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अंतरराष्ट्रीय मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता 1 से 5 जून 2024 ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

संयम स्वर्ण महोत्सव

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Blog Entries posted by संयम स्वर्ण महोत्सव

  1. संयम स्वर्ण महोत्सव
    पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज की अगवानी के लिए सुबह से जबलपुर रोड पहुंचे थे अनुयायी।
     
    दमोह - संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी  महाराज का गुरूवार को शहर में मंगल प्रवेश हुआ तो उनकी एक झलक पाने के लिए सड़कें थम गईं। जबलपुर नाका पर इतनी भीड़ जमा हो गई कि उसे नियंत्रित करने में पुलिस को पसीना आ गया। मुठिया तिराहा से आचार्यश्री के कदम दमोह की ओर बढ़े और जबलपुर नाका से होते हुए बेलाताल मार्ग से जैन धर्मशाला पहुंचे। जैन धर्मशाला तक आचार्यश्री मंगल अगवानी के लिए सड़क के दोनों ओर हजारों श्रद्धालु खड़े थे। आचार्य श्री की एक झलक पाने के लिए श्रद्धालु पलक पावड़े बिछाकर खड़े थे। इससे पहले सुबह 4 बजे से ही श्रद्धालुओं का जबलपुर रोड पर जमा होना चालू हो गया था। लोगों ने जगह-जगह स्वागत द्वार बना रखे थे। जैसे ही आचार्यश्री जबलपुर नाका पहुंचे और सीधे बेलाताल मार्ग की ओर मुड़ गए तो समाज के लोग खुशी से झूम उठे। दरअसल समाज के लोग इस तैयारी में थे कि आचार्यश्री किल्लाई नाका जाएंगे, मगर वहां न जाकर आचार्यश्री सीधे नन्हें जैन मंदिर की ओर चले गए। देर शाम आचार्यश्री विहार करते हुए हिन्नाई उमरी पहुंचे। वहां से उन्हें ससंघ के साथ उनका विहार टीकमगढ़ पपौरा जी की ओर चल रहा है। इस बीच आचार्यश्री श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन नन्हे मंदिर पहुंचे। आचार्य श्री ने मंदिर जी में प्रवेश कर मूलनायक भगवान पार्श्वनाथ के दर्शन किए। उसके बाद संघ ने भी श्रीजी के दर्शन किए। यहां आचार्यश्री ने अपने संक्षिप्त प्रवचन दिए। शुक्रवार शाम गुरु जी के कदम बटियागढ़ मार्ग की ओर बढ़ गए। आचार्य श्री का संघ टीकमगढ़ जिलेेे में पपौरा जी जा रहा है। 34 साल बाद आचार्यश्री टीकमगढ़ जा रहे हैं।
     
    शिक्षा व्यवस्था राष्ट्रभाषा हिंदी में होना चाहिए
    आचार्यश्री ने अपने प्रवचनों में बताया कि विधानसभा में प्रवचनों के दौरान भी उन्होंने कहा था कि देश की शिक्षा व्यवस्था राष्ट्रभाषा हिंदी में होना चाहिए। भले ही इमसें अंग्रेजी एक विषय हो। यहां पर जो विद्यापीठ की स्थापना की जा रही है उसमें बच्चों को प्रवेश दिलाएं न कि एडमिशन।
     
    40 मिनट में जुड़ गए एक करोड़ रुपए
    दोपहर में सामयिक के बाद आचार्य श्री का मंगल विहार घंटाघर, स्टेशन चौराहा, तीन गुल्ली होते हुए सागर नाका गांधी आश्रम की ओर हुआ। जहां पर विद्यायतन विद्या पीठ के निर्माण के लिए भूमि पूजन शिलान्यास कार्यक्रम आचार्यश्री के सानिध्य में हुआ। शाम कार्यक्रम में 4.40 बजे आचार्यश्री कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे। कार्यक्रम के दौरान विद्या पीठ के लिए 40 मिनट में एक करोड़ रुपए से ज्यादा दान की राशि जुड़ गई। आचार्य श्री की दिव्य देशना का लाभ श्रद्धालुओं को मिला। इसके बाद इमलाई बायपास मार्ग की ओर से आचार्य श्री का मंगल विहार हो गया। बताया गया कि गुरु जी का रात्रि विश्राम उमरी गांव हुआ। वहां से प्रातः बेला में आचार्य श्री का मंगल विहार नरसिंहगढ़ की ओर होगा। नरसिंहगढ़ में आचार्य श्री की आहारचर्या होगी।
  2. संयम स्वर्ण महोत्सव
    निधि के संबंध में बताया गया है कि यह परिवार की बहुत लाड़ली बेटी हैं
      दमोह. कहते हैं कि आचार्य विद्यासागर के दर्शन पाकर लोग इंसानी जन्म की वास्तविक समझकर लोभ, मोह से दूरियां बना लेते हैं। कई लोगों ने आचार्यश्री के दर्शन लाभ लेकर बैराग्य धारण कर लिया है और आज वह संघ में शामिल होकर समाज व विश्व शांति की ओर अग्रसर हैं। इन्हीं में जबेरा नगर की एक बेटी भी शामिल हुई है। आचार्यश्री के दर्शन लाभ पाने के बाद जबेरा नगर का गौरव बढ़ाते हुए, नगर के गल्ला व्यापारी कमल चौधरी की सुपुत्री निधि ने आजीवन सयंम ब्रह्मचर्य व्र्रत को अंगीकार किया है। निधि के संबंध में बताया गया है कि यह परिवार की बहुत लाड़ली बेटी हैं, इनके दो बड़े भाई भाइयों नीलेश व नागेश हैं व दो बहन हैं जिनमें यह सबसे छोटी हैं। निधि इन दिनों जैन मंदिर में संचालित श्रीअनेकांत विद्या केंद्र की शिक्षिका भी हैं। परिवार के लोगों ने बताया है कि निधि की रूची शुरू से ही धार्मिक रही है।
     

