्नाटक के भाई बंधु भी है, जो पल पल गुरुदेव के दर्शन की आशा लगाए हुए रहते है। ये ग्रुप की बहुत बड़ी उपलब्धि है। बाकी सभी गुरुजी के अनन्य भक्त है। ग्रुप में सबसे अधिक प्रसिद्ध रहे इस ग्रुप के संस्मरण, अनासक्त महायोगी, और मेरे गुरुवर, जिन्हें लोगों ने सबसे ज्यादा रुचि पूर्वक पढ़ा। (4) विरोधों का सामना स्वर्णिमसंस्मरण के प्रारंभिक समय मे बहुत सारी बाधाएं आई, कई लोगों ने विरोध किया। हम कभी विरोधो के चक्कर मे नहीं फसते, बहुत पहले ही ये सब छोड़ दिया, लेकिन जब कोई आचार्य श्री जी का विरोध करता है, तब उसको किसी भी हालत में नहीं छोड़ते। और उस समय पूज्य सुधासागर जी महाराज की तरह बनना पड़ा। लेकिन आज ग्रुप की उपलब्धि को देखते है तो बहुत खुशी होती है। क्योंकि- "गुरुजी कहते है-सच्ची श्रद्धा और समर्पण, भक्ति के साथ किया गया कार्य अवश्य ही सफल होता है। (5) बहुत पाया तो कुछ खोया भी कहते है किसी चीज़ को पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है। वैसे ही एक तरफ इतनी बड़ी सफलता मिली तो दूसरी तरफ कुछ खोना भी पड़ा। हमारे कुछ साथियों ने रास्ते मे हमारा साथ छोड़ दिया, और हमसे कह गए कि- तुम्हे अभी गुरुजी की बहुत ज्यादा प्रभावना करनी है, तुम्हारा व्हाट्सएप्प पर रहना बहुत जरूरी है। केवल हम ही बचे रहे, हम भी whats app छोड़ना चाहते थे, लेकिन पता नहीं कौन सी शक्ति थी, न जाने क्या था कि- हम छोड़ नहीं पाए, ये उन लोगों के सातिशय पुण्य का तीव्र उदय है, जो गुरुजी के जीवन के बारे में जानना चाहते है, हम उसमे निमित्त बन गए। इसलिए चाहकर भी हम स्वर्णिमसंस्मरण से दूर नहीं हो पाए। नहीं तो जैसे हमने अन्य ग्रुप छोड़े थे, वैसे ही ये भी छोड़ सकते थे, लेकिन नहीं छोड़ पाए। ग्रुप से बहुत सारे लोगो को बाहर किया तो उन लोगो को बुरा लगा, ग्रुप से अब तक 100 से ज्यादा लोगो को बाहर कर दिया जिन्होंने नियम का पालन नहीं किया। कई लोग तो हमे block करके बैठे है। कई लोगो को हमारे कारण विकल्प हुए, तो उनके धर्मध्यान में बाधा आयी। इन सब मे निमित्त हम बन गए। लोग हमें बुरा समझने लगे, घमंडी कहने लगे। सबकी अपनी-अपनी सोच होती है। लेकिन अपने गुरुदेव के समान ही हम भी अपने अन्तस् में करुणा भाव रखे हुए है- किसी को ग्रुप से जब बाहर करते थे तो उससे ज्यादा दुःख हमे होता था, और उनको अन्य ग्रुप में add कर देते थे, क्योंकि हम बिल्कुल भी नहीं चाहते कि-कोई भी गुरुजी की बातों से अनभिज्ञ रहे। सब विद्या-गंगा में स्नान करके अपना जीवन सफल बनायें।बहुत सारे लोगों से बहस भी हुई। कई नए गुरुभक्तों से मित्रता हुई। सभी से बहुत सारा सीखने को मिला। (6) समिति का धन्यवाद हमने तो कुछ भी नहीं किया, सब समिति के लोगो ने किया, हमारा तो बस नाम हो गया, कि-हमने किया। रास्ते मे बहुत बाधाये आई, कभी-कभी लगा कि- यही सब छोड़ दे। लेकिन समिति के लोगो ने समय-समय पर हमारा साथ दिया। हमेशा प्रोत्साहित किया, जब कभी निराशा हुई। हम सभी समिति के लोगों ने अब तक निःस्वार्थ भावना से गुरुजी की सेवा की।