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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
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आत्मतत्व - 70 वां स्वर्णिम संस्मरण


संयम स्वर्ण महोत्सव

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आज का विज्ञान खोज की दिशा में बहुत आगे बढ़ गया हैं।लेकिन वह आज जड़ की ही खोज कर पाया है।उसने शरीर मे प्रत्येक नस-नस की खोज कर ली, कोई भी शरीर काअवयव उससे अछूता नहीं रह गया। लेकिन शरीर के अंदर आत्मा नाम की कोई वस्तु है या नहीं,इसके बारे में वह मौन है।उसे वह नहीं खोज पाया।मात्र जड़ पदार्थों को ही विषय बना पाया है,क्योंकि प्रत्येक जड़ पदार्थ में रूप,रस,गन्ध,वर्ण और स्पर्श पाया जाता है।लेकिन इन रूप, रस आदि से रहित उस आत्म तत्व को नहीं खोज पाया,क्योंकि वह इंद्रियों का विषय नहीं बनता।वह आत्म तत्व तो योगिगम्य है, योगी मुनिजन ही उसका अनुभव कर पाते है।


एक व्यक्ति ने गुरुदेव के श्री मुख से आत्मा की चर्चा सुनी और बाद में आचार्य भगवन से पूछा- हे गुरुदेव! आत्मा को कैसे जाना/पाया जा सकता है?यह प्रश्न सुनकर गुरुदेव ने 2 प्रकार की पद्धतियां बतलाई। आत्मा को जानने की पहली पद्धति है:नेगेटिव-वह यह है कि पांच इंद्रियों के द्वारा जो देखने में आ रहा है वह आत्मा नहीं है। शरीर सो आत्मा नहीं।
दूसरी पद्धति है:पॉजिटिव- वह यह है कि दिखने वाला आत्मा नहीं है, बल्कि जो देख रहा है वह आत्मा है। यानि दिख रहा है शरीर ,लेकिन देख रहा है शरीर के अंदर बैठा आत्मतत्व 
दर्पण देखना मत छोड़ो लेकिन दर्पण में जो दिख रहा है वह में हूं ऐसा श्रद्धान रखना छोड़ दो क्योंकि तुम चेतन हो जड़ नहीं।।
अनुभूत रास्ता पुस्तक से साभार

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