     

    जबेरा में आर्यिका संघ के चातुर्मास के बाद से निधि ने स्वयं को पूरी तरह धार्मिक गतिविधियों के लिए समर्पित कर दिया था। निधि ने एम से पोस्ट ग्रेज्युवेशन किया है साथ ही यह कम्प्यूटर शिक्षा में पीजीडीसीए भी किए हुए हैं, इसके अलावा एमएसडब्लू डिप्लोमाधारी भी हैं।

    विदित हो कि दमोह जिले के पथरिया निवासी अमित जैन जो अब निराग सागर के नाम से जाने जाते हैं, इन्होंने वर्ष २००९ में आचार्यश्री से अमरकंठक में ब्रह्मचर्य व्रत लिया था और वर्ष २०१३ में दीक्षा लेकर मुनिपद धारण किया था। वहीं इनके अलावा दमोह के इंकमटैक्स वकील सुनील जैन ने भी आचार्यश्री की दीक्षा लेकर मुनिश्री पद धारण कर लिया था, आज इन्हें निर्मोंह सागर के नाम से जाना जाता है। इन्होंने १८ नवंबर २००७ को ब्रह्मचर्य व्रत सागर जिले के बीना बारह में धारण कर लिया था। १० अगस्त २०१३ में इन्हें आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने मुनि दीक्षा दी थी।
     
    https://www.patrika.com/damoh-news/brahmacharya-vrat-2629038/
     
     
     


  3. संयम स्वर्ण महोत्सव
    आहार चर्या शुभ संदेश : फाल्गुन कृष्ण ५
    आज परम पूज्य संत शिरोमणि १०८ आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज का पड़गाहन करके आहार दान देने का सौभाग्य -
    श्री रतनलाल जी जैन, श्री संजय जी जैन, श्री अजय जी जैन, श्री मोनू जी जैन बड़जात्या (लाभांडी पंच कल्याणक में कुबेर इन्द्र के पुण्यार्जक) कुनकुरी निवासी एवं उनके परिवार वालों को प्राप्त हुआ |  
    सूचना प्रदाता
    सिंघई श्री सोनू जी जैन नागपुर
  4. संयम स्वर्ण महोत्सव
    आहार चर्या शुभ संदेश - फाल्गुन कृष्ण ६ 
    आज परम पूज्य संत शिरोमणि १०८ आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज का पड़गाहन करके आहार दान देने का सौभाग्य -
    श्री यशवंत जी जैन (दिगंबर जैन मंदिर, मालवीय रोड के कोषाध्यक्ष) डी डी नगर, रायपुर निवासी एवं उनके परिवार वालों को प्राप्त हुआ | सूचना प्रदाता
    सिंघई श्री सोनू जी जैन नागपुर
  5. संयम स्वर्ण महोत्सव
    आगे की सुचना देखने के लिए यहाँ पर क्लिक करें
     
     
    पूज्य आचार्य भगवन ससंघ का हुआ मंगल विहार।

    आज 28 जून अभी 3 बजे परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का मंगल विहार, टीकमगढ़ से अतिशय क्षेत्र श्री बंधा जी की ओर हुआ।
    ◆ आज रात्रि विश्राम: रमपुरा (11 किमी)
    ◆ कल की आहार चर्या: दिगौड़ा सम्भावित (रमपुरा से 13 किमी)
    ■ आचार्यसंघ की अगवानी करेंगे मुनि संघ।
    पूज्य मुनिश्री अभय सागर जी महाराज ससंघ का बरुआ सागर से हुआ मंगल विहार। परसों 30 जून को प्रातःकाल पूज्य आचार्यसंघ की भव्य अगवानी करेंगे, पूज्य मुनिश्री अभय सागर जी ससंघ। वर्षो के अंतराल के उपरांत करेंगे गुरु दर्शन, मिलेंगे गुरुचरण।
     
     
     
    भव्य मंगल प्रवेश
    नन्दीश्वर कालोनी टीकमगढ़

             ???
    श्रीमद आचार्य भगवंत श्री विद्यासागर जी महाराज का बालयति संघ सहित भव्य मंगल प्रवेश नन्दीश्वर जिनालय टीकमगढ़ में आज 28 जून गुरुवार को प्रातः वेला में हुआ । 
           गत वर्ष नन्दीश्वर कालोनी में आर्यिका माँ विज्ञानमती माता जी ससंघ वर्षायोग सम्पन्न हुआ था। आर्यिका संघ के सानिध्य में त्रिकाल चौवीसी जिनालय का भूमिपूजन किया गया था।
     


    ????????
     
     
    ?विद्या गुरु का मंगल विहार?
    संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ का अभी अभी ६.४० मिनट पर अतिशय क्षेत्र पपौरा जी से टीकमगढ़ के लिए हुए मंगल विहार
    आहरचार्य ??टीकमगढ़ संभावित

     
  6. संयम स्वर्ण महोत्सव
    आज अमरकंटक में आचार्यसंघ का हुआ मंगल प्रवेश
     
    ----------------------
    आज 2 मार्च को दोपहर 3:30 बजे अमरकंटक में आचार्यसंघ का संभावित मंगल प्रवेश
    बिहार अपडेट 2 मार्च 2018  
    संतशिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर महाराज का ससंघ मंगल बिहार बिलासपुर से प्रसिद्ध सर्वोदय जैन तीर्थक्षेत्र अमरकंटक  की ओर चल रहा है। आज 2 मार्च को दोपहर 3:30 बजे अमरकंटक  में आचार्यसंघ का मंगल प्रवेश होगा। 2 मार्च को सर्वार्थसिद्धि योग और एकम तिथि है आचार्य संघ का कुछ दिनों का प्रवास इस तीर्थ क्षेत्र पर होने की प्रबल संभावना है ।  पूरे देश भर से लोग होली से रंग पंचमी के बीच में आचार्य संघ के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं अमरकंटक में आज हजारों लोग उपस्थित हैं आचार्य श्री की आहार चर्या अमरकंटक से 6 किलोमीटर पहले कबीर चौराहे पर हुई।           
     