और सच्चे मन से गुरुजी की प्रभावना अपने जीवन की अंतिम श्वास तक करेंगे। हम सभी को न ही कोई लोकख्याति, न ही कोई सम्मान, न ही किसी से अपेक्षा रही। बस सच्चे मन से गुरुजी की प्रभावना करते रहे, और आगे भी करते जायेगे। समिति के लोगो का बहुत बहुत धन्यवाद जो उनसभी ने गुरुदेव की प्रभावना में हमारी बहुत बड़ी सहायता की। (7) लोगों के मन के भाव, और सुझाव अभी कुछ दिन पहले सभी के पास 1 मैसेज गया था कि- आपको ग्रुप कैसा लगा, कोई परेशानी, या कोई सुझाव। जिससे हम जो ग्रुप में कमियां है उसे सुधार सके और गुरुजी की और ज्यादा प्रभावना कर सके। तो लोगों के रिप्लाई आये,उन्हें पढ़कर बहुत ज्यादा प्रसन्नता हुई, लोगो के मन के भाव को जानकर। ऐसा लगा, कि-ग्रुप बनाना बहुत सार्थक हुआ। साथ ही कुछ लोगों ने अपने सुझाव भी दिए जो बहुत अच्छे लगे,और स्वर्णिमसंस्मरण उस दिशा में भी आगामी जल्द ही कार्य करेगा। बहुत से लोगों ने हमारे बारे में सुझाव में हमारी उम्र और समर्पण के बारे में लिखकर भेजा कि- भैया कि उम्र 19 वर्ष की है, और इतनी बड़ा कार्य किया, हमे आश्चर्य होता है, तो उनके रिप्लाई में हम बता दे कि- हमे भी अपनी उम्र पर आश्चर्य होता कि- हम 19 वर्ष के हो गए, और कुछ भी नहीं कर पाए, एक तरफ तो जिनसेन स्वामी जी 8 वर्ष की उम्र में मुनि बन गए थे, आचार्य कुन्दकुन्द भगवान 11-12 वर्ष की आयु में मुनि बनकर अपनी आत्मा के कल्याण के मार्ग पर अग्रसर हो गए थे। और हमारे जीवन के 19 वर्ष बीत जाने पर भी हम अभी तक संसार मे फसे हुए है। इस बात को सोचकर हमे भी आश्चर्य होता है। और रही बात हमारे समर्पण की तो जब आपके नस-नस में, हर एक श्वास में आचार्य श्री जी समा जायेगे। तब आप हमारी भावनाओ को समझ जाओगे। आपका उत्तर उस दिन आपको मिल जाएगा। अभी हमारे समर्पण में बहुत कमी है, हमे तो वैसा समर्पण करना है, जैसा आचार्य श्री जी ने अपने गुरु ज्ञानसागर जी महाराज जी के प्रति किया था, उसको प्राप्त करना है। हमे पता है हमारी अभी मार्ग में बहुत परीक्षा होनी वाली है, पर गुरुजी हमारे साथ है तो हमे किसी बात का डर नहीं, सब उन्ही की कृपा से हो जाएगा। अब तक सब उन्ही ने किया है, आगे भी वो ही करेंगे (8) उपसंहार हे गुरुवर! अब तक तो हम 100 संस्मरण के माध्यम से तो सिर्फ आपके चरणों में प्रस्तावना भी नहीं बना पाए। आपके विराट व्यक्तित्व के बारे में जितना लिखा/बताया जाए, उतना ही कम है। युगों-युगों तक, सौ-सौ जिव्हा मिल करके भी गाये, लेकिन आपका गुणानुवाद पूरा नहीं हो सकता। ये तो मात्र चंद शब्दों से आपके चरणों मे प्रस्तावना बनाना, सूर्य को दीपक दिखाने के समान था। अब आपके विराट व्यक्तित्व की अनवरत यात्रा शुरू होंगी। हे जीवनदाता गुरुवर! आपने इस पापी को अपनी शरण दी, इस पापी के जीवन को उत्थान के मार्ग पर लगाया। अनन्त उपकार किया इस जीवन पर। यह आपका शिष्य मोक्ष प्राप्त करने के 1 समय पहले तक ऋणी रहेगा आपका, कभी भी आपके उपकारों को नहीं चुका पायेगा। बस गुरुदेव यही भावना है कि- आपके चरणकमलों में दीक्षा धारण कर आपके ही चरणों मे समाधि धारण कर आपके साथ शीघ्र ही मोक्षमहल को प्राप्त कर सकूँ। और सदा अनन्तकाल तक मोक्षमहल मे आपके ही निकट स्थान पाकर अनन्तानन्त काल पर्यन्त अपनी आत्मा में लीन हो जाऊं अंत में अपने परम इष्ट देव कुंडलपुर के बड़े बाबा जी, परमोपकारी पितातुल्य, जिनके चरणों की छत्रछ्या में बैठकर श्री समयसार जी महाग्रन्थराज जी का अध्ययन किया, ऐसे पूज्य मुनि पुंगव श्री 108 सुधासागर जी महामुनिराज, और असीम वात्सल्य प्रदायी आर्यिका माँ 105 पूर्णमति माताजी के चरणों मे नमन करता हुआ..... अपने पूज्य श्वासों के स्वामी, जीवनदाता गुरुदेव श्री विद्यासागर जी महाराज के पावन पुनीत चरणों मे समाधि की अभिलाषा करता हुआ आपके चरणों की धूल............
