कभी-कभी संत भी मार्ग की भूल-भुलैयों में भटक जाते हैं। जंगल के रास्तों में अटक जाते हैं, ऐसे समय कोई ग्रामीण जन आकर रास्ता बताते हैं। जब संत पुरुषों के साथ वे ग्रामीणजन कुछ समय साथ रहते हैं तो उनके जीवन में संत भी अपना प्रभाव छोड़ जाते हैं। कैसे छोड़ते हैं? तो आचार्यश्री ने अपना एक प्रसंग सुनाया।
बात सन 1977 के करीब की है। हटा से कटनी तरफ जाना था। एक रजपुरा से बाजना गाँव का जो रास्ता था, उसमें बहुत घना जंगल था। करीब 20-25 किमी. का रास्ता था। उस समय तो इतना रास्ता एक दिन में एक बार में तय कर लेते थे। विहार किया बाजना की ओर। साथ में कोई रास्ता दिखाने वाला नहीं था, एक दो व्यक्ति तो थे मगर सही रास्ता उन्हें भी पता नहीं था, जंगल था। चलते जा रहे थे तभी एक व्यक्ति आगे दिखा। देखकर संतोष हुआ चलो उससे रास्ता पूछ लेंगे। उसके पास जाकर पूछा क्यों बाबाजी बाजना का रास्ता कहाँ से है? पहले तो उसने चरण स्पर्श किया।
इसके बाद उसने कहा- चलो बाबाजी हम बाजना का रास्ता दिखाते हैं। करीब एक-दो कि.मी. साथ आया वह आदिवासी जैसा लगता था। करीब 50-55 वर्ष की उम्र का होगा। रास्ते में चलते समय आचार्य श्रीजी ने उससे पूछा- क्या करते हो बाबाजी? अपने परिवार का पालन-पोषण करता हूँ।' आचार्यश्री ने उससे पूछा- माँस खाते हो? और शराब पीते हो? बोला- 'हम आदिवासी लोग हैं, जंगल में शिकार करते हैं, तो माँस खाते हैं और शराब आदि भी पी लेते हैं। आचार्यश्री ने सीधी सरल भाषा में उसके लिए समझाया। देखो बाबाजी हम मनुष्य हैं, माँस आदि खाने की हमें आवश्यकता नहीं है। हम मूलतः शाकाहारी हैं। हमें अन्न हैं, सब्जी हैं, फल हैं, इनसे अपना पेट भरना चाहिए। हम दूसरे जीवों को मारकर अपना पेट भरते हैं, तो पाप का बंध होता है। तुमने पहले पाप किया था, तो आज ऐसे गरीबी के साथ जन्म हुआ, अब पाप करोगे, दूसरे जीवों को मारोगे, तो नरक तिर्यच गतियों में भटकोगे। वह सब ध्यान से सुनता रहा। अंत में उसने माँस, मदिरा आदि का त्याग कर दिया।
थोड़ी देर बाद 2-3 रास्तों वाला स्थान आया। बोला महाराज! इस रास्ते से सीधे चले जाओ। 2-3 मील है। बाजना यहाँ से करीब 1 घंटा लगेगा। आचार्यश्री ने कहा- जो नियम लिया है, उसका ध्यान रखना है। उसने कहा- 'हओ महाराज! ध्यान रखेंगे।' वह लौट गया। आचार्यश्री फिर बोले- उस दिन हमने सोचा, अच्छा हो गया। हमें रास्ता भी मिल गया और एक जीव का कल्याण भी हो गया, मांस का त्याग कराने से छोटे-मोटे बहुत से जीवों की भी रक्षा हो गई।