  7. संयम स्वर्ण महोत्सव
    || ?केशलोंच अपडेट ?*आज आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महामुनिराज का केशलोंच हुआ है,आज आचार्यश्रीजी का "उपवास" है l

    *बड़ी अजीब सी बंदिश हैं ||
    || गुरूदेव आपकी भक्ती मै ||
    || ना तूने कभी हमे कैद रखा ||
    ||ना ही हम कभी फरार हो पाए ||
    |जय जय गुरुदेव |

  8. संयम स्वर्ण महोत्सव
    आज कल के लोगों का दृष्टिकोण
     
    भूतल पर दो चीजें मुख्य हैं, शरीर और आत्मा। शरीर नश्वर और जड़ है। तो आत्मा शाश्वत और चेतन। इन दोनों का समायोग विशेष मानव-जीवन है। अत: शरीर को पोषण देने के लिए धन की जरूरत होती है तो आत्मा के लिए धर्म की, एवं साधक दशा में मनुष्य के लिए यद्यपि दोनों ही अपेक्षणीय हैं फिर भी हमारे बुजुर्गों की निगाह में धर्म का प्रथम स्थान था। हां, उसके सहायक साधन रूप में धन को भी स्वीकार किया जाता था। परन्तु जहां पर वह धन या उसके अर्जन करने की तरकीब यदि धर्म की घातक हुई तो उस ऐसे धन को लात मारकर धर्म का संरक्षण किया करते थे, किन्तु आज के लोगों का दृष्टिकोण सर्वथा इसके विपरीत है।
     
    आज तो धर्म को ढकोसला कहकर धन को ही सब कुछ समझा जाता है। येन केन रूपेण पैसा बटोरने का ही लक्ष्य रह गया है। कहीं कोई बिरला ही मिलेगा जो कि अपनी मेहनत की कमाई पर गुजर बसर कर रहा हो, प्रायः प्रत्येक का यही विचार रहता है कि कहीं से लूट खसोंट का माल हाथ लग जाये। कहीं पाकेटमारी का हल्ला सुनाई देता है तो कहीं जुआ-चोरी का। कोई खुद चोरी करता है तो कोई उसके लाये हुए माल को लेकर उसे प्रोत्साहन देता है। आयात निर्यात की चोरियों का तो कुछ ठिकाना ही नहीं रहा है।
     
    सुना गया है दूसरे देशों से सोना लाने वाले लोग जाँघ फाड़कर वहां रख लाते हैं। कोई सोने की गोलियां बनाकर मुंह में रख लेते है। बिना टिकट रेलगाड़ी में जाना आना तो भले-भले लोगों के मुंह से सुना जाता है, मानो वह तो कोई अपराध ही नहीं। मैं तो यह कहता हूं कि व्यक्तिगत चोरी की अपेक्षा से भी स्वार्थवश होकर कानून भंग करना और सरकारी चोरी करना तो और भी घोर पाप है, अपराध है। क्योंकि उसका प्रभाव तो सारे समाज पर जा पड़ता है। परन्तु जो कोई सिर्फ अपनी हवस पूरी करना जानता है उसे यह विचार कहां? वह तो किसी भी तरह से अपना मतलब सिद्ध करना चाहता है। सरकार तो क्या, लोग तो धर्मायतनों से भी धोखा करने में नहीं चूकते हैं।
     
    गौशाला सरीखी सार्वजनिक धार्मिक संस्थाओं में भी आये दिन गड़बड़ी होती हुई सुनी जाती है। प्रामाणिकता का कही दर्शन होना ही दुर्लभ हो रहा है। सरकार प्रबन्ध करते-करते थक गई है और अपराध दिन पर दिन बढ़ते जा रहे हैं। लोग कहते हैं कि सिंह बड़ा क्रूर जानवर होता है परन्तु मैं तो कहता हूं कि ये बिना मार्का के सिंह उससे भी अधिक क्रूर हैं जो कि देश भर में विप्लव करते चले जा रहे हैं।
     
    एक रोज एक निशानेबाज आदमी घोड़े पर चढ़कर जंगल की ओर चल दिया, कुछ दूर जाने पर उसे एक बाघ दीख पड़ा तो उसने अपना घोड़ा उसी बाघ के पीछे कर दिया। थोड़ी देर बाद वह बाघ तो अदृश्य हो गया और उसकी एवज में उसकी एक साधु से भेंट हुई। तब वह साधु के पैरों पड़ा। साधु ने कहा तुम कौन हो? तो वह बोला प्रभो ! एक तीरन्दाज हूं और क्रूर प्राणियों का शिकार किया करता हूं। आज एक बाघ मेरे आगे आया था परन्तु न मालूम अब वह कहां गायब हो गया और अब तो रात होने को आ गई है। साधु ने कहा कोई हर्ज नहीं, रात को शिकार और भी अच्छा मिलता है, चलो मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूं। चलते-चलते मदन बाजार में एक वेश्या के घर पहुंच जाते हैं तो क्या देखते हो कि एक महाशय वेश्या के साथ बैठे-बैठे शराब पीते जाते है और कहते जाते हैं कि हे प्रिय, इस दुनिया में मेरी तो उपास्य देवता एक तु ही है। दिन में साधु बनकर सड़क पर बैठ जाता हूं और किसी भगत को फीचर के आंक, तो किसी को सट्टे फाटके की तेजी मन्दी देता हूं, एवं कोई पक्का जुआरी मिल गया तो उसे विजयकारक यन्त्र देने का ढोंग रचकर माल ऐंठता हूं।
     