  2. अविरल स्वभाव बोध में परिणमन कर असीमित रहस्य के समाधान प्राप्त गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के श्री चरणों में सम्पूर्ण विनय अर्पित करता हूं.... हे गुरुवर आपने ब्रह्मचारी विद्याधर को जितना दिया वो लेते गए, कुछ भी छोडना नहीं चाहते थे। इस कारण उन्होंने दृढ़ संकल्प कर रखा था कि रोज का होमवर्क रोज करके ही विश्राम करना एवं अपने संकल्प के पूरा करने में ऐसे दत्तचित्त रहते थे कि कोई भी बाधा उन्हें बाधा दे ही नहीं पाती थी। इस संबंध मे नसीराबाद के आपके भक्त कुंतीलाल जी गदिया ने ब्रह्मचारी विद्याधर जी के बारे में बताया कि वह कैसे दृढ़ संकल्पी थे उन्होंने उस समय का संस्मरण सुनाया- अप्रैल - मई 1968 नसीराबाद में ब्रह्मचारी विद्याधरजी, ज्ञानसागर जी महाराज के साथ सेठ ताराचंद सेठी जी की नसिया में रुके हुए थे। जवान सुंदर ब्रम्हचारी जी को देख कर हम सभी लोग बड़े प्रभावित होते थे। हम सुबह - दोपहर - शाम तीनों वक्त नसिया जी आते थे। गुरु ज्ञानसागर जी महाराज ब्रम्हचारी जी को सुबह- दोपहर में संस्कृत और प्राकृत के धर्म ग्रंथ पढ़ाते थे। और नसीराबाद के विद्वान भी उन्हें हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत पढ़ाने आते थे। वह सदा पढ़ते ही रहते थे। और दीवार की ओर मुख करके स्वाध्याय करते थे। वह भी गुरु महाराज के कक्ष में सदा उनके सामने ही बैठते थे। समाज के लोग ज्ञान सागर जी महाराज से चर्चा करते तब भी विद्याधर जी स्वाध्याय में लीन रहते थे। उन्हें बाधा नहीं होती थी वह किसी को भी नजर उठाकर नहीं देखते थे। रात्रि में ज्ञान सागर जी महाराज की वैयावृत्ति के बाद हम लोग उनसे कहते - भैया जी बहुत पढ़ाई हो गई अब तो बंद करो। तो वे कहते थे- "गुरु जी ने जो पढ़ाया उसे पूरा याद करके ही विश्राम करूँगा।" एक भी दिन उन्हें सोते हुए नहीं देखा, कारण कि हम लोग रात को 10:00 बजे चले जाते थे। इस तरह ब्रह्मचारी विद्याधर जी ज्ञानोपजीवी बनकर ज्ञान को अपना भोजन बना बैठे थे। वह कण्ठगत ज्ञान आज उनके वचन- मन-काय से प्रगट हो रहा है और पुरुषार्थ को नमन करता हूं और भावना भलत हूं कि- मैं भी ज्ञानोपजीवी बनकर आत्मरस चखूँ...... अन्तर्यात्री महापुरुष पुस्तक से साभार
  3. आत्मानुशासित चर्या में केंद्रित गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के चरणो में नमोस्तु - नमोस्तु - नमोस्तु..... हे गुरुवर! ब्रह्मचारी विद्याधर आपकी हर आज्ञा को पूर्ण श्रद्धा, भक्ति के साथ पालन करते थे। इस में किसी भी प्रकार का प्रमाद नहीं करते थे। गुरु आज्ञा को दृढ़ता के साथ पालन करने का यह संस्कार बचपन से ही आ गया था। बचपन में यह संस्कार कहां से मिला इसका समाधान चिंतन में यह आता