    दिन भर में जो कुछ पाया वह रात को आकर तेरी भेंट चढ़ा जाता हूं। आगत साधु अपने तीरन्दाज से बोला कि कहो कैसा शिकार है? मगर थोड़ी दूर आगे चलो। चल कर चीफ जज के मकान पर पहुंचे तो वहां पर जज साहेब के सामने एक वकील महाशय खड़े है जो कि एक हजार मोहरों की थैली देते हुये उन्हें कह रहे हैं कि श्रीमान जी मेरे मुवक्किल का मुकदमा आपके पास विचारार्थ आया हुआ है जिसमें उसके लिये बलात्कार के अभियोग स्वरूप कारागार का हुक्म अदालत ने निश्चित किया है, प्रार्थना है कि विचार करते समय आप उसे उन्मुक्त रहने देने की कृपा करें और बाल बच्चों के लिये यह तुच्छ भेंट स्वीकार करें।
     
    यह देखकर तीरन्दाज बोला, ओह! बड़ा अनर्थ है! यहां पर तो स्वार्थवश होकर न्याय का ही गला घोंटा जा रहा है, किन्तु साधु बोला अभी थोड़ा और आगे चलना है। चलकर एक इन्सपेक्टर (निरीक्षक) के कमरे के पास पहुंच जाते हैं। वहां क्या देखते हैं कि उनके सम्मुख मेज पर तीन चार बन्द बोतले रखी हैं जिनमें शुद्ध पानी भरा हुआ है और आरोग्य सुधा का लेबिल चिपका हुआ है, आगे एक आदमी खड़ा है और कह रहा है महाशय! अपराध क्षमा कीजिये, यह दो हजार मोहरों की थैली लीजिये और इन बोतलों के बदले में आरोग्य सुधा की यह असली बोतले अब तो तीरन्दाज के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। वह कहने लगा कि हे भगवान! यहां तो जिधर देखों उधर ही यही हाल हैं, किस-किस को तीर का निशाना बनाया जाय?
     
    वस्तुत: विचार कर देखा जाये तो जिस प्रकार ये लोग अपने जीवन के लिये औरों के खून के प्यासे बने हुये हैं, अन्याय करते हैं तो मैं क्या इन सबसे कम हूं? ये लोग तो स्वार्थवश अन्धे होकर ऐसा करते हैं, मैं तो व्यर्थ इनके प्राणों का ग्राहक हो रहा हूं ! अगर कहूं कि क्रूरता का अन्त करना है तो भला कहीं क्रूरता के द्वारा क्रूरता का अन्त थोड़े ही होने वाला है। क्रूरता को मारने के लिये शान्ति की जरूरत है तो स्वार्थ को मारने के लिये त्याग की और दूसरों को सुधारने के लिये अपने आप सुधर कर रहने की, एवं अपने आप सुधर कर रहने के लिये सबसे पहले काम पर विजय प्राप्त करना आवश्यक है।
  9. संयम स्वर्ण महोत्सव
    आज का अतिशय
    ग्राम समर्रा जैन मंदिर में 3 महीने से कुएं में पानी नहीं है गुरुदेव के आने से कल थोड़ा सा पानी आया और आज सुबह 3 फुट हो गया और सब चौका में पानी मंदिर के कुआॅ से गया

  10. संयम स्वर्ण महोत्सव
    आज प्रातः ८० से अधिक ब्रह्मचारी भैया लोगों ने दीक्षा के निवेदन के साथ गुरुदेव आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के श्री चरणों में श्रीफल समर्पित किए और सभी ब्रह्मचारी भाइयों को पाद प्रक्षालन का सौभाग्य प्राप्त हुआ । गुरूदेव की मुखमुद्रा देखकर ऐसी संभावना लग रही है कि दीक्षा प्रदाता पूज्य गुरुदेव दीक्षा देकर अपने शिष्यों को कृतार्थ करेंगे। 
    तत्पश्चात् ब्र संजीव भैया कटंगी ब्रहमचारी मनोज भैया, ब्रहमचारी दीपक भैया ने पूज्य गुरुदेव की संगीतमय पूजा संपन्न करवाई

     






  11. संयम स्वर्ण महोत्सव
    रामटेक में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर महाराज का ससंघ पिच्छिका परिवर्तन समारोह आज 25 अक्टूबर को दोपहर 1:30 बजे से होगा.
  12. संयम स्वर्ण महोत्सव
    आज रुआबाँधा भिलाई में आचार्यश्री ससंघ की अगवानी एवम भव्य मंगल प्रवेश ज्येष्ठ मुनिराज योगसागरजी ससंघ मुनिराज करेंगे
    ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
    छतीसगढ़ की पावन धरा, इस्पात नगरी रुआबाँधा भिलाई में नवनिर्मित भव्य जिनालय के पंचकल्याणक प्रतिष्ठा एवम गजरथ महोत्सव, सन्त शिरोमणि आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज के ससंघ सानिध्य में  22 जनवरी से  27 जनवरी तक सम्पन्न होने जा रहे है
     12 जनवरी  शुक्रवार को सन्ध्या 4 बजे  आचार्यश्री ससंघ का भव्य मंगल अगवानी परमपूज्य ज्येष्ठ मुनिराज योगसागरजी महाराज  ससंघ करेंगे
    इस अवसर पर आप सभी सपरिवार आमंत्रित है
    निवेदक
    श्री मज्जिनेंद्र पंचकल्याणक महोत्सव समिति रुआबाँधा
    मीडिया प्रभारी
    राजेश जैन
    9893726489
    7587166389
    सन्तोष जैन शास्त्री
    7047454540
    प्रदीप बाकलीवाल
    9329124190
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  13. संयम स्वर्ण महोत्सव
    आज सहारा,
    हाय को है हायकू
    कवि के लिये |
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  14. संयम स्वर्ण महोत्सव
    जुलाई १३, २०१८ 
     
    रात्रि विश्राम हवाई अड्डे के कम्युनिटी सेन्टर में होगा।  कल प्रातः 6.30 या 7.00 बजे खजुराहो में प्रवेश होगा।
     