है कि - पूर्व जन्म के संस्कार जाग्रत हुए हैं। आज्ञाकारिता के बारे में नसीराबाद मे आप के परम भक्त श्री शांतिलाल जी पाटनी ने ब्रह्मचारी विद्याधर जी का गुरु समर्पण का संस्मरण सुनाया, वह मैं आपको लिख रहा हूं - एक दिन नसीराबाद में हमने ब्रह्मचारी विद्याधर जी को कहा- आप धोती दुपट्टा धोते हैं तो आपका समय खराब होता है, आप मुझे दे दिया करें मैं उनको धो दिया करुंगा। तो विद्याधर जी मना करते हुए बोले- "गुरु जी की आज्ञा है खुद के कपड़े स्वयं धोना, इसलिए मैं नहीं दे सकता।" तो मैंने कहा - मैं चुपचाप धो दिया करूंगा, गुरु महाराज को पता नहीं चलेगा तो ब्रह्मचारी जी बोले- "मुझे तो पता है ना, आज्ञा क्या है ?" यह सुनकर मेरे हर्षाशु आ गए, हमने कहा- भैया जी आप धन्य हैं, गुरु आज्ञा को सदा ध्यान रखते हैं। तो ब्रह्मचारी विद्याधर जी बोले- धन्य तो आप हैं, आपने मुझे गुरु आज्ञा याद कराई....। इस तरह उन्होंने गुरु आज्ञा में पूर्ण आस्था रखते हुए असंयमी श्रावक की बात नहीं मानी। ऐसी आस्था को नमन करता हुआ..... अन्तर्यात्री महापुरुष पुस्तक से साभार
  4. क्या कहता हैं आपका अनुमान, कौनसा होगा स्थान ? 1 जनवरी 2017 को निकलेगी अति भव्य आलौकिक अति प्राचीन अतिशयकारी जिन प्रतिमाएं एवं होगा महामस्तकाभिषेक पूज्य गुरुदेव मुनि पुंगव तीर्थ जिंर्णोद्धारक श्री 108 सुधा सागर जी महाराज ने की आज सुबह के प्रवचन मे घोषणा 1 जनवरी 2018 नववर्ष की प्रथम बेला मे पूज्य गुरुदेव कराएंगे 50 से अधिक जिन प्रतिमाओ के अद्धभुत दर्शन ।। लगेगा भव्य समोशरण ।। होगा प्रथम महामस्तकाभिषेक ।। तो तैयार हो जाये ऐसी अद्धभुत अतिशयकारी जिन प्रतिमाओं के अभिषेक एवं दर्शन के लिए स्थान अभी निश्चित नही है, गुरुदेव के मन की गुरुदेव ही जाने ।। चलो नववर्ष मनाने, गुरुदेव के द्वारे
  5. 26 नवंबर 2017 (रविवार) आशीर्वाद आचार्य गुरुवर श्री 108 विद्यासागर जी महाराज मंगल सानिध्य मुनि श्री 108 प्रशांत सागर जी मुनि श्री 108 निर्वेग सागर जी मुनि श्री 108 विसद सागर जी एंव आर्यिका 105 गुणमति माताजी आर्यिका 105 अनंतमती माताजी कार्यक्रम रुपरेखा प्रातः 8:30 बजे - गुरु पूजन 9:00 बजे - मंगल प्रवचन विद्यार्थियों के लिये विशेष दोप• 1:30 बजे - दिशाबोध कार्यक्रम 3:00 बजे - स्वल्पाहार 3:30 बजे - विद्यार्थियों के प्रश्न, शंका समाधान नोट- स्कूल,कॉलेज में पड़ने वाले सभी जैन विद्यार्थी तथा कार्यरत युवा जन भी समय पर उपस्थित होकर धर्म लाभ प्राप्त करें । स्थान- श्री 1008 पारसनाथ दिगम्बर जैन मंदिर धर्मशाला गोपालगंज सागर |
  6. जैन विद्यापीट, भाग्योदय तीर्थ, सागर, म. प्र. - 9109090111 , 9109090222