     
    11 जुलाई 2018, 5:15 PM परम पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ का मंगल विहार छतरपुर से खजुराहो मार्ग पर, आज दोपहर में हुआ।
    आज रात्रि विश्राम- ब्रजपुरा स्कूल भवन (छतरपुर से 11 किमी)
    कल की आहार चर्या- बसारी ग्राम (ब्रजपुरा से 8 किमी)
    8 जुलाई, रविवार।
    आज रात्रि विश्राम- खमा गाँव (4 किमी पूर्व नोगाव से)
    कल प्रातः 7 बजे- नोगाँव में भव्य मंगल प्रवेश।
    विशेष: छतरपुर में 11 जुलाई को सुवह मंगल प्रवेश संभावित।
     
    6 जुलाई २०१८ 
    मंगल विहार जतारा से हुआ.........
    आचार्य भगवन संत शिरोमणि 108 विद्यासागर जी महामुनिराज का मंगल विहार हो गया है।
    संभावित रात्रि विश्राम सिमरा में होने की संभावना है 
    कल की आहार चर्या पलेरा में होने की संभावना है।

    5 जुलाई, 4:00PM
    लिथोरा ग्राम से हुआ विहार,
    गूंज उठी तब जय जयकार ।
    12 किमी है सीतापुर ग्राम,
    यहाँ संघ करेगा रात्रि विश्राम ।।
     
    कल प्रातः होगा मंगल विहार,
    जब सूरज का होगा उजियारा।
    नगर नागरिक झूम उठेंगे,
    कल मंगल प्रवेश होगा "जतारा" ।।

    4 जुलाई 2018
    आज बॅंधा जी  से आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ का विहार हुआ । बम्होरी रात्रि विश्राम
    आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ का विहार आज श्याम ४:२० बजे अतिशय क्षेत्र बंधा जी से बम्होरी (खजुराहो) की ओर हुआ
    आज आचार्यश्री ससंघ का रात्रि विश्राम बम्होरी में होने की संभावना है 
    संभावित दिशा- बम्होरी, जतारा, छतरपुर
    आज 28 जून अभी 3 बजे परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का मंगल विहार, टीकमगढ़ से अतिशय क्षेत्र श्री बंधा जी की ओर हुआ।
    आज रात्रि विश्राम: रामपुरा (11 किमी)
    कल की आहार चर्या: दिगौड़ा सम्भावित (रमपुरा से 13 किमी)
    आचार्यसंघ की अगवानी करेंगे मुनि संघ।
    पूज्य मुनिश्री अभय सागर जी महाराज ससंघ का बरुआ सागर से हुआ मंगल विहार। परसों 30 जून को प्रातःकाल पूज्य आचार्यसंघ की भव्य अगवानी करेंगे, पूज्य मुनिश्री अभय सागर जी ससंघ। वर्षो के अंतराल के उपरांत करेंगे गुरु दर्शन, मिलेंगे गुरुचरण।
     
     
     
    भव्य मंगल प्रवेश
    नन्दीश्वर कालोनी टीकमगढ़
    श्रीमद आचार्य भगवंत श्री विद्यासागर जी महाराज का बालयति संघ सहित भव्य मंगल प्रवेश नन्दीश्वर जिनालय टीकमगढ़ में आज 28 जून गुरुवार को प्रातः वेला में हुआ।  गत वर्ष नन्दीश्वर कालोनी में आर्यिका माँ विज्ञानमती माता जी ससंघ वर्षायोग सम्पन्न हुआ था। आर्यिका संघ के सानिध्य में त्रिकाल चौवीसी जिनालय का भूमिपूजन किया गया था।
     

     
    विद्या गुरु का मंगल विहार संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ का अभी अभी ६.४० मिनट पर अतिशय क्षेत्र पपौरा जी से टीकमगढ़ के लिए हुए मंगल विहार आहरचार्य टीकमगढ़ संभावित
     

  15. संयम स्वर्ण महोत्सव
    संयम उत्सव आयो रे !
     
    आज से शुरू हो रही हैं संयम *स्वर्ण महोत्सव प्रतियोगिता* का पहला चरण 
    कुछ ही देर में आपके पास प्रश्न आएगा |
    अगर नहीं पहुंचे तो आप स्वयं यहाँ पर भी देख सकते हैं 
    https://vidyasagar.guru/blogs/blog/17-1
    *पहला चरण* 
    वेबसाइट चलना सीखो, खोजो, स्वध्ययाय करो, उत्तर दो और उपहार पाने के दावेदार बनो |
    1. उत्तर आपको whatsapp पर ही देने होंगे 
    2. प्रश्न कठिन  हो सकता हैं - पर  Hint, जो प्रश्न में दिया हैं उसको पढके, आप स्वयं उत्तर दे पाएंगे 
    3. सभी को फॉरवर्ड करें , जितने ज्यादा उत्तर, जितना उत्साह उतना बड़ा उपहार हो सकता हैं |
    4. आज से हम  प्रतिदिन एक उपहार से शुरू कर रहे हैं, जैसे जैसे हमे पुण्यार्जक मिलेंगे, उपहारों में बढ़ोतरी संभव 
    5. विजेता का नाम अगले दिन शाम तक सूचित कर दिया जायेगा 
    6 उत्तर सांय 7 बजे तक ही स्वीकार होंगे |
    *हमारा प्रयास आपका सहयोग* 
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  16. संयम स्वर्ण महोत्सव
    आज  छोटे बाबा का हुआ  पिच्छी परिवर्तन  पपौरा जी मे प्रतिभामंडल की दीदी समूह को मिला गुरु की पिच्छी परविर्तन करने का सौभाग्य
     

     
     
     
     
  17. संयम स्वर्ण महोत्सव
    22 फरवरी, गुरुवार - परम पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ का भव्य मंगल प्रवेश आज दोपहर बाद, सन्मति विहार, बिलासपुर में होने जा रहा है। बिलासपुर में आयोजित बेदी प्रतिष्ठा महोत्सव में पूज्य आचार्यसंघ का परम सानिध्य मिलेगा। आयोजन के प्रतिष्ठाचार्य होंगे ब्र. श्री सुनील भैया जी। चर्चा है कि बेदी प्रतिष्ठा उपरांत आचार्यश्री जी अमरकंटक तीर्थ की ओर मंगल विहार करेंगे एवम 3 मार्च को अमरकंटक में प्रवेश संभावित है।
  18. संयम स्वर्ण महोत्सव
    आज्ञा का देना,
    आज्ञा पालन से है,
    कठिनतम।
     
    भावार्थ -आज्ञापालन की अपेक्षा आज्ञा देना ज्यादा कठिनतम, गुरुत्तम और विशिष्ट कार्य हैं क्योंकि आज्ञा देने वाला क्रिया तो कुछ नहीं करता लेकिन इस क्रिया के परिणाम का उत्तरदायी होता है । उस क्रिया के फलस्वरूप प्राप्त होने वाले हानि-लाभ और जय-पराजय से उसका सीधा सम्बन्ध होता है। कभी-कभी आज्ञा देने वाले के सम्पूर्ण जीवन में उसका परिणाम परिलक्षित होता है । अत: आज्ञा देने की योग्यता कुछ विरले ही व्यक्तियों में होती है । 
    आज्ञापालन करने वाला आज्ञा देने वाले के आदेश के अनुसार कार्य मात्र करता है । वह उसके परिणाम का उत्तरदायी नहीं होता । अतः वह हानि-लाभ आदि में निश्चिन्त रहता है | व्याकरण का एक सिद्धान्त है कि उपदेश मित्रवत्, आदेश शत्रुवत् । आदेश या आज्ञा देने के उपरान्त सामने वाला कष्ट का अनुभव करता है क्योंकि उसके मान पर प्रहार होता सा लगता है किन्तु स्वयं दूसरों की आज्ञा का पालन करना सरल कार्य है क्योंकि उसमें प्रसन्नता का अनुभव होता है । अतः आज्ञापालन करने की अपेक्षा आज्ञा देना कठिनतम कार्य है ।
    - आर्यिका अकंपमति जी 
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  19. संयम स्वर्ण महोत्सव
    आत्मानुशासित चर्या में केंद्रित गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के चरणो में नमोस्तु - नमोस्तु - नमोस्तु..... हे गुरुवर! ब्रह्मचारी विद्याधर आपकी हर आज्ञा को पूर्ण श्रद्धा, भक्ति के साथ पालन करते थे। इस में किसी भी प्रकार का प्रमाद नहीं करते थे। गुरु आज्ञा को दृढ़ता के साथ पालन करने का यह संस्कार बचपन से ही आ गया था। बचपन में यह संस्कार कहां से मिला इसका समाधान चिंतन में यह आता है कि - पूर्व जन्म के संस्कार जाग्रत हुए हैं। आज्ञाकारिता के बारे में नसीराबाद मे आप के परम भक्त श्री शांतिलाल जी पाटनी ने ब्रह्मचारी विद्याधर जी का गुरु समर्पण का संस्मरण सुनाया, वह मैं आपको लिख रहा हूं -
     
    एक दिन नसीराबाद में हमने  ब्रह्मचारी विद्याधर जी को कहा- आप धोती दुपट्टा धोते हैं तो आपका समय खराब होता है, आप मुझे दे दिया करें मैं उनको धो दिया करुंगा। तो विद्याधर जी मना करते हुए बोले- "गुरु जी की आज्ञा है खुद के कपड़े स्वयं धोना, इसलिए मैं नहीं दे सकता।" तो मैंने कहा - मैं चुपचाप धो दिया करूंगा, गुरु महाराज को पता नहीं चलेगा तो ब्रह्मचारी जी बोले- "मुझे तो पता है ना, आज्ञा क्या है ?" यह सुनकर मेरे हर्षाशु आ गए, हमने कहा- भैया जी आप धन्य हैं, गुरु आज्ञा को सदा ध्यान रखते हैं। तो ब्रह्मचारी विद्याधर जी बोले- धन्य तो आप हैं, आपने मुझे गुरु आज्ञा याद कराई....। इस तरह उन्होंने गुरु आज्ञा में पूर्ण आस्था रखते हुए असंयमी श्रावक की बात नहीं मानी। ऐसी आस्था को नमन करता हुआ.....
                           
    अन्तर्यात्री महापुरुष पुस्तक से साभार
  20. संयम स्वर्ण महोत्सव
    आती छाती पे,
    जाती कमर पे सो,
    दौलत होती।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  21. संयम स्वर्ण महोत्सव
    आज का विज्ञान खोज की दिशा में बहुत आगे बढ़ गया हैं।लेकिन वह आज जड़ की ही खोज कर पाया है।उसने शरीर मे प्रत्येक नस-नस की खोज कर ली, कोई भी शरीर काअवयव उससे अछूता नहीं रह गया। लेकिन शरीर के अंदर आत्मा नाम की कोई वस्तु है या नहीं,इसके बारे में वह मौन है।उसे वह नहीं खोज पाया।मात्र जड़ पदार्थों को ही विषय बना पाया है,क्योंकि प्रत्येक जड़ पदार्थ में रूप,रस,गन्ध,वर्ण और स्पर्श पाया जाता है।लेकिन इन रूप, रस आदि से रहित उस आत्म तत्व को नहीं खोज पाया,क्योंकि वह इंद्रियों का विषय नहीं बनता।वह आत्म तत्व तो योगिगम्य है, योगी मुनिजन ही उसका अनुभव कर पाते है।