  7. गुरुवर के स्वर्ण दीक्षा प्रसंग पर आचार्यश्री द्वारा रचित संपूर्ण साहित्य एवं प्राचीन आचार्यों द्वारा रचित महत्वपूर्ण ग्रंथों को प्रकाशित करने का मानस बना था । यह ग्रंथ सैट मात्र रु.11000/- की न्यौछावर राशि देकर किसी भी मंदिर, पुस्तकालय, मुनि संघ, विद्यालय को भेटकर कौण्डेश ग्वाले की तरह आचार्य कुंदकुंद बनने का स्वर्णिम अवसर भी आप प्राप्त कर सकते हैं । आप इन ग्रंथों को अपने घर में स्वाध्याय के लिए रख सकते हैं। महोत्सव के प्रथम चरण में 50 ग्रंथ प्रकाशित किए गए हैं, शेष समापन बेला में प्रकाशित करने की भावभूमि बनी है। अभी आप नीचे दिए गए बटन से आप रु.11,000/- जमा कराके ज्ञान दान कर सकते हैं, यह ग्रंथ आपको जैन विद्यापीठ, सागर (म.प्र.) द्वारा कुरियर के माध्यम से भेजे जायेंगे |
  8. ।। पिच्छिका परिवर्तन समारोह ।। किशनगढ़ राजस्थान ■ सम्मानीय महानुभाव, जय जिनेन्द्र। परम पूज्य मुनि श्री सुधासागर जी महाराज ससंघ का पिच्छिका परिवर्तन समारोह दिनांक 17 दिसंबर 2017 दिन रविवार को दोपहर 1:30 बजे किशनगढ़ राजस्थान में आयोजित होगा। कृपया पधारें और इस संयम उपकरण परिवर्तन देखकर, अपनी विशुद्धि बढ़ाएं, पुण्यार्जन करें।
  9. सूक्ष्मातिसूक्ष्म संबोधनात्मक कल्पना शक्ति की धनि महाकवि गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के चरणो में सीमातीत नमोस्तु..... हे गुरुवर! दक्षिण की त्यौहार हो या सामाजिक कोई कार्यक्रम या लोक संस्कृति का कोई उत्सव परिवार की सहभागिता में बालक विद्याधर सदा उत्साह के साथ बालोचित कार्य करके सभी की शाबाशी लेता था। इस संबंध में एक स्मृति आपकी लिख रहा हूं जो विद्याधर के अग्रज भाई महावीर जी ने बतलाई - दक्षिण के सभी लोग शरद पूर्णिमा के दिन अपने अपने खेतों पर जाते हैं और भूमि पूजन करते हैं। हम लोग भी प्रतिवर्ष जाते हैं। उस दिन घर से भोजन पकवान आदि बनाकर ले जाते हैं और वहां जाकर 10 -11 बजे खेत पर पेड़ के नीचे बैठते हैं और भूमि पूजन करते हैं। विद्याधर 4-5 वर्ष की अवस्था से ही खेत पर चूहों के लिए, पक्षियों के लिए, गिलहरियों के लिए भोजन खिलाता था।और सभी के लिए केले के पत्ते धोकर के ही देता था। उस पर रखकर हम सभी लोग भोजन करते थे। शाम को हम घर वापस आ जाते थे। उसकी इस क्रिया को देख मां उसे शाबासी देती थी। इस तरह विद्याधर अपनी प्रत्येक अवस्था में अपनी भूमिका के अनुसार कर्तव्य का पालन करके सभी का मन जीत लेता था। ऐसे लोग एवं धर्म संस्कृति के ज्ञाता गुरुवर के चरणों में नमोस्तु करता हुआ...... अन्तर्यात्री महापुरुष पुस्तक से साभार
  10. चंद्रगिरि , डोंगरगढ़ में 23 नवं.दोपहर दो से तीन "प्रतिक्रमण ग्रंथ त्रयी" का स्वाध्याय संघस्थ साधुओं के लिए प्रारम्भ हुआ |
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