    एक व्यक्ति ने गुरुदेव के श्री मुख से आत्मा की चर्चा सुनी और बाद में आचार्य भगवन से पूछा- हे गुरुदेव! आत्मा को कैसे जाना/पाया जा सकता है?यह प्रश्न सुनकर गुरुदेव ने 2 प्रकार की पद्धतियां बतलाई। आत्मा को जानने की पहली पद्धति है:नेगेटिव-वह यह है कि पांच इंद्रियों के द्वारा जो देखने में आ रहा है वह आत्मा नहीं है। शरीर सो आत्मा नहीं।
    दूसरी पद्धति है:पॉजिटिव- वह यह है कि दिखने वाला आत्मा नहीं है, बल्कि जो देख रहा है वह आत्मा है। यानि दिख रहा है शरीर ,लेकिन देख रहा है शरीर के अंदर बैठा आत्मतत्व  दर्पण देखना मत छोड़ो लेकिन दर्पण में जो दिख रहा है वह में हूं ऐसा श्रद्धान रखना छोड़ दो क्योंकि तुम चेतन हो जड़ नहीं।।
    अनुभूत रास्ता पुस्तक से साभार
  22. संयम स्वर्ण महोत्सव
    ☀☀ संस्मरण क्रमांक 21☀☀
               ? आत्मबोध ?
    मुक्तागिरी का चातुर्मास सानंद संपन्न हुआ, आचार्य महाराज संघ सहित रामटेक होते हुए बालाघाट पहुंचे।सुबह संघ सहित शौच क्रिया के लिए जंगल की ओर गए। वहां वन-विभाग के ऑफिसर के बंगले पर दो शेर के बच्चे खेलते हुए दिखे सारा संघ  क्षणभर को वहां ठहर गया।वन विभाग के ऑफिसर ने उन बच्चों के मिलने की जानकारी दी। आचार्य महाराज सारी बातें चुपचाप सुनते रहे, फिर सहसा बोले कि- हे वनराज जैसे देश काल की परिस्थिति आज तुम वन के स्थान पर भवन में रह रहे हो ऐसे ही वनों में  निर्द्वन्द्व विचरण करने वाले मुनिराजों ने नगर में रहना स्वीकार तो कर लिया है,पर यह हमारा स्वभाव नहीं है हमें अपना यथाजात,एकाकी निर्द्वन्द्व विचरण करने का स्वभाव नहीं भूलना चाहिए।
    उन क्षणों में आचार्य महाराज की निस्पृहता और स्वभाव की ओर रुचि देखते ही बनती थी, सभी लोग उनके द्वारा दी गई इस अध्यात्म की शिक्षा से अभिभूत हो गए।
     (बालाघाट 1991) 
    ? आत्मान्वेषी पुस्तक से साभार ?
    ? मुनि श्री क्षमासागर जी महाराज
     
  23. संयम स्वर्ण महोत्सव
    ☀☀ संस्मरण क्रमांक 47☀☀
       ?
      ??????????    ☀☀ संस्मरण क्रमांक 47☀☀
       ? आत्मसूर्य ? 
    रात बहुत बीत गई थी । सभी लोगो के साथ मैं भी इन्तजार कर रहा था, कि आचार्य महाराज सामायिक से उठे और हमे उनकी सेवा का अवसर मिले। कितना अद्भुत है जैन मुनि का जीवन कि यदि वे आत्मस्थ हो जाते है तो स्वयं को पा लेते है और आत्म-ध्यान से बाहर आते है, तो हम उन्हे पाकर अपने आत्मस्वरूप में लीन होने का मार्ग  जान लेते है।
    उस दिन दीपक के धीमे- धीमे प्रकाश में उनके श्रीचरणों में बैठकर बहुत अपनापन महसूस हुआ,ऐसा लगा कि मानो अपने को अपने अत्यंत निकट पा गया हूँ।उनके श्रीचरणों की मृदुता मन को भिगो रही थी। हम भले ही उनकी सेवा में थे, पर वे इस सबसे बेभान अपने मे खोये थे। अद्भुत लग रहा था इस तरह किसी को शरीर मे रहकर भी शरीर के पार होते देखना।
    दूसरे दिन सूरज बहुत सौम्य और उजाला लगा। आज मुझे लौटना था। लौटने से पहले जैसे ही उनके श्री-चरणों को छुआ,और उनके चेहरे पर आयी मुस्कान को देखा, तो लगा मानो उन्होंने पूछा हो कि- क्या सचमुच लौट पाओगे ? मैं क्या कहता ? कुछ कहे बिना ही चुपचाप लौट आया और अनकहे ही मानो कह आया कि अब कभी, कही और, जा नही पाऊंगा उनकी आत्मीयता पाकर मेरा हृदय ऐसा भीग गया था जैसे उगते सूरज किरणों का मृदुल-स्पर्श पाकर धरती भीग जाती है।
            (कुण्डलपुर 1976)
    ? आत्मान्वेषी पुस्तक से साभार ?
    ✍ मुनि श्री क्षमासागर जी महाराज
    आत्मसूर्य ? 
    रात बहुत बीत गई थी । सभी लोगो के साथ मैं भी इन्तजार कर रहा था, कि आचार्य महाराज सामायिक से उठे और हमे उनकी सेवा का अवसर मिले। कितना अद्भुत है जैन मुनि का जीवन कि यदि वे आत्मस्थ हो जाते है तो स्वयं को पा लेते है और आत्म-ध्यान से बाहर आते है, तो हम उन्हे पाकर अपने आत्मस्वरूप में लीन होने का मार्ग  जान लेते है।
    उस दिन दीपक के धीमे- धीमे प्रकाश में उनके श्रीचरणों में बैठकर बहुत अपनापन महसूस हुआ,ऐसा लगा कि मानो अपने को अपने अत्यंत निकट पा गया हूँ।उनके श्रीचरणों की मृदुता मन को भिगो रही थी। हम भले ही उनकी सेवा में थे, पर वे इस सबसे बेभान अपने मे खोये थे। अद्भुत लग रहा था इस तरह किसी को शरीर मे रहकर भी शरीर के पार होते देखना।
    दूसरे दिन सूरज बहुत सौम्य और उजाला लगा। आज मुझे लौटना था। लौटने से पहले जैसे ही उनके श्री-चरणों को छुआ,और उनके चेहरे पर आयी मुस्कान को देखा, तो लगा मानो उन्होंने पूछा हो कि- क्या सचमुच लौट पाओगे ? मैं क्या कहता ? कुछ कहे बिना ही चुपचाप लौट आया और अनकहे ही मानो कह आया कि अब कभी, कही और, जा नही पाऊंगा उनकी आत्मीयता पाकर मेरा हृदय ऐसा भीग गया था जैसे उगते सूरज किरणों का मृदुल-स्पर्श पाकर धरती भीग जाती है।
            (कुण्डलपुर 1976)
    ? आत्मान्वेषी पुस्तक से साभार ?
    ✍ मुनि श्री क्षमासागर जी महाराज
  24. संयम स्वर्ण महोत्सव
    आज को नहीं देखा तो आज और कल दोनों हाथ से निकल जाएंगे
    जगदलपुर, 07 जनवरी। राष्ट्र संत शिरोमणी आचार्य विद्यासागरजी ने कहा कि जिस तरह स्टेशन में ट्रेन आ रही हो और हल्लागुल्ला हो रहा हो रहा है और रेडियो, टीवी भी चल रहा हो उसी समय किसी का मोबाईल आ जाये तो केवल उससे ही संपर्क होता है उसी तरह संत मुनि, श्रुति व ग्रंथों के माध्यम से पूर्व में घटी घटनाओं और विषयों को जान लेते हैं और उसका आनंद लेते हैं। दुकान पर हम आज नगद कल उधार लिखते हैं, लेकिन ग्राहक से ऐसा नहीं कह सकते। कल का कोई स्वरूप तो हमने देखा ही नहीं यदि आज को नहीं देखा तो आज और कल दोनों हाथ से निकल जायेंगे।
    घोर उत्सर्ग होने के बाद भी शरीर छिन्न-भिन्न हो जाता है। संतव्यक्ति भी उसी तरह शरीर को पड़ोसी समझते हैं, जिस तरह मोबाईल में बहुत सारे नंबर भरे हों तो जब हम उसे लगायेेंगे तभी बातचीत हो सकती है और उधर से नबंर आये और हम उठाये तभी बातचीत संभव है, जिस व्यक्ति से हम बातचीत नहीं करना चाहते उस समय उसका रिंग आने पर भी म्यिूट दबा देते हैं, क्योंकि उस समय हम ईश्वर से कनेक्शन जोड़े हुए होते हैं और हम अपना ध्यान नहीं बंटाना चाहते, अतरू ध्यान में ध्यान लगाने की आदत अच्छी है। मुनि महाराजों की कथा में सार भरा रहता है तथा कथा में उनके गुणों का वर्णन रहता है, मूल गुण 28 हैं। मुनि लक्ष्य से नहीं भटकते और न ही चमत्कार की ओर उनकी दृष्टि जाती है। अतिशय आत्मा का वैभव है उसमें दृष्टि रखनी चाहिए उपसर्ग को जीत कर सर्व सिद्धि के विमानों तक पहुंच जाती है। 24 भगवान के तीर्थ काल में दस काल होते हैं। उनका वर्णन सुनने पर शरीर के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। शरीर के ऊपर उपसर्ग होता है शरीर बिखर जाता है तब केवल ज्ञान प्राप्त होता है और हम मुक्त हो जाते हैं। शरीर छिन्नभिन्न होने के बाद जुड़ नहीं सकता विभिन्न परीक्षाओं में निष्णात होकर हम मुक्त हो जाते हैं।
    हम दिगंबर तो हुए नहीं और चाहते हैं कि राजा भरत जैसी कृपा बरस जाये, यदि शर्तें रखते हैं तो दीक्षा नहीं होगी। सम्यक ज्ञान की अवधारणा से कुशलता प्राप्त हो जाती है और कष्ट अनुभूत नहीं होते। कथाओं को पढ़ कर चिंतन का विषय बनाना चाहिए कथा आंसू बहने के लिए नहीं होते हम अपने दुखों पर आंसू नहीं बहाते बल्कि अपने किये हुए अनर्थों पर आंसू आ जाते हैं अज्ञानता से कितने ही अनर्थ हम से हुए हैं।
    आदर्श पुरूषों व महापुरूषों को हमें याद करना चाहिए और उनकी वेदना का ध्यान करना चाहिए, जिन तिथियों में हमने धार्मिक अनुष्ठान किये हैं उन्हें ध्यान करें तो हम दुष्कर्म से बच जायेंगे। अपनी दीक्षा की तिथि को याद करना चाहिए। तीर्थकरों की दीक्षा तिथि को या आचार्य की दीक्षा तिथि को नहीं बल्कि अपनी दीक्षा तिथि को याद रखना चाहिए और यदि तिथि को भी भुला दिया और कर्म पर ही पूरा ध्यान लगा दिया तो वहीं संत है, क्योंकि कल कभी नहीं आता कल किसी ने नहीं देखा है।  दूर पेड़ पर जो दिख रहा है वह हाथ नहीं आता फल तो सारे ऊपर लगे हैं नीचे के सारे फल लोगों ने तोड़ लिये हैं। ऊपर जो लगा है वह समय बीतने पर पककर नीचे गिरेगा, किंतु वह फल किसका होगा नहीं कह सकते भीतर यदि आस्था हो तभी इसका रहस्य समझ में आाता है। तीर्थकरों को देखना केंद्र है। तीर्थकर के अलावा कुछ भी दिखता नहीं।
    आत्मा का वैभव तो आत्मा का वैभव है और वह संसार से न्यारा है। उसे छोड़कर संसारिक व्यक्ति नीरस पदार्थों की ओर आकर्षित होता है, किंतु आंख बंद होते ही दृश्य आ जायेगा और ज्ञान की परिणती होने लगेगी तथा ज्ञान का वैभव आप लूट सकते हैं। भावनाएं बारबार आने पर ही उसका मूल्य समझ में आता है। सत्संग सात्विक भूख है। इससे शारीरिक यात्रा समाप्त होगी और अलौकिक आनंद प्राप्त होगा।
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